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________________ १६] [ तेईसवाँ कर्मप्रकृतिपद] उनके उदय से मोहनीयकर्म का वेदन किया जाता है। गौतम! यह है- मोहनीयकर्म और हे गौतम! यह मोहनीयकर्म का यावत् पंचविध अनुभाव कहा गया है ॥ ४॥ १६८३. आउअस्स णं भत्ते! कम्मस्स जीवेणं० तहेव पुच्छा। गोयमा! आउअस्स णं कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव चउव्विहे अणुभावे पण्णत्ते। तं जहा–णेरइयाउए १ तिरियाउए २ मणुयाउए ३ देवाउए ४। जं वेएइ पोग्गलं वा पोग्गले वा पोग्गलपरिणाम वा वीससा वा पोग्गलाणं परिणाम, तेसिं वा उदएणं आउयं कम्मं वेदेइ । एस णं गोयमा! आउए कम्मे। एस णं गोयमा! आउअस्स कम्मस्स जाव चउव्विहे पण्णत्ते ५। [१६८३ प्र.] भगवन् ! जीव के द्वारा बद्ध......यावत् आयुष्यकर्म का कितने प्रकार का अनुभाव कहा गया है? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न। . [१६८३ उ.] गौतम! जीव के द्वारा बद्ध यावत् आयुष्यकर्म का चार प्रकार का अनुभाव कहा गया है, यथा१. नारकायु, २. तिर्यंचायु, ३. मनुष्यायु और ४. देवायु। जिस पुद्गल अथवा पुद्गलों का, पुद्गल-परिणाम का अथवा स्वभाव से पुद्गलों के परिणाम का या उनके उदय से आयुष्यकर्म का वेदन किया जाता है, गौतम! यह है- आयुष्यकर्म और यह आयुष्यकर्म का यावत् चार प्रकार का अनुभाव कहा गया है ॥५॥ १६८४. [१] सुभणामस्स णं भंते! कम्मस्स जीवेणं० पुच्छा। गोयमा! सुभणामस्स णं कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव चोद्दसविहे अणुभावे पण्णत्ते । तं जहां – इट्ठा सद्दा १ इट्ठा रूवा २ इट्ठा गंधा ३ इट्ठा रसा ४ इट्ठा फासा ५ इट्ठा गती ६ इट्ठा ठिती ७ इट्टे लावणे ८ इट्ठा जसोकित्ती ९ इट्टे उट्ठाण-कम्म-बल-विरिय-पुरिसक्कार-परक्कमे १० इट्ठस्सरया ११ कंतस्सरया १२ पियस्सरया १३ मणुण्णस्सरया १४। तं वेएइ पोग्गलं वा पोग्गले वा पोग्गल-परिणाम वा वीससा वा पोग्गलाणं परिणाम, तेसिं वा उदएणं सुभणामं कम्मं वेदेइ। एस णं गोयमा! सुभनामे कम्मे। एस णं गोयमा! सुभणामस्स कम्मस्स जाव चोद्दसविहे अणुभावे पण्णत्ते। । [१६८४-१ प्र.] भगवन् ! जीव के द्वारा बद्ध यावत् शुभ नामकर्म का कितने प्रकार का अनुभाव कहा गया है ? इत्यादि प्रश्न। [१६८४-१ उ.] गौतम! जीव के द्वारा बद्ध यावत् शुभ नामकर्म का चौदह प्रकार अनुभाव कहा गया है। यथा - (१) इष्ट शब्द, (२) इष्ट रूप, (३) इष्ट गन्ध, (४) इष्ट रस, (५) इष्ट स्पर्श, (६) इष्ट गति, (७) इष्ट स्थिति, (८) इष्ट लावण्य, (९) इष्ट यशोकीर्ति, (१०) इष्ट उत्थान कर्म-बल-वीर्य-पुरुषकार-पराक्रम, (११) इष्ट-स्वरता, (१२) कान्त-स्वरता, (१३) प्रिय-स्वरता और (१४) मनोज्ञ-स्वरता। . जो पुद्गल अथवा पुद्गलों का या पुद्गल-परिणाम का अथवा स्वभाव से पुद्गलों के परिणाम का वेदन किया जाता है अथवा उनके उदय से शुभनामकर्म को वेदा जाता है, गौतम! यह है शुभनामकर्म तथा गौतम! यह
SR No.003458
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size25 MB
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