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________________ [१७ [प्रज्ञापनासूत्र] शुभनामकर्म का यावत् चौदह प्रकार का अनुभाव कहा गया है। [२] दुहणामस्स णं भंते! ० पुच्छा। गोयमा! एवं चेव। णवरं अणिट्ठा सहा १ जाव हीणस्सरया ११ दीणस्सरया १२ अणिट्ठस्सरया १३ अकंतस्सरया १४। चं वेदेड सेसं तं चेव जाव चोहसविहे अणुभावे पण्णत्ते ६। [१६८४-२ प्र.] भगवन्! अशुभनामकर्म का जीव के द्वारा बद्ध यावत् कितने प्रकार का अनुभाव कहा गया है ? इत्यादि पृच्छा। __ [१६८४-२ उ.] गौतम! पूर्ववत् अशुभनामकर्म का अनुभाव भी चौदह प्रकार का कहा गया है, (किन्तु वह है इससे विपरीत), यथा-अनिष्ट शब्द आदि यावत् (११) हीन-स्वरता (१२) दीन-स्वरता, (१३) अनिष्ट-स्वरता और (१४) अकान्त-स्वरता। जो पुद्गल आदि का वेदन किया जाता है यावत् अथवा उनके उदय से दुःख (अशुभ) नामकर्म को वेदा जाता है। शेष सब पूर्ववत्, यावत् चौदह प्रकार का अनुभाव कहा गया है॥६॥ ___१६८५. [१] उच्चागोयस्स णं भंते ! कम्मस्स जीवेणं ० पुच्छा। गोयमा ! उच्चागोयस्स णं कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव अट्ठविहे अणुभावे पण्णत्ते। तं जहा - जातिविसिट्ठया १ कुलविसिट्ठया २ बलविसिट्ठया 3 रूवविसिट्ठया ४ तवविसिट्ठया ५ सुयविसिट्ठया ६ लाभविसिट्ठया ७ इस्सरियविसिट्ठया ८ । जं वेदेइ पोग्गलं वा पोग्गले वा पोग्गल - परिणामं वा वीससा वा पोग्गलाणं परिणाम, तेसिं वा उदएणं जाव अट्टविहे अणुभावे पण्णत्ते। [१६८५-१ प्र.] भगवन् ! जीव के द्वारा बद्ध यावत् उच्चगोत्रकर्म का कितने प्रकार का अनुभाव कहा गया है? इत्यादि पूर्ववत् प्रशन। _[१६८५- १ उ.] गौतम ! जीव के द्वारा बद्ध यावत् उच्चगोत्रकर्म का आठ प्रकार का अनुभाव कहा गया है, यथा – (१) जाति- विशिष्टता, (२) कुल-विशिष्टता, (३) बल - विशिष्टता, (४) रूप -विशिष्टता , (५) तप - विशिष्टता, (६) श्रुत -विशिष्टता, (७) लाभ - विशिष्टता और (८) ऐश्वर्य - विशिष्टता। जो पुद्गल अथवा पुद्गलों का, पुद्गल - परिणाम का या स्वभाव से पुद्गलों के परिणाम का वेदन किया जाता है अथवा उनके उदय से उच्चगोत्रकर्म को वेदा जाता है , यावत् यही उच्चगोत्रकर्म है , जिसका उपर्युक्त आठ प्रकार का अनुभाव कहा गया है। [२] णीयगोयस्स णं भंते! ० पुच्छा। ___ गोयमा ! एवं चेव। णवरं जातिविहीणया १ जाव इस्सरियविहीणया ८। जं वेदेइ पोग्गलं वा पोग्गले वा पोग्गलपरिणामं वा वीससा वा पोग्गलाणं परिणाम, तेसि वा उदएणं जाव अट्ठविहे अणुभावे पण्णत्ते ७। [१६८५-२ प्र.] भगवन् ! जीव के द्वारा बद्ध यावत् नीचगोत्रकर्म का कितने प्रकार का अनुभाव कहा गया. है ? इत्यादि पृच्छा।
SR No.003458
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size25 MB
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