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[प्रज्ञापनासूत्र] शुभनामकर्म का यावत् चौदह प्रकार का अनुभाव कहा गया है।
[२] दुहणामस्स णं भंते! ० पुच्छा।
गोयमा! एवं चेव। णवरं अणिट्ठा सहा १ जाव हीणस्सरया ११ दीणस्सरया १२ अणिट्ठस्सरया १३ अकंतस्सरया १४। चं वेदेड सेसं तं चेव जाव चोहसविहे अणुभावे पण्णत्ते ६।
[१६८४-२ प्र.] भगवन्! अशुभनामकर्म का जीव के द्वारा बद्ध यावत् कितने प्रकार का अनुभाव कहा गया है ? इत्यादि पृच्छा।
__ [१६८४-२ उ.] गौतम! पूर्ववत् अशुभनामकर्म का अनुभाव भी चौदह प्रकार का कहा गया है, (किन्तु वह है इससे विपरीत), यथा-अनिष्ट शब्द आदि यावत् (११) हीन-स्वरता (१२) दीन-स्वरता, (१३) अनिष्ट-स्वरता और (१४) अकान्त-स्वरता।
जो पुद्गल आदि का वेदन किया जाता है यावत् अथवा उनके उदय से दुःख (अशुभ) नामकर्म को वेदा जाता है। शेष सब पूर्ववत्, यावत् चौदह प्रकार का अनुभाव कहा गया है॥६॥ ___१६८५. [१] उच्चागोयस्स णं भंते ! कम्मस्स जीवेणं ० पुच्छा।
गोयमा ! उच्चागोयस्स णं कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव अट्ठविहे अणुभावे पण्णत्ते। तं जहा - जातिविसिट्ठया १ कुलविसिट्ठया २ बलविसिट्ठया 3 रूवविसिट्ठया ४ तवविसिट्ठया ५ सुयविसिट्ठया ६ लाभविसिट्ठया ७ इस्सरियविसिट्ठया ८ । जं वेदेइ पोग्गलं वा पोग्गले वा पोग्गल - परिणामं वा वीससा वा पोग्गलाणं परिणाम, तेसिं वा उदएणं जाव अट्टविहे अणुभावे पण्णत्ते।
[१६८५-१ प्र.] भगवन् ! जीव के द्वारा बद्ध यावत् उच्चगोत्रकर्म का कितने प्रकार का अनुभाव कहा गया है? इत्यादि पूर्ववत् प्रशन।
_[१६८५- १ उ.] गौतम ! जीव के द्वारा बद्ध यावत् उच्चगोत्रकर्म का आठ प्रकार का अनुभाव कहा गया है, यथा – (१) जाति- विशिष्टता, (२) कुल-विशिष्टता, (३) बल - विशिष्टता, (४) रूप -विशिष्टता , (५) तप - विशिष्टता, (६) श्रुत -विशिष्टता, (७) लाभ - विशिष्टता और (८) ऐश्वर्य - विशिष्टता।
जो पुद्गल अथवा पुद्गलों का, पुद्गल - परिणाम का या स्वभाव से पुद्गलों के परिणाम का वेदन किया जाता है अथवा उनके उदय से उच्चगोत्रकर्म को वेदा जाता है , यावत् यही उच्चगोत्रकर्म है , जिसका उपर्युक्त आठ प्रकार का अनुभाव कहा गया है।
[२] णीयगोयस्स णं भंते! ० पुच्छा। ___ गोयमा ! एवं चेव। णवरं जातिविहीणया १ जाव इस्सरियविहीणया ८। जं वेदेइ पोग्गलं वा पोग्गले वा पोग्गलपरिणामं वा वीससा वा पोग्गलाणं परिणाम, तेसि वा उदएणं जाव अट्ठविहे अणुभावे पण्णत्ते ७।
[१६८५-२ प्र.] भगवन् ! जीव के द्वारा बद्ध यावत् नीचगोत्रकर्म का कितने प्रकार का अनुभाव कहा गया. है ? इत्यादि पृच्छा।