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[ प्रज्ञापनासूत्र ]
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वइसुहया ७ कायसुहया ८ । जं वेएइ पोग्गलं वा पोग्गले वा पोग्गलपरिणामं वा वीससा वा पोग्गलाणं परिणामं, तेसिं वा उदएणं सायावेदणिज्जं कम्मं वेदेइ । एस णं गोयमा ! सायावेदणिज्जे कम्मे । एस णं गोयमा ! सायावेयणिज्जस्स जाव अट्ठविहे अणुभावे पण्णत्ते ।
[१६८१-१ प्र.] भगवन्! जीव के द्वारा बद्ध यावत् पुद्गल-परिणाम को पाकर सातावेदनीय-कर्म का कि प्रकार का अनुभाव कहा गया है ?
[१६८१ - १ उ.] गौतम! जीव के द्वारा बद्ध सातावेदनीय कर्म का यावत् आठ प्रकार का अनुभाव कहा गया है, यथा - १. मनोज्ञशब्द, २. मनोज्ञारूप, ३. मनोज्ञगन्ध, ४. मनोज्ञरस, ५. मनोज्ञस्पर्श, ६. मन का सौख्य, ७. वचन का सौख्य और ८. काया का सौख्य । जिस पुद्गल का अथवा पुद्गलों का अथवा पुद्गल - परिणाम का या स्वभाव से पुद्गलों के परिणाम का वेदन किया जाता है, अथवा उनके उदय से सातावेदनीयकर्म को वेदा जाता है । गौतम ! यह है सातावेदनीयकर्म और हे गौतम! यह (जीव के द्वारा बद्ध) सातावेदनीयकर्म का यावत् आठ प्रकार का अनुभाव कहा गया है।
[२] असातावेयणिज्जस्स णं भंते! कम्मस्स जीवेणं० तहेव पुच्छा उत्तरं च । नवरं अमणुण्णा सद्दा जाव कायदुहया। एस णं गोयमा ! असायावेदणिजस्स जाव अट्ठविहे अणुभावे पण्णत्ते ३ ।
[१६८१ १-२ प्र.] भगवन्! जीव के द्वारा बद्ध यावत असातावेदनीयकर्म का कितने प्रकार का अनुभाव कहा गया है ? इत्यादि प्रश्न पूर्ववत् ।
[१६८१ १-२ उ.] इसका उत्तर भी पूर्ववत् (सातावेदनीयकर्मसम्बन्धी कथन के समान) जानना किन्तु (अष्टविध अनुभाव के नामोल्लेख में) 'मनोज्ञ' के बदले सर्वत्र 'अमनोज्ञ' (तथा सुख के स्थान पर सर्वत्र दुःख) यावत् काया क दुःख जानना । हे गौतम! इस प्रकार असातावेदनीयकर्म का यह अष्टविध अनुभाव कहा गया है ॥ ३ ॥
१६८२. मोहणिज्जस्स णं भंते! कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव कतिविहे अणुभावे पण्णत्ते ?
गोयमा ! मोहणिज्जस्स णं कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव पंचविहे अणुभावे पण्णत्ते । तं जहासम्मत्तवेयणिजे १ मिच्छत्तवेयणिज्जे २ सम्मामिच्छत्तवेयणिज्जे ३ कसायवेयणिज्जे ४ णोकसायवेयणिजं ५। जं वेदेइ पोग्गलं वा पोग्गले वा पोग्गलपरिणामं वा वीससा वा पोग्गलाणं परिणामं, तेसिं वा उद मोहणिज्जं कम्मं वेदे । एस णं गोयमा ! मोहणिजे कम्मे । एस णं गोयमा ! मोहणिज्जस्स कम्मस्स जा पंचविहे अणुभावे पण्णत्ते ।
[१६८२ प्र.] भगवन्! जीव के द्वारा बद्ध... .. यावत् मोहनीयकर्म का कितने प्रकार का अनुभाव कहा गया है
[१६८२ उ.] गौतम ! जीव के द्वारा बद्ध यावत् मोहनीयकर्म का पाँच प्रकार का अनुभाव कहा गया है। यथा१. सम्यक्त्व - वेदनीय, २. मिथ्यात्व - वेदनीय, ३. सम्यग् - मिथ्यात्व - वेदनीय, ४. कषाय - वेदनीय और ५. ने कषाय- वेदनीय ।
जिस पुद्गल का अथवा पुद्गलों का या पुद्गल परिणाम का या स्वभाव से पुद्गलों के परिणाम का अथ