SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 30
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ प्रज्ञापनासूत्र ] [१५ वइसुहया ७ कायसुहया ८ । जं वेएइ पोग्गलं वा पोग्गले वा पोग्गलपरिणामं वा वीससा वा पोग्गलाणं परिणामं, तेसिं वा उदएणं सायावेदणिज्जं कम्मं वेदेइ । एस णं गोयमा ! सायावेदणिज्जे कम्मे । एस णं गोयमा ! सायावेयणिज्जस्स जाव अट्ठविहे अणुभावे पण्णत्ते । [१६८१-१ प्र.] भगवन्! जीव के द्वारा बद्ध यावत् पुद्गल-परिणाम को पाकर सातावेदनीय-कर्म का कि प्रकार का अनुभाव कहा गया है ? [१६८१ - १ उ.] गौतम! जीव के द्वारा बद्ध सातावेदनीय कर्म का यावत् आठ प्रकार का अनुभाव कहा गया है, यथा - १. मनोज्ञशब्द, २. मनोज्ञारूप, ३. मनोज्ञगन्ध, ४. मनोज्ञरस, ५. मनोज्ञस्पर्श, ६. मन का सौख्य, ७. वचन का सौख्य और ८. काया का सौख्य । जिस पुद्गल का अथवा पुद्गलों का अथवा पुद्गल - परिणाम का या स्वभाव से पुद्गलों के परिणाम का वेदन किया जाता है, अथवा उनके उदय से सातावेदनीयकर्म को वेदा जाता है । गौतम ! यह है सातावेदनीयकर्म और हे गौतम! यह (जीव के द्वारा बद्ध) सातावेदनीयकर्म का यावत् आठ प्रकार का अनुभाव कहा गया है। [२] असातावेयणिज्जस्स णं भंते! कम्मस्स जीवेणं० तहेव पुच्छा उत्तरं च । नवरं अमणुण्णा सद्दा जाव कायदुहया। एस णं गोयमा ! असायावेदणिजस्स जाव अट्ठविहे अणुभावे पण्णत्ते ३ । [१६८१ १-२ प्र.] भगवन्! जीव के द्वारा बद्ध यावत असातावेदनीयकर्म का कितने प्रकार का अनुभाव कहा गया है ? इत्यादि प्रश्न पूर्ववत् । [१६८१ १-२ उ.] इसका उत्तर भी पूर्ववत् (सातावेदनीयकर्मसम्बन्धी कथन के समान) जानना किन्तु (अष्टविध अनुभाव के नामोल्लेख में) 'मनोज्ञ' के बदले सर्वत्र 'अमनोज्ञ' (तथा सुख के स्थान पर सर्वत्र दुःख) यावत् काया क दुःख जानना । हे गौतम! इस प्रकार असातावेदनीयकर्म का यह अष्टविध अनुभाव कहा गया है ॥ ३ ॥ १६८२. मोहणिज्जस्स णं भंते! कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव कतिविहे अणुभावे पण्णत्ते ? गोयमा ! मोहणिज्जस्स णं कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव पंचविहे अणुभावे पण्णत्ते । तं जहासम्मत्तवेयणिजे १ मिच्छत्तवेयणिज्जे २ सम्मामिच्छत्तवेयणिज्जे ३ कसायवेयणिज्जे ४ णोकसायवेयणिजं ५। जं वेदेइ पोग्गलं वा पोग्गले वा पोग्गलपरिणामं वा वीससा वा पोग्गलाणं परिणामं, तेसिं वा उद मोहणिज्जं कम्मं वेदे । एस णं गोयमा ! मोहणिजे कम्मे । एस णं गोयमा ! मोहणिज्जस्स कम्मस्स जा पंचविहे अणुभावे पण्णत्ते । [१६८२ प्र.] भगवन्! जीव के द्वारा बद्ध... .. यावत् मोहनीयकर्म का कितने प्रकार का अनुभाव कहा गया है [१६८२ उ.] गौतम ! जीव के द्वारा बद्ध यावत् मोहनीयकर्म का पाँच प्रकार का अनुभाव कहा गया है। यथा१. सम्यक्त्व - वेदनीय, २. मिथ्यात्व - वेदनीय, ३. सम्यग् - मिथ्यात्व - वेदनीय, ४. कषाय - वेदनीय और ५. ने कषाय- वेदनीय । जिस पुद्गल का अथवा पुद्गलों का या पुद्गल परिणाम का या स्वभाव से पुद्गलों के परिणाम का अथ
SR No.003458
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy