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________________ १४] [तेईसवाँ कर्मप्रकृतिपद] अनुभाव कहा गया है यथा-(१) श्रोत्रावरण, (२) श्रोत्रविज्ञानावरण, (३) नेत्रावरण, (४) नेत्रविज्ञानावरण, (५) घ्राणावरण, (६) घ्राणविज्ञानावरण, (७) रसावरण, (८) रसविज्ञानावरण, (९) स्पर्शावरण और (१०) स्पर्शविज्ञानावरण। ज्ञानावरणीयकर्म के उदय से जो पुद्गल को अथवा पुद्गलों को या पुद्गल-परिणाम को अथवा स्वभाव से पुद्गलों को वेदता है, उनके उदय से जानने योग्य को नहीं जानता, जानने का इच्छुक होकर भी नहीं जानता, जानकर भी नहीं जानता अथवा तिरोहित ज्ञान वाला होता है। गौतम! यह है ज्ञानावरणीय कर्म। हे गौतम! जीव के द्वारा बद्ध यावत् पदगल-परिणाम को प्राप्त करके ज्ञानावरणीयकर्म का दस प्रकार का यह अनुभाव कहा गया है॥१॥ १६८०. दरिसणावरणिज्जस्स णं भन्ते! कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव पोग्गलपरिणामं पप्प कतिविहे अणुभावे पण्णत्ते? गोयमा! दरिसणावरणिजस्स णं कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव पोग्गलपरिणामं पप्प णवविहे अणुभावे पण्णत्ते। तं जहा-णिद्दा १ णिहाणिद्दा २ पयला ३ पयलापयला ४ थीणगिद्दी ५ चक्खुदंसंणावरणे ६ अचक्खुदंसणावरणे ७ ओहिदंसणावरणे ८ केवलदसणावरणे ९। जं वेदेइ पोग्गलं वा पोग्गले वा पोग्गलपरिणामं वा वीससा वा पोग्गलाणं परिणाम, तेसिं वा उदएणं पासियव्वं ण पासइ, पासिउकामे विण पासइ, पासित्ता वि ण पासइ, उच्छन्नदसणी यावि, भवइ, दरिसणावरणिजस्स कम्मस्स उदएणं। एस णं गोयमा! दरिसणावरणिजे कम्मे। एस णं गोयमा! दरिसणावरणिजस्स कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव पोग्गलपरिणामं पप्प णवविहे अणुभावे पण्णत्ते २। [१६८० प्र.] भगवन् ! जीव के द्वारा बद्ध यावत् पुद्गल-परिणाम को प्राप्त करके दर्शनावरणीय कर्म का कितने प्रकार का अनुभाव कहा गया है ? । [१६८० उ.] गौतम! जीव के द्वारा बद्ध यावत् पुद्गल-परिणाम को प्राप्त दर्शनावरणीय कर्म का नौ प्रकार का अनुभाव कहा गया है, यथा -१. निद्रा, २. निद्रा-निद्रा, ३. प्रचला, ४. प्रचला-प्रचला तथा ५. स्त्यानर्द्धि एवं ६. चक्षुदर्शनावरण, ७. अचक्षुदर्शनावरण, ८. अवधिदर्शनावरण और ९. केवलदर्शनावरण । दर्शनावरण के उदय से जो पुद्गल या पुद्गलों को अथवा पुद्गल-परिणाम को या स्वभाव से पुद्गलों के परिणाम को वेदता है, अथवा उनके उदय से देखने योग्य को नहीं देखता, देखना चाहते हुए भी नहीं देखता, देखकर भी नहीं देखता अथवा तिरोहित दर्शन वाला भी हो जाता है। गौतम ! यह है दर्शनावरणीय कर्म। हे गौतम! जीव के द्वारा बद्ध यावत् पुद्गल-परिणाम को पाकर दर्शनावरणीय कर्म का नौ प्रकार का अनुभाव कहा गया है ॥२॥ १६८१.[१] सायावेदणिजस्स णं भंते! कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव पोग्गलपरिणामं पप्प कतिविहे अणुभावे पण्णत्ते? गोयमा! सायावेदणिजस्स णं कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव अट्ठविहे अणुभावे पण्णत्ते। तं जहामणुण्णा सद्दा १ मणुण्णा रूवा २ मणुण्णा गंधा ३ मणुण्णा रसा ४ मणुण्णा फासा ५ मणोसुहता ६
SR No.003458
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size25 MB
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