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विचारवंतों के दृष्टि में
७१ हमें अपनी आत्मा के सिवाय और कोई पर पदार्थ की चिन्ता नहीं है । मोक्ष पुरुषार्थी-रत्नत्रय संपन्न आत्मा को सादर श्रद्धांजलि ।
क्षु. १०५ सिद्धमती चौमासा, सम्मेद शिखरजी
आत्मविकासाच्या मार्गावर अग्रेसर दिगंबर पूज्य आचार्यवर !
आपण शुद्धात्मपदप्राप्तीसाठी अंतरंग व बहिरंग परिग्रहाचा त्याग करून विशुद्ध दिगंबरत्वाचा अंगीकार केला. आ. कुन्दकुन्द समन्तभद्रादिकांच्या पावलावर पाऊल ठेऊन आत्मविकासाच्या साधनेमध्ये अग्रेसर राहिलात व समीचीन दिगंबरत्वाचा आदर्श कलिकालामध्येही समोर ठेवलात ! आपला अपार अनुग्रह आहे ! आपल्या पावन चरणी त्रिवार वन्दन !
श्री क्षु १०५ श्री अजितमती अम्मा
मु. रुकडी, जि. कोल्हापुर
सबके आदर्श प. पूज्य चारित्र चक्रवर्ति आचार्य शांतिसागरजी महाराज जी के पुनीत चरणों में सविनय कृतज्ञता पूर्वक हार्दिक कर स्मृति-कुसुमाञ्जलि द्वारा शतशतवन्दन एवं नमोस्तु ।
दिगम्बर आम्नाय के प्रतिभाशाली महामुनि भदंत आचार्य श्री शान्तिसागरजी आधुनिक काल में योगियों के नवजन्म दाता है।
___आचार्य श्री का उज्ज्वल जीवन ही सबको न्याय, नीति, क्षमा का प्रकाश प्रदान करता था । अपने शिष्यों के प्रति शासन कार्य में आपका कभी भी पक्षपात, अदेख सखा भाव, अनीति, अन्याय का लवलेश नहीं होता था। इस हेतु से ही वे स्वयं और उनके शिष्य आत्मध्यान, शास्त्र अध्ययन आदि आवश्यक क्रियाओं में सतत सजग रहते थे ।
___लम्बे लम्बे उपवासों के बाद आहारदान में अज्ञ पुरुष द्वारा प्रकृति के प्रतिकूल पदार्थों के दिए जाने पर भी आप क्षुब्ध नहीं होते थे, यह आपके जीवन तपोबल के कारण आपके अन्तरंग में एक अद्भुत और अद्वितीयता थी। जिसके कारण संसारिक प्राणियों को शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, स्वाभाविक, लौकिक, अलौकिक, पारमार्थिक सभी शक्तियाँ एवं योग्यताएं बिनाबार्तालाप किए स्वतः मिल जाती थी । दुःखीयों को तो आपका दर्शन अमृतका पाठ था । सहजहि स्मरण होता है ।
"शशि शांत किरण तप हरण हेत स्वयमेव तथा तुम कुशल देत ।"
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