Book Title: Acharya Shantisagar Janma Shatabdi Mahotsav Smruti Granth
Author(s): Jinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publisher: Jinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan

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Page 521
________________ ३१६ आ. शांतिसागरजी जन्मशताब्दि स्मृतिग्रंथ के रूप में चक्रेश्वर नामक सज्जन की प्रशंसा मिलती है । राष्ट्रकूट राज्यकाल के अन्तिम समय में कर्णाटक में श्रवणबेलगुल की विन्ध्यगिरि पहाड़ी पर भगवान् गोम्मटेश्वर की महामूर्ति की स्थापना हुई जिसका संक्षिप्त उल्लेख ' श्रीचामुण्ड राजे करवियले ' इस मराठी वाक्य में वहां अंकित है। यह मराठी के प्राचीनतम शिलालेखों में से एक है । राष्ट्रकूटों के बाद कल्याण के चालुक्यों का महाराष्ट्र पर अधिकार रहा । इस वंश के सम्राट भुवन मल्ल के समय का सन १०७१ का एक लेख नान्देड के पास तडखेल ग्राम में मिला है जिसके अनुसार सेनापति कालिमय्य तथा नागवर्मा ने निगलंक जिनालय नामक मन्दिर को भूमि, उद्यान आदि अर्पण किये थे । इसी वंश के सम्राट त्रिभुवनमल्ल के समय का सन १०७८ का एक लेख सोलापुर के समीप अक्कलकोट में मिला है, इसमें भी एक जैन मठ के लिए भूमि आदि के दान का वर्णन है । चालुक्यों के प्रतिस्पर्धी मालवा के परमार वंश के राजा भोज के सामन्त यशोवर्मन् द्वारा कल्कलेश्वर के जिनमन्दिर को कुछ दान दिया गया था जिसका वर्णन बम्बई के समीप कल्याण में प्राप्त एक ताम्रशासन में मिलता है । चालुक्यों के सामन्त शिलाहार वंश के राजा गण्डरादित्य द्वारा उसके सामन्त नोलम्ब को सन १९१५ में दो ग्रामों का अधिकार सौंपा गया था ऐसा कोल्हापुर के एक लेख से मालूम होता है । इसमें नोलम्ब को सम्यक्त्व - रत्नाकर तथा पद्मावती देवी लब्धवरप्रसाद ये विशेषण दिये हैं जिस से ज्ञात होता है कि वह जैन था । कोल्हापुर में ही प्राप्त एक अन्य लेख सन १९३५ का है । इसमें राजा गण्डरादित्य के सामन्त निम्बदेव द्वारा एक जिनमन्दिर के निर्माण का तथा वीरबलंज लोगों के संघ द्वारा आचार्य श्रुतकीर्ति को कुछ दान दिये जाने का वर्णन है । कोल्हापुर के सुप्रसिद्ध महालक्ष्मी मन्दिर में प्राप्त एक लेख में भी सामन्त निम्बदेव के जिनमन्दिर निर्माण का तथा आचार्य माघनन्दि का वर्णन मिलता है । यादव वंश के राजा सेउणचन्द्र का एक लेख सन १९४२ का है । यह नासिक के पास अंजनेरी के गुहामन्दिर में प्राप्त हुआ है । चन्द्रप्रभ मन्दिर के लिए दिये गये कुछ दानों का इसमें वर्णन है । धूलिया के समीप मुलतानपुर में सन १९५४ के आसपास का एक लेख मिला है। इसमें पुन्नाट गुरुकुल के आचार्य विजयकीर्ति का नाम अंकित हैं । अकोला के समीप पातूर से प्राप्त दो लेख सन १९८८ के हैं । इस समय नागपुर संग्रहालय में हैं । इनमें धर्मसेन, माणिकसेन आदि आचार्यों के नाम मिलते हैं । अकोला जिले में ही शिरपुर के जिनमन्दिर के द्वारपर एक लेख है जिस की तिथि कुछ अस्पष्ट है । बारहवींतेरहवीं सदी के इस लेख में अन्तरिक्ष पार्श्वनाथ मन्दिर का उल्लेख प्राप्त होता है। तेरहवीं शताब्दी के अन्त में महाराष्ट्र में मुस्लिम शासन स्थापित हुआ । इसके बाद के अधिकांश लेख मूर्तियों के पादपीठों पर तथा आचार्यों की समाधियों पर पाये जाते हैं । इनकी संख्या काफी अधिक है । महाराष्ट्र में जिनमन्दिरों की संख्या दो सौ से अधिक है तथा प्रत्येक मन्दिर में कुछ न कुछ मूर्तिलेख Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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