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___ आ. शांतिसागरजी जन्मशताब्दि स्मृतिग्रंथ इस विवेचन को लिखने का प्रयोजन यह है कि यह आयुर्वेद शास्त्र कोई लौकिक कामचलाऊ शास्त्र नहीं है। अपितु प्रमाणभूत आगम है । उसी दृष्टि से समादर पूर्वक उसका अध्ययन कर प्रयोग करना चाहिये । इस आगम से स्वपर कल्याण की साधना होती है, अतएव उपोदय है।
__आयुर्वेद क्या है ? आयुर्वेद शास्त्र को वैद्य-शास्त्र भी कहते हैं, केवल ज्ञान को विद्या कहते हैं। केवल ज्ञान से उत्पन्न शास्त्र को वैद्य शास्त्र कहते हैं, इस प्रकार वैद्य शास्त्र की निरुक्ति है।
___ सर्वज्ञ तीर्थंकर के द्वारा उपदिष्ट आयु संबंधी वेद को आयुर्वेद कहते हैं, इसके द्वारा मनुष्य को आयुसंबंधी समस्त विषय मालूम होते हैं, या उन विषयों को ज्ञात करने के लिए यह वेद के समान है, अतः इसे आयुर्वेद कहना सार्थक है।
आयुर्वेद का उद्देश अथवा प्रयोजन जैनाचार्यों के जप, तप, संयमादि से बचे हुए समय को वे लोकोपकार करने के लिए उपयोग करते हैं। इसलिए लोकोपकार करने के उद्देश से ही इस शास्त्र की रचना होती है। इस आयुर्वेद शास्त्रनिर्माण के दो प्रयोजन हैं, एक तो स्वस्थ पुरुषों का स्वास्थ्य रक्षण व अस्वस्थ रोगियों का रोगमोक्षण, इस शास्त्र का उद्देश है।
___ स्वास्थ के बिना कोई भी धर्म कार्य को भी करने में पूरा समर्थ ही हो सकता है। चारित्र पालन, संयम ग्रहण आदि सभी स्वास्थ्यपर अवलंबित है। आयुर्वेद शास्त्रों का पारमार्थिक प्रयोजन सब से अधिक उल्लेखनीय है, आत्मचिंतन भी स्वस्थता के साथ होता है इसे भूलना नहीं चाहिये ।
आयुर्वेद जगत् में जैनाचार्यों का कार्य जैनाचार्यों ने जिस प्रकार अन्य सिद्धान्त, दर्शन शास्त्र आदि विभागों में ग्रन्थ रचना की है उसी प्रकार उनके द्वारा विरचित वैद्यक शास्त्र भी सुप्रसिद्ध है, परन्तु खेद है कि अनेक ग्रन्थ अनुपलब्ध हैं, हो सकता है कहीं प्राचीन ग्रन्थ भांडारों में दीमक के भक्ष्य बन रहे हो, संशोधन की आवश्यकता है। किन आचार्यों ने किन ग्रन्थों की रचना कि है इसे हम प्रकाशित वैद्यक ग्रन्थ के आधार से जान सकते हैं। अप्रकाशित प्राचीन ग्रन्थ उपलब्ध हो जाए तो और भी अधिक प्रकाश इस सम्बन्ध में पड सकता है ।
शकवर्ष ८ वें शतमान के प्रसिद्ध आयुर्वेद ग्रन्थ के कर्ता उग्रादित्याचार्य का कल्याणकारक ग्रन्थ प्रकाशित हुवा है । उसके ग्रन्थ में आयुर्वेद ग्रन्थों के रचयिता पूर्वाचार्यों का उल्लेख मिलता है । उन्होंने एक जगह लिखा है कि
शालाक्यं पूज्यपादं प्रकटितमधिकं शल्यतन्त्रं च पात्र स्वामित्रोक्तं विषोग्रग्रहशमनविधिः सिद्धसेनैः प्रसिद्धैः ।
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