Book Title: Acharya Shantisagar Janma Shatabdi Mahotsav Smruti Granth
Author(s): Jinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publisher: Jinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan

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Page 523
________________ जैन कानून (Jain Law) श्री. वालचंद पदमसी कोठारी, अॅडव्होकेट, गुलबर्गा ( म्हैसूर स्टेट ) प्रास्ताविक कथन जैन धर्म स्वतन्त्र और अतिप्राचीन धर्म है। जैन धर्म, तत्त्वज्ञान, आचार और विचार पुरातन काल से चले आरहे हैं । उसी तौरपर 'जैन-लॉ' भी एक स्वतन्त्र सिद्धांत Jurisprudence है । जैनीयों के प्रथम तीर्थंकर श्री आदिनाथ भगवान् (श्रीऋषभनाथ ) के ज्येष्ठ पुत्र श्री भरत चक्रवर्ती (Emperor) ने जैन कानून को बनाया था, और जैन कानून उपासकाध्ययन ग्रन्थ का एक विभाग था। लेकिन उपासकाध्ययन ग्रन्थ आजतक उपलब्ध नहीं हो पाया । उपासकाध्ययन के आधार से लिखी हुई कुछ पुस्तकें, वर्तमान काल में प्राप्त हुई है। उनके नाम१ भद्रबाहु संहिता, २ वर्धमान नीति, ३ अर्हन्नीति, ४ इंद्रनंदीजिन-संहिता, ५ त्रिवर्णाचार, ६ श्री आदिपुराण । ग्रन्थों का परिचय १. श्रीभद्रबाहु संहिता की रचना श्री भद्रबाहु श्रुतकेवली ने की थी। यह ग्रन्थ लगभग २४०० वर्ष पहले लिखा गया था। लेकिन यह ग्रन्थ भी आज उपलब्ध नहीं है। करीब ८०० वर्ष होने के बाद मौजुदा भद्रबाहु संहिता की रचना की जाना पाया जाता है । लेकिन इस ग्रन्थ का संकलन किसने किया मालूम नहीं हुआ। २. अर्हन्नीति और ३ वर्धमाननीति को श्री हेमचंद्राचार्य ने संकलित किया ऐसा मालूम होता है । वर्धमाननीति का संपादन श्री अमितगति आचार्य ने लगभग स. १०११ इ. में किया था। राजा भुंज के समय में श्री अमितगति आचार्य हुए थे। श्री भद्रबाहु संहिता और वर्धमाननीति के कुछ श्लोकों में समानता पायी जाती है। ४. इंद्रनन्दी जिनसंहिता--इसके रचयिता श्री वसुनन्दी इंद्रनन्दी स्वामी हैं । उपासकाध्ययन के आधार पर ये ग्रन्थ लिखे गए हैं। ५. त्रिवर्णाचार--स. १६११ इ. में श्री भट्टारक सोमसेन ने इसकी रचना की है ! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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