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दिगम्बर जैन पुराण साहित्य 'जब कि संसार में शब्दों का समूह अनन्त है, वर्णनीय विषय अपनी इच्छा के अधीन है, इस स्पष्ट है और उत्तमोत्तम छन्द सुलभ है तब कविता करने में दरिद्रता क्या है ? ' ।'
'विशाल शब्द मार्ग में भ्रमण करता हुआ जो कवि अर्थरूपी सघन बनों में घूमने से खेद खिन्नता को प्राप्त हुआ है उसे विश्राम के लिये महाकाव्यरूप वृक्षों की छाया का आश्रय लेना चाहिये।
'प्रतिभा जिसकी जड है, माधुर्य, ओज, प्रसाद आदि गुण जिसकी शाखाएं हैं और उत्तम शब्द ही जिसके उज्वलपने है ऐसा यह महाकाव्य रूपी वृक्ष यशरूपी पुष्पमंजरी को धारण करता है'।
'अथवा बुद्धि ही जिसके किनारे है, प्रसाद आदि गुण ही जिसकी लहरें हैं, जो गुणरूपी रत्नो से भरा हुआ है, उच्च और मनोहर शब्दों से युक्त है, तथा जिसमें गुरु शिष्य परम्परा रूप विशाल प्रवाह चला आ रहा है ऐसा यह महाकाव्य समुद्र के समान आचरण करता है'।'.
'हे विद्वान् पुरुषों ? तुम लोग ऊपर कहे हुए काव्यरूपी रसायन का भरपूर उपयोग करो जिससे कि तुम्हारा यशरूपी शरीर कल्पान्त काल तक स्थिर रह सके'।
__ 'उक्त उद्धरणों से यह स्पष्ट हो जाता है कि ग्रन्थ कर्ता की केवल पुराण रचना में उतनी आस्था नहीं है जितनी कि काव्य की रीति से लिखे हुए पुराण में धर्मकथा में केवल काव्य में भी ग्रन्थकर्ता की आस्था वही मालूम होती, उसे वे सिर्फ कौतुकावह रचना मानते है । उस रचना से काम ही क्या, जिससे प्राणि का अन्तस्तल विशुद्ध न हो सके। उन्होंने पीठिका में आदि पुराण को 'धर्मानुबन्धिनी कथा' कहा है और बडी दृढ़ता के साथ प्रकट किया है कि 'जो पुरुष यशरूपी धन का संचय और पुष्परूपी पण्य का व्यवहार-लेन देन करना चाहते हैं उनके लिये धर्मकथा को निरूपण करनेवाला यह काव्य मूलधन के समान माना गया है।
वास्तव में आदि पुराण संस्कृत साहित्य का एक अनुपम रत्न है। ऐसा कोई विषय नहीं है जिसका इसमें प्रतिपादन न हो। यह पुराण है, महाकाव्य है, धर्मकथा है, धर्मशास्त्र है, राजनीतिशास्त्र है, आचार शास्त्र है और युग की आद्य व्यवस्था को बतलाने वाला महान् इतिहास है।
युग के आदि पुरुष श्री भगवान् वृषभदेव और उनके प्रथम सम्राट् भरत चक्रवर्ती आदि पुराण के प्रधान नायक हैं। इन्होंसे संपर्क रखने वाले अन्य कितने ही महापुरुषों की कथाओं का भी इसमें समावेश हुआ है । प्रत्येक कथानायक का चरित चित्रण इतना सुन्दर हुआ है कि वह यथार्थता की परिधि को न लांघता हुआ भी हृदयग्राही मालूम होता है। हरे भरे वन, वायु के मन्द मन्द झौके से थिरकती हुई पुष्पित पल्लवित लताएँ, कलकल करती हुई सरिताएं, प्रफुल्ल-कमलोद्भासित सरोवर, उतुङ्ग गिरिमालाएं, पहाडी निर्झर, बिजली से शोभित शामल घनघटाएँ, चहकते हुएँ पक्षी, प्राची में सिन्दुरस की अरुणिया को विखेरनेवाला सूर्योदय और लोकलोचनाल्हादकारी-चन्द्रोदय आदि प्राकृतिक पदार्थों का चित्रण कवि ने जिस चातुर्य से किया है वह हृदय में भारी आल्हाद की उद्भूति करता है।
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