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आ. शांतिसागरजी जन्मशताब्दि स्मृतिग्रंथ सम्यग्दर्शन सहित व्रत, तप करनेवाला, निरंतर श्रुताभ्यास करनेवाला आत्मा ही ध्यानरथ पर आरूढ हो सकता है इसलिये ध्यान की सिद्धि के लिये व्रतों को धारण करो, तप का पालन करो, शास्त्र का स्वाध्याय करो।
इस प्रकार अंतिम निवेदन कर अपना अल्पश्रुताभ्यास की लघुता बतला कर यदि इस ग्रंथ में प्रमादवश कुछ दोष रहे हो तो श्रुतपूर्ण ज्ञानी जन उनको दूर करके उनका संशोधन करे ।
ऐसी प्रार्थना कर ग्रंथ समाप्त किया है ।
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