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आईत्-धर्म एवं श्रमण-संस्कृति
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इस देश के अंग हैं ही । भारत का प्रचलित नामकरण भी इसी संस्कृति के अनुयायी चक्रवर्ती भरत से हुआ इस प्रकार श्रमण-संस्कृति का महत्ता बहुत बढ़ी चढ़ी और आदर्श रही है ।
१.
२.
३.
४.
५.
कन्नड
६. यूनानी
७.
चीनी
८.
तमिल
२.
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६.
७.
८.
९.
प्राकृत भाषा में
मागधी
संस्कृत
अपभ्रंश
१.
२.
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6
[ कुछ भाषाओं में श्रमण शब्द के रूप ]
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6
6
6
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समण
शमण
6
'श्रमण ' [ 'कुमारः श्रमणादिभि: " पाणिनि २।१।७० ]
सवणु'
"
"
"
अमण
श्रवण
' सरमनाई '
' श्रमणेरस '
"
[ कुछ ग्रन्थों में श्रमण शब्द ]
'तृदिला अतृदिलासो अद्रयो श्रमणा अशथिता अमृत्यवः । ' - ऋग्वेद १०।९४।११
6
यत्र लोका न लोकाः....श्रमणो न श्रमणस्तापसो.. .. ' — ब्रह्मोपनिषद्
' वातरशना ' 'हवा ऋषयः... श्रमणा ऊर्ध्वमन्थिनो बभूवुः । - तैत्तिरीयोपनिषद्, आरण्यक २।७
श्रमणोऽश्रमणस्तापतोऽतापसो........।'
"
श्रमणः परिवाट् - यत्कर्मनिमित्तो भवति स
6 वातरशना ह वा ऋषयः श्रमणा
। '
- बृहदारण्यक ४।३।२२
।' - शांकरभाष्य
तैत्तिरीय आरण्यक २, प्र० ७, अनु० १-२
वातरशनाख्या ऋषयः श्रमणास्तपस्विनः..
।'- सायण टीका
'आत्मारामाः समदृशः प्रायशः श्रमणा जनाः । ' - श्रीमद्भागवत १२।३।१८-१९
' वातरशनानां श्रमणानामृषीणामूर्ध्वमंथिनाम् . । ' - श्रीमद्भागवत ५/३/२०
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इस प्रकार श्रमण संस्कृति और आर्हत्-धर्म प्राचीनतम सिद्ध होते हैं । यह संस्कृति हिमालय में "भी व्याप्त रही । युग के आदि मनु नाभि और आदि तीर्थंकर ऋषभदेव का इस प्रदेश से भी घनिष्ट संबंध रहा ऐसे भी प्रमाण उपलब्ध हुए हैं । हिन्दू ग्रन्थ श्रीमद्भागवत में लिखा है - नाभि मनु और रानी मरुदेवी ने यहीं से कल्याणपद [ तपस्या द्वारा ] प्राप्त किया । तथाहि
'कुमार : श्रमणादिना ' - शब्दार्णवचंद्रिका 'कुमारः श्रमणादिभिः ' – जैनेन्द्र व्याकरण ११३४६५ वातरशना य ऋप्रयः श्रमणा ऊर्ध्वमन्थिनः । - श्रीमद्भागवत १९१६/४७
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