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आ. शांतिसागरजी जन्मशताब्दि स्मृतिग्रंथ विक्रियाऋद्धिधारी साधु, आठ हजार मनःपर्ययज्ञानी साधु, सात हजार छः सौ' वादी, एक लाख अस्सी हजार आर्यिकाएँ, तीन लाख सम्यग्यदृष्टि श्रावक और पांच लाख व्रतविभूषित श्राविकाएँ रहीं।
आर्यक्षेत्र में यत्र-तत्र धर्मामृत की वर्षा करते हुए भ. चन्द्रप्रभ सम्मेदाचल (शिखरजी) के शिखर पर पहुँचते हैं। भाद्रपद शुक्ला सप्तमी के दिन अवशिष्ट चार अघातिया कर्मों के नष्ट करके दस लाख पूर्व प्रमाण आयु के समाप्त होते ही वे मुक्ति प्राप्त करते हैं ।
चं. च. में रस योजना-चं. च. में शान्त, शृङ्गार, वीर, रौद्र, बीभत्स, करुण, अद्भुत और वात्सल्य रस प्रवाहित है । इनमें शान्त अङ्गी है और शेष अङ्ग।
चं. च. में अलङ्कार योजना-चं. च. में छेकानुप्रास, वृत्त्यनुप्रास, श्रुत्यनुप्रास, अन्त्यानुप्रास, चित्र, काकुवक्तिक्रि और यमक आदि शब्दालङ्कारों के अतिरिक्त पूर्णोपमा, मालोपमा, लुप्तोपमा, उपमेयोपमा, प्रतीप, रूपक, परम्परितरूपक, परिणाम, भ्रान्तिमान् , अपह्नुति, कैतवापनुति, उत्प्रेक्षा, अतिशय, अन्तदीपक, तुल्ययोगिता, प्रतिवस्तूपमा, दृष्टान्त, निदर्शना, व्यतिरेक, सहोक्ति, समासोक्ति, परिकर, श्लेष, अप्रस्तुत प्रशंसा, पर्यायोक्त, विरोधामास, विभावना, अन्योन्य, कारणमाला, एकावली, परिवृत्ति, परिसंख्या, समुच्चय, अर्थापत्ति, काव्यलिङ्ग, अर्थान्तरन्यास, तद्गुण, लोकोक्ति, स्वभावोक्ति, उदात्त, अनुमान, रसवत् , प्रेय, ऊर्जस्वित, समाहित, भावोदय, संसृष्टि, और सङ्कर आदि शब्दालङ्कारों का एकाधिक बार प्रयोग हुआ है।
चं. च. की समीक्षा-महाकवि वीरनन्दि को भ. चन्दुप्रम का जो संक्षिप्त जीवनवृत्त प्राचीन स्रोतों से समुपलब्ध हुआ, उसे उन्हों ने अपने चं. च. में खूब ही पल्लवित किया है ! चं. के जीवनवृत्त को लेकर बनायी गयीं जितनी भी दि. श्वे. कृतियाँ सम्प्रति समुपलब्ध हैं, उनमें वीरनन्दि की प्रस्तुत कृति ही सर्वाङ्गपूर्ण है। इसकी तुलना वें उ. पु. गत चं. च. भी संक्षिप्त-सा प्रतीत होता है, जो उपलब्ध अन्य चन्द्रप्रभचरितों से, जिनमें हेमचन्द्रकृत चं. च. भी शामिल है, विस्तृत है। अतः केवल कथानक के आधार पर ही विचार किया जाए, तो भी यह मानना पडेगा कि वीरनन्दी को सब से अधिक सफलता प्राप्त हुई है । सरसता की दृष्टि से तो इनकी कृति का महत्त्व और भी अधिक बढ़ गया है ।
__ वीरनन्दि का चं. च. अपनी विशेषताओं के कारण संस्कृत महाकाव्यों में विशिष्ट स्थान रखता है। कोमल पदावली, अर्थसौष्ठव, विस्मयजनक कल्पनाएँ, अद्भुत घटनाएँ, विशिष्ट संवाद, वैदर्भी रीति,
१. तिलोय प. (४.११२१) में वादियों की संख्या सात हजार दी है। २. तिलोय प. (४.११६९) तथा पुराण सा. (८८.७५) में आर्यिकाओं की संख्या चार लाख अस्सी हजार
लिखी है। ३. पुराण सा. (८८.७७) में श्राविकाओं की संख्या चार लाख एकानवै हजार दी है। त्रिषष्टिशलाका प. में
कलिकाल सर्वज्ञ आचार्य श्री हेमचन्द्र के द्वारा दी गई संख्याएँ प्रायः इन संख्याओं से भिन्न हैं। ४. उ. पु. (५४.२७१) में चन्द्रप्रभ के मोक्षकल्याणक की मिती फाल्गुन शुक्ला सप्तमी दी गयी है, पुराण
सा. (९०.७९) में मिति नहीं दी गयी, केवल ज्येष्ठा नक्षत्र का उल्लेख किया गया है।
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