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आ. शांतिसागरजी जन्मशताब्दि स्मृतिग्रंथ
आचार्यपद प्रदान विक्रम सं. २०१२ में प. पूज्य स्व. वीरसागरजी महाराज ने ससंघ वर्षायोग जयपुर (खानिया ) में किया था। उस समय आचार्य श्री का चातुर्मास श्री सिद्धक्षेत्र कुन्थलगिरी में हो रहा था। उस समय
आचार्य श्री ने सच्चिदानंद चैतन्य स्वरूप आत्मा को शरीर से पृथक् समझकर सच्चे अध्यात्म योगी बनकर सल्लेखना घोषित की। इस घोषणा को सुनकर हिन्दुस्थान के कोने-कोने से परम तपस्वी सौम्य छबी के दर्शनार्थ अपार जनसमुदाय उमड पडा। प्रतिदिन दस हजार यात्री आते थे । उसी शुभ अवसर पर प. पू. श्री वीरसागरजी महाराज से आज्ञा लेकर मैं श्री कुन्थलगिरी पहुंचा।
जब मैं आचार्यश्री की समाधि कुटी के पास पहुँचा तो वहाँ श्री भट्टारक लक्ष्मीसेनजी, जिनसेनजी तथा श्रीमान् संघभक्त संघपति सेठ गेंदमलजी जौहरी, बम्बई तथा अन्य सज्जन गण भी बैठे हुये थे। मैंने कहा कि, 'मुझे महाराज श्री के दर्शन करा दो' मेरे सौभाग्य से किवाड खोले गए । आचार्य श्री की सौम्यमूर्ति को देखकर अपार आनन्द हुआ। हृदय गदगद हो गया। आँखों सजल होकर तीव्र वेग से बहने लगी, रोके जाने पर भी नहीं रुक रही थी।
नमोस्तु । नमोस्तु । कहते ही महाराज श्री ने आवाज पहिचान लिया। महाराज श्री ने पूछा कौन ? सूरजमल है ? हाँ महाराज । आगे जो भी वार्तालाप हुआ सो इस प्रकार
प्रश्न-क्या जयपुर से आये हो ? वीरसागरजी ने चौमासा जयपुर में ही किया है ?
उत्तर-हाँ ? महाराजजी जयपुर में ही किया है । वीरसागरजी महाराज ने आपके पावन चरणों में सजल नेत्रों से 'बार-बार नमोस्तु' कहा है और अन्तिम प्रायश्चित माँगा है । सो गुरुदेव! दीजियेगा ।
महाराज बोले- क्या दूं? महाराज ? जो भी आपकी इच्छा हो । वीरसागरजी आहार में क्या क्या लेते हैं ?
महाराज ? आपकी यम सल्लेखना सुनते ही उन्होंने मठ्ठा (तक्र) गेहूँ और एक पाव दूध के अलावा सब पदार्थों का त्याग कर दिया है।
महाराज बोले-अच्छा। ऐसा क्यों किया ? ऐसा उन्हें नहीं करना चाहिए। मोह का त्याग करने से ही कल्याण होगा। हमारे वीरसागरजी बडे कोमल हृदय के है, गुरुभक्त है, हमारे प्रथम शिष्य है। उनका बडा संघ होते हुए भी उन्होंने अपने पीछे आचार्य पद नहीं लगाया । खैर अब वीरसागरजी को कह देवे की ८ दिन तक मठ्ठा आहार में नहीं लेवे । पुनः मैंने ही चलकर कहा कि महाराज ! उनके लिए अन्तिम शुभाशिर्वाद देवें ताकि वे चिरंजीव रहें। और उनकी छत्रछाया में हम लोग धर्मसाधन करते रहें।
__हमारा तो शुभाशीर्वाद है ही। अच्छा लो वह मूंगा की माला । हमने इस मालापर करोडो जाप किये हैं उन्हें दे देवे।
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