________________
पञ्चास्तिकाय समयसार
२१
इस तरह षड् द्रव्य और पंचास्तिकाय की प्ररूपणा भगवान् कुन्दकुन्द ने पंचास्तिकाय में की है। उद्देश यह है की संसार की यथार्थ स्थिति को समझ कर सचेतन जीव द्रव्य इनसे राग द्वेष छोड़कर निजस्वरूप की मर्यादा में रहे तो संसार के समस्त दुःखों से छुट सकता है ।
इसे दुःखसे छुड़ाने और राग द्वेषसे छुड़ाने को आचार्य ने जीव और पुद्गल से-परसार निमित्तसे उत्पन्न अवस्था विशेष से सप्ततत्व या नव पदार्थोंका रूप वर्णन किया है, इन सप्त तत्वों व नव-पदार्थों की स्वीकारता या श्रद्धान को सम्यग्दर्शन कहा है। इनके ज्ञानको सम्यग्ज्ञान तथा आत्म रमण को चारित्र कहा है।
और यही सम्यग्दर्शन सात चारित्र मोक्ष के मार्ग के है अर्थात संसार के समस्त दुःखों से छुटने के उपाय है।
ग्रंथकार ने उक्त उद्देश को सामने रखकर ही समस्त ग्रंथ १७२ गाथाओं में रचा है । जो तत्त्वज्ञान की प्राप्ति के लिए तथा मोक्षमार्ग की प्राप्ति के लिए अत्यन्त उपयोगी है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org