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पं. टोडरमलजी और गोम्मटसार
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प्रसंगवश यहां ३६३ कुमतों के भदों का वर्णन है । सर्वथा एकांतवाद मिथ्यावाद है स्याद्वादरूप एकांतवाद सम्यक्वाद है ।
त्रिकरण चूलिका - अधिकार • इसमें अधःकरण अपूर्वकरण - अनिवृत्तिकरण इन तीन करण रूप ★ परिणामों का उनके काल का विशेष वर्णन है ।
९ कर्मस्थिति अधिकार - कर्मों की स्थिति तथा तदनुसार उन के आबाधाकाल का वर्णन है । इसमें १ द्रव्य, २ स्थिति, ३ गुणहानि, ४ नाना गुणहानि, ५ दो गुणहानि, ६ अन्योन्याभ्यस्त राशि इनका - वर्णन अर्थसंदृष्टि - तथा अंकसंदृष्टिपूर्वक विशेष वर्णन है ।
१ प्रति समय समयप्रबद्ध प्रमाण ( अनंतानंत ) कर्म परमाणू बंधते हैं।
२ प्रतिसमय समयप्रबद्ध प्रमाण परमाणू उदय में आते हैं ।
३ प्रति समय किंचित् ऊन द्वयर्द्ध गुणहानि गुणित समयप्रबद्ध प्रमाण सत्त्व में रहते हैं ।
श्रीमान् पं. टोडरमलजीने इस गहन ग्रंथ में सुगमता से प्रवेश होने के लिये इसके बाद अर्थ
- संदृष्टि- अधिकार की स्वतंत्र रचना की है । उसमें प्रथमोपशम सम्यक्त्व होने का विधान वर्णन अत्यंत उपयुक्त है । पांच लब्धि का वर्णन है । प्रथमोपशम सम्यक्त्व में मरण का अभाव है । उसके बाद क्षायिक सम्यक्त्व का वर्णन है । उसका प्रारंभ-निष्ठापन इनका वर्णन है । अनंतानुबंधी के विसंयोजन का वर्णन है । • इस प्रकार अर्थसंदृष्टि अंकसंदृष्टि का विशेष वर्णन किया है ।
श्रीमान् पं. टोडरमलजी का जीवन काल प्रायः करीब २०० वर्ष पूर्ब का है । उनका निवासस्थ जयपुर था । श्रीमान् पं. राजमल्लजी इनके साहधर्मी प्रेरक थे। उनकी प्रेरणा से श्रीमान् पं. टोडरमलजी द्वारा इस ग्रंथ की टीका लिखी गई जो कि इनकी चिरस्मृति मानी जाती है । वे यद्यपि राजमान्य पंडित थे तथापि धर्मद्वेष की भावना से अन्यधर्मी पंडितों द्वारा इस महान् विद्वान् का दुःखद अंत हुआ । सत्य धर्म की रक्षा के लिये उन्होंने अपनी प्राणाहुति स्वयं स्वीकृत करली । हाथी के पाव के नीचे - राज्यशासनदंड उन्होंने सानंद स्वीकृत किया । इस प्रकार इस महान् पुरुष के वियोग से महान् क्षति हुई जिसकी पूर्ति होना असंभव है ।
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ॐ शांतिः । शांतिः । शांतिः ।
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मरने का देहान्त जैन समाज की
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