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परमात्म-प्रकाश और उसके रचयिता
१८१ किसी निश्चित निर्णय पर नहीं पहुंच सकते । भाषा के विचार से योगीन्दु का समय आठवीं शताब्दि के निकट प्रतीत होता है। " (अपभ्रंश साहित्य, पृ. २६८)
ग्रन्थकर्ता की अन्य रचनाएं योगीन्दु के नाम की तरह उनकी रचनाओं में भी मतभेद है। ग्रन्थ परम्परा से निम्न लिखित ग्रन्थ उनके रचित कहे जाते हैं—१. परमात्मप्रकाश, २. योगसार, ३. अध्यात्म संदोह, ४. नौकार श्रावकाचार, ५. सुभाषित तंत्र और ६. तत्वार्थटीका । इनके सिवा योगीन्दु के नाम पर तीन ग्रन्थ और भी प्रकाश में आ चुके हैं, उनके नाम है दौहा १. पाहुड, २. अमृताश्शीति, ३. निजात्माष्टक । इनमें से ३-५-६ के विषय में परिचय उपलब्ध नहीं है ।
____ अमृताश्शीति प्रेरणात्मक उपदेश प्रधान रचना है। अंतिम पद में योगीन्द्र शब्द आया है। यह रचना योगीन्दु मुनि की ही है, इसका कोई निश्चित प्रमाण नहीं है।
निजात्माष्टक प्राकृत भाषा का ग्रन्थ है। इसके भी रचयिता का भी सुनिश्चित निर्णय नहीं किया जा सका है।
नौकार, श्रावकाचार और सावय धम्म दोहा में श्रावकों के सदाचार का सुन्दर वर्णन है। इनके रचयिताओं में तीन व्यक्तियों के नाम लिए जाते है-योगीन्दु, लक्ष्मीधर और देवसेन । हिन्दी साहित्य के बृहत् इतिहास में योगीन्दु को सावय धम्म दोहा का रचयिता प्रदर्शित किया है। इन की कतिपय हस्त लिखित प्रतियों में 'जोगेन्दुकृत' लिखा है । सावय धम्म दोहा की तीन हस्तलिखित प्रतियां ऐसी भी हैं जिसमें कवि का नाम 'लक्ष्मीचन्द्र' लिखा है । इसका संपादन डॉ. हिरालाल जैन ने किया है और उन्होंने उसकी भूमिका में देवसेन को ग्रन्थकर्ता अनेक प्रमाण देकर सिद्ध किया है। देवसेन दशमीं शताब्दि के कवि थे उन्होंने दर्शनसार और भावसंग्रह आदि ग्रन्थों को भी रचना की थी।
___दोहा पाहुड ' के लिए दो रचयिताओं का नाम आता है । मुनि रामसिंह और योगीन्दु । डॉ. हिरालालजी ने ही इसका संपादन किया है। और मुनि रामसिंह को इसका कवि माना है।
अब परमात्मप्रकाश और योगसार ही ऐसे ग्रन्थ रह जाते हैं। जिनके वास्तविक रचयिता योगीन्दु मुनि को माना जा सकता है । परमात्मप्रकाश के दो अधिकारों में ३३७ दोहे हैं। इसमें सर्वत्र अपने शिष्य प्रभाकर भट्ट के ज्ञान संपादनार्थ एवं उसके आत्मलाभार्थ संबोधन किया गया है। रचना के प्रारंभ में प्रभाकर भट्ट ने संसार दुख से छूटने के उपाय की जिज्ञासा प्रकट की थी, उसी के फलस्वरूप इस परमात्म-प्रकाश की रचना की गई है।
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