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आ. शांतिसागरजी जन्मशताब्दि स्मृतिग्रंथ सारी विशाल-जनता महिमें दुखी है आघात ! हा ! अशनिपात ! हुवा यहाँपे चिंता-सरोवर निमजित आज भी है आचार्य-वर्य-गुरुवर्य गये कहाँपे चर्चा अपार चलती दिन-रैन ऐसी जन्मे सुरेन्द्र पुर में दिवि में जहाँपे आई भयानक-परिस्थिति हाय! कैसी ॥३५॥ हूँ भेजता स्तुति-सरोज अतः वहाँपे ॥३७॥ फैली व्यथा, मलिनता, जनता-मुखों में संतोष-कोष-गुरुजी तुम शान्ति सिन्धू हा ! हा ! मची, रुदन भी नर-नारियों में मैं बार बार तव पाद-सरोज वन्, क्रीडा-उमंग तजके वय-बाल-बाला ।
लेता सुनाम अथवा तव लाख बार बैठी अभी वदन को करके सुकाला ॥३६॥ विद्या प्रणाम करता इह बार, बार ॥३८॥
श्री १०८ आचार्य शांतिसागरजी मुनिराज की स्मृति में
भाव श्रद्धांजलि (रचियता-श्री मुक्तागिरी लक्ष्मणराव जैन, अध्यापक हॉ. स्कूल, कसाबखेडा) आचार्य श्री शांति सिंधु का शुभागमन औरंगाबाद । पाये दर्शन बैयालीस में धर्मसाम्राज्य के हो तुम नाथ ॥१॥ उमड पडी जिन जनता आये दर्शनार्थ जागे थे भाग । करन लगे जयघोष 'शांति'का मन में शांति भरा उल्हास ॥२॥
औरंगाबाद से गमन आपका शीघ्रही होने वाला था। 'विरह-गीत' रच गाया था ऐसा न समय कभी आना था ॥३॥ भावों से भरे थे हृदय परि जे सब का तो दिल भरा आया था। मैंने भी कविता जीवन में ऐसी कभी न गाया था ॥४॥ कविता सुन आचार्य दिये आशिस कविता रचते रहना। प्राप्त हुआ वरदान गुरु का जागी प्रतिभा क्या कहना ॥५॥ 'म्हसवड ' में कल्याण कथा भाषण हितखडा किया मुझको। सूरज सम्मुख दीपक का क्या होगा उजाला लगा मुझको ॥६॥
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