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आ. शांतिसागरजी जन्मशताब्दि स्मृतिग्रंथ ले समाधि त्यागा शरीर जड किया सत्य का दर्शन, श्रद्धा सहित युगल चरणों में श्रद्धांजलि समर्पण ॥२॥ इनके पद चिन्हों पर चलकर आतम ज्योति जलाओ, आपा पर का भेद जानकर तन से मोह हटाओ, 'काका' निजानंद रस पीकर करो मोक्ष का दर्शन, श्रद्धा सहित युगल चरणों में श्रद्धांजलि समर्पण ॥३॥
ख. परम-पूज्य आचार्य शांतिसागर महाराज के चरणों में
श्रद्धांजलियां पद १
पद २ बनेंगे सिद्ध शांतिमुनिराज !
तुम शांत यतिवर शांत पदनत हम महाराज!
और प्रशांत ध्यान तुम्हारा साधु बने तुम पूर्ण दिगंबर,
पद में प्रणिपात हमारा॥ भव-झंझट तन-माया तजकर निजतनपर माया ना करते
आत्मा से नेह सदा रखते आत्मध्यान धुनी निज उर में घर
व्रत संयम शील तुम्हारा हार कर्म त्रैलोक्य-शुभंकर
है कछु न्यारा ॥ पद में ॥ होंगे मुनिसम्राट!
मित भाषण मधुर भरा रस का बनेंगे देवन के सिरताज !!
भवि-जीवन को भव में हित का सिद्धक्षेत्र का वास मिला है
उद्धारो बरसाकर बोधामृत धारा सिद्ध होने के भाव खिरे हैं
॥पद में। वीतरागता, ना विकारता
शुभ भाव महोबत नित रखते आत्मा में संपूर्ण भरे है।
तुम हरिक जैसे जगमगते जाओ यहीं तुम बिराज !
इस कलियुग में तुम ही हो
धर्मसहारा ॥ पद में॥
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