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विचारवतों के दृष्टि में
सन्मार्गरुद मुनिमूर्ति - प्रशांतमूर्ति
सरस- सुंदर यथार्थ जीवनचित्र
ध्यानी, सुधी विमलमानस आत्मवादी । शुद्धात्मके अनुभवी तुम अप्रमादी ।
रचयिता - - १०८ आचार्य ज्ञानसागर महाराज के प्रथम शिष्य - मुनिविद्यासागर
वसंततिलका छन्द
मैसूर राज्य - अविभाज्य विराजता जो शोभामयी - नयन-मंजुल -- दिखता जो त्यों शोभता मुदित - भारत - मेदिनी में ज्यों शोभता मधुप-- फुल्ल सरोजनी में ॥ १ ॥ हैं वेलग्राम उसमें जिलहा निराला सौंदर्यपूर्ण जिसमें पथ हैं विशाला अभ्रंलिहा परम -- उन्नत सौध -- माला है जो वहाँ अमित - उज्वल औ उजाला ||२|| है पास भोज इसके नयनाभिराम राकेन्दु सा अवनि में लखता ललाम श्री भाल में ललित -- कुंकुम शोभता ज्यों जो भोज भी अवनि मध्य सुशोभता त्यों ॥३॥ आके मिली विपुल--निर्मल--नीरवाली -- हैं भोज में सरित दो सुपयोजवाली विख्यात है यक सुनो वर दूधगंगा दूजी तथा सरस -- शान्त - सुवेदगंगा ॥४॥ श्रीमान् -- महान् - विनयवान् -- बलवान्- सुधीमान् श्री भीमगौंड मनुजोत्तम औ दयावान् सत्यात्म थे कुटिल आचरणज्ञ ना थे जो भोज में कृषिकला अभिविज्ञ औ थे ||५||
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नीतिज्ञ थे सदय थे सुपरोपकारी पुण्यात्म थे सकल-- मानव हर्षकारी atta धर्म अरु अर्थ सुकाम में थे औ वीर - नाथ-- वृष के वर भक्त यों थे ॥६॥ थी भीमगौंड - ललना अभि सत्यरूपा थी काय - कान्ति जिसकी रति सी अनूपा सीता समा- गुणवती वर नारि रत्ना जो थी यहाँ नित नितान्त सुनीतिमन्ना ॥७॥ नाना- कला निपुन भी मृदु भाषिणी थी शोभावती - मृगगी कुलतारिणी थी लोकोत्तरा - छविमयी -उन-वाहिनी थी सर्वंसहा अवनिसी समतामयी थी ||८|| मंडोदरी समसुनार विलक्षिणी थी औ प्राणनाथ खरआलस - हारिणी थी हंसानना, शशिकला, मनमोहिनी थी लक्ष्मी समा अथच सिंह कटी यहीं थी ॥९॥ हीरे समा नयनरम्य सुदिव्य अच्छे या सूर्य-चन्द्र-सम तेज सुशान्त बच्चे जन्में दया भरित नारि सुख से थे दोनों अहो ! परम-सुन्दर लाडले थे ॥१०॥
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