Book Title: Balshiksha
Author(s): Jinvijay
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान पुरातन गन्ममाला प्रधान सम्पादक-फतहसिंह, एम०ए०, डी लिट्. [निदेशक, राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर ] ग्रन्थाङ्क ३ ठक्कुर-सङ्ग्रामसिंह-विरचित बालशिक्षा [शर्ववर्माचार्यप्रणीत कातन्त्रव्याकरणसूत्र एवं परिशिष्टों सहित] प्रकाशक राजस्थान-राज्य-संस्थापित राजस्थान प्रान्यविद्या प्रतिष्ठान RAJASTHAN ORIENTAL RESEARCH INSTITUTE, JODHPUR. जोधपुर (राज) dain Education International Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला लि. प्रधान सम्पादक-तिहासह, एम४५० [ निदेशक, राजस्थान प्रात्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर ] प्रन्थाङ्क ३ ठकुर-संग्रामसिंह वि बालशिक्षा (शर्ववर्माचार्य प्रणीत कातन्त्रव्याकरणसूत्र एवं परिशिष्टों सहित ) राजस्थान - राज्य संस्थापि राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान जोधपुर (राजस्थान) RAJASTHAN ORIENTAL RESEARCH INSTITUTE, JODHPUR. १९६८ ई० प्रथमावृत्ति : ७५० सम्पादक पुरातत्वाचार्य श्री मुनिि मूल्य : ७.७५ Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला राजस्थानराज्य द्वारा प्रकाशित सामान्यतः अखिलभारतीय तथा विशेषतः राजरथानदेशीय पुरातनकालोन संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रश, राजस्थानी हिन्दी आदि भाषानिबद्ध है विविधवाङ्मयप्रकाशिनी विशिष्ट ग्रन्थावलि प्रधान सम्पादक फतहसिंह, एम०ए०, नी लिट. निदेशक, राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर ठक्कुर-सङ्ग्रामसिंह-विरचित बालशिक्षा [शर्ववर्माचार्यप्रणीत कातन्त्रव्याकरणसूत्र एवं परिशिष्टों सहित] प्रकाशक राजस्थानराज्याज्ञानुसार निदेशक, राजस्थान प्रान्यविद्या प्रतिष्ठान जोधपुर (राजस्थान) Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रधान-संपादकीय वक्तव्य प्रस्तुत ग्रन्थ का मुद्रण सन् १९५१ में प्रारंभ हो गया था और १९६२ में इसके प्रकाशन को भी पूरी तैयारी हो चुकी थी, परन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि किसो शोधपूर्ण भूमिका के अभाव में इसका प्रकाशन नहीं किया गया, यह उचित हो था क्योंकि प्रस्तुत ग्रन्थ कलिकाल-सर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य के उस महान् परंपरा की एक कड़ी कहा जा सकता है जिसका प्रारम्भ उन्होंने अपने शब्दानुशासननामक महाग्रंथ में प्राकृत-व्याकरण का समावेश करके किया था। फिर भी ग्रंथ के प्रकाशन को और अधिक विलंबित करना एक महान् अपराध होगा। प्रतः इसे इसी साधारण भूमिका के साथ प्रकाशित किया जा रहा है । यह ग्रन्थ भाषाविज्ञान की दृष्टि से विशेष महत्त्व का है, क्योंकि इस ग्रन्थ में संस्कृत व्याकरण-शिक्षा के सन्दर्भ में कई स्थानों पर तत्कालीन भाषा-शब्दों का भी प्रयोग हुअा है उदाहरण के लिये, संस्कारप्रक्रम-नामक सप्तम अध्याय में अनेक अव्यय तथा क्रियापदों को तत्कालीन भाषा से संगृहीत करके उनके संस्कृत-पर्याय दिये गये हैं। सर्वप्रथम पं० लालचंद भगवानदास गाँधी ने इस तथ्य की ओर पुरातत्त्व पुस्तक ३ अंक १ पृष्ठ ४० से ५३ पर निर्देश किया था। यहाँ पर तत्कालीन भाषा के निम्नलिखित क्रियापदों की ओर ध्यान आकृष्ट किया जाता है: "राखइ, बोलइ, नासइ, बूझइ, सीखइ, विचारइ, कहइ, सोहइ, ऊगइ, मथमइ, पूजइ, बरसइ, घसइ भेठइ, उलीचइ, लाजइ, फिरइ, संघइ, बुहारइ, बांधइ, निंदइ, पूरइ, सरइ, परिणइ, भावइ, भासइ, पोयइ, तूसइ, रूसइ, पूछइ, नाचइ, पीडइ, भीजइ, गांठइ, पढइ, हुयइ, जुडइ, पेलइ, प्रोढइ. रमई, रोवइ. ढोलइ, धापई, लाडई, लुनइ, सोझ, वरइ, मयइ, ढांकइ, पहिरइ, छेदइ, हकारइ, धूजइ, करई, मांजइ, धूपइ, मलइ मरदइ, छूटइ, ऊठइ. नीठइ, वारइ, सकइ, चोरइ वखाणइ, वधारइ, जांमइ, मरइ, कुपई, देखइ, जोवइ पोसड, सीवई पीसइ, मारइ, हिनहिनाइ, गूंथइ, सूजइ, दोहइ, दूसइ, थरकइ, वाजइ, छों कई, छकइ हाकइ, फूंकइ, छांटइ, लोपइ, घूमइ, पाच इ, फाटइ, निमटइ, उवटइ, आवइ, गाजइ' ये सभी क्रियापद वर्तमानकालिक अन्यपुरुष-एकवचन के रूप हैं और इनको अवधीं, व्रज, पूर्वी, राजस्थानी, पश्चिमी राजस्थानी तथा गुजराती की संपत्ति समान रूप से माना जा सकता है। इसमें कोई आश्चर्य की बात Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -खै Sup I नहीं है, क्योंकि प्रतिप्राचीनकाल में भारतवर्ष की जिस धार्मिक परियात्रा का विधान था वह प्राधुनिक उत्तरप्रदेश के क्षेत्रों से कुरुक्षेत्र होती हुई सिन्धुनदी के किनारे-किनारे गुजरात से समुद्र तट का प्रश्रिय लेकर जाती थी । प्रत: इन प्रदेशों में गमनागमन करने वाले अनेक साधु, सन्त तथा धर्मप्रेमी गृहस्य भारतवर्ष कौने-कौने से आकर परस्पर सम्पर्क स्थापित करते होंगे, जिसके फलस्वरूप एक सम्पैक-भाषा का विकसित होना स्वाभाविक था । जिस समय (सन् १२७९ ई०) लिखी गई उस समय निस्सन्देह संस्कृत केवल विद्वानों की ही सम्पर्कभाषा रह गई थो और संभवतः जन साधारण को भाषा संस्कृत से बहुत दूर चली गई थी । संस्कृत से जनभाषा की दूरों दूर करने के लिये ही सम्भवतः इस पुस्तक के लेखक ने "संस्कारप्रेम" अध्याय में भाषा-शब्दों का संस्कृत के साथ मेल बिठाने का प्रयत्न किया । प्राकृतशब्दों का इस प्रकार संस्कार करने की प्रवृत्ति बहुत प्राचीन काल से चलो या रही है और इसको हम ऋग्वेद में प्रयुक्त 'संस्कृत' प्रादि शब्दों की पृष्ठभूमि में भी देख सकते हैं; अतः पाणिनीयकरण द्वारा हुए महान् प्रयत्न को एकांकी, प्रथमं तथा अन्तिम प्रयत्न नहीं कह सकते । 7 'लक्षण द्रव्य-संग्रह ' प्रस्तुत ग्रन्थ के लेखक ठक्कुर संग्रामसिंह श्रमालवंशीय कूरसिंह के पुत्र थे । उन्होंने स० १३३६ में इस ग्रन्थ की रचना की । ग्रन्थकार ने इसको 'बाल शिक्षा' नाम दिया है और अन्त में इसको एक कहीं है। ग्रंथ के प्रारंभ में 'श्रीं नमः श्रीसरस्वत्यै' कह करें प्रथम श्लोक में 'परब्रह्म' की वन्दना करके शर्विवर्मिक कातन्त्र से संक्षेप में बालशिक्षा के प्रयने की प्रतिज्ञा को गई है। संभवत: इसे प्रारंभिक नमस्कार के आधार पैर व मोहनलाल देवद देसाई ने अपने 'जन साहित्य इतिहास' में ग्रन्थकार को जैन होने का संदेह व्यक्त किया अन्तिम प्रशस्ति के पंद्य ५ में 'वर्धमानाश्रीः केाधर पर सम्भवतः उसके जैन होने का भी संदेह किया जो सकता है | अस्तु, यह तो हैं कि ग्रन्थकार भारतभूमि का एक ऐसा पुत्ररत्न था जो जनाजनादि भेदभाव से ऊपर उठकर राष्ट्रीय दृष्टि से सोच सकता था और वर्तमान भेदबुद्धिविधायिनी प्रवृत्ति के विपरीत एकमात्र राष्ट्रीय दृष्टि से भाषी प्रश्न पर विचार करके तत्कालीन जनसाधारण की भाषाओं को सुसंस्कृत रूप प्रदान करने के लिये वने व्याकरण में 'संस्कारकम' को लिख 51162 Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिस कातन्त्रव्याकरण के माधार पर लेखक ने अपने इस ग्रन्थ का मान किया है उसको तथा चान्द्रव्याकरण को लेकर हुछ प्रवाश्य विद्वानों ने उसी प्रार्थनार्य भेदभाव को प्रचारित करने का प्रयत्न किया है जिसको कि हम फादर हैरास के नेतृत्व में प्रचारित तथा सिन्धुघाटी की सभ्यता पर आश्रित प्रवृत्ति में सुविकसित रूप में देखते हैं। यह प्रवृत्ति। भारतवर्ष को यह सिखाना चाहती है कि भारतीय संस्कृति में जैन, बौद्ध , शक्ति जैसे प्रागमों और एकेश्वरवाद तथा योग आदि के सिद्धान्तों के जनप्रदाता एक विदेशी अथवा स्वदेशी द्राविड-संस्कृति थी और अपने को हिन्दू कहने वाले लोग प्राज जिस धर्म और दर्शन पर गर्व करते हैं उसमें उनका अपना कुछ भी नहीं है। हमारे राष्ट्रीय स्वावलम्बन और स्वाभिमान के अपहरण का यह योजनाबद्ध प्रयास बड़ो सावधानी से चलता मा रहा है और दुःख की बात यह है कि हमारे विद्वान् इसको नवीनतम खोज समझकर बेसमझे-बूझे अपनाते चले जा रहे हैं। सच्ची बात यह है कि भारतवर्ष की संस्कृति में भाषा, धर्म, जाति, नस्ल, भेष तथा रूपरंग के भेदभाव को कभी माना ही नहीं गया और इस देश में रहने वाली समस्त जनता को भारतीय-पन्तति अथवा भारतीय प्रजा कहा गया । जैसा कि इस प्रतिष्ठान से प्रकाशित चान्द्रव्याकरण की भूमिका में कहा गया है। कातन्त्र-शब्द प्राचीन 'काशकृत्स्नतंत्र' का संक्षिप्त रूप है और इसमें भी किसी समय पाणिनीय व्याकरण के समान ही वैदिक-व्याकरण का समावेश था। ऐसा कहने से मेरा अभिप्राय ऐसा कदापि नहीं कि इस व्याकरण का कर्ता जैन अथवा मजन था मैं केवल इतना ही कहना चाहता हूँ कि यह ग्रन्थकार जैनाजनादि-भेदभाव से परे उसी प्रकार एकमात्र भारतीय थे जिस प्रकार भारतवर्ष के प्राचीनतम ग्रन्थ ऋग्वेद, जिसमें जैन, बौद्ध, शाक्त, शैव, वैष्णव, सौर, गाणपत्य प्रादि सभी प्रागमों के बीज उपलब्ध होते हैं। प्रावश्यकता इस बात की है कि हम विदेशों द्वारा दिखाई गई भेदबुद्धि को छोड़कर ऐक्य विधायिनी शुद्ध भारतीय बुद्धि को अपनाये। यही राष्ट्र की मांग है, यही भारतीय संस्कृति की पुकार है। ___इस ग्रन्थ के सम्पादन में सर्वश्री मुनिजिनविजय, श्रीलक्ष्मीनारायण गोस्वामी, श्रीठाकुरदत्त जोशी तथा विभाग के अन्य व्यक्तियों ने जो परिश्रम किया है उसके लिये में हार्दिक आभार प्रकट करता हुमा, इस ग्रन्थ को सुविज्ञ पाठकों के कर-कमलों में समर्पित करता हूँ। सूर्यसप्तमी, सं० १०२४, जोधपुर. -फतहसिंह *देखिये, बर्नेल कुत ही ऐन्द्र स्कूल पॉफ संस्कृत ग्रामर. Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषयानुक्रम पृष्ठ प्रधान संसारकोयलय बालशिवा ( मूलमन्था) (३) स्यानि (कारकत्राम (घ) समाप्रकाम (७) संसारप्राम परिशिष्ट १ (१) बालशिक्षा-सूत्रसूची (२) बालशिक्षा-धातुरूपसूची (३) बालशिक्षा-पारिभाषिकशम्ब-सूची (४) बालशिक्षा-भाषा-शब्द-सूची परिशिष्ट २ काताचव्याकरण-सा-पाठ ५५-१०४ १०५-१५७ १०५-११८ ११६-१३० १३१-१४३ १४४-१५६ ernational www.jainel Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठक्कुर संग्रामसिंह विरचिता बाल शिक्षा ॥ ॐ नमः श्रीसरस्वत्यै ॥ श्रीमन्नत्वा परं ब्रह्म बालशिक्षा यथाक्रमम् । संक्षेपाद रचयिष्यामि 'कातन्त्रात्' शावम्मिकात् ॥ १॥ आदौ सौ ततः सन्धिः स्यादयः कारकॉणि च । समांसाश्वोक्तिविज्ञानं संस्कारस्त्यादयस्तथा ॥ २ ॥ इत्यष्टप्रक्रमोपेतामेतां कुर्वन्तु हृद्गृहे । कातत्रभास्कराभावे यथा दीपश्रियं जनाः ॥ ३ ॥ [प्रथमः सज्ञाप्रक्रमः।] 'सिद्धो वर्णसमाम्नायः।' वर्णसञ्ज्ञा*। सज्ञासूत्राणि यथा-'तत्र चतुर्दशादौ खराः।' खर केता १४ । 'तत्र चतुर्दशादौ स्वराः।' स्वरसञ्ज्ञा। समान १० । 'दश समानाः।' समानसञ्ज्ञा । सवर्ण १० । तेषां द्वौ द्वावन्योऽन्यस्य सवर्णौ ।' सवर्णसञ्ज्ञा । हख ५ । 'पूर्वो ह्रखः।' हस्खसञ्ज्ञा । दीर्घ ५ । 'परो दीर्घः।' दीर्घसञ्ज्ञा। नामीआ १२ । 'खरोऽवर्णवों नामी।' नामिसञ्ज्ञा। संध्यक्षर ४ । 'एकारादीनि सन्ध्यक्षराणि।' सन्ध्यक्षरसञ्ज्ञा। व्यञ्जन ३३ । 'कादीनि व्यञ्जनानि ।' व्यञ्जनसञ्ज्ञा । वर्ग ५ क च ट त प । 'ते वर्गाः पञ्च पञ्च पश्च ।' वर्गसञ्ज्ञा। अघोष १३ । 'वर्गाणां प्रथमद्वितीया शषसाश्चाघोषाः।' अघोषसञ्ज्ञा घोषवंत २० । 'घोषवन्तोऽन्ये ।' घोषवन्तसञ्ज्ञा। 'अनुनासिका ङञ ण न माः।' अनुनासिकसञ्ज्ञा। . * वर्णाः ५२ तथा चोक्तम्ग्यानानि यस्त्रिंशत् स्वराश्चैव चतुर्दश । अनुस्खारविसर्गौ च जिह्वामूलीय एव च ॥ १॥ गजकुम्भाकृतेर्वर्णः प्लुतश्च परिकीर्तितः । एवं वर्णा द्विपञ्चाशन् मातृकायामुदाहृताः ॥ २॥ Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा-प्रथमः सज्ञाप्रक्रमः । 'अन्तस्थाः य र ल वाः।' अन्तस्थासज्ञा। "ऊष्माणः श ष स हाः। ऊष्मसञ्ज्ञा। 'अः इति विसर्जनीयः।' विसर्जनीयसञ्ज्ञा। 'xकः इति जिह्वामूलीयः।' जिह्वामूलीयसञ्ज्ञा । 'xपः इत्युपध्मानीयः।' उपध्मानीयसञ्ज्ञा । 'अं इत्यनुस्वारः।' अनुस्वारसज्ञा। 'विभत्त्यन्तं पदम् ।' 'पूर्वपरयोरर्थोपलब्धौ पदम् । पदसञ्जा। लिंगु ३ स्त्रीलिंगु । पुंलिंगु । नपुंसकलिंगु । भलु पुलिंगु । भली स्त्रीलिंगु । भलु नपुं. सकलिंगु । प्रायसो(शो) लिङ्गाभिज्ञानमिदम् । 'धातुविभक्तिवर्जमर्थवल्लिङ्गम्। लिङ्गसञ्ज्ञा। स्थादौ वचन २१ । 'पञ्चादौ घुट् । 'जसूशसौ नपुंसके।' घुटसञ्ज्ञा । 'आमत्रिते सिः सम्बुद्धिः।' सम्बुद्धिसञ्ज्ञा। 'इदुदग्निः।' अग्निसज्ञा। 'ईदूत् ख्याख्यौ नदी।' नदीसञ्ज्ञा। 'आ श्रद्धा ।' स्त्रीलिंगतणा आकार श्रद्धासज्ञा 'अन्त्यात् पूर्व उपधा।' उपधासज्ञा। .. 'व्यञ्जनान्नोऽनुषङ्गः।' अनुषङ्गसज्ञा। धुट् २४ । 'धुव्यञ्जनमनन्तःस्थानुनासिकम् ।' धुट्सचा। 'यः करोति स कर्ता।' खतन्त्रकर्तृसञ्ज्ञा । 'कारयति यः स हेतुश्च ।' हेतुकर्तृसञ्ज्ञा । 'यत् क्रियते तत् कर्म ।' कर्मसञ्जा। 'येन क्रियते तत् करणम् ।' करणसञ्ज्ञा। 'यस्मै दित्सा रोचते धारयते वा तत् संप्रदानम् ।' संप्रदानसज्ञा। 'यतोऽपैति भयमादत्ते वा तदपादानम्।' 'ईप्सितं च रक्षार्थानाम्।' अपादानसञ्ज्ञा। 'य आधारस्तदधिकरणम् ।' अधिकरणसञ्जा। एवं षट्कारकाणां सज्ञा । Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा-प्रथमः सशाप्रक्रमः। ३ 'पदे तुल्याधिकरणे, विज्ञेयः कर्मधारयः।' कर्मधारयसमाससञ्ज्ञा । 'संख्यापूर्वो द्विगुरिति । द्विगुसज्ञा। "विभक्तयो द्वितीयाद्या नाना परपदेन तु। समस्यन्ते समासे हि ज्ञेयस्तत्पुरुषः स च ॥ तत्पुरुषसञ्ज्ञा। 'स्थातां यदि पदे द्वे तु यदि वा [स्युबिहून्यपि। तान्यन्यस्य पदस्यार्थे ब्रहुव्रीहिः, विदिक् तथा ॥' बहुव्रीहिसञ्ज्ञा। 'इन्द्रः समुच्चयो नानोर्बहूनां वापि यो भवेत् ।' द्वन्द्वसञ्ज्ञा । 'पूर्व वाच्यं भवेद् यस्य सोऽव्ययीभाव इष्यते।' अव्ययीभावसञ्ज्ञा । एवं षट् समासानां सज्ञा॥छ॥ एवं चतुष्कसञ्ज्ञा ॥ 'अथ परस्मैपदामि ।' परस्मैपदसञ्ज्ञा। 'नव पराण्यात्मने ।' आत्मनेपदसञ्ज्ञा । पुरुष ३ । 'त्रीणि त्रीणि प्रथममध्यमोत्तमाः।] पुरुषसञ्ज्ञा । 'अदा दाधौ दा।' दाण् । देङ् । डुदाङ । दो। धेट् । डुधाञ् । एषां दासज्ञा। 'क्रियाभावो धातुः।' धातुसञ्ज्ञा । दश त्यादिविभक्तीनां वर्तमानादिसञ्ज्ञा। 'षडाद्याः सार्वधा[तुकम् ।' वर्तमाना] । सप्तमी। पञ्चमी । यस्तनी। आसां सार्वधातुकसञ्ज्ञा।। । सन् । यिन् । काम्य । आयि । इन् । चेक्रीयितसज्ञा य। आय। पक्षे णीयडू । इनङ्। एवं नवानां 'ते धातवः।' इति धातुसज्ञा। 'इन् कारितं धात्वर्थे ।' कारितसञ्ज्ञा। 'धातोर्यशब्दश्चेक्रीयितं क्रियासमभिहारे ।' चेक्रीयितसज्ञा। 'अन् विकरणः कर्तरि ।' 'दिवादेर्यन् ।' 'नुः खादेः। 'खराद् रुधादेः परी नु(न)शब्दः।' 'लनादेरुः ।' 'ना त्यादेः।' 'आन व्यञ्जनान्ताद्धौ ।' एवं विकरणसञ्जा। 'पूर्वोऽभ्यासः।' अभ्याससञ्ज्ञा। 'द्वयमभ्यस्तम् ।' 'जक्षादिश्च ।' अभ्यस्तसञ्ज्ञा। सि(शि)र ४ । 'शिडिति शादयः।' सि(शिट्सञ्ज्ञा । संप्रसारण ३ । यवराणां इ उ ऋ । 'संप्रसारणं वृतोऽन्तः स्था निमित्ताः। संप्रसारणसञ्ज्ञा। गुण ३। अर् । ए। ओ। 'अर पूर्वे द्वे च सन्ध्यक्षरे गुणः। गुणसञ्ज्ञा। सिंख्यापूर्वो द्विगुरिति शेयः, तत्पुरुषावुभौ।' इत्येतादृशःश्लोकाः कातनन्याकरणपुस्तके समुपलभ्यते। Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा - प्रथमः सज्ञाप्रमः । वृद्धि ३ । आर् । ऐ । औ । 'आरुत्तरे च वृद्धिः। [वृद्धिसज्ञा। एवं आख्याते सञ्ज्ञा १७। 'क्त क्तवन्तू निष्ठा।' निष्ठासञ्ज्ञा । 'त्तवा मकारान्तोऽव्ययम् ।' अव्ययसञ्ज्ञा। 'सप्तम्युक्तमुपपदम् ।' उपपदसञ्ज्ञा । 'कृत् ।' कृत्प्रत्ययसञ्जा। तेषां मध्ये तव्य । अनीय । य । क्यप् । ध्यण । एवं कृत्य ५। 'ते कृत्याः।' कृत्यसञ्ज्ञा। 'आनोत्रात्मने ।' आत्मनेपदसञ्ज्ञा । एवं कृति सञ्ज्ञा ६। एवं वृत्तिसञ्ज्ञा ६४॥ ७॥ ग्रन्थाग्रं श्लोक ४१ अक्षर २४॥ ॥ इति ठ०सङ्ग्रामसिंहविरचितायां बालशिक्षायां सञ्ज्ञाप्रक्रमः प्रथमः। [द्वितीयः सन्धिप्रक्रमः। अ आ अवर्णः। अवर्णे परे 'समानः सवर्णे दीर्धीभवति परश्च लोपम्। 'अवर्ण इवणे ए। 'उवणे ओ।' 'ऋवणे अर् । 'लवणे अल् ।' 'एकारे ऐ ऐकारे च।' 'ओकारे औ औकारे च।' एवं अवर्णान्तस्य सूत्र ६। इई इवर्णः। इवणे परे 'समान' इत्यादिना दीर्घः । अन्यखरे 'इवर्णो यमसवर्णे न च परो लोप्यः।' उऊ उवर्णः । उवणे परे 'समान' इत्यादिना दीर्घः । अन्यखरे 'वमुवर्णः।' असवणे न च परो लोप्यः। ऋऋऋवर्णः। ऋवणे परे 'समान' इत्यादिना दीर्घः । अन्यखरे 'रमृवर्णः।' ल ल लवर्णः । लवणे परे 'समान' इत्यादिना दीर्घः। अन्यखरे 'लम्लवर्णः। 'समानादन्योऽसवर्णः। अतः सन्ध्यक्षराणां समानवर्णत्वाभावात् खरे परे 'ए अय् ।' 'ऐ आय् ।' 'ओ अव् ।' 'औ आ ।' एवं खरसन्धिसूत्र १५। 'अयादीनां यवलोपः। पदान्तेन वा लोपे तु प्रकृतिः।' इति विधिनिषेधयोः सूत्रम्। ___ 'एवोत्परः पदान्ते लोपमकारः।' इति विशेषसन्धिसूत्रम् । Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा-द्वितीयः सन्धिप्रक्रमः । 'न व्यञ्जने खराः सन्धेयाः।' तथा 'ओदन्ताः।' इत्यादि सूत्र ४। इति निषेधसूत्राणि। ॥ इति सन्धिप्रक्रमे प्रथमः खराधिकारः ॥ 'वर्गप्रथमाः पदान्ताः स्वरघोषवत्सु तृतीयान् ।' 'पञ्चमे पञ्चमांस्तृतीयान वा।"वर्गप्रथमेभ्यः शकारः स्वरयवरपरश्छकारं च न वा।' 'तेभ्य एव हकारः। पूर्वचतुर्थं न वा।' एवं वर्गप्रथमानां सूत्र ४।। पररूपं 'तकारो लचटवर्गेषु ।' 'चं शे।' इति तकारान्तसूत्र २ । प्राक् चतुष्टयसमं षट् । 'ङणना हखोपधाः खरे द्विः।' ङणनान्तसूत्रम् । ___ 'नोऽन्तश्चछयोः शकारमनुखारपूर्वम् ।' 'टठयोः षकारम् ।' 'तथयोः सकारम् ।' 'ले लम्।' 'जझाशकारेषु अकारम् ।' 'शि न्चौ वा।' 'डढणपरस्तु णकारम् ।' एवं नकारान्तस्य सूत्र ८। 'मोऽनुखारं व्यञ्जने ।' 'वर्गे तद्वर्गपञ्चमं वा।' इति मकारानुस्वारान्तयोः सूत्र २ । एवं व्यञ्जनसन्धिसूत्र १६ । पदचतुष्टयवर्गान्तं तकारान्तं पदद्वयम् । अष्टसंख्यं नकारान्तं मकारान्तं पदद्वयम् ॥ ॥ इति सन्धिप्रक्रमे द्वितीयो व्यञ्जनाधिकारः ॥ - "विसर्जनीयश्चे छ वा शम् ।' 'टे ठे वा षम्।' 'ते थे वा सम् ।' 'कखयोर्जिह्वामूलीयं न वा।' 'पफयोरुपध्मानीयं न वा।' 'शे षे से वा वा पररूपम् ।' एवं अघोषे परे विसर्गसूत्र ६। _ 'उमकारयोर्मध्ये।' 'अघोषवतोश्च।' 'अपरो लोप्योऽन्यवरे यं वा।' एवं अकारात्परविसर्गसूत्र ३। ___ 'आभोभ्यामेवमेव खरे।' 'घोषवति लोपम्।' इत्याकार-भोशब्दपरविसर्गसूत्र २। 'नामिपरो रम् ।' 'घोषवत्स्वरपरः।' इति नाम्यन्तपरविसर्गसूत्र २॥ 'रप्रकृतिरनामिपरोऽपि ।' इति रेफविसर्गस्य अनघोषे रेफः। 'एषसपरो व्यञ्जने लोप्यः।' इति विशेषसन्धिसूत्र २ । एवं विसर्गसन्धिसूत्र १५। Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा-द्वितीयः सन्धिप्रक्रमः। 'न विसर्जनीयलोपे पुनः सन्धिः।' इति सन्धिनिषेधसूत्रम् । 'रो रे लोपं स्वरश्च पूर्वो दीर्घः।' 'द्विर्भावं स्वरपरश्छकारः ।' इति विशेषसन्धिसूत्र २। ॥इति सन्धिप्रक्रमे तृतीयो विसर्गाधिकारः ॥ ग्रंथ २६॥ ॥ इति ठ० संग्रामासंहविरचितायां बालशिक्षायां ___ सन्धिप्रक्रमो द्वितीयः ॥७॥ [तृतीयः स्यादिप्रक्रमः।] पुं-स्त्री-क्लीवाख्यलिङ्गानि तत्पराः स्युर्विभक्तयः। स्यादयः सप्त तयोगे शब्दनिष्पत्तिरुच्यते ।। विभक्तयो यथाप्रथमा सि औ जस् । द्वितीया अम् औ शस् । तृतीया टा भ्यां भिस् । चतुथी भ्याम् भ्यस् । पञ्चमी ङसि भ्याम् भ्यस् । षष्ठी उस ओस् आम् । सप्तमी डि ओस् सुप् । एवं वचन २१ । सि एकवचनु । औ द्विवचनु । जस् बहुवचन । इत्थं सर्वत्र । अत्र अदन्ताः पुंलिङ्गाः वृक्षः वृक्षौ वृक्षाः। वृक्षं वृक्षौ वृक्षान् । वृक्षेण वृक्षाभ्याम् वृक्षैः। वृक्षाय वृक्षाभ्यां वृक्षेभ्यः। वृक्षात् वृक्षाभ्यां वृक्षेभ्यः। वृक्षस्य वृक्षयोः वृक्षाणाम् । वृक्षे वृक्षयोः वृक्षेषु । आमन्त्रणे हे वृक्ष हे वृक्षौ हे वृक्षाः । - रिश्वर्णे।' इत्यादिना नस्य णत्वं यथाप्राप्त कार्यम् । एवं घट-पटादयः। यथा-घटेन । घटानाम् । इत्यादि । Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा - तृतीयः स्यादिप्रक्रमः । अथ विशेषाः - पाद- मास- निशा - हृदय-यूष - दोषाणां पदू - मास - निश- [ हृत्] - यूष - दोषन् । 'शसादावचि या ।' इति । पादान्, पदः । पादेन, पदा । पादाभ्याम्, पादैः । इत्यादि । एवं मासान्, मासः । मासेन, मासा । इत्यादि । दार- प्राण - लाजाः बहुवचनान्ताः । क्लीबाः - कुण्डम्, कुण्डे, कुण्डानि २ । शेषं पुंलिङ्गवत् । एवं चित्त-वित्तादयः । वि० हृदय 'शसादावचि वा । हृद् । हृदयानि, हृन्दि । हृदयेन, हृदा । इत्यादि । रक्त- कृष्णादयस्त्रिलिङ्गाः । पुंसि वृक्षवत् । स्त्रियां 'स्त्रियामादा।' इति आप्रत्यये आदन्तेषु वक्ष्यमाणः श्रद्धावत् । क्लीबे कुण्डवत् । विशेष: अल्पादिगणः - अल्प प्रथम चरम तय अय कतिपय नेम 'अर्द्ध पूर्वादयश्च । जसि, पुंसि अल्पे, अल्पाः । एवमल्पादयः । किन्तु तय-अयौ प्रत्ययौ तदन्ताः शब्दाः ग्राह्याः संख्याया अवयवे तयद् - एकतय द्वितय त्रितय चतुष्टय पञ्चतय इत्यादि । द्वि- त्रिभ्यामयट् - द्वयत्रयौ । तथा द्वयशब्दस्य व्याकरणाद् द्वयानामिति निष्पत्तिः । परं द्वयेषामित्यपि दृश्यते । तथा च माघे - 'वृष्ट्या द्वयेषामपि मेदिनीभृताम् ।' नदाद्यर्थष्टानुबन्धः स्त्रियां द्वयी, द्वितयी । ईप्रत्यये सर्वे वक्ष्यमाणनदीवत् ज्ञेयाः । अर्द्धशब्दोऽसमभागे वर्त्तमानः पुंलिङ्गः । समभागे तु क्लीवः । नेम - पूर्वादयः सर्वनामगणे द्रष्टव्याः ॥ ४ ॥ सर्व विश्व उभ उभय अन्य अन्यतर इतर डतर उतम वृत् त्व नेम सम सिम पूर्वपरावरदक्षिणोत्तरापराधराणि । व्यवस्थायामसञ्ज्ञायाम् । स्वमज्ञातिधनाख्यायाम् । अन्तरं बहिर्योगोपसंव्यानयोः । वृत् । त्यद् तद् यद् अदस् इदम् एतद् एक किम् द्वि युष्मद् अस्मद् भवन्तः । एषां वि० जसि सर्वे । ङयि सर्वस्मै । ङसौ सर्वस्मात् । आमि सर्वेषाम् । ङौ सर्वस्मिन् । 'अव्यय सर्वनाम्नः खरादन्त्यात् पूर्वोऽकू कः । इत्यकि सर्वकः सर्वकौ, सर्वके । इत्यादी सर्ववत् । स्त्रियामादन्तेषु द्रष्टव्यः । क्लीबे कुण्डवत् । अकि सर्वकमित्यादि । 5 Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा-तृतीयः स्यादिप्रक्रमः। - अस्मिन् गणे एवमदन्ताः । तत्रापि सर्वो नाम कश्चित् । सर्वमतिक्रान्ताय सर्वाय । अतिसर्वाय । इत्थमेतेषां सज्ञारूपाणां गौणानां सर्वनामत्वं नहि। उभयशब्दः संख्याधिकारे द्रष्टव्यः । उभये इति नित्यं भाषायाम् । नाल्पादिविकल्पः । स्त्रियामुभयी। ___ क्लीबे अन्यस्य स्यमोः अन्यत् । २। हे अन्यत् । एवमन्यादयः पञ्च । तेषु डतर-डतमौ प्रत्ययौ।तदन्ताः शब्दा ग्राह्याः। यत्-तद्-एकेभ्यो द्वयोरेकस्य निर्धारणे डतरः । जातौ वा बहूनां डतमः। तौ च । किमः । यतरः। यतमः । ततरः । ततमः । एकतरः। एकतमः । कतरः । कतमः। इत्यादयो मन्तव्याः। गणकृत्यस्यानित्यत्वात् एकतरस्य नुरागमो न स्यात् । एकतरं कुलमस्ति । वृत् करणं गणसमाप्त्यर्थम् । त्वशब्दोऽन्यार्थः। नेमशब्दोऽर्द्धवाची। अल्पादित्वात्। नेमे नेमाः। समः सर्वसमानयोः। सिमः सर्वार्थोऽश्वार्थश्च । सर्वार्थादन्यत्र सिमे देशे यजति । सिमाय अश्वाय । अल्पादित्वात् । पूर्वे, पूर्वाः। विभाष्येते पूर्वादेः।' इति पूर्वस्मात् , पूर्वात्। पूर्वस्मिन् पूर्वे। इत्थं नव पूर्वादयः। एषु सप्तानां व्यवस्थायामसञ्ज्ञायां सर्वनामत्वम् । पूर्वोदयः शब्दाव्यवस्थायांगम्यमानायां असञ्ज्ञारूपाः सर्वनामसञ्ज्ञारूपा भवन्ति । इति । खाभिधेयापेक्षो विधिनियमो व्यवस्था । अन्यत्र दक्षिणाय गाथकाय देहि, प्रवीणायेत्यर्थः । दक्षिणायै द्विजाः स्पृहयन्ति । अनभिधानसञ्ज्ञा । सञ्ज्ञायां उत्तरा एव कुरवः । उत्तराय कुरुदेशाय । स्वशब्द आत्मन्यात्मीये धने ज्ञातौ च । अज्ञातिधनाख्यायामिति वचनात्। खाय ज्ञातये । स्वाय धनाय । अन्तरं बहियोगोपसंव्यानयोः। अन्तरस्मै गृहाय । नगरबाह्याय चाण्डालादिगृहायेत्यर्थः। अन्तरस्मै साटकाय । अन्यत्र ग्रामयोरन्तरात्तापस आयातः, मध्यादित्यर्थः। द्विशब्दः संख्याधिकारे त्यदादयश्च व्यञ्जनाधिकारे द्रष्टव्याः। 'तीयाद्वा वक्तव्यम्।' इति । द्वितीयस्मै, द्वितीयाय । द्वितीयस्मात्, द्वितीयात् । द्वितीयस्मिन् , द्वितीये। ख्यामादन्तेषु ज्ञेयः। एवं तृतीयोऽपि । पश्चालस्यापत्यं पाञ्चालः, पाश्चालौ। 'रूढानां बहुत्वे स्त्रियामपत्यप्रत्ययस्य।' इति लुकि वृद्ध्यभावे बहुत्वे पश्चालाः। पञ्चालान् । इत्यादि । स्त्रियां पञ्चाल्यः । क्लीबे पश्चालानि कुलानि । अनपत्येऽणि पञ्चालानामिमे भृत्याः पाञ्चालाः। पाञ्चालान् । इत्यादि ॥७॥ - एवं वैदेहः, वैदेही, विदेहाः। एवं आङ्ग-वाङ्ग-मागध कालिङ्गसौरमसादयः। Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बाल शिक्षा - तृतीयः स्यादिप्रक्रमः। 'गर्ग-यस्क-विदादीनां च ।' गार्ग्य वात्स्य। ण्यस्य लुक् । यास्क लाय वैद और्व । अणो लुक् । गार्ग्यः गाग्र्यो, गर्गाः। एवं वत्साः। यस्काः। लह्याः । विदाः । उर्वाः। . भृग्वत्र्यङ्गिरसू-कुत्स- वसिष्ठ-गोतमेभ्यश्च ।' अनेरेयः । इतरेभ्योऽण् । भार्गवः भार्गवौ भृगवः । आत्रेयः आत्रेयौ अत्रयः। एवं आङ्गिरस-कौत्स-वासिष्ठ-गौतमाः। 'श्येतैतहरितलोहितेभ्यस्तो नः।' ई ४। श्येनी कुमुदपत्राभा शुकामा हरिणी मता । लोहिनी जपापुष्पाभा एनी कर्बुरिता भवेत् ॥ ७॥ अथ आदन्ताः पुंलिङ्गाः'हाहा हूहूश्चैवमाद्या गन्धर्वास्त्रिदिवौकसाम् ।' अमरकोशे । हाहाः हाही हाहाः। हाहां हाहो । अस्य अधात्वाकारेऽपि 'आ धातोरघुवरे।' इत्यन्तलोपः। यदुक्तम् प्रायोवृत्ति समाश्रित्य धातोरिति खलुच्यते । रूयाकारमेकं सन्त्यज्य सर्वस्यान्यस्य संग्रहः ॥ हाहः। हाहा हाहाभ्याम् । इत्यादि । हे हाहाः । अन्योऽप्येवम् ॥ ७ ॥ स्त्रीलिङ्गाः-श्रद्धा श्रद्धे श्रद्धाः । श्रद्धां श्रद्धे श्रद्धाः। श्रद्धया। श्रद्धायै । श्रद्धायाः। श्रद्धानाम् । श्रद्धायाम् । श्रद्धासु । हे श्रद्ध। एवं शाला-मालादयः। वि० 'हखोम्बार्थानाम् ।' हे अम्ब, हे अक्क, हे अत्त, हे अल्ल । बहुस्वरत्वात् डलकवतां न स्यात् । हे अम्बाडे, हे अम्बाले, हे अम्बिके । सर्वा । यि सर्वस्यै । ङसि-ङसोः सर्वस्याः। २। आमि सर्वासाम् । औ सर्वस्याम् । अकि सर्विका इत्यादि । एवमाप्रत्यये सर्वादिगणः । 'तीयाद्वा।' इति डवथु । द्वितीयस्यै, द्वितीयायै । द्वितीयस्याः, द्वितीयायाः।२। द्वितीयस्याम् , द्वितीयायाम् । एवं तृतीयाशब्दः। - निशा 'शसादौ खरे वा निश।' निशाः, निशः । निशया, निशा। इत्यादि । . 'जरा जरस् खरे वा।' जरा जरसौ जरे। जरसः जराः । इत्यादि। जरामतिक्रान्त इत्यन्यपदार्थे 'गोरप्रधानस्यान्तस्य स्त्रियामादादीनां च।' इति. ह्रखः । पुंसि अतिजरः । ह्रखत्वे कृतेऽप्येकदेशविकृतमन्यवद्भावात् खरे वा जरस् । अतिजरसौ, अतिजरौ। अतिजरसः, अतिजराः। 2 Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा- तृतीयः स्यादिप्रक्रमः । अतिजरसं अतिजरम् । अतिजरसः, अतिजरान् । अतिजरसा, अतिजरेण। 'टेने ति सिद्धे इनोचारणमग्रत एव इन यथा स्यात् । तेन अतिजरसिन इत्यपि । अतिजराभ्याम् । अतिजरसैः, अतिजरैः। अतिजरसे, अतिजराय । अतिजरसः, अतिजरात् । 'ङसिरात्।' इति दीर्घोच्चारणात् । अतिजरसात्, अतिजरसः। अतिजरस्य । इत्यादि । स्त्रियां मुख्य-जरावत् । क्लीबे अतिजरं अतिजरसी अतिजरे। अतिजरांसि, अतिजराणि । २। शेषं पुंवत् । वासाः दशाः मघाः कृत्तिकाः समाः वर्षाः वरणाः बह्वर्थाः । सोमं पिबति इति सोमपाः पुंस्त्रियोहाहावत्। खरोहखो नपुंसके।' सोमपं सोमपे सोमपानि । सोमपेन । इत्यादि । एवं कीलालपा-शङ्खध्मा-धूमपादयः। उदधिका विष्णुः। विषखा शम्भुः। गोषा रविः । अब्जजा ब्रह्मा । अग्रेगा इन्द्रः। इति विडन्ताः सञ्ज्ञाशब्दाः पुंलिङ्गाः हाहावत्। इदन्ता पुंलिङ्गाः- अग्निः अग्नी अग्नयः। अग्निम् । अग्नीन् । अग्निना। अग्नये । अग्नेः।२। अग्योः । अग्नीनाम् । अग्नौ । अग्निषु । हे अग्ने। एवं सन्धि-निध्यादयः। वि० सखि। सखा सखायौ सखायः। सखायम् । सखीन् । सख्या। सख्ये । सख्युः।२। सख्यौ । हे सखे । स्त्रियां सखी । 'पतिरसमासे ।' टादौ सखिवत् । पत्या। पत्ये । इत्यादि । समासे स्वग्निवत् । यथा- नरपतिना। नरपतये । पन्थि । पन्थाः पन्थानौ पन्थानः। पन्थानम् । पथः । पथा पथिभ्यां पथिभिः । पथे। पथः । २। पथोः। पथाम् । पथि । पथिषु । हे पन्थाः। ___ एवं मन्थि-ऋभुक्षि ॥ ७॥ स्त्रीलिङ्गाः-बुद्धिरग्निवत् । शसादौ तु बुद्धीः । बुद्ध्या । बुद्ध्यै, बुद्धये । बुद्ध्याः , बुद्धेः । २। बुद्भ्याम् , बुद्धौ ।। .. एवं मति-सिद्धि-धूलि - भूमि-मुख्याः । धूल्यादीनां 'इतश्च क्तिवर्जिताद्वा।' इति धूली इत्याद्यपि स्यात् ॥ ७॥ क्लीवाः- वारि वारिणी वारीणि । वारिणा । वारिणे । वारिणः ।२। वारिणोः। वारीणाम्। वारिणि । वारिषु। संबोधने 'नपुंसकात् स्यमोर्लोपोन च तदुक्तम् ।' इति प्रतिषेधेऽपि 'नाभ्यन्तत्रिचतुरां वा।' इति पक्षे एत्वमपि । तेन हे वारे, है वारि। Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा- तृतीयः स्यादिप्रक्रमः । एवं स्वार्थ भूरि-मुख्याः । वि०- 'अस्थि-दधि-सक्थ्यक्ष्णामन्नन्तष्टादौ ।' इति खरे अस्था। अस्थे । अस्थः।२। अस्योः । अस्माम् । ' ईर्यो ।' अस्नि, अस्थनि । ___ एवं दधि-सक्थि-अक्षि । सक्थि ऊपर्यायः । त्रिलिङ्गाः-शोभना बुद्धिर्यस्येति सुबुद्धिः। पुंस्यग्निवत् । स्त्रियामप्येवम् । ख्याख्यावियुवौ वामि।' इति आख्याग्रहणस्य नित्यं स्त्रीलिङ्गविषयत्वात्। 'हखश्च ङवति।' इति वा नदीवद्भावो नास्ति परं शसि सस्य नत्वम् । सुबुद्धीः। 'टा ना' इत्यपि न। सुबुद्ध्या। क्लीबे वारिवत् । 'भाषितपुंस्कं पुंवद् वा।' इति टादौ स्वरे पुंवद्वा। न्वागमे 'टा ना' पक्षे च । सुबुद्धिना । सुबुद्धिने, सुबुद्धये । इत्यादि । सं० त्रिलिङ्गिनामन्यपदार्थत्वेन गौणत्वात् । 'नाम्यन्तत्रिचतुरां वा।' इति न पाक्षिकमेत्वम् । तेन हे सुबुद्धि । ___एवं सुसिद्धि-दीर्घाङ्गुलि-अतिनदि -मुख्याः । वि० शुचि-शब्दः स्वत एव त्रिलिङ्गोऽस्ति । तदस्य स्त्रियां खत एव स्त्रीत्वप्रवृत्तत्वात् । 'हखश्च ङवति।' इति वा नदीवद्भावोऽस्त्येव । तेन बुद्धिवत् । शुच्यै, शुचये । इत्यादि । क्लीवे सं० हे शुचि, हे शुचे। एवं सुरभि- भूरि-मुख्याः । सखिरन्यपदार्थे यथा-शोभनः सखा यस्येति सुसखि । पुंसि मुख्य-सखिवत् । स्त्रियां सुसखी । क्लीबे टादौ खरे पुंवद्वा । सुसखिना, सुसख्या । इत्यादि ॥७॥ पन्ध्यादयोऽन्यपदार्थे यथा-सुपन्थि । पुंस्त्रियोर्मुख्य - पन्थिवत् । क्लीबे सुपथि सुपथिनी सुपथीनि । २ । टादौ खरे पुंवद्वा । सुपथिना, सुपथा । इत्यादि। अस्थ्यादीनामन्यपदार्थे पुंस्त्रियोरप्यन्तोऽन् । प्रियास्था पुंसा । प्रियास्त्री स्त्री । क्लीवे मुख्य - अस्थिवत् ॥ ७॥ - ईदन्ताः पुंलिङ्गाः-वाताभिमुखगामी मृगो वातप्रमी। वातप्रमी वातप्रम्यौ वातप्रम्यः । सारखतव्याकरणे - समानादम्शसोरल्लोपः। सो नः पुंसः। वातप्रमीम् । वातप्रमीन् । वातप्रम्या । इत्यादि। आमि वातप्रम्याम्। डौ समानलक्षणो दीर्घः। वातप्रमी । वातप्रमीषु । हे वातप्रमीः। एवं देवयजी-मुख्याः । स्त्रीलिङ्गाः-नदी नद्यौ नद्यः । नदीम् । नदीः। नद्या। नद्यै। नद्याः।२। नद्योः। नदीनाम् । नद्याम् । नदीषु । हे नदि। एवं मही-नारी-मुख्याः । Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा - तृतीयः स्यादिप्रक्रमः । वि० [कारोऽन्तो यस्मालिङ्गादिति लक्ष्मी - शब्दस्यासम्बुद्धौ सेर्लोपो नास्ति | 'लक्षेमन्तश्च ।' इति ईप्रत्ययः । लक्ष्मीः । एवं अवी- तरी - शची-तत्री - मुख्याः । धात्वीदन्ताः - 'ईदूतोरियुवौ खरे ।' श्रीः श्रियौ श्रियः । श्रियम् । श्रियः । श्रिया । श्रियै, श्रिये । श्रियाः, श्रियः । २ । श्रियोः । श्रीणाम्, श्रियाम् । श्रियि, श्रियाम् । श्रीषु । हे श्री । १२ एवं धी ही भी - मुख्याः - वि० सिलोपे । स्त्री स्त्रियौ स्त्रियः । स्त्रियम्, स्त्रीम् । स्त्रियः, स्त्रीः । स्त्रिया । 'स्त्री नदीवत् ।' इति निर्देशात् विकल्पमपि बाधते । स्त्रियै । स्त्रियाः । २ । स्त्रियोः । स्त्रीणाम् । स्त्रियाम् । स्त्रीषु । केचित् विकल्पमपि मन्यन्ते । स्त्रियै, स्त्रिये । इत्यादि । हे स्त्रि | त्रिलिङ्गाः - यवक्रीः यवक्रियौ यवक्रियः । यवक्रियम् । इत्यादि । स्त्रियामप्येवम् । नित्यस्त्रीत्वाभावाद्वा नदीवद्भावो नास्ति । क्लीबे हखत्वे var वारिवत् । दादी खरे पुंवहा । यवक्रिणा, यवक्रिया । इत्यादि । पृथुश्री - देवमी - त्यक्तही मी - ली - पीनी परमनी प्राप्तवी - गतभी- सुधी- मुख्याः । པ एवं 'नियो डिराम् ।' इति नियाम्, परमनियाम् । परमनी मुख्यानां 'अनेकाक्षरयोस्त्वसंयोगावी ।' इति यत्वे प्राप्ते, 'अव्ययकारकाभ्यामेवायं विधिः ।' इति भणनात् यत्वं न । सुष्ठु ध्यायतीति, अथ शोभना धीरस्य वेति विग्रहे वा सुधीः । अत्र 'सुधीः ।' इतीय् । प्रधी- मुख्या अव्ययात्, सेनानी - मुख्याः कारकात्, इत्यादीनां खरे 'अनेकाक्षरयोस्त्वसंयोगाद्यवौ ।' पुंस्त्रियोः प्रधीः मध्यौ प्रध्यः । प्रध्यम् । इत्यादि । क्लीवे प्रधि प्रधिनी प्रधीनि । दादौ खरे पुंवद्वा प्रधिना, प्रध्या । इत्यादि । एवं प्रभी - ग्रामणी - सेनानी - मुख्याः । नियो ङिराम् । ग्रामण्याम् । सेनान्याम् ॥ ६ ॥ उदन्ताः पुंलिङ्गाः - बहुः बहू बटवः । बहुम् । बहून् । बहुना बटवे । बटोः । २ । बट्रोः । बहूनाम् । बटौ । बहुषु । हे बटो । एवं इन्दु - बिन्दु - मुख्याः । विशेषः - असु बहुवचनान्तः । स्त्रीलिङ्गः- धेनु बहुवत् । शसादौ वि० धेनूः । धेन्वा । धेन्वै, धेनवे । धेन्वाः । धेनोः । धेन्वोः । धेनूनाम्, धेन्वाम् । धेनौ । धेनुषु । हे घेनो । एवं रज्जु - कडु - प्रियङ्गु - मुख्याः । I Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा- तृतीयः स्यादिप्रक्रमः। कथं हे सुतनु । हे भीरु । उपमानसहितसंसंहितसहशफवामलक्ष्मणपूर्वादूरोरूडिति । उतः स्त्रियामूड्प्रत्ययादिदमपि प्रयोगद्वयं मतम् । क्लीबाः-वस्तु वस्तूनी वस्तुनि । २। वस्तुना। वस्तुने । वस्तुनः।२। वस्तुनोः । वस्तूनाम् । वस्तुनि । वस्तुषु । हे वस्तु, हे वस्तो। एवं अम्बु-वखादयः। त्रिलिङ्गाः- शोभनं वसु यस्येति सुवसु । पुंसि बटुवत् । स्त्रियामप्येवम् । नित्यस्त्रीत्वाभावाद वा नदीवद्धावो नास्ति। शसि तु सस्य नत्वं न । सुवसूः। टा नेत्यपि न । सुवस्वा । क्लीवे वस्तुवत् । टादौ खरे पुंवद्वा। न्वागमे टाना पक्षे च । नुवसुना। सुवसुने, सुवसवे । इत्यादि। हे सुवसु। एवं सुधेनु-सुजानु-मुख्याः ॥२॥ वि० पटु-शब्दः खत एव त्रिलिङ्गोऽस्ति । तदस्य स्त्रियां खत एव स्त्रीत्वप्रवृत्तत्वात् वा नदीवद्भावोऽस्त्येव । तेन धेनुवत् पदै, पटवे। इत्यादि। 'उतो गुणवचनादखरुसंयोगोपधाद्वा।' इति ई प्रत्यये पट्टी इत्यपि स्यात् । खरियम् । पाण्डुरियम् । नित्यमिति । क्लीबे सं० हे पटु । हे पटो। एवं उरु-गुरु-पृथु - लध्वादयः ॥७॥ क्रोष्टु तृज्वत् । क्रोष्टु घुटि स्त्रियाम् । असंबुद्धौ । अक्लीवे । क्रोष्ट । क्रोष्टा कोष्टारौ क्रोष्टारः । कोष्टारम् । शसादावचि वा। क्रोष्ट्रन् , क्रोष्टुन् । कोष्टा, क्रोष्टुना। क्रोष्टुभ्याम् । क्रोष्टुभिः। क्रोष्टे, क्रोष्टवे। कोष्टः, क्रोष्टोः।२। क्रोष्ट्रोः, क्रोष्ट्वोः। न्वागमे स्वरव्यवहितत्वात् तृचादेशो नास्ति । कोष्टूनाम् । क्रोष्टरि, क्रोष्टौ । कोष्टषु । हे कोष्टो। स्त्रियां क्रोष्टी। क्लीबे बहुक्रोष्टवत् । टादौ खरे पुंवद्वा । बहुक्रोष्टुना । बहुक्रोष्टुने, बहुक्रोष्टवे । इत्यादि ॥ छ । ऊदन्ताः लिङ्गाः-हहः ही हूरहहस् । हहुन् । टादी सन्धिः। हूहा। हूढे । इत्यादि। आमि हाम् । हेहूहूः। एवं नग्नहू-मुख्याः । स्त्रीलिङ्गाः-वधूः वध्वौ वध्वः । वधूम् । वधूः । वध्वा । वध्वै । वध्वाः। २१ वध्वोः । वधूनाम् । बध्वाम् । वधूषु । हे वधु । एवं चमू-कण्डू-मुख्याः । धातूदन्ताः - 'भ्रूर्धातुवत् ।' 'ईदूतोरियुवा खरे।' भूः ध्रुवी भ्रवः । भ्रुवम् । भ्रवः । भुवा । भुवै, ध्रुवे । भुवः । २ । भुवोः। भ्रूणाम् , भ्रूवाम् । भ्रुवाम् , भ्रुवि । भ्रषु । हे श्रः। कथं हे सुभ्र । उणादिसूत्रेण भ्ररिति निपातः । शोभनं भ्रु यस्याः। अत्रापि स्त्रीपर्यायवाद भीरु-शब्दवत् । भ्रुवाम् । जातित्वादूडि ह्रस्वत्वात् सिद्धम् । मद्यर्थो भू-शब्दो भ्रवत् । Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा- तृतीयः स्यादिप्रक्रमः । विलिङ्गाः-कटपूः कटघुवौ कटपुवः। कटमुवम् । इत्यादि । स्त्रियामप्येवम् । नित्यमप्येवम् । नित्यस्त्रीत्वाभावाद्वा नदीवद्भावो नास्ति । क्लीवे ह्रखत्वे बभ्रुवत् । टादौ खरे पुंवद्वा । कटगुणा, कटमुवा । कटपुणे, कटमुवे । इत्यादि। एवं नतधू-सुभ्रू-अक्षयू-लू-पू-धू-परमलू-महापू-गतधू-खयंभूआत्मभू-मनोभू-प्रतिभू-मुख्याः। परमलू-मुख्यानां अनेकाक्षरयोः । इत्यादिना वत्वे प्राप्ते 'अव्ययकारकाभ्यामेवायं विधिः।' इति भणनात् ; स्वयम्भू-मुख्यानां अव्ययकारकपरत्वादपि वत्वे प्राप्ते 'भूरवर्षाभूरपुनर्भूः।' इति निर्देशात् वत्वं न। खयम्भूरात्मभूश्च ब्रह्मा । मनोभूः कामः । एते सज्ञारूपाः पुंलिङ्गाः। विवक्षितलिङ्गं यथा-स्वयम्भूर्देवी । मनोभु कर्म। प्रलू अव्ययात्, यवलू कारकात्, इत्यादीनां खरे 'अनेकाक्षरयोस्त्वसंयोगाद्यवौ।' पुंस्त्रियोः।प्रलूः प्रल्वौ प्रल्वः।प्रल्वम् । इत्यादि । क्लीवे हखत्वे प्रलु वस्तुवत्। टादौ खरे पुंवद्वा। प्रलुना, प्रल्वा। इत्यादि । हे प्रलु। एवं यवलू-क्षेत्रलू-सर्वलू - खलपू-मुख्याः । 'खलपूः स्याद् बहुकर' इति सञ्ज्ञायां पुंस्त्वमेव । अन्यथा त्रिलिङ्गत्वम् । प्लवङ्गमः प्लवङ्गः स्याद् वर्षाभूस्तद्वधूः ।'- इति मण्डूक्यां वर्तमानः स्त्रीलिङ्गः। वर्षाभूः वर्षाभ्वौ वर्षाभ्वः । वर्षाभ्वा । उपस्थानित्वाभावात् वा नदीवद्भावो नास्ति । नित्यस्त्रीत्वान्नित्यं नदीकार्यम् । वर्षावै । इत्यादि धूवत् । हे वर्षाभु । द्वितीयभर्तृग्रहणाय पुनर्भवतीति पुनर्भूः स्त्रीलिङ्गो वर्षाभूवत् । अर्थान्तरे त्वनदीत्वादेतौ प्रलूवत् ॥ २॥ __ऋदन्ताः पुंलिङ्गाः-पितृ । पिता पितरौ पितरः। पितरम् । पितृन् । पित्रा । पित्रे । पितुः । पित्रोः । पितणाम् । पितरि । पितृषु । हे पितः। एवं भ्रातृ-जामातृ-मुख्याः । वि० नृ। 'न वा' इत्यामि नृणाम् , नृणाम् । स्त्रीलिङ्गः मातृ पितृवत् । शसि तु मातृः। नित्यस्त्रीत्वादीप्र ययो नास्ति । एवं ननान्ह -दुहित-मुख्याः । वि०-खसा नप्ता च नेष्टा च त्वष्टा क्षत्ता तथैव च । होता पोता प्रशास्ता च अष्टौ स्वस्रादयः स्मृताः॥ वह स्त्रीलिङ्गः। शेषाः सप्त पुंलिङ्गाः । एषां खस्रादीनां घुट्यार। खसा खसारौ खसारः । खसारम् । इत्यादि। एवं पितृष्वस। Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा - तृतीयः स्यादिप्रक्रमः। त्रिलिङ्गाः-कर्तृ । कर्ता । 'धातोस्तृशब्दस्यार।' कर्तारौ कारः। कतारम् । कर्तारौ । शेषं पितृवत् । स्त्रियां कीं । क्लीवे वारिवत् । कर्त कर्तृणी कर्तृणि । २। टादौ खरे पुंवद्वा । कर्तृणा, का। इत्यादि। हे कर्तु। एवं तृजन्तास्तुनन्ताश्च । शोभना माता यस्य यस्या वा कुलस्येति सुमातृ-शब्दः पुंसि पितृवत् । स्त्रियां मातृवत् । अथ स्फुटलिङ्ग उत्त्यर्थमीप्रत्ययोऽपि । सुमात्री कन्या । क्लीवे कर्तृ. वत् । हे सुमातृ । एवं सुपितृ-मुख्याः । स्वस्रादीनामन्यपदार्थे पुंस्त्रियोरप्यार । शसि तु पुंसि पितृवत् । स्त्रियां मातृवत् । ईप्रत्यये बहुखत्री बाला । क्लीबे कर्तृवत् । हे बहुखस्मृ॥७॥ ऋदन्ताः पुंलिङ्गाः-पितुः ऋ:-पितृः । खरे सन्धिः। पित्री पित्रः। 'समानादम्शसोरल्लोपः। सो नः पुंसः।' पितृम् । पितृन् । पित्रा । इत्यादि। दीर्घत्वादामि नुर्नास्ति । पित्राम् । हे पितृः। यदा पितुः ऋरेव माता तदा स्त्रियामप्येवम् । शसि तु पितृः। शोभना पितृर्यत्र कुले इति क्लीवे ह्रखत्वे सुपित वारिवत् । टादौ खरे पुंवद्वा । सुपितृणा, सुपित्रा । इत्यादि ॥७॥ प्रियक्ल लदन्ताः-प्रियक्ल: प्रियक्लो प्रियक्लः । प्रियक्लम् । प्रियक्लुन् । टादौ खरे सन्धिः। प्रियक्ला। इत्यादि। आमि प्रियक्लूनाम् । हे प्रियक्ल । स्त्रियामप्येवम् । शसि प्रियक्लः । क्लीबे वस्तुवत् । टादौ खरे पुंवद्वा । प्रियक्लना, प्रियक्ला । इत्यादि। एवं प्रियगस्ल-मुख्याः ॥७॥ प्रियक्लू-मुख्या लुदन्ता अप्येवम् । आमि तु प्रियक्लाम् । हे प्रियक्लुः ॥॥ सन्ध्यक्षरान्ताः पुंस्त्रियोस्तुल्याः। एदन्ताः- सह इना कामेन वर्तत इति सेः कामी स्मरप्रिया वा । सेः सयौ सयः। इत्यादि । क्लीबे सन्ध्यक्षराणामुदितौ हवादेशे। सि सिनी सीनि । २। टादौ खरे पुंवद्वा । सिना, सया । इत्यादि। एवं परमे-मुख्याः । परमश्वासौ इश्व परमेः । अथ परम उत्कृष्टः इ. कामो यस्य । ऐदन्ताः-सह एकारेण वर्तत इति सै। सैः सायो सायः । इत्यादि । क्लीवे । सि सिनी सीनि । २। टादौ खरे । सिना, साया। इत्यादि । वि० स्त्रीलिङ्गो रै-शब्दः। व्यञ्जने 'रैः।' इत्यात्वम् । राः।राभ्याम् । रासु । अन्यपदार्थे बहुरै- मुख्या अप्येवम् । क्लीबे हस्खत्वे बहुरि वारिवत् । टादी खरे पुंवद्वा । बहुरिणा, बहुराया । ह्रखत्वे कृतेऽप्येकदेशस्याविकृतत्वादू 'रैः।' इत्यात्वम् । बहुराभ्याम् । बहुरासु ॥ ७॥ Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा-तृतीयः स्यादिप्रक्रमः । - ओदन्ताः-पुंस्त्रीलिङ्गो गो-शब्दः। गौः गावौ गावः। गाम्। गाः। गवा । गवे। गोगवोः । गवाम् । गावि । गोषु । अन्यपदार्थे यथा-चित्रा गावो यस्येति 'गोरप्रधानस्य।' इत्यादिना चित्रगुरिति वचनात् सुवसुवत्। ___वर्गवाची स्त्रीलिङ्गो द्यो-शब्दः । गोरौ धुटि ।' इत्यत्र गो इत्योकारोपलक्षणम् । तेन गो-शब्दवत् ॥ ७॥ औदन्ताः-पुंलिङ्गश्चन्द्रवाची ग्लो-शब्दः । ग्लोः ग्लावी ग्लावः। इत्यादि । स्त्रीलिङ्गो नौ - शब्दः । एतावन्यपदार्थेऽप्येवम् । शोभना नौर्यस्या यस्य वा। सुनौः । इत्यादि । क्लीवे हखत्वे सुनु वसुवत् । टादी खरे पुंवद्वा । सुनुना सुनवा । इत्यादि । एवमन्येऽपि ॥ ७॥ ॥ इति स्यादिप्रक्रमे प्रथमः स्वरान्ताधिकारः ॥ व्यञ्जनान्तानां पुस्त्रियोः क्लीवे टादौ तुल्यं रूपम् । कान्ताः यथाचक तृप्तौ। सुष्टु चकते सुचक । सुचक् सुचम्, सुचकौ । सुचग्भ्याम् । सुचक्षु। क्लीवे सुचक् सुचग, सुचकी सुचति । २।। मनाक अव्ययः। सदृशं त्रिषु लिङ्गेषु सर्वासु च विभक्तिषु । वचनेषु च सर्वेषु यन्न व्येति तदव्ययम् ॥ 'अव्ययाच्च। इति सर्वत्र विभक्तिलोपे प्रथमतृतीयौ मनाक मनाए । एवं अन्वक्-पृथक- विष्वगादयः॥७॥ चित्रलिख - मुख्याः वान्ताः । सुकग-मुख्या गान्ताः। देवश्लाघमुख्या घान्ताश्व सुचवत् । वि० सुवल्ग् । सुवल्ग । सुवल्गौ। सुवल्ग्भ्याम् । क्लीबे सुवल्ग सुवल्गी सुवल्गि।२॥७॥ : डान्ताः-यथा दृष्टो डकारो थेन सः दृष्टड्। दृष्टडौ । दृष्टट्सु। क्लीबे दृष्टड् दृष्टडी । अधुडन्तत्वात् नुर्नास्ति । दृष्टडि ।२। चान्ताः- अम्बुमुच् मेघः। 'चवर्गहगादीनांच।' इति गत्वम् । अम्बुमुकू अम्बुमुग । अम्बुमुचौ । अम्वुमुग्भ्याम् । अम्बुमुक्षु । एवं जलमुचादयः पुंलिङ्गाः। वाच्-स्वच्-ऋच्-रुच्-स्फिच्-शुच्- मुख्याः स्त्रीलिङ्गाः । स्फिच घुण्टिकावाची। एवं त्रिलिङ्गः-सत्यवाक । क्लीवे सत्यवाक्, सत्यवार सत्यवाची सत्यवाश्चि । २॥ Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा- तृतीयः स्यादिप्रक्रमः। एवं सुवाच्-लिग्धत्वच-मुख्याः । वि० मूलवृश्च- आदिलोपे इजादित्वात् 'हशषच्छान्ते।' इत्यादिना चस्य गत्वबाधकं डत्वम् । मूलवृट् मूलवृश्चौ । मूलवृड्भ्याम् । मूलवृट्सु । क्लीबे मूलवृट् मूलवृश्ची मूलवृश्चि । २। सुकुन्- अत्र 'अक्रुश्चेत्।' इति ज्ञापकात् क्तावनुषङ्गलोपो नास्ति । 'चवर्गहगादीनां च ।' इति सिद्धे वर्गग्रहणबलान्नित्यमपि संयोगान्तलोपं बाधित्वा अ-युज् - क्रुञ्चां प्रागेव गत्वम् । अनुखारो 'वर्गे वर्गान्तः।' अन्तलोपे सुक्रुङ् सुक्रुश्चौ सुक्रुश्चः। सुक्रुश्चम् सुक्रुश्चौ । अक्रुश्चेदिति वर्जनादनुषङ्गलोपो नास्ति । सुक्रुश्चः। सुक्रुश्चा। सुक्रुझ्याम्। सुक्रुङ्सु । क्लीवे सुक्रुङ् सुक्रुश्ची सुक्रुश्चि । २।। . अञ्च गतिपूजनयोः। प्रत्यश्चतीति कि । 'अञ्चेरलोपः पूर्वस्य च दीर्घः।' इति ज्ञापकात् क्तावनुषङ्गलोपो नास्ति । प्रत्यन्-प्रत्यङ् प्रत्यञ्चौ प्रत्यश्चः । प्रत्यश्चम् । अघुट्खरे 'अश्वेरलोपः पूर्वस्य च दीर्घः।' इत्यलोपे 'निमित्ताभावे' इत्यादिना यत्वस्य इत्वे दीर्घत्वे च, अघुट्स्वरव्यञ्जनयोरनुषङ्गलोपे च प्रतीचः । प्रतीचा। प्रत्यग्भ्याम् । प्रत्यक्षु। स्त्रियां प्रतीची । क्लीवे प्रत्यक्,-ग् प्रतीची प्रत्यश्चि । २। पूजायां तु शसादौ अञ्चेरनचीनऽनुषङ्गालोपोऽलोपश्च । प्रत्यञ्चः। प्रत्यश्वा । प्रत्यङ्भ्याम् । प्रत्यङ्सु । स्त्रियां प्रत्यञ्ची । क्लीबे प्रत्यङ् प्रत्यश्ची प्रत्यश्चि । २। एवं प्राञ्- अपाञ्च-दध्यञ्च् - मध्वञ्च - सध्य-सम्यञ्-विष्वव्यञ्च - देवव्यञ्च-सर्वत्र्यञ्च-तत्र्यन्-यत्र्य-अदसस्तु चतुर्की - अदमुयञ्च-अमुयञ्च - अमुमुयञ्च - अत्र्यञ्च-तिर्यञ्च-गवाञ्च-गोञ्- गोअञ्च् - दृषदञ्च-योषिद-मुख्याः । एषामघुट् स्वरे। वि० अदमुयन् । अत्रालोपे यत्वस्य इत्वस्य (इत्वे?) दीर्घत्वे च, पूर्वस्य चत्वं केचिदिच्छन्ति । अदमुईचः। अदमुईचा। अदश्चीचा । इत्यादि। एवं अमुमुयन् । तिर्यन्-तिर्यङ् । तिरीश्चिः । तिरश्चः। तिरश्चा। पूजायां तु तिर्यश्चः। तिर्यश्चा । उदङ् उदीचिः। उदीचः । उदीचा । पूजायां उदश्चः । उदश्चा। गवाञ्च् गो गोअञ्च । एषामलोपे तुल्यं रूपम् । गोचः । गोचे। इत्यादि । पूजायां गवाञ्चः। गवाचा । गोञ्चः। गोञ्चा । गोअञ्चः । गोअश्चा। दृषदञ्च् दृषदश्चः । दृषदञ्चा । एवं योषिदश्च । Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा-तृतीयः स्यादिप्रक्रमः। अच् स्वरपर्यायः । चस्य गत्वं न । दृगादेः कृदन्तस्य साहचर्याच्चवर्गोऽपि कृदन्त एव ग्राह्यः। अच्, अझ् अची। अभ्याम् । अट्न। एवं लिखितच् । छान्ताः-पथिप्राच्छ। 'हशषच्छान्तेऽजादीनांडः।' पथिप्राट्,-०ड् पथिप्राच्छौ । पथिप्राड्भ्याम् । पथिप्राट्सु । क्लीबे पथिप्राट्,-०डू पथिप्राच्छी पथिप्राञ्च्छि । २। जान्ताः-वणिज । वणिक , वणिग् वणिजौ वणिजः। वणिग्भ्याम् । वणिक्षु। ___ एवं क्ष्माभुज् - भूभुज-मुख्याः पुंलिङ्गाः । ऋज-सज्-मुख्याः स्त्रीलिङ्गाः । क्लीवे असृज् । असृक् , अमृग असृजी असृञ्जि । २। त्रिलिङ्गाः-सुखभाज् वणिज्वत् । क्लीबे अमृग्वत् । एवं अर्द्धभाज्-नीरुज् - तृष्णुज्-धृष्णुज् -खमजादयः। वि० साधुमस्ज्। 'संयोगादेवुटः।' इत्यादिलोपे साधुमक, साधुमग । खरे 'धुटां तृतीयः।' इति सस्य दत्वे, 'तवर्गस्य टवर्ग'इत्यादिना दस्य जत्वे साधुमज्जौ । साधुमग्भ्याम् । साधुमक्षु । क्लीबे साधुमक्,-ग् साधुमजी साधुमञ्जि । २।। बहू-'त्रिषु व्यञ्जनेषु ।' इत्यादिना एकव्यञ्जनलोपे 'रात्सस्यैव ।' इति संयोगान्तलोपो न स्यात् । गत्वम् । रेफाक्रान्तस्य द्वित्वम् । बहू, -र्ग बहूजौं । बहूराम् । बहू । क्लीवे बहूक, बहूर्ग बहूर्जी। 'रेफात्परो जात्पूर्वो नुर्वा वक्तव्यः।' बहूर्जि, बहूजि । ___ युज्-'युजेरसमासे नु घुटि।' युङ् युञ्जौ युञ्जः।युञ्जम् । युञ्जः।युजा। युग्भ्याम् । युक्षु । क्लीवे युक, युग युजी युञ्जि । २। समासे तु अश्वयुक् सुखभाज वत् । यदा आश्विनमासार्थस्तदा पुंस्येव । यज्-सृज-मृज् -राज - भ्राज-भ्रस्ज-व्रश्च-परिव्राजः एवमष्टौ यजादयः। देवेज-देवेट् , देवेड् देवेजौ । देवेड्भ्याम् । देवेट्सु । क्लीबे देवेद,-डू देवेजी देवेति ।२। एवं रज्जुसृज् , परिमृज् , सम्राज् , भ्राज्, धानाभ्रस्ज, परिव्राज् । तत्रापि सम्राज् पुंलिङ्गः। धानाभ्रस्ज् अत्रादिलोपे धानाभृट्,-०डू । स्वरे सस्य दत्वात् जत्वे धानानज्जौ। Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बाल शिक्षा-तृतीयः स्यादिप्रक्रमः। झान्ताः-शिष्यमुई शिष्यमुर्क, शिष्यमुर्ग शिष्यमुजौं । शिष्यमुग्ाम् । शिष्यमुक्षु । क्लीबे शिष्यमुर्क शिष्यमुर्ग शिष्यमुर्जी शिष्यमुर्जि शिष्यमुञ्जि।२। फलोझ-संयोगान्तलोपे फलोक्,-ग् फलोज्झौ । फलोग्भ्याम् । फलोक्षु । क्लीवे फलोक्,-०ग फलोज्झी फलोज्झि । २। यदा तु लिखितो झू येन स लिखितझ्-तदा अकृदन्तत्वात् गत्वं न । लिखितच,-०क् लिखितझौ । लिखितड्भ्याम् । लिखितट्सु । आन्ताः-यथा ज्ञातञ् ज्ञातौ । ज्ञातभ्याम् । क्लीबे ज्ञात ज्ञातजी ज्ञातत्रि ।२। टान्ताः-यथा नाट्यनट,-०डूं नाट्यनटौ । नाट्यनभ्याम् । नाट्यनट्सु । क्लीबे नाव्यनट,-०डू नाट्यनटी नाव्यनण्टि । २। ___ एवं ठान्ताः शास्त्रपठ्- मुख्याः । डान्ताः पठितड्-मुख्याः । एवं ढान्ताः पठितद-मुख्याः । _णान्ताः-सुगण् सुगणौ । सुगण्भ्याम् । सुगण्सु । क्लीबे सुगण् सुगणी सुगणि।२।। एवं प्रकण-प्रगुण -मुख्याः । तान्ताः-मरुत्,-०द् मरुतौ । मरुद्भ्याम् । मरुत्सु। एवं नीवृत्-परभृत्-मुख्याः पुंलिङ्गाः। तडित्-योषित्-मुख्याः स्त्रीलिङ्गाः। पुंलिङ्गो भास्वन्त् भावन्तौ भावन्तः। भाखता। भाखदभ्यामित्यादि । हे भाखत्। एवं हनूमन्त्-जाम्बवन्त्-मुख्याः । क्लीबे जगत्,-०द् जगती जगन्ति । एवं उदश्वित् तक्रम् । यकृत् कालखण्डम् । शकृत् पुरीषम् । त्रिलिङ्गाः-शत्रुजित् । पुं-स्त्रियोर्मरुत्वत्। एवं सुखकृत्-दुःखहृत् - मुख्याः । श्रीमन्त् भावन्त्वत् । स्त्रियां श्रीमती । क्लीवे श्रीमत्,-०द् श्रीमती श्रीमन्ति । २। एवं गोमन्त् - लक्ष्मीवन्त्- यावन्त्-तावन्त्-कियन्त्- कृतवन्त्. मुख्या अन्तुप्रत्ययान्ताः। वि०-भातीति भातेर्तुवन्त् । युष्मदर्थो भवन्त् । सं० हे भोः, हे भवत् । तथा सर्वनामत्वात् अकि भवकान्। भवकती। भवकत् । इत्यादि। भगवन्त्-हे भगोः, हे भगवन् । Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा- तृतीयः स्यादिप्रक्रमः। एवं अघवन्त् पचन्त् श्रीमन्त्वत् । किंतूदनुबन्धप्रत्ययाभावात् सौ न दीर्घः। पचन् । तथा 'तुदभादिभ्य ईकारे' न लोपो वास्तु शंतृङः। शेषेभ्यः सर्वदा लोपो यन्ननन्तात् कदापि न ॥ इति भणनात् स्त्री-क्लीवयोरीकारे पचती। एवं शंतृङन्ताः । वि० तुदत् । स्त्री-क्लीवयोरीकारे तुदती । तुदन्ती । एवं भादयस्तुदादयश्च ।। तथा 'प्सास्थाद्वा ।' इति परसूत्रेण प्साती । प्सान्ती । करिष्यती । करिष्यन्ती। • एवं स्यन्त्प्रत्ययान्ताः। जुह्वन्त् - 'अभ्यस्तादन्तिरनकारः।' जुह्वत् जुह्वतौ जुह्वतः । जुह्वतं जुह्वतः। इत्यादि । स्त्रियां जुह्वती । क्लीबे जुत्,-०द् जुह्वती । वा नपुंसके जुह्वति, जुह्वन्ति ।२। __ एवं जुहोत्यादि २४ । जक्षादि ५ । तथा चेक्रीयित लुकि पापचन्त्मुख्याश्च । अदन्त् - 'शेषेभ्यः सर्वदा लोप' इति स्त्री-क्लीवयोरीकारे अदती । एवं प्सा-भादि-जुहोत्यादि-जक्षादि-वर्ज अदादि - स्वादि - रुधादितदादि-त्र्यादीनां धातवः।। महन्त्-महान महान्तौ महान्तः। महान्तं महतः। महतेत्यादि । हे महन् । स्त्रियां महती। क्लीबे महत्,-०दू महती महान्ति ।२। थान्ताः - यथा तक्रमथ् । तक्रमत्,-०६ तक्रमथौ। तक्रमभ्याम् । तक्रमत्सु । क्लीबे तक्रमत्,-०द् तक्रमथी तक्रमन्थि । २। दान्ता:-क्रव्यात् कव्याद् क्रव्यादौ । व्यायाम् । क्रव्यात्सु। एवं सुहृदाद्याः पुंलिङ्गाः। संपदाद्याः स्त्रीलिङ्गाः। एवं त्रिलिङ्गाः-तत्त्वविद् । क्लीबे तत्त्ववित्,-०द् तत्त्वविदी तत्त्वविन्दि । २। ____एवं बहुसंपद्-प्रमुद्-काष्ठभिदादयः। व्याघ्रस्येव पदौ अस्येति बहुव्रीहावस्त्याद्युपमानसंख्यासुभ्यः पादस्य पाद्भावः । कुम्भपद्यादिषु च । व्याघ्रपात्,-० व्याघ्रपादौ व्याघ्रपादः । व्याघ्रपादम् । अघुट्खरे 'पात् पदं समासान्तः।' इति व्याघ्रपदः। व्याघ्रपदा । व्याघ्रपद्भ्याम् । व्याघ्रपात्सु । स्त्रियामप्येवम् । तदादिराकृतिगणत्वात् । पक्षे ईः। व्याघ्रपदीत्यपि । क्लीबे व्याघ्रपात्, व्याघ्रपाद् व्याघ्रपादी व्याघ्रपान्दि । २ । Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा- तृतीयः स्यादिप्रक्रमः। एवमुपमाने सिंहपाद्-उष्ट्रपाद्-मुख्याः । संख्यायां एकपाद्द्विपाद-मुख्याः । सुपूर्व सुपात्। कुम्भपद्यादीनां स्त्रियामेव पद्भावः । कुम्भपदी गाधपदी शूकरपदीत्यादि । अथ सर्वनामान्तर्गणस्तदादिः । यद्- 'त्यदादीनामविभक्तौ।' इति दस्य अत्वे सर्ववत् । यः यौ ये। स्त्रियां या ये याः। क्लीबे यत् ये यानि।२। अकि। यकः यकी यके। इत्यादि। स्त्रियां बहुलाधिकाराद् अकारस्य इकारो नास्ति । यका यके यकाः । इत्यादि । क्लीबे यकदित्यादि । एवं तद - 'तस्य च ।' इति सौ सत्वम् । सः तौ ते । स्त्रियां सा ते ताः। क्लीबे तत् ते तानि ।२। अकि सकः तकौ तके । स्त्रियां सका तके तकाः । क्लीबे तकदित्यादि। एवं एतद्- एषः एतौ एते। स्त्रियां एषा एते एताः । क्लीवे एतत् एते एतानि । २। अकि एषकः एतकौ एतके । स्त्रियां एषिका एतिके एतिकाः। क्लीबे एतकदित्यादि । 'एतस्य चान्वादेशे द्वितीयायां चैन ।' अधिकारात टौसोश्च । एतं व्याकरणमध्यापय, अथो एनं वेदमध्यापय । इत्थमन्वादेशे एनं एनौ एनान् । एनेन । एनयोः। स्त्रियां श्रद्धावत् । क्लीबे द्वितीयायां एनत् एने एनानि । एनेन एनयोः । अकि साकोऽप्येनादेशः। _ 'डान्ताः संख्यालिङ्गाः कत्यव्यययुष्मदस्मच । । इति अलिङ्गत्वाद् युष्मदस्मदोर्लिङ्गत्रयेऽपि प्रयुक्तयोस्तुल्यं रूपम् । युष्मद्-त्वं युवां यूयम् । त्वां युवां युष्मान् । त्वया युवाभ्यां युष्माभिः। तुभ्यं युवाभ्यां युष्मभ्यम् । त्वत् युवाभ्यां युष्मत् । तव युवयोः युष्माकम् । त्वयि युवयोः युष्मासु। - अकि सविभत्त्यादेशे साकोप्यादेशः । त्वकं युवकां यूयकम् । त्वकां युष्मकान् । त्वयका युवकाभ्यां युष्मकाभिः । तुभ्यकं युवकाभ्यां युष्मकभ्यम् । त्वकत् युवकाभ्यां युष्मकत् । तवक युवकयोः युष्मकाकम् । त्वयकि युष्मकासु। अस्मद् - अहं आवां वयम् । मां आवां अस्मान् । मया आवाभ्यां अस्माभिः। मह्यं आवाभ्यां अस्मभ्यम् । मत् आवाभ्यां अस्मत् । मम आवयोः अस्माकम्। मयि आवयोः अस्मासु । अकि युष्मद्वत् ।। तथा एतौ अन्यपदार्थे - त्वामतिकान्तः, मामतिक्रान्तः, अतिक्रान्ती, अतिक्रान्ताःवा। अतित्वम् अत्यहम् । अतित्वां अतिमाम् । अतियूयं अतिवयम् । अतित्वाम् अतिमाम् । २। अतित्वान् अतिमान् । अतित्वया अतिमया । अतित्वाभ्यां अतिमाभ्याम् । अतित्वाभिः अतिमाभिः । अति Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा-तृतीयः स्यादिप्रक्रमः। तुभ्यं अतिमह्यम् । अतित्वभ्यं अतिमभ्यम् । अतित्वत् अतिमत् । अतितव अतिमम । अतित्वयोः अतिमयोः। सञोपसर्जनीभूतानामसर्वनामत्वात् सुरागमो नास्ति । अतित्वयां अतिमयाम् । अतित्वयि अतिमयि । अतित्वासु अतिमासु। युवामतिक्रान्तः, आवामतिक्रान्तः, अतिक्रान्ती, अतिक्रान्ताः वा । द्वित्वेऽपि वर्तमानयोः युष्मदस्मदोर्न युवावी परत्वात् त्वं अहं यूयं वयं, तुभ्यं मह्यं, तव मम एते आदेशाः स्युः।युवावी अन्यत्र । अतित्वं अत्यहम् । अतियुवां अत्यावाम् । अतियूयं अतिवयम् । अतियुष्मान् अत्यस्मान् । अतियुवां अत्यावाम् । अतियुवान् अत्यावान् । अतियुवया अत्यावया। अतियुवाभ्यां अत्यावाभ्यामित्यादि । युष्मानतिक्रान्तः अस्मानतिक्रान्तः, अतिक्रान्ती, अतिक्रान्ताः वा। पूर्वलक्षणं पुनरद्वित्वे वर्तमानात् न युवावौ । अतित्वं अत्यहम्। अतियुष्मांअत्यस्माम्। अतियूयं अतिवयम् । अतियुष्मां अत्यस्माम् ।२। अतियुष्मान् अत्यस्मान् । अतियुष्मया अत्यस्मया। अतियुष्माभ्यां अत्यस्माभ्यामित्यादि। ___ 'युष्मदस्मदोः पदं पदात् षष्ठी-चतुर्थी-द्वितीयासु वस्नसौ।' परिशिष्याद् बहुत्वे । यथा-पुत्रो युष्माकं पुत्रोऽस्माकम् । पुत्रो वः पुत्रो नः। पुत्रो युष्मभ्यं पुत्रोऽस्मभ्यम् । पुत्रो वः पुत्रो नः। पुत्रो युष्मान् पुत्रोऽस्मान् । पुत्रो वः पुत्रो नः। 'वां नौ द्वित्वे ।' षष्ठ्यां ग्रामो युवयोः ग्राम आवयोः । ग्रामो वां, ग्रामो नौ । चतुर्थ्यां ग्रामो युवाभ्यां ग्राम आवाभ्याम् । ग्रामो वां ग्रामो नौ दीयते । द्वितीयायां ग्रामो युवां ग्रामो आवाम् । ग्रामो वां ग्रामो नौ पातु। 'त्वन्मदोरेकत्वे ते मे त्वा मा तु द्वितीयायाम् ।' पुत्रस्तव पुत्रो मम, पुत्रस्ते पुत्रो मे, पुत्रस्तुभ्यं पुत्रो मह्यम् , पुत्रस्ते पुत्रो मे दास्यति । पुत्रस्त्वां पुत्रो मां पुत्रस्त्वा पुत्रो मा पातु। तथा अत्र सूत्रे 'षष्ठी-चतुर्थी-द्वितीयासु।' इति व्युत्क्रमनिर्देशात् कचित् पञ्चमी-तृतीया-प्रथमास्वपि वस - नसादयः स्युः। यथा 'देहे विचरतस्तस्य लक्षणानि निबोध मे।' अत्र मम सकाशात् इत्यर्थः । 'श्रुतं वश्चन्द्रगुप्तस्य भाषितं मनसा प्रियम् ।' अत्र वो युष्माभिरित्यर्थः। 'एकं दृष्ट्वा धनुः पाणिं मानुषं समुपस्थितम् । राक्षसं बलमुत्सृज्य किं वो भीता इव स्थिताः॥' अत्र वो यूयं इत्यर्थः । 'गायकेन विनीती वाम् ।' अत्र वां युवां Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बाल शिक्षा - तृतीयः स्यादिप्रक्रमः । इत्यर्थः। 'न पादादौ चादियोगेच।' एषामादेशानां निषेधः। यथा-'अस्माकं पापनाशनः।' पुत्रो युष्माकं च पुत्रोऽस्माकं च । एवमादि । च वा ह अह एवम् गौणयोगे न स्यात् । ग्रामश्च ते स्वं नगरं च मे स्वम् । धान्ताः-विक्रुध् । पूर्ववत्। क्लीबे विक्रुत्,-०९ विक्रुधी विक्रुन्धि।२। एवं मृगविध -मर्माविधादयः। वि. ज्ञानबुध् । विरामव्यञ्जनाद् 'हचतुर्थान्तस्य धातोस्तृतीयादेरादिचतुर्थत्वमकृतवत् ।' इति ज्ञानभुत्,-०द् ज्ञानबुधौ । ज्ञानभुद्भ्याम् । ज्ञानभुत्सु। नान्ताः पुंलिङ्गाः-आत्मा आत्मानौ आत्मानः। आत्मानं आत्मनः। आत्मना आत्मभ्यामित्यादि । हे आत्मन् । एवं मध्वन् - यज्वन् - अरमन् - श्लेष्मन् -मुख्याः । व-म-संयोगानान्ताः। ___ मूर्द्धन -अघुट् स्वरे । 'अव-म-संयोगादनोऽलोपोऽलुप्तवच्च पूर्वविधौ।' मूर्ध्नः मूर्धा । 'ईङयो।' इति मूर्ध्नि, मूर्धनि । __ एवं पटिमन्-महिमन्-उक्षन् -तक्षन्-राजन् - मजन् - मुख्याः अवम-संयोगान्नान्ताः । तथापि राजन् अत्रालोपे 'तवर्गश्च-टवर्गयोगेचटवर्गाविति ।' नस्य अत्वे राज्ञः । राज्ञा । स्त्रियां राज्ञी। मजन् अत्राप्यलोपे 'त्रिषु व्यञ्जनेषु ।' इत्यादिना एकजकारलोपे नस्य अत्वे । मज्ञः। मज्ञा। _ 'श्वन्-युवन् -मघोनां च ।' इत्यघुट्खरे वस्योत्वे शुनः । शुना । स्त्रियां शुनी। .. युवन् - यूनः । यूना । स्त्रियां लोकोपचारात् युवतिरिति प्रसिद्धम् । परं यूनीत्यपि दृश्यते । तथा च शृङ्गारतिलकालङ्कारे । "भर्ता संगर एव मृत्युवसतिं प्राप्तः समं बन्धुभिः यूनी काममियं दुनोति च वधूवैधव्यदुःखान्मनः ।।' मघवन् -मघोनः । मघोना। स्त्रियां मघोनी। 'सौ च मघवान् मघवा वा।' इति सर्वत्र वा मघवन्त् श्रीमन्त्व त् ।। शशिन्-शशी शशिनौ । शशिना शशिभ्याम् । हे शशिन् । एवं वाजिन् - कञ्चकिन्-मुख्याः इनन्ताः । वृत्रहन्-वृत्रहा। हनोऽकारवतो णत्वम् । वृत्रहणौ वृत्रहणः। वृत्रहणम् । अघुटखरे अलोपे हस्य घत्वे। वृत्रन्नः। वृत्रना। ङौ वृत्रग्नि, वृत्रहणि। एवं गोत्रहन्- अहिहन् -मधुहन्-मुख्याः । Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ बालशिक्षा - तृतीयः स्यादिप्रक्रमः। पूषन् - पूषा पूषाणौ पूषणः । पूषणम् । 'पादमास' इत्यादिना शसादौ खरे वा पूष् । पूषः, पूष्णः । पूषा, पूष्णा । ङौ पूषि, पूष्णि, पूषणि। ___अर्यमन्- अर्यमा अर्यमणौ अर्यमणः। अर्यमणं अर्यम्णः । अर्यमभ्यामित्यादि। पामन् सीमन् एतौ नान्तावेव स्त्रीलिङ्गौ । मूर्धन्वत् । मनन्तानाम्नः स्त्रियां ङी नी वा डा स्यात् । तदा पामा सीमा इति श्रद्धावत् । एवमन्येऽपि स्त्रियां मनन्ताः। क्लीवाः-कर्मन् । कर्म कर्मणी कर्माणि । २। 'न सम्बुद्धौ ।' इति पृथक करणात् । नपुंसकस्य वा । हे कर्म हे कर्मन् । एवं पर्वन् - चर्मन्- मुख्याः । व-म-संयोगान्नान्ताः । वि० अहन् । 'विरामव्यं०' 'अहःसः।' अहः। अहोभ्याम् । अहःसु। स्त्रीलिङ्गाः- अर्वन् अश्वः। अर्वा । 'अर्वनर्वन्तिरसावनञ् ।' इति अर्वन्तौ अर्वन्तः । इत्यादि श्रीमन्तवत् । स्त्रियां अर्वती। क्लीबे असाविति प्रतिषेधेऽपि न च तदुक्तमिति ग्रहणात् अर्वत् अर्वती अर्वन्ति । २। नजि अनन्- अनर्वा अनर्वाणी अनर्वाणः इत्यादि । सुखिन् शशिवत्। स्त्रियां सुखिनी। क्लीवे सुखि सुखिनी सुखीनि।२। एवं धनिन् - स्थायिन् -मुख्याः इनन्ताः । ब्रह्मन् वृत्रहन्वत् । स्त्रियां ब्रह्मघ्नी । क्लीवे ब्रह्मह ब्रह्मनी ब्रह्महणी ब्रह्महाणि । २। एवं भ्रूणहन्-गोहन्- मुख्याः । धीवन् । अत्र ण (?) स्वरोऽघोषाद्वन्प्रत्ययात् स्त्रियामीप्रत्ययः । 'वनोरच' इति ओण । अवावरी। एवं स्त्रियां धीवन्-पीवन-विश्वदृश्वन - मुख्याः वन् प्रत्ययान्ताः। 'घोषवत्खरवन्प्रत्ययान्तासु स्त्रियामप्येवम् ।' स्त्रियामपि पुंवत् । यथा [सु]यज्वन् सहयुध्वन् राजयुध्वन् । सौयज्वा । सहयुध्वा।राजयुध्वा। ब्राह्मणी वाडाप् स्यात् । तथा आदन्तत्वे श्रद्धावत् । प्रतिदीव्यतीति 'राजि-तक्षि-धन्वि-प्रतिदिवि - यजिभ्यः कन् ।' प्रतिदिवन् । अलोपे 'नामिनो वोरकुर्छरोर्व्यञ्जने ।' इति दीर्घः। प्रतिदीनः। प्रतिदीना । दनस्तृतीयं प्रतीदीनः । उटम् लुप्तवद्भाव इहोपहन्ति । 'शक्यः पुनारयितुं कथं वा दीर्घोऽतिपूर्वस्य विधीयमानः।' प्रशाम्यतीति विपि पञ्चमोपधाया दीर्घत्वे 'मो नो धातोः।' इति मस्य सखरो नः । अस्य च लोपे प्रशान् । खरादेशः परि(र?)निमित्तकः Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा-तृतीया स्यादिप्रक्रमः। पूर्वविधि प्रति स्थानिवदित्याकारस्य स्थानित्वान्नलोपो न स्यात् । प्रशान् । 'स्वरे धातुरनात् ।' अनात् उपधादीर्घत्वं न निवर्तत इति । प्रशामौ । प्रशान्भ्याम् । क्लीवे प्रशान् प्रशामी प्रशामि ।२।। एवं प्रदान्-प्रतान् मुख्याः अनन्ता बहुव्रीहौ । स्त्रियामपि पुंवत् । यथा सुकर्मा सुकाणी सुकाणः । स्त्रिया वा डाप् स्यात् । तदा सुकर्मा इति श्रद्धावत् । अलोपता। मीप्रत्ययोऽपि । यथा बहुरोम्णीत्यपि । पान्ताः-पापलुप, - ०ब् पापलुपौ। पापलुप्सु। क्लीवे पापलुप, -०ब् पापलुपी पापलुम्पि ।२। एवं गुहलिप-मन्त्रजप-मुख्याः । वि० अप स्त्रीलिङ्गो बहुवचनान्तः । 'अपश्च' इति घुटि दीर्घः। आपः, अपः। अद्भिः। अद्भयः।२। अपाम् । अप्सु ।शोभना आपो यत्र खाप्, स्वाद खापौ खापः। खापं खपः। खपा।खद्भ्याम् । खप्सु । हे खप, -० । क्लीबे स्वप्,-०ब् खपी । केऽपि क्लीबे वा दीर्घः । स्वम्पि स्वाम्पि।२। एवं बह्वप्-सुव्यप्-मुख्याः । फान्ताः-अरितुफ् । अरितुप,-० अरितुफौ । अरितुभ्याम् । अरितुफ्सु । क्लीबे अरितुफ, -०ब् अरितुफी अरितुम्फि। एवं मालागुम्फ-मुख्याः । एवं पुत्रचुम्ब् -मुख्याः बान्ताः । इदनुवन्धत्वादनुषङ्गलोपो नास्ति । भान्ताः-स्त्रीलिङ्गाः [ककुम्] ककुप,-०ब् ककुभौ । ककुभ्याम् । ककुप्सु। एवं अनुष्टुभ् - तृष्टुभ् -मुख्याः । एवं त्रिलिङ्गाः- दृष्टककुम् । क्लीबे दृष्टककुप्,-०ब् दृष्टककुभी दृष्टककुम्भि ।२। एवं कृतानुष्टुभ् - मुख्याः । वि० विदभ्नोति इति विदभ् । 'विरामव्यं.' 'हचतुर्थान्ते'त्यादिना दस्य धत्वम् । विधप्,-०० विदभौ। विधब्भ्याम् । विधप्सु। गर्द्धभमाचष्टे इति गर्दभयतीति क्विप् गर्द्धभ् । गर्द्धप्, - ०ब् इत्यादि पूर्ववत् । मान्ताः यथा-प्राप्तशम् प्राप्तशमौ । प्राप्तशम्भ्याम् । क्लीवे प्राप्तशम् प्राप्तशमी प्राप्तशमि ।२। Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा - तृतीयः स्यादिप्रक्रमः । वि० किम् । 'किम् कः ।' कादेशे सर्ववत् । कः कौ के । स्त्रियां का के काः । क्लीबे किं के कानि । 'अकि सकोऽपि' कादेशः । २६ इदम् - पुंसि अयम् इमौ इमे । इमं इमान् । अनेन आभ्याम् एभिः । अस्मै । अस्मात् अस्य अनयोः एषाम् । अस्मिन् । एषु । स्त्रियां सौ इयकम् । अन्यत्र इसके इमकाः इत्यादि सर्वावत् । क्लीबे इदम् इमके इमकानि । २ । अकि सौ अयकम् । अन्यत्र इमकौ इमके इत्यादि सर्ववत् । अन्वादेशे द्वितीयायां टौसोश्च । एतदूवत् एनादेशः । अकि कोsपि नत्वम् । तूष्णीम् इत्यव्ययम् । यान्ताः - यथा अव्ययमाचष्टे इति अव्ययतीति अव्यय् अव्ययौ अव्यरभ्याम् । क्लीबे अव्यय् अव्ययी अव्यय । २ । रान्ताः - स्त्रीलिङ्गो द्वार् । द्वाः द्वारौ । विभक्तिव्यञ्जने रेफस्य विसर्गो न स्यादिति । द्वार्भ्याम् । 'भवति च' इति सुपि वा विसर्गादेशे द्वार्षु, द्वाःषु । एवं स्त्रीलिङ्गो वार । केऽपि क्लीवमिच्छन्ति । तदा वाः वारी वारि । २ । गिर् । 'विरामव्यं ०' 'इरुरोरीरूरौ ।' गीः गिरौ । गीर्भ्याम् । गीर्षु, गीःषु, गीष्षु । एवं धुर् । धूः धुरौ धुरः । धुर्भ्याम् । एवं पुर्-त्वर् - मुख्याः । त्रिलिङ्गाः - सुगिर गिवत् । क्लीबे सुगीः सुगिरी सुगिरि । २ । एवं धृतधुर् जितपुर् - मुख्याः । लान्ताः - विमलमाचष्टे इतीन् । विमलयतीति । विमल विमलौ । विमल्भ्याम् । क्लीबे विमल विमली विमलि । २ । एवं धवलू - उज्ज्वल - पठितहल् - मुख्याः । - वान्ताः - यथा कृतो वकारो येन । कृतव् कृतवौ । कृतवृभ्याम् । क्लीबे कृतव् कृतवी कृतवि । २ । वि० स्त्रीलिङ्गो दिव । द्यौः दिवौ दिवः । द्याम्, दिवम् दिवः । दिवा । 'दिव उद् व्यञ्जने । द्युभ्याम् । द्युषु । एवं त्रिलिङ्गाः । सुदिव । क्लीवे 'विरामव्यञ्जनादावुक्तं । नपुंसकात् स्वमोर्लोपेsपि ।' इति वचनादुक्तम् । सुद्यु सुदिवी सुदिवि । २ । एवं अतिदिव - विमलदिव - मुख्याः । शान्ताः - यथा विश् पुमान् । विटू, विड् विशौ । विड्भ्याम् । विट्सु । Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा - तृतीयः स्यादिप्रक्रमः । वि० दृश दिश स्पृश मृश् एषां 'विरामव्यञ्जना०' दृगादित्वात् गत्वम् । स्त्रीलिङ्गो दृश । हक, दृग दृशौ । दृग्भ्याम् । दृक्षु। ____ एवं दिश् त्रिलिङ्गाः । सुविश् विश्वत् । क्लीबे सुविट्, सुविडू सुविशी सुविंशि।२। एवं शब्दप्राश्-मुख्याः । सुदृश् दृशवत् । क्लीवे सुहक् ,-ग् सुदृशी सुझुशि । २। एवं दिव्यदृश-याश-ताश-दलस्पृश-कुचमृश्-मुख्याः। नश्यतीति नश्य् । 'मुहादीनां वा।' इति । "विरामव्यञ्ज' गत्वं डत्वं च। नक्, नग्, नट, नडू । नशौ । नग्भ्याम् , नड्भ्याम् । नक्षु, नट्सु। षान्ताः। द्विष्, ब्रिट, द्विड् द्विषो । द्विड्भ्याम् । द्विट्सु । __ एवं पुंलिङ्गाः त्विष्-रुष-विपुष्-प्रावृष्-मुख्याः । स्त्रीलिङ्गाश्च आशिष् । 'विरामव्यञ्ज० ।' 'सजुषाशिषोरः ।' आशीः आशिषौ । आशीर्ष्याम् । आशीर्ष, आशीष्षु, आशीषु। . त्रिलिङ्गाः स्वर्णमुष्ः द्विष्वत् । क्लीबे स्वर्णमुट्,-० ड् वर्णमुषी वर्णमुंषि।२। एवं विद्विष्- बहुविष् - बहुत्विष्-मुख्याः । वि० दत्ताशिष् आशिष्वत् । क्लीवे दत्ताशीः दत्ताशिषी दत्ताशींषि ।२। एवं सजुष् । सजूः सजुषौ । साम् । इत्यादि। दधृष्-दृगादित्वाद् गत्वम् । दधृक,-० ग् दधृषौ । दधृग्भ्याम् । दधृक्षु । चिकीर्षतीति कि । अस्य च लोपः । चिकीर्ष-चिकी। चिकीर्षों । चिकीर्ष्याम् । चिकीर्षु, चिकीःषु, चिकीष्षु । क्लीवे चिकीः चिकीर्षी चिकीर्षि । २। अथ चिकीर्ष इत्यत्र अलोपे निमित्ताभावे इत्यादिना षस्य सत्वे संयोगान्तलोपे चिकीर् इति रूपेऽप्येवम् । एवं शत्रुशीर्ष-दिधीर्ष - मुमूर्ष - मुख्याः । सान्ताः पुंलिङ्गाः । वेधसू-वेधाः वेधसौ वेधसः । वेधोभ्याम् । वेधासु, वेधस्सु । हे वेधः। एवं चन्द्रमस्-पुरोधस्-मुख्याः । वि० 'उशनःपुरुदंशोऽनेहसां सावनन्तः।' उशना । 'संबोधने तूशनसस्त्रिरूपं सान्तं तथा नान्तमाप्यदन्तम् । माध्यन्दिनिर्वेष्टिगुणं त्विगन्ते नपुंसके व्याघ्रपदां वरिष्ठः ॥' Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा-तृतीयः स्यादिप्रक्रमः। इति हे उशनन् , हे उशन । पुरुदंशा इन्द्रः । अनेहा काल । हे पुरुदंशः। हे अनेहः। दोस् । दोः दोषौ दोषः । दोषम् । दुर्गटीकायां शसादौ वा दोषन् । दोषः, दोष्णः। दोषा, दोष्णा । 'इसुस दोषां घोषवति रः।' इति षत्वं बाधकं सस्य रत्वम् । दोाम् , दोषभ्याम् । डौ-दोषि, दोष्णि, दोषणि। दोष्षु, दोःसु, दोषसु । कचित् क्लीबेऽपि । तदा-दोः दोषी दोषि, दोषाणि। तथा च रघुवंशे-'तमुपाद्रवदुद्यम्य दक्षिणं दोर्निशाचरः।' पुमन्सू-पुमान् पुमांसौ पुमांसः । पुमांसम् । पुंसः । पुंसा । पुम्भ्याम् । पुस्सु । हे पुमन् । स्त्रीलिङ्गाः श्रोतस्-अप्सरस्-मुख्याः वेधावत् । परं अप्सरस तथा पुष्पार्थे स्त्रीलिङ्गः सुमनस् एतौ बहुवचनान्तौ। भास-भाः भासौ । विसर्गलोपे भाभ्याम् । भास्सु, भाःसु। क्लीबाः-महस् । महः महसी महांसि ।२। एवं चेतस्-पय-मुख्याः । सर्पिस् - सर्पिः सर्पिषी सर्पिषि । सर्पिषा । सर्पिभ्याम् । सर्पिस्सु, सर्पिःसु। एवं अर्चिस् - हविस्-मुख्या इसन्ताः । एवं वपुस्-वपुः वपुषी वपूंषि । २। इत्यादि । एवं धनुस्-चक्षुस्-मुख्या उसन्ताः। अदस्-असौ अमू अमी । अमुम् अमून् । अमुना अमूभ्याम् अमीभिः । अमुष्मै । अमुष्मात् । अमुष्य अमुयोः अमीषाम् । अमुष्मिन् अमीषु । स्त्रियाम् - असौ अमू अमूः । अमूम् अमूः । अमुया। अमूभ्याम् अमूभिः । अमुष्यै । अमुष्याः।२। अमुयोः अमूषाम् । अमुष्याम् अमूषु । क्लीबे-अदः अमू अमूनि । अकि सर्वत्र अमुकः इति सर्ववत् । सौ तु असकौ अमुकः इत्यपि । अमात्परत्वात् महाप्राणस्य स्थाने श्वेत्वी च न । अमुको अमुके इत्यादि । स्त्रियाम् - असकौ अमुका अमुक अमुकाः इत्यादि । क्लीबे- अदकः अमुके अमुकानि ।२। श्रेयन्सू-श्रेयान् श्रेयान्सौ श्रेयांसः। श्रेयांसम् श्रेयसः। श्रेयसा। श्रेयोभ्याम् । श्रेयस्सु । हे श्रेयन् । स्त्रियाम्-श्रेयसी । क्लीबे-श्रेयः श्रेयसी श्रेयांसि।२। एवं लघीयन्सू-गरीयन्सू-मुख्याः अन्सन्तो। Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा - तृतीयः स्यादिप्रक्रमः । वि० विद्वन्स् । अघुट्खरे वंसेर्वशब्दस्योत्वम् । विदुषः । विदुषा । 'विरामत्र्यञ्जनादिष्वनडुन्नहिवंसीनां च ।' इति सस्य दत्वम् । विद्वद्भ्याम् । विद्वत्सु ! स्त्रियाम् - विदुषी । क्लीबे विद्वत् विदुषी विद्वांसि । २ । एवं वन्सप्रत्ययान्ताः । सेटस्तु यथा- पेचिन्स् । अघुट्खरादौ सेट्कस्यापि वसेर्वशब्दस्योत्वम् । पेचुषः । पेचुषा । स्त्री - क्लीबयोरीकारे पेचुषी । वि० जगन्वस् । अत्र वस्योत्वे 'निमित्ताभावे' इत्यादिना न मत्वे, 'गमहन०' इत्यादिना उपधालोपे च । जग्मुषः । जग्मुषा । जग्मुषी । शिश्रवन् । वस्योत्वे खरादाविवर्णोवर्णान्तस्य धातोरियुवौ । शिश्रियुषः । शिश्रियुषा । एवमिवर्णाद् वन्स् । वि० चिचिवन्स् । य इवर्णस्यासंयोगपूर्वस्यानेकाक्षरस्य ।' इति यत्वे । चिच्युषः । चिच्युषा । एवं जिगिवन्स्- निनीवन्स् - मुख्याः । तुष्टुवन्स् - तुष्टुवुषः । तुष्टुवुषा । बभूवन्स् - बभूवुषः । बभूवुषा । एवमुवर्णाद्वन्स् । एवं ऋकारात् वन्स् । कृ । चकृवन्स् - चक्रुषः । चक्रुषा । ऋ । शिशीर्वन्स - वस्योत्वे व्यञ्जनाभावात् । ईरोभावे शिशीरुषः । शिशिरुषा । एवं ऋकारात् वन्स् । सुपुमन्स् सुमनस्वत् । स्त्रियां सुपुंसी । क्लीबे सुपुम् सुपुंसी सुपुमांसि । २ । अथ धातुसकारान्ताः सुकन्स् । महत्साहचर्यात् धातोर्न स्यादिति दीर्घाभावे । सुकन् सुकंसौ सुकंसः । सुकंसम् । इदनुबन्धत्वात् नानुषङ्गलोपः । सुकंसः । सुकंसा । सुकन्भ्याम् । क्लीबे सुकन् सुकंसी सुकंसि । २ । एवं सुहिन्- मुख्याः । पिण्डग्रस धातुत्वाद् 'अन्त्वसन्त०' इत्यादिना न दीर्घः । पिण्डग्रः पिण्डग्रस । पिण्डग्रोभ्याम् । पिण्डग्रसु । क्लीबे पिण्डग्रः पिण्डग्रसी पिण्डग्रंसि । एवं चर्म्मवसादयः । - दू । उखास्रस् । 'स्रसिध्वसोच' इति सस्य दत्वे उखाश्रत्, ०उखानसौ । उखानद्भ्याम् । उखास्रत्सु । क्लीबे सुपीः सुपिषी सुपींषि । २ । एवं सुतुस् - सुरित्यादि । हान्ताः - पुंलिङ्गाः । यथा मधुलिह भ्रमरः । मधुलिट्, ०-डू मधुलिहौ । मधुलिभ्याम् । मधुलिट्सु । Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा - तृतीयः स्यादिप्रक्रमः। वि० तुरासाह् इन्द्रः। सहेः साडः षत्वम् । तुरापाट्, -तुरासाहौ। तुरासाहः। तुराषाभ्याम् । तुराषासु। हव्यवाह-अघुट्खरे वाहे,शब्दस्यौ । हव्यौहः । हव्यौहा । भ्रुवाह - अघुट्खरे अनवर्णादूट् । भ्रूहः । भ्रूहा। अनड्वाह-सौ तु अनड्वान् अनड्वाही अनड्वाहः । अनड्वाहम् । अनडुहश्चेति । अघुटि वाशब्दस्योत्वम् । अनडुहः । अनडुहा । विरामेत्यादिना हस्य दत्वम् । अनडुयाम् । अनड्डुत्सु । हे अनड्वन् । स्त्रीलिङ्गः-उपानह् । उपानत्,०-द् । उपानही । उपानद्भयास् । उपानत्सु। त्रिलिङ्गाः-दामलिह् मधुलिवत् । क्लीवे दामलिट्, ०-ड् दामलिही दामलिंहि ।२। एवमभ्रंलिह - मुख्याः । निगुह्-हचतुर्थान्तस्येत्यादिना विरामव्यं० गस्य घत्वम् । निघुट्, - निगुहौ । निघुड्भ्याम् । निघुन्सु।। प्रष्टवाह-अघुट्खरे वाहेर्वाशब्दस्यौ । प्रष्टौहः । प्रष्टौहा। स्त्री-क्लीवयोरीकारे । प्रष्टौही। एवं शालावाह-मुख्याः । खनड्वाह् । अनड्वाह्वत् । स्त्रियां स्त्री वेत्येके । खनडुही, खनड्वाही। क्लीबे वनडुत्, -द् खनडुही खनड्वांहि ।२। उष्णिह-दृगादित्वाद् गत्वम्। उष्णिक, -ग् उष्णिहो । उष्णिग्भ्याम् । उष्णिक्षु । गोदुह्-दादेहस्य गः। गोधुक, . - ग गोदुहौ।गोधुरभ्याम् ।गोधुक्षु। मुह्- 'मुहादीनां वा।' इति गत्वं डत्वं च । मुक्, मुग, मुह्, मुड्। मुहौ । मुग्भ्याम् । मुड्भ्याम् । मुक्षु, मुसु । एवं द्रुह्, ष्णिह-द्रुह्यत्र दस्य धत्वे । मित्रध्रुक,०-ग् । मित्रधुद, ०-ड् मित्र हो । मित्रनुग्भ्याम् , मित्रध्रुड्भ्याम् । क्षान्ताः गोरक्ष-'संयोगादेधुट्।' इति कलोपे षस्य डत्वम् । गोरट्, गोरडू गोरक्षौ । गोरट्भ्याम् । गोरट्सु। क्लीबे। गोरट्,-ड् गोरक्षी गोरंक्षि ।२। एवं काष्ठतक्ष-रिपुस्तक्ष-मुख्याः । वि०पिपक्षतीति पिपक्ष-विरामव्यं० संयोगान्तलोपे पिपक्, -। पिपरभ्याम् । पिपक्षु । अथ पिपक्ष इत्यत्र अलोपे निमित्ताभावे इत्यादिना षस्य सत्वे पिपक्स् इति रूपेऽप्येवम् । Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा-तृतीयः स्यादिप्रक्रमः । एवं धर्मसिस्-वाक्यविवक्ष-वृक्षसिसिक्ष-पापमुमुक्ष - गोदुधुक्षमुख्याः सनन्ताः। वि० विश प्रवेशने विविक्ष- अत्रान्तलोपे निमित्ताभावे इत्यादिना कस्य षत्वे डत्वम् । अथ सुखार्थमादिलोपे षस्य डत्वम् । विविट्,०-ड्। विविड्भ्याम् । विविट्सु। एवं गृहविविक्ष -मधुलिलिहूं-धर्मपिपृक्ष-शास्त्रदिदृक्ष-द्रव्यजिघृक्ष-मुख्येषु ष-ड- स्थानीयेष्वेवेति नियमात् पिपक्षादिष्वेवं न स्यात् । ॥इति स्यादिप्रक्रमे द्वितीयो व्यञ्जनाधिकारः॥ अथ संख्याशब्दाः। एक शब्द एकवचनान्तो विवक्षितो द्विबहुवचनान्तोऽप्यस्ति । यथा एकौ द्वौ गती, एके आगच्छन्ति । लिङ्गत्रये सर्ववत्। द्वि-द्वौ २। द्वाभ्याम् ३॥ द्वयोः २। स्त्री-क्लीवयोः द्वे २। शेषं पुंवत् । अकि द्वको । स्त्रियां द्विके । क्लीबे द्वके । उभ-उभौ २। उभाभ्याम् ३ । उभयोः २। स्त्री-क्लीवयोः उभे २। अकि उभको। स्त्रियां उभिके । क्लीबे उभके। त्रि प्रभृति अष्टादशयावत् बहुवचनान्ताः। त्रि-त्रयः । त्रीन्। त्रिभिः।त्रिभ्यः शत्रयाणाम्।त्रिषु। त्रि-चतुरोः स्त्रियां तिस चतह विभक्तो।' तिस्रः २ । तिसृभिः। तिसृभ्यः २। 'न नामि दीर्घम् ।' इति तिसृणाम् । तिसृषु । क्लीबे त्रीणि २। चत्वारः । चतुरः । चतुर्भिः । चतुर्व्यः २ । चतुर्णाम् । चतुषु । स्त्रियां चतस्रः २। चतसृभिः। चतसृभ्यः २। चतसृणाम् । चतसृषु । क्लीबे चत्वारि २। ष्णान्ताः संख्याशब्दाः कतिश्च अलिङ्गत्वात् । पुं-स्त्री-क्लीबेषु प्रयुक्तास्तुल्याः । पश्चन्- पञ्च २। पञ्चभिः । पञ्चभ्यः २। पञ्चानाम् । पञ्चसु ।'औ तस्मान्जस्शसोः।' अत्र तस्मात् ग्रहणमात्वस्यानित्यार्थम् । तदनात्वपक्षे पश्चन्वत्।। कति २। कतिभिः। कतिभ्यः २। कतीनाम् । कतिषु । या संख्या सा संख्या मानमेषाम् । यदू-तत्-किमः संख्याया डतिर्वा । यावत्तावदर्थी यति-तति-शब्दो कतरुपलक्षणत्वात् कतिवत् । शेषाः संख्याशब्दा लिङ्गान्तरयुक्तेष्वपि विशेष्येषु आविष्टलिङ्गा एकवचनान्ताः । यथा स्त्रीलिङ्गो विंशतिशब्दः । विंशतिः पुरुषाः, स्त्रियः, कुलानि वा सन्ति । एवमेकवचनेष्वेव । बुद्धिवत् । विंशत्यै विंशतये इत्यादि । एवं षष्टि-सप्तति-अशीति-नवति-कोटयः। Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा-तृतीयः स्यादिप्रक्रमः । त्रिंशत् चत्वारिंशत् पश्चाशत् एते स्त्रीलिङ्गाः एकवचनान्ताः । योषिद्वत् । शतं क्लीवम् । सहस्रमित्यादि । दशगुणसंख्यायां कोटिवर्ज पराद्धं यावत् । पुं-नपुंसकाः। लक्षशब्दः स्त्रीलिङ्गोऽपि । यदुक्तम् "कियती पञ्चसहस्री कियती लक्षा च कोटिरपि कियती।' शंकु-वारिधी तु पुंलिङ्गावेव । यदा तु विंशत्यादीनामेव गणनं तदा सर्वाणि वचनानि स्युः। यथा-द्वे विंशती, तिस्रो विंशतयः। इत्थं विंशत्यादयः। अथान्यपदार्थे त्रि प्रभृतयः । प्रियास्त्रयः पुरुषाः, प्रियाणि त्रीणि कुलानि वा यस्य यस्या वा कुलस्येति विग्रहे प्रियत्रिः सुबुद्धिवत् । गौणत्वादामि त्रयादेशो नास्ति । यदा तु प्रियास्तिस्रो यस्य यस्या वा कुलस्येति विग्रहे स्त्रियांप्रवृत्तत्वात् 'तिस-चतस्रौ त्रि-चतुरोः स्त्रियाम् ।' इति तिस-चतस्रौ भवतः। तदा प्रियतिस पुं-स्त्रियोः प्रियतिस्रा। 'तौरं खरे।' प्रियतिस्रौ । आमि प्रियतिसृणाम् । हे प्रियतिस्रः । क्लीवे स्यमोस्तदुक्तप्रतिषेधो वा । प्रियत्रि प्रियतिस प्रियतिसृणी प्रियतिसृणि । २। टादौखरे पुंवद्वा । प्रियतिमृणा । प्रियतिस्रेत्यादि । प्रियाः चत्वारः पुरुषाः, प्रियाणि चत्वारि कुलानि वा यस्य यस्या वा यस्येति विग्रहे प्रियचत्वार । पुं-स्त्रियोः प्रियचत्वाः प्रियचत्वारौ प्रियचत्वारः। प्रियचत्वारम् । अघुट् स्वरव्यं० चतुरो वा शब्दस्योत्वम् । प्रियचतुरः । प्रियचतुरा । प्रियचतुाम् । अप्राधान्यादामि नुर्नास्ति । प्रियचतुराम् । प्रियचतुषु । हे प्रियचत्वः। क्लीवे प्रियचतुः प्रियचतुरी प्रियचत्वारि । २ । यदा प्रियाश्चतस्रः स्त्रियो यस्य यस्या वा कुलस्येति विग्रहः, तदा चतस्रादेशे प्रियचतर प्रियतिसृवत् । क्लीवे स्यमोस्तदुक्तप्रतिषेधो वा । प्रियचतुः। प्रियचतम् । प्रियाः पञ्च पुरुषाः स्त्रियो वा प्रियाणि पञ्च कुलानि वा यस्य यस्या वा कुलस्येति प्रियपश्चन् । बहुरोमन्वत् । अलोपे चस्य योगे नस्य अत्वे प्रियपश्चः। प्रियपश्चा । एवं प्रियसप्तन् प्रभृति अष्टादशन् यावत् नान्ताः । नस्य तु अत्वं न। प्रियषष्-प्रियषट्,प्रियषड् प्रियषषौ प्रियषषः। इत्यादि वर्णमुष्वत्। प्रियाष्टन् आत्वपक्षे पुं-स्त्रियोः प्रियाष्टाः। प्रियाष्टौ २। प्रियाष्टाम् । प्रियाष्टौ २। प्रियाष्टाभ्याम् । प्रियाष्टाभिः प्रियाष्ट। प्रियाष्टाः२। प्रियाष्टोः। प्रियाष्टाम् । प्रियाष्टे । प्रियाष्टासु। क्लीवे स्यमोस्तदुक्तप्रतिषेधात् आत्वं न । प्रियाष्ट । ओप्रभृतिष्वात्वं क्लीवत्वात् । ह्रस्वत्वं वा । प्रियाष्टे । Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा - चतुर्थ: कास्कप्रक्रमः । ३३ प्रियाष्टानि । प्रियाष्टेन । इत्यादि वृक्षवत् । हे प्रियाष्ट, हे प्रियाष्टन् । अनात्वपक्षे तु प्रियसतन्वत् । प्रियकति- प्रियविंशति - आद्याः सर्वेषु वचनेषु सुबुद्धिवत् । प्रियत्रिंशदायाः शत्रुजिवत् । ॥ इति स्यादिप्रक्रमे तृतीयः संख्याधिकारः ॥ ग्रंथाग्रं० ४९० ॥ ॥ इति ठ० संग्रामसिंहविरचितायां बालशिक्षायां स्यादिप्रक्रमस्तृतीयः ॥ ५ ॥ * [ चतुर्थः कारकप्रक्रमः । ] कर्तृ - कर्म-करण - संप्रदान- अपादान - अधिकरण नामानि षट् कारकाणि सप्तमः संबन्धश्च । तदिमानि षट् कारकाणि संबन्धसहितानि उक्तानि अनुक्तानि च द्विप्रकाराणि भवन्ति । उक्तेषु सर्वेषु प्रथमा । अनुतेषु च कर्म्मणि द्वितीया । करणे तृतीया । संप्रदाने चतुर्थी । अपादाने पञ्चमी । संबन्धे षष्ठी । अधिकरणे सप्तमी । उक्तानि यथा त्यादि - कृत्तद्धित समासैर्यदुक्तं तदुक्तमुच्यते । लत्र प्रथमा । यथा - चैत्रः कटं करोति । कारको देवदत्तः । वैयाकरणः पुरुषः । कृतप्रणामः पुत्रः । इत्युक्ते कर्तरि प्रथमा । कटः क्रियते । भुक्त ओदनः । शतिकः पटः । आरूढो वानरो यं वृक्षं स आरूढवानरो वृक्षः । इत्युक्ते कर्म्मणि प्रथमा । नाति येन चूर्णेन तत् स्नानीयं चूर्णम् । 'कृत्ययुटो अन्यत्रापि [च] ' इति वचनात् अनीयः । इत्युक्ते करणे प्रथमा । दीयते यस्मै ब्राह्मणाय स दानीयो ब्राह्मणः । पूर्ववदनीयः । दत्तं भोजनं यस्मै अतिथये, स दत्तभोजनोऽतिथिः । इत्युक्ते संप्रदाने प्रथमा । बिभेत्यस्मादिति भीमो राक्षसः । भी भीषिभ्यां मक् । उत्सन्ना जनपदा यस्माद् देशात्, स उत्सन्नजनपदो देशः । इत्युक्ते अपादाने प्रथमा । अस्पते उपविश्यतेऽस्मिन् इत्यासनं पीठम् । मत्ता बहवो मातङ्गा यस्मिन् वने, तत् मत्त बहुमातङ्कं वनम् । इत्युक्ते सम्बन्धे (अधिकरणे ? ) प्रथमा । 5 - Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा - चतुर्थः कारकप्रक्रमः । गावो विद्यते यस्य स गोमान् चैत्रः । चित्रा गावो विद्यन्ते यस्य स चित्रगुः । इत्युक्ते सम्बन्धे प्रथमा । ३४ एवमुक्ते सर्वत्र प्रथमा । आमन्त्रणे च हे पुत्र, हे पुत्रौ, हे पुत्राः । एवं उक्तामन्त्रणयोः प्रथमा ॥ 'यत् क्रियते तत् कर्म्म ।' चैत्रः कटं करोति इत्यनुक्ते कर्मणि द्वितीया । वि० 'एनान्तनिषा समया हा धिग अन्तरान्तरेण यावत् विना ऋते अभि परि प्रति अनु उप एषां योगे च ।' दक्षिणेन ग्रामम् । 'अदूरे एनोऽपञ्चम्याः ।' १ । दक्षिणेन ग्रामं गिरिः । २ । निकषा ग्रामम् । ३ । समया ग्रामम् । ४ । हा पुत्रम् । ५ । धिक् पुत्रम् । ६ । अन्तरा गार्हपत्यमाहवनीयं च वेदिः । ७ । साहसमन्तरेण न खलु सिद्धिः । ८ । मां यावद्देहि । ९ । त्वां विना न सुखम् । १० । ऋते धर्म्म न श्रियः । ११ । तथा लक्षणवीप्सेत्थंभूतेऽभिर्भागे च परि प्रती । अनुरेषु सहार्थे च हीने चोपश्च कथ्यते ॥ वृक्षमभि विद्योतते विद्युत् । वृक्षं वृक्षमभि तिष्ठति । साधुर्देवदत्तो मातरमभि । १२ । यदत्र मां परि स्यात् । १३ । यदत्र मां प्रति स्यात् । १४ । चकारात् पूर्वार्थेऽपि परि - प्रती । १५ । वृक्षमनु विद्योतते विद्युत् । पर्वतमनु वासिता सेना । अन्वर्जुनं योद्धारः । उपार्जुनं योद्धारः । १६ । क्रियाविशेषणे कर्मैकत्वं नपुंसकं च । साधु स्थाली पचति । १७ । एवं सप्तदशसु स्थानेषु द्वितीया ॥ 'येन क्रियते तत् करणम् ।' दात्रेण लुनाति इत्यनुक्ते तृतीया । वि० 'तृतीया सहयोगे ।' मित्रेणासहागतः । १ । पुत्रेण सार्द्धं गतः । २ । 'हेत्वर्थे ।' भिक्षया भिक्षुर्वसति । वसने भिक्षाहेतुरित्यर्थः । ३। 'कुत्सितेऽङ्गे ।' अक्ष्णा काणः पादेन खञ्जः । ४ । 'विशेषणे ।' जटाभिस्तापसमद्राक्षीत् । ५ । 'कर्त्तरि च ।' अनुक्ते कर्त्तरि । त्वया चक्रे । ६ । 'विनायोगे ।' पुण्यैर्विना न सौख्यम् । ७ । 'अशिष्टाचारे संप्रदानेऽपि ।' दास्या संप्रयच्छते स्वर्णं कामुकः । ८ । एवमष्टसु स्थानेषु तृतीया ॥ 'यस्मै दित्सा रोचते धारयते वा तत् संप्रदानम् ।' गुरवे गां ददाति । बालाय रोचते मोदकः । चौराय गां धारयति । इत्यनुक्ते संप्रदाने चतुर्थी । १ । वि० 'नमः स्वस्ति स्वाहा स्वधा अलं वषट् योगे चतुर्थी ।' नमो देवेभ्यः । इत्यादि षड्भियोगैः | ७ | 'तादर्थ्ये ।' यूपाय दारु | ८ | 'तुमर्थाच Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५ बालशिक्षा-चतुर्थः कारकप्रक्रमः । भाववाचिनः।' पाकाय पक्तये पचनाय ब्रजति । पक्तुमित्यर्थः। ९ । यस्मै कुप्यति इति वक्तव्यबलात् कुपिऊधिद्रुहेासूयार्थानाम् । यं प्रति कोपः। छात्राय कुप्यतीत्यादि । १० । 'गत्यर्थकर्मणि द्वितीया- चतुर्थी चेष्टायामनध्वनि।' ग्रामं गच्छतिग्रामाय वा।गतेःसाहचर्यादिहै[क]कर्मका एव धातवो ग्राह्याः। तेन ग्राममजां नयति इत्यादिषु द्वितीयैव । ११ । 'मन्यकर्मणि चानादरेऽप्राणिनि ।' न त्वा तृणं मन्ये, न त्वा तृणाय वा। १२ । 'स्पृहि-नत्योः कर्मणि ।' पुष्पेभ्यः स्पृहयति पुष्पाणि वा । देवं नत्वा, देवाय वा । १३ । एवं त्रयोदशसु स्थानेषु चतुर्थी ॥ - 'यतोऽपैति भयमादत्ते वा तदपादानम् ।' वृक्षात् पर्ण पतति । व्याघ्रादू बिभेति । उपाध्यायादागमयति । इत्यनुक्ते अपादाने पञ्चमी ।। वि० पर्यपाङ्योगे पश्चमी।'इह अप-परी वर्जने। परि त्रिगर्तेभ्यो वृष्टो देवः।२। अप पाटलिपुत्राद् वृष्टो देवः । ३। एतौ वर्जयित्वेत्यर्थः । आङ् मर्यादाभिविध्योः । आपत्तनात् वृष्टो देवः । पत्तनं यावदभिव्याप्य वेत्यर्थः । ४। 'दिगितरर्तेऽन्यैश्च ।' पूर्वो ग्रामात् । ५। इतरो लोकात् । ६॥ धनादृते न कार्यसिद्धिः । ७। द्वितीयाऽपीष्टा । सुकृतादन्यत्र रत्नं किमपि । ८। स्तोकाल्पकृच्छ्रकतिपयेभ्यो मोचनार्थे करणे।' स्तोकान्मुक्तः स्तोकेन वा इत्यादि चतुर्व्यः।१२। 'यप् लोपे।' प्रासादात् प्रेक्षते । प्रासादमारुह्य प्रेक्षते इत्यर्थः । १३ । 'आरभ्य प्रभृति विना योगे च।' बाल्यादारभ्य सुकृतिः। १४ । बाल्यात् प्रभृति वीरोऽयम् । १५। धनाद् विना नेष्टसिद्धिः । १६ । एवं विनायोगे द्वितीया तृतीया पञ्चमी च । एवं षोडशस्थानेषु पञ्चमी॥ . सर्वत्र परस्परापेक्षया सम्बन्धः। परं भेदकात् षष्ठी भवति । राज्ञो देशः, देशस्य राजा इत्यनुक्ते संबन्धे षष्ठी।१। वि० षष्ठी हेतुप्रयोगे।' अन्नस्य हेतोर्वसति ।२। 'दय ईशोः कर्मणि।' सर्पिषो दयते । मधुन ईष्टे । ३। 'ज्ञो विदर्थस्य करणे।' सर्पिषो जानातीत्यर्थः। स्वामीश्वराधिपतिदायादसाक्षिप्रतिभूप्रसूतैः षष्टीच'चकारात् सप्तम्यपि। गवां स्वामी, गोषु वा। इत्यादि सप्तभिर्योगैः।११। निर्धारणे च।' गच्छतां धावन्तः, शीघ्राः गच्छत्सु वा । १२। 'स्मृत्यर्थकर्मणि। मातुः स्मरति, मातरं वा । १३ । 'करोतेः प्रतियत्ने ।' सतो गुणान्तरापादनं प्रतियत्नः । कृष्णस्यानुकरोति, कृष्णं वा । १४ । "हिंसार्थानामज्वरेः।' चौरं निहन्ति, चौरस्य वा ।१५। 'व्यवहृपणिदिवीनां व्यवहारार्थानां कर्मणि ।' शतस्य व्यवहरति, शतं वा । एवं त्रयाणां कर्मणि । १६ । Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ बालशिक्षा-चतुर्थः कारकमक्रमः । 'कर्ट-कर्मणोः कृति नित्यम्।' इत्यनुक्ते कर्तरि । भवतः आसिका, भवतः शायिका । कृत्यानां कर्तरि वा । चैत्रेण कटः कर्तव्यः, करणीयः, कृत्या, कार्यः, चैत्रस्य वा ।१७। 'कर्मणि।' अपां स्रष्टा । पुरां भेत्ता। 'न निष्ठादिषु ।' इति वचनात् । 'क्त क्तवतु शन्तृङ् आनश वन्सु कि उदन्त उकञ् अव्ययखलार्थेषु द्वितीयैव ।' द्विषः शत्रौ था। चौरं द्विषन् चौरस्य वा १८ । एवमष्टादशस्थानेषु षष्ठी ॥ __ 'य आधारस्तदधिकरणम् ।' कटे आस्ते इत्यनुक्ते अधिकरणे सप्तमी।१। वि० 'काल - भावयोः सप्तमी।' काले शरदि पुष्यन्ति सप्तच्छदाः।२। भावे गोषु दुह्यमानासु गतः।३। 'इनन्तक्तप्रत्ययस्य कर्मणि ।' अधीती व्याकरणे शिष्यः । ४। 'निमित्तात् कर्मसंयोगे।' चर्मणि दीपिनं हन्ति । चर्मनिमित्तमित्यर्थः। ५। 'विषये 'धर्मे विरलः श्रद्धावान् । ६ । 'आधिक्यार्थोपशब्दयोगे।' उप खार्या द्रोणः । द्रोणाधिका खारी इत्यर्थः । ७। 'खाम्यर्थाधियोगे ।' अधि ब्रह्मदत्तेषु पञ्चालाः । अधि पश्चालेषु ब्रह्मदत्तः इति।८। 'खाम्यादौ च ।' गवां खामी, गोषु खामीइत्यादि सप्तभिर्योगैः ।१५। 'निर्धारणे च ।' पुंसां क्षत्रियः शूरः, पुंस्सु वा । १६ । एवं षोडशस्थानेषु सप्तमी॥ एवं नवतिस्थानेषु सप्तम्यादयो विभक्तयः प्रायो दृश्यन्ते । तथापि विवक्षितानि कारकाणि भवन्ति । यथा वृक्षात् पर्ण पतति; वृक्षस्य पर्ण पतति । स्थाली ओदनं पचति, स्थाल्या पचति, स्थाल्यां वा। एवमेकैकस्य कारकस्य नाना विवक्षा दृश्यन्ते। . तथा विशेषणं विशेष्यस्य लिङ्ग-संख्या-विभक्तीः प्रायो गृह्णाति । यथा विद्वान् पुरुषोऽस्ति । विदुष्यौ स्त्रियौ स्तः। बहूनि कुलानि सन्ति । प्रमाणमित्यादयः।। .. पुनराविष्टलिङ्गाः शब्दा विशेष्यस्य विभक्तिमात्रमेवानुवर्त्तन्ते । न तु तत्संख्यां लिङ्गं च । यथा वेदाः प्रमाणं स्मृतयः प्रमाणं धर्मार्थयुक्तं वचनं प्रमाणम् । श्रीकर्णदेवस्य नराधिपस्य शुभ्रं यशः केवलमप्रमाणम् ॥१॥ तथा-पुत्रो मूर्तिमती आशा कन्येयं कुलजीवितम् । कलत्रं विभवश्चेति वयमेते कुटुम्बकम् ॥२॥ एवं नित्यलिङ्गाः शब्दा विशेषणभूता आविष्टलिङ्गा ज्ञेया। संपन्ना यवाः । जातावेकवचनम् ॥ Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७ बालशिक्षा-चतुर्थः कारकप्रक्रमः । अथ कारकाणां भेदसञ्ज्ञा। उच्यते द्विविधः कर्ता स्वतनो हेतुरेव च । यः करोति स कर्तेति खतनो मुख्यसञ्ज्ञकः ॥१॥ कारयति यः स हेतुः प्रयोजक इति स्मृतः। प्रेषकोऽध्येषकश्चानुकूल्यभागीति स त्रिधा ॥२॥ प्रेषते यः प्रभुत्वेन प्रेषकः स यथौदनम् ।। भृत्येन पाचयत्येष नरः स्वामित्वमावहन् ॥ ३ ॥ पुनरध्येषते यस्तु सत्कारसहितं यथा। गुरुमामयेद् भोक्तुं ततः सोऽध्येषको बुधैः ॥४॥ प्रेषतेऽध्येषते नानुकूल्यभागी च केवलम् । ओदनं प्रति हेतुः सन् सुपुत्रो जनकं यथा ॥५॥ निवर्त्य च विकार्य च प्राप्यं कर्म च तत् त्रिधाः । यदसज्जायते वस्तु जन्मना वा प्रकाशते ॥ ६॥ तन्निवयं कटं कुर्यात् प्रसूते वाथ नन्दनम् । गुणान्तरस्य चाधाने प्रकृत्युच्छेदने तथा ॥७॥ प्रामोति विक्रतिं यच्च तद विकार्यमिति स्मृतम् । यथा लुनात्यसौ काण्डं काष्ठं दहति पावकः ॥८॥ तत् प्राप्यं प्रकृतिस्थं यद् यथा पश्यति भास्करम् । बाह्यमाभ्यन्तरं चेति द्विविधं करणं मतम् ॥ ९॥ बाह्यं लुनाति दात्रेण दण्डेनाहन्ति दन्तिनम् । आभ्यन्तरं दृशा हन्ति याति द्यां मनसा यथा ॥१०॥ अनुमत्रनिराकर्तृ प्रेरकं संप्रदानकम् । यद् ददाम्यहमित्युक्त्वा ददाति तदनुज्ञया ॥ ११॥ गुरवे गां यथा शिष्यस्तदाहुरनुमन्तृकम् । यत् प्रदेहि भणित्वेति प्रेरितो यदि दायकः ॥ १२॥ ददाति बटवे भिक्षां प्रेरकं तद्विदुर्बुधाः । यन्नानुमन्यते नापि निराकुर्यान्न याचते ॥ १३ ॥ दत्तेऽर्काय यथा मालामनिराकत तन्मतम् । चलाचलविभेदेन द्विधाऽऽपादानमुच्यते ॥ १४ ॥ चलं यथाऽश्चात् पतितो वृक्षात् पर्णमिति स्थिरम् । षोढाधिकरणं ख्यातं भेदैर्विषयकादिभिः ॥ १५ ॥ Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा-पञ्चमः समासप्रक्रमः। वैषयिकौपश्लेषिकमौपचारिकमेव च । नैमित्तिकं [च] सामीप्यमभिव्यापकमन्तिमम् ॥ १६ ॥ अन्यत्रासम्भवे यस्य विषयस्तत्र केवलम् । तच्च वैषयिकं ज्ञेयं दिवि देवा नरा भुवि ॥१७॥ यत्रैकदेशसंयोगस्तदौपश्लेषिकं यथा । भुवनेऽस्ति कटे आस्ते ग्रामे वसति पण्डितः॥१८॥ यत्र व्यवहितं किश्चिदुपचारेण कथ्यते। .. अङ्गल्यग्रे करिशतमेवमाद्यौपचारिकम् ॥ १९॥ निमित्तं यत्र कालादि तन्नैमित्तिकमुच्यते। यथा शरदि पुष्यन्ति वृक्षाः सप्तच्छदाः किल ॥ २०॥ समीपस्थप्रसिद्धेन यस्य थे(स्थे)यं निगम्यते । तत्सामीप्यकनाम्ना च गङ्गायां घोषको यथा ॥ २१ ॥ आधेयं व्याप्य यस्तिष्ठेत् यथा रोगः कलेवरे। तिलेषु तैलमित्यादौ तदभिव्यापकं मतम् ॥ २२ ॥ द्वयोरेकक्रियोत्पन्नसम्बन्धोऽनेकधा मतः। स च परस्परापेक्षी भेद्य-भेदकयोरिव ॥ २३ ॥ यथेयं स्त्री नरस्यास्य भेदकः पुरुषोऽत्र सा। भेद्याद्यास्याः पुमांश्चात्र भेद्योऽयं भेदका तु सा ॥२४॥ ग्रं० ९७ ॥ ॥ इति ठ० संग्रामसिंहविरचितायां बालशिक्षायां कारकप्रक्रमश्चतुर्थः ॥ ७॥ [पञ्चमः समासप्रक्रमः।] कर्मधारयोऽथ बहुव्रीहिस्तत्पुरुषस्तथा। द्विगुर्द्वन्द्वोऽव्ययीभावः समासाः षट् प्रकीर्तिताः ॥ १॥ मध्येऽसौ चाथ तत्शब्दो द्विपदः कर्मधारयः। प्रधानपुरुषश्चासौ यथा नीलोत्पलं च तत् ॥ २॥ तथोपमानभूतेऽपि शस्त्री श्यामा नृकेशरी । यत्शब्दान्तो बहुव्रीहियथासौ कृतभोजनः ॥ ३ ॥ विभक्तयोः द्वितीयाद्याः समस्यन्ते परेण चेत् । . स हि तत्पुरुषः कष्टश्रितो धर्मरतो यथा ॥४॥ Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा-षष्ठ उक्तिप्रक्रमः। नजुपसृज्यते यत्र सोऽप्यनश्वो यथानहम् । संख्यापूर्वो द्विगु यः पश्चकपाल ओदनः॥५॥ यथा पञ्चगवधनः पञ्चपूलीत्ययं पुनः। द्वितीयार्थोत्तरपदसमाहारेषु नान्यतः ॥ ६ ॥ द्वन्द्वे चकार एव स्यात् प्रथमान्तपदे पदे । यत्र द्वित्वं बहुत्वं च स द्वन्द्व इतरेतरः ॥७॥ समाहारः स विज्ञेयो यत्रैकत्वं नपुंसकम्। शिवशक्ती रथाश्वेभा रथाश्वेभं द्वितीयके ॥८॥ पूर्वेऽव्ययेऽव्ययीभावोऽनपदोचारपूर्वकः। स नपुंसकलिङ्गः स्यात् उपकुम्भमधिस्त्रि च ॥९॥ . ॥ इति ठ० संग्रामसिंहविरचितायां बालशिक्षायां समासप्रक्रमः पञ्चमः ॥७॥ [षष्ठ उक्तिप्रक्रमः।] उक्तिश्चतुर्की-कर्त्तरि, कर्मणि, भावे, कर्मकर्तरि च। . - कर्तरि यथा-पचत्योदनं चैत्रः। कर्तरि उक्तौ कर्तृविहितेन प्रत्ययेन कर्ता उक्तः स्यात् । उक्तत्वात् कर्तरि प्रथमा । यदा स कर्ता अन्येन प्रयुज्यते तदाऽसौ अनुक्तकतैव । अनुक्ते कर्तरि तृतीया । प्रयोजकश्चोक्तः कर्ता स्यात् । यथा पाचयत्योदनं मैत्रश्चैत्रेण । एवं सर्वत्र । गत्यादीनां त्विनन्तानां पूर्वकर्ता कर्म स्यात् । उक्तं च गमनाहारबोधार्थशब्दार्थाकर्मधातुषु । अनिनन्तेषु यः कर्ता स्यादिनन्तेषु कर्म तत् ॥१॥... गत्यादीनां यथा-ग्रामं गच्छति चैत्रः । ग्रामं गमयति चैत्रं मैत्रः। प्राप्नोति संपदं मैत्रः। प्रापयति मैत्रं संपदं नृपः। ___ आहारार्थानाम् - भुङ्क्ते ओदनं छात्रः । भोजयत्योदनं छात्रमार्यः । पयः पिबति चातकः । पयः पाययति चातकं जलदः। बोधार्थानाम् - वुध्यते धर्म शिष्यः । बोधयति धर्म शिष्यं गुरुः। पश्यति चैत्रं मैत्रः। दर्शयति चैत्रं मैत्रं नृपः। शब्दार्थानाम्-पठति शास्त्रं शिष्यः। पाठयति शास्त्रं शिष्यं गुरुः । आभाषते मित्रं पुत्रः। मित्रं भाषयति पुत्रं राजा। Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा - षष्ठ उक्तिप्रक्रमः। अकर्मणाम् - उत्पद्यते घटः । घटमुत्पादयति कुलालः। यदा त्वेषां इनन्तानां पुनरिन् , तदा ग्रामं गमयति चैत्रं मैत्रेण जैत्रः, इत्यादि प्रयोक्तव्यम् । आख्याते-अवीवदत् वीणां परिवादकेन । तथा कुमारसंभवे 'स तैराक्रमयामास शुद्धान्तं शुद्धकर्मभिः ।' इत्यादिकमुन्नेयम् । एवं गत्यर्थादीनां कर्तुरिनि यत् कर्मत्वमुक्तं तस्यापि प्रतिषेधमाह। न नीखाद्य( ? )दिशब्दा यत् क्रन्दह्वाः कर्तृकर्मकाः। तथा भक्षिरहिंसायां वही सारथिकर्तृकः॥ एषां गत्यर्थाद्यर्थेऽपि पूर्व कर्तुरनुक्तत्वात् तृतीयैव न कर्मत्वम् । यथा- नाययति ग्रामं भारं चैत्रेण मैत्रः। खादयति गुडं पुत्रेण जननी । आदयति चेत्यादि। हृ-क्रोरपि तथा कर्ता इनन्ते कर्म वा भवेत् । अभिवादि-दृशोरेवमात्मने विषये परम् ॥ एषां च पूर्वकर्तुर्वा कर्मत्वमनुक्तं च । यथा-हारयति भारं ग्राम चैत्रं मैत्रः, चैत्रेण वा । कारयति धर्म शिष्यं गुरुः, शिष्येण वेत्यादि । __अथ कर्मणि-ओदनः पच्यते चैत्रेण । कर्मण्युक्तौ अनुक्तः कर्ता, उक्तं कर्म। अनुक्ते कर्तरि तृतीया। उक्तत्वात् कर्मणि प्रथमा। एवं सर्वत्र । तथा त्याद्यन्तक्रियायाः प्राधान्यं न तु कृदन्तक्रियायाः। इत्यादि क्रियाकृतमेव कर्म उक्तं भवति । न तु क्त्वा-तुम् - शन्तृङ्- आनशप्रभृति कृदन्तक्रियायाः। तर्हि कथं ओदनः पक्त्वा भुज्यते? सत्यम् । इत्यादी तु त्यादिक्रियापेक्षया एवोक्तम्। द्विविधं कर्म, गौणं मुख्यं च । अनेककर्मसु प्रायो गौणकत्वमेव कर्मोक्तं भवति । उक्तं च दुहादेर्गौणकं कर्म नीवहादेः प्रधानकम् । इनन्ते कर्तृकर्मैव अन्यद् वा वक्ति कर्मजः ॥१॥ तत्र द्विकर्मका दुहादयाःदुहि याचि रुधि प्रच्छि मिक्षि चित्रामुपयोगनिमित्तमपूर्वविधौ । ब्रुवि शासि गुणेन च यच्छ च ते तदकीर्तितमाचरितं कविना ॥ २ ॥ दुखते गौः पयो गोपालेन इत्यादावुपयोगित्वात् पयः तत् प्रधानम्, तन्निमित्तं गवाद्यप्रधानम् । अतस्तत्र गौणात्वादुक्तत्वम् । Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा-षष्ठ उक्तिप्रक्रमः । 'नीवहादेः प्रधानकम्' इति । नी-वयोहरतेश्चापि गत्यर्थानां तथैव च । द्विकर्मकेषु ग्रहणं ण्यन्ते कर्तुश्च कर्मणः॥ - नीयते भारो ग्रामं चैत्रेण, उह्यते भारो ग्रामं मैत्रेण, हियते भोक्तुं ग्रामं जैत्रेण, अजाग्राममाकृष्यते जनेन । अत्र भारादेर्नीयमानस्य प्रधानस्वादुक्तत्वम् । 'इनन्ते कर्तृकमैव'इत्यादि । इनन्ते यः कर्ता स कर्म स्यात् । तत् कर्म उक्तम् । एतच गौणम् । 'अन्यद्' द्वितीयं मुख्यं वा । यथा-ग्राम गम्यते चैत्रो मेत्रेण, ग्रामश्चैत्रं वा । एवं सर्वत्र। अथ भावे । यत्र को अनुक्तः स्यात् कर्म च न लक्ष्यते, सा भावे उक्तिः । येषां धातूनां कर्म नास्ति ते अकर्मकाः । यथा लज्जा सत्ता स्थिति जागरणं वृद्धि क्षय भय जीवित मरणम् । शयन क्रीडा रुचि दीप्त्यर्था धातव एते कर्मवियुक्ताः ॥ १ ॥ तेन लज्यते, त्वया भूयते, मया स्थीयते इत्यादि क्रियाया आत्मनेपदस्य प्रथमैकवचनमेव । तथा प्र पराप समन्वव निर्दुरभि व्यधि सूदति नि प्रति पर्यपयः । उप आङिति विंशतिरेष सखे उपसर्गगणः कथितः कविना ॥१॥ सोपसर्गा इनन्ताश्च अकर्मका अपि धातवः सकर्मका जायन्ते। यथा-दक्षेणोपास्यते धर्मः। राज्ये पुत्रः संस्थाप्यते नृपेण ।। तथा च कालाध्वभावदेशानां कर्मसंज्ञा सिद्धैव । यथा-मासमास्ते राशौ रविः । कर्मणि मास आस्यते। क्रोशो गुडधानाभिभूयते । ओदनपाकः शय्यते । नदी सुप्यते । एवमकर्मकेष्वपि कर्मण्युक्तिः । __तथा देवदत्तेन ग्रामे गम्यते- इत्यादौ सकर्मकेष्वपि यदि कर्म न विवक्ष्यते तदा भावे उक्तिः । विवक्षाधीनं हि कर्म । यथा-मेघो वर्षति। पार्थः शरान् वर्षति । इत्यादि। .. अथ कर्मकर्तरि । क्रियमाणं तु यत् कर्म स्वयमेव प्रसिध्यति । . सुकरैः खैर्गुणैः कर्तुः कर्मकर्तेति तद्विदुः॥१॥ कर्म चासौ कर्ता च कर्मकर्ता । स च कर्मवत् । लूयते केदारः स्वयमेव । भिद्यते कुशूलः खयमेव । अथ क्रिया। क्रियाप्रधानमाख्यातं लिङ्गं गृह्णाति न कचित्। उक्तस्य संख्यामादत्ते पुरुषं तस्य च क्रिया ॥१॥ Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा-षष्ठ उक्तिप्रक्रमः। प्रथममध्यमोत्तमास्त्रयः पुरुषाः । सर्वोऽपि प्रथमः । त्वं युवां यूयं इति मध्यमः। अहं आवां वयं इत्युत्तमः। स पचति, तौ पचतः, ते पचन्ति। त्वं पचसि, युवां पचथः, यूयं पचथ। अहं पचामि, आवां पचावः, वयं पचामः। एवमात्मनेपदेऽपि सर्वत्र यत्रैकत्र द्वौ त्रयो वा पुरुषाः स्युः तत्र परोक्तो ग्राह्यः । युगपद्धचने परः पुरुषाणामिति वचनात् । सङ्ख्या तु सर्वेषामपि ग्राह्याः । स च त्वं च पचथः । त्वं चाहं च पचावः। त्वमहं च पचामः। वर्तमान-अतीत-भविष्यन्नामानस्त्रयः कालाः। वर्तमाना, सप्तमी, पञ्चमी, ह्यस्तनी, अद्यतनी, परोक्षा, स्वस्तनी, आशीः, भविष्यन्ती, क्रियातिपत्तिः । एतास्त्यादयो विभक्तयः। वर्तमाने वर्तमाना-सप्तमी-पञ्चम्यः। अतीते ह्यस्तनी अद्यतनी परोक्षा क्रियातिपत्तिः। भविष्यति भविष्यन्ती-आशी:-श्वस्तन्यः। एवमेतास्त्रिषु कालेषु प्रायेण स्युः। . एकैकस्यामष्टादश वचनानि भवन्ति । पूर्वाणि न[व] वचनानि परस्मैपदसज्ञानि । पराण्यात्मनेपदसञ्ज्ञानि । परस्मैपदेष्वात्मनेपदेषु च सर्वेषु त्रीणि २ वचनानि प्रथममध्यमोत्तमसज्ञानि भवन्ति । एकद्वि-बह्वर्थः पुरुषः। ति एकवचनम्], तस् द्विवचनम्], अन्ति बहुवचन[म्]। एवं सर्वत्र त्रिकेषु ज्ञेयम् । ति तस् अन्ति प्रथमपुरुषः । सि थस् थ मध्यमपुरुषः । मि वस् मसू इति उत्तमपुरुषः। एवं आत्मनेपदेऽपि । एवं सर्वत्र । आत्मने त्रिषु विज्ञेयं भावे कर्तरि कर्मणि । परस्मै कतरि भवेद् न भावे न च कर्मणि ॥ इति कर्तरि परस्मैपदं आत्मनेपदं च । परस्मैपदिनि धातौ परस्मैपदम् । आत्मनेपदिनि आत्मनेपदम् । उभयपदिन्युभयपदम् । यथा-शिष्यः शास्त्रं पठति, अधीते च । चैत्रः कटं करोति, कुरुते च। एवं त्रिविधो धातुः। भावकर्मणोः पुनरात्मनेपदमेव । अथ प्रत्येकं विभक्तिप्राप्तिमाह - करइ लियइ दियइ इत्यादी वर्तमाना। वि० स्मेनातीते। दहति स्म त्रिपुरं हरः। भविष्यत्काले यावत् . पुरानिपातयोलट् वर्तमाना इत्यर्थः। यावद् भुते ततो व्रजति । अधीष्व माणवक पुरा विद्योतते विद्युत् ॥ Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा - षष्ठ उक्तिप्रक्रमः । ४३ कीज दीजह लीज इत्यादी वक्रोक्तौ कर्मणि वर्त्तमानाया आत्मनेपदम् । करिजे जे जे इत्यादी एकारान्तवचने सप्तमी । करि इ इ इत्यादी अनुमति पञ्चमी । विशेषः समर्थनाशिषोश्च । परैरशक्यस्य वस्तुनोऽध्यवसायः समर्थना । अहं पर्वतमुत्पादयामि । समुद्रमपि शोषयामि । इति । इष्टार्थस्याशंसनमाशीः । जीवतु भवान् । नन्दतु भवान् । क्रियासमभिहारे सर्वकालेषु मध्यमैकवचनं पञ्चम्याः । क्रियासमभिहारः पौनः पुण्यं (न्यं) भृशार्थी वा ॥ यथा माघमहाकाव्ये यो रावणः - पुरीमवस्कन्द लुनीहि नन्दनं मुषाण रत्नानि हरामराङ्गनाः । अत्रात काले हि । कीजउ दीजउ लीजउ इत्यादौ कर्मण्यात्मनेपदं पञ्चम्याः । की उं दीघउं लीधरं इत्यादौ परोक्षा ह्यस्तन्यद्यतन्यौ च । कालि की उं इत्यादी ह्यस्तन्येव । न परोक्षाद्यतन्यौ । आजु की उं इत्यादौ अद्यतनी । न परोक्षाह्यस्तन्यौ । म करि म लइ म दइ; म करिसि म लेसि म देसि इत्यादी माशब्दयोगेऽयतनी । मा स्म योगे ह्यस्तनी च । चकारादद्यतन्यपि । माङ् योगे तु यथा प्राप्ते पञ्चमी भविष्यन्ती च । मकीधु म लघु दीधु इत्यादी कर्मणि माशब्दयोगे अद्यतन्याः, मास्मयोगे ह्यस्तन्यद्यतन्योः । माङ्योगे तु पञ्चम्या आत्मनेपदम् । जइ करत जइ लेत जइ देत इत्यादी क्रियातिपत्तिः । जड़ कीजत लीजत दीजत इत्यादी कर्म्मणि क्रियातिपत्तिरात्मनेपदम् । करिसिइ लेसि देसिइ इत्यादी, नहीं करइ नहीं लियइ नहीं दियइ इत्यादौ च भविष्यन्ती । कीजिसिइ लीजिसिइ दीजिसिह इत्यादी, नहीं कीजइ नहीं लीजइ नहीं दीजइ इत्यादी च कर्म्मणि भविष्यन्त्यात्मनेपदम् । कालि रिसइ इत्यादौ श्वस्तनी । शत्रुजिसि वर्ष शत्रु जीविसह इत्यादी आशीर्युक्ते भविष्यति काले आशीः । अथ कृत्प्रत्ययप्राप्तिमाह- करतउ लेतर देत इत्यादी कर्त्तरि वर्त्तमाने शन्तुङ - आनशौ । परस्मैपदिनि शन्तृङ् । आत्मनेपदिनि आनशू । उभपदनिद्वावपि । कीजतउ लीजतउ दीजतउ इत्यादी कर्मण्यानशू । करणाहरु णाहरु देणाहरु इत्यादौ वर्त्तमाने वुण - तृचौ । कीधउं दीघउं लीधउं इत्यादौ अतीते निष्ठा कन्सु - कानौ च । Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा - षष्ठ उक्तिप्रक्रमः। .क्त-क्तवन्तौ निष्ठा । कर्मणि क्तः, कर्तरि क्तवन्तुः। 'गत्यकर्मकश्लिष-शी-स्थास-वस-जन-रुह-जीर्यतिभ्यश्च।' इति कर्तरि क्तोऽपि । यथा-अयमागतः, आगतवानपि । तथा परस्मैपदिनि कन्सुः। आत्ममेपदिनि कानः। उभयपदिन्युभयपदम् । करीउ लेउ देउ इत्यादौ क्त्वा, करिवा लेवा देवा इत्यादौ तुम् कर्तुमित्यादि। कापि घञ् क्तियुटोऽपि । पाकाय पक्तये पचनाय याति-पक्तुं याति इत्यर्थः। 'तुमर्थाच भाववाचिनः' इति चतुर्थी। शक्ल-ज्ञायोगे क्त्वाप्रत्ययोक्ती तुम् । करी जाणुं पढी सकउं-कत्तुं जानामि पठितुं शक्नोमि इति। करिवउं लेवउं देवउं इत्यादौ कर्मणि तव्यानीयौ । कर्तव्यं करणीयम् । कचित् क्यप् - घ्यणावपि । कृत्यं कार्य चेति । करणाहरु लेणाहरु देणाहरु इत्यादी भविष्यति काले तुमन्तात् काममनसौ, तुमो मलोपश्च । कर्तुकामः, कर्तुमनाः । तथास्य संहितौ शत्राणी च । परस्मैपदिनि शन्तृङ्, आत्मनेपदिन्यान् । उभयपदिनि द्वावपि । करिष्यन् करिष्यमाणः । 'आन्मोऽन्त आने ।' अकरणि अजणणि होइये इत्यादौ 'नज्यन्याक्रोशे ।' अकरणिस्ते वृषल भूयात् । ___ पाचणा भाजणा इत्यादौ कलिमः कर्मकर्तरीष्यते। भिदेलिमा माषाः। पचेलिमास्तण्डुलाः। इति कृत्प्रत्ययाः॥ अथ विशेषप्रत्ययप्राप्तिमाह - उपमाने इव-वती । राजेव राजवत् । आचारेऽर्थे तृतीयोऽपि । 'उपमानादाचारे।' इति कम्मणो यिन् । पुत्रमिवाचरति पुत्रवदाचरति पुत्रीयति माणवकम् । आचारादपि स्यात् । कुव्यामिवाचरति कुटीयति प्रासादे । 'कर्तुरायिः सलोपश्च।' हंस इवाचरति हंसवदाचरति हंसायते । आयि लोपे तु हंसति च । धातोर्वा तुमन्तादिच्छतिनैककर्तृकात् ।' इति सन् । कर्तुमिच्छति चिकीर्षति । 'नाम्न आत्मेच्छायां यिन् ।' 'काम्य च ।' पुत्रमिच्छति पुत्रीयति पुत्रकाम्यति । 'धातोर्यशब्दश्चक्रीयितं क्रियासमभिहारे।' इति व्यञ्जनादेरेकस्वराद् धातोर्यः प्रत्ययः। भृशं पुनःपुनवों पचति पापच्यते । 'वालक चेक्रीयितस्येति ।' पापक्ति पापचीति । एवं सर्वत्र । प्रायो द्वितीयारक्ष(क्षर?)स्यावर्णके सति इन् । ___कराइव कराविवउं कराविसइ करावतउ करावी कराविवा इत्यादी इनन्तात् तथोदितप्रत्ययाः स्युः । ग्रन्थाग्रं ११०॥ ॥ इति ठ० संग्रामसिंहविरचितायां बालशिक्षायां उक्तिप्रक्रमः षष्ठः ॥७॥ Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा - सप्तमः संस्कारप्रक्रमः। [सप्तमः संस्कारप्रक्रमः।] आजु अद्य। तिमई तत्कालम् । कालि कल्ये। झटकई झटिति। परम परेद्यवि। जूउ पृथक् । अरीरम अपरेयुः, अन्यस्मिन्नहनि, ताहरुं त्वदीयम् , भवदीयम् । __अन्येयुः। माहरउं मदीयम्। आजूणउं अद्यतनम्। तुह्मारउं युष्मदीयम् । कारहूणउं कल्यतनम्। अम्हारउं अस्मदीयम्। हिवडां इदानीम्, अधुना, संप्रति, सरीषउ सदृशः। सांप्रतम् । किसउ कीदृशः। हिवडानुं आधुनिकम् , सांप्रतीनम् ।। जिसउ यादृशः। नहीत नो वा, नो चेत् । तिसउ तादृशः। लिगइ प्रभृति, आरभ्य। इसउ ईदृशः। पाखइ विना, ऋते। यसउ एतादृशः। मुहियां मुधा। अनेसउ अन्यादृशः। यिम यथा। अम्हसरीषउ अस्मादृशः। तिम तथा। तूसरीषउ त्वादृशः, भवादृशः। जांउं यावत् मूसरीषउ मादृशः। तांउ तावत्। तुह्मसरीषउ युष्मादृशः। एकवार एकदा। तेसि तर्हि। सवइ वार सर्वदा, सदा। जेतलं यावन्मात्रम् । जहिंय यदा। तेतलं तावन्मात्रम् । तहिंय तदा, तदानीम् । एतलं एतावन्मात्रम्, इयन्मात्रम् । कहिंय कदा। केतलुं कियन्मात्रम् । अनेरीवार अन्यदा। औरहु अवाक। कीहां क, कुत्र। परह परतः। जीहां यत्र। पापलि परितः। तीहां तत्र। सवहिगमा समन्तात्, सर्वतः। ईहां अत्र। बाहिरि बहिः, बाह्ये। अनेतइ अन्यत्र। धुरिलं आदिमम्। सगलइ सर्वत्र। छेहिलङ अन्तिमम् । वलीउ व्यावृत्य, व्याघुव्य। एकपरि एकधा। Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा-सप्तमः संस्कारप्रक्रमः। बिहुपरि द्विधा इत्यादि। शामलुं ध्यामलम् । छहिंपरि षोढा। हिया विउं हृदयार्पितम् । अनेकपरि अनेकधा, बहुधा। दाणी धणी ऋणितः। सवेहिपरि सर्वथा। हेवाउ हेवाकः। जडपणउं इत्यादी त-त्वौ भावे यण्। फुईहाईउ पितृष्वतीयः। जडता जडत्वं जाड्यम् । मसिहाईउ मातृष्वस्त्रीयः। आहुणउ एषमः। पाइआली पादप्रहारिणी। पुरु पुरुत् । अरतउ परतउ बापसरीषउ आकृत्या उगमुगउ अवारमूकः। प्रकृत्या च पितृसहशः। झडझांषसउं चलध्वक्षिकम् । अगीठ आग्निपीठकम् । ऊधंधलं उधूलिकम् । फूटर स्फुटतरम् । वरगड वराघ(क?)षकः। उघड दूधडउं उद्धटदुर्घटकम् । जानुत्र यज्ञयात्रा। चीफाड चित्तफा(स्फा ?)टकः । जानावासउ जन्यावासकः। निलखणउ निलक्षणः। एकउडउ एकतडिकः। षा(खा)णउतुं षा(खा)दनस्थानम् । ओसीआलं अस्पृष्टालयम् । अहीणउं अधेनुकम् । बूंघठउ अवगुंठनम् । उपरेथाई उपरिस्थाई। गवाणि गवादिनी। कमोठाणी कर्मस्थाई। अउडक् अपराख्या । अंधोमींची अन्धमीलिका। आहर जाहर एहिरे याहिरे। कांकसी कचाकर्षणी। मसाहणी महासाधनिक। ओलाणि अवलंबिनी। अउघडली अक्षपटलिक। हथीयारु हस्ताधार । गोलगवेला (१) । चांद्रिणुं चंद्रिकालयम्। रउडउ रवाट (?)। धणीवउ धन्यावयः। [क]ऊसीसउं कपिशीर्षकम् । छीडणि छिद्राटिनी। मुखामुखि मुखामुख्यता। नीषणीयासु निःक्षणकम्मों। गोगीडउ गोकीटः। बलबलीउ वाचालः, वाचारः। ओलउ उपालयः। मेराईउ मेराद्यकम्। निकउ निष्कः। वादलु वारिदपटलम् । कल्होडउ कल भोत्कटः। अभोखउ अभ्युक्षणम् । आलीगारु आलीककारः। उलकउ उदकोदंचनम्। वानयतउ वायत्तः। पछोकउ पश्चादोकः। राउलवायु राजकुलायत्तः। उपवासीउ उपोषितः। पाढू पादघातः। Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७ बालशिक्षा-सप्तमः संस्कारप्रक्रम । दीहदीवी दिनदीपिका। पीजहलउ पेय्यफलम् । भूराई भूतराजः। लिहाच्छोह लब्धस्थो(ब्धोत्सा?)ह । मंजवाडू भंगपातः। आकडउ उत्कटः। पडाई पताकिका। वाउलउ वार्तालयः। चाकचकूकवउं चक्रकुनम् । ऊजाणी उद्यानिका। उंधूयायतुं ऊधूयमानम्। कडअडउ काष्ठकठिनः। धुंबाचूंबि मुष्टामुष्टिः। भोगल भुजागेला। वालालंछि केशाकशिः। असराहिउं अश्रद्धेयम् । पेलावेलि प्रेराप्रेरिः। मेहरु मेहत्तरः। वियारिउ विप्रतारिका। देषा(खा)विउ दृष्टापेक्षा। छेतरिउ छलांतरितः। अउडीगउ अपमार्गगः। डबडाहिउ द्रवकघातितः। ऊचलउ अपरिचितः। जिगीसा जिघृष्याः(१क्षा)। फांटिउ पांक्तिकः। पलबु प्रलुब्धः । सामुहिउ सजितः। अलजउ उत्कण्ठा। वरांसिउ विपर्यस्तः। खाजहलउ खाद्यफलम्। पच्छाहियउं पश्चा[द्]हृदयम् । ॥ इति संस्कारप्रक्रमे प्रथमस्तदक्षराधिकारः ॥ अथ क्रिया। जिमइ भुंक्ते, अनाति च जेमति । राष(ख)इ रक्षति, गोपायति, पाति, खाअइ भक्षयति, अत्ति, त्राति, त्रायते, अवति च । खादति, प्रसतेऽपि च ४। आरंभइ आरभते। अभ्यसइ मनति, अभ्यस्यति । सांभरइ स्मरति चाध्येति च । भीष(ख)इ भिक्षति। बोलइ जल्पति, निगदति, वक्ति, थोभइ स्तोभति, स्तनाति च । वदति, भाषते, ब्रवीति, आह, सीष(ख)इ सिक्ष्यते ५। ब्रूते। शीष(ख)वइ अनुशास्ति । नासइ नश्यति, पलायते। विणसइ विनश्यति। जिणइ विजयते, जयति। विमासइ विमृशति। जाणइ वेत्ति, जानाति, अवेति, अव- विचारइ विचारयति, ऊहते ६। . गच्छति। वेचइ व्ययति, व्येति । बूझइ बुध्यते चापि। पडीगइ चिकित्सति, प्रतीकरोति । परिछइ परेरिमे ३ परीच्छति च। अच्छइ अस्ति,तिष्ठति,विद्यते,आस्तण Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८ कहइ कथयति, आचष्टे, आख्याति, शंसति । सोहइ शोभते, भाति, राजति-ते, चकास्ति च ८ | . बालशिक्षा - सप्तमः संस्कारप्रक्रमः । जाअइ गच्छति, याति, व्रजति, सरति, एति, अयति वा । आवइ आङस्त्वेते । आङ्पूर्वा एते धातव आगमने वर्त्तन्ते । निः पूर्वा निःसरति । नीकलइ निरस्तु | ऊगइ उदस्तु ९ । आथमइ अस्तमस्तु । त्रासइ त्रस्यति, त्रसति । हालइ चालइ चलति । त्रूट त्रुट्यति, त्रुटति १० । पूजइ पूजयति, अर्चतीति इन् भवतीत्यर्थः । मीमांसते, अंचति । स्तव नुवति, स्तौति, स्तुते, नौति, स्वीति च ११ । आप अर्पयति । वरसइ बर्षति । नमस्करइ नमस्यति वा नमस्करोति । आराधइ आराधयति, उपास्ते । तपु करइ तपः करोति, तपस्यति वा । भावइ प्रतिभासते १४ । प्रतिभाति, रोचते वा । वीष ( ख ) र विकिरति, विक्षपति । सामरइ समः किरति । पीठइ पिञ्चयति । परिणइ परिणयति १५ । उपयच्छते विवाहयति । खंडहालइ खर्जयति । fishes आंदोलयति । पूरइ सरइ अलं खलु च १६ पूर्यते । निंदर जुगुप्सतें, निंदति, गर्हते । airs नाति । पडिवचइ प्रतिवक्ति तु १७ । ales विभेति । बीहावs भापयते, भीषयते । उल्लींचइ उल्लंचति । लाइ जिह्रेति, लज्जते, त्रपते १८ । व्रीड्यति । फिरइ भ्राम्यति, भ्रमति । अणभमइ अनुपूर्वो भ्रम । अनोस्तु | संघइ सिंघति, जिघ्रति । झाड उज्झति, जहाति च त्यजति १९ । सांपडइ संपद्यते । कुसणइ कुष्णाति । घर घर्षति । निरष (ख) इ निरीक्षते ऊपज उत्पद्यते । भेटइ सभाजयति । परष (ख) इ परीक्षते २० । aless निष्पद्यते । वीनवइ विज्ञपयति । उवेष (ख)इ उपेक्षते । सेवइ भजति - ते, सेवते, श्रयति १३ । ऊधक उधेकते । वापरइ व्यापृयते, व्यापृणोति । परामइ प्राप्नोति । नाइ नाति । पडी (ख) इ प्रतीक्षते २१ । प्रतिपाल यति । बुहारइ सन्मार्जयति । Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा - सप्तमः संस्कारप्रक्रमः। बालइ ज्वालयति। छउंटइ आक्षिपति । आङः। बलइ ज्वलति। खरवलइ अपस्किरति । २८ । पीअइ पिबति । संधूखइ संधुक्षते। समारइ समारचयति । अमायइ अमायते। मुलह मृदु लुनाति, मृदुलयति । पुढइ प्रोढायते। विढइ विध्यति, कलहायते।। चिणइ नुःखादेः चिनोति-ते। व्यापइ अश्रुते, व्यामोति च । सांचा संचिनुते, संचिनोति।समस्तु । दीष(ख)इ दीक्ष्यते । २३ । चूंटइ अवचिनोति, अवात् । वांछइ वांछति, कांक्षति। अउगनाइ अपकर्णयति । तूसइ तुष्यति । ऊजालइ उज्जवलयति। रूसइ रुष्यति। प्रासुइ प्रस्तुते। पूछइ पृच्छति। हुअइ भवति ३०, जायते । मूहइ मुह्यति। पू(खू)भइ क्षुभ्यते, क्षोभते। नाचह, नृत्यति। चूयह श्चोतति-ते। माचइ माद्यति । २४ । हादइ हादते। ऊगाइ उद्गायति । गांठइ ग्रंथते। पीडइ पीडयति, बाधते, तुदति।। थीजइ स्त्यायते। दूमइ दुनोति, दुःखाकरोति, दुःख- भीजइ क्लिद्यते। । यति २४। ध्यायइ ध्यायति तु द्वयोः। .. सुहाइ सुखादेयम् । ऊकलइ उत्कर्षति । वृद्धौ । सांभलइ निशाम्यति, शृणोति, आक- वाधइ वर्द्धते ३२, एधते । र्णयति एषः। लूहइ पुंसयते। विगूपइ विगुप्यति २५। षी(खी)लइ कीलति । नरनरइ नदति । ऊमटइ उन्मजति, गग्घति ३३ । थवह स्थगयति । वींधइ विध्यति । कडच्छइ कटिस्थयति । पढइ अधीते, पठति च । करडइ, काटइ कुंतति । मायइ माति, मिमीते। लाषइ अस्यति, निरस्थति, क्षिप- प्रसवइ सौति, प्रसवति, प्रसुवति, ति २६ । सूते। नीखइ निर्निस्यति, निःक्षयति । सूअइ निद्रायति वा शेते ३४, स्वपिति। धोअइ प्रक्षालयति। नांगइ व्यंगयति, अनंगीकरोति । पीछलइ वेस्तु। फेडइ अपनयति, स्फेटयति, अपास्यपातइ निःक्षिपति, प्रक्षिपति। ति ३५। Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५० जुst युनक्ति, युंक्ते । उपयोगइ चेदुपात् । रुं रुणद्धि, रुंद्धे । उपरुधर उपरुणद्धि उपात् । ३६ । फांकुरी फारस्फूर्जते हि । पसाअह प्रसीदति, अनुगृह्णाति । ओढइ अवगुंठते, ३७ प्रावृणोति च वणइ व्ययते वायतेऽपि च । पोअइ प्रवयति प्रात् वै । पेलs नुदति, प्रेरयति अपि ३८ । आलिंगइ आलिंगति वा परिष्वजति । बाअइ वादयति । बालशिक्षा - सप्तमः संस्कारप्रक्रमः । वलइ पश्चात् व्याघुटते चलते । ३९ । छायइ छादयत्योकः । स्तृणाति, स्तृणोति - ते । विस्तरइ विपूर्वी तु । विस्तारइ विस्तरति, विस्तारयति, त नोति - ते । ४० । लाडइ ललति । पंझेइ परामृशति । बलअलइ बलाद्दूलति । धाव धावति । मनावर सांत्वयति । उडइ द्रुतादति । ४१ । रमइ क्रीडति, दीव्यति, रमते । रोअर रोदति, परिदेवयति । dies शिथिलयति । वम वमति । oes (भेलइ ? ) मिश्रयति । लहइ लभते । ४२ । झां झषति । निउजर नियंत्रयति । बूss ब्रुति, मज्जति । कुस क्रोशति । उनूआइ उत्क्रनाति उनूति (?) । ४३ । गाइ कायते । फिराइ स्पृहायते । षो (खो) डाइ षं (खं) जायते । लुइ लुनाति - ते । ४४ । । आंबइ प्राप्नोति, घटति । आदरइ स्वीकरोति, आद्रियते, अंगी- करोति अंगीपूर्व कृतश्च । घट संभवति, घटते । ४५ । विहss विघटते । वेः । नीकोलइ निः कुलयति, क्लश्च निः कुलापूर्व । सीझ सिध्यति । सूझइ शुध्यति । मी मीलति । ४६ । निमीलयति उपरमइ उत्प्लवते, उत्पतति । अवहथइ अपहस्तयति । ऊजाइ उद्याति । स्पर्द्धइ स्पर्द्धते मिषति । वासह वास्यते ताम्रचूडी । मानइ मन्यते । वरइ वरयति एषः; वृणाति, वृणोति - ते । ४७ । कुंथ कुथति, कुनाति । मथइ मनाति, मथति । कुरलाइ कणयति । अल्झइ अलमुज्झति ४९ ढांक प्रच्छादयति, पिधत्ते, पिदधाति च । ५० । पहिरइ परिदधाति, संवस्त्रयति । प्रसीजइ प्रविद्यति । छेद छेदयत्ययम्; छिन्ते, छिनत्ति । Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा सप्तम संस्कारप्रक्रमः। तीमइ तेमयति, क्लेदयति। सरवइ निस्यन्दते, स्रवति। पडइ पतति । वाटइ तु लेढि लीढे। अडवडइ अधःपूर्वः पतः। वीआरइ विप्रतारइ(य)ति ५९। सिणमिणइ शनैर्मिनोत्यब्दः। ऊलटावइ, उन्मार्गयति । बसबसइ बहुस्यन्दति भूः। धूजइ कंपते। कुरमाइ म्लायति, क्लाम्यति । भ्राअइ तृप्यति, ध्रायत्यपि । हकारइ आकारयति, आह्वयत्यपि। खीजइ खिद्यते ६०, ताम्यति । प्रहुइ प्रभृजति। विहंचइ विभजति। छणइ क्षणोति । षडहडइ किल खटत्पतति । पइसइ प्रविशति। पालटइ परावर्तयति । परेवा । ऑजइ उदंजयति। हडहडइ हठाद्धसति ६१ । आसुरडइ आश्वईते। ताणइ काढइ कर्षति, कृषते-ति च । आंजइ अंजयति वा अनक्ति। ५४। टलवलइ टलद्वलति । . ऊघडइ उन्मीलयति, उद्धटते। गांगिरइ गांगिरति, गांगृणाति वा। फीटइ स्फिटते।। गलअलइ गलगलति ६२। सूकइ शुष्कति, शुष्यति । द्रंफोडइ द्रुतं स्फोटयति । पतइ समर्थयति वा समापतति ।५५। झूझइ युध्यति । लूसइ लूषयति। धंधोलइ द्रुतं धूनयति । दमइ दाम्यति। वीटइ वेष्टते ६३। हीयापइ हृदयापति। ऊवेढइ उदः। ताछइ छोलइ तक्षति, कार्यति, तक्ष्णो- समेटइ समः। ति च। परीसइ परिवेषयति, परीप्साति । कुहइ कथति । ५६। षा(खा)सइ कासते ६४। बूंदइ चूंटइ क्षुन्ते क्षुणत्ति च । वीसमइ विश्राम्यति। विसाहइ विसाधयति, क्रीणाति, पराकइ परे परः (१)। क्रीणीते। नीसमइ ने। सीदाअइ सीदति । ५७॥ चडइ चटति, आरोहति द्विपं ६५ ऊगटइ उद्वर्त्तयत्येषः। vणइ धूंनयत्येषः; धुनाति धुनाते धुलंबइ लंबते। नोति -ते धुनते धुवति। ऊलंबइ उत्पूर्वः। अउलवइ अपलपति, अपहुते ६६ । साहइ अवलंबते । ५८। मोकलइ मुत्कलति विसृजति प्रहिभेदइ भिनत्ति, भिन्ते। णोति। Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा- सप्तम संस्कारप्रक्रमः। . कलकलइ कलंकणति । वघारइ व्याजिघति वासयति । सामुहइ सजति, समहति। वखाणइ व्याख्याति व्याख्यानयति । ऋणऋणइ रणध्वनति ६७। वावइ वपति-ते च ७३ । ताजइ तर्जति। छिबइ छुपते, स्पृशति च । मांजइ माष्टि। चोरइ मुष्णाति, चोरयति । डसइ दशति । ऊखेलइ उत्कीलयति। गाजइ गजति। दंभइ दंनोति। गायइ गायति। सकइ शक्नोति ७४। हुणइ जुहोति। परवारइ प्रपारयति। गूचइ गुंचति । वारइ निवारयति, निषेधयति। करइ करोति ६८ कुरुते, विदधाति पल्हालइ पर्याद्रयति । विधत्ते। लेअइ प्रापयति, नयति ७५ । धरइ दधाति च दधति, धत्त धार- पालुअइ पल्लवयति । यति। थाहरइ स्थानमाहरति स्थानयति । दिअइ यच्छति, दत्ते, राति ददाति । पचारइ प्रत्युच्चारयति । लिअइ आदत्ते ६९ । गृह्णाति विग्रह- फूटइ स्फटति ७६ ।। इ(य?)ति, वेः। . पतीजइ तु प्रत्येति प्रत्ययति प्रतीयते। ऊडइ उड्डीयते अथ उड्डयते । वरांसीयइ विपर्यस्यति। आचमइ आचमति। जामइ जायते। पवित्रह पवित्रयति पुनाति पवते। पा(खा)जूअइ कंडूयति-ते। ऊणइ ७० उदः पूर्वो। ओलंभइ उपालभते। धूपइ धूपायति । उढूंढइ उद्वन्धयति । क्षिरइ क्षरति । क्रमइ कामति ७७ वीकइ विक्रीणते। आयसइ आदिशति मरदइ मृद्गाति । वाढइ वर्द्धयतीत्ययम्। मलइ मलते वा। निवीजइ निर्विद्यति। उघडइ उद्धटयति । लोढइ लूटयत्ययम् ७८ । अडइ अडति। सहइ क्षमते तितिक्षते सहते क्षाछूटइ छुटति। म्यते मृष्यते-ति च । ऊठइ उत्तिष्ठति मरइ म्रियते विपद्यते। नीठइ निः। कुपइ क्रुध्यति कुप्यति ईय॑ति ७९ । किरगिरइ किलगिलति। आषु(खु)डइ अवस्खलति । Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा - सप्तमः संस्कारप्रक्रमः । फडफडइ पटपटायते ध्वजा । शप शपति तु शप्यति । कडकडइ कटकटायते चक्षुः ८० । ऊकदइ उत्कूर्द्दते । कुदकुअइ कुत्परः । सन्यसइ संन्यस्यति । रंजइ रंजयत्ययम् ८१ । बीछोहइ विरहयति । मद्रम द्रद्रमति । तडफडइ तत्पदति । डड तृटत्तृटति । ८२ । झासवइ तर्जयति । षु (खु) सइ गोपायते लीयते । विलीजवर वेः । ऊदेगइ उद्वेजयति । fiss विचरति हिंडते चलति ८४ । देख पश्यति । जोअर अवलोकते बीक्ष्यते अवलो कयति । लोटइ लुट्यति लोटति । नाथइ नाथति, वृषं तु नस्तयति ८५ । स ध्वंसते । पाठवइ प्रस्थापयत्ययम् । प्रहिणोति प्रेषयति । षो(खो)त्रइ क्षतयत्यसौ ८६ । पोसह पुष्यति पुष्णाति । पुहुचइ प्रभवति । ससइ वसति । नीससइ नेस्तु । वीस वेस्तु, विभते । फड फटति ८७ । ऊपडइ उदः । चोपडइ अभ्यंगयत्ययम् । ऊवटइ उद्वर्त्तते। नीट निवर्त्तते ८८ वर्त्त वर्त्तते । आवइ आङः करांष (ख) इक्रंदति । गूंथइ ग्रंथयति ग्रनाति गुंफति ८९ । झंपावइ झंपयति झंपामाप्नोति 1 sies गाहते । अडूआलइ अवात् । मांक मंकते ९० । गाजर गर्जति । ५३ भांजइ भनक्ति । वाइ वाति । विहाइ विभाति । सीवर सीव्यति । पीसइ पिनष्टि । घोस घोषयति । हणइ हिनस्ति ९१, हंति व्यापादयति एषः । मारइ मारयति । आभिडइ आभ्यटति । पलचइ प्रलुच्यति ९२ । ऊभूआइ उद्भवति । गिलगिलावर किलगिलापयति । चांपइ संवाहयति । हिहिणइ हेषायते । मइ वमति ९३ । बइसइ उपविश्यति निषीदति । ऊलखइ उपलक्षयति । ओहटइ अपसरति विरमति । संझोरइ विसर्जयति ९४ । मोकलावर मुत्कलापयति आपृच्छति अपि च । Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा-सप्तमः संस्कारप्रक्रमः। गंधाअइ गन्धायते गन्धयति ९५। - हाकइ हातः। पडूच्छइ प्रतिपृच्छति। फूंकइ फूतः। षिसइ स्रंसते । जाकइ जातः। ओठंभइ अवष्टंनाति अवष्टंभति अव- चूकइ चूतः। ष्टंभते अपि च । .पूकइ पूतः। सांखइ संख्याति। थूकइ थूतः ठीवति । पलाणइ पर्याणयति । चीकइ चीतः कृ १००। सूजइ स्वयति । मेल्हइ मुंचति। सूजवइ शोफयति। छांटइ सिंचति। दूषइ दुष्यति। लोपइ लुपति। दोहइ दोग्धि दुग्धे च ९७ । लींपइ लिंपति। वाटइ वर्तयति। मागइ याचते वा। परतइ परेः। घूमइ घूर्णते वा। प(ख)डष(ख)डइ खटत्करोति । धाअइ धावति-ते च मुचादिषु । उपगरइ उपात् कृ उपकरोति । अथ कर्मकर्तरिनिराकरइ निराङः निराकरोति । रावइ रच्यते। पाचइ पच्यते। फरकइ स्फरति ९८ । वाजइ वाद्यते। वाहइ व्याहरति। दाझइ दह्यते। रहइ तिष्ठति रहति। खाजइ खाद्यते। भडहडइ कृ भटतः भटत्करोति । घासइ घृष्यते १०२। हेछुडइ कृ अधस अध:करोति। जणाइ ज्ञायते छेकइ छेत्तः कृ छेत्करोति । फाटइ विदीर्यते। छींकइ छीतः, क्षौति। कराइ क्रियते। धडहडइ कृ धटतः ९९। लणाअइ लूयते । १०३। ॥ इति संस्कारप्रक्रमे द्वितीयः क्रियाधिकारः॥ हेताविनन्ताः सर्वेऽपि त्व(स्वा?)र्थपाटवहेतवे । - कचित् स्वार्थेऽपि कृति वा यथानक्त्यंजयत्यपि ॥ तथा- उपसर्गेण धात्वर्थो बलादन्यत्र नीयते । विहाराहारनीहारप्रतीहारप्रहारवत् ॥ इत्थं शब्दक्रियोक्तिरन्याप्यूह्या ॥ ग्रंथाग्रं १६६। ॥इति ठ० संग्रामसिंहविरचितायां बालशिक्षायां संस्कारप्रक्रमः॥ Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा-सप्तमः उक्तिप्रक्रमः । भ्वादयो धातवस्तेभ्यः पराः स्युस्त्यादयो दश । विभक्तयोऽथ तद्योगे क्रियानिष्पत्तिरुच्यते ॥१॥ विभक्तयो यथावर्तमाना-ति तस् अन्ति, ए आते इरे, सि थस् थ, से आथे ध्वे, मि वसू मस्। ए वहे महे । ६। ते आते अन्ते, श्वस्तनी-ता तारौ तारस्, से आथे ध्वे, तासि तास्थस् तास्थ, ए वहे महे ।। तास्मि ताखस् तास्मस् । सप्तमी -यात् याताम् युस, ता तारौ तारस, यास् यातम् यात, तासे तासाथे ताध्वे, याम् याव याम। ताहे तास्वहे तास्महे । ७॥ ईत् ईयाताम् ईरन्, __ आशीः-यात् यास्ताम् यासुस्, ईथासू ईयाथाम् ईध्वम्, यास् यास्तम् यास्त, ईय ईवहि ईमहि ।२। यासम् याव यास्म। पञ्चमी-तु ताम् अन्तु, सीष्ट सीयास्ताम् सीरन्, हि तम् त, सीष्टास सीयास्थाम् सीध्वम् , आनि आव आम । सीय सीवहि सीमहि । ८॥ ताम् आताम् अन्ताम्, ___भविष्यन्ती-स्यति स्यतस् स्यन्ति, ख आथाम् ध्वम्, ऐ आवहै आमहै ।। स्यसि स्यथस् स्यथ, - ह्यस्तनी-दि ताम् अन् , स्यामि स्यावसू स्यामस्। स्यते स्येते स्यन्ते, . सि तम् त, स्यसे स्येथे स्यध्वे, अम् व म। त आताम् अन्त, स्ये स्यावहे स्यामहे ।। थास् आथाम् ध्वम्, क्रियातिपत्तिः-स्यत् स्यताम् स्यन् , इ वहि महि।४। । स्यस् स्यतम् स्यत, एवम्-एवमेवाद्यतनी ।५। स्यम् स्याव स्याम। परोक्षा-अट् अतुस् उस् , स्थत स्येताम् स्यन्त थल अथुस् अ, स्थथास् स्येथाम् स्यध्वम् , अट् व म। स्ये स्यावहि स्यामहि । १० । एवं वचन १८० । Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा - सप्तमः उक्तिप्रक्रमः । अतः ति सिमि, आनि आव आम, ऐ आवहै आम है । ..... (2) दिस्मोऽद्वितयं थल च सिजाशिरचावटोऽनिटाम् । नाम्युपधावर्णान्तधातूनामात्मने नतु । ख ( ह्यश्व ?) स्तन्यौ च विज्ञेयं गुणित्वमियतां बुधैः ॥ २ ॥ अ १, आ २, इ ३, ई ४, उ५, ऊ ६, ऋ ७, ल ८, ए ९, ओ १०, टु ११, ड्ड १२, १३, इर् १४, १५, १६, ञि १७ एते धात्वनुबन्धाः । एषां फलं यथा ५६ अ । अकारस्त्रिधा उदात्तानुदात्तसमाहारभेदात् । उच्चैरुदात्तः, परस्मैपदार्थः । नीचैरनुदात्तः, आत्मनेपदार्थः । समवृत्या समाहारः, उभयपदार्थः । १ । आ । 'आदनुबन्धाच ।' इति निष्ठायामिप्रतिषेधार्थः । 'भावादिकमणोर्वा ।' २ | इ । 'अनिदनुबन्धानाम् ।' इत्यत्र वर्जनादेव नागमार्थः । ३ । ई । 'न डीश्वीदनुबन्धवेटामपतिनिष्कुषोः ।' इति निष्ठायामिट्मतिषेधार्थः । ४ । उ । 'उदनुबन्धपूक्तिशां क्वि । इति बेडागमार्थः । ५ । ऊ ।' स्वरतिसूतिसूयत्यूदनुबन्धात् ।' इत्यसार्वधातुके बेडागमार्थः । ६ । ऋ । 'न शास्वृदनुबन्धानाम् । इती निचणपरे हस्वप्रतिषेधार्थः । ७ । ल । 'पुषादितादिकारानुबन्धार्त्तिसर्त्तिशास्तिभ्यश्च परस्मै ।' इत्यचतन्यामणर्थः । ८ । ए । 'व्यञ्जनादीनां सेटामनेदनुबन्धयन्तक्षणश्वसां वा।' इति अयतन्यां पाक्षिकदीर्घप्रतिषेधार्थः । ९ । ओ। 'स्वाद्योदनुबन्धाच ।' इति निष्ठातकारस्य नत्वार्थः । १० । टु । 'द्वनुबन्धादथुः ।' ११ । डु | 'वनुबन्धात् त्रिमक तेन निर्वृत्ते । १२ । | 'पानुबन्धभिदादिभ्यस्त्वङ् । १३ । हर् । 'इरनुबन्धाद्वा ।' इत्यद्यतन्यां परस्मै अणर्थः । १४ । ड | 'कर्त्तरि रुचादिडानुबन्धेभ्यः ।' इत्यात्मनेपदार्थः । १५ । | 'इन् प्रयुजादेरुभयम् । इत्युभयपदार्थः । १६ । त्रि । 'नुबन्धमतिबुद्धिपूजार्थेभ्यः क्तः' इति वर्त्तमाने क्तार्थः। १७ Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा - सप्तमः संस्कारप्रक्रमः। अथ गणबद्धधातूनां फलम् । भ्वादी 'पुषादि-धुतादिः' इत्यादिना अद्यतन्यामण् । 'अतो वृतादि । वृतादेरिट् । 'न स्ये स्यनी'त्यत्र श्लोके फलम् । घटादि षानुबन्ध १४ । 'षानुबन्धभिदादिभ्यस्त्वङ् ।' घटादि मानुबन्ध ७५ । 'घटादयो मानुबन्धा अन्वाख्याताः।' 'हेताविनि।' 'मानुबन्धानां हस्खः । 'इचि वा।' ज्वलादि ३० । 'वा ज्वलादि दुनीभुवो णः।' यजादि ९ । 'खपिवचियजादीनां यण् परोक्षाशीःषु ।' इति लंप्रसारणम् । तुदादौ भादि १३ । 'तुदभादिभ्य ईकारे।' इति वा निलोपः। रुदादि ५ । 'रुदादेः सार्वधातुके।' इत्ययव्यञ्जने इट् । जक्षादि ६। 'जक्षादिश्च ।' इत्यभ्यस्तसञ्ज्ञा । जुहोत्यादि २४ । 'जुहोत्यादीनां सार्वधातुके।' इति द्विवचनम् । दिवादी रधादि ८ । 'रधादिभ्यश्च ।' इत्यसार्वधातुके वेट् । अतो मुहादि ५। 'मुहादीनां वा ।' इत्यन्तस्य विरामव्यञ्जने गत्वं उत्वं च। शमादि ८ । 'शमादीनां दी? यनि ।' पुषादि ६४ । 'पुषादी'त्यादिना अद्यतन्यामण् । फूड् प्राणिप्रसवे इति स्वादि ओदनुबन्ध ९। ल्वाद्योदनुबन्धाच ।' इति निष्ठातकारस्य नत्वम् । तुदादी मुचादि ८ । 'मुचादेरागमो नकारः । स्वरादनि विकरणे।' तृन्फादि ८ । 'तृन्फादीनां शुन्फान्तानां अनि न च लुप्यते।' इति नलोपाभावः। कुटादि ३५ । 'कुटादेरनिनिचट्सु ।' इति इन इच् अट् वर्ज अगुणत्वम् । ज्यादौ प्वादि २२ । 'विकरणे प्वादीनां हृखः।' अतो ल्वादि २१ । 'ल्वाद्योदनुबन्धाच।' इति निष्ठातकारस्य नत्वम् । एवं गणबद्धधातूनां अनुबन्धिनां च फलं प्रतिधातु ज्ञेयम् । . पञ्चविधा धातवः-हखोपधाः १, दीर्घोपधाः २, व्यञ्जनोपधाः ३, आदिवराः ४, खरान्ताश्च ५। षष्ठा नामधातवः ६। तत्र हखोपधेषु अकारोपधाः। यथा पठ् । वर्तमाना - पठति । पठतः। पठन्ति । 8 Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८ बालशिक्षा - सप्तमः संस्कारप्रक्रमः । पठसि । पठथः । पठथ । पठामि । पठावः । पठामः । पठ्यते । पठ्येते । पठ्यन्ते । पठ्यसे । पठयेथे । पठ्यध्वे । पट्ये | पठ्यावहे । पठ्यामहे । सप्तमी - पठेत् । पठेताम् । पठेयुः । पठेः । पठेतम् । पठेत । पठेयम् । पठेव । पठेम । पठ्येत् । पट्येयाताम् । पश्येरन् । पठ्येथाः । पट्येयाथाम् । पट्येध्वम् । पठ्येय । पश्येवहि । पट्येमहि । पञ्चमी - पठतु । पठताम् । पठन्तु । पठ । पठतम् । पठत । पठानि । पठाव । पठाम । पठ्यताम् । पठ्येताम् । पठ्यन्ताम् । पठ्यस्व । पट्येथाम् । पठ्यध्वम् । पठ्यै । पठ्यावहै । पठ्यामहै । ह्यस्तनी - अपठत् । अपठताम् । अपठन् । अपठः । अपठतम् । अपठत । अपठम् अपठाव । अपठाम । अपव्यत । अपव्येताम् | अपव्यन्त । अपव्यथाः । अपव्येथाम् । अपव्यध्वम् । अपव्ये | अपव्यावहि । अपव्यामहि । अद्यतनी - अपाठीत् । अपाठिष्टाम् । अपाठिषुः । अपाठीः । अपाठिष्टम् । अपाठिष्ट । अपाठिषम् । अपाठिष्व । अपाठिष्म । अपठीत् । अपठिष्टाम् । अपठिषुः । अपठीः । अपठिष्टम् । अपठिष्ट । अपठिषम् । अपठिष्व । अपठिष्म । 'व्यञ्जनादीनां सेटा' मित्यादिना पक्षे वा दीर्घः । तेन अपाठीत् इत्याद्यपि स्यात् । अपाठि । अपठिषाताम् । अपठिषत । अपठिष्ठाः । अपठिषाताम् । अपठिध्वम् । Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा-सप्तमः संस्कारप्रक्रमः। अपठिषि । अपठिष्वहि । अपठिष्महि । 'न मा-मास्मयोगे' इत्यडभावे मा भवान् पठीत् । परोक्षा-पपाठ । पेठतुः । पेटुः। पेठिथ । पेठथुः। पेठुः। अटि उत्तमे वा पपाठ । पपठ । पेठिव । पेठिम । पेठे । पेठाते । पेठिरे। पेठिषे । पेठाथे । पेठिध्वे । पेठे । पेठिवहे । पेठिमहे । श्वस्तनी-पठिता । पठितारौ । पठितारः। इत्यादि। आशी:- पठ्यात् । पठिषीष्ट । इत्यादि । भविष्यन्ती-[पठिष्यति] इत्यादि । क्रियातिपत्तिः-अपठिष्यत् । इत्यादि । 'कन्सुकानौ परोक्षावच्च ।' परस्मैपदि आत्मनेपदि सार्वधातुकवत् । शन्तृङानशी तोत्वेऽनुगच्छतः । पेठिवानसौ । अनेन पेठानम् । पठन्नसौ पव्यमानमनेन । पठित्वा । पठितः। पठितवान् । पिपठिषति । पिपठिषांचकार । पिपठिषामास । पिपठिषांबभूव । अपिपठिषीत् । पिपठिषिता। कर्मणि-पिपठिष्यते। अपिपठिषि । 'चेक्रीयितान्तात् ।' इत्यात्मने पदम्। 'पापव्योभयस्याननि।' इति व्यञ्जनाद् यलोपे पापठांचके। पापठामासे । पापठांबभूवे । । 'असूभुवौ च परस्मै।' इति कर्तरि परस्मैपदं चातिदिश्यते । पापठामास । पापठांबभूव । इत्यपि । अपापठिष्ठाः । पापठिता। कर्मणि-पापव्यते । 'प्रत्ययलुकां चानाम् ।' इति प्राप्त्यभावे अपापठि । पापठिषति । 'वालुक् चेक्रीयितस्य ।' इति तल्लुकि अदादित्वं परस्मैपदं च। 'चर्करी ताद्वतिकावित्' इति सार्वधातुके गुणिनि व्यञ्जने ईट् च । पापठीति । अघोषे प्रथमः। तवर्गस्य षटवर्गाट् टवर्गः। पापहि पापहः। पापठन्ति। 'व्यञ्जनादिस्योः।' इति सिलोपः। अपापट,०पड् । अपापट्टाम्। अपापटुः । अपापठीत् । हेत्विनन्तादुभयपदम् । पाठयति-०यते, पाठयांचकार । पाठयामास । पाठयांबभूव । अपीपठत् । पाठयिता कर्मणि-पाठ्यते । अपाठि । अपाठयिषाताम् । Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बाल शिक्षा- सप्तमः संस्कारप्रक्रमः । स्यसिजाशीःश्वस्तनीषु भावकर्मार्थकासु च । खरहनग्रहदशामिडू वेज्वचेति वक्तव्यम् ॥ - अपाठिषातामित्याद्यपि । पाठयिष्यते । पाठिष्यते । पाठितः। पिपाठयिषतीत्यादि। अथ विशेषाः। 'द्वितीयचतुर्थयोः प्रथमतृतीयौ हो जः।' 'कवगर्व्य चवर्गः।' इत्यभ्यासस्यादेशाः सार्वत्रिकाः। तदभ्यासस्यादेशिनां संयोगादीनां च परोक्षायां न एत्वं अभ्यासलोपश्च । यथा-गदति । जगाद । जगदतु, जगदुः। 'अतीण घसैकखरान्तामिड्रवन्सावित्यभ्यासेन अनेकखरान्नेट् । जगद्वान् , जगदानम्। संयोगादयो यथा- ध्वज । ध्वजति । अभ्यासस्यादिव्यञ्जनमवशेष्यं अनादिलोपनीयमित्यर्थः। दध्वाज । ध्वाजयति । अदिध्वजत् । संयोगे पूर्वस्य गुरुत्वात् 'दीर्घोऽलघोरिति न दीर्घः। शसु प्लुतगती, शसु हिंसायाम् । शसति। 'न शसददवादिगुणिनामिति प्रतिषेधात् विशशंस । विशशंसतुः। विशशंसुः। उदनुबन्धस्य तु-शस्त्वा, शसित्वा, शस्तः । वद स्थैर्ये । वदति।ववाद। वादीनामपि प्रतिषेधात्, ववदतुः, ववदुः। 'वदव्रजरलन्तानां वेति नित्यं दीर्घः। अवादीत् । वद्यते । वदितम् । अयजादित्वात् संप्रसारणाभावः। व्रज, व्रजति । अव्राजीत् । चर, चरति । अचारीत् । चूर्तिः। चञ्चूयते। व्यञ्जनाभावे उरोऽप्यभावः। 'अभ्यस्तस्य चोपधाया नामिनः खरे गुणिनि सार्वधातुके' इति गुणाभावे चञ्चुरीति । चञ्चोति । चञ्चतः। चचरति । रुचादौ उदः सकर्मकश्वर । रुचादित्वात् आत्मनेपदम् । कुटुम्बमुच्चरते, उत्क्रम्य गच्छतीत्यर्थः । समस्तृतीयायुक्तः। रथेन सञ्चरते। दल त्रिफला विशरणे । फल निष्पत्तौ । फलति । पफाल। 'तृफलभजत्रपश्रन्थिग्रन्थिदम्भीनां चेति फेलतुः। फेलुः । अफालीत् । पम्फुल्यते। आदनुबन्धस्य तु - अनुपसर्गात् फुल्लक्षीवकृशोल्लाद्याः। फुल्लः । फुल्लवान् । भावे फुल्लमनेन, फलितमनेन । आदिकर्मणि क्तः। प्रफुल्लः। प्रफुलितः। कथमुत्फुल्लः सम्फुल्लः? फुल्ल विकसने इत्यचा सिद्धम् । __ज्वर, ज्वरति । ज्वरयति । 'ज्वलमलनमोऽनुपसर्गा वा ज्वलयति, ज्वालयति । उपसर्गे तु प्रज्वलयति । Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा - सप्तमः संस्कारप्रक्रमः । ६१ लड-लड(ल)योरैक्यम् । लडति । ललति । ललयति जिह्वाम् । जिह्रो - न्मन्धनादन्यत्र लालयति बालम् । भण, भणति । 'अतोऽन्तोऽनुखारोऽनुनासिकान्तस्ये' ति बम्भयते । 'भ्राजभ्रासमाषदीपजीवमीलपीडकणरणवणभणश्रणहठे लुपां चे'ति अबीभणत् । अब भाणत् । कनी, कनति । कान्तः । 'पञ्चमोपधाया त्रुटि चागुण' इति दीर्घः । चम् छम् । चमति । 'ष्ठिवु क्लम् वाचमामनी' ति आचामति । मन्तत्वाद् न पाक्षिको दीर्घः । अचमीत् । चान्त्वा, चमित्वा । चान्तः । घटादिपठितत्वादमन्तानां मानुबन्धत्वं सिद्धमेव । इह तु 'न कम्यमचम' इति प्रतिषेधात् चामयति । छमति । 'न सेटोऽमन्तस्यावमिकमिचमामिति न दीर्घः । अच्छमि । छमयति । एवं जमुझमुप्रभृतयः सेटोऽमन्ताः । क्रमु, 'क्रमः परस्मै' इत्यनि दीर्घः । क्रामति । 'भ्रास्म्लासभ्रमुक्रमुक्लमुत्रसित्रु टिलषियसिसंयसिभ्यश्च वा' । इति क्रम्यति । क्रमिता । क्रम्यते । अक्रमि । क्रमिष्यते । क्रमेः क्त्वाप्रत्यये वा । क्रन्त्वा, क्रान्त्वा क्रमित्वा । क्रान्तः। चिक्रमिषति । गत्यर्थात् कौटिल्य एव, भृशं पुनः पुनर्वा कुटिलं क्रामति । चङ्क्रम्यते । चङ्क्रमीति । चङ्कन्ति । 'पञ्चमोपधाया त्रुटि वा गुणे इति दीर्घे चङ्कान्तः । चङ्कमति । रुचादौ वृत्त्युत्साहताय - नेषु क्रमः । वृत्तिरप्रतिषेधः । उत्साहश्चेतसिको धर्मः । तायनं स्फीतता । प्राज्ञस्य क्रमते बुद्धि:, न प्रतिहन्यते इत्यर्थः । अध्ययनाय क्रमते, उत्सहते इत्यर्थः । नीतिमति श्रियः क्रमन्ते, स्फीता भवन्तीत्यर्थः । एष्वेवार्थेषु उपसर्गेभ्यश्चेत् परोपाभ्यामेव । रुचादौ आङो ज्योतिरुद्गमे । ज्योतिषां ग्रहनक्षत्रादीनां उद्गमने इत्यर्थः । गगनमाक्रमते रविः, उद्गच्छतीत्यर्थः । वेः पादाभ्यां द्विवचनस्यातन्त्र्यात्पादैरपि । साधु विक्रमते हंसः, सुष्ठु विक्रमतेऽश्वः । प्रोपाभ्यामारम्भे- प्रक्रमते, उपक्रमते भोक्तुम्, आरभत इत्यर्थः । अनुपसर्गे वा । क्रामति, क्रमते । 'सुक्रमिभ्यां परस्मै ।' इति परस्मैपदिन एवेट् । प्राक्रंस्त, प्रक्रन्ता । प्रचिक्रंसते । क्रमयति । लघुपूर्वोऽय् यपि सङ्क्रमय्य । रमु, रमते । 'व्यापरिभ्यो रमः परस्मैपदम् ।' विरमति इत्यादि । सकर्मकादपि देवदत्तमुपरमति । नित्यात्वतां खरान्तानां सृजिदृशोस्य वेट् थलि । तृचि नित्यानिटः स्फ (?) श्वेत् वेटां नित्यमिद्र थलि । Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा-सप्तमः संस्कारप्रक्रमः। विरेमिथ । विररंथ । यमिरमिनम्यादन्तानां सिरन्तश्च । व्यरंसीत् । व्यरंसिष्टाम् । व्यरंसिषुः । अरंस्त। अरंसाताम् । अरंसत । रन्ता । वनति तनोत्यादिप्रतिषिद्धेटाम् । 'घुटि पञ्चमोऽचातः' इति पञ्चमलोपः, आतश्च, अञ्च । रत्वा, रमित्वा । वा मः । विरम्य, विरत्य । रतः। रंरमीति । रंरन्ति । रंरन्तः। ... यम् , यच्छति। अयंसीत् । यन्ता। रुघा० आङो यमहनौ स्वाङ्गकर्मको च । अकर्मकात् आयच्छते, स्वाङ्गकर्मकाच आयच्छते पादम् । उद्वाहे उपयम । उपयच्छते कन्याम् , विवाहयतीत्यर्थः। हनेः सिच्यात्मने दृष्टः सूचनेऽर्थे यमेरपि । विवाहे तु विभाषैव सिजाशिषोर्गमेस्तथा ॥ उदायत । उपायत । उपायंस्त । यमयति । परिवेषणे तु यामयति । णम् , नमति । अनंसीत् । नन्ता । नत्वा, प्रणम्य, प्रणत्य । नतः। रुचा०स्तु नमी। स्वयं नमते दण्डः, खयमेव नमयति, नामयति । उपसर्गे तु उन्नमयति । . गम्ल, गच्छति । जगाम । 'गमहनजनखनघसामुपधायाः खरादावनन्यगुणे।' इत्युपधालोपे जग्मतुः। जग्मुः। जगमिथ । जगन्थ । अगमत् । गन्ता। गमिष्यति ।गम्यते । अगामि । गंस्यते। 'गमहनविदविशदृशांति कन्सौ वेट्। जग्मिवान् । जगन्वान् । जग्मानः। गत्वा, आगम्य, आगत्य। गतः। जिगमिषति । जङ्गम्यते । जङ्गमीति । जङ्गन्ति । जगन्तः। जङ्गमति । रुचा० समोऽकर्मकः । सङ्गच्छते। 'सेगमः परस्मै।' इति परस्मैपदिन एवेट। 'सिजाशिषोर्गमस्त च' इति वा पञ्चमलोपः। समगत। समगस्त । सङ्गस्यते। सञ्जिगांसते । गमयति । रुचा० गमिन् क्षान्तौ आद एव ।क्षान्तिरिह प्रतीक्षा । मामागमयख, प्रतीक्षखेत्यर्थः। जप, जपति । जपिवमिभ्यां वा । जप्तः, जपितः। 'जपादीनां च ।' इत्यनुखारः। जञ्जप्यते । जप जभ भज दह पश दंश षडेते जपादयः। हसे, हसति। जहास । अहसीत्। एदनुबन्धत्वाद न पाक्षिको दीर्घः। लगे, लगति । लग्नं सक्तम् , लगितमन्यत् । लगयति। फण, फणति । पफाण । 'भ्रमत्रसखनफणस्यमां वेति फेणतुः। पफणतुः। फणयति । गतेरन्यत्र फाणयति फाण्टम् । ___ स्यम, वन, ध्वन शब्दे । स्यमति । सस्याम । स्येमतुः। सस्यमतुः। स्वन्त्वा,स्यमित्वा। 'खपिस्यमिवेत्रांचेक्रीयते।'इति सम्प्रसारणं सेसिम्यते। Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा-सप्तमः संस्कारप्रक्रमः । 'वेश्वखने नने।' इति षत्वं विष्वणति । अवष्वणति । खनति । सखान । खेनतुः। सखनतुः। वान्तं मनः, खनितमन्यत्। ध्वनति। दध्वान।ध्वेनतुः। दध्वनतुः। ध्वान्तं तमः,ध्वनितमन्यत्। ध्वनयति। शब्दादन्यत्र ध्वानयति। चल्, चलति । चलयति शाखाम् , कम्पादन्यत्र चालयति । पत्ल, पतति । पित्सति । वञ्चिश्रंसिध्वंसिभ्रंसिकसिपतिपदिस्कंदामंतोनी । पनीपत्यते। पनीपत्ति । पतितः। सनि वेट्त्वान्निष्ठायामनिट्यपि। 'अपतिनिष्कुषोः।' इति वर्जनात् इट् । डुवमु, वमति । वान्त्वा, वमित्वा । वान्तः, वमितः । 'ग्लालावतुवमश्च । वमयति, वामयति । उपसर्गे तु उद्वमयति । तप्, सन्तापे । तपति । व्यञ्जनान्तानामित्यधिकारात् अस्य च दीर्घः। अताप्सीत् । 'धुटश्च धुटी'ति सिचलोपे अताप्ताम् । अताप्सुः। अताप्सी। अताप्तम् । अताप्त। अताप्सम् । अताप्स्व । अताप्स्म । अतापि । अतप्साताम् । अतप्सत । अतप्थाः। अतप्साथाम् । अतब्ध्वम् । अतपसि । अतपखहि । अतपस्महि । तप्ता । २० विउद्भयां तपः। अकर्मकात् वितपते । उत्तपते। वाङ्गकर्मकाच वितपते पाणिम् , उत्तपते पादम् , सन्तापयतीत्यर्थः । तपेस्तपः कर्मकात्, कत्तरि यण् । तप्यते तपस्तापसः । अनोस्तु न स्यात् । अनुतपते तपस्तापसः। अनोस्तपेरिति चेत् अन्वतप्त तापसेन । ऐश्वर्येऽर्थे विकल्पेन दिवादित्वाद् यत्वं आत्मनेपदं च । तप्यते, तपति। तप ऐश्वर्ये । वेति देवादिकेन । तातप्यते । तातपिता। अनेकखरत्वादिट् अस्त्येव । दह् , दहति । तृतीयादेर्घढधभान्तस्य धातोरादिचतुर्थत्वं सध्वोः, दादेघः। अधाक्षीत्। अदाग्धाम्। अधाक्षुः। अधाक्षी। अदाग्धम्। अदाग्ध । अधाक्षम् । अधाक्ष्व। अधाक्ष्म । अदाहि । अधक्षाताम् । अधक्षत। अदग्धाः। अधक्षाथाम् । अधरध्वम् । अधक्षि। अधक्ष्वहि । अधक्ष्महि । दग्धा । धक्ष्यति। दिधक्षति । दन्दह्यते । दन्दग्धि । अदन्दक। यम्, यभति । अयाप्सीत् । अयाब्धाम् । अयाप्सुः । यब्धा । त्यज्, त्यजति । अत्याक्षीत् । त्यक्ता। षद्ल, सीदति । सदेरमतेरिति षत्वम् । निषीदति । प्रसीदति न षत्वम् । 'दाहस्य चेति नत्वे निषन्नः। शद्ल, रुचा०शदेरनि । शीयते। शत्ता। शदेरगतौ तः। गाः शादयति, ग्रामं गमयतीत्यर्थः । गतेरन्यत्र फलानि शातयति । Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा - सप्तमः संस्कारप्रक्रमः। वद्, वदति । 'खपिवचियजादीनां यण् परोक्षाशी:ब्बिति अगुणे सम्प्रसारणम्।उवाद । ऊदतुः। ऊदुः। उवदिथ। अवादीत् ।उद्यात्। उद्यते। वदिषीष्ट । उदित्वा। उदितम् । रु० ज्ञानयत्नोपच्छन्दनेषु वदः । ज्ञानेवदते पतञ्जलिर्व्याकरणे। यत्ने-क्षेत्रे वदते। उपच्छन्दने-कर्मकरानुपवदते प्रलो(१)पत इत्यर्थः। अनोरकर्मकः । अनुवदते कठः कलापस्य । अनुशब्दः सादृश्ये पश्चादर्थे वा । यथा कलापो वदति तथा कठ इत्यर्थः । अथवा कलापस्य पश्चात् कठो वदति इत्यर्थः । विमतौ- विविधा नानाविधा मतिर्विमतिः। गेहे विवदन्ते, विमतिपतिता विचित्रं भाषन्त इत्यर्थः । व्यक्तं सहोक्तौ । सम्प्रवदन्ते ग्राम्याः, व्यक्ताक्षरं युगपद्वदन्तीत्यर्थः । वस, वसति । उवास । ऊषतुः । ऊषुः । उवसिथ । उवत्थ । सस्य सेऽसार्वधातुके तः। अवात्सीत् । अवात्ताम् । अवात्सुः। वत्सा । वत्स्यति । उष्यात् । उष्यते । वत्सीष्ट । उषित्वा । उषितम् । इति परस्मैपदिनः। यती, यतते । यतेते । यतन्ते । अयतिष्ट । यत्यते । अयाति । यत्तः। दद, ददते । ददन्ते। हद्, हदते । अहत्त । हत्ता। पच, व्यक्ती[करणे]। पचते । पक्ता। त्रपू, त्रपते । त्रेपे । त्रप्ता । त्रपिता । त्रप्तः। जभ, 'रधिजभोः स्वरे।' इति नकारागमः। जम्भते । जजम्भे। जम्भिता । जञ्जभ्यते । जम्भयति । पण, गुपूधूपविच्छिपणिपनेरायः। पणायते। पणायाञ्चके । पेणे । आयादयो असार्वधातुके वा । एवं पन च । कमु, कामयते। कमेरिनड्कारितं च । असार्वधातुके वा। चकमे। कामयामास । अचकमत । अचीकमत् । कमिता । कामयिता । कान्त्वा। कमित्वा। कामयित्वा । कान्तः, कमितः। काम्यते। कामयति। अचीकमत् । दय, दयते । दयाश्चके। बध्, बन्धने । बीभत्सते। निन्दायामेव सन् । अन्यत्र बधते। बधिता। रम, आरभते।आरेभे। आरब्ध। आरप्साताम् । आरप्सत। आरब्धा। आरप्स्यते । सनि मिमीमादारभलभशकपतपदामिः स्वरस्य । आरिप्सते। आरम्भि । आरम्भयति । Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा - सप्तमः संस्कारप्रक्रमः । एवं लभ् । किन्त्वनुपसर्गात् लभेः 'इचि वा' इति नुरागमः । अलम्भि । अलाभि। घट चेष्टायाम् । घटते । घटयति । अघटि । अघाटि । व्यथ् । व्यथते । 'व्यथेश्चेति परोक्षायामभ्यासस्येति सम्प्रसारणे विव्यथे । व्यथयति। स्खद् । स्खदते । खदयति । अवस्खदयति । परिस्खदयति । नान्योपसर्गान्मानुबन्धत्वम् , 'स्खदिरवपरिभ्यामेवेति नियमात् । केवलस्य तु मानुबन्धत्वमेव। जि त्वरा । त्वरते। 'वा रुग्यमत्वरसङ्घुषास्वनामिति वेट् । तूर्णः, त्वरितः । त्वरयति । अत्वरादीनां च । अतत्वरत् । त्वर स्मृ दृ प्रथ मृद स्तु श्य श एते त्वरादयः। षह सहने । असहिष्ट । 'वेषुसहलुभरुषरिषां तीति वेट् । सोढा। सहिता । सहिष्यते । 'दाश्वान् साह्वान् मीढ्वांश्चेति वसौ साह्वान् । सोढ़ा। सहित्वा । सोढः। सासह्यते । सासोढि । सासक्षि । चुरादौ यौजादिकेन विकल्पे नन्तत्वात् साहयति । सहति कलत्रेभ्यः परिभवम् । इत्यात्मनेपदिनः। खन् । खनति-श्ते । चखान । चख्नतुः । चख्नुः। चखनिथ । 'घुटि खनिसनिजनामिति नस्यात्वे । खात्वा, खनित्वा । ये वा। प्रखाय, प्रखन्य। चाखायते । चङ्खन्यते । खातः। डु पचष् पाके । पचति-श्ते । पपाच । पेचिथ। पपक्थ । अपाक्षीत् । अपाक्ताम् । अपाक्षुः। अपक्त। अपक्षाताम् । अपक्षत । पक्ता । शुषिपचामक वा । पकम् । पक्तिमम् । भज् । भजति-ते । बभाज । भेजे । भक्ता। शप् । शपति-ते । देवादिके शप्यति-ते । शप्ता । रुचा० शपथे। शप्तःशपथो मिथ्यानिरासनम् । छात्राय शपते कुमारी। छात्रं प्रति निजव्यलिकं निरस्यतीत्यर्थः।। ___ यज्। यजति-ते। इयाज।ईजतुः। ईजुः। इयजिथ । इयष्ठ । भृजादीनां षः । अयाक्षीत् । यष्टा । यक्ष्यति । इज्यात् । इज्यते । यक्षीष्ट । इष्ट्वा । इष्टः। ' टु वः । वपति । उवाप । ऊपतुः । अपुः । उवपिथ । उवप्थ । वप्ता । उप्यात् । उप्यते । उप्त्वा । वपित्वा । उप्तम् । Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६ वालशिक्षा-सप्तमः संस्कारप्रक्रमः । वह वहति-ते। उवाह । उहतुः। ऊहुः । उवहिथ। उवोढ । अवाक्षीत्। अवोढाम् । अवाक्षुः । अवोढ । अवक्षाताम् । अवक्षत । अवोढाः । अवक्षाथाम्। अवोड्दम् । वोढा। वक्ष्यति। उह्यते। ऊढा। ऊढः। वावह्यते। वावोढि। वावोढः। गणकृतमनित्यम् । प्रवहति, परस्मैपदमेव । इत्युभयपदिनः। __अदादौ-अदादेलग्विकरणस्य । षस् खप्ने । सस्ति । हुधुड्भ्यां हेधिः। सद्धि । सस्य ह्यस्तन्यां दौ तः । असत् । सौ वा असत्, असः। ___वश । वष्टि । अहिष्वेत्यादिना गुणे सम्प्रसारणम् । उष्टः। उशन्ति । वक्षि। उष्ठः। उष्ठ । हो उड्डि। अवट । औष्टाम् । ऊशन् । उवाश। ऊशतुः। ऊशुः । उवशिथ । उश्यते । वावश्यते । ___हन् । हन्ति । 'धुटि हन्ते सार्वधातुके' इत्यन्तलोपः। हतः।प्रन्ति । हौ जहि आशिषि तुह्यो।हतात् । ह्यस्तन्यां दिस्योः। अहन् । जघान । जन्नतुः। जघ्नुः । जघनिथ । जघन्थ । हन्तेर्वधिराशिषि। वध्यात् । अद्यतन्यां अवधीत् । वधेरिदन्तनिर्देशात् वा दी? न स्यात् । हन्ता। हनिष्यति । रुचा० आडो यमहनवाङ्गकर्मको च । अकर्मकात् आहते । आनाते । आनते । स्वाङ्गकर्मकाच आहते उरः। स्यसिजाशीरित्यादौ पाठबलादेव आत्मनेपदे वाऽवधिः। 'हनेः सिच्यात्मने दृष्टः' इति नलोपे आहत । आहसाताम् । आहसत । आवधिष्ट। आवधिषाताम् । आवधिषत । हन्यते । अघानि । अहसाताम् । 'स्यसिजाशीरित्यादिना अघानिषाताम् । इत्यादि । अवधि, अवधिषातामित्याद्यपि । हंसीष्ट । घानिषीष्ट । वधिषीष्ट। हन्ता। घानिता । हनिष्यते। घानिष्यते । जन्निवान् । जघन्वान् । जन्नानः। शतृङि घ्नन् । हत्वा, प्रहत्य । हतः । जिघांसति । 'हन्तेनी वा' जेनीयते जङ्गन्यते । जेनयीति। जेनेति । जङ्घनीति । जवन्ति । धुटि अगुणे नलोपः, जघतः। घातयति। वच । वक्ति। वक्तः ।वचन्ति । वक्षि । ही वग्घि । ह्यस्त दिस्योः अवक-ग।ब्रुवो वचिः,स चोभयपदी। उवाच । ऊचतुः। ऊचुः। उवचिथ। उवक्थ । ऊचे । अणि वचेरोदुपधायाः । अवोचत् । उच्यते । वक्षीष्ट । वक्ता । उच्यते । वावच्यते। ऊचिवान् । ऊचानः । अनुपूर्वाद् वचेः कानः कर्तव्ये एव अनूचानः । उक्त्वा । उक्तः। जिष्वप् । 'रुदादेःसार्वधातुके' इत्ययव्यञ्जने इट् । खपिति । स्वपितः। खपन्ति । ह्य०दिस्योरीट् । अखपीत् । अस्वपीः । रुदादिभ्यश्च ईट् । दिस्योः वचनादीः। पक्षे 'रुदादेरपीति केचित्' इत्यट् । अखपत् । अखपः। सुष्वाप। सुषुपतुः । सुषुपुः । सुष्वपिथ । सुष्वप्थ । खप्ता । सुप्यात् । सुषुप्सति Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा-सप्तमः संस्कारप्रक्रमः । सोषुप्यते । साषोप्ति । अत्र इडागमाभावहेतुः रुदधातौ द्रष्टव्यः। सुप्त्वा । सुप्तः । स्वापयति । असूषुपत् । सुष्वापयिषति । घञन्तादिनि असुषुपत्। सिष्यापयिषति । ___श्वस् । सार्वधातुके पूर्ववत्, किन्तु 'खसेर्वेति सप्तम्यां विकरणस्य लुगभावे विश्वसेदित्यपि । अश्वसीत् । श्वसितः। व्याङ्भ्यां वा विश्वस्तः। विश्वसितः।. भस् । बभस्ति । बभस्तः । बभसति । अबभत् । अबभस्ताम् । अबभसुः। अन उः सिजभ्यस्तविदादिभ्योऽभुवः। धन् । दधन्ति । दधन्तः । दधनति । जन् जनने । जजन्ति । कश्चित् धुटि खनिसनिजनामिति नस्यात्वे जजाति । जजन्तः। जज्ञति । 'ईड्र जनोः सध्वे च' इति इट् । जञ्जनिषि । जजान । जज्ञतुः। जजुः। जजनिथ । इति परस्मैपदिनः। वस् आच्छादने । वस्ते । वसाते । वसते । वत्से । वसिता। वसित्वा। इत्यात्मनेपदी। दिवादी-दिवादेर्यन् । कस् । कस्यति। कस्येत् । हौ कस्य । कसयति । त्रसी । त्रस्यति । त्रसति । तत्रास । त्रेसतुः । तत्रसतुः। व्यम् । अगुणे सन्ध्यक्षरे सम्प्रसारणम् । विध्यति । विव्याध । विविधतुः। विविधुः। विव्यत्थ । व्यद्धा । वेविध्यते । विद्धः।। रध हिंसायाम् । चकारात् संराधनेऽपि । रध्यति । स्वरे नागमः । ररन्धतुः। ररन्धुः । 'रधादिभ्यश्चे'त्यसार्वधातुके चेट्यपि । परोक्षायां कसौ च । सृवृभृ इत्यादिनियमान्नित्यमिट् । ररन्धिव । ररन्धिम । कश्चित् रेध्व, रेम इति । पुषादित्वादण् । अरधत् । रद्धा । रधिता। णश। प्रणश्यति। अनशत् । मस्जिनशोधुटि नागमे नंष्टा, नशिता। नंक्ष्यति, नशिष्यति । नंष्ट्वा, नशित्वा । नष्टः। शमु । शमादीनां दी? यनि । शाम्यति । अशमत् । शान्त्वा, शमित्वा । शान्तः। एवं दमु तमु श्रमु भ्रमु क्षमु लमु । तत्रापि वि० - शमयति रागान् । दर्शने तु निशामयति रूपम् । दान्तशान्तपूर्णदस्तस्पष्टच्छन्नज्ञप्ताश्चेनन्ता इति निपातनात् शान्तः, शमितः। दमयति । दान्तः । दमितः। क्षमू । क्षाम्यति । भौवादिकोऽपि भ्रमिरस्ति । भ्रम्यति । भ्राम्यति । बभ्राम । भ्रमतुः। बभ्रमतुः। Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वालशिक्षा - सप्तमः संस्कारप्रक्रमः । मदी । माद्यति । अमदत् । हर्षग्लपनयोर्मदि । मदयति मित्रम् । मदयति शत्रुम् । अन्यत्र मादयति मदिरा । इति परस्मैपदिनः। . जनी।जाजनेर्विकरणे ।जायते । जज्ञे । दीपजनवुधपूरितायिप्यायिभ्यो वेति । अजनि । अजनिष्ट । ये वा, जाजायते । जञ्जन्यते । जातः । अदादिकेन जनितः। पद् । पद्यते । अपादि । भावकर्मणोरप्येवम् । विपत्ताः, विपन्नः। पित्सते । पनीपद्यते। मन् । मन्यते । अमंस्त । मन्ता। मतः । इत्यात्मनेपदिनः। णह् । नाति-०ते । अनात्सीत् । नद्धा । इत्युभयपदी । खादौ-नु स्वादेः। शक्ल। शक्नोति। शक्तः। शनुवन्ति । शक्ता। शक्ष्यति। तुदादौ-व्यच् । तुदादेरनीत्यतोऽगुणित्वात् सं०। विचति । विव्याच । विविचतुः। विविचुः । कुटादित्वादिटोऽगुणित्वम् । विविचिथ । विचिता। वेविच्यते। इति परस्मैपदिनौ । - तनादौ-तनादेरुः । तनोति । तनुतः । तन्वन्ति । उकारलोपो वमोर्वा । तन्वः, तनुवः । तन्मः, तनुमः । तनुते। तन्वाते। तन्वते । हो तनु । अतनिष्ट। तनादेस्तथासोः परयोरनिट्त्वं पञ्चमलोपश्च कश्चिदित्याह । तन्मते अतत । अतथाः । थासूसहचरितस्तकारोऽप्येकवचनमस्यैव । तथा च श्रीमाघः "अवितथा वितथाः सखि मा गिरः।" तनोतेर्यणि वा । तायते, तन्यते । तत्वा, तनित्वा । वितत्य । ततः । तितनिषति, तितंसतीति । तितांसतीति वक्तव्यम् । __ षण् । सनोति । सनुते । असनिष्ट । पक्षे असत । असथाः। कश्चित् धुटिखनीत्यादिना नस्यात्वे, असास्त । असास्थाः । ये वा, सायते । सन्यते । सात्वा, सनित्वा । सातः । साति । सन्तिः । सतिः। सिषणिषति । क्षणु । क्षणोति । क्षणुते । अक्षणीत् । क्षत्वा, क्षणित्वा । क्षतम् । - इत्युभयपदिनः। वनु । वनुते । वान्त्वा (वत्वा?)। वनित्वा । वान्तः, वतः । वनयति। वानयति । उपसर्गे तु उपवनयति । मनु । मनुते । मनिता। मत्वा, मनित्वा । मनितः। इत्यात्मनेपदिनौ । Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा-सप्तमः संस्कारप्रक्रमः। ६९ ज्यादौ-ना त्यादेः। ग्रह् । गृह्णाति । गृहीतः। गृह्णन्ति । गृहीते। गृह्णाते। गृह्णते। आन व्यञ्जनान्ताद्धौ गृहाण । जग्राह । जगृहतुः। जगृहुः। जग्रहिथ। इटो दी? ग्रहेरपरोक्षायाम् । अग्रहीत् । अग्रहीताम्। अग्रहीषुः । ग्रहीता । गृह्यते। अग्रहि । अग्रहीषाताम् । स्यसिजाशीत्यादिना अग्राहिषाताम् इत्यादि । ग्रहीता। ग्राहिता। जिघृक्षति । जरीगृह्यते । गृहीत्वा । गृहीतः। खव् । लोः शूटौ पश्चमे च । अवर्णादूटो वृद्धिः । खौनाति । खौः। खावी । खावः। चुरादौ - चुरादेश्चेति स्वार्थे इन् । नट् । नाटयतीत्यादि पाठिवत् । छद् । छादयति । छन्नः । छादितः। क्षलू । क्षालयति । प्राचिक्षलत्। ज्ञप मानुबन्धश्च । ज्ञपयति प्रभुम् । ज्ञापने चायमिहोच्यते । मारणादिष्वर्थेषु घटादित्वादपि सिद्धम् । विश्वाराजाधातौ द्रष्टव्यः । यम च परिवेषणे । चकारेण मानुबन्धत्वमस्योत्तरस्य च धातोराकृष्यते । यमयति । परिवेषणादन्यत्र यामयति । ननु घटादौ यमोऽपरिवेषणे मानुबन्धत्वमुक्तं ततः कथं न विरोधः? सत्यम् । खार्थेऽत्र मानुबन्धत्वम्, तत्र च हेत्विति न दोषः। चप् । चपयति । नाहेतावन्ये मानुबन्धाः । ज्ञपादीन् मुक्त्वा नान्ये धातवः स्वार्थे मानुबन्धाः । इति परस्मैपदिनः। शम् । शामयते । हेत्विति । शमयति । इत्यात्मनेपदी। चट स्फुट भेदे । चाटयति । स्फोटयति । पापात घट सङ्घाते । घाटयति। हन्त्यर्थाच । एते त्रयोऽपि हन्त्यर्थाश्च सन्तश्चरादौ भवन्ति। चाटयति, आस्फोटयति, घाटयति हन्तीत्यर्थः । अर्थान्तरे तु चटति, स्फुटति, घटते इत्यर्थः । कैश्चित् युजादिभ्यो विभाषया इन् इष्यते । आङः षदः पद्यर्थे । आङः परोऽयं गत्यर्थे यजादिः स्यात् । आसादयति । आसीदति । आसात्सीत् । आङो अन्यत्र, सीदति । तनु श्रद्धोपतापयोः। तानयति । तनति । तान्त्वा, तनित्वा । अन्यत्र तनोति, तनुते । उदनुबन्धत्वं पूर्वोक्तानामेव धातूनामर्थान्तरे चुरादित्वसूचनार्थम् । Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा-सप्तमः संस्कारप्रक्रमः । वच सन्देशने । वाचयति ।वचति । वक्तीत्यन्यत्र । इति परस्मैपदिनः। तप दाहे । तापयते । तपते । अन्यत्र तप्यते, तपति। वद भाषणे । वादयते, वदते । अन्यत्र वदति । इत्यात्मनेपदिनौ । ॥ इत्यकारोपधाः ॥ अथ गुणोपधाः। तेच त्रिविधाः। इदुपधाः, उदुपधाः, ऊदुपधाश्चेति। एषां गुणिनि गुणः । इदुपधा यथा-चिट प्रेष्ये । चेटति । चिट्यते। चिचेट । चिचिटतुः। चिचिटुः। चिचेटिथ । चिचिटथुः । चिचिट । चिचेट । चिचिट । चिचिटिव । चिचिटिम । चिचिटे । अचेटीत् । अचेटिष्टाम् । अचेटिषुः। अचेटि । अचेटिषाताम् । अचेटिषत । चेटिता। चिचिड्वान् । चिचिटानः। चिटिता। 'गुणी क्त्वा सेडरुदादि-क्षुधकुशक्लिशगुधमृधमृडवदवसग्रहां व्यञ्जनादेयुपधस्यावो वेति चिटित्वा, चेटित्वा। तत्रैव 'संश्चेति वक्तव्य'मिति वचनात् चिचिटिषति, चिचेटिषति । चेचिट्यते । अभ्यस्तस्य चोपधाया नामिनः खरे गुणिनि सार्वधातुके इति गुणाभावे चेचिटीति । चेचेदि । चेचिट्टः । चेचिटति । चेटयति । अचीचिटत् । उदुपधा यथा-शुच् । शोचतीत्यादि पूर्ववत् । तथा भावादिकर्मणोर्वोदुपधात् । शोचितमनेन, शुचितमनेन । प्रशोचितः, प्रशुचितः। ऊदुपधाः यथा-धृजु । धर्जतीत्यादि पूर्ववत् । धर्जित्वा, धृजित्वा । दिधर्जिषति। दरीधृज्यते । ऊदन्तोपधानां पूर्वस्य रक् रिक रीक् । दधुंजीति। दरिधृजीति । दरीधृजीति । दर्धक्ति । दरिधतिं । दरीधर्ति। धर्जयतीति । पक्षे इनि चणि झवर्णस्य झत् । अदीधृजत् । अदधर्जत् । त्रयाणां वि० श्युतिर क्षरणे । श्योतति । शिट्परोऽघोष इति शिट् लोपे चुश्च्योत । अच्युतत् । अश्श्योतीत् । षिधु गत्याम् । सेधति परिसेधति । अत्र 'सेधतेर्गताविति वचनान्न षत्वम् । गतेरन्यत्र प्रतिषेधति पापात् । सिषेध । असेधीत् । सेधिता। __षिधु संराद्धाविति पौषादिकस्य सिध्यति । असिधत् । सेवा, सिवा । सेधित्वा, सिधित्वा । सिद्धः। षिधू शास्त्रे माङ्गल्ये च । अर्थान्तरे पुनरुदनुबन्धपूर्वक एव । अन्यथा तत्त्यागे सोऽनर्थकः स्यात् । अर्थान्तरेऽप्यनेनैव विकल्पस्य सर्वथैव सिद्धत्वात् । सेधति । उदनुबन्धत्वादसार्वधातुकचेट्यपि 'सृवृभृस्तुदुनुव एव परोक्षायाम्' इति नियमान्नित्यमिट् । सिषिधिव । सिषिधिम । सेता। सेधिता। Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा - - सप्तमः संस्कारप्रक्रमः । लुट् । लोटति । अलोटीत् । पौषादिकस्य लुट्यति । अलुटत् । स्फुटिर विशरणे | स्फोटति । अनेनैव कौटादिकेन स्फुटति । अस्फुटीत् । स्फुट विकसने इत्यस्य स्फोटते । गुप् । गोपायति । जुगोप । गोपयाञ्चकार । गोप्ता । गोपिता । गोपायिता । ७१ विदा अव्यक्ते शब्दे । क्ष्वेदति । त्रि क्ष्विदा मोचने चेदिति दिवादिकेन क्ष्विद्यति । क्ष्विण्णः । क्ष्विण्णमनेन । क्ष्वेदितमनेन । 'शीपृधृषिक्ष्विदिमिदां निष्ठा सेट्' इति गुणः । कित् । चिकित्सति । चिकित्साचकार । 'संशये च प्रतीकारे कितः सन्नभिधीयते ।' सृप्ऌ । सर्पति । असृपत् । सप्त । सिसृप्सति । सनि चानिटीतिनाम्युपधानामगुणत्वम् । दृशिर् । पश्यति। ददर्शिथ । दद्रष्ठ । गृहशोरणि गुणः, अदर्शत् । अद्राक्षीत् । अद्राष्टाम् । अद्राक्षुः । द्रष्टा । द्रक्ष्यति । रु० समोऽकर्मकः । सम्पश्यते । समदृष्ट । दृश्यते । अदर्शि । अदृक्षाताम् । स्यसिजाशीरित्यादिना अदर्शिषातामित्यादि । द्रक्ष्यते । दर्शिष्यते । ददृशिवान् । दृष्टः । स्मृदृशी च सनन्तौ तु रुचादाविति दिदृक्षते । दरीद्रष्टि । 'प्रकृतिग्रहणे चेक्रीयित लुगन्तस्यापि ग्रहणम्' इति सृजिदृशोरित्यादिना अकारागमः । क्रुश् । क्रोशति । सणनिटः । सिडंतान्नाम्युपधाददृशः । अकुक्षत् । कोष्टा । क्रोष्यति । मिह । मेहति । अमिक्षत् । मेढा । वंसौ, मीढान् । मीढः । रुहू | रोहति । अरुक्षत् । रोढा । रूढः । रोक्ष्यति । रोहयति । पक्षे रोहेः पो वा । रोपयति व्रीहीन् । खमते रुह्यर्थेऽपि रुप्यते रूपम् । इति परस्मैपदिनः । भृजी । भर्जते । भृजः खरात् खरे द्विः । बभ्रजे । भृष्टः । तिष्ट । तेपते । तेप्ता । अतितेपत् । तिज् । तितिक्षति । अतितिक्षिष्ट । क्षमायामेव सन्निष्यते । अन्यत्र तेजते । तेजयति चास्त्रम् । ष्टुभ् । स्तोभते । उपसर्गात् सुनोति - सुवति - स्यति - स्तौति स्तोभतीनामडभ्यासान्तरस्य षत्वम् । अभ्यष्टोभिष्ट । तुष्टुभे । स्तुब्धः । गुप् । जुगुप्सते, निन्दायामेव सन् । अन्यत्र गोपते । गुपू । गोपायति । गुप्यति । गुप व्याकुलत्व इति पौषादिकेन । Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२ बालशिक्षा-सप्तमः संस्कारप्रक्रमः। द्युत शुभ रुच दीप्तौ । द्योतते । द्युतादीनां 'पुषादिद्युतादी'त्यादिपाठबलादद्यतन्यामुभयपदम् । अद्युतत्। अद्योतिष्ट। एवं गुतादयः। तत्रापि वि० "तिस्वाप्योरभ्यासस्येति सम्प्रसारणम्। दिद्युते । देगुत्यते । शुभिरुचिभ्यां न स्यादित्यनयोश्चक्रीयिताभावः। जि मिदा । मेदते । मेद्यति पौषादिकस्य । मिन्नः । प्रमिन्नः । प्रमेदितः। जि विदा मोचने । खेदते । खेदिता । गात्रप्रक्षरणे पौषादिकेन खिद्यति । खेत्ता । स्विन्नः। प्रविन्नः। प्रस्खेदितः। क्षुभ् ।क्षोभते। अक्षुभत् । अन्यत्र क्षुभ्यति । क्षुभ्नाति। अक्षोभीत् । वृतु । वर्तते। अद्यतन्यां द्युतादीनां, वृतादेः स्यसनोस्तथा । आकृतिगणत्वादेव, श्वस्तन्यामुभयं कृपेः॥ तथा- अनात्मने पदस्थात्तु, वृतादेरिडू न स्ये सनि । श्वस्तन्यां च कृपेनॆव कृतादेवाऽपि सेऽसिचि ।। वय॑ति । वर्तिष्यते । विवृत्सति । विवतिषते । एवं वृधु मृधु । कृपू, कृपे रो लः। कल्पते । र......तेलश्रुतिरिति वचनात् चक्लपे । कल्प्तासि । कल्प्तासे । कल्पस्यति । कल्पिष्यति । चिक्लप्सति । चिकल्पिषते । क्लृप्तः । इत्यात्मनेपदिनः। गुहू । गोहेरूदुपधायाः । गृहति-०ते । जुगूह । जुगुहे । तृतीयादेर्घढधभान्तस्य धातोरादिचतुर्थत्वं सध्वोः । अधुक्षत् । दुह दिह लिह गुहामात्मनेपदे च तवर्गे वा सणेव । सविकल्पितपक्षे सिजपि नास्तीति । अगूढ । अघुक्षत । अघुक्षाताम् । अघुक्षन्त । अगूढाः। अघुक्षथाः। अघुक्षाथाम् । अगृहम् । अघुक्षध्वम् । अघुक्षि । अगुह्वहि । अघुक्षावहि । अघुक्षामहि । इट् पक्षे, अगृहीत् । अगूहिष्ट । गूढा । गृहिता । गूढः । जोगूढि । ह्य० दिस्योः-अजोघोट् । त्विः । त्वेषति-०ते । त्वेष्टा । इत्युभयपदिनौ। अदादौ-विद ज्ञाने । वेत्ति । वित्तः । विदन्ति । वेत्सि । वित्थः । वित्थ । वेनि । विद्वः । विद्मः। आहोब्रुवस्तु पञ्चानां, नवानां तु विदेस्तथा। अडादयो निपात्यन्ते, त्यादीनां च यथाक्रमम् ॥ Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा - सप्तमः संस्कारप्रक्रमः। ७३ वेद । विदतुः । विदुः । वेत्थ । विदथुः । विद । वेद । विद्व । विद्म । वेत्तु । विद्धि । वेदानि । विद आमः कृञ् पञ्चम्यां वा, विदाङ्करोतु । विदाङ्करवाणि । अवेत्। अवित्ताम् । अविदन् । अविदुः। सौ पदान्ते रेफप्रकृत्योरपि वा दधोस्त्वं स्यात् । अवेः। अवेत् । विदाञ्चकार । विवेद । वेदिता । रुक समोऽकर्मकः । संवित्ते। संविदाते। वेत्तेर्वा वक्तव्यम् । संविद्रते, संविदते । वेत्तेः शन्तुर्वसुः, विद्वान् , विदन् । विदित्वा । विविदिषति । 'रुदविदमुषां सनि' इत्यगुणित्वात् दिवादी सत्तायां विद्यते । तुदादौ-विद्ल लाभे । विन्दति-०ते । कंसावस्य विविद्वान् , विविदिवान् । वित्तं द्रव्यम्। रुधादौ-विद विचारणे । विन्ते । त्रिभ्योऽपि वेत्ता। मृजू । मर्जः, मार्जिः । मार्टि मृष्टः । अगुणे स्वरे वा, मृजन्ति मार्जन्ति । माक्षि । हो मृग्धि । दिस्योः अमाश् । मार्जिता । मार्टी। ____रुदिर् । 'रुदादेः सार्वधातुके' इत्ययव्यञ्जने इट् । रोदिति । रुदितः। रुदन्ति । ह्य० दिस्योरीट्, अरोदीत् । अरोदीः । रुदादेरपीति केचिदित्य, अरोदत् । अरोदः । रुदित्वा । रुरुदिषति । रोरोत्ति । अरोरोत्। 'रुदादिः पञ्चको गणः' इति संख्योक्तत्वादिट् नास्ति । 'न स्त्यनुबन्धगसंख्यैकस्वरोक्तेषु' इति वचनात् । उक्तं च स्त्यनुबन्धगुणैरुक्तं संख्ययैकवरेण वा। चेक्रीयितलगन्तानां नैतानि स्युः कदाचन ॥ कित ज्ञाने । चिकेत्ति । चिकित्तः । चिकितति । तुर् । तुतोति । तुतूतः । तुतुरति। ह्य० दिस्योः अतुतोः । धिष् । दिधेष्टि । अदिधेट । इति परस्मैपदिनः। वृजी वृक्ते। वृजाते।वृजते । वृक्षे। रौधादिकस्य, वृणक्ति । अवृणक् । यौजादिकस्य वर्जयति, वर्जति। पृची । पृक्ते । रौधादिकस्य, पृणक्ति । अपृणक् । इत्यात्मनेपदिनौ। - द्विष । द्वेष्टि। द्विष्टे। अद्वेट्। अद्विष्टाम् । अद्विषन् । अद्विषुः । द्वेष्टा। दुह्। दोग्धि । दुग्धः। दुहन्ति । धोक्षि। दुग्धे, दुहाते । दुहते। धुले। दुहाथे । धुरध्वे । ही दुग्धि । ह्य० दिस्योः अधोक् -। अधुक्षत् । दुह दिह लिह गुहामात्मने पदे च तवर्गे वा सणेव । अदुग्ध। अधुक्षत। अंधुक्षाताम् । अधुक्षन्त । अदुग्धाः । अधुक्षथाः। अधुक्षाथाम् । अदुग्ध्वम् । अधुक्षध्वम् । 10 Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा - सप्तमः संस्कारप्रक्रमः । अधुक्षि । अदुह्रहि । अधुक्षावहि । अधुक्षामहि । दोग्धा । धोक्ष्यति । दुधुक्षति । दुग्धा । दुग्ध । रु० कर्मकर्तृस्थो दुहिः, दुग्धे गौः स्वयमेव । अद्यतन्यां वा, अदुग्ध, अदोहि वा गौः स्वयमेव । be दिहू पूर्ववत् । रुचादित्वं तु न । लिहू । लेढि । लीढः । लिहन्ति । लेक्षि । लीढे । लिहाते । लिहते । लिक्षे । लिहाथे । लीद्वे । हौं लीढि । ह्य० दिस्योः, अलेट् । अलिक्षत् । अलीढ । अलिक्षत । अलिक्षाताम् । अलिक्षन्त । अलीढाः । अलिक्षथाः । अलिक्षाताम् । अलीद्वम् । अलिक्षध्वम् । अलिक्षि । अलिहहि । अलिक्षावहि । अलिक्षामहि । लेढा । लेक्ष्यति । लीढः । णिजिर् । निजि विजिविषां गुणः सार्वधातुके । नेनेति । नेनिक्तः । नेनिजानि । नेनिक्ते । हौ नेनिग्धि । अनेनेक् । अनिजत् । अनैक्षीत् । व्यञ्जनान्तानामनिटामिति वृद्धि: । अनिक्त । नेक्ता । विजिर् एवम् । विषल | वेवेष्टि | वेविष्टे । हौ वेविड्डि । अवेवेट् । अविषत् | अविक्षत । वेष्टा । इत्युभयपदिनः । दिवादौ - दिव् । 'नामिनोर्वोरकुर्युरोर्व्यञ्जने' इति दीर्घः, दीव्यति । दिदेविषति । दुद्यूषति । दिदिवान् । द्यूत्वा, देवित्वा । आद्यूनः । विजिगी - पायां तु द्यूतं वर्त्तते । विपि ग्रूः । देदीव्यते । देदिवीति । 'वोर्व्यञ्जने ये इति लोपे देदेति । छोः शूटौ पञ्चमे च चकारात् कौ धुट्यगुणे च वस्य ऊटू, देद्यूतः । देदिवति । एवमिदन्ताः । 3 1 तत्रापि वि० श्रिवु । श्रीव्यति । श्रिव्यविमविज्वरित्वरामुपधया, कौ धुट्यगुणे पञ्चमे च उपधासमं वस्य ऊटू, श्रूश्रुतः । ष्टि क्षि ष्ठिवु लम्वाचमामनीति ज्ञापकात् धात्वादेः षः सोन, ष्ठीव्यति । भ्वादि पाठाच्च ष्ठीवति क्षेवति । नृती गात्रविक्षेपे । नृत्यति । कृतादेवपि सेसिचीति वेट् । नत्र्त्स्यति । नर्त्तिष्यति । नृत्तम् । कुथ पूति भावे । कुध्यति । कुनाति । कुथ संक्लेशे इति त्र्यादिपाठात्, थफान्तानां चानुषङ्गिणामित्यत्रानुषङ्गिणां व्यावृत्त्या व्युपधत्वेऽपि विकल्पो न स्यात्, कोथित्वा । पुष । पुष्यति । पुषादीनां त्यादिना अण, अपुषत् । पोष्टा । पोक्ष्यति । अन्यत्र पोषति । पुष्णाति । अपोषीत् । पोषिता । Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा - सप्तमः संस्कारप्रक्रमः। शुष् । शुष्यति । शोष्टा । शुष्कः, शुषिपचां मकवाः। दुष् । दुष्यति। दोष्टा । दूषयति वा। चित्तविरागे-दोषयति दूषयति वा प्रज्ञाम् । श्लिष् । श्लिष्यति । बाह्वालिङ्गने सण, अणोऽपवादः, आश्लिक्षत् कन्यां बटुः । बाह्रालिङ्गनादन्यत्र आश्लिषत् जतु काष्टम् । आत्मने तु सिजेव, सणोऽपवादः, व्यत्यश्लिष्ट जतु काष्ठम् । इच् पुनः स्यादेव, आश्लेषि कन्या बटुना । चौरादिकादाश्लेषयति। क्षुध् । क्षुध्यति । क्षोद्धा । क्षुधिवसोश्च निष्ठायां चेतीट्, क्षुधित्वा । क्षुधितः। शुध् । शुध्यति । शोद्धा। दृप । दृप्यति । स्पृश मृश कृषि तृपि दृपिभ्यो वा इति पक्षे सिच, स्पृशादीनां वेति पक्षे धुटि गुणवृद्धिस्थाने अकारागमश्च । अदासीत्। अद्राप्सीत् । अदीत् । अदृपत् । रधादित्वाद्वेट्, दर्ता, द्रप्ता, दर्पिता । दृप्तः । ___ एवं तृप । स्वादि. तु दाद्योश्च । तृमोति, तृम्पति । अतीत् । यौजादिकस्य तर्पयति, तर्पति। मुह मुह्यति । अमुहत् । मुहद्रुहष्णुहष्णिहां वेति पक्षे धुटि हस्य घः, मोग्धा, मोढा, मोहिता । मोक्ष्यति, मोहिष्यति । मुग्धः, मूढः। मुक् मुट् । मोमोग्धि, मोमोढि । __ एवं द्रुह् ष्णुह ष्णिहः । द्रुहस्तु आदिचतुर्थत्वं सध्वोः। ध्रोक्ष्यति, द्रोहिष्यति । ___कृश । कृश्यति । तृषि मृषि कृशि वंचि लुश्यतां चेति कृशित्वा, कर्शित्वा। तुष हृष तुष्टौ । तुष्यति । तोष्टा । हृष्यति । अहृषत् । हृषितः । हृष् अलीके इत्यस्य तु हर्षति । अहर्षीत् । हृष्टः। कुप क्रुध रुष रोषे। कुप्यति । क्रुध्यति । क्रोद्धा । रुष्यति । वेषुसहलुभरुषरिषां ति' इति वेट रोष्टा, रोषिता । रोषिष्यति । रुष्टः, रुषितः। लुभ गायें । लुभ्यति । अलुभत् । लोब्धा, लोभिता । लोभिष्यति । लुब्धः। विमोहने लुभति । अलोभीत् । लोभिता । गृध् । गृध्यति । रु० प्रलम्भने गृधिवच्योः । गृध्यते । जरीगर्द्धि । ह्य. दिस्योः अजरीघ । सो वा धस्य रत्वे रो रे लोपमिति च कृते अजरीघाः इत्यपि। Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६ वालशिक्षा - सप्तमः संस्कारप्रक्रमः । एवं कथिताः पौषादिकाः २० । इति परस्मैपदिनः । क्लिश उपतापे । क्लिश्यते । क्लिशिता । क्लिशित्वा । त्यादौ क्लिश चिबाधने इत्यस्य क्लिश्नाति । क्लेष्टा, क्लेशिता । 'पूक्लिशोवा' इति क्लिष्टः, क्लिशितः। खिदि दैन्ये । खिद्यते । रौधादिकेन खिन्ते । परिघाते तौदादिकेन खिन्दति । खेत्ता। बुध अवगमने । बुध्यते । अबोधि । अबुद्ध । बोद्धा । भोत्स्यति । भ्वादि पाठात् बोधति । बोधिता । वुधिर् बोधने इत्यस्य बोधति-ते अबोधि । अवोधिष्ट । बोबोद्धि । ह्य०दिस्योः अबोभोत् । युध् । युध्यते । योद्धा। लिश अल्पीभावे । लिश्यति । लिश विच्छ गतौ इत्यस्य लिशति । लेष्टा । इत्यात्मनेपदिनः। मृषः क्षमायां च । मृष्यति-ते । मृषित्वा, मर्षित्वा । मर्षितः। क्षमाया अन्यत्र अपमृशितं वाक्यमाह । मृषु सहने चास्य मर्षति । मृष्ट्वा, मृषित्वा, मर्षित्वा । मृष्टम् । तितिक्षायां यौजादिकस्य मर्षयते । मर्षते । ई शुचिर । शुच्यति-ते । शुल्कः। इत्युभयपदिनौ । खादौ-जि धृषा । धृष्णोति । धर्षिता । धृष्टः । प्रधृष्टः । प्रधर्षितः । तुदादौ-मृज । सृजति । देवादिकेन सृज्यते । ससर्जिथ । सस्रष्ठ । अस्राक्षीत् । स्रष्टा । स्रक्ष्यति । सिसृक्षति । सृष्टः। रुजो । रुजति । रोक्ता । रुग्णः । भुजो । भुजति । भोक्ता । भुग्नः। छुप् । स्पृश । छुपति । छोप्ता । स्पृशति । अस्पाक्षीत् , अस्माक्षीत्, अस्पृक्षत् । स्पष्टी, स्पष्टा । स्प्रक्ष्यति, स्पयति । पिस्पृक्षति । एवं मृश। रुश रिश् । रुशति । रोष्टा । रिशति । रेष्टा । विश । विशति । वेष्टा । विविशिवान् । विविश्वान् । २० नेविंशः, निविशतम् । पिश । पिशति। कृती छेदने । कृन्तति। । कृती वेष्टने रौधादिकस्य कृणन्ति । कृन्तः। कृन्तन्ति । कृतादेापिसेसिचीति वेट, कर्व्यति, कतिष्यति । कृत्तम् । एवं भृती। Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा-सप्तमः संस्कारप्रक्रमः । कुर । कुरति । अकुत्सारोरत्र दीर्घप्रतिषेधे करोतेरेव ग्रहणोपदेशात् कूर्यते। वृहू । वृंहति । वा, वर्हिता। वृढः । ऋतो दी| न स्यात् । एवं तृहू स्तुहू। कुट् । कुटति । चुकोट । कुटादेरनिनिचट्सु, इन इच अट वर्ज अन्यत्र गुणो न स्यात् , अकुटीत् । कुटिता । चोकुटिता। कुंटादेरत्र गणोक्तत्वात् गुणनिषेधो नास्ति, चेक्रीयितलुगन्तानां न स्त्यनुबन्धेत्यादिवचनात् । इत्थं कुटादयः । इति परस्मैपदिनः । तुद् । तुदति-०ते । तोत्ता । तुन्नः । नुद् । नुदति-०ते । नोत्ता । नुन्नः । दिश। दिशति-ते । देष्टा । क्षिप् । क्षिपति-०ते । दिवादि पाठात् क्षिप्यति । क्षेप्ता। कृष् । कृषति-०ते । भ्वादि पाठात् कर्षति । चकर्ष । अकाीत, अक्राक्षीत् , अकृक्षत् । कर्टी, ऋष्टा । कयति, ऋक्ष्यति । चिकृक्षति । मुच्ल मुञ्चति-०ते । मोक्ता । मुमुक्षति-०ते । मुचेरकर्मकस्योट् वा मोक्ष्यते । मुमुक्षते वा वत्सः स्वयमेव । लुप्ल । लुम्पति-०ते । लोप्ता । अलूलुपत्, अललोपत्। लिए । लिम्पति-०ते । अलिपत् । लिम्पादीनामात्मनेपदे वा । अलिपत् । अलिप्त । लेप्ता । पिचिर । सिञ्चति-०ते । असिचत् । असिचत । असिक्त । सेक्ता । रुधादौ-रुधिर् । रुणद्धि । रुन्द्धः। रुन्धन्ति । रुन्छे । रुन्धाते । रुन्धते । हौ रुन्छि । दौ अरुणत् । सौ अरुणः। अरुणत् । अरुधत् । अरौत्सीत् । अरुद्ध । रोद्धा । भिदिर । भिनत्ति । भिन्ते । भेत्ता । इत्यादि पूर्ववत् । एवं छिदिर, क्षुदिर् । क्षुणत्तीत्यादि । रिचिर् । रिणक्ति । रिङ्क्ते । अरिणक् । रेक्ता।... एवं विचिर। एवं युजिर् । युनक्तीत्यादि । युज समाधाविति देवादिकेन युज्यते। रु० खराद्यन्तादुपसर्गादयज्ञपात्रेषु । युजिर् । उपयुङ्क्ते । प्रयुङ्क्ते । यज्ञपात्रं प्रयुनक्ति। Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा - सप्तमः संस्कारप्रक्रमः) ...उ सृदिर । कृणत्ति । मृन्ते । छर्दिता। कृतादेर्वाऽपि सेऽसिचीति वेट्, छद्मति, छर्दिष्यति । मृत्त्वा । छर्दित्वा । मृत्तः । एवमु तृदिर । इत्युभयपदिनः। पिष्ठ । पिनष्टि । पिंष्टः । पिंषन्ति । पिनक्षि । हौ पिण्ड्डि । अपिणट् । पेष्टा। एवं शिष्ल। भुज् । भुनक्ति पृथ्वीम् । हौ भुंग्धि । रु० अशने भुज् । भुङ्क्ते । भोक्ता। ओ विजी। विनक्ति। तुदादिपाठाच उद्विजते विजेरिटीत्यगुणत्वम् , उद्विजिता । उद्विग्नः । कथम् ? "उद्वेजिता वृष्टिभिराश्रयन्ते।” इनन्तस्यायं प्रयोगः । इति परस्मैपदिनः।। तनादौ-क्षिण् । क्षिणोति । क्षिणुतः । क्षिण्वन्ति । क्षिणुते। क्षिण्वाते । क्षिण्वते । क्षित्वा । क्षिणित्वा । क्षितम् । एवं तृणु, पृणु । केचित् गुणमिच्छन्ति तेन तर्णोति, पर्णोत्यपि । त्र्यादौ-मुष् । मुष्णाति । मुष्णीतः। मुष्णन्ति । हो मुषाण । मुषित्वा । मुमुषिषति । कुष् । कुष्णाति । कोषिता । अपिति निष्कुषोरिति वर्जनात् निष्कुषो वेडस्तीति गम्यते । निष्कोष्टा । निष्कोषिता । निष्कुषितः । मृदु । मृद्गाति । मृदित्वा । एवं मृडु, गुधु ।। चुरादौ-चुर् । चोरयति । अचूचुरत् । इत्यादि पाठिवत् । पृथु । पर्थयति । अपीपृथत् । अपपर्थत् । इति परस्मैपदिनः । चित् । चेतयते। अचीचितत् । अचीचितेताम् । अचीचितत । दिवु परिकूजने । देवयते । दीव्यतीत्यन्यत् ।। युज , पृच् । योजयति। पक्षे योजति । पर्चयति । पक्षे पर्चति । इति त्यादिप्रक्रमे प्रथमो हखोपधाधिकारः। अथ दीर्घोपधाः । खाह भक्षणे । खादति । चखाद । चिखादिषति । चखाद्यते। खादयति। 'न शास्वृदनुबन्धाना'मिति हखाभावे अचखादत् । शील् । शीलति । शिशील । शिशीलिषति । शेशील्यते । शीलयति । अशीशिलत्। एवं कूज् । कूजति । चुकूजेत्यादि पूर्ववत् । Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा - सप्तमः संस्कारप्रक्रमः । ७९ क्रीड् । क्रीडति । रु० अनुपरिभ्यां च क्रीडः । यथा - दिवमुपरि परि - क्रीडते ताडकेयम् । चकारादाङः, आक्रीडते । समोऽकूजने, संक्रीडन्ते कुमाराः । कूजने तु संक्रीडन्ति शकटानि, अव्यक्तं शब्दं कुर्वन्तीत्यर्थः । क्रीडयति । अचिक्रीडत् । रोड | रोडन्ति । रुरोडेत्यादि । एवं शौड़। शौडति । शुशौडेत्यादि । धूप धूपायति । दुधूप । धूपायाञ्चकार । जीव् । जीवति । जेजीवीति । वलोपे जेजेति । जेज्यूतः । भ्राजभ्रासेत्यादिना अजीजिवत्, अजिजीवत् । हेड् । हेडति । हेडयति । घटादिपाठबलात् ह्रस्वत्वे गुणो न स्यात् । अहिडि, अहेडि । हिडं २, हेडं २, केचित् हखत्वे दीर्घमिच्छन्ति, अहीडि । हीडं ही मित्यपि । इति परस्मैपदिनः । ह्लादी । ह्लादते । प्रह्लान्नः । रु० [ नाथ । ] आशिषि नाथः, सर्पिषो नाथते । आशिषोऽन्यत्र परस्मैपदमेव, नाथति माणवकम् । भ्राज । भ्राजते । भृजादीनां षः इत्यत्र राजिसहचरितस्य भ्राजेभ्रष्टः । अस्य तु भ्राक्तिरेव । वेष्ट । वेष्टते । वावेष्टि । वीष्टीत्यत्वपक्षे अववेष्टत्, अविवेष्टत् । क्षीवृ । क्षीवते । निष्ठायां अनुपसर्गात्फुल्लक्षीवेत्यादिना क्षीवः । भाम् । भामते । बाभाम्यते । कश्चिद्वंभाम्यत इत्येव । पूयी । पूयते । पूतः । प्वोर्व्यञ्जने ये । क्नूयी । क्नूयते । क्नूतः । अतिहीब्लीरी क्नूयी क्ष्माय्यादतानामन्तः पो यलोपो गुणश्च नामिनाम्, क्रोपयति । क्ष्मायी । क्ष्मायते । क्ष्मातः । क्ष्मापयति । - स्फायी ओ प्यायी वृद्धौ । स्फायते । स्फीतः । ईदनुबन्धबलात् स्फायः स्फीरादेशो भवत्यनित्य इति, स्फातः । स्फावयति, स्फायेर्वादेशः । आप्यायते । प्यायः पिः परोक्षायाम् । आपिप्ये । दीपेत्यादिना आप्यायि । आप्यायिष्ट । प्यायः पी खाङ्गे, पीनौ स्तनौ । आप्यानश्चन्द्रः । भाष । भाषते । अबी भषत् । अवभाषत् । कास्ट शब्दकुत्सायाम् । कासते । कासांचक्रे । काट भाट दीप्तौ । काशते । दैवादिकेन काश्यते । चकाशे । भासते । अवीभसत् । अवभासत् । Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा - सप्तमः संस्कारप्रक्रमः। वाह । वाहते । वाढं भृशम् , वाहितमन्यत् । गाहू । गाहते । विगाढा । विगाहिता । विगाढम् । मान् । मीमांसते । चौरादिकेन मानयति ।। टु भ्राज, टु भ्रास, टु भ्लास दीप्तौ । भ्राजते। 'राजि-भ्राजि-भ्रासिभ्लासीनां वेति वचनादेत्वं पक्षे, भेजे । बभ्राजे । अविभ्रजत् । अबभ्राजत्। 'भ्रासभ्लासित्यादिना पक्षे यन्, भ्रास्यते, भ्रासते । शेषं पूर्ववत् । एवं भ्लास । अबभ्लासत् । नित्यम् । इत्यात्मनेपदिनः। राजु । राजति-०ते । रराज । रेजतुः। रराजतुः। धावु गतिशुद्ध्यो । धावति । धौत्वा । धावित्वा । धौतः पटः । गतौ निष्ठायामडस्त्येव, धावितः। चाय । चायति-०ते । चेकीयते । चायः किश्चेक्रीयिते। दास । दासति-०ते । वंसौ दावान् । दान् । दीदांसति-०ते। शान् । शीशांसति-०ते। अदादौ - चकार । चकास्ति । चकास्तः । चकासति । अचकात् । अचकास्ताम् । यक्षादिश्चेत्यभ्यस्तत्वात् , अन उस् । अचकासुः । सौ अचकात्, अचकाः। चकासाश्चकार । अचचकासत् ।। शास् । शास्ति । शासेरिदुपधाया अण् व्यञ्जनयोः, शिष्टः । शासति । शिष्यात् । शाधि हौ । अशात् । अशिष्टाम् । अशासुः । अशात् । अशाः। अशिषत् । शासिता। शिष्ट्वा । शासित्वा । शेशिष्यते। शिष्ठः । कथं शास्तिरित्यौणादिकोऽयम् । न शास्वृदनुबन्धानामित्यशशासत् । इति परस्मैपदिनौ। आङः शासु इच्छायाम् । आशास्ते । पक्षे धातुसकारस्य धकारे लोपः, आशाध्वे । सस्य दत्वे । आशाद्ध्वे । आशास्यते । आशीशसत्। दिवादौ-दीपी । दीप्यते । दीपेत्यादिना अदीपि । अदीपिष्ट । पूरी । पूर्यते । अपूरि । अपूरिष्ट । पूर्णः । पूरयति । पूर्णः, पूरितः । जूरी । जूर्यते । जूर्णः । इत्यात्मनेपदिनः। राध, साध् । राध्यति-०ते । साध्यति-०ते। राधा । साद्धा । रानोति । सानोति । स्वादिपाठात् । चुरादौ- पूज् । पूजयति । अपूपुजत् । Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा - अष्टमः त्यादिप्रक्रमः। पीड । पीडयति । अपीपिडत् । अपिपीडत् ।। सूच । सूचयति । 'झप्रभृतिभ्यश्चेति । सोसूच्यते । सूत्र एवम् । मार्ग । मार्गयति । मार्गति । युजादित्वाद्विभाषयेत् । इति त्यादिप्रक्रमे दीर्घोपधाधिकारो द्वितीयः। अथ व्यञ्जनोपधाः । यथा- जल्प। जल्पति । जजल्प । अजल्पीत् । जिजल्पिषति । जाजल्प्यते । जल्पयति । अजजल्पत् । म्लेच्छ । म्लेच्छति । म्लिष्टमविस्पष्टम् । म्लेच्छितमन्यत् । मूर्छा । मूर्च्छति । मूर्तः। मूर्तमनेन । मूछितमनेन । प्रमूर्तः, प्रमूच्छितः । कथं मूञ्छितः ? मूर्छा अस्यास्तीति, 'तारकादिभ्य इतः' इति रूढितो दृश्यते । मूर्तिः। मूः । मुरौ । मुरः। एवं हर्च्छा, स्फूर्छा। वुण्ड (चुड्ड) दोपधोऽयम् । किपि संयोगान्तलोपे तस्य द्युतिः, चुत् । अन्यत्र च ट वर्गयोगे च ट वर्ग एव स्यात् । शुच्यी । चुच्यी । शुच्यति । शुक्तः । चुच्यति । चुक्तः।। तुर्वी । तूर्वति । तुतू । तूर्णः । तुः । तुरौ । तुरः। तक्ष । संतक्षति वाग्भिः । तनूकरणे तक्ष्णोति च । तष्टा, तक्षिता। इति परस्मैपदिनः। . स्पर्द्ध । स्पर्द्धते । पास्पद्यते । पास्पर्द्धि । ह्य० दी अपास्प । सौ अपास्प । अपास्पाः । वा धस्य रत्वे, रो रे लोपः स्वरश्च पूर्वो दीर्घः। दक्ष । दक्षते । दक्षयति । अदक्षि । अदाक्षि । घटादिपाठवलाद् अनुपधाया अपि दीर्घत्वम् ।। अदादो-चक्षिङ् । इकार उच्चारणार्थः । आचष्टे । आचक्षाते। आचक्षते । आचक्षे । आचक्षाथे । आचड्ढ्वे । असार्वधातुक० 'चक्षिङः ख्या', 'वा परोक्षायाम्', अनुबन्धत्वादुभय० आचख्यौ । आचख्ये । आचचक्षे । इत्यात्मनेपदिनः। जङ्ख् । रुदादित्वात् जक्षिति । जक्षितः। अभ्यस्तसंज्ञकत्वात् जक्षति। ह्य० 'दिस्योरीट्', अजक्षीत्। अजक्षीः। अट् वा, अजक्षत्, अजक्षः। तुदादौ-पृच्छ । पृच्छति। पप्रच्छ । पप्रच्छिथ । पप्रष्ठ । 'छशोश्चेति षत्वनिमित्ताभावे' इत्यादिना चस्य लोपे उपधाभूतस्याकारस्य दीर्घे, अप्राक्षीत् । प्रष्टा । प्रक्ष्यति । रु० 'आङः प्रच्छ'; आपृच्छते गुरुन्, 11 Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा - अष्टमः त्यादिप्रक्रमः । मुत्कलापयतीत्यर्थः। 'समोऽकर्मकः।' सम्पृच्छते । पिपृच्छिषति । परिपृच्छयते । पृष्टः । पृच्छनीयमिह रूढित्वात्सम्प्रसारणम् । प्रच्छयति । अपप्रच्छत् । एवं वश्चू। किन्तु 'क्त्वि जुत्रश्चोरिट्' नित्यम् , ब्रश्चित्वा। विवृक्षति । इट् पक्षे तु अवश्चीत् । व्रश्चिता । वृक्णः, व्रश्चेः क च । टु मस्जी। मजति। अमाक्षीत्। 'मस्जि नशोधुटि' नागमे। मङ्क्ता। मक्त्वा , मक्त्वा । मनः। विच्छ । विच्छायति । विश्नः । इति परस्मैपदिनः। ओ लस्जी । लजते । लग्नः । इत्यात्मनेपदी । भ्रस्ज। भृजति-० ते। बभ्रज । बभज। भ्रष्टा। भ्रक्ष्यति। बिभ्रक्षति । बिभ्रजिषति । बरीभृज्यते । भृष्टः । इत्युभयपदी। - चुरादौ- लक्ष। विभाषितोऽयमित्येके । लक्षयति-ते। अललक्षत् । अथानुषङ्गिणः। 'अत एव वर्जनादिदनुबन्धानां धातूनां नास्तीति तस्य च कचिल्लोपो न स्यात् । यथा टु नदि । नन्दति । ननन्द । अनन्दीत् । निनन्दिषति। नानन्द्यते। नानन्ति । अनानन्त् । सौ अनानन्त्, अनानः। वा दधोरत्वात् । नन्दितम् । नन्दयति । अननन्दत् । णिदि । निन्दति । निनिन्द । नेनिन्द्यते । एवमिदनुबन्धाः। 'अनिदनुबन्धानामगुणे अनुषङ्गलोपः।' यथा मन्थ । मन्थति । मनाति, क्रयादिपाठात्।ममन्थ। 'परोक्षायामिन्धि श्रन्थि ग्रन्थि दम्भीनामेवेति नियमात् नलोपाभावे ममन्थतुः, ममन्थुः। अमन्थीत्। मन्थिता । मिमन्थिषति । मामथ्यते । मामन्थीति। मामन्ति । 'अगुणे नलोपः', मामत्तः। मामथति। 'थफान्तानां चानुषङ्गिणाम्' इति वा गुणी, मथित्वा, मन्थित्वा । मथितः। ममथ्वान् । ममथानः। वि० खेत्यादि। लगि। लंगति। लंगि-कम्प्योरुपतापशरीरविकारयोर्नलोप' इष्यते । विलग्यते । विलगितः। वच गतौ । वश्चति । वनीवच्यते । तृषि मृषीत्यादिना वश्चित्वा, वचित्वा, वक्त्वा । वक्तः। प्रलम्भने चौरादिकेन बटुं वश्चयते। लुञ्च् । लुञ्चति । लुचित्वा, लुश्चित्वा । .. अचेत्यादि रिवि रवि धवि । रिण्वति । रविः, अत्र वकारस्य धुत्वाभावादनुखारो नास्ति, णत्वमेव स्यात्, रण्वति, धण्वति । Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा - अष्टमः त्यादिप्रक्रमः। दृहि वृहि । दहति । दृढो बलवान् । इंहितमन्यत् । 'वृहे खरेऽनिटि वाइति पक्षे पञ्चमलोपः, वर्हति, वृंहति । वृंहिता। वहक, बृहकः । परिवृढः प्रभुः । हितमन्यत् । स्कन्दिर । स्कन्दति। अस्कन्दत्। अस्कान्त्सीत्। 'अस्य च दीर्घ' इत्यत्र पृथग्योगानोपधाया अपि दीर्घत्वम् । स्कन्ता । चनीस्कद्यते। स्कत्त्वा, स्कन्वा । प्रस्कद्य । प्रस्कन्नः । दंशि। 'दंशिसञ्जिवञ्जिरञ्जीनामनि' इति नलोपे दशति। अदांक्षीत्। दंष्टा । दिदसति । दन्दश्यते । दष्टः। षञ्ज । सजति । सञ्जिग्रहणात् षत्वे नलोपाभावे अभिषञ्जति । सङ्का । 'जान्तनशामनिटाम्' इति सक्त्वा । सक्तः। इति परस्मैपदिनः। वञ्ज । परिष्वजते । 'ध्वञ्जर्वे'ति नलोपे परिषष्वजे, परिषष्वले । परिष्वङ्गा। कम्पि । कम्पते। कम्पितः। 'लंगिकम्प्योरुपतापे'त्यादिना विकप्यते। विकपितः। आङः शसि इच्छायाम् । आशंसते । आशंसुः । आशंस्यते । आशंसितम् । आङः पर एवायं प्रयुज्यते । शंसु स्तुतावित्यस्य प्रशस्यते। प्रशस्तम् । प्रशसेति । श्रंसु प्रमादे । श्रंसते । वञ्चिश्रंसीत्यादौ नीविधाने भ्रंसिसहचारिणो ग्रहणादस्य शाश्रस्यत एव । उषादिति । वञ्चिधेसीत्यादौ नीविधाने भ्रंसिसहचारिणो द्वाभ्यामपि स्यात् । अंसु भ्रंसु अवधंसने । अंसते । अद्यतन्यां द्युतादीनामित्युभयम्, असत्, अश्रंसिष्ट । शनीश्रस्यते। ध्वंसु । ध्वंसते । अध्वसत् । दनीध्वस्यते । अम्भु । श्रम्भते । अश्रभत् । स्पन्दू । स्पन्दते । अस्पन्दत् । अस्पन्तः । अस्पन्दिष्ट । स्पन्ता। स्पन्दिता । वृतादित्वात् स्पसनोरुभयम् , इट् च तयोः परस्मैपदे नेष्यते, स्पन्त्स्यति, स्पन्दिष्यते। सिस्पन्सति, सिस्पन्दिषते। स्पन्त्वा, स्पन्दित्वा। प्रस्पन्ध । स्पन्नः । इत्यात्मनेपदिनः। र । रजति, रजते। देवादिकाच रज्यति-० ते । रङ्गा । रक्त्वा , रङ्कस्वा । रक्तः। रजयति मृगान् । रञ्जुर्मूगरमणे अनुषङ्गालोपः। अन्यत्र रञ्जयति वस्त्रम् । इत्युभयपदी । Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा - अष्टमः त्यादिप्रक्रमः । स्वादौ - धिवि । 'धिन्विकृण्व्योर्धि कृ चे 'ति वा वक्तव्यम् । धिनोति, धिनुतः, धिन्वन्ति । दिधिन्व | कृषि | कृणोति । दम्भू । दनोति, दनुतः, दनुवन्ति । ददम्भ । देभतुः । देभुः । ददम्भिथ । धिप्सति, धीप्सति । दिदम्भिषति । दब्ध्वा दम्भित्वा । दब्धः । ८४ तुदादी - तृम्प | 'तृम्पादीनां शुभान्तानामनि न च लुप्यते' इति तृम्पति । तरीतृष्यते । रुधादौ - भञ्जो भनक्ति, भङ्कः, भञ्जन्ति । भनक्षि । भञ्ज्यात् । 'भङ्गधि भनजानि । ह्य०दिस्योः अभनक् । अभाङ्क्षीत् । भङ्का । भज्यते 'भञ्जेरिचि वा' अभाञ्जि, अभञ्जि । भक्त्वा, भक्त्वा । भग्नः । तुहि हिसि । गुणिनि व्यञ्जने तृहेरिद्धिकरणात्, तृणेदि । तृण्ढः । हन्ति । तृणेक्षि । तृष्टि । अतृणेट् । हिनस्ति, हिंस्तः, हिंसन्ति । ह्य० दौ अहिनत् । सौ अहिनत्, अहिनः । यादौ - बधबन्धने । बध्नाति, बध्नीतः, बध्नन्ति । हौ बधान । अभान्त्सीत् । बन्द्वा । श्रन्थ विमोचनप्रतिहर्षणयोः । श्रनाति । शश्रन्थ । श्रेथतुः । श्रेथः । शश्रन्थि । श्रथित्वा श्रन्थित्वा । एवं ग्रन्थ सन्दर्भे। रु० ‘श्रन्थि - ग्रन्थी कर्मकर्त्तृस्थौ', श्रीते, ग्रीते मालाः स्वयमेव । afe शैथिल्ये, ग्रथि वकि कौटिल्ये इति भौवादिकाभ्यां श्रन्थते, ग्रन्थते । श्रन्थ ग्रन्थ सन्दर्भे इति यौजादिकाभ्यां श्रन्थयति, श्रन्थति, ग्रन्थयति, ग्रन्थति । स्तम्भुस्तुम्भु स्कम्भु स्कुम्भु एते सौत्रा धातवः । स्तनाति, स्तनोति । स्तब्ध्वा, स्तम्भित्वा । स्तब्धः । एवं स्तुभ्वादयः । स्तम्भेस्तु 'श्विस्तम्भे'त्यादिना अस्तभत्, अस्तम्भीत् । इति परस्मैपदिनः । इति त्यादिप्रक्रमे व्यञ्जनोपधाधिकारस्तृतीयः । * अथ आदिखराः यथा - अट् । अदति । आट । आटतुः । आहुः । आटिथ । आटीत् । आटिष्टाम् । आटिषुः । मा भवानटीत् । अव्यते । आटि । आटिषाताम् । आटिषत । आदिदिषति । खरादित्वाच्चेक्रीयिता प्राप्तावत्रैव 'ऋप्रभृतिभ्यश्चेति अटाव्यते । आटयति । आटिटत् । Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा - अष्टमः त्यादिप्रक्रमः । ८५ वि० अक्षू | 'अक्षतेवें' ति अक्ष्णोति, अक्षति । 'तस्मान्नागमः परादिरन्तश्चेत् संयोगः ।' आनक्ष, आनक्षतुः, आनक्षुः । इट्यनिटि च आक्षीत् । आक्षिष्टाम् । आक्षुः । आक्षिषुः । अष्टा । अक्षिता । अक्षयति । आचिक्षत् | अर्द । अर्दति । आनद । 'संनिविभ्योऽर्देः', समर्णः, न्यर्णः, व्यर्णः । सामीप्ये भेः, अभ्यर्णा नदी । अर्दितमन्यत् । 'न नवदराः संयोगादयोsये', एतेन द्विरुच्यते, अर्दिदिषति । आर्दिदत् । अति । अन्तति । आनन्त । अन्त्यते । अन्तितिषति । आन्तितत् । अच गति - पूजनयोः । अञ्चति । अनपादाने अश्चेः समक्तः । अपादाने तु उदक्तमुदकं कूपात् उद्धृतमित्यर्थः । अश्चिता गुरवः । अश्चैः पूजायामिडिष्यते नलोपाभावश्च । अञ्च गतावित्यस्य अञ्चति - ते । अर्च । अर्चति । अनर्थ । अर्चिचिषति । आर्चिचत् । चौरादिकादयति । अज । अजति । असार्वधातुक० अजेर्वी । विवाय । विव्यतुः । विव्युः । व्यञ्जनादौ वेति केचित् । प्राजिता, प्रवेता । घञ् अल् क्यप्सु च न स्यात् । समाजः । उदजः । समज्या । अड्ड । अड्डति । दोपधोऽयम्, तस्य द्विरुक्तेरभावात् अड्डिडिषति । अम गतौ । अमति । 'वा रुष्यमत्वरसंधुषाखलाम्, अभ्यान्तः । अभ्यमितः । आमयति । अव् । अवति । ऊः । उवौ । उवः । आच्छि । आच्छति । आच्छ । आच्छतुः । आच्छुः । 'तस्मान्नागम' इत्यत्र तस्माद्दीर्घीभूतादिति व्याख्यानान्नागमो नास्ति । इट् । एटति । वृद्धौ ऐटत् । इयेट । ईंटतुः । ईदुः । इयेटिथ । ऐटीत् । एटिटिषति । एटयति । ऐटिटत् । मा भवानैटिटत् । उख । ओखति । 'उपसगवर्णस्य लोपो धातोरेदोतोः ।' प्रोखति । उवोख । खतुः । ऊखुः । इत्यादि पूर्ववत् । अटेत्यादि । ·इ गतौ । अयति । आयत् । इयाय । ईयतुः । ईयुः । इययिथ । इयेथ ऐषीत् । ऐष्टाम् । ऐषुः । एता । ऐयात् । ईयते । ऐयत । आयि । ऐषाताम् । आयिषाताम् । एष्यते । आयिष्यते । ईषिषति । ईयिवान् । ईयानः । इदि । इन्दति । 'नाम्यादेर्गुरुमतोऽनृच्छः' इत्याम्, इन्दाञ्चकार । ऐन्दीत् । Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा - अष्टमः त्यादिप्रक्रमः! ओख । ओखति । पोखति । ओखाञ्चकार । औखीत् । एज़ । एजति । ऐजीत्। ईय ईय॑। ईयति। ईक्ष्यिषिषति । ईय॑ति। 'ईय॑तेर्यशब्दस्य सनो घा द्विवचनम्', ईयियिषति । ईयिषिषति। उर्वी । उर्वति । ऊर्णः। ऊः । उरौ । उरः। उष दाहे । ओषति । प्रौषति । ओषाञ्चकार । उवोष । ऋच्छ । ऋच्छति । 'ऋकारे चेति नागमः, आनछ । आछीत् । १० समोऽकर्मक', समृच्छते । - ऋत इति सौत्रो धातुः । ऋतेर्णी यङ् वक्तव्यः, ऋतीयते । असार्वधातुके वा आनर्त्त । ऋतीयाञ्चके । ऋतित्वा, अर्त्तित्वा, ऋतीयित्वा । इति परस्मैपदिनः। एथ् एधते । 'इणेधत्योर्णः' इत्यलोपाभावे उपैधते । एधाश्चके । एधामासे । एधाम्बभूवे । कर्तरि सर्वत्र अस - भुवोः प्रयोजनात् परस्मैपदं चातिदिश्यते, एधामास एधाम्बभूवेत्यपि । ऊह । ऊहते । २०'उपसर्गादस्यत्यूही वा', समूहति-०ते। समूह्यते उपसर्गात्पक्षे हूखः, समुह्यते । खमते च हिना सिद्धम् । ऋजू । अर्जते । आनृजे । आर्जिष्ट । अय् । अयते। उपसर्गस्यायती रेफस्य लत्वम् , पलायते। 'निर्दुरोर्वा । निरयते, निलयते । पलायाञ्चक्रे । ऊयी । ऊयते । ऊतः। उङ् । अवते । ह्यआवत । ऊवे । औष्ट । औषाताम् । औषत । ओता। जयते। आवि । औषाताम् । आविषाताम् । इत्यादि । ऊषिषते । इत्यात्मनेपदिनः। अदादौ-अद्। अत्ति। ह्य 'दिस्योः अदोऽट्', आदत्, आदः। 'अदो घस्ल सनद्यतन्योः ', 'वा परोक्षायाम्', अघसत् । लदनुबन्धस्य अण् प्रयोजनकत्वात्परस्मैपद एव घस्लरादेशोऽनुमीयते । तथा केचित् घस्ल अदने इति धात्वन्तरमपि मन्यन्ते । जघास, जक्षतुः, जक्षुः। जघसिथ । आद, आदतुः, आदुः । आदिथ । अत्ता। जिघत्सति । जक्षिवान् । आदिवान् । जग्ध्वा । प्रजग्ध्य । जग्धम् । कथमन्नं आदानम् ? ते इति ज्ञापकात्। Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा - अष्टमः त्यादिप्रक्रमः । इण् । 'अणश्चे' ति निर्देशाय णकारः । एति उपैति इतः, यन्ति । 'इण'ति यत्वम् । ऐत्, ऐताम्, आयन् । इयाय, ईयतुः, ईयुः । इययिथ । इयेथ । 'इणो गा', अगात्, अगाताम्, अगुः । 'इणोऽनुपसृष्टस्य' इति ईयात् । अन्वियात् । एता । ईयते । अगायि । अगासाताम्, अगायिषाताम् । एष्यते । आयिष्यते । 'सनीणिङोर्गमिः,' जिगमिषति । इत्वा, उपेत्य । इतः । प्रत्याययति । इक् । इण वेदिकोऽपीति विशेषणार्थः ककारः । इङिकावधिपूर्वकावेव प्रयुज्येते । अध्येति । अधीतः । अधियन्तीत्यादि पूर्ववत् । 1 असु भुवि । 'अस्तेरादे' रित्यगुणे अलोपः । अस्ति, स्तः, सन्ति । असि, स्थः, स्थ । अस्मि, स्वः, स्मः । स्यात्, स्याताम्, स्युः । हौ एधि । आसीत्, आस्ताम्, आसन् । आसीः । रुचादित्वाद् व्यतिस्ते । ह एकारे वक्तव्यः, व्यतिहे । शतृङ् सन् । 'अस्तेर्भूरसार्वधातुके ।' अन् रुदादित्वात् प्राणिति, प्राणितः, प्राणन्ति । अन प्राणने इति दैवादिकेन अन्यते । ऋ गतौ । इयर्त्ति इयतः, इति । इयृयात् । ऐयः । ऐयताम् । ऐयरुः । ऐयः । अणू, आरत् । 'ऋ प्रापणे चेति भौवादिकेन ऋच्छति । आर्च्छत् । आर्षीत् । आर । आरिथ । अर्यात् । अर्त्ता । अरिष्यति । रु० 'समोऽकर्मकः ।' समियते । समृच्छते । अरिरिषति । अरार्यते । अर्यते । आरि, आर्षाताम् आरिषाताम् इत्यादि । अर्त्ता, आरिता । अरिष्यते । आरिष्यते । ऋतं निपातनात् । ऋणं देयद्रव्यम् । अर्पयति । इति परस्मैपदिनः । 3 , ईर गतौ कम्पने च । ई । ऐर्त्त । ईर क्षेपणे इति चौरादिकेन ईरयति । ईड । ईहे । 'ईड्जनोः सध्वे चे 'ति इट्, ईडिषे, ईडिध्वम् । ईश । ईष्टे । ' सध्वोरिट्', ईशिषे, ईशिध्वम् । आस् । आस्ते । आसाञ्चक्रे । आसीनः, ईतस्यासः । इङ् । अधीते, अधीयाते, अधीयते। अधीयीत । अधीष्व । अध्यैत, अध्येयाताम्, अध्यैयत । अधिजगे । अद्यतनी - क्रियातिपत्योर्वा गीरादेश इष्यते, अध्यगीष्ट, अध्यैष्ट । गी अत्र दीर्घविधानाद् गुणो नास्ति । अध्येता । अधीयते। अध्यगायि, अध्यायि । अध्यगीषाताम्, अध्यगायिषाताम् । अध्यैपाताम्, अध्यायिषाताम् इत्यादि । 'इङ्घारिभ्यां शन्तङ्ङकृच्छ्रे', अधी Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा - अष्टमः त्यादिप्रक्रमः । यन्, अन्यत्र अधीयानः। अधिजगिवान् , अधिजगानः। अधीत्य।अधीतः। अधिजिगांसते। अध्यापयति। 'इनि संश्च णोर्गा वा', अधिजिगापयिषति, अध्यापिपयिषति । अध्यजीगपत्, अध्यापिपत् । इत्यात्मनेपदिनः। ... ऊर्गुञ् । 'उतो वृद्धियंचनादौ गुणिनि सार्वधातुके', 'ऊोतेर्गुणः', प्रोर्णोति,प्रोर्णतः, प्रोणुवन्ति। प्रोणुते। 'ह्यस्तन्यां चेति गुण एव, प्रौर्णोत्, प्रौणुताम् , प्रौर्णवन् । प्रोर्णनांव । प्रोणुनुवे । इति । 'वा गुणः', प्रौर्णवीत्, प्रौर्णावीत्, प्रौर्णवीदित्यपि । प्रोर्णविता, प्रोणुविता। प्रोर्णनविषति । प्रोणुनूषति। 'ऋप्रभृतिभ्यश्च', प्रोर्णोनूयते, प्रोणूयते। प्रोर्णवितः। इत्युभयपदी। दिवादी-असु क्षेपणे । अस्यति । अणि आस्थात् । रु० 'उपसर्गादस्यत्यूही वा,' अपास्यति-० ते । अपास्थत्-त ।। ऋधु । ऋध्यति । पुषादित्वाद् आर्द्धत् । वास्तु ऋनोति । आर्द्धात् । द्वाभ्यां अर्दिधिषति, ईर्क्सति। खादौ-आपू । आमोति, आप्नुतः, आनुवन्ति । आप । आपत् । आप्ता । ईप्सति । आपयति । इति परस्मैपदिनः।। ..अशू व्याप्तौ । अनुते । आनशे । अष्टा । अशिता । वेट्यपि 'स्मिङ्पूरअवशू०' इत्यादिना नित्यम् , अशिशिषति। अश भोजने इति ज्यादिकेन अश्नाति । आश । द्वाभ्यामशाश्यते । इत्यात्मनेपदी। तुदादौ-उज् । उब्जति । उब्जाश्चकार । उब्जिजिषति । इष् । इच्छति । इयेष, ईषतुः, ईषुः । इयेषिथ । एष्टा। एषिता । एषिष्यति । इष्ट्वा, एषित्वा । इष्टः । अन्यत्र इष्यति । इष्णाति । एषिता। रुधादौ-उन्दी । उनत्ति । औनत् । समुत्तः, समुन्नः। अञ्जअनक्ति।हौ अधि। आनक् । वेट्यपि अजेः सिची ति नित्यमिट्, आञ्जीत् । अङ्का, अजिता । नित्यं आञ्जिजिषति । व्यक्तः । इति परस्मैपदिनः। नि इन्धी दीप्तौ । इन्द्धे, इन्धाते, इन्धते । ऐन्ध । समीधे । इत्यात्मनेपदी। __ तनादौ-ऋण । ऋणोति । तनायुपलक्षणं करोतिरिति केचित् , तेन समर्णोति । ऋत्वा, अर्णित्वा । ऋतम् । त्यादौ-ऋगतौ । 'प्वादीनां ह्रस्वः,'ऋणाति । आर्णात् । आरीत् । अरिता। ईर्यते । समीर्णः । इति परस्मैपदी। इति त्यादिप्रक्रमे आदिस्वराधिकारश्चतुर्थः । Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा - अष्टमः त्यादिप्रक्रमः। अथ खरान्ताः । चुरादौ अदन्ताः खरादेशाः परि(र?)निमित्तकाः पूर्वविधि प्रति स्थानिवत् इति तेषामिनि लुप्ताकारस्य स्थानित्वाद्दीर्घ-गुणौ न स्तः, समानलोपत्वाच 'णि सन्वद्भावः, उपधाया हखश्च नास्ति । यथा-कथ । कथयति । अचकथत्। गण । गणयति । अजगणत्, अजीगणत्, 'ईच गणः।' स्पृह । स्पृहयति । अपस्पृहत् । साम । सामयति । अससामत् । अघ । अघयति । आजिघत् । __ इत्यदन्ताः । आदन्ता यथा-कै। 'सन्ध्यक्षरान्तानामाकारोऽविकरणे।' कायति। चकौ, चकतुः, चकुः। चकिथ । चकाथ । अकासीत्, अकासिष्टाम् , अकासिषुः । काता । रु० 'कर्मकर्तृस्थः खरान्तो धातुरद्यतन्यां वा ।' अकास्त, अकायि वा शिष्यः स्वयमेव । कायते। अकायि । अकासाताम् , अकायिषाताम् , इत्यादि । कास्यते, कायिष्यते । चकिवान् । चकामः(नः१)। चिकासति । चाकायते । चाकेति, चाकाति, चाकीतः। चाकति । कापयति । वि० गै। गायति । 'अगुणे दा मा गायति पिबति स्थास्यति जहातीनामीकारो व्यञ्जनादौ, आशिष्येकार', गीयते । गेयात् । गासीष्ट । जिगासति । जेगीयते । जागेति, जागाति । गीत्वा। यपि 'मीनात्यादिदादीनामाः' प्रगाय । गीतम् । गाङस्तु गायते । गातम्। - ष्ठा। तिष्ठति। तस्थौ। 'स्थासेति-सेधति-सिच-सञ्ज - ध्वञ्जामडभ्यासान्तरस्य षत्वम्', प्रत्यष्टात् । अस्थात्, अस्थाताम् , अस्थुः । स्थयात् । रु० प्रतिज्ञानिर्णयप्रकाशनेषु स्था', नित्यं शब्दमातिष्ठते, अङ्गीकरोतीत्यर्थः। त्वयि तिष्ठते विवादः, त्वयि निर्णय इत्यर्थः। तिष्ठते कन्या छात्रेभ्यः, खाभिप्रायं प्रकाशयतीत्यर्थः । समवप्रविभ्यः, संतिष्ठते इत्यादि, अप्रतिज्ञाद्यर्थमिदम् । उदोऽनूचंचेष्टायाम् , मुक्तावुत्तिष्ठते, आराधयतीत्यर्थः । वा लिप्सायाम, भिक्षुको धार्मिकमुपतिष्ठति-०ते, भिक्षामहं लभेयेति धार्मिकमुपतिष्ठतीत्यर्थः । 'अकर्मकश्चेति, भोजनकाले उपतिष्ठते। उपास्थित। 'स्थादोरिरद्यतन्यामात्मने', तस्य च 'स्थादोश्चेति न गुणः, स्थीयते। अस्थायि, अस्थिषाताम् , अस्थायिषातामित्यादि । तिष्ठासति । तेष्ठीयते । तास्थेति, तास्थाति । स्थित्वा । स्थितः । स्थापयति । अतिष्ठिपत् । ____12 Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - बालशिक्षा-अष्टमः त्यादिप्रक्रमः । घेट्, पा पाने । 'विधेटोर्वा वक्तव्यम्' इति विशेषणार्थष्टकारः। धयति। पक्षे चण् , अदधत् । अधात् । अधासीत्। 'घाशाछासाधेटां वे'ति सिच्लोपो वा । धेयात् । धीयते । अधायि, अधिषाताम्, अधायिषातामित्यादि । धित्सति। देधीयते। दाधेति, दाधाति । 'उभयेषामीकार' इत्यादी दावर्जनादीकारो नास्ति, दात्तः। दाधति । धीतः । पिबति । अपात् । पिपासति । पेपीयते। पापेति, पापाति, पापीतः, पापति । पीत्वा । पीतम् । पाययति । अपीप्यत् । पातेस्तु अपासीत् । पायते । पातः। पालयति । __ पै ओवै शोषणे । पायति । अपासीत् । पायते । पातः। पाययति। अपीपयत् । उद्वायति । उद्वातः। म्लै । म्लायति । 'वासंयोगादेरस्थ' इतिम्लेयात्, म्लायात्। 'आतोsन्तस्थासंयोगादिति नत्वम् , म्लानः, म्लानिः । म्लापयति। एवं ग्लै । इनि तु ग्लपयति, ग्लापयति । सोपसर्गस्य प्रग्लापयति । ष्ट्यै स्त्यै द्वयोरुपादानादिह धात्वादेः षः सो न । ष्ट्यायति । तष्ट्यौ । स्त्यायति । तस्त्यौ । स्त्यानः । वा प्रस्त्यो मः', प्रस्तीमा, प्रस्तीतः। क्षै। क्षायति । क्षामः। घ्रा । जिघ्रति। अघ्रात् । अघ्रासीत् । 'घ्राध्मोरी', जेधीयते । प्रायते। 'हीघात्रोन्दनुदविदां वा', घ्रातः, घ्राणः। घापयति । जिघ्रतेवा, अजिनिपत [अजिघ्रपत्]। ध्मा । धमति । ध्मायते । देध्मीयते। ना। मनति । इति परस्मैपदिनः। च्युङित्यादि । गाडू श्यैङ् । गाते ३ । अगास्त । गायते । गातः। श्यायते । शीतं घृतम्, शीतो वायुः। संश्यानो वृश्चिकः, शीतेन संकुचित इत्यर्थः। मेङ् । प्रणिमयते । प्रमित्सते । प्रमेमीयते। मित्वा । यपीत्वं वेष्यते, अपमित्य, अपमाय । मितः। त्रै । त्रायते । त्रातः, त्राणः । प्यैङ् । आप्यायते । आपिप्ये, । 'प्यायः पिः परोक्षायाम् ।' इत्यात्मनेपदिनः। वेञ् । वयति-ते। 'वा परोक्षायां वेत्रश्च वयिः।' उवाय, जयतुः, ऊयुः। उवयिथ । ववौ, ववतुः, ववुः। 'खपिवची'त्यादिना संप्रसारणम् । ऊयात् । वावायते । ऊयते । उत्वा । प्रवाय । उतः। ऊः, उवौ, उवः । वाययति। Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा-अष्टमः त्यादिप्रक्रमः। व्येञ् । व्ययति-ते। 'न व्ययतेः परोक्षायामिति नाकारः, संवि. व्याय। अगुणे संप्रसारणमस्त्येव । संविव्यतुः, संविव्युः।संविव्ययिथ । 'न व्य[य] तेरट् थलोरिति सिद्धे परोक्षाग्रहणं ज्ञापयति संप्रसारणविधिरत्रानित्य इति, तेन] संविव्ययतुरित्याद्यपि । वीयात् । वीयते । उपव्याय । 'संपरिभ्यां वेति संप्रसारणम् । संव्याय, संवीय । संवीतः। व्याययति । हृञ् । हयति-०ते । जुहाव, जुहुवतुः, जुहुवुः । जुहविथ, जुहोथ । अण, आह्वत् । लिम्पादीनामात्मने पदे वा। आह्वत, आह्वास्त । हूयात् । २० 'निसंव्युपेभ्यो हा।' नियते इत्यादि । स्पर्धयामाङः, मल्लो मल्लमाह्वयते। जुहषति । जोहयते । आहूय । आहूतः । हाययति । अहवत् । जुहावयिषति। अदादौ- भा। भाति । अभात् , अभाताम् । ह्यस्तन्यनि वा स्यात्, अभान् , अभुः। ___ एवं यादयः । तत्रापि वा। वाति । निर्वातो वातः। वातादन्यत्र निर्वाणोऽग्निः । वाययति । वा जोऽन्तः, कम्पने पक्षे उपवाजयति । स्वमते वजतेः रूपम् । श्रा पाके । श्राति । श्रायत्यन्यत्र । शृतं क्षीरम् , शृतं हविः। श्राणा यवागः । श्रपयति । पाकादन्यत्र श्रापयति । पा पाति । अपासीत् । पातः। पालयति । ला। लाति । लापयति । रु० 'पूजाभिभवयोश्च लातेः', चकाराद्विप्रलम्भने च । जटाभिरालापयते, पूजामुपगच्छतीत्यर्थः । श्येनो वर्तिकामुल्लापयते, अभिभवतीत्यर्थः । कस्तामुल्लापयते, विसंवादयतीत्यर्थः । 'लीलोनलावन्तौ स्नेहद्रवीकरणे' इति पक्षे घृतं विलाळयति । स्वमते ललतेः रूपम्। ख्या । ख्याति । अण् , आख्यत्। मा । माति । माङस्तु मिमीते, मिमाते, मिमते । देवादिकस्य मीयते । मित्सति । मेमीयते । मित्वा । प्रमाय । मितम् । दरिद्रा। दरिद्राति । इकारो दरिद्रातेः, दरिद्रितः। दरिद्रियात् । चकासग्रहणमनेकखरोपलक्षणमित्याम् , दरिद्राञ्चकार । 'दरिद्रातेरसार्वधातुके' इत्याकारलोपः, परं 'यमिरमी'त्यादौ अन्तग्रहणात् दरिद्रातेरालोपो न स्यात्, आगमस्यानित्यत्वाद्विभाषैव, अदरिद्रीत्, अदरिद्रासीत् । दरिद्रिता । दरिद्यात् । दिदरिद्रिषति । दिदरिद्रासति । दरिद्यते । अदरिद्रिषातामित्यादि । दरिद्रयति । अददरिद्रत् । Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा-अष्टमः त्यादिप्रक्रमः । _ ओहाक् । ककारो 'हाग्रहोरवधौ न भवतीति विशेषणार्थः।जहाति। 'उभयेषामीकारो व्यञ्जनादावदः।' इत्वं वा वक्तव्यम् , जहितः, जहीतः, जहति । लोपः सप्तम्यां जहातेः, जह्यात् । हौ चात्वमित्वमीत्वं चेष्टम् , जहाहि, जहिहि, जहीहि । अजहुः । जिहासति । जेहीयते । इजहातेः तिव, हित्वा । विहाय । हितम् । हीनम् । हाङस्तु जिहीते, जिहाते, जिहते । जाहायते । हात्वा । हानः । इति परस्मैपदिनः। डु दाञ् । ददाति, दत्तः, ददति । ददासि, दत्थः, दत्थ । ददामि, दद्वः, दद्मः। दत्ते, ददाते, ददते । दद्यात्, ददीत । देहि, दत्तात् । अददात्, अदत्ताम् , अददुः। भौवादिकस्य दाणो यच्छति । देङो दयते । दिवादौ दो अवच्छेदने, तस्य द्यति । एवं चतुर्णामसार्वधातुके तुल्यरूपं यस्य यत्पदं तस्य तदेव ज्ञेयम् । देङस्तु 'दिगि दयतेः परोक्षायाम् ।' दिग्ये, दिग्याते, दिग्यिरे।अदात्, अदाताम् , अदुः। अदित, अदिषाताम् , अदिषत। देयात्। दासीष्ट । रु० 'आङो दाञ् अनात्मप्रसारणे' इति, आदत्ते गृह्णातीत्यर्थः । तथा 'दाण सा चेचतुर्थ्यर्थे', 'समस्तृतीयायुक्त' इति वर्तते, दास्या सम्प्र. यच्छते स्वर्ण कामुकः, दास्यै ददातीत्यर्थः । दित्सति । देदीयते । दादेति, दादाति, दात्तः, दादति । दत्त्वा । प्रदाय । दत्तम् । द्यतेस्तु दित्वा दितम् । भ्वाद्यदाद्योर्दैप्-दापोस्तु दा संज्ञा प्रतिषेधार्थः पकारः । ताभ्यां दायति । दाति । अदासीत् । दायात् । दिदासति । दादायते । दात्वा । दातः। दुधाञ् । दधाति । 'तथोश्च दधातेरि'ति चकारात् 'सध्वोच' लुप्ताकारस्य धात्रो सस्य धत्वं, धत्तः, दधति । धत्ते, दधाते, दधते। धत्से । दधातेर्हि, हित्वा । विधाय । विहितम् । शेषं दावत् । इत्युभयपदिनौ । दिवादौ-षो। स्यति। 'घाशाछासाधेटां वेति षछो सिच्लोपे, असात् असासीत् । सिषासति । सेसीयते । सित्वा । अवसितम् । साययति । छो । छयति । अच्छात् । अच्छासीत् । वा छाशोः', छित्वा, छात्वा । छितः, छातः। छाययति। एवं शो। ज्यादौ-ज्या । 'अहिखे (ज्ये) त्यादिना सम्प्रसारणम् । जिनाति, जिनीतः, जिनन्ति । जिज्यौ, जिज्यतुः, जिज्युः । जिज्यिथ, जिज्याथ । जीयात् । जजीयते । जित्वा । जीनः । ज्यानिः। ज्ञा। जानाति, जानीतः, जानन्ति । जज्ञौ । रु० निहवे ज्ञा, शतमपजानीते, अपडत इत्यर्थः। मम जानीते, ज्ञानार्थे करणे षष्ठी, मया जानातीत्यर्थः । संप्रतिभ्यामस्मृती, संजानीते, अभ्युपगच्छतीत्यर्थः । मातुः Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा-अष्टमः त्यादिप्रक्रमः। संजानातीत्यत्र स्मृत्यर्थे न भवति । स्मृदृशीत्यादौ 'अननुज्ञाश्च विज्ञेयः' इति जिज्ञासते । घटादी मारणतोषणनिशामनेषु ज्ञा, ज्ञपयति, मारयति, तोषयति, निशामयति चेत्यर्थः । जिज्ञापयिषति । चुरादौ 'ज्ञपमानबन्धश्वे'ति पाठात् ज्ञपयति चार्थम् । जिज्ञपयिषति । ज्ञीप्सति । 'ऋधिज्ञप्योरीरीतावि'तीत्वम् पक्षे ज्ञप्तः, ज्ञपितः। इत्यादन्ताः। इवर्णान्ताः । जि । जयति। जयेत् । जिज्राय, जिज्रियतुः, जिज्रियुः। जिज्रायथ, जिब्रेथ। जिज्रय, जिज्राय। अप्रेषीत् , अज्रष्टम् , अङ्ग्रेषुः।ज्रीयात्। जेता । जिजीवति । जेज्रीयते । जेब्रेति, जेजितः, जेज्रियति । जीयते । जिज्रिये । 'नाम्यन्ताद्धातोराशीरद्यतनीपरोक्षासु धो ढा', सेट्सु विभाषा सिद्धा, जिजियिढ़े-ध्वे । अज्रायि, अद्वेषाताम् , अज्रायिषातामित्यादि । जेता, नायिता। जिज्रिवान् । जिज्रियाणः । जित्वा । विज्रित्य । ईदन्तानां च तोऽन्तो न स्यात् । जितः । ब्राययति । अजिज्रयत् । वि० जि । जयति । 'जेनिःसन्- परोक्षयोः', जिगाय । 'य इवर्णस्यासंयोगपूर्वस्यानेकाक्षरस्येतीबाधकं यत्वम् , जिग्यतुः, जिग्यथुः। जिगीषति । रु० "विपराभ्यां जिः।' विजयते । विजापयति । क्षि क्षये । क्षयति । क्षीणः । क्षितवान् । क्षितमनेन । प्रक्षितश्छात्रो भवता । क्षि निवासगत्योः, क्षिणु हिंसायामिति तुदादि-ज़्याद्योस्तु क्षियति, क्षिणाति । प्रक्षित्य । इति परस्मैपदिनः।। स्मि । स्मयते । सिस्मये । अस्मेष्ट । सिस्मयिषते । रु० 'हेतुकर्तृभीस्म्योरिन्', विस्मापयते । करणाद्भये न स्यात्, कुश्चिकयैनं विस्मापयति, रूपेण विस्मापयति । वृद्धिरागमो हेतुकर्तृभय एवेष्यते। ___ डीडू । डयते । देवादिकस्य डीयते । अडयिष्ट । डयिता । डयितः । 'न डी-स्वीदनुबन्धवेटामपी'त्यादौ डीडो देवादिकस्य ग्रहणम् । तस्य तु ओदनुबन्धेषु पठितत्वात् डीनः । इत्यात्मनेपदिनौ ।। णीञ् । नयति-०ते । निन्ये । रु० 'पूजोत्क्षेपणोपनयनज्ञानभृतिविगणनव्ययेषु णीञ् ।' पूजा सन्मानम् । उत्क्षेपणं ऊर्ध्वप्रापणम् । उपनयनं आचार्यक्रिया । ज्ञानं प्रमेयनिश्चयः। भृतिः कर्ममूल्यम् । विगणनं ऋणादेनिर्यातनम् । व्ययो धर्मादिषु विनियोगः । नयते शर्ववर्मा व्याकरणे पदार्थान् , उपपत्तिभिः स्थिरीकृत्य शिष्येभ्यः प्रतिपादयति । अभिलषितार्थसंपादनमेव तेषां पूजेत्यादि । 'कर्तृस्थामूर्तकर्मश्च', क्रोधं विनयते, शमयतीत्यर्थः। Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा - अष्टमः त्यादिप्रक्रमः । श्रिञ् । श्रयति - ते । अशिश्रियत् । श्रयिता । 'न युवर्णवृतां कानुबन्धे' इति नेट्, श्रितः । श्रित्वा । शिश्रयिषति - ०ते । शिश्रीषति - ते । ड ओवि । श्वयति - ते । श्वयतेर्वेति संप्रसारणम्, शुशाव, ラ शुशुवतुः शुशुवुः । शुशविथ । शिश्वाय शिश्वियतुः शिश्वियुः । शिश्वथि । पक्षे अणचणौ श्वेरद् वक्तव्यः, अश्वत्, अशिश्वियत् । अश्वयीत् । श्वयिता । शूयात् । शिश्वयिषति - ते । शोशूयते । शेश्वीयते । शूयते । शूनः । श्वाययति । अश्शवत्, अशिश्वयत् । शुशावयिषति, शिश्वाययिषति । इत्युभयपदिनः । अदादी - वी । वेति, वीतः, वियन्ति । अवेत्, अवीताम् | अडागमेन अनेकाक्षरत्वादियादेशबाधकं यत्वम्, अव्यन् । वाययति । 'वेतेः प्रजने' इत्यात्वम् । पक्षे पुरोवातो गाः, प्रवापयति, गर्भं ग्राहयतीत्यर्थः । स्वमते दु व प्रजनेऽपि, प्रजनं गर्भग्रहणम् । ञिभी । बिभेति । 'भियो वे'ति वचनादित्वं वा, बिभितः, विभीतः । बिभ्यति । अबिभयुः । विभयाञ्चकार । विभाय । अभैषीत् । मा भैषीः । मा भैरित्यपि केचित् । रु० 'हेतुकर्तृभीस्म्योरिन् ।' भियो हेतुभये वा पुक, मुण्डो भापयते, मुण्डो भीषयते । खमते भातिरिनन्तो हेतुभयेऽपि वर्त्तते । 'भीषिचिन्ती' ति वचनाद् भियः षान्तता । ही । जिह्रेति । जिहीतः । जिहियति । अजिहयुः । जियांचकार जिहाय । ह्रीतः, हीणः । हेपयति । I कि । चिकेति । चिकितः । चिक्यति । अचिकयुः । इति परैस्मपदिनः । शीङ् । शेते, शयाते, शेरते । शयिता । अजीर्ये शाशय्यते । शेशेति । 'शीङः सार्वधातुके ।' अत्र शीङो ङानुबन्धोक्तत्वात् तदुक्तगुणो न स्यात् । 'न स्त्यनुबन्धे' त्यादिवचनात् । शेशीतः । शेश्यति । शयित्वा । अधिशय्य । शयितः । दीधीञ् । आदधीते, आदीध्याते, आदीध्यते । 'दीधीवेव्योरिवर्णयकारयोः' इत्यन्तलोपः, आदीधीत । 'दीधिवेग्योश्चेति पञ्चम्यां न गुणः, आदीध्यै । आदीधिता । एवं वेवीङ् । दिवादी - मी । मीयते । मेता । मित्सते । मीनः । दी । उपदीयते । दीङोऽन्तो यकारः खरादावगुणे, उपदिदीये । उपदाता । दिदासते । दिदीषते इति केचित् । उपदायः । दीनः । Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा - अष्टमः त्यादिप्रक्रमः। री श्रवणे । रीयते । रिणाति, ज़्यादौ । री रेषणे इत्यस्य रीणः। रेपयति। ली श्लेषणे । लीयते । लिनाति ज्यादिपाठात् । 'गुणवृद्धिस्थाने यपि चान्वमिति केचित् । विलाता, विलेता। विलाय, विलीय। विलापयति। पक्षे 'लीलोनलावन्तौ लेहद्रवीकरणे', घृतं विलीनयति । स्वमते विलीनं करोतीति तीन् । 'विसंवादाभिभवयोर्लियः कारिते' इत्यात्वपक्षे रुचादित्वात् कस्त्वामुल्लापयते । श्येनो वर्तिकामुल्लापयते । खमते लातेरेवायं प्रयोगः। ली द्रवीकरणे । यौजादिकस्य विलाययति । बीङ् । बीयते । वीणः । यादेस्तु वीणाति । बीतः। प्रीङ् प्रीतौ । प्रीयते । प्राययति । ज्यादौ प्रीञ् तर्पणे कान्तौ च । अस्य प्रीणाति । प्रीणीते। 'धूमीणात्योर्णः', इति प्रीणयति । प्रीञ् तर्पणे इति यौजादिकस्य प्राययति-०ते । प्रयति-०ते च । इत्यात्मनेपदिनः। खादौ-हि । प्रहिणोति, प्रहिणुतः, प्रहिण्वन्ति । उकारलोपो वमोवी। प्रहिण्वः, प्रहिणुवः । प्रहिण्मः, प्रहिणुमः । हौ प्रहिणु । 'हेरचणी ति . वक्तव्यादभ्यासात् हेर्घिः। प्रजिघाय । प्रजीहयत्। चिरि । जिरि । चिरिणोति । चिरयाश्चकार । चिरयिता। एवं जिरि । इति परस्मैपदिनः। डु मिङ् । मिनोति, मिनुते। ज्यादौ मीनो मीनाति, मीनीते। 'मीनाति-मिनोति-दीडां गुणवृद्धिस्थाने' इत्यात्वम् । मिमी, मिम्यतुः, मिम्युः । अमासीत् । प्रमाता । देवादिकस्य मीडो मीयते । मेता । प्रमित्सति-०ते। प्रमाय । मी गताविति यौजादिकस्य माययति । मयति । चिञ् । चिनोति । चिनुते।'चेः किर्वे'ति सन्परोक्षयोः चिकीर्षति, चिचीर्षति । चिकाय, चिचाय। चाययति । 'चिस्युराी वे'त्यात्वम् । पक्षे चापयति । स्वमते चयनेऽपि चपते रूपम् । षिञ् । सिनोति, सिनुते । क्यादिकस्य सिनाति, सिनीते। ज्यादौ-डुक्रीञ् । क्रीणाति, क्रीणीतः, क्रीणन्ति। क्रीणीते, क्रीणाते, क्रीणते । रु० 'परिव्यवेभ्यः क्रीञ्', परिक्रीणीते इत्यादि । क्रापयति । इत्युभयपदिनः। इति इवर्णान्ताः। उदन्ताः यथा-दु गतौ । दवति । दुदाव, दुदुवतुः, दुदुवुः । दुदुविथ, दुदोथ । दुदव, दुदाव, दुदविव, दुदविम । अदोषीत् । दोता। दूयात् । दूयते। अदावि । अदोषाताम् , अदाविषातामित्यादि। दोता, दाविता। दुदू Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा-अष्टमः त्यादिप्रक्रमः । षति । दोदूयते । दोदवीति । दोदोति, दोदुतः, दोदुवति । दुदुवान् । दुदुवानः । दुत्वा । संदुत्य । दुतः। दावयति । 'इनि यत्कृतं तत्सर्व स्थानिवद्' इति न्यायात् दु इति द्विर्वचने अदूदुवत् । दुदावयिषति । वि० छ। द्रवति । 'सृवृभृस्तुद्रुस्रुश्रुव एव परोक्षायाम्' इत्यनिट् । दुद्रुम । थलि तु पूर्ववत् । 'श्रीगु इत्यादिना चण् । अदुद्रवत् । द्रावयति । अदुद्रवत्। श्रुद्रुस्तुमुप्लुच्युङां वा वक्तव्यम्। दिद्रावयिषति । दुद्रावयिषति। एवं स्तु। श्रु श्रवणे । शृणोति, शृणुतः, शृण्वन्ति । शुश्रुव । अौषीत् । २० 'समोऽकर्मकः।' संशृणुते, अंगीकरोतीत्यर्थः । रुचादौ 'श्रुरनाङ् प्रतीति । सनन्तात् शुश्रूषते । शिश्रावयिषति, शुश्रावयिषति । प्रसवे । सवति । अदादिकेन सौति, सुतः, सुवन्ति । सुञ् अभिषवे इति सौवादिकेन सुनोति । सुनुते । उपसर्गात् 'सुनोति-सुवति-स्यतिस्तौति-स्तोभतीनामडभ्यासान्तरेऽपीति षत्वम्, अभ्यषुणोत् । 'स्तुसुधुभ्यः परस्मै' इति सिचीट्, प्रासावीत् । सोता। इति परस्मैपदिनः। कुङ्। कवते। अकोष्ट। 'न कवतेश्चक्रीयिते', कोकूयते खरः। कौतिकुवत्योस्तु चोकूयते। रुङ् । रवते । रोता । रौतेस्तु रविता । 'उवर्णस्य जान्तस्थापवर्गपरस्यावर्णे' इतीत्वम् , रिरावयिषति । अरीरवत् । . अदादौ-हुङ् । अपहुते, अपहृवाते, अपहृवते । इत्यात्मनेपदिनः। यु। यौति, युतः, युवन्ति । युहि । यविता । 'इवन्तर्धेत्यादिना सनि वेट्, यियविषति, युयूषति । 'न ,युवर्णवृतां कानुबन्धे' इति नेट्, युत्वा । युतम् । _णु । नौति । 'तुरुणुस्तुल्य ई वानदी ।' नुतः, नुवन्ति । प्रणविता । 'उवान्ताचे ति सनि नेट्, नुनूषति । नुत्वा । नुतः। आङो रु० आनुते शृगालः, उत्कण्ठापूर्व संशब्दनं करोतीत्यर्थः। णु । क्ष्णौति । क्षणविता। चुक्ष्णूषति । क्ष्णुत्वा । क्ष्णुतम् । रु० समः क्ष्णु । संक्ष्णुते शस्त्रम् , उत्तेजयतीत्यर्थः। एवं स्लुनमौ स्वयं प्रस्तुते गौः, खयमेव पयो मुश्चतीत्यर्थः।। - टुक्षु रु कु शब्दे । क्षौति । क्षविता। चुक्षुषति । क्षुतम् । रौति । रवीति । रविता । रुरूषति । रुतम् । कौति । कोता। कौति शब्दमात्रे । कुवतिराखिरे । कवतिरव्यक्ते शब्दे । Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा-अष्टमः त्यादिप्रक्रमः । हु। जुहोति, जुहुतः, जुह्वति । जुहुधि । अजुहवुः । जुहवाञ्चकार । जुहाव । इति परस्मैपदिनः।। टुञ् । स्तौति, स्तवीति, स्तुतः, स्तुवन्ति । स्तुते, स्तुवाते, स्तुवते । तुष्टाव । तुष्टुवे । तुष्टु । पक्षे 'सिचीट्' अस्तावीति ।। खादौ-धुञ् कम्पने । धुनोति । धुनुते । प० 'सिचीट् ।' अधावीत् । इत्युभयपदिनौ। तुदादौ-[गु] गुवति । कुटादित्वात् । गुता । गतौ भौवादिकस्य गवते। गोता। एवं ध्रु । भौवादिकस्य ध्रवति । ध्रोता । इति परस्मैदिनः। कुङ् । कुवते। कुता। अन्यत्र कोता । कश्चिद् दीर्घान्तमाह । "आकूतमस्याः प्रतिभाति रम्य"मिति । इत्यात्मनेपदी। ज्यादौ-स्कुञ् । स्कुनाति । स्कुनीते । स्कुनोति । स्कुनुते । युञ् । युनाति । युनीते। योता । यौतेसु (स्तु ?) यविता। इत्युभयपदिनौ। इत्युदन्ताः । ऊदन्ताः । भू। भवति । भवेत्। 'अस्तेश्च भूः।' 'भुवो वोऽन्तः परोक्षाद्यतन्योरिति विभक्तिखरे बभूव, बभूवतुः, बभूवुः । बभूविथ । घभूविव-०म। अभूत् , अभूताम् , अभूवन्। भविता। भूयते। 'भवतेरः', अत्र कर्तृनिर्देशाद् भावकर्मणोरत्वं नेक्ष्यते, तेन बुभूवे । अन्वभावि । अन्वभविषाताम् , अन्वभाविषाताम् , इत्यादि । बुभूषति । बोभूयते । बोभवीति, बोभोति, बोभूतः। बोभुवति। भुवो व्यक्त्यन्तरेऽपि सिचो लुगस्त्येव । 'अभुव' इत्यनु सः प्रतिषेधो वोऽन्तश्च नास्ति । अबोभूत्, अबोभूताम् , अबोभुवुः। बभूवान् । बभूवानः। भूत्वा। भूतः। भावयति। विभावयिषति । इति परस्मैपदी। पू । पवते। पुपुवे। अपविष्ट। पविता। 'स्मिङ्पूडू' इत्यादि नेट् , पिपविषते। 'पूक्लिशोर्वा', पूत्वा, पवित्वा। पूतः, पवितः। झ्यादिपाठात् पुनाति । पुनीते । पूतः। पुपूषति । अदादौ-घूङ् प्राणगर्भविमोचने । सूते । सुवाते । सुवते। 'सूतेः पञ्चम्यामि'त्यगुणित्वम्, सुवै। चेक्रीयितलुगि सोषवाणि; सूतेरत्र तिपोक्तत्वात् तदुक्तगुणप्रतिषेधो नास्ति । खूङ प्राणिप्रसवे इति देवादिकस्य सूयते । 'खरति-सूति-सूयत्यूदनुबन्धादिति वेट, सोता, सविता । षूप्रेरणे इति तौदादिकस्य सुवति । 13 Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा - अष्टमः त्यादिप्रक्रमः । सविता । सूत्वा । सूतः। देवादिकस्य प्रसूनः, प्रसूनवान् । इत्यात्मनेपदिनः। बेञ् । ब्रवीति, ब्रूतः, ब्रुवन्ति । ब्रवीषि, बेथः, बेथ । 'आहो ब्रुवस्तु पश्चानामि'ति त्यादीनामडादयो निपात्यन्ते, आह, आहतुः, आहुः। आत्थ, आहथुः । ब्रूते, बुवाते, ब्रुवते। अब्रवीत् । असार्वधातुके ब्रुवो वचिः, उवाच । ऊचे। इत्युभयपदी। तुदादौ-णू स्तवने । नुवति । कुटादित्वात् अनुवीत् । नुविता । नुनूषति । नूतः । इति परस्मैपदी। प्रयादौ-लू । लुनाति । लुनीते। लविता । लुलूषति । लूनः । लूनिः। लिलावयिषति । - धूञ् कम्पने । धुनाति, धुनीते। धविता। दुधूषति। धूनः। कश्चित् खादावपि पठति, तदा धुनोति । धुनुते । धूतः। धूनयति । यौजादिकस्य धावयति । कश्चित् धूनयति । धवति । धवते । धू विधूनने इति तौदादिकस्य धुवति । अधुवीत् । धुविता। धूतं वनम् । धावयति। इत्यूदन्ताः। ऋदन्ताः । गृ। गरति । जगार, जग्रतुः, जनः। जगर्थ । जगर, जगार । जग्रिम । अगार्षीत्, अगाष्टम् , अगाएः। गर्ता। 'हनृदन्तात्स्ये इतीट् , गरिष्यति। ग्रियात् । ग्रियते । जये। अगारि, अगृषाताम् , अगारिषातामित्यादि। गृषीष्ट, गारिषीष्ट। गरिष्यते, गारिष्यते। जिगीर्षति। जेग्रीयते । जेपयीति । जेनेति । जेग्रीतः । जेग्रियति । जगृवान् । जग्राणः । गृब्धा । विगृत्य । गृतं । गारयति । वि० सृ वेगे धावति । अन्यत्र प्रियामनुसरति । असार्षीत् । आदादिकस्य । ससति । असरत् । समृम । स्मृ । स्मरति । सस्मार। 'ऋतश्च संयोगादेरिति परोक्षायामगुणे गुणः, सस्मरतुः। सस्मरुः। 'गुणोऽर्तिसंयोगाद्योरिति ये स्मर्यात् । स्मयते। अस्मारि। अस्मृषाताम् । तथा। 'ऋवृवृडां सनीड्वा स्यात्, आत्मने च सिजाशिषोः। संयोगादेतो वाच्यः, सुङसिद्धो बहिर्भवः। इति अस्मरिषाताम् , अस्मारिषाताम् इत्यादि। स्मृषीष्ट, स्मारिषीष्ट, स्मारिषीष्ट । 'उरोष्ट्योपधस्य च', 'स्मृदृशी तु', 'सनन्तौ त्वि'ति रुचादित्वात् सुस्मूर्षते । पक्षे सिस्मरिषति। स्मरणादन्यत्र विस्मारयति । असस्मरत् । 'अत्वरादीनां च ।' Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बाल शिक्षा-अष्टमः त्यादिप्रक्रमः। स्वृ । स्वरति । वर्ता । खरिता। वरिष्यति । रु० समोऽकर्मका, संखरते इति परस्मैपदिनः। धृञ् धारणे । धरति । धृङ् अवध्वंसने इत्यत्र धरते । धृङ्गः अनवस्थाने इति तौदादिकस्य ध्रियते, इरन्यगुणे। __हृञ् । हरति-० ते । रु० गत्यनुकरणे हृञ् । पैतृकमश्वा अनुहरन्ते, पितुरागतं पैतृकम् , पितृवत् अश्वा गच्छन्तीत्यर्थः । हृ प्रसह्यकरणे इत्यादादिकस्य जहर्ति । अजहरुः।। भृश् । भरति-० ते । डु भृजित्यादादिकस्य बिभर्ति, बिभृतः, बिभ्रति। विभृते । अविभः, अविभृताम् , अविभरुः । बिभराञ्चकार, बभार । बिभरिषति, बुभूर्षति । बोभूर्यते । भ्रियते। इत्युभयपदिनः । अदादौ-घृ, घर्ति । ह्य० दिस्योः, अजघः। - पृ पालनपूरणयोः। पिपत्ति । अपिपः। पृ प्रीताविति सौवादिकेन पृणोति । पृङ् व्यायाम इति तौदादिकेन व्याप्रियते । पृ पूरणे इति चौरादिकेन पारयति । ___ जाय। जागर्ति, जागृतः, जाग्रति । अजागः, अजागृताम् , अजागरुः। जागराश्चकार। जजागार । अजागरीत् । जागरिता । जागर्यात् । जागराञ्चके। जजागरे । अजागारि, अजागरिषाताम् , इत्यादि। जागराञ्चकृवान् । जजागर्वान् । जागराञ्चक्राणम् । जजागरणम् । जागरितः। जागरयति । अजीजागरत् । अनेकव्यवहितेऽपि लघुनि स्यादेवेति 'गतमिति सन्वद्भावो दीर्घश्च । इति परस्मैपदिनः। खादौ-स्तृञ् । स्तृणाति । स्तृणुते । तस्ता। वृञ् वरणे । वृणोति । वृणुते । यादौ वृङ्संभक्तावित्यस्य वृणीते । 'वृव्येऽदां नित्यमिट् थली ति ववरिथ । ववृम । अवारीत्, अवारिष्टाम् , अवारिषुः । 'ऋतोऽवृङ् वृन' इति सेट्त्वेऽपि। " ऋभवृडां सनीड् वा स्यादात्मने च सिजाशिषोः।" अपरं च । "ऋवृञ् वृङोऽपि वा दीर्घो न परोक्षाऽऽशिषोरिटः।। न परस्मै सिचि प्रोक्त इति योगविभञ्जनात् ।” इति । अवृत । अवरिष्ट, अवरीष्ट । वृषीष्ट, वरिषीष्ट । वरिता, वरीता । विवरिषति, बुवूर्षति । वियते । वृतम् । इत्युभयपदिनः । तुदादौ-दृङ् । आद्रियात्। Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०० बालशिक्षा - अष्टमः त्यादिप्रक्रमः। मृङ् । म्रियते । रु० 'आशीरद्यतन्योश्च मृङ्', चकारादनि च, आत्मनेपदिनोऽप्यस्य नियमार्थमिदम्, अन्यत्र परस्मैपदमेव । तर्हि परस्मैपदमुद्यताम् , सत्यम् , ऋदन्तत्वात्तैः सह पठितत्वान्न दोषः। ममार । अमृत । मृषीष्ट । मरिष्यति । मुमूर्षति ।। तनादौ- डुकृञ्। करोति, कुरुतः, कुर्वन्ति। करोषि, कुरुथः, कुरुथ। करोमि, कुर्वः, कुर्मः । कुरुते, कुर्वाते, कुर्वते । कुर्यात् । कुर्वीत । चकार, चक्रतुः, चक्रुः। चकर्थ। चकृम । 'सुड् भूषणे सम्पर्युपात्,' संचस्कार,संचस्करतुः, संचस्करुः। संचस्करिथ।संचस्करिम । अकार्षीत् । समस्कार्षीत् । पंर्यस्कार्षीत् । अडभ्यासव्यवधानेऽपि षत्वमिष्यते । रु० 'सूचनाऽवक्षे. पण-सेवन-साहस-प्रतियत्न-कथोपयोगेषु कृञ् ।' सूचनमपकारप्रयुक्तं परदोषाविष्करणम् । अवक्षेपणं तिरस्करणम् । सेवनमनुवर्तनम् । साहसं यदबुद्धिपूर्वकं करणम् । प्रतियत्नः सतो गुणान्तरापादनम् । कथा आख्यानम् । उपयोगो धर्मादिप्रयोजने द्रव्यस्य विनियोगः । सूचने अयमिदमुपकुरुते इत्यादि । अधेः शक्ती, शत्रूनधिकुरुते, तानभिभवतीत्यर्थः । 'वेः शब्दकर्मकः', क्रोष्टा विकुरुते स्वरान् । अकर्मकश्च, 'वेरियेव विकुरुते । अनुकरोति, पराकरोतीति नित्यं वक्तव्यम् । इति ऋदन्ताः । ऋदन्ता यथा-तृ। तरति ।ततार। तृ प्लवन-तरणयोः। 'तृ फले त्यादिना तेरतुः, तेरुः । तरिथ । अन्येषां नेत्वमभ्यासलोपश्च । अतारीत्, अतारिष्टाम् , अतारिषुः ।तरिता, तरीता । तीर्यात् । तीर्यते । अतारि । अतीर्षातां अतरिषातां अतरीषातां अतारिषातामित्यादि । तीर्षीष्ट तरिषीष्ट तारिषीष्ट।तरिष्यते तरीष्यते तारिष्यते। तितरिषति तितीर्षति । "ऋवृञ् वृडां सनीड् वा स्यात्.” अत्र श्लोके " ऋग्वृङोऽपि वा दीर्घो०” अत्र श्लोके यदुक्तं तदिदमुदाहृतम् । तेतीयते। तातरीति। तातति । तातीतः। तातिरति । तीर्वा । वितीर्य । तीर्णः । तीणिः । तेरिवान् । तेराणः । अन्येषां तु यथा जिगीर्वान् , जिगिराणः । दिवादी-जु। जीर्यति । जजार, जेरतुः, जजरतुः । अजरत्, अजारीत् । जरा । जरयति । यादिकेण तृणाति । 'जुवृश्चोरिट्', जरित्वा । जीर्णः। जारयति । तुदादौ-कृ । किरति । 'स्मि पूङित्यादिना नित्यमिद्, चिकरिषिति । रु० अपस्किर , अपस्किरते वृषभो हृष्टः । अपस्किरते कुर्कुटो Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०१ ... बालशिक्षा-अष्टमः त्यादिप्रक्रमः । भक्ष्यार्थी । अपस्किरते श्वा निवासार्थी । अपाचतुष्पाच्छकुनिषु हृष्टभक्ष्य-निवासार्थेषु किरतेः सुडागमः। गृ निगरणे । 'वा खरे लत्वम्', गिरति, गिलति। 'मिडी'त्यादिना नित्यमिट् , जिगरिषति । निजेगिल्यते । रु० 'अवाद्गिर', अवगिरते। 'समः प्रतिज्ञायाम्', शतं संगिरते । अङ्गीकरोतीत्यर्थः । ज्यादौ-गृ शब्दे । गृणाति । जिगरिषति, जिगीर्षति। जेगीर्यते। पृ। पृणाति । पोपूर्यते । पूर्यते । पूर्तः। दें। दृणाति । दरयति । भयादन्यत्र विदारयति । स्तृञ् । स्तृणाति । स्तृणीते । अस्तृणीत । अतस्तरत् । वृञ् । वृणाति । वृणीते । वूर्णः। इति ऋदन्ताः । इति त्यादिप्रक्रमे पञ्चमः खराधिकारः। यिन् आयि काम्य इन्-एते चत्वारः प्रत्ययाः। अथ तदन्ता नामधातवः कथ्यन्ते । यिन् यथा-'यज्ञवर्णस्ये'तीकारः । आत्मेच्छायाम्घटमिच्छति घटमिवाचरति इत्यर्थे घटीयति। घटीयाञ्चकार। अघटीयीत्। घटीयिता। घटीय्यते । अघटीयि । घटीयन् । जिघटीयिषति । .. एवं पुत्रीयति । 'नामधातोराद्यस्य द्वितीयस्य तृतीयस्य क्रमेण युगपद्वा', पुपुत्रीयिषति, पुतित्रीयिषति, पुत्रीयियिषति, पुपुतित्रीयियिषति । अश्वीयति । 'कचिद् द्वितीय-तृतीययोरिति अशिश्वीयिषति, अश्वीयियिषति । इन्द्रीयति । ऐन्द्रीयीत् । इन्दिद्रीयिषति । अशनायोदन्यधनाया बुभुक्षापिपासाकांक्षासु निपाता रूढाः । अशनमिच्छति भोक्तुम्, अशनायति । उदकमिच्छति पातुम्, उदन्यति। धनमिच्छति तृष्णक् धनायति । अन्यत्र अशनमिच्छति दातुम् , अशनीयति । उदकमिच्छति लातुम्, उदकीयति । धनमिच्छति दातुम्, धनीयति। मालामिच्छति मालीयति । 'नाम्यन्तानां यणायियित्नाशीश्चिवचेक्रीयितेषु ये दीर्घः',अग्नीयति पटूयति । Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२ बालशिक्षा-अष्टमः त्यादिप्रक्रमः । ऋत ईदन्तश्विचेक्रीयितयिन्नायिषु, पित्रीयति । ओतो यिन्नायी खरवत्, औतश्च, गव्यति नाव्यति । नलोपश्च, विद्वस्यति, राजीयति, पथीयति । पुंस्यतीति नियमः किम् ? दीव्यतीत्यादि । कथं चतुर्यति, अनडुह्यति, गीर्यति, धूर्यति, शब्दाश्रयत्वाद्धि नियमः । सर्पिष्यति, धनुष्यति, षत्वं स्यादेव । . आयिर्यथा-हंस इवाचरति हंसायते। हंसायाश्चक्रे । अहंसायिष्ट। हंसायिता । हंसाय्यते । अहंसायि । जिहंसायिषते । हंसायमानः । वा आयेश्च लोपः। 'आद्यन्ताचे'त्यन्तग्रहणादायिलोपे न तल्लक्षणमात्मनेपदम् । हंसति । हंसाञ्चकार । हंसिता । हंसन् । एवं मालेवाचरति मालायते, मालाति । मालिता। मालान् । नामि व्यजनान्तादायेरादेः, अग्नीयते, अग्नयति । विभूयते । विभवति । ऋत ईदन्तः, पित्रीयते पितरि (ति?)। रैयते रायति । गव्यते गवति । नाव्यते नावति । विधुरर्कति, चन्दनमनलति, मित्राणि रिपवन्ति, “वफ्रे वेधसि, विधुरे चेतसि विपरीतानि भवन्ति” इत्यादिप्रयोगाश्च दृश्यन्ते । 'न लोपश्चेति विद्वस्यते इत्यादि पूर्ववत् । ओजायते, अप्सरायते, पयायते, पयस्यते । ओजसोऽप्सरसो नित्यं पयसस्तु विभाषया । . आयिलोपश्च विज्ञेयो न चाश्वो गर्दभत्यपि ॥ भाषितपुंस्कं पुंवदायौ, ब्राह्मणीवाचरति ब्राह्मणायते । विदुषी. वाचरति विद्वस्यते। काम्य यथा-पुत्रमिच्छति पुत्रकाम्यति । पुत्रकामाश्चकार । पुत्रकामिता। इन् यथा- 'इनि लिङ्गस्यानेकाक्षरस्यान्त्यखरादेर्लोपः।' गृह्णात्यर्थेहलिं गृह्णाति हलयति । कलयति । 'हलि-कल्योरत्', अजहलत् , अचकलत् । वर्णयति । त्वचयति । तत्करोति तदाचष्टे, मुण्डं करोति मुण्डयति । मिश्रयति । 'रशब्द ऋतो लघोळञ्जनादेः', पृथु प्रथयतीत्यादि । इनिड् अङ्गनिरसनेऽपि, हस्तौ निरस्यति पादौ निरस्यति हस्तयते पादयते । इनिडोपि कारितसंज्ञकत्वात् 'कारितस्यानामिड् विकरणे इति कारितलोपो भवत्येव । | Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा-अष्टमः त्यादिप्रक्रमः। यणि हस्त्यते । पाद्यते। । 'श्वेताश्वाश्वतरगालोडिताबरकाणामश्व-तरे-त-कलोपश्च', चका रादिनिडन । श्वेताश्वमाचष्टे तेनातिकामति वा श्वेतयते । अश्वतरमा चष्टे अश्वयते । एवं गालोडयते आह्वरयते । बहुलत्वादिन्नपि, श्वेतय तीत्यादि। 'मन्तु-वन्तु-विना लुग् च', इनिडिह न स्मयते, ईशनमीट् किए इंडस्यास्तीति मन्तुप्रत्ययः, ततः ईण्मन्तमाचष्टे इतीति कृते मन्तोलक 'निमित्ताभावे' इत्यादिना प्रकृतेरेव रूपे स्थिते ईशयति। एवं गोमन्तमा चष्टे गवयति । शुग्वन्तमाचष्टे शुचयति । स्रग्विणमाचष्टे स्रजयति । 'प्रशस्यस्य श्रः, वृद्धस्य च ज्यः', चकारात् प्रशस्यस्य ज्यादेशः प्रशस्यमाचष्टे श्रापयति, ज्यापयति । वृद्धमाचष्टे ज्यापयति । 'एकखरा णामदन्तानां चेत्यापागमः । 'अन्तिक- बाढयोर्नेदसाधौ।' अन्तिकमाचष्टे नेदयति । बाढमा चष्टे साधयति। 'युवाल्पयोः कन् वा।' युवानमाचष्टे कनयति युवयति । अल्पमा चष्टे कनयति अल्पयति । स्थूल-दूर-युव-क्षिप्र-क्षुद्राणामन्तस्थादर्लोपो गुणश्च।' स्थूलमा चष्टे स्थवयति । एवं दूर दवयति । युवन् यवयति । क्षिप्र क्षेपयति क्षुद्र क्षोदयति। 'बहोर्यादिर्भू च', बहु भूययति । 'प्रियस्थिरस्फिरोरुगुरुबहुलतृप्रदीर्घहखवृद्धवृन्दारकाणां प्रस्थस्फ वरगरबंहत्रेपद्राघहसवर्षवृन्दाः।' प्रियमाचष्टे प्रापयति । एवं स्थिर स्थापयति । स्फिर स्फापयति । अरु वरयति । गुरु गरयति । बहुल बंहयति । तृप्र त्रेपयति । दीर्घ द्राघयति । हृख हसयति । वृद्ध वर्षयति । वृन्दारक वृन्दयति । 'तद्वदिष्ठेमेयःसु बहुलम्', तस्मिन्निव तद्वत् , इनीवेत्यर्थः, इत्यादि पूर्वोक्तम् । इनि यत्कृतं तदिष्ठ-इमन्-ईयःस्खपि भवति । यथा पटुः माचष्टे 'अन्त्यस्वरादिलोपे' पटयति । अयमेषामतिशयेन पटुः पटिष्ठः । पटोर्भावः पटिमा । अयमनयोरतिशयेन पटुः पटीयान् । इत्थमन्त्यस्व. रादिलोपे मन्त्वादि लुक, 'प्रशस्यस्य श्रः' इत्याद्यादेशश्च सर्वमेत Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ बालशिक्षा- अष्टमः त्यादिप्रक्रमः।। दिष्ठादिप्रत्ययेषु बोद्धव्यम् । 'सत्यार्थवेदानामन्त आपकारित एवं' सत्यमाचष्टे सत्यापयति, अर्थापयति, वेदापयति । कथं कारापयति एवमन्येऽपि घअन्ताः, यथा-पठनं पाठः, पाठस्यापः, तं करोतीति पाठापयतीत्यादि। इति त्यादिप्रक्रमे षष्ठः प्रत्ययान्तनामाधिकारः। ग्रं० ९१०॥ इति ठ. संग्रामसिंहविरचितायां बालशिक्षायां त्यादिप्र क्रमोऽष्टमः । सर्वग्रं० १८५० । सदोपकार्यात्साध्योऽयं लक्षणद्रव्यसंग्रहः। सार्द्राष्टादशशत्यंकोऽप्यक्षयः सन् तदर्थिनाम् ॥१॥ मुश्चन्ति मुक्ता जलजन्तवोऽपि, स्वात्यम्भसां तल्ललितं न तेषाम् । यचोपला अप्यमृतं श्रवन्ते, तद्वल्गितं चन्द्रमसः कराणाम् ॥२॥ सतां प्रसादः स हि यन्मयापि, श्रीमालवंश्येन कृतिः कृतेयम् । साढाकभू-ठकुरकूरसिंहपुत्रेण षट्त्रिंत्रियुतैकवर्षे (१३३६)॥ बहूनि शास्त्राणि विलोक्य तावत्, विनिर्मितेयं महतोद्यमेन । संशोधिता सद्भिरथापि शोध्या, सल्लक्षणं क्षोदसहं सहैव ॥ ४॥ यावद्धत्ते गगनसरसी राजहंसप्रचारं मेरुश्चाग्निर्वरदिनवधू शर्वरी मङ्गलानि । तावद्बोधं भृति विदधती बालशिक्षा सदैषा जीया योगादतिमतिमतां वर्द्धमानाधिकश्रीः ॥५॥ ॥ इति प्रशस्तिः परिपूर्णा ॥ Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षाव्याकरणस्याकाराद्यनुक्रमेण सूत्रसूचिः। क्रमाङ्काः सूत्राणि पृष्ठाङ्काः | क्रमाङ्काः सूत्राणि पृष्ठाङ्काः १ प्रकर्मकश्च । २ प्रकि सकोऽपि । ३ अकुत्सारोरः। ४ अञ्चेत् । ५ प्रक्षतेर्वा । ६ प्रगुणे न लोपः। ७ प्रगुरणे सन्ध्यक्षरे सम्प्रसारणम् । ६७ ८ अगुरणे स्वरे वा। ६ अघुटि वा शब्दस्योत्वम् । १० अधुट्स्व रे अनवर्णादूट् । ३० ११ अधुस्वरे वाहेशिब्दस्य। ३० १२ अञ्चेः पूजायामिडिष्यते नलोपाभावश्च । १३ अञ्चेरनचीनऽनुषङ्गलोपो ऽलोपश्च । १४ प्रणश्च । १५ प्रण चरणौ श्वेरन् । १६ अत एव वर्जनादिदनुबन्धानां धातूनां नास्ति। १७ प्रतीते निष्ठावन्सुकानौ च। १८ प्रतो वृतादि। १६ प्रदूरे एनोऽपञ्चम्याः । २० अननुज्ञाश्च विज्ञ यः। २१ अनुपरिभ्यां च क्रीडः । २२ मनोरकर्मकः। २३ अनोस्तपेरिति । २४ अनोस्तु न स्यात् । २५ प्रन्तिक-बाढयोर्नेदसाधौ।। २६ अन्त्यस्वरादिलोपे। १०३ २७ प्रन्यद् । २८ प्रन्येषां नेत्वमभ्यासलोपश्च । १०० २६ अपस्किर। १०० ३० अपाच्चतुष्पाच्छकुनिषु हृष्टभक्ष्य निवासार्थेषु किरतेः सुडागमः । १०१ ३१ अभुवः। ६७ ३२ प्रवादगिर् । ३३ अव्ययकारकाभ्यामेवायं विधिः। १२,१४ ३४ प्रशनायोदन्यधनाया बुभुक्षा पिपासाकांक्षासु निपाता रूढाः।१०१ ३५ प्रशिष्टाचार संप्रदानेऽपि। ३४ ३६ असार्वधातुके वा। ६४,८५ ३७ अस्तेश्च भूः । ९७ ३८ अस्माकं पापनाशनः । २३ | ३९ अस्य संहितौ शन्त्रारणौ च। ४४ १०१ Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६ बालशिक्षाग्याकरणस्याकाराधनुक्रमेण सूत्रसूचिः । क्रमाङ्काः सूत्राणि पृष्ठाङ्काः । क्रमाङ्का: सूत्राणि पृष्ठाङ्काः ४० प्राङः परोऽयं गत्यर्थे यजादिः । स्यात् । ४१ प्राङः प्रच्छ । ८१ ४२ पाङः षदः पद्यर्थे। ४३ प्राडो दाञ् अनात्मप्रसारणे। ६२ ४४ प्राङो यमहनस्वाङ्गकर्मकौ च ६६ ४५ प्राडो यमहनौ स्वाङ्गकर्मकौ च ।६२ ४६ प्रात्मनेपदिनि पानश् । ४७ प्रात्मनेपदिनि कान.। ४८ प्रात्मनेपदिन्यान् । ४६ पादनुबन्धाच्च । (का० व्या० ४।६।६१) ५० प्रादादिकस्य । ५१ प्राद्यन्ताच्च । १०२ ५२ आयादयो प्रसार्वधातुके वा। ६४ ५३ प्राधिक्यार्थोपशब्दयोगे। ३६ ५४ प्रारभ्य प्रभृति विना योगे च । ३५ ५५ प्राशीरद्यतन्योश्च मृङ्। १०० ५६ पाहो ब्रुवस्तु पञ्चानाम् । ५७ इणेधत्योर्णः। ५८ इतश्च क्तिजिताद्वा। ५६ इदूतोरियुवा स्वरे। ६० इनन्तक्तप्रत्ययस्य कर्मरिण। ३६ ६१ इनन्ते कर्तृ कर्मैव। ६२ इनि चरिण झवर्णस्य झत्। ७० ६३ इनिड् अङ्गनिरसनेऽपि। १०२ ६४ इनि यत्कृतं तविष्ठ-इमन्. ईयः स्वपि भवति । १०३ ६५ इनि यत्कृतं तत्सर्व स्थानिवद् । ६६ ६६ इनि संश्च पोर्गा वा। ६७ इन-इच्-अटवर्ज अन्यत्र गुणो न स्यात् । ७७ ६८ इरनुबन्धाद्वा। ६९ ईड्योर्वा (का०व्या० २।२।५४)२३ ७० ईय॑तेर्यशब्दस्य सनो बा द्विवचनम् । ७१ उतः खियामूड्। १३ ७२ उदोऽनूलचेष्टायाम् । ७३ उपमानसहितसंसंहितसहशफ___वामलक्ष्मणपूर्वादूरोरूडिति । १३ ७४ उपसर्गस्यायतौ रेफस्य लत्वम् । ८६ ७५ उपसर्गावस्यत्यूही वा। ८६,८८ ७६ उपसर्गोवरणस्य लोपो धातोरे दोतोः। ८५ ७७ ऊदन्तोपधानां पूर्वस्य रक् रिक रोक् । ७८ वृवृङां सनीड् वा _स्यात्। १०० ७६ ऋद्ववृडोऽपि वा दीर्घो०। १०० ८० ऋधिज्ञप्योरीरीतौ। ६३ ८१ ऋप्रभृतिभ्यश्च । ८४,८८ ८२ ऋप्रापरणे च। ... ८७ Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्काः सूत्रारिण ८३ एकस्वराणामदन्तानां च । ८४ एकान्त निकषा समया हा धिग् अन्तरान्तरेण यावत् विना ऋते अभि-परि-प्रति-नु-उप एषां योगे च । बालशिक्षाध्याकरणस्याकारानुक्रमेण सूत्रसूचिः । सूत्राणि १०३ क्वापि घञ् क्तिर्युटोऽपि । १०४ क्विपि संयोगान्तलोपे तस्य ८५ कमेरिनकारितं च । ८६ कर्त्तरि क्तवतुः । ८७ कर्त्तरि वर्तमाने शन्तङ् श्री शौ । कर्तृस्थामूर्त्तकर्मश्च । ८ कर्मकर्तृ स्थो दुहिः । ६० कर्मकर्तुस्थः स्वरान्तो धातुरातन्यां वा । ६१ कर्मणि । ६२ कर्मरिण क्तः । ६३ कर्मरिण तव्यानीयौ । ६४ कर्मण्यान । ६५ कृतादेर्वापि सेsसचि । ६ कृतादेवsपि सेsसिचि । पृष्ठाङ्काः क्रमाङ्का. ६७ क्त क्तवतु शन्तृङ श्रानशू वन्सु कि उदन्त उकञ् श्रव्ययखलार्थेषु द्वितीयंव । ६८ क्त क्तवन्तौ निष्ठा । EE क्त्वा मकारान्तोऽव्ययम् । १०० क्वचित् क्यप् घ्यरणावपि । १०१ क्वचिद् द्वितीय तृतीययोः । १०२ क्वन्स वेट् । १०३ ६४ ४४ द्युतिः । ८१ १०५ क्वौ घुट्यगुणे च वस्य ऊट् । ७४ १०६ क्लीबे स्यमोस्तदुक्तप्रति३४ षेधो वा । १०७ वित्व जनश्चोरट् ४३ ६३ ७४ ८६ ३६ ४४ ૪૪ ४३ ७६ ७८ ३६ ४४ ४ ४४ १०१ ६२ ε १०८ गणकृतमनित्यम् । १०६ गतम् । ११० गत्यर्थादीनां कर्तुरिनि । १११ गत्यर्थादीनां पृष्ठाङ्काः त्विनन्तानां पूर्वकर्त्ता कर्म स्यात् । ११२ गायकेन विनीतौ वाम् । ४४ ३२ ८२ ६६ εε ४० ३६ २२ ११३ गुरिपनि व्यञ्जने तृहेरिड् । ८४ ११४ गुणवृद्धिस्थाने यपि चात्वम् । ६५ ११५ गोरप्रधानस्य । १६ ११६ गोरप्रधानस्यान्तस्य स्त्रिया मादादीनां च । ११७ ग्लास्नावतुवमश्च । ११८ घञन्तादिनि । ६७ ११ घञ् ल् क्यप्सु च न स्यात् । ८५ १२० घटादयो मानुबन्धा आन्वा ख्याताः । १२१ घुटि खनिसनिजनाम् । १२२ घुटि पञ्चमोऽच्चातः १२३ घोषवत्स्वरवन्प्रत्ययान्तासु त्रियामप्येवम् । ह ६३ ५७ ६५ ६२ २४ Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०. बालशिक्षाव्याकरणस्याकाराय नुक्रमेण सूत्रसूचिः । क्रमाङ्काः सूत्राणि पृष्ठाङ्काः क्रमाङ्काः सूत्राणि पृष्ठाङ्क: ६८ १२४ घ्राशाछासाधेटा वा। ६०,६२ १२५ चर्करी ताद्वतिकावित्। ५६ १२६ चिस्युराणों वा। १२७ चेक्रीयितलुगन्तानां न स्त्यनुबन्ध । १२८ जशोरणि गुणः। १२६ जभ्रमत्रसस्वनफरणस्यमां वा । ६२ १३० जश्विस्तम्भ०। १३१ ज्वलालनमोऽनुपसर्गा वा। ६० १३२ ज्ञपमानवन्धश्च । १३३ ज्ञप मानुबन्धश्च। १३४ ज्ञानयत्नोपच्छन्दनेषु वदः। ६४ १३५ ज्ञानार्थे करणे षष्ठी। १३६ जो विदर्थस्य करणे। १३७ मप्रभृतिभ्यश्च । १३८ शिक्ष्विदा मोचने च। ७१ १३६ टादौ स्वरे पुंवद्वा। ११,१३,३२ १४० टेन। १४१ डान्ताः संख्यालिङ्गाः कत्यव्यययुष्मदस्मच्च। २१ १४२ णि सन्वद्भावः, उपधाया ह्रस्वश्च । १४३ तकारो लचटवर्गेषु। १४४ तद्वदिष्ठेमेयः सु बहुलम् । १०३ १४५ तनादेस्तथासोः परयोरनित्वं पश्चमलोपश्च । १४६ तनोतेयरिण वा। १४७ तरुणुस्तुल्य ई वा नदी। १४८ तवर्गस्य टवर्ग० । १४६ तिस-चतुस्रो त्रि-चतुरोः खियाम्। १५० तीयाद्वा। १५१ तीयाद्वा वक्तव्यम् । १५२ तृन्फादीनां शुन्फान्तानां अनि न च लुप्यते। १५३ तृम्फादीनां शुभान्तानामनि न च लुप्पते। १५४ तेभ्य एव हकारः पूर्वचतुर्थ न वा। १५५ तुमो मलोपश्च । १५६ त्रिषु व्यञ्जनेषु। १८,२३ १५७ दय-इशोः कर्मणि। ३५ १५८ दारण सा चेच्चतुर्थ्यर्थे । ६२ १५६ दिस्योः प्रदोऽट । ८६ १६० दिस्योरीट् । ७३,८१ १६१ विस्योः वचनादीः। ६६ १६२ दीपजनबुधपूरितायिप्यायिभ्यो । वा। १६३ दुह-विह-लिह-गुहामात्मने पदे । च तवर्गे वा सरोव। ७२ Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षाग्याकरणस्याकारायनुक्रमेण सूत्रसूचिः । १०६ कमाङ्काः सूत्राणि पृष्ठाङ्काः क्रमाङ्काः सूत्राणि पृष्ठाङ्काः C8 ७५ १६४ धुतादीनाम् । १८७ परोक्षायां क्वसौ च । ६७ १६५ Qहस्तु प्रादिचतुर्थत्वं सध्योः । ७५ १८८ पादमास । १६६ धातुसकारस्य धकारे लोपः । ८० १८६ पापड्योभयस्याननि। ५६ १६७ धिन्विकृण्व्योधि कृ च । ८४ १९० पुषादि-धुतादि०। ५७,६७,७२ १६८ धुटि अगुणे न लोपः। ६६ १९१ पूजाभिभवयोश्च लातेः। ९१ १६६ न कम्यमचम। १९२ पूजोत्क्षेपणोपनयनज्ञान भृतिविगरणनव्ययेषु णोञ् । ६३ १७० न व्य [य]ते रट् थलोः । ९१ १६३ प्रकृतिग्रहणे चेक्रोयित १७१ न स्त्यनुबन्धगसंख्यक लुगन्तस्यापि ग्रहणम् । ७१ स्वरोक्तेषु । १९४ प्रतिज्ञानिर्णयप्रकाशनेषु १७२ न स्त्यनुबन्ध। स्था । १७३ न स्ये स्यनी। १९५ प्रलम्भने गृधिवच्योः । १७४ नामधातोराद्यस्य द्वितीयस्य १९६ प्रशस्य श्रः। तृतीयस्य क्रमेण युगपद्धा। १०१ १०३ १६७ प्रियस्थिरस्फिरोरुगुरु१७५ नाम्यन्तत्रिचतुरां वा। १० १७६ निमित्तात् कर्मसंयोगे। बहुलत प्रदीर्घह्रस्ववृद्ध३६ वृन्दारकारणां प्रस्थस्फवर१७७ निमित्ताभावे । २६.३०,३१,१०३ गरबंहःपद्रायसवर्ष१७८ निमित्ताभावे०। वृन्दाः । १०३ १७६ निर्दुरोर्वा । १९८ प्सा स्याद्वा। १८० निसंव्युपेभ्यो ह्वा। १८१ नीवहादेः प्रधानकम् । १६६ बहोर्यादिर्भू च । १०३ १८२ नेविंशः। २०० बाह्वालिङ्गने सण। १८३ नोऽन्तश्चछयोः शकारमनुस्वारपूर्वम् २०१ भजेरिनि वा। (का० व्या० ११४८) २०२ भवति च। १८४ परस्मैपदिनि क्वन्सुः । ४४ २०३ भविष्यति काले तुमन्तात् १८५ परस्मैपदिनि शन्तछ। ४३,४४ काममनसो। १८६ परिव्यवेम्यः क्रीन् । ६५ । २०४ भियो वा । २० ८४ Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १.१० बालशिक्षाव्याकरणस्याक क्रमाङ्काः सूत्राणि पृष्ठाङ्काः | क्रमाङ्काः। सूत्राणि पृष्ठाङ्काः २०५ भियो हेतुभये वा पुक। ६४ २२१ यमोऽपरिवेषणे। ६६ २०६ भ्राज.भ्रास-भाष-दीप-जीव-मील- | २२२ यस्मै दित्सा रोचते धारयते । पोड-करण-रण.वरण-भरण-श्ररण-हठे वा बत् सम्प्रदानम्। २,३४ लुपां च। (का० व्या० २।४।१०) २०७ भ्रास्भ्लासि०। ८० । २२३ युजादिभ्यो विभाषया इन् । ६६ २०८ भ्रास-भ्लास-भ्रमु-क्रमु-क्लम- २२४ युजेरसमासे नु धुटि । १८ त्रसित्रुटिलषियसिसंसि (का. व्या० ०नुघुटि २।२।२८) भ्यश्च वा। ६१,७६ २२५ युवाल्पयो. कन् वा। १०३ २०६ मन्तु-वन्तु-विना लुग् च। १०३ २२६ युष्मदस्मदोः पदं पदात् षष्ठी. . २१० मारण-तोषरण-निशामनेषु ज्ञा ।६३ चतुर्थी-द्वितीयासु वस्नसौ। २२ २११ मुचेरकर्मकस्योट । ७७ (का० व्या० २।३।१) २१२ मुह-द्रुह-ष्णुह-ष्णिहां वा। ७५ २२७ येन क्रियते तत् करणम्। २,३४ २१३ य आधारस्तदधिकरणम्। ३६ (का० व्या० २।४।१२) २२८ ये वा। (का० व्या० २।४।११) (का० व्या० ४।१।१२) २१४ य इवर्णस्यासंयोगपूर्वस्यानेकाक्षरस्य । २६,६३ २२६ टवोर्व्यञ्जने ये। (का० व्या० ४।१।३५) (का० व्या० ३।४।५८) २३० रञ्जमगरमरणे अनुषङ्गलोपः। ८३ २१५ यक्षादिश्च । ८० २३१ रधादिभ्यश्च। २१६ यज्ञवर्णस्य०। ५७,६७ १०१ २१७ यतोऽपैति भयमादत्ते वा (का० व्या० ४।६।८२) तदपादानाम् । २,३५ २३२ रधिजभोः स्वरे। ६४ (का० व्या० २।४।८) (का० व्या० ३।५।३२) २१८ यत् क्रियते तत् कार्म। २,३४ २३३ र प्रकृतिरनामिपरोऽपि । (का० व्या० २।४।१३) (का० व्या० ११५।१४) २१६ यप् लोपे। २३४ रमृवर्णः । २२० यमि-रमि-नम्यादन्तानां (का० व्या० ११२।१०) सिरन्तश्च । ६२,६१ २३५ रशब्द ऋतो लधोव्यंजनादे. । १०२ (का. व्या० ३।७।१०) (का. व्या० ३।२।१३) __३५ Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षाब्याकरणस्याकाराधनक्रमेण सूत्रसूचिः । क्रमाङ्काः सूत्राणि पृष्ठाङ्काः क्रमाङ्कः सूत्राणि पृष्ठाङ्काः १८ ७३ २३६ रषवणे। २५४ लक्षेरीम्र्मोऽन्तश्च । १२ २३७ राजि-तक्षि-धन्वि-प्रतिदिवि २५५ लंगिकम्प्योरुपतापशरीर. यजिभ्यः कन् । विकारयोर्नलोप। ८२,८३ २३८ राजि-भ्राजि-भ्रासि २५६ स्यादेव। मलासीनां वा । २५७ लम्लुवर्णः। २२६ रात्सर यैव । (का० व्या० ११२।११) २४० रुचादौ प्राङो ज्योतिन्द्रमे। ६१ २५८ लिम्पादीनामात्मनेपदे वा ७७,६१ २४१ रुचादौ उद: सकर्मकश्चर्। ६० २५६ लोलोनलावन्तौ स्नेह२४२ रुदविमुषां सनि। द्रवीकरणे। ६१,६५ (का० व्या० ३३०१६) २६० लवर्णे अत्। २४३ रुदादिः पञ्चको गरणः। ७३ (का. व्या० ११२१५) २४४ रुद दिभ्यश्च । २६१ ले लम्। (का. व्या० ३ ६६१) २४५ रुदादेः सार्वधातुके । ५७,७३.६६ (का०व्या० ११४।११) २६२ लोपः सप्तम्यां जहातेः। ६२ (का० व्या० ३७४३) (का० व्या० ३।४।४६) २४६ रुदादेरपि। २६३ ल्वाद्योदनुबन्धाच्च। ५६,५७ २४७ रुदादेरपोति केचित् । (का० व्या० ४।६।१०४) २४८ रूढानां बहुत्वे स्त्रियामपत्यप्रत्ययस्य। २६४ वञ्चिधसिध्वंसिभ्र सिक(का० व्या० २।४।५) सिपतिपदिस्कंदामंतो नी ।६३,८३ २४९ रेफात्परो जात्पूर्वो नुर्वा (का० व्या० ३।३।३०) वक्तव्यः। २६५ वदवजरलन्तानां वा ६० २५० रंः। (का० व्या० २।३।१६) १५ (का० व्या. ३।६।६०वा नास्ति) २५१ रो रे लोपं स्वरश्च पूर्वो दोधः।६ | २६६ वनति-तनोत्यादि प्रतिषिद्धेटां (का० व्या० ११०१७) धुटि पञ्चमोऽच्चातः। ६२ ४५२ रो रे लोपः स्वरश्च पूर्वो दीर्घः।१ (का० व्या० ४.१५६) २५३ रोहेः पो वा। ७१ । २६७ वनोरच्च । Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२ बालशिक्षाग्याकरणस्याकारानु क्रमेण सूत्रसूचिः । क्रमाङ्काः सूत्राणि पृष्ठाङ्काः क्रमाङ्काः सूत्राणि पृष्ठाङ्काः ८९ m २६८ वमुवर्णः । (का० व्या० १।२९) ४ २६९ वर्गप्रथमाः पदान्ताः स्वरघोषवत्सु तृतीयान्। ५ । (का० व्या० १२४६१) २७० वर्गप्रथमेभ्यः शकारः स्वरयवरपरश्छकारं च न वा । ५ (का० व्या० ११४३) २७१ वर्गाणां प्रथमद्वितीयाः शषसाश्वाधोषाः। (का० व्या० ११११११) २७२ वर्गे तद्वर्गपञ्चमं वा। (का० व्या० ११४।१६) २७३ वर्गे वन्तिः । (का० व्या० २।४।४५) २७४ वर्तमाने वुरण तचौ । २७५ वां नौ द्वित्वे। २७६ वा प्रायश्च लोपः। १०२ २७७ वा गुरगः। २७८ वा छाशोः। (का०व्या० ४.११७७) २७६ वा ज्वलादि दुनीभुवोरणः। ५७ (का० व्या० ४।२।५५) २८० वा दधोः। ८२ २८१ वा परोक्षायाम्। ८१,८६ (का० व्या० ३।४।८०) २८२ वा परोक्षायां वेत्रश्च वयिः । ६० २८३ वा प्रस्त्यो मः। (का० व्या० ४।६।११२) २८४ वा रुष्यमत्वरसङधुषास्व नाम् । (का०व्या०४।६।१८)६५,८५ २८५ वा लिप्सायाम्। २८६ वा लुक चेक्रोयितस्य। ४४,५६ २८७ वा संयोगादेरस्थः। १० २८८ वा स्वरे लत्वम् । १०१ २८६ विउद्भ्यां तपः। २६० विकरणे प्वादोनां ह्र वः। ५७ २६१ विद प्रामः कृत्र पञ्चम्या वा । ७३ २९२ विनायोगे। २९३ विपराभ्यां जिः। २९४ विभक्त्यन्तं पदम् । २९५ विभाष्येते पूर्वादे । (का० व्या० २।११२८) २९६ विरामव्यञ्जनादावुक्तम् । नपुंसकात्स्यमोलोपेऽपि । २५, २६, २७, २८, ३० (का० व्य० २।३।४६) २९७ विरामव्यञ्जनादिष्वन डुम्नहिवंसीनां च । २६ (का०व्या० २।३।४४) २६८ विशेषणे (काव्या० २।४।३२)३४ २९६ विषये। ३०० विसंवादाभिभवयोलियः कारिते। ३०१ विसर्जनीयश्चे छ वा शम्। ५ (का० व्या० २४१) ८८ Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षाध्याकरणस्याकाराद्यनुक्रमेण सूत्रसूचिः। ११३ क्रमाङ्काः सूत्राणि पृष्ठाङ्काः क्रमाङ्काः सूत्राणि पृष्ठाङ्काः ३०२ वृहेः स्वरेऽनिटि वा। (का. व्या० ४।१।६८) ८३ ३०३ वृद्धस्य च ज्यः, प्रशस्यश्रः। १०३ ३०४ वृव्येऽवां नित्यमिट थलि। ६६ ३०५ वेः पादाभ्यां। ३०६ वेतेः प्रजने। ३०७ वेः शब्दकर्मणः। ३०८ वेश्वस्वनेर्भोजने। ३०६ वेषुसहलुभरुषारषां ति । (का०व्या० ४।६।८१) ६५७५ ३१० व्यञ्जनादिस्यो। (का० व्या. ३।६।४७) ५६ ३११ व्यञ्जनादीनां सेटामनेदनु. बन्धह्मचन्तक्षणश्वसां वा । ५६,५८ ३१२ व्यञ्जनादौ वा। ३१३ व्यञ्जनान्तानाम् । ३१४ व्यञ्जनान्तानामनिटाम् ।। (का० व्या० ३।६७) ३१५ व्यञ्जनान्नोऽनुषङ्गः। (का० व्या० २।१।१२) ३१६ व्यथेश्च । (का० व्या० ३।४।५) ६५ ३१७ व्यवहपरिणदिवीनां व्यवहारा र्थानां कर्मणि। ३१८ व्यापरिभ्यो रमः परस्मैपदम् । ३२० शदेरगतौ तः। (का० व्या० ३।६।२६) ३२१ शदेरनि । ३२२ शन्तृङानशी तोत्वेऽनु गच्छत । ३२३ शमादीनां दी? यनि । (का० व्या० ३।६।६६) ३२४ शसादावचि वा। ३२५ शसादौ वा दोषन् । ३२६ शसादौ स्वरे वा निश् । ३२७ श सेरिदुपधाय। अग व्यञ्जनयोः। (का०व्या० ३।४।४८) ३२८ शिट्परोऽघोषः। (का० व्या ३३।१०) ३२६ शिडिति शादयः। (का० व्या० ३१३२) ३३० शिन्चौ वा। (का० १० १४१३) ३३१ शीङः सार्वधातुके। (का० व्या० ३।६।१८) ३३२ शीपघृषिक्ष्विदिमिदा निष्ठा सेट । (का० व्या० ४।१।१५) ३३३ शेषेभ्यः सर्वदा लोपः। ३३४ शेपे से वा वा पररूपम् । (का० व्या० ११५६६) ७४ १६ शक्ल-ज्ञायोगे क्त्वा प्रत्ययोक्तौ तुम् । ५ ४४ । Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११४ बालशिक्षाव्याकरणस्याकाराद्यनुक्रमेण सूत्रसूचिः । क्रमाङ्काः सूत्राणि पृष्ठाङ्काः | क्रमाङ्काः सूत्राणि पृष्ठाङ्काः ३४ ३३५ श्येतैतहरितलोहितेभ्यः ३५० ष्ठिवुक्लाम्वाचमामनि। ६१ स्तो नः। (का०व्या० ३।६।६७) ३३६ श्रन्थिगन्थी कमकर्त स्थौ। ८४ ३५१ ष्ठिवु-क्षिवु-ष्ठिवु-क्लम्वाच३३७ श्रिव्यविमविज्वरित्वरा मामनि। मुपधया। ३५२ वजेर्वा । (का०व्या०४।११५७) ३३८ श्रीद्रु०। ३५३ संनिविभ्योऽAः। ६३६ श्रुद्रुस्तुप्लुच्युङां वा (काव्या० ४।६।६६) वक्तव्यम् । ३५४ संपरिभ्यां वा। ३४० श्रुरनाङ्प्रति । (का०व्या० ४।११५१) ३४१ श्वन-युवन् मघोनां च। २३ ३५५ सम्प्रतिभ्यामस्मृतौ। (का० व्या० ३क्युबमघोनां च ) ३५६ संप्रसारणं य्वृतोऽन्तःस्था२१२१४७ निमित्ताः ३४२ श्वयते। (का०व्या० ३।८।३३) (का० व्या० ३।४।१२) ३५७ संयोगादेघुट:। ३४३ श्विधेटोर्वा वक्तव्यम् । (का०व्या० २॥३॥५५) ३४४ श्वेश्ताश्वतरगालोडिताबरका- ३५८ संशये च प्रतीकारे कितः रणामश्व तरे-त-कलोपश्च। १०३ सन्नभिधीयते। ३५६ सः प्रतिषेधो वोऽन्तश्च ।। ३४५ षडाद्याः सार्वधा [तुकम्- ३ ३६० सजुषाशिषो रः। वर्तमाना] (का० व्या० २।३।५१) (का०व्या० ३।१।३४) ३६१ सरगनिटः सिडन्तानाम्युप३४६ षत्वनिमित्ताभावे । ८१ धाददृशः। ३४७ षष्ठी-चतुर्थी-द्वितीयासु। २२ (का० व्या० ३।२।२५) ३४८ षष्ठी हेतुप्रयोगे। ३६२ सत्यार्थवेदानामन्त(का०च्या० २।४।३७) आपकारित एव। ३४६ षानुबन्धभिदादिभ्यस्त्वङ् ॥५६,५७ ३६३ सदेरप्रतेरिति । (का०व्या० ४।५।८२) । ३६४ सध्वोरिट। Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बाल शिक्षाव्याकरणस्याकाराय नुक्रमेण सूत्रसूचिः । ११५ क्रमाङ्काः सूत्राणि पृष्ठाङ्काः क्रमाङ्काः सूत्राणि पृष्ठाङ्काः ३६५ सध्वोश्च । ३८१ समोऽकर्मक। ६२, ७१, ७३, ८२, ३६६ सनन्तौ तु। __ ८६, ८७, ६६, ६९ ३६७ सनि चानिटी। ३८२ समोऽकूजने । ७६ (का० व्या० ३५९) ३८३ सस्य ह्यस्तम्यां दो तः। ३६५ सनि मिमीमादारभलभ (का० व्या० ३११८।१५) शकपतपदामिः स्वरस्य। ६४ ३८४ सामीप्येऽभः (का० व्या० ३।३।३६) (का० व्या० ४।६।६७) ३६६ सनि वेटत्वान्निष्ठायाम ३८५ सिचीट् । निट्यपि। ३८६ सिजाशिषोर्गमस्त च० ।। ३७० सनीरिगङोर्गमिः । ३८७ सिडतानाम्युपधाददृशः (का० व्या० ३।४।८६) ३८८ सिद्धो वर्णसमानायः। ३७१ सन्ध्यक्षरान्तानामाकारो (का० व्या० १.१११) ऽविकरणे। ३८६ सुक्रभिभ्यां परस्मै।। (का० व्या० ३।४।२०) ३९० सुड् भूषणे सम्पर्युपात्। १०० ३७२ सप्तम्युक्तमुपपदम् । (का० व्या० ३७३८) (का० व्या० ४।२।२) ३६१ सुधीः। ३७३ समः क्ष्णु। (का० व्या० २।२।५७) ३७४ समः प्रतिज्ञायाम् ।। ३६२ सुनोति-सुवति-स्यति३७५ समर्थनाशिषोश्च । ४३ स्तौति-स्तोभतीनामड(का० व्या० ३।१।१६) भ्यासान्तरेऽपि। ३७६ समवप्रविभ्यः । ८६ ३६३ सूचनाऽवक्षेपण सेवन ३७७ समस्तृतीयायुक्तः। ६०,६२ साहस-प्रतियत्न. ३७८ समानः सवर्णे दी| कथोपयोगेषु कृञ् । १०० भवति परश्च लोपम् । ३६४ सूते. पञ्चम्याम् । (का० व्या० १०२।१) (का० व्या० ३।५।१४) ३७६ समानादन्योऽसवर्णः। ३६५ सृवृभृस्तुद्रुस्न व एव ३८० समानादम्शसोरल्लोपः। परोक्षायाम्। ६७, ७०, ९६ सो न पुंसः। १५ । (का० व्या० ३७३३५) Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११६ बालशिक्षाध्याकरणस्याकारा अनुक्रमेण धातरूपसूचिः। क्रमाङ्काः म्त्राणि पृष्ठाङ्का: क्रमाङ्का. सूत्राणि पृष्ठाङ्काः ३६६ से गम परस्म। ४११ स्थूल-दूर युव-क्षिप्र-क्षुद्रा(का० व्या० ३७६) णामन्तस्थादेलोपो गुणश्च । १०३ ३९७ सेधतेर्गतौ। ४१२ स्पर्धायामाङः। ३९८ सो नः पुंसः। ४१३ स्पृश-मृश् कृशि-तृपि३९६ सो वा घस्य रत्वे रो रे दृपिम्यो वा। लोपम् । ४१४ स्पृशादीनां वा। ४०० सौ च मघवान् मघवा वा। २३ ४१५ स्पृहि-नत्योःकर्मणि । (का० व्या० २।३।२३) ४१६ स्फायेदेशः। ४०१ सौ पदान्ते रेफप्रकृत्योरपि (का० व्या० ३।६। ५) वा दधोस्त्वं स्यात् । ४१७ स्मिङपूङ् रज्व. ४०२ स्खदिखपरिभ्यामेव। शूकधप्रच्छां सनि। ८८,६७,१०० ४०३ स्तुसुधुभ्यः परस्पै । (का० व्या० ३।७।११) (का० व्या० ३७६) ४१८ स्मृत्यर्थकर्मरिण। ४०४ स्तोकाल्पकृच्छकतिपयेभ्यो (का० व्या० २॥४॥३८) मोचनार्थे करणे। ___३५ ४१६ स्मृदृशी च सनन्तौ तु ४०५ खियः वा डाप् स्यात् ।। रुचादौ। ४०६ खियामादा। ४२० स्मृदृशी तु। (का० व्या० २।४।४६) ४२१ रमेनातीते। ४०७ खो नदीवत् । (का० व्या० ३।१।१२) (का० व्या० २।२३३) ४२२ स्यसिजाशी। . ६६,६९,७१ ४०८ च्यास्यावियुवो वामि। ११ ४२३ स्रसिध्वसोश्च । (का० व्या० २ २४) (का० व्या० २।३।४५) ४६ स्थादोरिरद्यतन्यामात्मनेपदे । ८६ | ४२४ स्वपिवचियजादीनां । (का० व्या० ३।५।२६) यणपरोक्षाशीःषु। ५७,६४,६० ४१० स्थासेति सेधति-सिच-सञ्ज (का० व्या० ३।१३) ध्वञ्जाडभ्यासानारस्य | ४२५ स्वपिस्यमिवेजां चेनीयते। ६२ षत्वम् । (का० व्या० ३।४७) Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षाध्याकरणस्याकाराद्य नुक्रमेण सूत्रसूचिः । ११७ क्रमाङ्काः सूत्राणि पृष्ठाङ्काः क्रमाङ्काः सूत्राणि पृष्ठाङ्काः ५६,६७ ४२६ स्वरति-सूति-सूयत्यूव ४४२ हनुदन्तात्स्ये। नुबन्धात् । (का० व्या० ३७७) ४२७ स्वरादनि विकरणे। ४४३ हनेः सिच्यात्मने दृष्टः। ४२८ स्वरादेशाः परि (र?)। ४४४ हनोऽकारवतो गत्वम् । निमित्तका पूर्वविधि ४४५ हन्ते! वा। प्रतिस्थानिवत् । ४४६ हन्तेर्वधिराशिवि । ४२६ स्वराद्यन्तादुपसर्गादय (का० व्या० ३।४।८२) ज्ञपात्रेषु। ४४७ हन्त्यर्थाच्च । ४३० स्वराद् रुधादे: परो ४४८ हर्षग्लपनयोर्मदि। नु (न) शब्दः । ४४६ हलि-कन्यारत्। १०२ (का० व्या० ३।२।३६) ४५० हशषच्छान्तेऽजादीनां डः । १७,१८ ४३१ स्वरे धातुरनात् । (का० व्या० २।३।४६) (का० व्या० ८।६।७५) ४५१ हाग्रहोरवधौ न भवति। ४३२ स्वरे नागम । ६२ ४५२ हिसार्थानामज्वरः। ४३३ स्वरोऽवर्णवों नामी। (का० व्या० २।४।४०) (का० प्या० १३१७) ४३४ स्वरो ह्रस्वो नपुंसके । ४५३ हुधुड्म्यां हेधिः । (का० व्या० २।४।५२) (का० व्या० ३.५३३५) ४३५ स्वसेर्वा । ४५४ हेताविनि। ४३६ साङ्गकर्मकाच । ६३,६६ ४५५ हेतुकतुं भोस्म्योरिन्। ६३,६४ ४३७ स्वादितुदाद्योश्च । ४५६ हेत्वर्थे । ४३८ स्वामीश्वराधिपतिदायाद (का० व्या० २।४।३०) साक्षिप्रतिभूप्रसूतैः षष्ठी च। ६५ ४५७ हेर चरिंग। (का० व्या० २।४।३५) ४५८ हो क्नस्य । ४३६ स्वाम्यर्थाचियोगे। ४५६ हौ चात्वमित्वमोत्वं च।। ४४० स्वाम्यादौ च। ३६ ४६० हौ जहि आशिषि तुह्योः ।। ४४१ हचतुर्थान्तस्य धातोस्तृतीया- ४६१ ह्य० दिस्योरीट् । देरादिचतुर्थत्वम कृतवत् । २३ । ४६२ ह्यस्तम्यां च । (का० व्या० २।३।५०) (का० व्या० ३।६।८६) ५७ ३६ | Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बाल शिक्षा व्याकरणस्याकारायनुक्रमेण सूत्रसूचि: । सूत्राणि ४६३ ह्यस्तन्यां दिस्योः । ४६४ ह्रस्वश्च ङवति । ११८ क्रमाङ्काः (का० व्या० २२५) पृष्ठाङ्काः क्रमाङ्काः सूत्राणि पृष्ठाङ्काः ४६५ ह्रस्वोऽम्बार्थानाम् । (का० व्या २ ११४० ) ४६६ ही प्रात्रोम्दनुदविदां वा । का० व्या० ४|६|११ ) ६६ ११ ॥ इति श्रीबालशिक्षाध्याकरणस्याकाराद्यनुक्रमेण सूत्रसूचि सम्पूर्णां ॥ & ६० Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बाल शिक्षाव्याकरणस्याकाराद्यनुक्रमेण धातुरूपसूचिः । धातुरूपाणि १ प्रक्षू णोति श्रक्षति क्रमाङ्काः ८५ २ श्रज, श्रजति ८५ ३ ० ( गति - पूजनयोः), प्रञ्चति ८५ ८५ 1 ४ अञ्च ( गतौ ), प्रञ्चति श्रश्वते ५ श्रज्जू, श्रनक्ति ६ श्रट, प्रति ७ श्रड्डु, ति ८ श्रति श्रन्तति श्रन्त्यते ६ श्रद्, श्रत्ति १० प्रध, श्रधयति ११ अन् प्राणिति १२ अन (प्राणने ), १३ श्रम ( गतौ ) श्रमति १४ प्रय् श्रयते- पलायते निरयते > निलयते १५ प्रर्द, प्रति १६ श्रचचं, चर्चति 1 पृष्ठाङ्काः क्रमाङ्काः अन्त्यते १७ व् प्रवति " १८ श (भोजने ), ग्रश्नाति १६ असू ( व्याप्तौ ), प्रश्नुते २० श्रसु (भुवि ), अस्ति २२ श्रसु (क्षेपणे), श्रस्यतिअपास्यति ८८ ८४ ८५ ८५ ८६ ८६ ८७ ८७ ८५ ८६ ८५ ८५ ८५ ८६ ८८ ८७ ८५. धातुरूपाणि २२ प्राच्छि श्राच्छति २३ प्राप्लु, श्राप्नोति २४ २५ श्रास्, आस्ते २६ इ ( गतौ ), ईते २७ इक्, श्रध्येति ८५ सद्, प्रासयति श्रासीदति ६६ ८७ २८, प्रधी २६ इट्, एटति ३० इरण, एति ३१ इदि इन्दति ३२ इन्धी (दीप्तौ), इन्द्वे ३३ इष, इच्छति ईड, ड, ईट्ट ३४ ३५ ई, ईति ३६ ईर ( गतौ कम्पते च), ३७ ईर्ष्या, ईर्ष्यति ३८ ईश, ईष्टे ३६ उख, प्रोखति ४० उङ्, प्र ४१ उन्दी, उनत्ति ४२ उब्ज, उब्जति पृष्ठाङ्काः ८५ ई ८५ ८७ ८७ ८५ ८७ ८५ ८८ द ८७ ८६ ८७ ८६ ८७ ८५ ८६ दद ८५ Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० बालशिक्षायाकरणस्याकाराद्यनुक्रमेण सूत्रसूधिः । क्रमाङ्काः सूत्राणि पृष्ठाङ्क: क्रमाङ्काः सूत्राणि पृष्ठाङ्काः ४३ उर्वी, उर्वति ४४ उष (दाहे), प्रोषति ४५ ऊयो, ऊयते ४६ ऊणु, प्रोर्णोति-प्रोणुते ४७ ऊह, ऊहते-समूहति-समूहते ४८ (गतौ), ऋणाति ४६ ऋ (गतौ), इति ५० ऋ (प्रारगरणे), ऋच्छति समियते-समृग्छति ५१ ऋच्छ, ऋच्छति-समृच्छते ५२ ऋज, अर्जते ५३ ऋण, ऋरपोति ५४ ऋत, ऋतीयते ५५ ऋधु, ऋध्यति-ऋध्नोति ६७ कित, चिकेत्ति ६८ कु, कौति-कुवति-कवति ६६ कुङ्. कवते ७० कुङ, कुवते ६७ ७१ कुट, कुटति ७२ कुथ, कुथ्यति-कुथ्नाति ७३ कुप, कुप्यति ७४ कुर, कुरति ७५ कुष्, कुष्णाति ७६ कूज, कूजति ७७ कृती (छेदने), कृन्तति ७६ ७८ कृती (वेष्टने), कृरणन्ति ७६ कृपू. कल्पते ८० कृवि, कृणोति ८१ कृश, कृश्यति ५२ कृष्, कृषति-कृषति-कर्षति ८३ कृ, किरति-अपस्किरते १०० ८४ के, कायति-कायते ८५ वनस्. क्नस्यात ८६ क्नूयी, क्नूयते ८७ क्रमु, कामति-क्रम्यति-क्रम्यते क्रमते ८८ क्रो, कीरणाति-क्रीगीते परिकीरणीते ८६ क्रीड्, क्रोडति-क्रोडते १० अध, क्रुध्यति ६१ कुश, क्रोशति &? क्लमु, क्लाम्यति ७७ ८६ ६७ ७६ ५६ एज, एजति ५७ एध, एधते ५८ अोल. पोखति ५६ अोहाक्, जहाति-हाङ्, जहोते ६० कथ, कथयति ६१ कनी, कनति ६२ कमु, कामयते ६३ कम्पि, कम्पते ६४ का, काशते-काश्यते ७ ६५ कास (शब्दकुत्सायाम्), कासते ७६ ६६ कि, चिकेति ७६ ७५ Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा व्याकरणस्याकाराद्यनुक्रमेण धातुरूपसूचिः । धातुरूपारिण ११६ गम्ल, गच्छति - गमयति १२० गाङ्, गाते-गाते १२१ गाहू, गाते १२२ गु, गुवति गवते २३ गुधु, गुध्नाति १२४ गुप, गुप्यति १२५ गुप्, जुगुप्सते - गोपते १२६ गुप्, गोपायते क्रमाङ्काः धातुरूपाणि ३ विश ( विबाधने), क्लिश्नाति ७६ ६४ क्षणु, क्षरणोति क्षणुते ६८ ६५ क्षमू. क्षाम्यति ६७ ६६ क्षल, क्षालयति Ε ६७ क्षि (क्षये), क्षयति ६३ ७८ ६८ क्षिण, क्षिणोति EE क्षिणु (हिंसायाम् ), क्षियति क्षिपाति १०० क्षिप् क्षिपति - क्षिपते १०१ क्षिवु, क्षेति १०२ क्षीवृ, क्षीवते १०३ क्षु, क्षौति १०४ क्षुदिर, क्षुत्ति १०५ क्षुष, क्षुध्यति १०६ क्षुभ, क्षोभते क्षुभ्यति १०७ क्षं, क्षार्यात १०८, क्ष्णौति-संक्ष्णुते १०६ क्ष्मायो, क्ष्मायते ११० क्ष्विदा, क्ष्वेदति-विद्यति पृष्ठाङ्काः | क्रमाङ्काः ११७ गण, गरणयति ११८ गद, गवति १११ खन, खनति, खनते ६५ ११२ खब, खौनाति ६६ ७८ ११३ वाह (भक्षणे), खादति ११४ खिदि (बैन्ये), खिद्यते ११५ खिन्ते ( परिघाते), विन्दति ७६ ७६ ११६ ख्या ख्याति ६१ ६३ ७७ ७४ ७६ ६६ ७७ ७५ ७२ εo ६६ ७६ ७१ GE ६० १३६ ग्रह, गृह्णति १३७ ग्लै, ग्लपपति-ग्लापयति १३२ ग ( शब्दे ), गृणाति । 6 १३३ गे, गायति- गोयते ( गाङस्तु ) गाय १३४ प्रथि (कौटिल्ये), ग्रन्थते १३५ ग्रन्थ (सन्दर्भे), ग्रथ्नीतेग्रन्थयति प्रत्यति १२१ पृष्ठाङ्काः १३८ घट, घटते-घाटयति १३६ घट ( चेष्टायाम्), घटते घव्यति १४० घृ घति १४१ घ्रा, मिति - प्रायते १२७ गुप्, गोपायति १२८ गुहू, गूहति- गूहते १२९ गृ, गरति १३० गृधू, गृध्यति गृभ्यते १३१ ग, (निगरणे), गिरतिगिलत-अगिरते संगिरते १०१ १०१ ६२ ६० ८० ६७ ७६ ७१ ७१ ७१ ७१ ७२ ह * ७५ ८६ ८४ ८४ ६६ ६० ६६ ६५ ६६ ६० Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२ बालशिलाम्पावरणस्याकाराखनुक्रमेण धातुरूपसूचिः। - क्रमाङ्काः धातुरूपाणि पृष्ठाङ्काः क्रमाङ्काः धातुरूपाणि पृष्ठाङ्काः १४२ चकास, चकास्ति १४३ चक्षिङ्, प्राचष्टे १४४ चट, चटति-चाटयति १४५ चप्. चपयति १४६ चम्, चमति १४७ चल, चलति-चलयति चालयति १४८ चाय, चायति-चायते १४६ चित्र, चिनोगि-चिनुते १५० चिट, चट्यते-चेटति १५१ चित्, चेतयते १५२ चिरि, चिरिणोति १५३ चुर, चोरयति १६७ जि, जयति-विजयते १६८ जिरि, जिरिणोति १६९ नि, नयति १७० जीव, जीवति १७१ जूरी जूर्यते १७२ ज, जीर्यति १७३, जप, ज्ञपयति १७४ ज्ञा, जानाति १७५ ज्ञा (निह्नवे), ___शतमपजानीते १७६ ज्ञा, झपयति १७७ ज्या, जिनाति १७८ ज्वर, ज्वरति १७६ ज्वल, ज्वलयति ज्वालयति-प्रज्वलयति ६० १८० डीड, डयते-डीयते ६३ १८१ डुकृञ् करोति-कुरुते-उपकुरुते. अधिकुरुते-बिकुरुते अनुकरोतिपराकरोति १०० १८२ राम्, नमति-नमते-नमयति नामयति-उन्नमयति १८३ रगश, प्रणश्यति १८४ गह, नाति-नह्यते १५ णिजिर, नेनेक्ति-नेनिक्त ७४ १८६ णिवि,निन्दति १८७ पोञ्, नयति-नयते-विनयते ६३ ६ | १८८ शु, नौति, प्रानुते ६६ १५४ छद, छादयति १५५ छम्, छमति १५६ छिदिर, छिनत्ति-छिन्ते १५७ छुप्, छुपति १५८ छ दिर, छुपत्ति- छुन्ते १५६ छो, छयति १६० जक्ष, जक्षिति-जक्षति १६१ जल्प, जल्पति १६२ जन (जनने), जजन्ति १६३ जनी, जायते १६४ जप्, जपति १६५ जभ, जम्भते १६६ जागृ, जागति Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बाल शिक्षाध्याकरणस्याकाराद्यनुक्रमेण धातुरूप सूचिः । धातुरूपारिण क्रमाङ्काः धातुरूपाणि १८६ प ( स्तवने), नुवति १६० तक्ष संतक्षति १६१ तक्ष ( तनूकरणे), तक्ष्णोति १६२ तन, तनोति तनुते १६३ तनु, तानयति - तनति-तनोति तनुति १६४ तप तपते तप्यते तपति तापयति १६५ तप ( सन्तापे), तपति वितपते - उत्तपते तप्यते १६६ तमु, ताम्यति १६७ तिज्, तितिक्षति - तेजते तेजयति १६८ तिपू तेपते १६६ तुद्, तुदति तुदति २०० तुर, नोति २०१ तुर्की तुर्वते २०२ तुष, तुष्यति २०३ तृ, तरति २०४ तृणु, तति २०५ तृदिर, तृणत्ति तन्ते २०६ तृप् तृप्नोति तृम्पतितर्पयति तर्पति २०७ तृम्प, तृम्पति २०८ तृहि तुढि २०६ तहू, स्तह (?) २१० त्यम, त्यजति पृष्ठाङ्काः | क्रमाङ्काः ६८ ८१ ८१ ६८ ६६ ७० ६७ ७१ ७१ ७७ ७३ ८१ ७५ १०० ७८ ७८ ७५ ८४ ८४ ७७ ६३ २११ त्रपू, पते २१२ सी त्रसति - त्रस्यति २१३ ङ. त्रायते २१४ त्वर, त्वरते- त्वरयति २१५ त्विष्, त्वेषति - त्वेषते २१६ दंशि, दंशति २१७ दक्ष, दक्षते - दक्षयति २१५ दव, ददते २१६ दम्भ, दम्नोति २२० द. दमयति २२१ दय, दयते २२२ दरिद्र, दरिद्राति २२३ दह दहति २२४ दाञ् ददाति २२५ दान, दीवांसति-दीदांसते २२६ दासृ दासति दासते - १२३ पृष्ठाङ्काः ६४ ६७ 80 ६५ ७२ ८३ ८१ ६४ ८४ ६७ ६४ 0000000 ६३ ६२ ८० το २२७ दिव, दीव्यति २२८ दिवु (परिकूजने), देवयते २२ दिश् दिशति-दिशते २३० दीङ्, उपदीयते २३१ बोधीञ्, प्रादधीते २३२ दोपी, दीप्यते ५० २३३ दु ( गतौ ), दति ६५ २३४ दुष्, दुष्यति दूषयते-दोषयति ७५ २३५ दुह, दोग्धि - दुग्धे ७३ २३६ हति १०१ ३७ दृप, दुष्यति ७४ ७८ ७७ ६४ ૨૪ ७५ Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४ बालशिक्षाव्याकरणस्याकाराद्यनु मेण पातुरूपसूचिः । क्रमाङ्काः धातुरूपाणि पृष्ठाङ्काः । क्रमाङ्काः धातुरूपाणि पृष्ठाङ्काः २६२ ध्वज, ध्वजति २६३ ध्वन् (शब्दे), ध्वनति ध्वनयति-ज्वानयति २३८ दृशिर, पश्यति-सम्पश्यते-दृश्ये ७१ २३६ दृहि, दृहति २४० धुत, द्योतते २४१ दू, द्रवति २४२ द्रुह, द्रुह्यति २४३ द्विष्, द्वेष्टि २६४ नट, नाटयति २६५ नवि, नन्दति २६६ नाथ (माशिषि). नाथते. नाथति २६७ नुन, नुदति-नुदते २६८ नृती, नृत्यति 9 ६७ : m २४४ धन, दधन्ति २४५ धवि, धण्वति २४६ धाञ् दधाति २४७ धावु (गतिशुद्धयोः), धावति ८० २४८ धिवि, धिनोति २४६ धुन (कम्पने), धुनोति धुनुते २५० 5 (विधूनने), धुवति २५१ धूञ् (कम्पने), धुनाति धूनयति-धुनीते-भवति धुनोति धवते-धुनुते २५२ धूप, धूपायति २५३ धृङ् (प्रवध्वंसने), धरते २५४ धृङ (प्रवत्थाने) त्रियते २५५ धृञ् (धारणे), धरति २५६ धृजु, धर्जति २५७ धृषा, धृष्णोति २५८ घेट, धयति २५६ मा, धमति-ध्मायते २६० ध्रु, ध्रवति २६१ ध्वसु, ध्वंसते १८ २६९ पच (व्यक्तीकरणे), पचते ६४ २७० पचष् (पाके), पति-पचते ६५ २७. पठ, पठति २७२ पण, पणायते २७३ पत्ल् पतति २७४ पद् पद्यते २७५ पन, पनायते २७६ पा, पाति २७७ पा (पाने), पिबति २७८ पिश्. पिशति २७६ पिष्ल, पिनष्टि २८० पीड, पौडयति २८१ पूङ, पवते-पुनाति-पुनीते २८२ पूज् पूजयति २८३ पूयो, पूयते २८४ पूरी, पूर्यते २८५ पुष, पुष्यति-पोषति पुष्णाति ७४ ७६ ८२ ८० Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षाण्याकरणस्याकाराखनुक्रमेण पातुरूपसूचिः। १२५ क्रमाङ्काः धातुरूपाणि पृष्ठाङ्काः क्रमाङ्काः धातुरूपाणि पृष्मकाः ८७ ७ ७७ १०१ १४ ७६ २८६ पृ (पालनपूरणयोः), पिपति ६६ ३०८ भजो, भनक्ति २८७ पृ (पूरणे) पारयति ३०६ भज्, भजति-भजते २८८ पृ (प्रीतौ), पूरगाति ३१० भरण भरगति २८६ पृङ (व्यायामे), व्याप्रियते ६६ ३११ भस, बभस्ति २९० पृच् पर्चयति-पर्चति ७८ ३१२ भा, भाति २९१ पृचो, पृक्ते-पूरणक्ति ३१३ भाशु (वीतो), भासते २६२ पृच्छ, पुच्छति-प्र,पृच्छत ३१४ भाष, भाषते २६३ पृणु, परणाति ३१५ भाम्, भामते २६४ पृथु, पर्थयति ३१६ भिदिर, भिनत्ति २९५ १, पृणाति ३१७ भी, बिति २९६ प (शोषणे), पायति ३१८ भुज, भुनक्ति ३६७ प्यायो (वृद्धौ), प्राप्यायते ३१६ भुजो, भुजति २६८ प्यङ्, प्राप्थायते १० ३२० भू, भवति २९६ प्रीङ् (प्रीतो), प्रीयते ६५ ३२१ भृग, बिति-विभृते ३०० प्रीञ् (तपणे), प्राययति ३२२ भृन्, भरति-भरते प्राययते-प्रयति-प्रयते ३२३ भृजी, भजते ३०१ प्रीज् (तर्पण कान्तौ च), ३२४ भ्रसु (प्र अंसने), अंसते प्रोणाति-प्रोणीत ३२५ भ्रमु, भ्रम्यति-भ्राम्यति ३०२ फण, फरणति-फरणयति- ३२६ भ्रस्ज, भृज्जति-भज्जते फारगयति ३२७ भ्राज, भ्रानते ३२८ भ्राज भ्राजते ३०३ बध (बन्धने), बध्नाति ३२६ भ्रास, भ्रास्यते-भासते ३०४ बच्; बीभत्सते-बषते ३०५ बुध (अवगमने), बुध्यते ३३० मी, माद्यति-मत्यतिबोधति मादयति ३०६ बुधिर् (बोधने), बोषति- ३३१ मन्, मन्यते ... बोधते ३३२ मनु, मनुते ३०७ बम, ब्रवीति-जूते १८ | ३३३ मन्य, मन्थति-मन्याति Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६ बालशिक्षाम्याकरणस्याकारानुक्रमेण धातुरूपसूचिः। - क्रमाङ्काः धातुरूपाणि पृष्ठाङ्काः | क्रमाङ्काः धातुरूपाणि पृष्ठाङ्काः ७७ ८३ ३३४ मस्जी, मजति ३६० यती, यतते ३३५ मा, माति ३६१ यभ, यभीत ३३६ माङ्, मिमीते-मीयते ३६२ यम्, यच्छति-प्रायच्छते३३७ मान्, मीमांसते-मानयति उपयच्छते-यमयति-यामयति ६२ ३३८ मार्ग, मार्गयति-मार्गति ___८१ ३६३ यम, यमयति ३३६ मिङ्. मिनोति-मिनुते ६५ ३६४ यु, यौति ३४० मिदा, मेदते-मद्यति ७२ ३६५ युज (समाधौ), युज्यते ३४१ मिह, मेहति ७१ ३६६ युज्. योजयति-योजति ३४२ मी (गतौ), माययति-मयति ६५ ३६७ युजिर, युनक्ति-युङ्क्ते ३४३ मीङ, मीयते ६४६५ ३६८ युञ् युनाति युनीते ३४४ मुच्च, उच्चति-मुञ्चते ३६६ युध, युध्यते ३४५ मुष्. मुष्णाति ३४६ मुह मुह्यति ३७० रज, रजति-रजते-रख्यते३४७ मूर्छा, मूर्च्छति ____ रज्यति-रब्जयति ३४८ मृङ, म्रियते ३७१ रध हिंसायाम् संराधने), ३४६ मृजू माष्टि रध्यति ३५० मृडु, मृणाति ३७२ रभ, प्रारभते-प्रारम्भयति ३५१ मृदु, मृनाति ३७३ रमु, रमते ३५२ मृश्. मृशति ३०४ रवि, रिण्वति-रण्वति ३५३ मृष, मृध्यति-मृष्यते ३७५ राज़, राजति-राजते ३५४ मृषु (सहने), मर्षति-मर्षयते- ३७६ राध, राध्यति-राध्यते मर्षते ३७७ रिचिर रिक्ति ३५५ मेङ, प्ररिणमयते ३७८ रिश्, रिशति ३५६ ना, मनति । ३७६ रोङ् (श्रवणे), रोयते३५७ म्लेच्छ म्लेच्छति रिणाति ३५८ म्ल, म्लायति ३८० रु, रोति - ३८१ रु. रवते ३५६ यन्, यनति-पजते ६५ । ३८२ रुच, रोचते Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्काः धातुरूपाणि पृष्ठाङ्काः क्रमाङ्काः धातुरूपाणि पृष्ठाङ्काः ३८३ रुजो, रुजति ३८४ दिर्, रोदिति ३८५ रुधिर, रुणद्धि ७७ ३८६ रुश, रुति ३८७ रुष, रुध्यति ३८८ म्ह, रोहति-रोहयति रोपयति ३८९ रोड, रोडन्ति ७६ ३९० लक्ष लक्षति-लक्षयते ३६१ लगि, लंगति ३६२ लगे लगति-लगयति ३६३ लड, लडति ३६४ लभ, लभते ३९५ लल, ललति ३९६ लस्जी, लज्जते ३६७ ला, लाति ३९८ लिप्, लिम्पति-लिम्पते । ३६६ लिहा लेहि-लोढे ४०० लिश (अल्पीभावे), लिश्यति ७६ ४०१ लिश (गतौ), लिशति ७६ ४०२ ली (द्रवीकरणे) विलाययति ६५ ४०३ लीङ् (श्लेषणे), लीयते ४०६ वच, वक्ति ४१० वच, वचति. वाचयति ४११ वञ्च (गतो), वञ्चति । ४१२ वञ्च (प्रलम्भने), वश्चयते ४१३ वद (स्थर्य), वदति । ४१४ वद्, वदति-वदते-अनुवदते । ४१५ वद, वदति-वदते-वादयते ७० ४१६ वनु, वनुते-वनयति-वानयति ६८ ४५७ वप, वपति ४१८ वमु (उद्भिरणे), वमति वमयति-वामयति ४१६ वह, वहति-वहने ४२० वश्, वष्टि ४२१ वस्, वसति ४२२ बस् (माच्छादने), वस्ते ४२३ वा, वाति ४२४ वाह, वाहते ४२५ विचिर्, विनक्ति-विन्ते ४२६ विच्छ, विच्छायति ४२७ विच्छ, विच्छायति ४२८ विजी, विक्ति ४२६ विद, वेत्ति ४३० विद्, विद्यते ४३१ विद् (विचारणे), विन्ते ४३२ विदल, विन्दति-विन्दते. ४३३ विश्, विशति ४३४ विषल, वेवेष्टि-वेविष्टे लिनाति ४०४ लुम्चे, लुञ्चति ४०५ लुट्, लुट्यति-लोट ति ४०६ लुप्ल, लुम्पति-लुम्पते ४०७ लुभ, लुभ्यति • ४०८ लू, लुनाति-लूनीते Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२८ बालशिक्षाव्याकरणस्याकाराखनुक्रमेण पातुरूपसूचिः । - क्रमाङ्काः धातुरूपाणि पृष्ठाङ्काः क्रम ङ्काः धातुरूपाणि पृष्ठाङ्काः ७५ ४३५ वी, वेति ४५६ शसि (इच्छायाम् ),प्राशंसते ८३ ४३६ वीङ, बीयते-वीणाति ६५ ४६० शसु (प्लुतगती-हिंसायाम् ), ४३७ वृङ् (सम्भक्तो), वृणीते १E शसति ४३८ व्रजी, वृक्त-वृक्ति-वर्जयति ४६१ शान्, शीशांसति-शीशांसते ८० वर्जति ७३ ४३६ वृञ् (वरणे), वृणीति-वृणुते ६६ ४६२ शास् , शास्ति ४४० वृतु, वत्तंते ४६३ शिष्ल, शिनष्टि ४४१ वृधु, वर्द्धते ४६४ शोङ , शेते ४४२ वृहि, वहति-वृहति ४६५ शील, शीलति-शीलयति ४६६ शुच , शोचति ४४३ वृहू, वृहति ४४४ वन, वृणाति-वृरलीते ४६७ शुचिर, शुच्यति-शुच्यते ४४५ वेज, वयति-वयते ४६८ शुध, शुध्यति ४४६ वेष्ट, वेष्टते ४६६ शुभ, शोभते ४४७ वे (शोषले), उद्वायति ४७० शुष् , शुष्यति ४४८ व्यच् विचति ४७१ शौड, शौडति ४४६ व्यथ् , व्यथते-व्यथयति ४७२ श्च्युतिर, श्च्योतति ४५० व्यध, विध्यति ४७३ श्यते, श्यायते ४५१ व्येन, व्ययति, व्ययते ४७४ अंसु.(प्रमावे), श्रंसते ४५२ बन, व्रजति ४७५ श्रथि (शथिल्ये), अन्यते ८४ ४५३ वश्चू, ४७६ श्रन्थ (सन्दर्भ), श्रश्नोते४५४ शंसु. (स्तुतौ), प्रशस्यते ८३ श्रन्थयति, श्रन्थति ८४ ४५५ शदल, शीयते, शादयति, ४७७ श्रन्थ (विमोचनप्रतिहर्षरणयोः), शातयति, भन्थाति ४५६ शप, शपति-शपते-शप्यति- ४७८ श्रमु, श्राम्यति शप्यते ४७६ अम्भु, श्रम्भते ४५७ शम्, शामयति-शमयति ६६ | ४८० श्रा (पाके), धाति-श्रायति ९१ ४५८ शमु, शाम्यति-शमयति ४८१ श्रिा, अयति-श्रयते १४ निशामयति ६७ । ४८२ श्रिवु, श्रीव्यति ७६ ७० Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षःव्याकरणस्याकारानुकमेण चातुरूपसूचिः । १२६ - क्रमाङ्काः धातुरूपाणि पृष्ठाङ्काः क्रमाङ्काः धातुरूपाणि पृष्ठाङ्काः ४८३ श्रु, (श्रवणे)शृणोति ५०६ ष्ठिवु, ष्ठीव्यति-ष्ठीवति ७४ सशृणुते ५०७ ष्णुह, ४८४ श्लिष, श्लिष्यति ५०८ णिह, ४८५ श्वस्, श्वसिति ५०६ ष्वञ्ज, परिष्वजते ४८६ शिव, श्वयति-श्वयते ५१० ध्व, स्वपिति ४८७ षञ्ज, सजति ५११ विदा, स्वेदते-स्विद्यति ४८८ षण् , सनोति-सनुते ५१२ सद, सीदति ४८९ बदल, सीदति ४६० षस् (स्वप्ने), सस्ति ५१३ साध्, साध्यति-साध्यते ४६१ षह, साहयति-सहति ५१४ साम, सामयति ४६२ पिचिर्, सिञ्चति-सिञ्चते ७७ ५१५ सुज् (अभिषवे), ४६३ षिञ् , सिनोति-सिनुते-सिनाति- सुनोति-सुनुते सिनीते ५१६ सूच, सूचयति ४६४ षिषु (संराद्धौ), सिध्यति ७० ५१७ सूत्र, सूत्रयति ४६५ षिधु (गत्याम), सेधति-परिसेधति ५१८ सृ, (वेगे धावति), अनुसरतिप्रतिषेधति ___ससति ४६६ विधू, सेधति ७० ५१६ सृज सृजति ४६७ षु, (प्रसवे), सवति-सौति ६६ ५२० सृप्ल, सर्पति ४६८ पू, (प्रेरणे), सुवति ९७ ५२१ स्कन्दिर, स्कन्दति ४६६ षङ, (प्रारिणप्रसवे), सूयते ६७ ५२२ स्कुञ्, स्कुनाति-स्कुनीते५०० पूङ् (प्रारणगर्भविमोचने),सूते ६७ स्कुनोति-स्कुनुते १७ ५०१ षो, स्यति ५२३ स्खद्, स्खदते स्खदयति ६५ ५.२ ष्टुञ्, स्तौति-स्तवीति-स्तुते ९७ ५२४ स्तम्भु, स्तम्नाति स्तम्नोति ८४ ५०३ ष्टुभ् स्तोभते, ५२५ स्तम्, स्तृणाति-स्तृणुते ६९ ५०४ ष्टय, ध्यायति ५२६ स्तृज्, स्तृणाति-स्तृपीते १०१ ५०५ ष्ठा, तिष्ठति-प्रातिष्ठते ५२७ स्त्य, स्त्यायति तिष्ठते-संतिष्ठते-उपतिष्ठते- ५२८ स्मृ, प्रस्नुते उपतिष्ठति ८६ । ५२६ स्पन्दू, स्पन्दते ७० Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३० बालशिक्षाग्याकरणस्याकाराद्यनुक्रमेण धातुरूपसूचिः । क्रमाङ्काः धातुरूपाणि पृष्ठाङ्काः क्रमाङ्काः धातुरूपाणि पृष्ठाङ्काः ६६ ५३० स्पर्द्ध, स्पर्द्धते ५३१ स्पृश, स्पृशति ५३२ स्पृह, स्पृहयति ५३३ स्फायी, स्फायते ५३४ स्फायी, स्फायते ५३५ स्फुट, स्फोटते ५३६ स्फुट, स्फुटति-स्फोटयति ५३७ स्फुटिर्, स्फोटति-स्फुटति ५३८ स्फूच्र्छा (स्फूछत) ५३६ स्मिङ्, स्मयते ५४० स्मृ, स्मरति ५४१ स्यम (शब्दे), स्यमति ५४२ स्वन (शब्दे), स्वनति ५४३ स्वृ, स्वरति-संस्वरते ५४४ हद, हदते ५४५ हन, हन्ति-पाहते ५४६ हसे. हसति ५४७ हिसि, हिनस्ति ५४८ हु, जुहोति ५४६ हू . हर्च्छति ५५० ह (प्रसह्यकरणे), जहत्ति । ५५१ ह, हरति-हरते ५५२ हृञ् (गत्यनुकरणे), अनुहरन्ते ५५३ हष, हर्षति ५५४ ह.ष, हृष्यति ५५५ हेड्, हेडत्ति ५५६ ह नुड , अपह नुते ५५७ ह्री, जिहति • ५५८ ह्लादी, ह्लादते ५५६ ह्येन , ह्वयति-ह्वयते अाह्वयते निह्वयते ~ ॥ इति श्रीबालशिक्षाध्याकरणस्याकाराद्यनुक्रमेण धातुरु पसूचि. ॥ ernational www.jainel Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षाव्याकरणस्याकारायनुक्रमेण पारिभाषिकशब्दसूचिः । क्रमाङ्काः शब्दरूपाणि पृष्ठाङ्काः क्रमाङ्काः शब्दरूपाणि पृष्ठाङ्काः १ प्रक्क २ अक्षयू ३ अक्षि ४ अग्निः ५ अग्रेगा ६ अघवन्त ७ अच ८ प्रतिजरस् ६ अतित्त्वम् १० प्रतिदिव ११ प्रतिनदि १२ अत्त १३ अत्यहम् १४ अदकः १५ प्रदती १६ प्रदन्त १७ अदमुयश्च १८ अदस् १६ अद्रघञ्च २० अनड्वाह २१ अनर्वन २२ अनुष्टुभ् २३ अनेहा २४ अन्तरं २५ प्रन्य २६ अन्यत् २७ अन्यतर २८ अपाञ्च २६ अप् ३० अप्सरस् ३१ अब्जजा ३२ अभ्रलिह ३३ प्रमुकः ३४ अमुका ३५ अमुद्रचञ्च ३६ प्रमुमुयश्च ३७ अम्ब ३८ अम्बाडे ३६ अम्बाले ४० अम्बिके ४१ अम्बु ४२ अम्बुमुच ४३ प्ररितुफ् ४४ अरमन ४५ अचिस् २७ । ४७ अर्द्धभान् Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३२ बालशिमाथाकरणस्याकार द्यनुकपेण पारमाविकशममूचिः । क्रमाङ्काः शब्दरूपाणि पृष्ठाङ्काः | क्रमाङ्काः शब्दरूपाणि पृष्ठाङ्काः ७५ उक्षन् ७६ उखात्रत् ७७ उज्ज्वल ७८ उदङ् ७६ उवधिका ८० उदश्वित् ८१ उपानह, ८२ उभ ८३ उभय ८४ उरु ८५ उशना ८६ उष्ट्रपाद् ८७ उष्णिह, ७,३१ ४८ अर्यमन् ४६ प्रर्वती ५० अर्वन ५१ प्रल्प ५२ अल्ल ५३ प्रवी ५४ अव्यय ५५ अशीति ५६ प्रसको ५७ असु ५८ असृज ५६ अस्थि ६० अस्मद ६१ प्रह ६२ अहिहन् ६३ अहं ६४ प्राङ्ग ६५ प्राङ्गिरस ६६ प्रायः ६७ प्रात्मन् ६८ प्रात्मभूः ६६ आशिष ७० इतर ७१ इदकम् ७२ इव ७३ इन्दु ७४ इयकम् ८८ च् স্কুল ६० ऋभुक्षि ६१ एक ६२ एकतमः ६३ एकतयः ६४ एकतरः ६५ एकपाद ९६ एतत् ६७ एतद् ७,२६ ६८ एनत् ६९ एषा २६ । १०० एषः Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्काः १०१ एषिका १०२ एषक: १०३ प्रौ १०४ ककुभ् १०५ कङगु १०६ किन् १०७ कटप्रू १०८ कण्डू १०६ कतमः ११० कतरः १११ कति ११२ कतिपय बालशिक्षा व्याकरणस्याकाराद्यनुक्रमेण पारिभाषिकशब्दसूचिः । शब्दरूपारिण ११३ करिष्यती ११४ करिष्यन्ती ११५ कर्तृ ११६ कर्मन ११७ कालिङ्ग ११८ काष्ठतक्ष ११ काभिद् १२० किमः १२१ किम् १२२ कियन्त् १२३ कीलालपा १२४ कुचभृश् १२५ कुण्डम् १२६ कुम्भपदी १२७ कृतयन्त् पृष्ठाङ्काः | क्रमाङ्काः २१ २१ २५ १२ २३ १४ १३ ८ ८ ३१ ७ २० २० १५ २४ ८ ३० २० ८ ७,२६ १६ १० २७ ७ २१ १६ १२८ कृतव् १२६ कृतानुष्टुभ् १३० कृत्तिका १३१ कृष्ण १३२ कोटि १३३ कोटि १३४ कौत्स शब्दरूपारिण १३५ क्रव्यात् १३६ क्रोष्टु १३७ क्षत्ता १३८ क्षेत्रल १३६ क्ष्माभुलू १४० खलपू १४१ गतधू १४२ गतभी १४३ गरीयस् १४४ गर्द्धभ १४५ गवाञ्च १४६ गाधपदी १४७ गार्ग्य १४८ गिर् १४६ गुरु १५० गुहलिप् १५१ गृहविविक्ष १५२ गो १५३ गोलञ्च १५४ गो १३३ पृष्ठाङ्काः २६ २५ १० ७ ३१ ३२ £ २० १३ १४ 22 ૪ १८ ૪ १४ १२ २८ २५ १७ २१ m २६ १३ २५ ३१ १६ १७ १७ Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .१३४ बालशिक्षाव्याकरणस्याकारानुक्रमेण पारिभाषिक सूचिः । क्रमाङ्काः शब्दरूपाणि पृष्ठाङ्का: क्रमाङ्का: शब्दरूपाणि पृष्ठाङ्काः १५५ गोत्रहन १५६ गोदुधुक्ष १५७ गोदुह. १५८ गोमन्त १५६ गोरक्ष १६० गोषा १६१ गोहन १६२ गौतम १६३ ग्रामरणी १६४ ग्लो १६५ घट १८१ जगत् १८२ जगन्वस् १८३ जलमुच १८४ जरा १८५ जामातृ १८६ जाम्बूवन्त १८७ गिगिवन्स् १८८ जितपुर १८६ जुह्वती १६० जुह्वत् १६१ ज्ञात १६२ ज्ञानबुध् १६६ चकृवन्स् १६७ चक्षुस् १६८ चतुष्टय १६६ चत्वारिंशत् १७० चत्वारः १७१ चन्द्रमस् १७२ चमू १७३ चम्मवस् १७४ परम १७५ चमन् १७६ चिकीर्ष १७७ चिचिवन्स १७८ चित्त १७६ चित्रलिख १८० चेतस् १६३ तक्रम १६४ तक्षन् १६५ तडित् १९८ ततमः १६७ ततरः १९८ तति १९६ तत्त्वविद २०० तद् २०१ तद्रयश्च २०२ तन्त्री २०३ तरी २०४ तादृश् २०५ तावन्त .२०६ तिर्यच २८ । २०७ तुदती Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रपाङ्कः २०८ तुदत् २०६ तुदन्ती २१० तुरासाह २११ तुष्टुवन्स् २१२ तूष्णीम् २१३ तृष्टुभ् २१४ तृष्णुज् २१५ त्यक्तहो २१६ त्यद् २१७ त्रयः २१८ त्रि २१६ त्रितय २२० त्रिंशत् २२१ त्व २२२ त्वकं २ ३ त्वच् २२४ वर् २२५ त्वष्टा २२६ त्विष् २२७ त्वं शब्दरूपाणि बालशिक्षाव्याकरणस्याका सानुक्रमेण पारिभाषिक शब्द सूचिः । शब्दरूपाणि २२८ दत्ताशिष् २२६ दधि २३० दधृष् २३१ दध्यश्च २३२ दलस्पृश् २३३ दशा २३४ दामलिह पृष्ठाङ्काः क्रमाङ्काः २० २० ३० २६ २६ २५ १८ १२ ७ 19 ७,३१ ७ ३२ ७ २१ १६ २६ १४ २७ २१ २७ ११ २७ १७ २७ १० २० २३५ दार २३६ दिधीर्ष २३७ दिव २३८ दिव्यदृश् २३६ दिश २४० दीर्घाङ्गुलि २४१ दुःखहृत् २४२ दुहितृ २४३ दृश २४४ दृषदश्व २४५ दृष्टककुभ् २४६ दृष्टड् २४७ देवद्रचञ्च् २४८ देवप्री २४६ देवयजी २५० देवश्लाघ् २५१ देवेज् २५२ दोष २५३ दोषन् २५४ दोस् २५५ द्यो २५६ द्रव्य जिघृक्ष २५७ द्रुह २५८ द्वय २५६ द्वार २६० द्वि २६१ द्वि २६२ द्वितय १३५ पृष्ठाङ्काः ७ २७ २६ २७ २७ ११ १८ १४ २७ १७ २५ १६ १७ १२ ११ १६ १६ ७ ७ २८ १८ ३१ ३० 19 २६ 2 ३१ ७ Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षाध्याकरणस्याकारानुक्रमेण पारिभाषिक शब्दसूचि : क्रमाङ्काः शब्दरूपाणि पृष्ठाङ्काः क्रमाङ्काः शब्दरूपाणि पृष्ठाङ्काः २६३ द्विपाद २६४ द्विष् २६० निधि २६१ निनोवन्स २६२ निश् २६३ निशा २९४ निशा २९५ नी २९६ नोरुज् २६७ नोवृत् २९८ नेम २६६ नेष्टा ३०० नौ २६५ घनिन् २६६ धनुस् २६७ धर्मपिपृक्ष, २६८ धर्मसिक्ष २६६ धवल २७० धानाभ्रस्ज २७१ धी २७२ धीवन् २७३ धुर २७४ धूमपा २७५ धूलि ४६ घृतधुर २७७ धृष्णुज २७८ घेनु २७६ नग्नहू २८० नत २८१ नवी २८२ ननान्ह २८३ नप्ता २८४ नरपति २८५ नवतिः २०६न २८७ नाटयनट २०८ नारी २८६ निगुह ३०१ पचतो ३०२ पचन ३०३ पचन्त ३०४ पश्चतय ३०५ पञ्चन् ३०६ पञ्चाशत् ३०७ पट ३०८ पटिमन ३०६ पटु ३१० पठितड् ३११ पडितद ३१२ पठितहल ३१३ पति ३१४ पथिप्राच्छ ३१५ पद ३१६ पन्थाः Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षाव्याकरणस्याकारागनुक्रमेण पारिमाधिकशब्दसूचिः । १३७ कमाङ्काः शब्दरूपाणि पृष्ठाङ्काः | क्रमाङ्काः शब्दरूपाणि पृष्ठाङ्काः ३४५ पूषन् ३४६ पृथु ३१७ पन्थि ३१८ पयस् ३१६ परभृत् ३२० परमनी ३२१ परमलू ३२२. परमे ३२३ परार्द्ध ३२४ परिमृज ३२५ परिव्राज ३२६ पर्वन् ३२७ पाश्चाल: ३२८ पाद ३२९ पापमुमुक्ष ३३० पापलुप् ३३१ पामन् ३३२ पिण्डग्रस् ३३३ पितृ ३३४ पितृष्वस ३३५ पिपक्ष ३३६ पी ३३७ पोवन् ३३८ पुत्रचुम्ब ३३६ पुनर्भू ३४० पुमन्स ३४१ पुर ३४२ पुरुदंशा ३४३ पुरोषस् ३४४ पूर्व ३४७ पृथुश्री ३४८ पेचिवन्स् ३४६ पोता ३५० प्रक्वरण ३५१ प्रगुरण ३५२ प्रताम् ३५३ प्रतिदिवन ३५४ प्रतिभू ३५५ प्रत्यङ् ३५६ प्रत्यञ्च ३५७ पथम ३५८ प्रदान ३५६ प्रधी ३६० प्रभी ३६१ प्रभुद् ३६२ प्रलू ३६३ प्रशाम् ३६४ प्रशास्ता ३६५ प्रवाह ३६६ प्राञ्च ३६७ प्रारण ३६८ प्राप्तवी ३६६ प्राप्तशम् ३७० प्रावृष् ३७१ प्रियकति ७ । ३७२ प्रियक्ल Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३८ क्रमाङ्काः ३७३ प्रियस्ल ३७४ प्रियङ्गु ३७५ प्रियचत्वार ३७६ प्रति ३७७ प्रियत्रि बालशिक्षा व्याकरणस्याकारानुक्रमेण पारिभाषिकशसूचिः । शब्दरूपाणि पृष्ठाङ्काः क्रमाङ्काः शब्दरूपारिण ३६६ भवकत् ४०० भवकती ३७८ प्रियत्रिंशद ३७६ प्रियपञ्चन् ३५० प्रविशति ३८१ प्रियषष् ३८२ प्रियाष्टन् ३८३ प्साती ३८४ प्सान्ती ३८५ फलोज्झ ३८६ बटु ३८७ बहुत्विष् ३८ बहुरं ३८९ बहुविष् ३६० बहुसंपद् ३१ बहुस्वस्त्री ३९२ बहूज् ३९३ बह्वप ३६४ बिन्दु ३६५ बुद्धि ३९६ ब्रह्मघ्री ३६७ ब्रह्मन् ३६८ भगवन्त १५ १२ ३२ ३२ ३२ ३३ ३२ ३३ ३२ ३२ २० २० १६ १२ २७ १५. २७ २० १५ १८ २५ १२ १० २४ २४ १६ ४०१ भवकान् ४०२ भवन्तु ४०३ भार्गवः ४०४ भास् ४०५ भास्वन्त ४०६ भी ४०७ भीरु ४०८ भू ४०६ भूभुज् ४१० भूमि ४११ भ्रस्ज् ४१२ भ्राज् ४१३ भ्रातृ ४१४ अ वाह, ४१५ भ्र ू ४१६ हन् ४१७ मघवन् ४१८ मघा ४१६ मज्जन् ४२० मति ४२१ मातृ ४२२ मधुलिलिक्ष् ४२३ मधुलिह ४२४ मधुलिह ४२५ मधुहन पृष्ठाङ्काः १६ १६ १६ १६ & २८ १६ १२ १३ १३ १८ १० १८ १८ १४ ३० १३ २४ २३ ama & a ~ ~ १० २३ १० १४ ३१ २६ ३० २३ Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षाग्याकरणस्याकाराधनुक्रमेण पारिभाषिकशबसूचिः। १३९ क्रमाङ्काः शब्दरूपाणि पृष्ठाङ्काः | क्रमाङ्काः शब्दरूपाणि पृष्ठाङ्काः ४२६ मध्वञ्च ४२७ मध्वन् ४२८ मनोभू ४२६ मन्त्रजप् ४३० मन्थि ४३१ मरुत् ४३२ महत् ४३३ महती ४३४ महन्त ४३५ महस् ४३६ महापू ४३७ महिमन् ४३८ मही ४३६ मागध ४४० माला ४४१ मालागुम्फ ४४२ मास ४४३ मास् ४४४ मित्रध्रक ४४५ मी ४४६ मुमूर्ष ४४७ मुह ४४८ मूर्द्धन ४४६ मूलवृश्च ४५० मृज ४५१ मृश् ४५३ यकृत ४५४ यकः ४५५ यज् ४५६ यन्वन् ४६७ यतमः ४५८ यतरः ४५६ यति ४६० यद् ४६१ यद् ४६२ यद्रयश्च ४६३ यवक्री ४६४ यवलू ४६५ यादृश् ४६६ यावन्त ४६७ यास्क ४६८ युज ४६६ युवन् ४७० युष्मद् ४७१ युष्मद् ४७२ यूप ४७३ यूप ४७४ योषित् ४७५ योषिदञ्च ४७६ यः ४७७ रक्त ४७८ रज्जु ४७६ राज् ४५२ यका Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४० क्रमाङ्काः ४८० राजन् ४८१ राजयुध्दन् ४८२ रिपुस्तक्ष ४८३ रुच् ४८४ रुष् ४८५ ₹ ४६० लघु ४६१ लाज ४८६ लक्ष ४८७ लक्ष्मी ४८८ लक्ष्मीवन्त् ४८६ लघयन्स् ४६६ वणिज् ४६७ वधू बाल शिक्षाध्याकरणस्याकाराद्यनुक्रमेण पारिभाषिक शब्दसूचिः । पृष्ठाङ्काः क्रमाङ्काः शब्दरूपाणि ५०७ वाजिन् ५०८ वातप्रमी ४६२ लाह्य ४६३ लिखितच् ४६४ लिखित ४६५ ली ४६८ वपुस् ४६६ वररणा शब्दरूपाणि ५०० वर्षा ५०१ वर्षाभू ५०२ वसु ५०३ वस्तु ५०४ वाक्य विवक्ष ५०५ वाङ्ग ५०६ वाच् २३ २४ ३० १६ २७ १५ ३२ १२ १६ २८ १३ G ७ ἐ १८ १६ १२ १८ १३ २८ १० १० १४ १३ १३ ३१ ८ १६ ५०६ वात्स्य ५१० वारि ५११ वारिधो ५१२ वार् ५१३ वासा ५१४ वासिष्ठ ५१५ विक्रध् ५१६ वित्त ५१७ विदभ् ५१८ विद्वन्स ५१६ विद्विष ५२० विपुष् ५२१ विमलदिव् ५२२ विमल ५२३ विविक्ष ५२४ विश् ५२५ विषखा ५२६ विष्वद्रचञ्च ५२७ विश्व ५२८ विश्वदृश्वन् ५२६ विशति ५३० वृक्ष सिसिक्ष ५३१ वृक्षः ५३२ वृत् ५३३ वृत्रहन् ५३४ वेधस् पृष्ठाङ्काः २३ ११ ह १० ३२ २६ १० ६ २३ 67 २५ २६ २७ २७ २६ २६ ३१ २६ १० १७ ७ २४ mus 9 mi ३१ ३१ ७ २३ २७ Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षाव्याकरणस्याकाराद्यनुक्रमेण पारिभाषिकशन्दसूचिः । १४१ - - क्रमाङ्काः शब्दरूपाणि पृष्ठाङ्काः क्रमाङ्काः शब्दरूपाणि पृष्ठाङ्काः - ५३५ वैद ५३६ वैदेहः ५३७ वश्च ५३८ व्याघ्रपदी ५३६ व्याघ्रपात ५६२श्रेयन्स् ५६३ श्रोतस् ५६४ श्लेष्मन् ५६५ श्वन् ५६६ षष्टि ५६७ हि ५४० शकृत् ५४१ शङ्खध्मा ५४२ शची ५४३ शतं ५४४ शत्रुजित् ५४५ शत्रुशीर्ष ५४६ शब्दप्राश ५४७ शशिन् ५४८ शाला ५४६ शालावाह, ५५० शाखदिदृक्ष ५५१ शाखपट ५५२ शिशोर्वन्स ५५३ शिष्यमुझे ५५४ शिश्रिवन्स् ५५५ शुचि ५५६ शुच ५५७ शूकरपदो ५५८ शंकु ५५६ श्रद्धा ५६० श्री ५६१ श्रीमन्त् ५६८ सका ५६६ सकः ५७० सक्थि ५७१ सखि ५७२ सजुष ५७३ सत्यवाक् ५७४ सध्याञ्च ५७५ सन्धि ५७६ सप्रति ५७७ सम ५७८ समा ५७६ सम्यञ्च ५८० सम्राज ५८१ सपिस् ५८२ सर्व ५८३ सविका ५८४ सर्वकः ५८५ सर्वव्यञ्च ५८६ सर्वलू ५८७ सहयुध्वन् Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४२ क्रमाङ्काः ५८८ सहस्रम् ५८६ साधुमस्ज् ५६० सिद्धि ५९१ सिम ५६२ सिंहपाद ५६३ सीमन् ५६४ सुकग् ५६५ सुकन्स् ५९६ सुकर्मा ५६७ सुक्रञ्च ५६८ सुखकृत् ५६६ सुखभाज् ६०० सुखिनी ६०१ सुखिन् ६०२ सुगरण, ६०३ सुगिर ६०४ सुचक ६०५ सुजानु ६०६ सुतनु ६०७ सुतुस् ६०८ सुदिव् ६०६ सुधी ६१० सुधेनु ६११ सुनौ ६१२ सुपन्थि ६-१३ सुपात् ६१४ सुपितृ ६१५ सुपीस् बालशिक्षाव्याकर तस्याकाराद्यनुक्रमेरण पारिभाषिक शब्द सूचिः । शब्दरूपारिण पृष्ठाङ्काः | क्रमाङ्काः शब्दरूपारि ६१६ सुपुमन्स् ६१७ सुपुसी ६१८ सुबुद्धि ६१६ सुभ्र ६२० सुभ्र ६२१ सुमनस् ६२२ सुमातृ ६२३ सुमात्री ६२४ [सु] यज्वन् ६२५ सुरभि ६२६ सुवल्ग् ६२७ सुवसु ६२८ सुवाच् ६२६ सुविश् ३२ १८ १० ७ २१ २४ १६ २६ २५ १७ १६ १८ २४ २४ १६ २६ १६ १३ १३ २६ २६ १२ १३ १६ ११ २१ १५ २६ ६३० सुव्यप् ६३१ सुसखि ६३२ सुसिद्धि ६३३ सुहिन् ६३४ सुहृद ६३५ सृज् ६३६ से: ६३७ सेनानी ६३८ सं ६३६ सोमपा ६४० सौरमस ६४१ संपद ६४२ सः ६४३ स्थायित् पृष्ठाङ्काः २६ २६ ११ १३ १४ २८ १५ १५ २४ ११ १६ १३ १७ २७ २५ ११ ११ २६ २० १८ १५ १२ १५ १० ८ २७ २१ २४ Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्काः ६५१ स्वयम्भू ६५२ स्वसा ६५३ स्वाप् बालशिक्षावयाकरणस्याकाराद्यनुक्रमेण पारिभाषिक शब्दसूचिः । क्रमाङ्काः शब्दरूपारिण ६४४ स्निग्धत्वच् ६४५ स्पृश् ६४६ स्फिच् ६४७ स्रज् ६४८ स्वर्णमुष् ६४६ स्वनड्वाह_ ६५० स्वप्नज् शब्दरूपाणि पृष्ठाङ्काः १७ २७ १६ १८ २७ ३० १८ १४ १४ २५ ६५४ हनुमन्त् ६५५ हविस् ६५६ हव्यवाह ६५७ हाहा ६५८ हूहू ६५६ [हृत् ] ६६० हृदय ६६१ होता ६६२ ही ॥ इति श्रीवाल शिक्षा व्याकरण स्थाकार द्यनुक्रमेण पारिभाषिकशब्दसूचिः ॥ १४३ पृष्ठाङ्काः १६ २८ ३० & १३ ७ 6 १४ १२ Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षाव्याकरणस्याकाराद्यनुक्रमेण भाषाशब्दसूचिः । क्रमाङ्काः शब्दरूपाणि पृष्ठाङ्काः | क्रमाङ्कः शब्दरूपाणि पृष्ठाङ्काः १प्रन्धोमींचो अन्धमोलिका। ४६ २१ अरतउ परतउ बापसरोषउ २ अउगनाई अपकर्णयसि । प्राकृत्या प्रकृत्या च ३ अउडक अपराख्या। पितृसदृशः। ४ अउडीगउ अपमागगः। २२ अरोरम अपरेयुः; ५ अउषंडली प्रक्षपटलिक । अन्यस्मिन्नहनि, अन्येषुः। ४५ ६ अगोंडउं अग्निपीडकम्। २३ अलजउ उत्कण्ठा। ४७ ७ अच्छइ अस्ति, तिष्ठति, २४ अलूझइ अलमुज्झति। ४६,५० विद्यते, प्रास्ते। । २५ अवहथइ अपहस्तयति। ५० ८ अडइ अड्डति। २६ असराहिउं प्रश्रद्धेयम्। ४७ ६ अडवडइ अधः पूर्वः पतः २७ अहीणउं अधेनुकम् । १० अडूालइ अवात्। २८ प्रांजइ अंजयति वा ११ अणभमइ अनुपूर्वोभ्रम, अनक्ति। अनोस्तु। २६ आंबइ प्राप्नोति, घटति । १२ अनेकपरि अनेकथा, बहुधा । ३० प्राकडउ उत्कटः। १३ अनेतइ अन्यत्र। ३१ आचमइ प्राचमति । १४ अनेरीवार अन्यदा। ३२ आजु प्रद्य। १५ अनेसउ प्रत्याशः। ३३ आजूणउ अद्यतनम् । १६ अभोखउ अभ्युक्षरणम् । ३४ आथमइ अस्तमस्तु । १७ अभ्यसइ मनसि, अभ्यस्यति। ४७ ३५ आदरइ स्वीकरोति, माद्रियते, १८ अमायइ अमायते। अंगीकरोति अंगीपूर्वकृतश्च । ५० १६ अम्हसरौषउ अस्मादृशः।। ___ ४५ , ३६ आपइ अर्पयति २० अम्हारउं अस्मदीयम् । ३७ आभिडइ प्राम्यटति। ५४५१ ४६ ४८ Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षाव्याकरणस्याकाराद्यनुकमेण भाषाशम्दसूचिः। १४५ कमाङ्काः शब्दरूपाणि पृष्ठाङ्काः क्रमाङ्काः शब्दरूपाणि पृष्ठाङ्काः ३८ प्रायसइ मादिशति । ५२ । ५६ उपरमइ उत्सवते, उत्पतति । ५० ३६ आरंभइ प्रारभते। ६० उपरु धइ उपरुणद्धि ४० आराधइ पाराधयति, उपात्। ३६, ५० उपास्ते। ६१ उपरेथाई उपरिस्थाई। ४१ आलिगइ प्रालिंगति वा ६२ उपवासीउ उपोषितः। परिध्वज ति। ६३ उलकउ उदकोदंचनम् । ४२ आलोगारु प्रालीककारः। ६४ उल्लींचइ उल्लंचति । ४३ आवइ प्राङ:। ६५ उवेष (ख) इ उपेक्षते । ४४ आवइ पाङस्त्वेते, प्राङ्पूर्वा एते धातव प्रागमने वर्तन्ते, ६६ ऊकदइ उत्कूईते । ५३ निः पूर्वा निःसरति ।। ६७ ऊकलइ उत्कर्षति वृद्धौ। ४५ आषु (खु) डइ अवस्स्वलति। ५२ ६८ ऊखेलइ उत्कीलयति । ४६ आसुरखइ प्राश्वईते । ६९ अगइ उदस्तु ४७ आहार जाहर एहिरे याहिरे । ७० ऊगटइ उद्वर्त्तयत्येषः। ४८ उंसउ ईदृश:। ७१ अगाइ उद्गायति ७२ ऊघडइ उद्धटयति ४६ ईहाँ अत्र। ७३ ऊघडइ उन्मीलयति, उद्धटते। ७४ ऊचलउ अपरिचितः । ५० उधूयायतु ऊधूयमानम् । ७५ ऊजाइ उद्याति । ५१ उगमुगउ अवाग्मूक : । ७६ ऊजाणो उद्यानिका। ५२ उघड दूघडउं उद्धटदुर्घटकम् । ७७ उजालइ उन्ज्वलयांत ।। ५३ उदंढइ उद्वन्धयति । ७८ अडइ उत्तिष्ठति । ५४ उदेगइ उद्वेजयति । ७६ ऊडइ उड्डीयते अथ उड्डयते । ५५ उन्आइ उत्क्रनाति। ८० ऊणइ ७० उदः पूर्वा । उनूति (?) ४३ , ५० ८१ उदेगइ उद्वेजयति। ५६ उपगरइ उपात् कृ उपकरोति । ५४ ८२ ऊधंधलं उधूलिकम् । ५७ उपयच्छते विवाहयति। ४८ ८३ ऊध्रकइ उध्र कते। ५८ उपयोगइ चेदुपात्। ५० । ८४ ऊपजइ उत्पद्यते । Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४६ श्रीबालशिक्षाव्याकरणस्याहार धनुक्रमेण भाष शब्दसूचि. । क्रमाङ्काः शब्दरूपाणि पृष्ठाङ्काः क्रमाङ्काः शब्दरूपाणि पृष्ठाङ्काः ५३ ८५ ऊपडइ उदः । १०६ कडअडउ काष्ठकठिनः। ४७ ८६ अभूत्राइ उद्भवति । ५३ । ११० कडकडइ कटकटायते चक्षुः८०,५३ ८७ ऊमटइ उन्मज्जति गग्घति । ३३,४६ १११ कडच्छइ कटिस्थयति । ४६ ८८ ऊलंबइ उत्पूर्वः । ११२ कमोठाणो कर्मस्थाई। ४६ ८६ अलखइ उपलक्षयति । ११३ करइ करोति ६८ कुरुते, ६० ऊलटावइ, उन्मापयति । ५१ विदधाति विधत्ते। ५२ ६१ ऊवटइ उद्वर्तते। ११४ करडइ, काटइ कृतति । ४६ ६२ अवेढइ उदः । ११५ करोष (ख) इ क्रंदति। ५३ ६३ [क] ऊसीसौं कपिशीर्षक स् । ४६ ११६ कराइ क्रियते। ११७ कलकलइ कलंकरणति। ६४ ऋणरणइ रणध्वनति । ६७,५२ ११८ कल्होडउ कलभोत्कटः। ४६ ६५ एकउडउ एकतडिकः। ११६ कहइ कथयति, प्राचष्टे, आख्याति, शंसति । ६६ एकपरि एकधा। १२० कहिंय कदा। ६७ एकवार एकदा । १२१ कांकसी कचाकर्षरणी। १८ एतलुं एतावन्मात्रम्, इयन्मात्रम् ।४५ १२२ कालि कल्ये। १६ प्रोजइ उदंजयति। १२३ काल्हूण कल्यतनम् । १२४ किरगिरइ किलगिलति। १०० ऑरहु अर्वा । ४५ १२५ किसउ कीदृशः। १०१ ऑहुणउ एषमः। १२६ कींगाइ केकायते । १०२ अोठंभइ अवष्टम्नाति अवष्टम्भति १२७ कोहां क्व, कुत्र। अवष्टंभते अपि च । ५४ १२८ कुंथइ कुथति, कुथ्नाति । १०३ ओढइ अवगुंठ्ते प्रावृणोति च३७,५० १२६ कुदकुअइ कुत्परः। ५३ १०४ ओलंभइ उपालभते। ५२ १३० कुपइ क्रुध्यति कुप्यति १०५ ओलउ उपालयः। ४६ ईर्ण्यति। ७६,५२ १०६ अोलाणि अवलंबिनी। ४६ १३१ कुरमाइ म्लायति, क्लाम्पति । ५१ १०७ ओसोबालुं अस्पृष्टालयम्। ४६ १३२ कुरलावइ क्वरणयति । १०८ ओहटइ अपसरति विरमति। ५३ । १३३ कुसइ क्रोशति । Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षा व्याकरणस्याकाराद्यन क्रमेण भाषा शब्द सूचिः । क्रमाङ्काः १३४ कुसणइ कुष्णाति । १३५ कुहइ क्वति । १३६ कतलुं कियन्मात्रम् । १३७ क्रमइ क्रामति । १३८ क्षिरइ क्षरति । शब्दरूपारिण • १३६ ख डुहालइ खर्जयति । १४० खरवलइ अपस्किरति । १४१ खाइ भक्षयति, प्रत्ति, खादति ग्रसतेऽपि च । १४२ खाजइ खाद्यते । १४५ गाइ गन्धायते गन्त्रयति । १४६ गलअलइ गलग्दलति । १४७ गवाणि गवादिनी । १४८ गांगिरइ गांगिरति, गांगृणाति वा । १४ गांड ग्रंथते । ४,४७ ५४ १४३ खाजहलउ खाद्यफलम् । ४७ १४४ खोजइ विद्यते ताम्यति । ६०,५१ १५४ थइ ग्रंथयति ग्रथ्नाति गुंफति । १५५ गूचइ गुंचति । १५६ गोगीडउ गोकीटः । पृष्ठाङ्काः क्रमाङ्काः ४८ ५६५१ ४५ ७७,५२ ५२ ૪ २६, ४६ १२० गाजइ गर्जति । १५१ गाजइ गर्ज्जति । १५२ गायइ गायति । ५.२ १५३ गिलगिलावर किलगिलापयति । ५३ ६५.५४ ६२,५१ ४ ३ ५१ ४६ ५३ ५२ ८६, ५३ ५२ ४६ शब्दरूपरिण १५७ घ घोलइ द्रुतं धूनयति । ५१ १५० घटइ संभवति, घटते । ४५,५० १५६ घसइ घर्षति । ४८ १६० घातइ नि. क्षिपति, प्रक्षिपति । ४६ १६१ घास घृष्यते । १०२,५४ १६२ घूंघड अवगुंठनम् । १६३ घूमइ घूर्णते वा । १६४ घोसइ घोषयति । १६५ च उलवइ पलपति, अपहृते । १६६ चटई चटति, प्रारोहति द्विपं । १६७ चांद्रिणु चन्द्रिकालयम् । १६८ चांपइ संवाहयति । १४७ पृष्ठाङ्काः १७ = छउटइ प्रक्षिपति । श्राङ: । ४६ ૧૪ ५३ ६६,५१ ४७ १६६ चाकचकूकवरं चक्र कुब्जम् । १७० चिणइ नुःस्वादेः विनोति-ते: ४६ १७१ चौंकइ चीतः कृ । १००.५४ १७२ चीफाड चित्तफा ( स्फा ? ) १७४ चूकई चूत: । १७५ चूयई श्चोतति-ते । १७६ चौपडइ अभ्यंगयत्ययम् । १७७ चोइ मुष्णाति चोरयति । ६५,५१ ४६ ५३ टकः । ४६ १७३ . चूटई श्रवचिनोति श्रवात् । ४६ ૫૪ ४६ ५३ ५२ ४६ Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४८ बालशिक्षाग्याकरणस्याकाराद्यनुक्रमेण माषाशवसूचिः । क्रमाङ्काः शब्दरूपाणि पृष्ठाङ्काः क्रमाङ्काः शब्दरूपाणि पृष्ठाङ्काः १७६ छणई क्षणोति । २०० जामई जायते। १८० छहिंपरि षोढा। २०१ जिगोसा जिघृष्याः (?क्षा)। ४७ १८१ छाटइ सिंचसि। २०२ जिणई विजयते, जयति। ४७ १८२ छायइ छादयत्योक; २०३ जिमई भुक्त, अश्नाति च स्तृणाति, स्तृणोति-ते । जेमति। १८३ छिबइ छुपते, स्पृशति च। ५२ २०४ जिसउ यादृशः। १८४ छोकइ छीतः, क्षौति । ५४ २०५ जोहां यत्र। १८५ छोडणि छिद्राटिनी। २०६ जुडइ युनक्ति, युक्त। १८ छूटइ छुटति । २०७ जूउ पथक । १८७ छेकइ छेत्तः कृ छेत्करोति। ५४ २०८ जेतलु यावन्मात्रम् । १८८ छेतरिउ छलांतरितः। २०६ जोअई अवलोकते वोक्ष्यते १८६ छेदइ छेदयत्ययम्; छिन्ते, अवलोकयति । ५३ छिनत्ति। १६० छेहिल अन्तिमम् । झपयति झपामा नोति। १६१ जडपणउ' इत्यादौ स-त्वौ २११ झटकई झटिति । भावे यण । जता जडत्वं २१२ मडझांषसऊ चलध्वांक्षकप् । ४६ जाड्यम्। २१३ झाषई झषति । ५० १९२ जणाइ ज्ञायते । २१४ माडई उज्झति, जहाति, च १६३ जहिंय यदा। त्यजति । १६,४८ १९४ जांउ यावत् । २१५ मामलुध्यामलम् । १९५ जाअइ गच्छति, याति ब्रजति, २१६ झासवई तर्जयति। सरति, एति, अयति वा। ४८ २१७ झूम युध्यति । १९६ जाकइ जातः। . ५४ १६७ जाणइ वेत्ति, मानाति, २१८ टलवलई टलद्वलति । प्रवेति, अवगच्छति।. ४७ १९८ जानावासउ जन्यापासकः। ४६ २१६ डसई दशति । १६६ जानुत्र यज्ञयात्रा। ४६ । २२० डोहई गाहते । Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बाल शिक्षा व्याकरणस्याकाराद्यनुक्रमेण भाषाशब्दसूचिः । शब्दरूपाणि शब्दरूपारिण २२१ ढाकई प्रच्छादयति, इ त्रुट्यति त्रुटति । पिधत्ते, पिदधाति छ । २२२ ढोलई शिथिलयति । क्रमाङ्काः २२३ तडफडई तत्पटति । २२४ तपुकरइ तपः करोति, तपस्यति वा । २२५ तहिं तदा तदानीम् । २२६ ताउ तावत् । २२७ ताछइ छोलइ तक्षति, काइति, तक्ष्णोति च । २२८ ताजइ वर्जति । पृष्ठाङ्काः २४० तलु तावन्मात्रम् । २४१ सितहि । २४२ इ तृटटति । २४३ त्रासइ प्रस्यति, त्रसति । ५० ५० ५० ५३ ४८ ४५ ४५ २२६ ताण काढइ कर्षति, कृषते -ति च । ५१ २३० ताहरु त्वदीयम् भवदीयम् । ४५ २३१ तिमइ तत्कालम् । ४५ २३२ तिम तथा । ४५ २३३ तिसउ तादृशः । २३४ तीमइ तेमयति क्लेदयति । ५१ ५२ ४५ ५१ ४५ २३५ तोह तत्र । ४५ २३६ तुम्हसरीषउ युष्मादृशः । ४५ २३७ तुह्मार ' युष्मदोयम् । २३८ तूसइ तुष्यति । ४६ २३६ तूसरोषउ त्वादृशः भवादृश । ४५ ४५ ४५ ८२, ५३ ४८ क्रमाङ्काः २४४ २४५ श्रवइ स्थगयति । २४६ थाहरइ स्थानमाहरति स्थानयति । २४७ थोजइ स्त्यायते । २४८ थुंकइ थूतः ष्टीवति । ५४ २४६ थोमइ स्तोभति स्तभ्नाति च ॥४७ २५० दंभइ दंनौति । २५१ दमइ दाभ्यति । २५२ दाइ दह्यते । २५३ दाणीं धरणी ऋणितः । २५४ दिइ यच्छति, दत्ते, राति ददाति । १४६ पृष्ठाङ्काः २५५ दीष (ख) इ दीक्ष्यते । २५६ दीहदीवी नदीपिका | २५७ दूमइ दुनोति, दुःखाकरोति, दुःखयति । २५८ दूषइ दुष्यति । २५६ देखइ पश्यति । ४८ ૪૨ ५२ ४६ ५ १५ ५४ ४६ ५२ २३,४६ ४,४६ ૪ ५३ ६७,५४ ५१ २६० देषा (खा ) विउ दृष्टापेक्षा । ४७ २६१ दोहइ दोग्धि दुग्धे च । २६२ द्र फोडइ द्रुतं स्फोटयति । २६३ द्रउडइ द्रुताति । २६४ द्रडबाहिर द्रवकधातितः । २६५ द्रमद्रमइ द्रमद्रमति । _४१,५० ४७ ५३ २६६ घडहडइ कृ घडतः । ६६, ५४ ७ Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५० बालशिक्षाध्याकरण याकाराद्यनुक्रमेण भाषा का सूचिः । शब्दरूपगरि २८६ नासर नश्यति, पलायते । २८७ नाहइ स्नाति । २८८ निंद जुगुप्सते, निदति, गर्हते । २८६ निऊंज नियंत्रयति । २६० निकउ निष्कः । २६१ निरष ( ख ) इ निरीक्षते । २६२ निराकर निराङ: निराकरोति । २०३ निलखणउ निर्लक्षणः । २९४ निवोजर निविद्यति । २६५ नख निनिस्यति, निः क्षयति । क्रमाङ्काः शब्दरूपारिण २६७ धणीवर धन्यावयः । २६८ धरइ दधाति च दधति धत्ते धारयति । २६६ धाइ धावति ते व मुचादिषु । श्रथ कर्म कर्तरि । २७० धाव धावति । २७१ धुरि श्रादिमम् । २७२ धूणइ धूनयत्येषः; धुनोति धुनाले धुनोति ते धुनते धुवति । २७३ धूंबाधुबि मुष्टामुष्टिः । २७४ धूज कंपते । २७५ धूप धूपायति । २७६ धोइ प्रक्षालयति । २७७ नाइ तृप्यति, त्रायत्यपि । २७८ ध्रुस ध्वंसते । २७६ ध्याय ध्यायति तु द्वयोः । २८० नमस्करइ नमस्यति वा नमस्करोति । २८१ नरनरइ नदति । २०२ नहीत नो वा, नो चेत् । २८३ नांगइ व्यंगयति, अनंगीकरोति । २८४ नाचइ नृत्यति । २८५ नाथइ नाथति, वृषं तु नस्तयति । पृष्ठाङ्काः | क्रमाङ्काः ४६ ५२ ५४ ५० ४५ ५१ ४७ ५१ ५२ ४६ ५१ ५३ ४६ ४८ ४६ ४५ ४६ ૪૨ ८५, ५३ २६६ नीकलइ निरस्तु | २६७ नीकल निः कुलयति, क्लृश्य नि: कुलपूर्व । २९८ नीडइ निः । २६६ नोपजई निष्पद्यते । ३०४ पल परामृशति । '३०५ पइसइ प्रविशति । ३०६ पचारइ प्रत्युच्चारयति । - ३०७ पच्छाहियउ पश्चा [द] हृदयम् पृष्ठाङ्काः ४७ ४८ ४८ ५० ४३ ४८ ५४ ४६ ५२ ४६ ४८ ३०० नोमटइ निवर्त्तते । ८८,५३ ३०१ नींषणीयासु निः क्षरणकर्म्मा । ४६ ३०२ नीसमइ नेः । ५१ ३०३ नीससइ नेस्तु | ५३ ५० ५२ ४८ ५० ५१ ५२ ४७ Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षाव्याकरणस्याकाराद्यनुक्रमेण मावाशम्दसूचि : १५१ क्रमाङ्का: शब्दरूपाणि पृष्ठाङ्काः क्रमाङ्का: शब्दरूपाणि पृष्ठाङ्काः ४८ ५२ ३०८ पछोक उ उदकोदंचनम्। ४६ ३३० पलाणइ पर्यापयति । ३०६ पडइ पतति । ३३१ पल्हालइ पर्याद्रयति । ३१० पडाई पताकिका। ३३२ पवित्रइ पवित्रयति ३११ पडिवचइ प्रतिवक्ति तु। ५७,४८ पुनाति पवते । ३१२ पडिगइ चिकि सति, ३३३ पसाअइ प्रसीदति, प्रतीकरोति । __ अनुगृह पाति, ३१३ पड़ीष (ख) इ प्रतीक्षते ३३४ पहिरइ परिदधाति, २१ । प्रतिपालयति । संवस्त्रयति । ३१४ पडूच्छइ प्रतिपृच्छति । ३३५ पाइआली पाचप्रहारिणी । ३.५ पढ इ अधोते, पठति च । ४६ ३३६ पाखइ विना ऋते । ३१६ पतइ समर्थयति वा ३३७ पाचइ पच्यते। समापतति । ५५.५१ ३३८ पाटू पादधातः। ३१७ पतिजइ तु प्रत्येति ३३६ पाठवइ प्रस्थापयत्ययम् प्रत्ययति प्रतीयते। प्रहिणोति प्रेषयति । ३१८ परतइ परेः। ३४० पालट इ परावर्तयति ३१६ परम परेद्यवि। परेर्वा । ३२० पखारइ प्रपारयति । ३४१ पालुअइ पल्लवयति । ३२१ परष (ख) इ परीक्षते । २०,४८ ३४२ पाषलि परितः। ३२२ परहु परतः । ४५ ३४३ पीअइ पिबति। ३२३ पराकइ परे परः (?)। ५१ ३४४ पोजहलऊ पेटयफलन् । ३२४ परामइ प्राप्नोति । ३४५ पोडइ पिच्चति । ३२५ परिछइ परेरिमे ३ ३४६ पोडइ पीडयति, बाधते, परीच्छति च । तुदति । ३२६ परिणइ परिणयति । १५.४८ ३४७ पीसइ पिनष्टि। ३२७ परीसइ परिवेषयति, ३४८ पुढइ प्रोढायते। परीप्साति। ३४६ पुरु पुरुत । ३२८ पलचइ प्रलुच्यति। ९२,५३ । ३५० पुहुचइ प्रभवति । ३२६ पलधु प्रलुब्धः। ४७ | ३५१ पूकइ पुतः । UY ५१ । Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५२ बालशिक्षाण्याकरणस्याकाराद्यनुक्रमेण माषाशयसूचिः । क्रमाङ्काः शब्दरूपाणि पृष्ठाङ्काः / क्रमाङ्क: शब्दरूपाणि पृष्ठाङ्काः ४८ ३५२ पूछइ पृच्छति। ४६ ३५३ पूजइ पूजयति, अर्चतीति इन् भवतीत्यर्थः। मीमांसते, अंचति । ३५४ पूरइ सरइ अल खलु च १६ पूर्यते । ४८ ३५५ पेलइ नुदति, प्रेरयति प्रपि। ३८,५० ३५६ पेलाविलि प्रेराप्रेरिः। ४७ ३५७ पोअइ प्रवयति प्रात् वै। ५० ३५८ पोसइ पुष्यति, पुष्णाति । ५३ ३५६ प्रसवइ सौति. प्रसवति, प्रसुवति- सूते। ३६० असोजइ प्रस्विद्यति । ३६१ प्रहुइ प्रमृज्जति । ३६२ प्रासुइ प्रस्नुते। ३७४ फूटइ स्फटति । ७६,५२ ३७५ फूटरउं स्फुटतरम्। ४६ ३७६ फेडइ अपनयति, स्फेटयति, अपास्यति । ३५४६ ३७७ बइसइ उपविश्यति निषीदति। ३७८ बलअलइ बलाललूलति । ३७६ बलद ज्वलति। ३८० बलीबलोउ वाचालः वाचाटः। ४६ ३८१ बसबसइ बहुस्यन्दति भूः। ५१ ३८२ बांधइ वन्धाति । ३८३ बालइ ज्वालयति । ३८४ बाहिरि बहिः, बाह्य। ३८५ बोहुपरि द्विधा इत्यादि । ३८६ बौछलइ वेस्तु। ३८७ बीछोहइ विरहयति । ३८८ बीहइ बिभेति। ३८६ बीहावइ भापयते, भीषयते। ४८ ३६० बुहारइ सन्मार्जयति । ४८ ३९१ बुझइ बुध्यते चापि। ४७ ३९२ बूडइ बुडति, मजति । ५० ३९३ बोलइ जल्पति, निगदति, वक्ति, वदति, भाषते, ब्रवीति, पाह ब्रुते। ३६४ मंजवाडू भंगपातः। ३६५ बडहडइ भटतः भटकरोति। देता ३६३ फटइ फटति । ८७,५३ ३६४ फड़फडइ पटपटायते ध्वजा। ५३ ३६५ फरकइ स्फरति। ९८५४ ३६६ फांफुरीइ फारस्फूर्जते हि। ५० ३६७ फांटिउ पाक्तिकः। ३६८ फाटइ विदीर्यते। ३६६ फिरइ भ्राभ्यति, भ्रमति । ३७० फिराइ स्पृहाते। ३७१ फोटइ स्फिटते। ३७२ फुईहाईउ पितृष्वस्त्रीयः। ४६ ३७३ फूकइ फूतः। ४७ Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालशिक्षाव्याकरणस्याकाराधन कमेण भाषाशमसूचिः । १५३ - क्रमाङ्काः शब्दरूपाणि पृष्ठाङ्काः | क्रमाङ्काः शब्दरूपाणि पृष्ठाङ्काः ३६६ भांजइ भनक्ति। ३६७ भांवइ प्रतिभासते। - प्रतिभाति, रोचते वा। ३९८ भीजइ क्लिद्यते। ३६६ भोष (ख) इ भिक्षति । ४०० भूराई भूतराजः। ४०१ भेटइ सभाजयति । ४०२ भोगल भुजार्गला। ४२२ मूसरीषउमादृशः। ४२३ मूहइ मुह्यति । ४२४ मदेइ भिनत्ति, भिन्ते। ४२५ मेराई उ मेराद्यम्। ४२६ मेल्हई मुंचति । ४२७ मेहरु मेहत्तरः। ४२८ मोकलई मुल्कलति, विसृजति प्रहिणोति। ४२६ मोकलवाई मुत्कलामुति, प्रापृच्छते अपि च। ४३० यसउ एतादृशः। ४३१ यिम यथा। ४३२ रंजइ रंजयत्ययम्। ८६,५३ ४३३ रउडउ खाट (?)। ४६ ४३४ रमई क्रीडति, दीव्यति,रमते । ५० ४३५ रहई तिष्ठति रहति। ५४ ४३६ राउलवायु राजकुलायत्तः। ४६ ४३७ रावइ रच्यते। ४३८ राष(ख)ई रक्षति, गोपायति, पाति,जाति,त्रायते, प्रवति च । ४७ ४३६ रुधइ रुणद्धि, रद्ध । ५० ४४० रूसइ रुष्यति । ४६ ४४१ रोइ रोदति, परिदेवयति । ५० ४४२ लहइ लभते । ४२५ ४४३ लांषइ अस्यति, निरस्यति, क्षिपति २६१४६ ४४४ लाजइ जिहति, मज्जते, प्रपते . १८। बीडयो।। ४०३ मथइ मनाति मयति । ४०४ मनावइ सांत्वयति । ४०५ मरइ म्रियते विपद्यते । ५२ ४०६ मरदइ मृदनाति । ४०७ मलइ मलते वा। ४०८ मसाहणो महासाधनिक। ४६ ४०६ मसिहाईउ मातृष्वनीयः। ४६ ४१० माकड मंकते ९०,५३ ४११ मांजइ माष्टि। ४१२ मागइ याचते वा। ४१३ माचइ माद्यति । २४,४६ ४१४ मानइ मन्यते। ४१५ मायइ माति, मिमीते। ४१६ मारइ मारयति । ४१७ माहरउ मदीयम् । ४५ ४१८ मोचइ मीलयति निमोलयति४६,५० ४१६ मुखामुखि मुखामुख्यता। ४६ ४२० मुलइ मृदू लुनाति, मृदुलयति । ४६ ४२१ माहियां मुधा। पू२ ५४ ४६ Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५४ बालशिक्षाग्याकरणस्याकार वनक्रमेण भाषाशनमचिः । क्रमाङ्काः शब्दरूपाणि पृष्ठाङ्काः क्रमाङ्काः शब्दरूपाणि पृष्ठाङ्का: ५१ ४४५ लाडइ ललति। ५० ४४६ लिअइ पावत्ते गृह रणा विन (य?) ति, वेः। ६९,५२ ४४७ लिगई प्रभृति, प्रारभ्य। ४५ ४४८ लिहाच्छोह लब्धस्थो, (ब्धोत्सा ?) ह ४४९ लीपइ लिपति। ४५० लुणइ लुनाति-ते। ४४,५० ४५१ लुणाअइ लूयते। १०३,५४ ४५२ लूबइ लंबते। ४५३ लूसइ लूषयति। ४५४ लूहइ ईसयते। ४५५ लेअइ प्रापयति, नयति ७५,५२ ४५६ लेभइ (भेलइ? ) मिश्रयति । ५० ४५७ लोटइ लुटयति लोटति। ५३ ४५८ लोढइ लूटयत्ययम्। ७८, ५२ ४५६ लोपइ लूंपति। ५४ ४६० वखाणइ व्याख्याति . व्याख्यानयति। ४६१ वधारइ व्याजिघ्रति वासयति । ५२ ४६२ वणई व्ययते वायतेऽपि च। ५० ४६३ वमइ वमति। ४६४ वमइ वमति । ६३, ५३ ४६५ वरइ वरयति एषः, वृणोति - ते ४७, ५० ४६६ वरगड वराध (क?) र्षकः। ४६ ४६७ वरसइ वर्षति । ४८ ४६८ वरांस उ विपर्यस्यति । ५२ ४६६ वरांसिउ विपर्यस्तः । ४७ ४७० वर्तइ वर्तते। ४७१ वलइ पश्चात् व्याघुटते वलते। ३६,५० ४७२ वलीउ व्यावृत्य, व्याघुटय। ४७३ वांछइ वांछति, कांक्षति। ४७४ वाअइ वाति । ४७५ वाअइ वादयति। ... ४७६ वाउलउ वार्तालयः। ४७७ वाजइ वाद्यते। ४७८ वाट इ तु ले ढि लोढे । ४७६ वाटइ वर्त्तयति । ४८० वाधइ वर्द्धयतीत्ययम् । ५२ ४८१ वादलु वारिदपटलम् । ४८२ वाधइ वर्द्धते एधते। ३२ ४६ ४८३ वा नयतउ वायत्तः। ४६ ४८४ वापरइ व्यापृयते व्यापृणोति । ४८ ४८५ वारइ नवारयति, निषेधयति । ४८६ वालालुछि केशाकेशिः ४८७ वावइ वपति-ते च। ४८८ वासइ वास्यते ताम्र बूडी। ५० ४८६ वाहइ ब्याहरति । ४६८ विगूपइ विगुप्यति । २५,४६ ४६१ विचारइ विचारयति, ऊहते । ५० । Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बाल शिक्षण्या करणस्याकाराद्यनुक्रमेण भाषाशब्दसूचि शब्दरूपाणि पृष्ठाङ्काः | क्रमाङ्काः क्रमाङ्काः ४२ विढइ विध्यति, कलहायते । ४६३ विपसइ विनश्यति । ४६४ विमास विमृशति । ४६५ वियारिउ विप्रतारिकः ४६६ विलोजवइ वेः । ४६७ वसाह यिसाधयति, क्रीणाति; कोणते । ४६८ विस्तरs विपूर्वी तु थु । ४६६ विस्तारइ विस्तरति विस्तार यति, तनोति-ते । ५०० विहुंचइ विभजति । ५०१ विहडइ विघटते वेः । ५०२ विहाइ विभाति । ५०३ वटीं वेष्टते । ५०४ वधइ विध्यति । *T ४७ ४७ ४७ ५३ ५० ४०.५० ५१ ५० ५३ ६३५१ ४६ ५०५ वीचारइ विप्रतारइ ( य१ ) ति ५०६ वीकइ विक्रोणते । ५०७ वोनवइ विज्ञपयति । ५०८ वोष (ख) र विकिरति, विक्षिपति । ४८ ५०६ वोसमइ विश्राम्यति ५१ ५३ ४७ ५१० वाससइ वस्तु, विश्रभते । ५११ वेचइ व्ययति, व्येति । ५१२ व्यापर प्रश्नुते व्याप्नोति च । ४६ ५१३ शपर शपति तु शप्यति । ५१४ शीष (स्य) वह प्रनुशास्ति । ४७ ५१५ ब (ख) उष (ख) डइ खटत्क ५३ रोति । ५४ ५६ ५१ ५२ ४८ शब्दरूपाणि ५१६ षडहडइकिल खटत्पतति । ५१७ षा (खा) श्रइ कंडूयति - ते । उतुंषा (खा) दन ५१८ षा (खा स्थानम् । ५२७ संकर विसर्जयति । ५२८ संघूरवइ सधुक्षते । ५२६ सकइ शक्नोति । ५३० संगलइ सर्वत्र । ५३१ सन्यसइ संन्यस्यति । ५३२ समारइ समारचयति । ५३३ समेटइ समः । पृष्ठाङ्काः ५३४ सरवइ निष्यन्दते, स्त्रवति । ५३५ सरीषउ सदृशः । १५५ ५१६ षा (खा) सइ कासते । ५२० पिस नसते । ५४ ५२१ षी (खो) लइ कीलति । ४६ ५२२ षु (खु) सइ गोपायते लीयते ५३ ५२३ षूदइ षूटइ क्षुन्ते क्षुत्ति च । ५१ ५२४ षू ( खू) भइ क्षुभ्यते क्षोभते । ४६ ५२५ षो (खो) डाइ षं (खं) जायते । ५२६ सो (खो) इ क्षतघत्यसौ ५१ ५२ ४६ ६४, ५० ५३६ सपइ वार सर्वदा, सदा । ५३७ सवहिगमा समन्तात् सर्वतः ५३८ सवेहिपरि सर्वथा । ५३६ ससइ स्वसति । ५४० सह क्षमते तितिक्षते सहते क्षाम्यते मृष्यते ति च । ५० ८६, ५३ ६४, ५३ ૪૨ ७४,५२ ४५ ५३ ૪૨ ५१ ५१ ४५ ४५ ४५ ૪૬ ५३ ५२ Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५६ बालशिक्षाब्याकरणस्याकारानुक्रमेण भाषाशम्दसूचिः । क्रमाङ्काः शब्दरूपाणि पृष्ठाङ्काः क्रमाङ्का: शब्दरूपाणि पृष्ठाङ्काः ४६ ६१,५३ ४॥ ५४१ सांखइ संख्याति । ५६४ स्तवइ नुवंति, स्तीति, स्तुते, ५४२ सांचई सेचिनुते, संचिनोति।। स्तोति, स्तवीति च । ११,४८ समस्तु । ५६५ स्पर्धइ स्पर्द्धते, मिषति । ५० ५४३ सांपडइ संपद्यते। ४८ ५६६ हकारई प्राकारयति ५४४ सांभरइ स्मरति चाध्येति च । ४७ माह्वयत्यपि । ५४५ सांभलइ निशाम्यति, मृणोति, ५६७ हडहडइ हठाद्धसति ६१,५१ - प्राकरर्णयति एषः। ४६ ५६८ हणइ हिनस्ति हेति ५४६ सामरइ समः किरति । ४८ व्यापादयति एषः। ५४७ सांमुहइ सज्जति, समहति । ५२ ५६६ हथीयार हस्ताधार । गोलग... ५४८ सांसुहिउ सज्जितः। वेला (?)। ५४६ साहई अवलंबते । ५८,५१ ५७० हाकइ हात.। .५४ ५५० सिणमिणइ शनैमिनोत्यब्दः। ५१ ५७१ हालइ चालइ चलति । ५५१ सीमइ सिध्यति। ५० ५७२ हिणहिणइ हेषायते। ५५२ सीदाबइ सीदति । ५७,५१ ५७३ हियांविउ हृदयापितम् । ५५३ सीवइ पिनष्टि । ५७४ हिवडां इदानीम्, प्रधुना, ५५४ सोष (ख)इ सिक्ष्यते। ५,४७ संप्रति, सांप्रतम् । ५५५ सुहाइ सुखादेमम् । ४६ ५७५ हिवडानं आधुनिकम्, ५५६ संघइ सिंघति, जिघ्रति । ४८ सांप्रतीनाम् । ५५७ सूअइ निद्रायति वा शेते, ५७६ हीडइ विचरति हिंडते स्वपिति। चसति। ८४,५३ ५५८ सूकइ शुष्कति, शुष्यति। ५७७ होडोलइ अांदोलयति । ४८ ५५६ सूझइ शुध्यति । ५७८ हीयापइ हृदयार्पति। ५१ ५६० सूजइ स्वति । ५७६ हुअइ भवति जायते। ३०,४९ ५६१ सूजवइ शोफयति । ५८० हुणइ जुहोति - ५६२ सेवइ भजति-ते सेवते,धयति१३,४८ ५८१ हेतुडइ कृ अधस प्रधःकरोति । ५४ ५६३ सोहइ, शोभते, भाति, राजति-ते ५८२ हेवाउ वेवाकः । घकास्ति च। ८,४८ । ५८३ केंद्रइ ह्लादते ॥ इति बालशिक्षाग्याकरणस्याकाराखनुब मेण भाषाघवसृचिः ॥ ५२ www.jainelik Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शर्ववर्माचार्यप्रणीत - कातन्त्रव्याकरणसूत्रपाठः। *R >प्रथमं सन्धिप्रकरणम् । प्रथमेऽध्याये प्रथमः पादः। सिद्धो वर्णसमानायः। तत्र चतुर्दशादौ खराः। दश समानाः। तेषां द्वौ द्वावन्योन्यस्य सवर्णी । पूर्वो हसः। परो दीर्घः। खरोऽवर्णवों नामी। एकारादीनि सन्ध्यक्षराणि । कादीनि व्यञ्जनानि । ते वर्गाः पञ्च पञ्च पञ्च । वर्गाणां प्रथम-द्वितीयाः शषसाश्चाघोषाः।" घोषवन्तोऽन्ये । अनुनासिका ङ-अ-ण-न-माः।३ अन्तःस्था य-र-लवाः। ऊष्माणः श-ष-स-हाः। अः इति विसर्जनीयः।६xक इति जिह्वामूलीयः। *प इत्युपध्मानीयः। अं इत्यनुखारः ।" पूर्वपरयोरर्थोपलब्धौ पदम् । व्यञ्जनमस्वरं परं वर्णं नयेत् । अनतिक्रमयन् विश्लेषयेत् । लोकोपचाराद् ग्रहणसिद्धिः। - इति प्रथमः पादः । प्रथमेऽध्याये द्वितीयः पादः। समानः सवर्णे दीर्धीभवति परश्च लोपम् ।' अवर्ण इवणे ए। उवणे ओ। ऋवणे अर। लवणे अल् । एकारे ऐ ऐकारे च। ओकारे औ औकारे च । इवों यमसवणे न च परो लोप्यः। वमुवर्णः। रमृवर्णः । लम्लवर्णः।" ए अय् ।२ ऐ आय ।३ ओ अव् । औ आव् ।५ अयादीनां य-वलोपः पदान्ते न वा लोपे तु प्रकृतिः ।१६ एदोत्परः पदान्ते लोपमकारः । न व्यञ्जने स्वराः संधेयाः"- इति द्वितीयः पादः । प्रथमेऽध्याये तृतीयः पादः । ओदन्ता अ-इ-उ-आ निपाताः खरे प्रकृत्या।' द्विवचनमनौ।' बहुवचनममी। अनुपदिष्टाश्च । - इति तृतीयः पादः । Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शर्ववर्माचार्यप्रणीत प्रथमेऽध्याये चतुर्थः पादः। वर्गप्रथमाः पदान्ताः खरघोषवत्सु तृतीयान् ।' पश्चमे पञ्चमांस्तृतीयान्न वा। वर्गप्रथमेभ्यः शकारः स्वर - य-व-र-परश्छकारं न वा। तेभ्य एव हकारः पूर्वचतुर्थं न वा। पररूपं तकारो ल-च-ट-वर्गेषु ।' चं शे। ङ-ण-ना हखोपधाः खरे द्विः। नोऽन्तश्च-छयोः शकारमनु. खारपूर्वम् । ट-ठयोः षकारम् । त-थयोः सकारम् ।” ले लम् ।" ज-झ-अ-शकारेषु अकारम् । शिन्चौ वा। ड-ढ - ण परस्तु णकारम्। मोऽनुस्वारं व्यञ्जने।" वर्गे तद्वर्गपञ्चमं वा।६-- इति चतुर्थः पादः । प्रथमेऽध्याये पञ्चमः पादः। विसर्जनीयश्चे छ वा शम्। टे ठे वा षम् । ते थे वा सम् । क-खयोर्जिह्वामूलीयं न वा। प-फयोरुपध्मानीयं न वा। शेषे से वा वा पररूपम् । उमकारयोर्मध्ये। अघोषवतोश्च । अपरो लोप्योऽन्यखरे यं वा। आ-भोभ्यामेवमेव स्वरे । घोषवति लोपम् ।" नामिपरो रम्। घोषवत्खरपरः।३ रप्रकृतिरनामिपरोऽपि। एष-सपरो व्यञ्जने लोप्यः। न विसर्जनीयलोपे पुनः सन्धिः ।१६ रो रे लोपं स्वरश्च पूर्वी दीर्घः। द्विर्भावं वरपरच्छकारः। - इति पञ्चमः पादः । समाप्तश्च प्रथमोऽध्यायः। द्वितीयं नाम्निचतुष्टयप्रकरणम् । द्वितीयेऽध्याये प्रथमः पादः । धातुविभक्तिवर्जमर्थवल्लिङ्गम् । तस्मात्परा विभक्तयः । पञ्चादौ घुट् । जस्-शसौ नपुंसके। आमन्त्रिते सिः संबुद्धिः। आगम उदनुबन्धः खरादन्त्यात्परः। तृतीयादौ तु परादिः। इदुदग्निः। ईदूत् स्याख्यौ नदी। आ श्रद्वा । अन्त्यात्पूर्व उपधा।" व्यञ्जनान्नोऽनु षङ्गः। धुड् व्यञ्जनमनन्तःस्थानुनासिकम् । अकारो दीर्घ घोषवति। जसि।५ शसि सस्य च नः। अकारे लोपम् । भिसैसू वा।"धुटि बहुत्वे त्वे । ओसि च ।° उसिरात् ।" ङस् स्य ।२२ इन टा। उर्यः।२४ स्मै सर्वनाम्नः।२५ ङसिः स्मात् ।६ ङिः स्मिन् । विभाष्येते पूर्वादेः।२८ सुरामि सर्वतः। जस् सर्व इः। अल्पादेर्वा । द्वन्द्वस्थाच । नान्य Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . कातन्त्रव्याकरणसूत्रपाठः त्सार्वनामिकम् । तृतीयासमासे च । बहुव्रीहौ ।३५ दिशां वा।३६ श्रद्धायाः सिर्लोपम्। टोसोरे। संयुद्धौ च । हस्खोऽम्बार्थानाम् । औरीम् ।उवन्ति यै यास् यास् याम् ।२ सर्वनाम्नस्तु ससवो हस्त्रपूर्वाश्च ।३ द्वितीया-तृतीयाभ्यां वा । ४ नद्या ऐ आसू आसू आम् ।४५ संबुद्धौ हखः । अम्-शसोरादिलॊपम् । ईकारान्तात् सिः। व्यञ्जनाच ।४९ अग्नेरमोऽकारः ।५० औकारः पूर्वम् ।" शसोऽकारः सश्च नोऽस्त्रियाम् ।५२ टा ना ।५३ अदोऽमुश्च ।५४ इरेदुरोजसि ।५ संबुद्धौ च ।५६ डे ।५७ ङसि-ङसोरलोपश्च ।५८ गोश्च ।५९ डिरौ सपूर्वः । सखिपत्योर्डिः ।' उसि-ङसोरुमः ।६२ ऋदन्तात् सपूर्वः ।६३ आ सौ सि लोपश्च । अग्निवच्छसि ।६५ अझै ६६ धुटि च। धातोस्तृशब्दस्यार।६८ स्वस्रादीनां च । आ च न संवुद्धौ। हखनदी-श्रद्धाभ्यः सिर्लोपम् । आमि च नुः ।२ वेस्त्रयश्च ।७३ चतुरः। संख्यायाः ष्नान्तायाः।७५ कतेश्च जस-शसोलक । नियो डिराम् ।- इति प्रथमः पादः। . द्वितीयेऽध्याये द्वितीयः पादः। न सखिष्टादावग्निः। पतिरसमासे। स्त्री नदीवत् । ख्याख्यावियुवौ वामि । हस्खश्च ङवति । नपुंसकात् स्यमोर्लोपो न च तदुक्तम् । अकारादसंबुद्धौ मुश्च । अन्यादेस्तु तुः। औरीम् । जस्-शसोः शिः। घुट्स्वराद् घुटि नुः।" नामिनः खरे। अस्थि-दधि-सक्थ्यक्ष्णामन्नन्तष्टादौ । भाषितपुंस्कं पुम्वद्वा। दीर्घमामि सनौ। नान्तस्य चोपधायाः। घुदि चासंबुद्धौ। सान्त-महतो!पधायाः। अपश्च।" अन्त्वसन्तस्य चाधातोः सौ। इन-हन्-पूषार्यम्णां शौ च।" उशन:पुरुदंशोऽनेहसां सावनन्तः ।२२ सख्युश्च ।२३ घुटि त्वै ।२४ दिव उद् व्यञ्जने ।२५ औ सौ ।२६ वाम्या। युजेरसमासे नुर्बुटि ।२८ अभ्यस्तादन्तिरनकारः।" वा नपुंसके। तुदभादिभ्य ईकारे। हनेहेंर्धिरूपधालोपे।३२ गोरौ घुटि । अम्-शसोरा ।३४ पन्थि-मन्थ्यभुक्षीणां सौ।३५ अनन्तो घुटि । अघुट्खरे लोपम् । व्यञ्जने चैषां निः। अनुषङ्गश्चाक्रुश्चेत् । पुंसोऽन्शब्दलोपः। चतुरो वाशब्दस्योत्वम् । अनडुहश्च।४२ सौ नुः ।३ संबुद्धावुभयोह्रखः । ४ अदसः पदे मः।४५ अघुट्खरादौ सेट्कस्यापि वन्सेर्वशब्दस्योत्वम् ।१६ श्व-युव-मघोनां च । वाहेर्वाशब्दस्यौ। अन्चेरलोपः पूर्वस्य च दीर्घः।" तिर्यङ् तिरश्चिः।° उद उदीचिः।१ पात्पदं समासान्तः।५२ अवमसंयोगादनोऽलोपोऽलुप्तवच्च Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शर्ववर्माचार्यप्रणीतपूर्वविधौ ।५३ ई-योर्वा ।५४ आ धातोरघुट्खरे ।५ ईदूतोरियुवौ खरे ।५६ सुधीः ।५७ भूरवर्षाभूरपुनर्भूः।“ अनेकाक्षरयोस्त्वसंयोगाद् यवौ । भ्रूर्धातुवत् । स्त्री च । वाम् -शसोः।२ भवतो वादेरुत्वं संबुद्धौ । अव्यय-सर्वनाम्नः खरादन्त्यात् पूर्वोऽक् कः। के प्रत्यये स्त्रीकृताकारपरे पूर्वोऽकार इकारम् ।६५ - इति द्वितीयः पादः । द्वितीयेऽध्याये तृतीयः पादः। युष्मदस्मदोः पदं पदात् षष्टी चतुर्थी-द्वितीयासु वसू-नसौ।' वामनौ द्वित्वे । त्वन्मदोरेकत्वे ते मे त्वा मा तु द्वितीयायाम् । न पादादौ। चादियोगे च । एषां विभक्तावन्तलोपः। युवावौ द्विवाचिषु । अमौ चाम् । आम् शस् । त्वम् अहम् सौ सविभक्त्योः ।" यूयम् वयम् जसि।" तुभ्यम् मह्यम् यि। तव मम ङसि। अत् पञ्चम्यद्वित्वे।४ भ्यस् अभ्यम्। सामाकम् । एत्वमस्थानिनि। आत्वं व्यञ्जनादौ ।" रैः।" अष्टनः सर्वासु । औ तस्माजस्-शसोः।" अर्वन्नर्वन्तिरसावनम् । सौ च मघवान् मघवा वा । जरा जर खरे वा। त्रि-चतुरोः स्त्रियां तिसृ चतसृ विभक्तौ ।" तौरं खरे । न नामि दीर्घम् ।२७ नृ वा । त्यदादीनामविभक्तौ। किम् कः । दोऽद्वेमः। सौ सः।३२ तस्य च ।३३ इदमियमयम् पुंसि । अद् व्यञ्जनेऽनक ३५ टोसोरनः ।२६ एतस्य चान्वादेशे द्वितीयायां चैनः। तस्माद् भिस् भिर अदसश्च।३९ सावौसिलोपश्च ।° उत्वं मात् । एद् बहुत्वे त्वी ।२ अपां भेदः।३ विरामव्यञ्जनादिष्वनडुन्नहिवन्सीनांच। स्रसि-ध्वसोश्च।ह-श-षछान्तेजादीनां डः।६ दादेहस्य गः।" चवर्ग-दृगादीनां च ।“ मुहादीनां वा। ह-चतुर्थान्तस्य धातोस्तृतीयादेरादिचतुर्थत्वमकृतवत् । सजुषाशिषो रः । इरुरोरीरूरौ ।५२ अहः सः।५३ संयोगान्तस्य लोपः ।५४ संयोगादेवुटः ।५५ लिङ्गान्तनकारस्य ।५६ न संबुद्धौ । न संयोगान्तावलुप्तवच पूर्वविधौ ।“ इसुसदोषां घोषवति रः ।५९ धुटां तृतीयः।६० अघोषे प्रथमः।" वा विरामे।६२ रेफ-सोर्विसर्जनीयः। विरामव्यञ्जनादावुक्तं नपुंसकात् स्यमोलौंपेऽपि ।४ - इति तृतीयः पादः । . द्वितीयेऽध्याये चतुर्थः पादः। अव्ययीभावादकारान्ताद् विभक्तीनाममपश्चम्याः।' वा तृतीयासप्तम्योः। अन्यस्माल्लुक । अव्ययाच। रूढानां बहुत्वेऽस्त्रियाम Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कातन्त्रव्याकरणसूत्रपाठः प्रत्ययस्य। गर्ग-यस्क -विदादीनां च । भृग्वत्र्यङ्गिरसकुत्सवसिष्ठगोतमेभ्यश्च । यतोऽपैति भयमादत्ते वा तदपादानम् । ईप्सितं च रक्षार्थानाम् । यस्मै दित्सा रोचते धारयते वा तत् संप्रदानम् । य आधारस्तदधिकरणम् । १ येन क्रियते तत् करणम् ।१२ यत् क्रियते तत् कर्म । यः करोति स कर्ता। कारयति यः स हेतुश्च । तेषां परमुभयप्राप्तौ । प्रथमा विभक्तिर्लिङ्गार्थवचने।" आमन्त्रणे च।"शेषाः कर्मकरणसंप्रदानापादानखाम्यायधिकरणेषु ।' पर्यपायोगे पश्चमी। दिगितरर्तेऽन्यैश्च ।" द्वितीयैनेन ।२२ कर्मप्रवचनीयैश्च ।२३ गत्यर्थकर्मणि द्वितीया-चतुर्यो चेष्टायामनध्वनि। मन्यकर्मणि चानादरेऽप्राणिनि।२५ नमः-स्वस्ति-स्वाहा- स्वधा-ऽलं - वषड्योगे चतुर्थी।२६ तादर्थे । तुमर्थाच्च भाववाचिनः। तृतीया सहयोगे।" हेत्वर्थे । कुत्सितेऽङ्गे। विशेषणे। कर्तरि च। काल-भावयोः सप्तमी। स्वामीश्वराधिपतिदायादसाक्षिप्रतिभूप्रसूतैः षष्ठीच ।३५ निर्धारणे च ।६ षष्ठी हेतुप्रयोगे। स्मृत्यर्थकर्मणि। करोतेः प्रतियत्ने। हिंसानामज्वरेः। कर्तृ-कर्मणोः कृति नित्यम् । न निष्ठादिषु ।२ षडो णो ने । मनोरनुस्खारो घुटि।१४ वर्गे वर्गान्तः।५ तवर्गश्च-टवर्गयोगे च-टवर्गौ।६ नामिकरपरः प्रत्ययविकारागमस्थः सिः षं नुविसर्जनीयषान्तरोऽपि ।४७ रवणेभ्यो नो णमनन्त्यः स्वर-ह-य-व-कवर्ग-पवर्गान्तरोऽपि । स्त्रियामादा । नदाद्यन्चिवायन्स्यन्तसखिनान्तेभ्य ई। ईकारे स्त्रीकृतेऽलोप्यः । खरो ह्रस्वो नपुंसके ।५२- इति चतुर्थः पादः । नाम्नि चतुष्टये कारकप्रकरणं समाप्तम् ॥ (१) द्वितीयेऽध्याये पञ्चमः पादः। नाम्नां समासो युक्तार्थः । तत्स्था लोप्या विभक्तयः। प्रकृतिश्च स्वरान्तस्य । व्यञ्जनान्तस्य यत्सुभोः ॥ पदे तुल्याधिकरणे विज्ञेयः कर्मधारयः । संख्यापूर्वी द्विगुरिति ज्ञेयः। तत्पुरुषावुभा ॥ विभक्तयो द्वितीयाद्या नाम्ना परपदेन तु ।। समस्यन्ते. समासो हि ज्ञेयस्तत्पुरुषः स च ॥ स्यातां यदि पदे द्वे तु यदि वा स्युर्बवन्यपि। तान्यन्यस्य पदस्यार्थे बहुव्रीहिः। विदिक तथा ॥" द्वन्द्वः समुच्चयो नानोर्बहूनां वापि यो भवेत् । अल्पखरतरं तत्र पूर्वम् । यच्चार्चितं द्वयोः ॥३ (२) Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शर्ववर्माचार्यप्रणीत पूर्वं वाच्यं भवेद्यस्य सोऽव्ययीभाव इष्यते । " (७) स नपुंसकलिङ्गं स्यात् ।" द्वन्द्वैकत्वम् ।" तथा द्विगोः ॥ " ( ६ ) पुंवद्भाषितपुंस्कानूङपूरण्यादिषु स्त्रियाम् । तुल्याधिकरणे ।" संज्ञापूरणीकोपधास्तु न ॥" कर्मधारयसंज्ञे तु पुंवद्भावो विधीयते । " आकारो महतः कार्यस्तुल्याधिकरणे पदे ॥ २१ नस्य तत्पुरुषे लोप्यः । खरेऽक्षरविपर्ययः । कोः कत् । " का स्वीषदर्थेऽक्षे ।" पुरुषे तु विभाषया ॥ (९) याकारी स्त्रीकृतौ हस्खौ कचित् । " हस्वस्य दीर्घता । अनव्ययविसृष्टस्तु सकारं क-पवर्गयोः ॥" (८) २६ २९ ॥ इति पञ्चमः पादः । नाम्नि चतुष्टये समासप्रकरणं समाप्तम् ॥ 8 द्वितीयेऽध्याये षष्ठः पादः । वाणपत्ये ।' ण्य गर्गादेः । कुञ्जादेरायनण स्मृतः । त्र्यत्र्यादेरेयण ।" इणतः ।" बाह्रादेश्व विधीयते ॥ रागान्नक्षत्रयोगाच्च समूहात्सास्य देवता । वेधीते तस्येदमेवमादेरण इष्यते ॥ तेन दीव्यति संसृष्टं तरतीकण चरत्यपि । पण्याच्छिल्पान्नियोगाच्च क्रीतादेरायुधादपि ॥ तदू (१०) (२) (३) (४) नावस्ता विषाद् वध्ये तुलया संमितेऽपि च । तत्र साधौ यः । ईयस्तु हिते ।" यदुगवादितः ॥ " उपमाने वतिः । तत्वौ भावे । यण् च प्रकीर्तितः । " तदस्यास्तीति मन्त्वन्त्वीन् ।” संख्यायाः पूरणे डमौ ॥ ( ५ ) द्वेस्तीयः । " स्तृ च ।" अन्तस्थो, डे षः । कतिपयात्कतेः । विंशत्यादेस्तमद् ।” नित्यं शतादेः । षष्ट्याद्यतत्परात् ॥ (६) विभक्तिसंज्ञा विज्ञेया वक्ष्यन्तेऽतः परं तु ये । अध्यादेः सर्वनाम्नस्ते बहोश्चैव पराः स्मृताः ॥ " १७ २४ तत्रेदमिः । रथोरेतेत् । तेषु त्वेतदकारताम् । २७ पञ्चम्यास्तस्।” त्रसप्तम्याः । इदमो हः । किमः।' अत् क च ।। (८) (१) (७) Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कातन्त्रव्याकरणसूत्रपाठः तहोः कुः। काले किंसर्वयदेकान्येभ्य एव दा।३४ इदमोह्यधुनादानीम् ।३५ दादानीमौ तदः स्मृतौ ॥३६ सद्य आद्या निपात्यन्ते। प्रकारवचने तु था।३८ इदम् -किम्भ्यां थमुः कार्यः। आख्याताच तमादयः ॥ (१०) समासान्तगतानां वा राजादीनामदन्तता ।४१ डानुबन्धेऽन्त्यखरादेर्लोपः। तेर्विंशतेरपि ॥५३ (११) इवर्णावर्णयोर्लोपः स्वरे ये च । नस्तु कचित् ।४५ उवर्णस्त्वोत्वमापाद्यः। एयेऽकवास्तु लुप्यते ॥७ (१२) कार्याववावापादेशावौकारौकारयोरपि ।८ वृद्धिरादौ सणे । न य्वोः, पदाद्योवृद्विरागमः ॥५० (१३) इति षष्ठः पादः। ॥ इति नाम्नि चतुष्टये तद्धितः समाप्तः । समाप्तश्चायं द्वितीयोऽध्यायः ॥ तृतीयमाख्यातप्रकरणम् । तृतीयेऽध्याये प्रथमः पादः। अथ परस्मैपदानि । नव पराण्यात्मने । त्रीणि त्रीणि प्रथम-मध्यमोत्तमाः। युगपद्वचने परः पुरुषाणाम् । नाग्नि प्रयुज्यमानेऽपि प्रथमः। युष्मदि मध्यमः । अस्मद्युत्तमः। अदाब्दाधौ दा। क्रियाभावो धातुः। काले। संप्रति वर्तमाना।" स्मेनातीते। परोक्षा।३ भूतकरणवत्यश्च । भविष्यति भविष्यन्त्याशीः श्वस्तन्यः।५ तासां खसंज्ञाभिः कालविशेषः। प्रयोगतश्च । पञ्चम्यनुमतौ।" समर्थनाशिषोश्च ।" विध्यादिषु सप्तमी च । क्रियासमभिहारे सर्वकालेषु मध्यमैकवचनं पञ्चम्याः।" मायोगेऽद्यतनी। मास्मयोगे ह्यस्तनी च। वर्तमाना ।२४ सप्तमी ।२५ पञ्चमी ।२६ ह्यस्तनी । एवमेवाद्यतनी । परोक्षा।" श्वस्तनी। आशीः । स्यसंहितानि त्यादीनि भविष्यन्ती।३२ द्यादीनि क्रियातिपत्तिः। षडाद्याः सार्वधातुकम् ।३४ - इति प्रथमः पादः । तृतीयेऽध्याये द्वितीयः पादः। प्रत्ययः परः । गुप्-तिज्-किझ्यः सन् । मान्-बध-दान-शान्भ्यो दीर्घश्चाभ्यासस्य । धातोर्वा तुमन्तादिच्छतिनैककर्तृकात् । नाम्न Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शर्ववर्माचार्यप्रणीत - आत्मेच्छायां यिन् । काम्य च । उपमानादाचारे । कर्तुरायिः सलोपश्च । इन् कारितं धात्वर्थे । धातोश्च हेतौ ।" चुरादेश्च ।" इनि लिङ्गस्यानेकाक्षरस्यान्त्यखरादेर्लोपः ।" रशब्द ऋतो लघोर्व्यञ्जनादेः । ३ धातोर्यशब्दश्चेत्रीयितं क्रियासमभिहारे ।" गुपूधूप - विच्छि-पणि-पनेरायः । " ते धातवः । चकास - कासप्रत्ययान्तेभ्य आम् परोक्षायाम् ।" दययासश्च ।" नाम्यादेर्गुरुमतोऽनृछः । उष - विद - जागृभ्यो वा । " भीह्री भृ-हुवां तिवच्च । " आमः कृञनुप्रयुज्यते । अस-भुवौ च परस्मै । सिज अद्यतन्याम् | २४ सण अनिटः शिडन्तान्नाम्युपधाददृशः । श्रि-दुस्रु - कमि -कारितान्तेभ्यश्चण कर्तरि । अणू असु वचि - ख्याति - लिपिसिचि व्हः । २७ पुषादिद्युताद्य्ऌकारानुबन्धार्ति - शास्तिभ्यश्च परस्मै । " इजात्मने पदेः प्रथमैकवचने । भाव-कर्मणोश्च । सर्वधातुके यण ।" अन् विकरणः कर्तरि । दिवादेर्यन् । नुः खादेः । २४ श्रुवः श्रु च ॥१५ स्वराद् रुधादेः परो नशब्दः । तनादेरुः । ३७ ना त्र्यादेः । आन व्यञ्जनान्ताद्धौ । आत्मनेपदानि भाव- कर्मणोः । कर्मवत् कर्मकर्ता । " कर्तरि रुचादि - ङानुबन्धेभ्यः । चेक्रीयितान्तात् | आय्यन्ताच्च । इन्-अ-यजादेरुभयम् ।५ पूर्ववत् सनन्तात् । शेषात् कर्तरि परस्मैपदम् । - इति द्वितीयः पादः । ४४ ४६ ४७ ८. तृतीयेऽध्याये तृतीयः पादः । १५ द्विर्वचनमनभ्यासस्यैकस्वरस्यायस्य । स्वरादेर्द्वितीयस्य । न न बदराः संयोगादयोऽये । पूर्वोऽभ्यासः । द्वयमभ्यस्तम् ।" जक्षादिश्च । चण्परोक्षा चक्रीति - सनन्तेषु । जुहोत्यादीनां सार्वधातुके ।' अभ्यासस्यादिर्व्यञ्जनमवशेष्यम् । शिपरोऽघोषः ।" द्वितीयचतुर्थयोः प्रथमतृतीयौ ।" हो जः । कवर्गस्य चवर्गः । न कवतेश्चेत्रीयिते । " ह्रस्वः ।" ऋवर्णस्याकारः । दीर्घ इणः परोक्षायामगुणे । " अस्यादेः सर्वत्र ।" तस्मान्नागमः परादिरन्तश्चेत् संयोगः ।" ऋकारे च ।" अश्नोतेश्च ।" भवतेरः । " निजि - विजि-विषां गुणः सार्वधातुके । भृञ- हाड़माङामित् । " अर्ति-पिपत्यश्च । सन्यवर्णस्य । उवर्णस्य जान्तः स्था - पवर्गपरस्यावर्णे । " गुणश्चक्रीयिते । दीर्घोऽनागमस्य । वन्चि स्रन्स ध्वन्सिभ्रन्सि-कसि- पति-पदि स्कन्दामन्तो नी ।" अतोऽन्तोऽनुखारोऽनुनासिकान्तस्य । " जपादीनां च । चर - फलोरुच्च परस्यास्य । ऋमतो रीः । अलोपे समानस्य सन्वल्लघुनीनि चणपरे । दीर्घो २८ Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कातन्त्र व्याकरणसूत्रपाठः ४० ४१ लघोः । अत् त्वरादीनां च । इतो लोपोऽभ्यासस्य । " सनि मि मीमा-दा-रभ-लभ-शक-पत-पदामिस खरस्य । आनोतेरीः । दन्भेरिश्च । " दिगि दयतेः परोक्षायाम् - इति तृतीयः पादः । - & तृतीयेऽध्याये चतुर्थः पादः । १५ सपरखरायाः संप्रसारणमन्तः स्थायाः । ग्रहि-ज्या वयि व्यधि-वष्टिव्यचि-प्रच्छि-व्रश्चि-भ्रस्जीनाम गुणे । स्वपि वचि-यजादीनां यणपरोक्षाशीः । परोक्षायामभ्यासस्योभयेषाम् । व्यथेश्च । न वाव्योरगुणे च । स्वपि स्यमि-व्येत्रां चेत्रीयिते । स्वापेश्वणि । ग्रहि स्वपि प्रच्छां सनि । चायः किचेक्रीयिते ।" प्यायः पिः परोक्षायाम् ।" श्वयतेर्वा । " कारिते च संश्चणोः । ह्रयतेर्नित्यम् ।" अभ्यस्तस्य च । द्युति-स्वाप्योरभ्यासस्य ।" न संप्रसारणे ।" वशेश्चक्रीतेि ।" प्रच्छादीनां परोक्षायाम् ।” सन्ध्यक्षरान्तानामाकारोऽविकरणे । न व्ययतेः परोक्षायाम् । " मीनाति - मिनोति-दीडां गुणवृद्धिस्थाने । सनि दीङः । स्मि-जि-क्रीडामिनि । २४ सृजि-हशोरागमोऽकारः स्वरात्परो धुटि गुणवृद्धिस्थाने | M दीsisन्तो यकारः खरादावगुणे । आ लोपोऽसार्वधातुके ।" इटि च । " दा-मा- गायति- पिबति- स्थास्यति - ज हातीनामीकारो व्यञ्जनादी ।" आशियेकारः । अन उस् सिजभ्यस्त - विदादिभ्योऽभुवः ।" इचस्तलोपः । हेरकारादहन्तेः। नोश्च विकरणादसंयोगात् । उकाराच्च । उकारलोपो मोर्वा । करोतेर्नित्यम् ।" ये च । अस्योकारः सार्वधातुकेऽगुणे । रुधादेर्विकरणान्तस्य लोपः । " अस्तेरादेः । " अभ्यस्तानामाकारस्य । त्र्यादीनां विकरणस्य । उभयेषामीकारो व्यञ्जनादावदः । * इकारो दरिद्रातेः । लोपः सप्तम्यां जहातेः । धुटि हन्तेः सार्वधातुके ।" शासेरिदुपधाया अण व्यञ्जनयोः ।" हन्तेर्ज हो । दास्योरेऽभ्यासलोपश्च ।" अस्यैकव्यञ्जनमध्येऽनादेशादेः परोक्षायाम् |" थलि च सेटि । ५२ तृ-फल- भज-प- श्रन्थि-ग्रन्थि-दन्भीनां च । न शस दद वादिगुणिनाम् । ४ खरादाविवर्णो वर्णान्तस्य धातोरियुवौ । अभ्यासस्यासवर्णे 15 नोर्विकरणस्य । य इवर्णस्यासंयोगपूर्वस्यानेकाक्षरस्य । इणश्च ।" नोर्वकारो विकरणस्य ।" जुहोतेः सार्वधातुके ।" भुवो वोऽन्तः परोक्षाऽद्यतन्योः । गोहेरूदुपधायाः । दुषेः कारिते । " मानुबन्धानां ह्रस्वः । ६५ इचि वा । ६ जनि-बध्योश्च । " ओतो यिन्- आयी खरवत् । " औतश्च ।" नाम्यन्तानां यण- आयियिन्- आशीवि चेक्रीयितेषु ये ४२ ४६ ४७ ५४ ५८ २ Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शर्ववर्माचार्यप्रणीतदीर्घः। इणोऽनुपसृष्टस्य। ऋत ईदन्तश्वि-चेक्रीयित-यिन्-आयिषु ।७२ इरन्यगुणे । यणाशिषोर्ये ।४ गुणोऽर्तिसंयोगाद्योः। चेक्रीयिते च।६ घ्रा-ध्मोरी । यिन्यवर्णस्य । अदेघस्ल सनद्यतन्योः। वा परोक्षायाम् । वेञश्च वयिः । हन्तेर्वधिराशिषि । २ अद्यतन्यां च । इणो गा। इङः परोक्षायाम्। सनीण - इङोर्गमिः। अस्तेर्भूरसार्वधातुके। ब्रुवो वचिः । चक्षिङः ख्याञ् ।९ वा परोक्षायाम् । अजेवी।" अदादेलग् विकरणस्य । इण् - स्था-दा-पिबति-भूभ्यः सिचः परस्मै । इति चतुर्थः पादः । तृतीयेऽध्याये पञ्चमः पादः। नाम्यन्तयोर्धातुविकरणयोर्गुणः। नामिनश्चोपधाया लघोः। अनि च विकरणे। करोतेः। मिदेः। अभ्यस्तानामुसि । न णकारानुबन्धचेक्रीयितयोः । अभ्यस्तस्य चोपधाया नामिनः स्वरे गुणिनि सार्वधातुके। सनि चानिटि। सिजाशिषोश्चात्मने । ऋदन्तानां च ।" स्था-दोश्च । भुवः सिलकि। सूतेः पञ्चम्याम् । दी-धी-वेव्योश्च । रुद-विद-मुषां सनि ।६ नाम्यन्तानामनिटाम् । सर्वेषामात्मने सार्वधातुकेऽनुत्तमे पञ्चम्याः। द्वित्व-बहुत्वयोश्च परस्मै। परोक्षायां च । सर्वत्रात्मने ।" आशिषि च परस्मै । सप्तम्यां च ।३ हौ च । तुदादेरनि । आमि विदेरेव । कुटादेरनिनिचट्सु। विजेरिटि। स्थादोरिरद्यतन्यामात्मने । मुचादेरागमो नकारः स्वरादनि विकरणे । मस्जिनशोधुटि। रधि-जभोः खरे। नेटि रधेरपरोक्षायाम् । रभि- लभोरविकरणपरोक्षयोः । हु-धुड्भ्यां हेधिः।३५ अस्तेः।३६ शा शास्तेश्च । लोपोऽभ्यस्तादन्तिनः। आत्मने चानकारात् । शेते रिरन्तेरादिः। आकारादट औ ।” ऋदन्तस्येरगुणे। उरोष्ट्योपधस्य च ।३ इन्यसमानलोपोपधाया हस्वश्चणि । न शास्वृदनुबन्धानाम् । लोपः पिबतेरीचाभ्यासस्य । तिष्ठतेरित् । जिघ्रतेर्वा । - इति पञ्चमः पादः । तृतीयेऽध्याये षष्ठः पादः। अनिदनुबन्धानामगुणेऽनुषङ्गालोपः। न शब्दाच विकरणात्। परो. क्षायामिन्धि-श्रन्थि - ग्रन्थि - दन्भीनागुमणे । दन्शि- सन्जि - स्वन्जिरन्जीनामनि । अस्योपधाया दीर्घो वृद्धिर्नामिनामिनिचट्सु।' सिचि Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कातन्त्रव्याकरणसूत्रपाठः परस्मै स्वरान्तानाम् । व्यञ्जनान्तानामनिटाम् । अस्य च दीर्घः। वद-ब्रज-रलन्तानाम् । श्विजानोर्गुणः।" अर्ति- सोरणि ।" जागर्तेः कारिते।२ यणाशिषोर्ये । परोक्षायामगुणे । ऋतश्च संयोगादेः । ऋदन्तानां च । ऋच्छ ऋतः । शीङः सार्वधातुके । अयीर्ये ।" आयिरिच्यादन्तानाम् । शा-छा-सा-हा-व्या-वे- पामिनि ।" अर्तिही-ब्ली-री-नयी-क्ष्माय्यादन्तानामन्तः पो यलोपो गुणश्च नामिनाम् । पातेलॊऽन्तः। धूञ्-प्रीणात्योनः । स्फायेर्वादेशः । शदेरगतौ तः ।२६ हन्तेस्तः । हस्य हन्तर्धिरिनिचोः ।“ लुप्तोपधस्य च ।" अभ्यासाच ।३० जेर्गिः सन् - परोक्षयोः । चेः कि वा ।३२ सणोऽलोपः खरेऽबहुत्वे । दरिद्रातेरसार्वधातुके । ब्रश्चि-मस्जोधुटि ।३५ यन्योकारस्य ।३६ आकारस्योसि । सन्ध्यक्षरे च । अस्तेः सौ । असन्ध्यक्षरयोरस्य तौ सल्लोपश्च । दी-धी-वे-व्योरिवर्णयकारयोः। नामिव्यञ्जनान्तादायेरादेः।२ गम - हन-जन-खन - घसामुपधायाः स्वरादावनण्यगुणे ।३ कारितस्यानामिविकरणे । यस्थापत्यप्रत्ययस्याखरपूर्वस्य यिनआयिषु । न लोपश्च । व्यञ्जनादिस्योः। यस्याननि । अस्य च लोपः। सिचो धकारे।५० धुदश्च धुटि । ह्रस्वाचानिटः ।५२ इटश्चेटि ।५३ स्कोः संयोगायोरन्ते च ।५४ चवर्गस्य किरसवर्णे ।५५ हो ढः।१६ दादेर्घः।५७ नहेर्धः । भृजादीनां षः।" छ - शोश्च। भाषितपुंस्कं पुंवदायौ। आ-दा-ता-मा-था-मादेरिः । आते आथे इति च ।६३ याशब्दस्य च सप्तम्याः। याम् -युसोरियमियुसौ।१५।। शमादीनां दी? यनि ।६ष्ठिवु-क्लम्बाचमामनि ॥६७ क्रमः परस्मै । गमिष्यमां छः। पः पिवः। घ्रो जिघ्रः। ध्मो धमः।७२ स्थस्तिष्ठः। नो मनः। दाणो यच्छः। दृशेः पश्यः । अर्तेर्कच्छः। सर्तेर्धावः। शदेः शीयः। सदेः सीदः । जा जनेर्विकरणे।" ज्ञश्च । प्वादीनां हवः। उतो वृद्धिर्व्यञ्जनादौ गुणिनि सार्वधातुके। ऊोतेर्गुणः।" ह्यस्तन्यां च । तृहेरिड् विकरणात् ॥ ब्रुव ईड् वचनादिः।“ अस्तेर्दि-स्योः। सिचः। रुदादिभ्यश्च ।" अदोऽट ।२ सस्य सेऽसार्वधातुके तः ।३ अणि वचेरोदुपधायाः ।९४ अस्यतेः स्थोऽन्तः ।५ पतेः पप्तिः । कृपे रोलः। गिरतेश्चक्रीयिते। वा स्वरे । तृतीयादेर्घ-ढ-ध-भान्तस्य धातोरादिचतुर्थत्वं स-ध्वोः।३०० लोपे च दि-स्योः।१ त-थोश्च दधातेः।०२ -इति षष्ठः पादः । INSTALLATHE Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शर्ववर्माचार्यप्रणीत तृतीयेऽध्याये सप्तमः पादः । इडागमोऽसार्वधातुकस्यादिर्व्यञ्जनादेरयकारादेः । स्नु - क्रमिभ्यां परस्मै ।' रुदादेः सार्वधातुके । ईशः से ।" ईड्जनोः सध्वे च ।" से गमः परस्मै । हनुदन्तात् स्ये । अन्जेः सिचि । स्तु सु-धूञ्भ्यः परस्मै । यमि-रमि- नम्यादन्तानां सिरन्तश्च ।" स्मिङ्-पूङ् - रन्ज्वशू-कॄ-गृ-हधृ प्रच्छां सनि ।" इटो दीर्घो ग्रहेरपरोक्षायाम्।” अनिडेकखरादातः । इवर्णादश्वि- श्रि-डी- शीङः । उतोऽयु-रु-णु-स्तु-क्षु- क्ष्नुवः ।" ऋतोऽवृङ्वृञः ।" शकेः कात् । " पचि वचि - सिचि - रिचि-मुचेश्चात् । " प्रच्छेश्छात् ।" युजि - रुजि रन्जिभुजि भजि भन्जि सन्जि त्यजिभ्रस्जि यजि मस्जि सृजि - निजि विजि - खन्जेर्जात् । अदि-तुदि- दि - क्षुदि - विद्यति - विद्यति - विन्दति - विनत्ति - छिदि - भिदि - हृदि शदि सदिपदि स्कन्दि - खिदेर्दात् ।" राधि रुधि क्रुधि - क्षुधिबन्ध-शुधि - सिध्यति - बुध्यति - युधि-व्यधि - सावेर्धात् । हनि - मन्यतेर्नात् । आपि तपि - तिपि खपि वपि शपि छुपि क्षिपि - लिपि लुपि-सृपेः पात् । यभि - रभि लभेर्भात् ।" यमि-रमि- नमि - गमेमत् रिशि-रुशि - क्रुशि-लिशि - विशि - दिशि - दृशि - स्पृशि - मृशि - दन्शेः शात् । द्विषि पुष्यति - कृषि - श्लिष्यति - त्विषि - पिषिविषि - शिषि- शुषि - तुषि दुषेः षात् ।" वसति - घसेः सात् । दहिदिहि दुहि मिहि - रिहि रुहि लिहि- लुहि नहि बहेर्वात् । ग्रहगुहः सनि । उवर्णान्ताच्च । इवन्तर्ध - भ्रस्ज- दन्भु - श्रियूर्ण भर - ज्ञपि - सनि-तनि-पति-दरिद्रां वा । भुवः सिज् लुकि । सृ-वृ-भृ-स्तुद्रु- स्रुश्रुव एव परोक्षायाम् । थल्यृकारात् । कृञोऽसुरः ।" सुड् भूषणे संपर्युपात् । " - इति सप्तमः पादः । - २६ - १२ - - - - - - - - - - - - - तृतीययेऽध्याये अष्टमः पादः । पदान्ते धुट प्रथमः । र सकारयोर्विसृष्टः । घ ढ ध भेभ्यस्तथोasधः । षढोः कः से । तवर्गस्य ष- दवर्गाद् टवर्गः ।" ढेढ लोपो दीर्घश्चोपधायाः। सहि बहोरोदवर्णस्य । घुटां तृतीयश्चतुर्थेषु । अघो षेष्वशिटां प्रथमः । भृजः स्वरात् खरे द्विः । अस्य वमोदीर्घः ।" स्वरान्तानां सनि । हनिङ्गमोरुपधायाः । नामिनोवरिकुछुरोर्व्यञ्जने । सस्य ह्यस्तन्यां दौ तः ।" अड् धात्वादिर्ह्यस्तन्यद्यतनीक्रियातिपत्तिषु । १२ १५ - - Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३ कातन्त्रव्याकरणसूत्रपाठः खरादीनां वृद्धिरादेः। अवर्णस्याकारः। अस्तेः। एतेर्ये । न मामास्मयोगे ।" नाम्यन्ताद्धातोराशीरद्यतनीपरोक्षासु धो ढः । मर्जी मार्जिः। धात्वादेः षः सः। णो नः।" निमित्तात्प्रत्ययविकारागमस्थः सः षत्वम् ।२६ शासि - वसि - घसीनां च । स्तोतीनन्तयोरेव सनि ।२८ लुग-लोपे न प्रत्ययकृतम् । स्वरविधिः खरे द्विवचननिमित्ते कृते द्विवचने । योऽनुबन्धोऽप्रयोगी। शिडिति शादयः । संप्रसारणं वृतोऽन्तःस्थानिमित्ताः। अर् पूर्वे द्वे सन्ध्यक्षरे च गुणः । आरुत्तरे च वृद्धिः। - इति अष्टमः पादः । समाप्तश्चायं तृतीयोऽध्यायः । ॥ इति तृतीयमाख्यातप्रकरणम् ॥ चतुर्थं कृतप्रकरणम् । चतुर्थेऽध्याये प्रथमः पादः। सिद्धिरिज्वद् ञ्णानुबन्धे।' हन्तेस्तः। न सेटोऽमन्तस्यावमिकमिचमाम् । प्रत्ययलुकां चानाम् । सार्वधातुकवच्छे ।' डे न गुणः। के यण्वच्च योक्तवर्जम्। जागुः कृत्यशन्तृयोः। गुणी क्त्वा सेड् अरुदादिक्षुध-कुश-क्लिश-गुध-मृड - मृद -वद-वसग्रहाम् । स्कन्दस्यन्दोः क्त्वा। व्यञ्जनायुपधस्यावो वा। तृषि-मृषि-कृशि-वश्चि-लुभ्यतां च।२थ-फान्तानां चानुषङ्गिणाम् । जान्तनशामनिटाम् । शीङ्पूड़-धृषि-क्ष्विदि-विदि-मिदां निष्ठा सेट् । मृषः क्षमायाम् ।१६ भावादिकर्मणोर्वोदुपधात् । ह्लादो हवः ।" छादेर्धेस-मन्-नन् - किप्सु । दीर्घस्योपपदस्यानव्ययस्य खानुबन्धे । नामिनोऽम् प्रत्ययवचैकखरस्य । हखारुषोर्मोऽन्तः ।२२ सत्यागदास्तूनां कारे ।२३ गिलेऽगिलस्य। उपसर्गादसु-दुर्थ्यां लभेः प्राग् भात् खल्-घजोः।" आङो यि ।६ उपात् प्रशंसायाम् । वा कृति रात्रेः।"पुरंदर-वाचंयम-सर्वसह-द्विषंतपाश्च । धातोस्तोऽन्तः पानुबन्धे । ओदौद्भ्यां कृद् यः खरवत् । जि-क्ष्योः शक्ये ।३२ क्रीनस्तदर्थे । वेलोपोऽपृक्तस्य ।३४ स्वोर्व्यञ्जनेष्ये ।५ निष्ठेटीनः ।२६ नाल्विष्ण्वाय्यान्तेनुषु । लघुपूर्वोऽय् यपि। मीनात्यादिदादीनामाः । क्षेर्दीर्घः । निष्ठायां च । स्फायः स्फीः।२ प्यायः पीः स्वाङ्गे ।३ शृतं पाके। प्रस्त्यः संप्रसारणम् ।४५ द्रवघनस्पर्शयोः श्यः ।६ प्रतेश्च । वाभ्यवाभ्याम् । न वे-ज्योर्यपि ।४९ Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ शर्ववर्माचार्यप्रणीत - ५६ व्यश्च । सं- परिभ्यां वा । " तद् दीर्घमन्त्यम् । वः कौ । ३ ध्या- प्योः । ४ पञ्चमोपधाया घुटि चागुणे ।" होः शूटौ पञ्चमे च । श्रिव्यवि-मविज्वरि - त्वरामुपधया ।" राल्लोप्यौ ।" वनति - तनोत्यादिप्रतिषिद्धेटां धुटि पञ्चमोऽच्चातः । यपि च ।" वा मः । न तिकि दीर्घश्च । उन्देर्मनि । ३ घञन्धेः । स्यदो जवे । रन्जेर्भाव करणयोः । वृष- घिनिणोश्च । वृंहे खरेsनिटि वा । " यम-मन-तन-गमां कौ ।" विडवनोरा । घुटि खनि- सनि-जनाम् । " येवा । सनस्तिकि वा । स्फुरि-स्फुल्योर्घज्योतः ।" इज्जहातेः क्त्वि । द्यति-स्थति-मा-स्थां त्यगुणे ॥७६ छाशोः । दधातेर्हिः । चर- फलोरुदस्य । दद् दोऽधः ।" स्वरादुपसर्गात तः ।" यपि चादो जग्धिः । धजलोर्घसुः । क्तक्तवन्तु निष्ठा । * - इति प्रथमः पादः । ७४ वा ७७ चतुर्थेऽध्याये द्वितीयः पादः । 99 २६ धातोः ।' सप्तम्युक्तमुपपदम् । । तत् प्राङ्ग नाम चेत् । तस्य तेन समासः । नाव्ययेनानमा । तृतीयादीनां वा । कृत् । वासरूपोsस्त्रियाम् । तव्यानीयौ । खराद् यः ।" शकि- सहि पवर्गान्ताच्च । ' आत्खनोरिच ।" यमि-मदि - गदां त्वनुपसर्गे । चरेराङि चागुरौ ।" पण्याद्यवर्या विक्रेयगह्यनिरोधेषु ।" वहां करणे । अर्यः स्वामिवैश्ययोः ।" उपसर्या काल्या प्रजने ।" अजर्यं संगते च ।" नाम्नि वदः क्यप् च ।° भावे भुवः ।" हनस् त च । वृञ्-दृ- जुषीण - शासु -स्तुगुहां क्यप् । ऋदुपधाच्चाकृपिचृतेः ।" भृञोऽसंज्ञायाम् । ग्रहो sपि प्रतिभ्यां वा । ६ पद- पक्ष्ययोश्च ।" वौ नी - पूञभ्यां कल्क- मुञ्जयोः ।" कृ - कृषि - मृजां वा । सूर्य - रुच्याव्यथ्याः कर्तरि । भिद्योद्ध्यौ नदे ।" पुष्य - सिध्यौ नक्षत्रे । युग्यं पत्रे । कृष्टपच्य कुप्ये संज्ञायाम् । ऋवर्ण व्यञ्जनान्ताद् ध्यण् । " आसु - युव-पि रपि - लपि - त्रपि दभिचमां च। उवर्णादावश्यके ।" पा - धोर्मानसामिधेन्योः ।" प्राङोर्नियोऽसंमतानित्ययोः खरवत् । संचिकुण्डपः क्रतौ । राजसूयश्च ।" सांनाय्य निकाय्यौ हविर्निवासयोः । परिचाय्योपचाय्यावग्नौ । चित्याग्निचित्ये च । अमावस्या वा । *५ ते कृत्याः । वुण - तृचौ ।" अच् पचादिभ्यश्च । नन्द्यादेर्युः । ग्रहादेर्णिन् । नाम्युपधप्री-कृगृ-ज्ञां कः ।" उपसर्गे त्वातो डः ।"" धेड्हशि - पाघ्राध्मः शः । साहि साति-वेद्युदेजि-चेति-धारि-पारि-लिम्प-विन्दां त्वनुपसर्गे । ४ वा - ४१ ४२ ४४ ४६ ४७ ४८ - 3 - - Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कातन्त्रव्याकरणसूत्रपाठः ज्वलादिदुनीभुवो णः।५ समाङोः स्रुवः ।५६ अवे हृसोः।५७ दिहिलिहि-श्लिषि-श्वसि-व्यध्यतीश्यातां च । अहेर्वा ।५९ गेहे त्वक् ।६० शिल्पिनि वुष् । गस्थकः।६२ ण्युट् च ।६३ हः काल-ब्रीह्योः।६४ आशिष्यकः। -स्र-मृल्वां साधुकारिणि ।६६ – इति द्वितीयः पादः।. . चतुर्थेऽध्याये तृतीयः पादः। कर्मण्यण् ।' हावामश्च । शीलि-कामि-भक्ष्याचरिभ्यो णः। आतोऽनुपसर्गात् कः। नाम्नि स्थश्च । तुन्द-शोकयोः परिमृजापनुदोः। प्रे दाज्ञः । समि ख्यः। गष्टक् । सुरा-सीध्वोः पिबतेः। हृञोऽज् वयोऽनुद्यमनयोः। आङि ताच्छील्ये। अहश्च । धृतः प्रहरणे चादण्डसत्रयोः। धनुर्दण्ड-त्सरुलाङ्गलाङ्कुश-यष्टि-तोमरेषु ग्रहा। स्तम्ब-कर्णयोरमिजपोः।शंपूर्वेभ्यः संज्ञायाम्। शीङोऽधिकरणे च।"चरेष्टः। पुरोऽग्रतोऽग्रेषु सर्तेः । पूर्वे कर्तरि ।" कृओ हेतु-ताच्छील्यानुलोम्येष्वशब्दश्लोक-कलह-गाथा-वैर-चाटु-सूत्र-मन्त्रपदेषु । तदाद्याद्यनन्तन्ताकारबहु-बाह्वहर्दिवा-विभा-निशा-प्रभा-भाश्चित्रकर्तृ-नान्दी-किं-लिपि-लिविबलि-भक्ति-क्षेत्र-जङ्घा-धनुररुः-संख्यासुच। भृतौ कर्मशब्दे। इः स्तम्बशकृतोः ।२५ हरतेईति-नाथयोः पशो ।२६ फले-मल-रजःसु ग्रहेः ।२७ देववातयोरापेः। आत्मोदर-कुक्षिषु भृञःखिः। एजेः खश । शुनी-स्तनमुञ्ज-कूलास्य-पुष्पेषु धेटः । नाडी कर-मुष्टि-पाणि-नासिकासु ध्मश्च ।३२ विध्वरुस्तिलेषु तुदः। असूर्योग्रयोदशः। ललाटे तपः ।३५ मित-नखपरिमाणेषु पचः। कूल उद्दुजोद्वहोः। वहलिहाभ्रलिह-परंतपेरंमदाश्च । वदेः खः प्रिय-वशयोः। सर्वकूलाभ्रकरीषेषु कषः। भयर्तिमेघेषु कृतः। क्षेम-प्रियमद्रेष्वण च । भाव-करणयोस्त्वाशिते भुवः। नाग्नि तृ-भृवृजि-धारि-तपि-दमि-सहां संज्ञायाम्। गमश्च। उरोविहायसोरुरविही च । डोऽसंज्ञायामपि । विहंग-तुरंग-भुजंगाश्च । अन्यतोऽपि च । हन्तेः कर्मण्याशीर्गत्योः। अपात् क्लेशतमसोः।"कुमार-शीर्षयोर्णिन्।२ टग लक्षणे जायापत्योः ।५३ अमनुष्यकर्तृकेऽपि च । हस्ति-बाहु-कपाटेषु शक्तौ।"पाणिघ-ताडघौ शिल्पिनि । नग्न-पलित-प्रियान्ध-स्थूलसुभगाढ्येष्वभूततद्भावे कृतः ख्युट करणे। भुवः खिष्णु-खुको कर्तरि ।५८ भजो विण । सहश्छन्दसि । वहश्च। अनसि डश्च। दुहः को घश्च ।६३ विट् क्रमि-गमि-खनि-सनि-जनाम् । मन्त्रे श्वेतव-हुक्थशंस-पुरोडाशावयजिभ्यो विण् ।६५ आतो मन्-कनिब्-वनिब्-विचः ।६५ अन्येभ्योऽपि Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ __ शर्ववर्माचार्यप्रणीतदृश्यन्ते । किप् च ।६८ वहे पञ्चम्यां भ्रंशेः। स्पृशोऽनुदके । अदोऽनन्ने। क्रव्ये च । ऋत्विग-दधृक्-स्रग्-दिगुष्णिहश्च । सत्-सू-द्विषद्रुह-दुह-युज-विद-भिद-छिद-जि-नी-राजामुपसर्गेऽपि । कर्मण्युपमाने त्यदादौ दृशष्टक्-सको च । नान्यजातौ णिनिस्ताच्छील्ये। कर्तर्युपमाने । व्रताभीक्ष्ण्ययोश्च । मनः पुंवच्चात्र । खश्चात्मने । करणेऽतीते यजः। कर्मणि हनः कुत्सायाम्। किब् ब्रह्म-भ्रूण-वृत्रेषु। कृञः सुपुण्य-पाप-कर्म-मन्त्र-पदेषु । सोमे सुञः। चेरग्नौ । विक्रिय इन् कुत्सायाम् । दृशेः कनिम्। सहराज्ञोयुधः। कृत्रश्च । सप्तमीपञ्चम्यन्ते जनेर्डः । अन्यत्रापि च । निष्ठा। वनिप् सुयजोः । जीयतेरन्तुन् । - इति तृतीयः पादः।। . चतुर्थेऽध्याये चतुर्थः पादः। कन्सु-कानी परोक्षावच । वर्तमाने शन्तृङानशावप्रथमैकाधिकरणामत्रितयोः । लक्षण-हेत्वोः क्रियायाः । वेत्तेः शन्तुर्वन्सुः । आनोऽत्रात्मने। ई तस्यासः। आन्मोऽन्त आने। पूङ-यजोः शान। शक्तिवयस्ताच्छील्ये। इधारिभ्यां शन्तकृच्छे। द्विषः शत्रौ।" सुजो यज्ञसंयोगे। अर्हःप्रशंसायाम् । तच्छीलतद्धर्मतत्साधुकारिष्वा के।" तृन् । भ्राज्यलंकृञ्भू-सहि-रुचि-वृति-वृधि-चरि-प्रजनापत्रपेनामिष्णुच। मदि-पति-पचामुदि। जि-भुवोः लुक। ग्ला-म्ला-स्था-क्षि-पचि-परिमृजांस्लुः।" त्रसि-गृधि-धृषि-क्षिपांनुः। शमामष्टानां घिनिण।" युज-भज-भुज-द्विष-द्रुह-दुह-दुषा-क्रीड-त्यजानुरुधाङ्-यमाडू-यस-रन्जाभ्याङ्हनांच। समि-मृजि-पृचि-ज्वरित्वराम् । वौ विच-कत्थ-श्रन्भु-कष-लषाम्।"प्रे द्व-मथ-वद-वस-लपाम्। परी मृदहो। क्षिप-रट-वद-वादि-देविभ्यो वुण च। निन्द-हिंस-क्लिश-खा-दानेकखरविनाशिव्याभाषासूयांबुञ्। देवि-कुशोश्वोपसर्गे। क्रुषि-मण्डि-चलि-शब्दार्थेभ्यो युः। रुचादेश्च व्यञ्जनादेः।' जु-चंक्रम्य-दंद्रम्य-स्मृ-गृधि-ज्वल-शुच-लषपत-पदाम् । न यान्तसूद-दीप-दीक्षाम् । शृ-कम-गम-हन-वृष-भू-स्थालष-पत-पदामुकम् । वृङ्-भिक्षि-लुण्टि-जल्पि-कुट्टांषाकः। प्रे जु-सुवोरिन्। जीण-दृक्षि-विधि-परिभू-वमाभ्यमाव्यथांच। दयि-पति-गृहिस्पृहि-श्रद्धा-तन्द्रा-निद्राभ्य आलः । शदि-सदि-धेड्दासिभ्यो रुः। स्रदिघसां मरक। मिदि-भासि-भन्जां घुरः। छिदि-भिदि-विदां कुरः। जागुरूकः। चेक्रीयितान्तानां यजि-जपि-दंशि-वदाम् । तस्य Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कातन्त्रव्याकरणसूत्रपाठः। लुगचि। ततो यातेर्वरः। कसि-पिसि-भासीश-स्था-प्रमदां च । मृ-जीण-नशां कर । गमस्त च । दीपि-कम्प्यजसि-हिंसि-कमि स्मिनमा रः। सनन्ताशंसिभिक्षामुः। विन्द्विच्छू च ।५२ आदृवर्णो. पधालोपिनां कि₹ च । तृषि-धृषि-स्वपां नजिङ्।५४ शृवन्द्योरारुः ।५५ भियो रुग्-लुकौ च ।६ क्विब् भ्राजि-पृ-धुर्वीभासाम् । युति-गमो. च। भुवो डुर्विशंप्रेषु । कर्मणि धेटः ष्ट्रन् ।६० नी-दाप्-शसु-यु-युज-स्तुतुद-सि-सिच-मिह-पत-दंश-नहां करणे। हल-शूकरयोः पुवः ।६२ अर्तिलू-धू-सू-खनि-सहि-चरिभ्य इत्रन् । पुवः संज्ञायाम् । ऋषि-देवतयोः कर्तरि । ञ्यनुबन्ध-मति-बुद्धि-पूजार्थेभ्यः क्तः। उणादयो भूतेऽपि । भविष्यति गम्यादयः ।८ वुण-तुमौ क्रियायां क्रियार्थायाम् । भाववाचिनश्च । कर्मणि चाण् । शन्त्रानो स्य-संहितौ शेषे च ।७२ -इति चतुर्थः पादः। चतुर्थेऽध्याये पञ्चमः पादः । पद-रुज-विश-स्पृशोचां घञ्।' मृ स्थिर-व्याध्योः। भावे। अकर्तरि च कारके संज्ञायाम् । सर्वस्मात् परिमाणे । इङाभ्यां च । उपसर्गे रुवः । समि दुवः । यु-द्रुवोरुदि च । श्रि-नी-भूभ्योऽनुपसर्गे । क्षु-श्रुभ्यां वौ।" स्त्रश्च प्रथनेऽशब्दे । प्रे चायज्ञे।३ छन्दोनानि च । प्रे द्रु-स्तु-श्रुवः ।५ नियोऽवोदोः ।६ निरभ्योः पूल्वोः ।" यज्ञे समि स्तुवः।" उन्योगिरः।" किरो धान्ये । नौ वृनः।" उदि श्रि-पुवोः।२२ ग्रहश्च ।३ अवन्योराक्रोशे।४ प्रे लिप्सायाम् ।२५ समि मुष्टौ। परौ यज्ञे। वावे वर्षप्रतिबन्धे । प्रे रश्मौ । वणिजां च । वृणोतेराच्छादने । आङि रु-प्लुवोः । परौ भुवोऽवज्ञाने । चेस्तु हस्तादाने ।३४ शरीर-निवासयोः कश्चादेः।३५ संघे चानौत्तराधर्ये ।३६ परिन्योर्नीणोख़्ताभ्रषयोः। व्युपयोः शेतेः पर्याये। अभिविधौ भाव इनुण । कर्मव्यतीहारे णच स्त्रियाम् । वर-वृ-दृ-गमि-ग्रहाम् अल्। उपसर्गेऽदेः।४२ नौ ण च । मदेः प्रसमोहर्षे । व्यध-जपोश्चानुपसर्गे। स्वन-हसोर्वा । यमः संन्युपविषु च । नौ गद-नद-पठ-स्वनाम् । कणो वीणायां च ।४९ पणः परिमाणे नित्यम् । समुदोरजः पशुषु ।' ग्लहोऽक्षेषु । सर्तेः | Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ शर्ववर्माचार्यप्रणीतप्रजने । हो हुश्चाभ्युपनिविषु च । आङि युद्धे ।५५ भावेऽनुपसर्गस्य।५६ हन्तेर्वधिश्च ।५० मूर्ती घनिश्च । प्राद् गृहैकदेशे घञ् च ।५९ अन्तर्घनोद्घनौ देशात्याधानयोः। करणेऽयोविद्रुषु। परौ डः। नौ निमिते।३ समुदोर्गण-प्रशंसयोः ।६४ उपात् क आश्रये ।६५ स्तम्बेञ्च ।६६ ट्वनुबन्धादथुः । ड्वनुबन्धात् त्रिमक तेन निवृत्ते । याचि-विछि-प्रछियजि-खपि-रक्षि-यतां नङ् ।६९ उपसर्गे दः किः। कर्मण्यधिकरणे च । स्त्रियां क्तिः । साति-हेति-यूति-जूतयश्च ।७३ भावे पचि-गा-पास्थाभ्यः । ब्रज-यजोः क्यप् ।७५ समजासनि-सद-नि-पति-शी-सुविद्यटि-चरि-मनि-भृञिणां संज्ञायाम् । कृतः श च । सर्तेर्यश्च । इच्छा। शंसिप्रत्ययादः । गुरोश्च निष्ठासेटः। षानुबन्धभिदादिभ्यस्त्वङ् ।२ भीषि-चिन्ति-पूजि-कथि-कुम्बि-चर्चि-स्पृहि-तोलि-दोलिभ्यश्च ।३ आतश्चोपसर्गे। ईषि-श्रन्थ्यासि-वन्दि-विदि-कारितान्तेभ्यो युः। कीर्तीषोः क्तिश्च । रोगाख्यायां बुञ्। संज्ञायां च ।“ पर्यायाहणेषु च । प्रश्नाख्यानयोरिञ् च वा। नभ्यन्याक्रोशे।" कृत्ययुटोऽन्यत्रापि च । नपुंसके भावे क्तः। युट् च । करणाधिकरणयोश्च । पुंसि संज्ञायां घः।६ गोचर-संचर-वह-व्रज-व्यज-क्रमापणनिगमाश्च । अवे तृस्त्रोर्घञ्। व्यञ्जनाच। उदकोऽनुदके। जालमानायः। ईषद्दुः-सुषु कृच्छ्राकृच्छ्रार्थेषु खल् ।०२ कर्तृ-कर्मणोश्च भू-कृयोः। आद्भ्यो स्वदरिद्रातेः। शासु-युधि-दृशि-धृषि-मृषां वा । इच्छार्थेष्वेककर्तृकेषु तुम् ।०६ कालसमयवेलाशक्त्यर्थेषु च ।०७ अर्हतौ तृच् ।०८ शकि च कृत्याः । प्रेष्यातिसर्गप्राप्तकालेषु।१० आवश्यकाधमर्णयोर्णिन् ।” तिक्कृती संज्ञायामाशिषि।१२ धातुसंबन्धे प्रत्ययाः।१३ - इति पञ्चमः पादः । चतुर्थेऽध्याये षष्ठः पादः। .. अलं-खल्वोः प्रतिषेधयोः क्त्वा वा । मेङः। एककर्तृकयोः पूर्वकाले। परावरयोगे च। णम् चाभीक्षण्ये द्विश्व पदम्। विभाषाग्रे-प्रथम-पूर्वेषु ।। कर्मण्याक्रोशे कृतः खमिञ् । खादौ च । अन्यथैवंकथमित्थंसु सिद्धाप्रयोगश्चेत् । यथा-तथयोरसूयाप्रतिवचने ।" दृशो णम् साकल्ये।" यावति विन्द-जीवोः। चर्मोदरयोः पूरेः। वर्षप्रमाण ऊलोपश्च वा। Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कातन्त्रव्याकरणसूत्रपाठः। चेलार्थे कोपेः।" निमूल-समूलयोः कषः। शुष्क-चूर्ण-रुक्षेषु पिषः।" जीवे ग्रहः । अकृते कृतः।" समूले हन्तेः। करणे।" हस्तार्थे ग्रहवतिवृताम् । खार्थे पुषः। स्नेहने पिषः। बन्धोऽधिकरणे।" संज्ञायां च।२६ कों व-पुरुषयोनशि-वहिभ्याम् । ऊर्वे शुषि-पूरोः। कर्मणि चोपमाने।" कषादिषु तैरेवानुप्रयोगः। तृतीयायामुपदंशेः।' हिंसार्थाच्चैककर्मकात्। सप्तम्यांच प्रमाणासत्त्योः । उपपीड-रुध-कर्षश्च। अपादाने परीप्सायाम् । द्वितीयायां च । खाङ्गेऽध्रुवे । परिक्लिश्यमाने च । विशि-पति-पदि-स्कन्दां व्याप्यमानासेव्यमानयोः। तृष्य-खोः क्रियान्तरे कालेषु। नाम्न्यादिशिग्रहोः । कृञोऽव्ययेऽयथेष्टाख्याने क्त्वा च। तिर्यच्यपवर्गे। स्वाङ्गे तसि। भुवस्तूष्णीमि च। कर्तरि कृतः।४६ भाव-कर्मणोः कृत्य-क्त-खलाः । आदिकर्मणि क्तः कर्तरि च । गत्यर्थाकमकश्लिष-शीङ्-स्थास-वस-जन-रुह-जीर्यतिभ्यश्च ।४९ दाशगोनौ संप्रदाने । भीमादयोऽपादाने । ताभ्यामन्यत्रोणादयः ।५२ क्तोऽधिकरणे ध्रौव्यगति-प्रत्यवसानार्थेभ्यः । यु-चु-झामनाकान्ताः ।५४ समासे भाविन्यनञः क्त्वो यप् ।५ च-जोः क-गौ धुड-घानुबन्धयोः।५६ न्यक्कादीनां हश्च घः। न कवर्गादिव्रज्यजाम् । घ्यण्यावश्यके ।५९ प्रवचर्चि-रुचि-याचि-त्यजाम् । वचोऽशब्दे। नि-प्राभ्यां युजः शक्ये।६२ भुजोऽन्ने ।६३ भुज-न्युजौ पाणि-रोगयोः । दृग्-दृश-दृक्षेषु समानस्य सः । इदमी। किम् की। अदोऽमूः।“ आ सर्वनाम्नः। विष्वग्देवयोश्चान्त्यस्वरादे-रद्यश्चतौ कौ। सह-सं-तिरसां सध्रि-समि-तिरयः। रुहे| वा। मो नो धातोः। वमोश्च। खरे धातुरनात् । अर्तीणघसैकखरातामिड् वन्सौ । गम-हन-विद-विश-दृशां वा। दाश्वान् साह्वान् मीढ्वांश्च । न युवर्णवृतां कानुबन्धे । घोषवत्त्योश्च कृति । वेषु-सह-लुभ-रुष-रिषां ति। रधादिभ्यश्च । २ स्वरति-सूति-सूयत्यूदनुबन्धात् । उदनुबन्धपूक्लिशां क्त्वि। जु-वश्वोरिट् ।" लुभो विमोहने । क्षुधि-वसोश्च । निष्ठायां च।“ पू-क्लिशोर्वा । न डीश्वीदनुबन्धवेटामपति-निष्कुषोः।" आदनुबन्धाच । भावादिकर्मणो । क्षुभिवाहि-स्वनि-ध्वनि-फणि-कषि-घुषां क्ते नेड् मन्थ-भृशमनस्तमोऽनायासकृच्छ्राविशब्दनेषु। लग्न-म्लिष्ट-विरिब्धाः सत्ताविस्पष्टखरेषु। परिवृढ Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शर्ववर्माचार्यप्रणीतदृढौ प्रभु-बलवतोः। सं-नि-विभ्योऽः। सामीप्येऽभेः। वा रुष्यमत्वरसंघुषाखनाम् । हृषेर्लोमसु । दान्त-शान्त-पूर्ण-दस्त-स्पष्ट-च्छन्नज्ञप्ताश्चेनन्ताः । रानिष्ठातो नोऽपृ-मूर्छि-मदि-ख्या-ध्याभ्यः ।०१ दाद दस्य च ।०२ आतोऽन्तःस्थासंयुक्तात् ।०३ ल्वाद्योदनुबन्धाच ।०४ व्रश्वेः क च।५ क्षेर्दीर्घात् । ६ श्योऽस्पर्श । अनपादानेऽन्चेः।“ अविजिगीषायां दिवः। ही-घ्रा-त्रोन्द-नुद-विन्दा वा। :-शुषि-पचां मकवाः। वा प्रस्त्यो मः।२ निर्वाणोऽवाते ।३ भित्तर्णवित्ताः शकलाधमर्णभोगेषु ।१४ अनुपसर्गात् फुल्ल-क्षीव-कृशोल्लाघाः ।५ अवर्णादूटो वृद्धिः। ६ इति षष्ठः पादः । समाप्तश्चायं चतुर्थोऽध्यायः । ॥ इति चतुर्थ कृप्रकरणं समाप्तम् ॥ ॥ इति कातन्त्रं समाप्तम् ॥ ernational www.jainel Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अं इत्यनुखारः । अः इति विसर्जनीयः । अकर्तरि च कारके संज्ञायाम् । अकारादसंबुद्धौ मुश्च । अकारे लोपम् । अकारो दीर्घं घोषवति । अकृते कृञः । अग्निवच्छसि । अग्रमोऽकारः । अघुट्खरादी सेट्स्यापि वन्सेर्वशब्दस्योत्वम् । अघुट्खरे लोपम् । अघोषवतोश्च । अघोषे प्रथमः । अघोषेष्वशिटां प्रथमः । अच् पचादिभ्यश्च । अजय संगते च । अजे । कातन्त्रसूत्रपाठस्य अकाराद्यनुक्रमेण सूचिः । अत् क च । अत् त्वरादीनां च । अत् पञ्चम्यद्वित्वे । १।१।१९ अथ परस्मैपदानि । १।१।१६ अदसः पदे मः । ४|५|४ अदसश्च । २२७ अदादेर्लुग् विकरणस्य । २|१|१७ अदाबू दाधौ दा । २।१।१४ अदितुदिनुदिक्षुदिखिद्यति विद्यतिविन्दति - विनत्तिछिदिभिदिहदिशदिसदि ४।६।१९ स्कन्दिखिदेर्दात् । अदेर्घस्ल सनद्यतन्योः । अदोऽट् । २।२।४६ अदोऽनने । २।२।३७ अदोऽमुश्च । ११५१८ अदोऽमूः । २।३।६१ अद्यतन्यां च । ३।४।८३ ३२८९ अदू व्यञ्जनेऽनक् । २।३।३५ ४।२।४८ अन उसू सिजभ्यस्तविदादिभ्योऽभुवः | ३ | ४|३१ २२४२ २।१।६५ २ १/५० अड् धात्वादिर्ह्यस्तन्यद्यतनीक्रियातिपत्तिषु । अणि वचेरोदुपधायाः । अग् असुवचिख्यातिलिपिसिचिह्नः । ३।२।२७ अनसि डश्च । अतोऽन्तोऽनुखारोऽनुनासिकान्तस्य । ३ | ३ | ३१ अनि च विकरणे । २।६।३२ अनिडेकखरादातः । ४।२।१९ अनडुहश्च । ३।४।९१ अनतिक्रमयन्विश्लेषयेत् । अनन्तो घुटि । ३।१।१ २/२/४५ २/३/३९ ३।४।९२ ३|१|८ ३।३।३७ अनिदनुबन्धानामगुणेऽनुषङ्गलोपः । २|३|१४ अनुनासिका ङञणनमाः ३/७/२१ ३।४।७९ ३।६।९२ ४।३।७१ २।१।५४ ४।६।६८ ३।८।१६ अनपादानेऽन्चेः । ४।६।१०८ ३।६।९४ अनव्ययविसृष्टस्तु सकारं क-पवर्गयोः । २/५/२९ ४।३।६२ ३/५/३ ३/७/१३ ३।६।१ १।१।१३ १।१।२२ २।२३६ Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कातन्त्रसूत्रपाठस्याकाराद्यनुक्रमेण सूचिः। अनुपदिष्टाश्च । १।३।४ अभ्यासाच्च । ३।६।३० अनुपसर्गात् फुल्लक्षीबकृशोल्लाघाः। ४।६।११५ अमनुष्यकर्तृकेऽपि च । ४।३।५४ अनुषङ्गश्चाक्रुश्चेत् । २।२।३९ अमावस्या वा । ४।२।४५ अनेकाक्षरयोस्त्वसंयोगाद्यवौ। २।२।५९ अमौ चाम् । २।३।८ अन्चेरलोपः पूर्वस्य च दीर्घः । २।२।४९ अभ्-शसोरा । २।२।३४ अन्जेः सिचि। ___३७८ अम्-शसोरादिलॊपम् । २।१।४७ अन्तःस्था यरलवाः । १।१।१४ अयादीनांयवलोपःपदान्ते न वा 'अन्तर्घनोद्घनौ देशात्याधानयोः । ४।५।६० लोपे तु प्रकृतिः । १।२।१६ अन्तस्थो डे!ः। २।६।१९ अयीयें। ३।६।१९ अन्त्वसन्तस्य चाधातोः सौ।। २।२।२० अौं। २।१६६ अन्त्यात्पूर्व उपधा । २।१।११ अति-पिपोश्च । ३।३।२५ अन्यतोऽपि च । ४।३।४९ अर्तिल्धूसूखनिसहिचरिभ्य इत्रन् । ४।४।६३ अन्यत्रापि च । ४।३।९२ अति-सोरणि। ३।६।११ अन्यथैवंकथमित्थंसुसिद्धाप्रयोगश्चेत् । ४।६।९ अर्तिह्रीब्लीरीक्तूयीक्ष्माय्यादन्तानामन्तः अन्यस्माल्लुक् । २।४।३ पो यलोपो गुणश्च नामिनाम् । ३।६।२२ अन्यादेस्तु तुः । २।२।८ अर्तीण्घसैकखरातामिवन्सौ। ४।६।७६ अन्येभ्योऽपि दृश्यन्ते । ४।३।६७ अर्तेर्ऋच्छः ।। ३६७७ अन् विकरणः कर्तरि । ३।२।३२ अर् पूर्वे द्वे सन्ध्यक्षरे च गुणः। ३८।३४ अपरो लोप्योऽन्यवरे यं वा । १।५।९ अर्यः खामि-वैश्ययोः । ४।२।१७ अपश्च । २।२।१९ अर्वन्नर्वन्तिरसावन । २।३।२२ अपात् क्लेशतमसोः । ४।३।५१ अर्हः प्रशंसायाम् । ४|४|१३ अपादाने परीप्सायाम् । ४।६।३५ अर्हतौ तृच् । ४।५।१०८ अपां भेदः । २।३।४३ अर्हश्च । ।४।३।१३ अभिविधौ भाव इनुण् । ४।५।३९ अलं-खल्वोः प्रतिषेधयोः क्त्वा वा। ४।६।१ अभ्यस्तस्य च । ३।४।१५ अलोपे समानस्य ... अभ्यस्तस्य चोपधाया नामिनः , सन्वल्लघुनीनि चण्परे ।। ३।३।३५ खरे गुणिनि सार्वधातुके। ३।५।८ अल्पखरतरं तत्र दूधम् । । २।५।१२ अभ्यस्तादन्तिरनकारः । २।२।२९ अल्पादेर्वा । २।१।३१ अभ्यस्तानामाकारस्य । ३।४।४२ अव-न्योराकोशे । ४।५।२४ अभ्यस्तानामुसि । _३।५।६ अवमसंयोगादनोऽलोपोऽलुप्तवच्च अभ्यासस्यादियञ्जनमवशेष्यम् । ३।३।९ पूर्वविधौ । २।२।५३ अभ्यासस्यासवर्णे । ३।४५६ अवर्ण इवणे ए। १।२।२ च Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३ कातन्त्रसूत्रपाठस्याकाराद्यनुक्रमेण सूचिः। अवर्णस्याकारः। ३।८१८ असूभुवौ च परस्मै । ३।२।२३ अवर्णादूटो वृद्धिः। ४।६।११६ अह्नः सः। २।३।५३ अविजिगीषायां दिवः । ४।६।१०९ आकारस्योसि । ३।६।३७ अये तृस्रोघञ् । ४।५।९८ आकारादट औ । ३।५।४.१ अवे हृसोः । ४।२।५७ आकारो महतः कार्यस्तुल्याधिकरणे अव्ययसर्वनाम्नः स्वरादन्त्यात् पदे । २।५।२१ पूर्वोऽक् कः। २।२।६४ आख्याताच्च तमादयः । २।६।४० अव्ययाच्च । २।४।४ आगम उदनुबन्धः खरादन्त्यात्परः। २।११६ अव्ययीभावादकारान्ताद् आडि ताच्छील्ये। ४।३।१२ विभक्तीनाममपञ्चम्याः। २।४।१ आङि युद्धे । ४॥५॥५५ अश्नोतेश्च । ३।३।२१ आङि रु-प्लुवोः । ४१५/३२ अष्टनः सर्वासु। २।३।२० आङो यि । ४।१।२६ असन्ध्यक्षरयोरस्य तौ सल्लोपश्च । ३।६।४० आ च न संबुद्धौ । २।११७० असूर्योग्रयोदशः। ४।३।३४ आतश्चोपसर्गे । ४।५।८४ अस्तेः । ३३५/३६ आते आथे इति च । ३।६।६३ अस्तेः । ३।८।१९ आतोऽनुपसर्गात् कः । ४॥३॥४. अस्तेः सो। ३।६।३९ आतोऽन्तःस्थासंयुक्तात् । ४।६।१०३ अस्तेरादेः। ३।४।४१ आतो मन्क्वनिब्वनिविचः । ४३३६६ अस्तेर्दिस्योः । ३।६।८९ आत्खनोरिच्च । ४।२।१२ अस्तेर्भूरसार्वधातुके। ३।४।८७ आत्मने चानकारात् । ३॥५॥३९ अस्थिदधिसक्थ्यक्ष्णामन्नन्तष्टादौ। २।२।१३ आत्मनेपदानि भाव-कर्मणोः। ३।२।४० अस्मद्युत्तमः । ३।१७ आत्मोदरकुक्षिषु भृञः खिः ।। ४।३।२९ अस्य च दीर्घः । ३।६।८ आत्वं व्यञ्जनादौ । २।३।१८ अस्य च लोपः। ३।६।४९ आदनुबन्धाच्च । ४।६।९१ अस्यतेः स्थोऽन्तः । ३।६।९५ आदातामाथामादेरिः। ३६.६२ अस्य व-मोर्दीधः । ३।८।११ आदिकर्मणि क्तः कर्तरि च ।। ४।६।४८ अस्यादेः सर्वत्र । ३।३।१८ आइवर्णोपधालोपिनां किट्टै च । ४।४।५३ अस्यैकव्यञ्जनमध्येऽनादेशादेः आभ्यो य्वदरिद्रातः । ४।५।१०४ .. परोक्षायाम् । ३।४।५१ आ धातोरघुटखरे । २।२।५५ अस्योकारः सार्वधातुकेऽगुणे। ३।४।३९ आन व्यञ्जनान्ताद्धौ । ३।२।३९ अस्योपधाया दी| आनोऽत्रात्मने । ४।४।५ वृद्धिर्नामिनामिनिचट्सु । ३।६।५ आन्मोऽन्त आने। ४१४७ Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०६५ ३।८।३५ परस्मै । कातन्त्रसूत्रपाठस्याकाराद्यनुक्रमेण सूचिः । आपितपितिपिस्खपिवपिशपिछुपि- ___ इजात्मने पदेः प्रथमैकवचने। ३।२।२९ क्षिपिलिपिलुपिसृपेः पात् ।। ३७२४ इजहातेः क्तिव । ४।१।७५ आप्नोतेरीः । ३।३।४० इटश्चेटि। ३।६५३ आभोभ्यामेवमेव खरे। १।५।१० इटि च । ३४२८ आमः कृअनुप्रयुज्यते। ३।२।२२ इटो दी| ग्रहेरपरोक्षायाम् । ३।७।१२ आमन्त्रणे च । २।४।१८ इडागमोऽसार्वधातुकस्यादि~आमन्त्रिते सिः संबुद्धिः। २।१।५ अनादेरयकारादेः । ३१७१ आमि च नुः। २।१।७२ इणतः। आमि विदेरेव । ३।५।२६ इणश्च । ३।४।५९ आम् शस्। २।३।९ इणो गा। ३।४।८४ आयिरिच्यादन्तानाम् । ३।६।२० इणोऽनुपसृष्टस्य । ३।४७१ आय्यन्ताच्च । ३।२।४४ इणस्थादापिबतिभूभ्यः सिचः आरुत्तरे च वृद्धिः । ३।४।९३ आलोपोऽसार्वधातुके। ३।४।२७ इतो लोपोऽभ्यासस्य । ३।३।३८ आवश्यकाधमर्णयोर्णिन् । ४।५।१११ इदमियमयं पुंसि । २।३।३४ आशिषि च परस्मै । ३।५।२२ इदमी। ४।६।६६ आशिष्यकः। ४।२।६५ इदमो_धुनादानीम् । २।६।३५ आशिष्येकारः। ३।४।३० इदमो । २।६।३० आशीः। ३।१।३१ इदंकिंभ्यां थमुः कार्यः । २।६।३९ आ श्रद्धा। २।१।८ आ सर्वनाम्नः। ४।६।६९ इन टा। २।१।२३ आसुयुवपिरपिलपित्रपिदभिचमां च । ४।२।३६ इनि लिङ्गस्यानेकाक्षरस्यान्त्यआ सौ सिलोपश्च । २।१।६४ खरादेर्लोपः। ३।२।१२ इः स्तम्बशकृतोः। ४।३।२५ इन् कारितं धात्वर्थे । ३।२।९ इकारो दरिद्रातेः। ३।४।४५ इन्ञयजादेरुभयम् । ३।२।४५ इङः परोक्षायाम् । ३।४।८५ इन्यसमानलोपोपधाया हखश्चणि। ३।५।४४ इङाभ्यां च । ४।५।६ इन् हन् पूषार्यम्णां शौ च ।। २।२।२१ इधारिभ्यां शन्तृड्कृच्छ्रे । ४।४।१० इरन्यगुणे। ३।४।७३ इचस्तलोपः। ३।४।३२ इरोरीरूरौ। २।३१५२ इचि वा। ३।४।६६ इरेदुरोज्जसि। २।१।५५ इच्छा । ४।५।७९ इवन्तर्धभ्रस्जदन्भुश्रियूMभरज्ञपिइच्छार्थेष्वेककर्तृकेषु तुम् । ४।५।१०६ सनितनिपतिदरिद्रां वा। ३/७३३ २।१।१० इदुदग्निः। Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इवर्णादश्चिश्रिडीङ्गीङः । इवर्णावयोर्लोपः खरे प्रत्यये २|६|४४ ये च । इवर्णो यमसवर्णे न च परो लोप्यः । ११२१८ इसुदोषां घोषवति रः । इकारान्तात्सिः । ईकारे स्त्रीकृतेऽलोप्यः । ईयो । ईड्जनोः सध्वे च । ई तस्यासः । ईदूतोरिव खरे । ईदूत्याख्यौ नदी । ईप्सितं च रक्षार्थानाम् । तुहि । ईशः से 1 ईषदुः सुषु कृच्छ्राकृच्छ्रार्येषु खल् । ईषिश्रन्थ्यासिवन्दिविदि कारितान्तेभ्यो युः । कारलोपो वो । उकाराच्च । उणादयो भूतेऽपि । उतोऽयुरुणुस्नुक्षुक्ष्नुवः । उतो वृद्धिर्व्यञ्जनादौ गुणिनि सार्वधातुके । उत्वं मात् । उदङ् उदीचिः । sa | कातन्त्र सूत्रपाठस्याकाराद्यनुक्रमेण सूचिः । ३/७/१४ उपपीडरुधकर्षश्च । उपमानादाचारे । उपमाने वतिः । उदनुबन्धपूक्लिशां क्तित्व । उदि श्रपुवोः । उन्देर्मनि । उन्नयोर्गिरः । ४ २३५९ भात् खलघञोः । २|१|४८ उपसर्गे त्यांतो डः । २|४|५१ उपसर्गे दः किः । २२५६ २१११९ २४१९ उपसर्गादसुदुर्भ्यां लभेः प्रागू २/२/५४ उपसर्गेऽदेः । ३७/५ उपसर्गे रुवः । ४ । ४ । ६ २।६।१० ३।७४ ३।४।३६ ३ | ४ | ३५ ४|४|६७ ३।७।१५ ४।१।२५ ४/२/५२ ४/५/७० ४|५|४२ ४/५/७ ४।२।१८ ४/५/६५ ४।१।२७ ३|४|४४ १/५/७ ४।३।४६ ३/५/४३ २।६।४६ वर्णस्य जांन्तः स्थापवर्गपरस्यावर्णे । ३।३।२७ ४।२।३७ उपसयी काल्या प्रजने । उपात् क आश्रये । उपात् प्रशंसायाम् । उभयेषामीकारो व्यञ्जनादावदः । उमकारयोर्मध्ये । उरोविहायसोरुरविहौ च । उरोष्ठ्योपधस्य च । ४/५/१०२ उवर्णस्त्वोत्वमापाद्यः । २५ ४।६।३४ ३।२।७ २।६।१२ ४/५/८५ उवर्णादावश्यके । उवर्णान्ताच्च । ३/७/३२ उवर्णे ओ । १।२।३ उशनः पुरुदंशोऽनेहसां सावनन्तः । २।२।२२ उषविदजागृभ्यो वा । ३।२।२० ऊर्णोतेर्गुणः । ३।६।८४ ऊर्ध्वे श्रुषिपुरोः । २।३।४१ ऊष्माणः शषसहाः । २२५१ ऋकारे च । ४/५/१०० ऋच्छ ऋतः । ४।६।८४ ऋत इदन्तश्चिचेक्रीयितयिन् ४|५|२२ आयिषु । ४|१|६३ ऋतश्च संयोगादेः । ४।५।१९ ऋतोऽवृवृञः ३।६।८५ ४।६।२८ १।१।१५ ३।३।२० ३।६।२७ ३।४।७२ ३।६।१५ ३।७११६ Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कातन्त्रसूत्रपाठस्याकाराद्यनुक्रमेण सूचिः । ऋत्विग्दधृक्स्रदिगुष्णिहश्च । ४।३।७३ ओदौद्भ्यां कृद्यः स्वरवत् । ४।१।३१ ऋदन्तस्यैरगुणे। ३।५।४२ ओसि च । २।१।२० ऋदन्तात्सपूर्वः । २।१।६३ औ आव् । १।२।१५ ऋदन्तानां च । ३।५।११ औकारः पूर्वम् । २।११५१ ऋदन्तानां च । ३।६।१६ औतश्च । ३।४।६९ ऋदुपधाच्चाक्लपित्रुतेः । ४।२।२४ औ तस्माजमशसोः । २।३।२१ ऋमतो रीः। ३।३।३४ औरीम् । २।२।९ ऋवर्णव्यञ्जनान्ताद् ध्यण् । ४।२।३५ औरीम् । २।१।४१ ऋवर्णस्याकारः। ३।३।१६ औ सौ। २।२।२६ ऋवर्ण अर् । १२।४ क इति जिह्वामूलीयः ।। १।१।१७ ऋषिदेवतयोः कर्तरि । ४।४।६५ कखयोर्जिह्वामूलीयं न वा । १।५।४ ए अय् । १।२।१२ कतिपयात्कतेः। २।६।२० एककर्तृकयोः पूर्वकाले। ४।६।३ कतेश्च जस्शसोर्लक् । २।१७६ एकारादीनि सन्ध्यक्षराणि । १।१८ करणाधिकरणयोश्च । ४।५।९५ एकारे ऐ ऐकारे च। १।२।६ करणे। ४।६।२१ एजः खशू । ४।३।३० करणेऽतीते यजः । ४।३।८१ एतस्य चान्वादेशे द्वितीयायां करणेऽयोविद्रुषु । ४/५/६१ चैनः। २।३।३७ करोतेः । ३।५।४ एतेर्थे । ३।८।२० करोतेः प्रतियत्ने । २।४।३९ एत्वमस्थानिनि । २।३।१७ करोतेर्नित्यम् । ३।४।३७ एदोत्परः पदान्ते लोपमकारः । १।२।१७ कर्तरि कृतः । ४१६४६ एद् बहुत्वे त्वी। २।३।४२ कर्तरि च। २।४।३३ एयेऽकवास्तु लुप्यते । २।६।४७ कर्तरि रुचादिङानुबन्धेभ्यः । ३।२।४२ एवमेवाद्यतनी। ३।१।२८ कर्तर्युपमाने। ४।३।७७ एषसपरो व्यञ्जने लोप्यः।। १।५।१५ कर्तुरायिः सलोपश्च । ३।२।८ एषां विभक्तावन्तलोपः। २।३।६ कर्तृकर्मणोः कृति नित्यम् । । २।४।४१ ऐ आय् । १।२।१३ कर्तृकर्मणोश्च भूकृञोः। ४।५।१०३ ओ अन् । १।२।१४ कत्रों वपुरुषयोनशिवहिभ्याम् । ४।६।२७ ओकारे औ औकारे च । १।२७ कर्मणि चाण् । ४।४।७१ ओतो यिन् आयी खरवत् । ३।४।६८ कर्मणि चोपमाने । ४।६।२० ओदन्ता अ इ उ आ निपाताः कर्मणि धेटः ष्ट्रन् । ४।४।६९ खरे प्रकृत्या । .१।३।१ कर्मणि हनः कुत्सायाम् । ४।३।८२ तापश्चा Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कातन्त्रसूत्रपाठस्याकाराधनुक्रमेण सूचिः। कर्मण्यण् । ४।३।१ कूल उद्रुजोद्वहोः। ४।३।३७ कर्मण्यधिकरणे च । ४।५/७१ कृञः श च । ४/५/७७ कर्मण्याक्रोशे कृञः खमिञ् । ४।६।७ कृञः सुपुण्यपापकर्ममन्त्रपदेषु । ४।३।८४ कर्मण्युपमाने त्यदादौ कृञश्च । ४।३।९० दृशष्टक्सको च। ४।३।७५ कृशोऽव्ययेऽयथेष्टाख्याने क्त्वा च । ४।६।४२ कर्मधारयसंज्ञे तु पुंवद्भावो विधीयते । २।५।२० कृशोऽसुट । ३७३७ कर्मप्रवचनीयैश्च । २।४।२३ कृञो हेतुताच्छील्यानुलोम्येष्वशब्दश्लोककर्मवत् कर्मकर्ता। ३।२।४१ कलहगाथावैरचाटुसूत्रमन्त्रपदेषु। ४।३।२२ कर्मव्यतीहारे णच् स्त्रियाम् । ४।५।४० कृत् । ४।२७ कवर्गस्य चवर्गः। ३।३।१३ कृत्ययुटोऽन्यत्रापि च । ४।५।९२ कषादिषु तैरेवानुप्रयोगः। ४।६।३० कृपे रो लः । ३।६।९७ कसिपिसिभासीशस्थाप्रमदां च । ४।४।४७ कृवृषिमृजां वा । ४।२।२९ का त्वीषदर्थेऽक्षे । २।५।२५ कृष्टपच्यकुप्ये संज्ञायाम् । ४।२।३४ कादीनि व्यञ्जनानि । १।११९ के प्रत्यये स्त्रीकृताकारपरे काम्य च। ३।२।६ पूर्वोऽकार इकारम् । २।२।६५ कारयति यः स हेतुश्च । २।४।१५ के यण्वच्च योक्तवर्जम् । ४।१७ कारितस्यानामिड्विकरणे। ३।६।४४ कोः कत् । २।५।२४ कारिते च संश्चणोः । ३।४।१३ तक्तवन्तू निष्ठा । ४।१८४ कार्याववावावादेशावौकारौकारयोरपि। २।६।४८ क्तोऽधिकरणे ध्रौव्यगतिप्रत्यकालभावयोः सप्तमी । २।४।३४ वसानार्थेभ्यः । ४।६।५३ कालसमयवेलाशक्त्यर्थेषु च । ४।५।१०७ क्रमः परस्मै । ३।६।६८ काले । ३।१।१० ऋव्ये च । ४।३।७२ काले किंसर्वयदेकान्येभ्य एव दा । २।६।३४ क्रियाभावो धातुः । ३।१।९ किमः । २।६।३१ क्रियासमभिहारे सर्वकालेषु किम् कः। २।३।३० मध्यमैकवचनं पञ्चम्याः ।। ३।१२१ किम् की। ४।६।६७ क्रीजस्तदर्थे । ४।१।३३ किरो धान्ये। ४।५।२० क्रुधिमण्डिचलिशब्दार्थेभ्यो युः । ४।४।३० कीर्तीषोः क्तिश्च । ४।५।८६ नयादीनां विकरणस्य । ३।४।४३ कुञ्जादेरायनण् स्मृतः। २।६।३ कणो वीणायां च । ४।५।४९ कुत्सितेऽङ्गे। २।४।३१ कन्सुकानौ परोक्षावच्च । ४।४।१ कुटादेरनिनिचट्सु। ३।५।२७ किप् च । ४।३।६८ कुमारशीर्षयोणिन् । ४।३।५२ क्विब् ब्रह्मभ्रूणवृत्रेषु । ४।३।८३ Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३।४।२ कातन्त्रसूत्रपाठस्याकाराद्यनुक्रमेण सूचिः। किब् भ्राजिऋधुवीभासाम् । ४।४।५७ गुप्तिकिझ्यः सन् । ३।२।२ क्षिपरटवदवादिदेविभ्यो वुण् च। ४।४।२७ गुरोश्च निष्ठासेटः । ४।५।८१ क्षुधिवसोश्च । ४।६।८७ गेहे त्वक् । ४।२।६० क्षुभिवाहिस्वनिध्वनिफणिकषिघुषां क्ते गोचरसंचरवव्रजव्यजक्रमापण. नेड् मन्थभृशमनस्तमोऽनायास निगमाश्च । ४/५/९७ ___ कृच्छ्राविशब्दनेषु । ४।६।९३ गोरौ धुटि। २।२।३३ क्षुश्रुभ्यां वौ। ४।५।११ गोश्च । २।१।५९ क्षेमप्रियमद्रेष्वण च। ४।३।४२ गोहेरूदुपधायाः। ३।४।६३ क्षेर्दीवः । ४।१।४० ग्रहगुहोः सनि । ३।७३१ क्षेर्दीधीत् । ४।६।१०६ ग्रहश्च । ४१५/२३ श्रुषिपचां मकवाः। ४।६।१११ ग्रहादेगिन् । ४।२।५० खश्चात्मने । ४।३।८० ग्रहिज्यावयिव्यधिवष्टिव्यचिपच्छिगत्यर्थकर्मणि द्वितीयाचतुर्थ्यो वश्चिभ्रस्जीनामगुणे। चेष्टायामनध्वनि । २१४।२४ प्रहिखपिप्रच्छां सनि । ३।४।९ गत्यर्थाकर्मकश्लिषशीस्थासवसजन आहेर्वा । ४।२।५९ रुहजीर्यतिभ्यश्च । ४।६।४९ ग्रहोऽपिप्रतिभ्यां वा । ४।२।२६ गमश्च । ४।५।५२ गमस्त च । ४।४।४९ ग्लाम्लास्थाक्षिपचिपरिमृजां स्नुः। ४।४।१९ गमहनजनखनघसामुपधायाः घालोबलः। ४|११८३ _स्वरादावनण्यगुणे। ३।६।४३ घजीन्धेः । ४।१६४ गमहनविदविशदृशां वा। ४।६।७७ घडधमेभ्यस्तथो?ऽधः । ३८/३ गमिष्यमां छः। ३।६।६९ घुटि च । २।१।६७ गर्गयस्कविदादीनां च । २।४।६ घुटि चासंबुद्धौ । २।२।१७ गष्टक् । ४।३।९ घुटि त्वै। २।२।२४ गस्थकः । ४।२।६२ घोषवति लोपम् । १।५।११ गिरतेश्चक्रीयिते। ३।६।९८ घोषवत्स्वरपरः । ११५.१३ गिलेऽगिलस्य । ४।१।२४ घोषवत्त्योश्च कृति । ४।६।८० गुणश्चक्रीयिते । ३।३।२८ घोषवन्तोऽन्ये । १।१।१२ गुणी क्त्वा सेड् अरुदादिक्षुधकुश- ध्यण्यावश्यके । ४१६५९ ___ क्लिशगुधमृडमृदवदवसग्रहाम् । ४।१।९ घ्राध्मोरी । ३।४।७७ गुणोऽतिसंयोगायोः । ३।४।७५ घो जिघ्र । ३।६।७१ गुपूधूपविच्छिपणिपनेराय । ३।२।१५ ङणना हखोपधाः स्वरे द्विः।। १।४७ ४।३।४५ ग्लहोऽक्षेषु । Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४।३।८६ डेयः। कातन्त्रसूत्रपाठस्याकाराद्यनुक्रमेण सूचिः। ङवन्ति यै यासू यास् याम् । २।१।४२ चेक्रीयितान्तात् । ३।२।४३ ङसिङसोरलोपश्च । २।१।५८ चेक्रेयितान्तानां यजिजपिदंशिवदाम्। ४।४।४४ ङसिङसोरुमः। २।१।६२ चेक्रीयिते च । ३।४।७६ ङसिरात् । २।१।२१ चेरग्नौ । ङसिः स्मात् । २।१।२६ चेलार्थे क्नोपेः ।। ४।६।१५ ङसू स्य । २।१।२२ चेस्तु हस्तादाने। ४।५।३४ डिरौ सपूर्वः । २।१।६० छशोश्च । ३।६।६० ङि: स्मिन् । २।१।२७ छन्दोनाम्नि च । ४।५।१४ २।१।५७ छादेर्धेस्मन्त्रक्किप्सु । ४।१।१९ डे न गुणः । ४।१।६ छिदिभिदिविदां कुरः । ४१४१४२ २।१।२४ छोः श्रूटौ पञ्चमे च । ४।१।५६ बनिपू सुयजोः । ४।३।९४ जक्षादिश्च । ३।३।६ चं शे। ११४६ जझाशकारेषु अकारम् । १।४।१२ चकासकासप्रत्ययान्तेभ्य आं जनिबध्योश्च । ३।४।६७ परोक्षायाम् । ३।२।१७ जपादीनां च । ३।३।३२ चक्षिङः ख्याञ् । ३।४।८९ जरा जरस् खरे वा । २।३।२४ चजोः कगौ धुड्-धानुबन्धयोः। ४।६।५६ जसि । २।१।१५ चण् परोक्षाचेक्रीयितसनन्तेषु । ३।३१७ जसशसोः शिः । २।२।१० चतुरः। २।१७४ जस्शसौ नपुंसके। २।१।४ चतुरो वाशब्दस्योत्वम् । २।२।४१ जस् सर्वं इः। २।१।३० चरफलोरुच्च परस्यास्य । ३।३।३३ जागर्तेः कारिते। ३।६।१२ चरफलोरुदस्य। ४।१७९ जागुः कृत्यशन्तृङव्योः । ४।१।८ चरेराङि चागुरौ । ४।२।१४ जागुरूकः । ४।४।४३ चरेष्टः । ४।३।१९ जाजनेर्विकरणे । ३।६।८१ चर्मोदरयोः पूरः । ४।६।१३ जान्तनशामनिटाम् । ४।१।१४ चवर्गदृगादीनां च । २।३।४८ जालमानायः । ४।५।१०१ चवर्गस्य किरसवर्णे । ३।६।५५ जिक्ष्योः शक्ये । ४।१।३२ चादियोगे च । २।३।५ जिघ्रतेर्वा । ३।५।४८ चायः किश्चक्रीयिते। ३।४।१० जिभुवोः स्वक् । ४।४।१८ चित्याग्निचित्ये च । ४।२।४४ जीण्दृक्षिविश्रिपरिभूवमाचुरादेश्च । ३।२।११ भ्यमाव्यथां च । ४|४|३७ चेः कि वा। ३।६।३२ जीर्यतेरन्तृन् । ४।३।९५ Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० जीवे ग्रहः । जुम्यदं द्रम्य सृगृधिज्वलश्रुच लषपतपदाम् । जुहोतेः सार्वधातुके । जुहोत्यादीनां सार्वधातुके । जृव्रश्वोरिट् । जेर्गिः सन्परोक्षयोः । ज्ञश्व । टग् लक्षणे जायापत्योः । टठयोः ः षकारम् । ३।६।८२ ज्यनुबन्धमतिबुद्धिपूजार्थेभ्यः क्तः । ४ । ४ । ६६ ४ | ३ |५३ ११४/९ २।११५३ १/५/२ टाना । टे ठेवा षम् । टौसोरन । टाँसोरे । ट्वनुबन्धादथुः । डढणपरस्तु णकारम् । डानुबन्धेऽन्त्यखरादेर्लोपः । डोsसंज्ञायामपि । ड्वनुबन्धात् त्रिमक् तेन निर्वृत्ते । ढे लोपो दीर्घश्चोपधायाः । कातन्त्र सूत्रपाठस्याकाराद्यनुक्रमेण सूचिः । ४/६/१८ तत्स्था लोप्या विभक्तयः । तयोः सकारम् । २५२ १|४|१० तथा द्विगोः । २/५/१७ तथोश्च दधातेः । ३।६।१०२ २।६।१५ तदस्यास्तीति मन्त्वन्त्वन् । तदाधाद्यन्तानन्तकार बहुबाह्रहर्दिवावि भानिशाप्र भाभाश्चित्रकर्तृनान्दीकिंलिपिलिविबलिभक्ति क्षेत्रजङ्घाधनुररुः संख्यासु च । ४।३।२३ ४/१/५२ ३।२।३७ णम् चाभीक्ष्ये द्विश्च पदम् । णो नः । गर्गादेः । ण्युट् । तत् प्राङ् नाम चेत् । तत्पुरुषावुभौ । तत्र चतुर्दशादौ खराः । तत्रेदमिः । तत्वौ भावे | ४ । ४ । ३२ ३।४।६१ ३|३|८ ४।६।८५ ३।६।३१ तद् दीर्घमन्त्यम् । तनादेरुः । २|६|४२ ४ | ३ | ४७ तत्र मम ङसि । तवर्गश्चवर्गयोगे चटवर्गौ । तवर्गस्य टवीट् टवर्गः । तव्यानीयौ । २/६/२ तासां स्वसंज्ञाभिः कालविशेषः । ४/२/६३ तच्छीलतद्धर्मतत्साधुकारिष्वा केः । ४|४|१४ ततो यातेर्वरः । ४|४|४६ २।३।३६ २।१।३८ तस्मात्परा विभक्तयः । २१२ ४/५/६७ तस्माद् भिस् भिर् । २।३।३८ १।४।१४ तस्मान्नागमः परादिरन्तश्चेत्संयोगः । ३।३।१९ २।३।३३ ४।२1४ तस्य च । तस्य तेन समासः । ४|५|६८ तस्य लुगचि । ३८६ तहोः कुः । ४/६/५ तादर्थ्ये | ३।८।२५ ताभ्यामन्यत्रोणादयः । तिक्कृतौ संज्ञायामाशिषि । तिर्यङ् तिरश्चिः । तिर्यच्यपवर्गे । ४।२।३ तिष्ठतेरित् । २/५/७ तुदादिभ्य ईकारे । ११/२ तुदादेरनि । रा६२५ तुन्दशोकयोः परिमृजापनुदोः । २\६/१३ तुम्यं मह्यं ङयि । २।३।१३ २|४|४६ ३/८/५ ४/२/९ 818184 २।६।३३ २।४।२७ ४/६/५२ ३।१।१६ ४/५/११२ २/२/५० ४/६/४३ ३/५/४७ २।२।३१ ३/५/२५ ४/३/६ २|३|१३ Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४ा कातन्त्रसूत्रपाठस्याकाराद्यनुक्रमेण सूचिः। ३१ तुमर्थाच्च भाववाचिनः। ।४।२८ त्रेस्तु च । २।६।१८ तृतीयादीनां वा । ४।२।६ त्रेस्त्रयश्च । २।१।७३ तृतीयादेर्घढधभान्तस्य धातोरादि त्वन्मदोरेकत्वे ते मे त्वा मा तु चतुर्थत्वं सध्वोः । ३।६।१०० द्वितीयायाम् । २।३।३ तृतीयादौ तु परादिः । २।११७ त्वमहं सौ साविभक्त्योः । २।३।१० तृतीयायामुपदंशेः। ४।६।३१ थफान्तानां चानुषङ्गिणाम् ।। ४।१।१३ तृतीयासमासे च। २।१।३४ थलि च सेटि । ३।४।५२ तृतीया सहयोगे। २।४।२९ थल्यूकारात् । ३१७/३६ तृन् । ४।४।१५ दद् दोऽधः। ४|११८० तृषिमृषिकृशिवञ्चिलुञ्चयतां च ।। ४।१।१२ दधातेर्हिः। ४।११७८ तृषिधृषिखपां नजिङ् । ४।४।५४ दन्भेरिच्च । ३।३।४१ तृष्यस्खोः क्रियान्तरे कालेषु । ४।६।४० दन्शिसन्जिखन्जिरन्जीनामनि ।। ३।६।४ तृहेरिडू विकरणात् । . ३।६।८७ दययासश्च । ३।२।१८ तृफलभजत्रपश्रन्थिग्रन्थिदन्भीनां च। ३।४।५३ दयिपतिगृहिस्पृहिश्रद्धातन्द्रानिद्राभ्य ते कृत्याः । ४।२।४६ आलुः। ४।४।३८ ते थे वा सम् । १।५।३ दरिद्रातेरसार्वधातुके । ३।६।३४ ते धातवः । ३।२।१६ दश समानाः । १।१।३ तेन दीव्यति संसृष्टं तरतीकण दहिदिहिदुहिमिहिसिहिरुहिलिहिचरत्यपि । पण्याच्छिल्पान्नि लुहिनहिवहेर्वात् । ३७३० योगाच्च क्रीतादेरायुधादपि । २।६।८ दाणो यच्छः । ३।६।७५ तेभ्य एव हकारः पूर्वचतुर्थं न वा । १।४।४ दादानीमौ तदः स्मृतौ । २।६।३६ ते वर्गाः पञ्च पञ्च पञ्च । १।१।१० दादेर्घः । ३१६५७ तेविंशतेरपि । .. २।६।४३ दादेहस्य गः। २।३।४७ तेषां द्वौ द्वावन्योन्यस्य सवर्णौ । १।१।४ दाद् दस्य च । ४।६।१०२ तेषां परमुभयप्राप्तौ। २।४।१६ दान्तशान्तपूर्णदस्तस्पष्टच्छन्नतेषु त्वेतदकारताम् । २।६।२७ ज्ञप्ताश्चेनन्ताः । ४।६।१०० तौरं खरे । २।३।२६ दामागायतिपिबतिस्थास्यतिजहात्यदादीनामविभक्तौ। २।३।२९ तीनामीकारो व्यञ्जनादौ । ३।४।२९ त्र सप्तम्याः । २।६।२९ दाशगोप्नौ संप्रदाने। ४।६।५० त्रसिगृधिधृषिक्षिपां नुः। ४।४।२० दाश्वान् साह्वान् मीढ्वांश्च । ४।६।७८ त्रिचतुरोः स्त्रियां तिसृ चतसृ विभक्तौ।२।३।२५ दात्योरेऽभ्यासलोपश्च । ३।४।५० त्रीणि त्रीणि प्रथममध्यमोत्तमाः। ३।११३ दिगितरर्तेऽन्यैश्च । २।४।२१ Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४।४।११ कातन्त्रसूत्रपाठस्याकाराद्यनुक्रमेण सूचिः । दिगि दयतेः परोक्षायाम् ।। ३।३।४२ द्वन्द्वैकत्वम् । २।५।१६ दिव उद् व्यञ्जने। २।२।२५ द्वयमभ्यस्तम् । ३।३।५ दिवादेर्यन् । ३।२।३३ द्वितीयचतुर्थयोः प्रथमतृतीयौ । ३।३।११ दिशां वा । २।१।३६ द्वितीयातृतीयाभ्यां वा । । २।११४४ दिहिलिहिश्लिषिश्चसिव्यध्यतीण द्वितीयायां च । ४।६।३६ ... श्यातां च । ४।२।५८ द्वितीयैनेन । २।४।२२ दीडोऽन्तो यकारः स्वरादावगुणे। ३।४।२६ द्वित्वबहुत्वयोश्च परस्मै । ३१५/१९ दीर्घ इणः परोक्षायामगुणे। ३।३।१७ द्विर्भावं वरपरश्छकारः । १॥५॥१८ दीर्घमामि सनौ। २।२।१५ द्विर्वचनमनभ्यासस्यैकवरस्याद्यस्य । ३।३।१ दीर्घस्योपपदस्यानव्ययस्य खानुबन्धे । ४।१।२० द्विवचनमनौ । १।३।२ दीर्घोऽनागमस्य । ३।३।२९ द्विषः शत्रौ । दी| लघोः । ३।३।३६ द्विघिपुष्यतिकृषिश्लिष्यतिविपिपिषि. दीधीवेव्योरिवर्णयकारयोः। ३।६।४१ विषिशिषिश्रुषितुषिदुषेः षात् । ३।७।२८ दीधीवेव्योश्च । ३।५।१५ द्वेस्तीयः । २।६।१७ दीपिकम्प्यजसिहिंसिकमिस्मिनमा रः। ४।४।५० धनुर्दण्डत्सरुलाङ्गलाङ्कुशयष्टितोमरेषु दुषेः कारिते। ३।४।६४ हेर्वा । ४।३३१५ दुहः को घश्च। ४।३।६३ धातुविभक्तिवर्जमर्थवल्लिङ्गम् । २।१।१ दृग्दृशदृक्षेषु समानस्य सः। ४।६।६५ धातुसंबन्धे प्रत्ययाः । ४।५।११३ दृशेः कनिम् । ४।३।८८ धातोः । ४।२।१ दृशेः पश्यः । ३।६।७६ धातोर्यशब्दश्चेक्रीयितां दृशो णम् साकल्ये । ४।६।११ क्रियासमभिहारे । ३।२।१४ देववातयोरापेः । ४।३।२८ धातोर्वा तुमन्तादिच्छतिनैककर्तृकात् । ३।२।४ देविक्रुशोश्चोपसर्गे । ४।४।२९ धातोश्च हेतौ ।। ३।२।१० दोऽद्वेर्मः । २।३।३१ धातोस्तृशब्दस्यार् । २।११६८ द्यतिस्यतिमास्था त्यगुणे। ४।११७६ धातोस्तोऽन्तः पानुबन्थे । ४।१।३० द्यादीनि क्रियातिपत्तिः ।। ३।१।३३ धात्वादेः षः सः । ३।८।२४ द्युतिगमोर्दै च । ४।४।५८ धुटश्च धुटि । ३।६।५१ धुतिखाप्योरभ्यासस्य । ३।४।१६ धुटां तृतीयः । २।३।६० द्रवघनस्पर्शयोः श्यः । ४।१।४६ धुटां तृतीयश्चतुर्थेषु । ३२८१८ द्वन्द्वः समुच्चयो नाम्नोर्बहूनां धुटि खनिसनिजनाम् । ४।१।७१ वापि यो भवेत् । २।५।११ धुटि बहुत्वे वे । २।१।१९ द्वन्द्वस्थाच्च । २।१।३२ धुटि हन्तेः सार्वधातुके । ३१४१४७ Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मो धमः । व्याप्योः । न कवर्गादि व्रज्यजाम् । नकवी | धुस्वराद् घुटि नुः । धुड् व्यञ्जनमनन्तःस्थानुनासिकम् । २।१।१३ न वेज्योर्यपि । धूयप्रीणात्योर्नः । धृञः प्रहरणे चादण्डसूत्रयोः । धेड्दृशिपाघ्राध्मः शः । नद्या ऐ आस् आस् आम् । न नबदराः संयोगादयोऽये । नाम दीर्घम् । निष्ठादिषु । कातन्त्रसूत्रपाठस्याकाराद्यनुक्रमेण सूचिः । नग्नपलितप्रियान्धस्थूलसुभगाढ्येष्व बुद्ध । भूततद्भावे कृञः ख्युट् करणे । ४ | ३ |५७ न संयोगान्तावलुप्तवच्च पूर्वविधौ । नञ्यन्याक्रोशे । ४/५/९१ न सखिष्टादावग्निः । न डीश्वीदनुबन्धवेटामपतिनिष्कुषोः । ४ । ६ । ९० ३/५/७ न णकारानुबन्धचेक्रीयितयोः । न सेटोऽमन्तस्यावमिकमिचमाम् । नस्तु कचित् । ४।१।६२ नस्य तत्पुरुषे लोप्यः । ति दीर्घश्च । नदाद्यन्चिवाह्वयन्स्यन्तृसखिनान्तेभ्य ई । नहेर्धः । नन्द्यादेर्युः । न पादादौ । चतुर्थी । न मामास्मयोगे । ३३ १।५।१६ ४|१|४९ ११२।१८ ३।४।२१ ३।६।२ ३|४|५४ ३/५/४५ ४।६।७९ ३।४।१७ २/३/५७ २।३।५८ २।२1१ ४|१|३ २|६|४५ २/५/२२. ३।६।५८ २/४/५० ना यादेः । ३।२।३८ २।१।४५ नाडीकरमुष्टिपाणिनासिकासु ध्मश्च | ४ | ३ | ३२ ३।३।३ नान्तस्य चोपधायाः । २२।१६ नान्यत्सार्वनामिकम् | २।१।३३ नामिकरपरः प्रत्ययविकारगमस्थः सिः षं नुविसर्जनीयषान्तरोऽपि । २।४।४७ नामिनः स्वरे । २२।१२ ३१५/२ ४|१|२१ ३|८|१४ १/५/१२ ३।६।४२ ३/२/५ २/५/१ २।३।२७ २।४।४२ ४।२।४९ २।३।४ नपुंसकात्स्यमोर्लोपो न च तदुक्तम् । २२२/६ ४/५/९३ नपुंसके भावे कः । नमःखस्तिखाहाखधालंवष योगे न यान्तसूददीपदीक्षाम् । नयोः पदाद्येोर्बुद्धिरागमः । लोपश्च । नव परायात्मने । न वायोरगुणे च । २२११ न विसर्जनीयलोपे पुनः सन्धिः । ५ ३।६।२४ न व्यञ्जने खराः संघेयाः । ४ | ३ | १४ न व्ययतेः परोक्षायाम् । ४/२/५३ न शब्दाच्च विकरणात् । ३।६।७२ न शसददवादिगुणिनाम् । ४।१।५४ न शास्वृदनुबन्धानाम् । ४।६।५८ न वर्णवृत्तां कानुबन्धे । ३|३|१४ न संप्रसारणे । नामिनश्चोपधाया लघोः । नामनोऽम् प्रत्ययवच्चैकखरस्य । २।४।२६ नामिनोर्वोरकुर्छुरोर्व्यञ्जने । ३।८।२१ नामिपरम् । ४|४|३३ नामिव्यञ्जनान्तादायेरादेः । २/६/५० नाम्न आत्मेच्छायां जिन् । ३।६।४६ नाम्नां समासो युक्तार्थः । ३।१।२ नाम्नि तृभृवृजिधारित पिदमिसहां ३|४|६ संज्ञायाम् । : ४।३।४४ Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कातन्त्रसूत्रपाठस्याकाराद्यनुक्रमण सूाचः। नाम्नि प्रयुजमानेऽपि प्रथमः । ३।१।५ निष्ठायां च । ४।६।८८ नाम्नि वदः क्यप् च । ४।२।२० .निष्ठेटीनः । ४|११३६ नाम्नि स्थश्च । ४।३।५ नीदाशसुयुयुजस्तुतुदसिसिचमिहपनाम्यजातौ णिनिस्ताच्छील्ये। ४।३।७६ तदंशनहां करणे । ४।४।६१ नाम्न्यादिशिग्रहोः। . ४।६।४१ नुः खादेः । ३।२।३६ नाम्यन्तयोर्धातुविकरणयोर्गुणः। ३।५।१ नृ वा । २।३।२८ नाम्यन्ताद्धातोराशीरद्यतनीपरोक्षासु नेटि रधेरपरोक्षायाम् । ३।५।३६ धो ढः। ३।८।२२ नोऽन्तश्चछयोः शकारमनुखारपूर्वम् । ११४८ नाम्यन्तानामनिटाम् । ३।५।१७ नोर्वकारो विकरणस्य । । ३।४।६० नाम्यन्तानां यणआयियिन्आशीश्वि- नोर्विकरणस्य । ३।४।५७ - चेक्रीयितेषु ये दीर्घः। ३।४७० नोश्च विकरणादसंयोगात् ।। ३।४।३६ नाम्यादेर्गुरुमतोऽन्छः। .. ३।२।१९ नौ गदनदपठखनाम् । ४।५।४८ नाम्युपधप्रीकृगृज्ञां कः। ४।२।५१ नौ ण च । ४५.४३ नाल्विष्ण्वाय्यान्तेनुषु । ४।११३७ नौ निमिते। ४१५/६३ नावस्तायै विषाद्वध्ये तुल्या संमिते नौ वृञः। ४।५।२१ - ऽपि च । तत्र साधौ यः । २।६।९ न्यवादीनां हश्च घः । ४।६।५७ नाव्ययेनानमा । ४।२।५ पः पिबः । ३२६७० निजिविजिविषां गणः सार्वधातुके । ३।३।२३ प इत्युपध्मानीयः । १।१।१८ नित्यं शतादेः । २।६।२२ पचिवचिसिचिरिचिमुचेश्चात् । ३७११८ निन्दहिंसक्तिशखादानेकखरविनाशि पञ्चमी । ३३१।२६ व्याभाषासूयां वुञ्। ४।४।२८ पञ्चमे पञ्चमांस्तृतीयान्न वा । १।४।२ निप्राभ्यां युजः शक्ये । ४।६।६२ पञ्चमोपधाया धुटि चागुणे । ४।१।५५ निमित्तात्प्रत्ययविकारागमस्थः ... पञ्चम्यनुमतौ । ३।१।१८ सः षत्वम् । ३।८।२६ पञ्चम्यास्तस् । २।६।२८ निमूलसमूलयोः कषः। ४।६।१६ पञ्चादौ घुट् । २॥१॥३ नियोऽवोदोः। ४।५।१६ पणः परिमाणे नित्यम् । ४/५/५० नियो डिराम् । २।२।७७ पण्यावद्यवर्या विक्रेयग-निरोधेषु ।। ४।२।१५ निरभ्योः पूल्वोः। ४।५।१७ पतिरसमासे । २।२।२ निर्धारणे च । २।४।३६ पतेः पप्तिः। ३।६।९६ निर्वाणोऽवाते। ४।६।११३ पदपक्ष्ययोश्च ।। ४।२।२५ निष्ठा । ४।३।९३ पदरुजविशस्पृशोचां घञ् । ४/५.१ मिष्ठायां च। ४।१।४१ पदान्ते धुटां प्रथमः। ३।८।१ Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कातन्त्रसूत्रपाठस्याकाराद्यनुक्रमेण सूचिः। पदे तुल्याधिकरणे विज्ञेयः कर्मधारयः। २।५।५ पुरोऽग्रतोऽग्रेषु सर्तेः । ४।३।२० पन्थिमन्थ्युमुक्षीणां. सौ। २२।३५ पुवः संज्ञायाम् । ४।४।६४ पफयोरुपध्मानीयं न वा। १।५।५ पुषादिद्युतालुकारानुबन्धार्तिसर्लिपररूपं तकारो लचटवर्गेषु । १।४।५. शास्तिभ्यश्च परस्मै । ३।२।२८ परावरयोगे च । ४।६।४ पुष्यसिध्यौ नक्षत्रे । ४।२।३२ परिक्लिश्यमाने च । ४।६।३८ पूक्लिशोर्वा । ४।६।८९ परिचाय्योपचाय्यावग्नौ । ४।२।४३ पूझ्यजोः शानङ् । ४|४८ परिन्योर्नीणो ताभ्रेषयोः । ४।५।३७ पूर्व वाच्यं भवेद्यस्य सोऽव्ययीभाव. परिवृढदृढौ प्रभुबलवतोः। ४।६।९५ इष्यते। २।५।१४ परोक्षा। ३।१।१३ पूर्वपरयोरर्थोपलब्धौ पदम् । १।१।२० परोक्षा। ३।१।२९ पूर्ववत् सनान्तात् । ३।२।४६ परोक्षायां च । ३।५।२० पूर्वे कर्तरि । ४।३।२१ परोक्षायामगुणें । ३।६।१४ पूर्वोऽभ्यासः । ३।३।४ परोक्षायामभ्यासस्योभयेषाम् । . . ३।४।४ पूर्वो हवः । १।१।५ परोक्षायामिन्धिश्रन्थिग्रन्थिदन्भीनामगुणे।३।६।३ प्यायः पिः परोक्षायाम् । ३।४।११ परो दीर्घः। १।१।६ प्यायः पीः खाङ्गे । ४।१।४३ परौ डः। ४।५।६२ प्वादीनां हृखः। ३।६।८३ परौ भुवोऽवज्ञाने । ४।५।३३ प्रकारवचने तु था। २।६।३८ परौ यज्ञे। ४।५।२७ प्रकृतिश्च खरान्तस्य । २।५।३ परौ सृदहोः। ४।४।२६ प्रच्छादीनां परोक्षायाम् । ३।४।१९ पर्यपाड्योगे पञ्चमी । २।४।२० प्रच्छेश्छात् । ३।७।१९ पर्यायाहर्णेषु च । ४।५।८९ प्रतेश्च । ४।१।४७ पाणिघटाडघौ शिल्पिनि । ४।३।५६ प्रत्ययः परः। ३।२।१ पातेोऽन्तः। ३।६।२३ प्रत्ययलुकां चानाम् । ४।१।४ पात्पदं समासान्तः। २।२।५२ प्रथमा विभक्तिर्लिङ्गार्थवचने । २।४।१७ पाधोर्मानसामिधेन्योः। ४।२।३८ प्रयोगतश्च । ३।१।१७ पुंवद्भाषितपुंस्कानूङपूरण्यादिषु स्त्रियां प्रवचर्चिरुचियाचित्यजाम् । ४।६।६० ___तुल्याधिकरणे। २।५।१८ प्रश्नाख्यानयोरिञ् च वा। ४।५/९० पुंसि संज्ञायां घः। ४।५।९६ प्रस्त्यः संप्रसारणम् । ४।१।४५ पुंसोऽन्शब्दलोपः। २१२।४० प्राडोनियोऽसंमतानित्ययोः खरवत् । ४।२।३९ पुरंदरवाचंयमसर्वसहद्विषंतपाश्च । ४।१।२९ प्राद् गृहैकदेशे घञ् च । ४।५।५९ पुरुषे तु विभाषया । २।५।१६ पुत्रुसृल्वां साधुकारिणि । ४।२।६६ Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ कातन्त्रसूत्रपाठस्याकाराद्यनुक्रमेण सूचिः। प्रे चायझे। ४।५।१३ भाषितपुंस्कं पुम्वद्वा । २।२।१४ प्रे जुसुवोरिन् । ४।४।३६ भित्तर्णवित्ताः शकलाधमर्णभोगेषु । ४।६।११४ प्रे दाज्ञः। ४।३।७ भिद्योध्यौ नदे। ४।२।३१ प्रे द्रुमथवदवसलपाम् । ४।४।२५ मियो रुग्लुकौ च । ४।४५६ प्रे द्रुस्तुश्रुवः । ४।५।१५ भिसैसू वा । २।१।१८ प्रे रश्मौ । ४।५।२९ भीमादयोऽपादाने । ४।६।५१ प्रे लिप्सायाम् । ४।५।२५ भीषिचिन्तिपूजिकथिकुम्बिचर्चिस्पृहिप्रेष्यातिसर्गप्राप्तकालेषु । ४।५।११० तोलिदोलिभ्यश्च । ४।५।८३ फलेमलरजःसु ग्रहः। ४।३।२७ भीहीभृहवां तिवच्च । ३।२।२१ बन्धोऽधिकरणे । ४।६।२५ भुजन्युजौ पाणिरोगयोः । ४।६।६४ बहुवचनममी। १।३।३ भुजोऽन्ने । ४।६।६३ बहुव्रीहौ। २।१।३५ भुवः खिष्णुखुको कर्तरि । ४॥३॥५८ बाहादेश्च विधीयते । . २।६।६ भुवः सिज्लुकि । ३।५।१३ ब्रुव ईड वचनादिः । ३।६।८८ भुवः सिज्लुकि । ३/७३४ ब्रुवो वचिः। ३।४।८८ भुवस्तूष्णीमि च । ४।६।४५ भजो विण् । ४।३।५९ भुवो डुर्विशंप्रेषु । ४|४|५९ भयर्तिमेघेषु कृञः। ४।३।४१ भुवो वोऽन्तः परोक्षाद्यतन्योः।। ३।४।६२ भवतेरः। ३।३।२२ भूतकरणवत्यश्च । ३।१।१४ भवतो वादेरुत्वं संबुद्धौ । २।२।६३ भूरवर्षाभूरपुनर्भूः। २।२।५८ भविष्यति गम्यादयः। ४।४।६८ भृग्वत्र्यङ्गिरसकुत्सवसिष्ठगोतमेभ्यश्च । २।४७ भविष्यतिभविष्यन्त्याशीःश्वस्तन्यः। ३।१।१५ भृजः खरात् खरे द्विः । ३।८।१० भावकरणयोस्त्वाशिते भुवः। ४।३।४३ भृजाधीनां षः । ३।६।५९ भावकर्मणोः कृत्यक्तखलर्थाः। ४।६।४७ भृशोऽसंज्ञायाम् । ४।२।२५ भावकर्मणोश्च । ३।२।३० भृहाङ्माङामित् । ३।३।२४ भाववाचिनश्च । ४।४७० भृतौ कर्मशब्दे । ४।३।२४ भावादिकर्मणोर्वा । ४।६।९२ भ्यसभ्यम् । २।३।१५ भावादिकर्मणोर्वोदुपधात् । ४।१।१७ भ्राज्यलंकृञ्भूसहिरुचिवृतिवृधिभावे । ४।५।३ चरिप्रजनापत्रपेनामिष्णुच् । ४।४।१६ भावेऽनुपसर्गस्य । ४।५।५६ भ्रूोतुवत् । २।२।६० भावे पचिगापास्थाभ्यः । ४।५।७४ मदिपतिपचामुदि । ४।४।१७ भावे भुवः। ४।२।२१ मदेः प्रसमोहर्षे । ४।५।४४ भाषितपुंस्कं पुंवदायौ। ३।६।६१ मनः पुंवञ्चात्र । ४।३७९ Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कातन्त्रसूत्रपाठस्याकाराद्यनुक्रमेण सूचिः । मनोरनुखारो धुटि । २।४।४४ यतोऽपैति भयमादत्ते वा मन्त्रे श्वेतवहुक्थशंसपुरोडाशावयजिभ्यो तदपादानम् । २।४८ विण् । ४।३।६५ यत् क्रियते तत् कर्म । २।४।१३ मन्यकर्मणि चानादरेऽप्राणिनि । २।४।२५ यथातथयोरसूयाप्रतिवचने । ४।६।१० मों मार्जिः। ३।८।२३ यदुगवादितः। २।६।११ मस्जिनशोधुटि । ३।५।३१ यन्योकारस्य । ३।६।३६ मानुबन्धानां हृखः। ३।४।६५ यपि च । ४।११६० मान्बध्दान्शान्भ्यो दीर्घश्चाभ्यासस्य । ३।२।३ यपि चादो जग्धिः । ४।१।८२ मायोगेऽद्यतनी। ३।१।२२ यभिरभिलमेर्भात् । ३।७।२५ मास्मयोगे ह्यस्तनी च । ३।१।२३ यमः संन्युपविषु च । ४।५।४७ मितनखपरिमाणेषु पचः । ४।३।३६ यममनतनगमां कौ । ४।१।६९ मिदिभासिभन्जा धुरः। ४।४।४१ यमिमदिगदां त्वनुपसर्गे। ४।२।१३ मिदेः। ३१५।५ यमिरमिनमिगमेर्मात् । ३१७२६ मिनातिमिनोतिदीडां गुणवृद्धिस्थाने । ३।४।२२ यमिरमिनम्यादन्तानां सिरन्तश्च । ३।७।१० मीनात्यादिदादीनामाः। ४।१।३९ यस्मै दित्सा रोचते धारयते मुचादेरागमो नकारः खरादनि वा तत् संप्रदानम् । २।४।१० विकरणे। ३।५।३० यस्याननि । ३।६।४८ मुहादीनां वा। २।३।४९ यस्यापत्यप्रत्ययस्यास्वरपूर्वस्य मूर्ती घनिश्च । ४।५।५८ यिन् आयिषु । ३।६।४५ मृषः क्षमायाम् । ४।१।१६ याकारौ स्वीकृतौ ह्रखौ क्वचित् । २।५।२७ मेङः। ४।६।२ याचिविछिप्रछियजिस्खपिरक्षियतां नङ्। ४।५।६९ मोऽनुखारं व्यञ्जने। १।४।१५ याम् युसोरियमियुसौ । ३।६।६५ मो नो धातोः। ४।६।७३ यावति विन्दजीवोः। ४।६।१२ नो मनः। ३।६।७४ याशब्दस्य च सप्तम्याः। ३।६।६४ यः करोति स कर्ता। २।४।१४ यिन्यवर्णस्य । ३१४७८ य आधारस्तदधिकरणम् । २।४।११ युगपद्वचने परः पुरुषाणाम् । ३।१।४ य इवर्णस्यासंयोगपूर्वस्यानेकाक्षरस्य । ३।४।५८ युग्यं पत्रे । ४।२।३३ यच्चार्चितं द्वयोः । २।५।१३ युजभजभुजद्विषद्रुहदुहदुषाङ्क्रीडत्यजानुरुधायज्ञे समि स्तुवः । ४।५।१८ ड्यमाङ्यसरन्जाभ्यानां च । ४।४।२२ यणाशिषोर्ये । ३।४।७४ युजिरुजिरन्जिभुजिभजिभन्जिसन्जियणाशिषोर्ये । ३।६।१३ त्यजिभ्रस्जियजिमस्जिसृजिनिजियण च प्रकीर्तितः। २।६।१४ विजिखन्जेर्जात् । ३२७२० Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३।११ रुहे? वा । कातन्त्रसूत्रपाठस्याकाराद्यनुक्रमेण सूचिः । युजेरसमासे नुर्बुटि । २।२।२८ राल्लोप्यौ । ४।१।५८ युट् च । ४।५।९४ रिशिरुशिक्रशिलिशिविशिदिशिशियुद्रुवोरुदि च। ४।५।९. स्पृशिमृशिदन्शेः शात् ।। ३१७२७ युवावौ द्विवाचिषु । २।३७ रुचादेश्च व्यञ्जनादेः । ४।४।३१ युवुझानाकान्ताः। ४।६।५४ रुदविदमुषां सनि । ३१५/१६ युष्मदस्मदोः पदं पदात्षष्ठीचतुर्थी-... ... रुदादिभ्यश्च । ३।६।९१ ___ द्वितीयासु वस्नसौ। २।३।१ रुदादेः सार्वधातुके । ३/७३ युष्मदि मध्यमः। ३।१।६ रुधादेविकरणान्तस्य लोपः। . ३।४।४० यूयम् वयम् जसि । ४।६।७२ ये च। ।४।२८ रूढानां बहुत्वेऽस्त्रियामपत्यप्रत्ययस्य । २।४।५ येन क्रियते तत् करणम् । २।४।१२ रेफसोविसर्जनीयः । २।३।६३ ये वा । ४।१।७२ रैः। २।३।१९ योऽनुबन्धोऽप्रयोगी। ३।८।३१ रोगाख्यायां वुञ्। ४/५/८७ प्योर्व्यञ्जनेऽये। ४।११३५ रो रे लोपं खरश्च पूर्वो दीर्घः ।। १।५।१७ रथोरेतेत् । २।६।२६ लक्षणहेत्वोः क्रियायाः। ४।४।३ रधादिभ्यश्च । ४।६।८२. २. लग्नम्लिष्टविरिब्धाः सत्ताविस्पष्टखरेषु। ४।६।९४ रधिजभोः स्वरे। ३।५।३२ रन्जेविकरणयोः। लघुपूर्वोऽय् यपि। ४।११३८ ४।१।६६ १।२।११ रप्रकृतिरनामिपरोऽपि । - लम्लवर्णः। १।५।१४ रभिलभोरविकरणपरोक्षयोः । ललाटे तपः। ३।५।३४ ४।३।३५ रमृवर्णः । लिङ्गान्तनकारस्य । २।३।५६ रशब्द ऋतो लघोर्व्यञ्जनादेः । ३।२।१३ लुग्लोपे न प्रत्ययकृतम् । ३।८।२९ रघुवर्णेभ्यो नो णमनन्त्यः लुप्तोपधस्य च । ३।६।२९ खरहयवकवर्गपवर्गान्तरोऽपि । २।४।४८ लुभो विमोहने । ४।६।८६ रसकारयोर्विसृष्टः । ३।८।२ लूवर्णे अल् । . १२५ रागानक्षत्रयोगाच्च समूहात्सास्य देवता। .. ले लम् । १।४।११ तद् वेत्त्यधीते तस्येदमेवमादेरण - लोकोपचारादू ग्रहणसिद्धिः । १।१।२३ .. इष्यते । २।६७ लोपः पिबतेरीच्चाभ्यासस्य । ३।५।४६ राजसूयश्च । __४।२।४१ लोपः सप्तम्यां जहातेः। ३।४।४६ राधिरुधिक्रुधिक्षुधिबन्धिश्रुधिसिध्यति- लोपे च दिस्योः । ३।६।१०१ बुध्यतियुधिव्यधिसाधेर्धात् । ३।७।२२ लोपोऽभ्यस्तादन्तिनः । ३।५।३८ रान्निष्ठातो नोऽपृमूर्छिमदिख्या ल्वाद्योदनुबन्धाच । ४।६।१०४ ध्याभ्यः। ४।६।१०१ वः कौ। ४।११५३ ११२।१० Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३९ कातन्त्रसूत्रपाठस्याकाराद्यनुक्रमेण सूचिः। वचोऽशब्दे । ४।६।६१ वा तृतीयासप्तम्योः । २।४।२ वणिजां च । ४।५।३० वा नपुंसके। २।२।३० वदवजरलन्तानाम् । ३६९ वा परोक्षायाम् । ३।४।८० वदेः खः प्रियवशयोः ४।३।३९ वा परोक्षायाम् । ३।४।९० वनतितनोत्यादिप्रतिषिद्धेटां धुटि . वा प्रस्त्यो मः। ४।६।११२ • पञ्चमोऽचातः । ४।१।५९ वाभ्यवाभ्याम् । ४।११४८ वन्चिस्रन्सिपन्सिभ्रन्सिकसिपतिपदि- . वा मः । . ४।११६१ .. स्कन्दामन्तो नी। ३।३।३० वाम्या २।२।२७ वमुवर्णः । १।२।९ वाम्नौ द्वित्वे । २।३।२ वमोश्च । ४।६।७४ वाम्शसोः । २।२।६२ वर्गप्रथमाः पदान्ताः खरघोषवत्सु वा रुष्यमत्वरसंघुषाखनाम् । ४।६।९८ - तृतीयान् । १।४।१ वा विरामे । २।३।६२ वर्गप्रथमेभ्यः शकारः खरयवरपरश्छ- वावे वर्षप्रतिबन्धे । ४।५।२८ कारं न वा। १।४।३ वासरूपोऽस्त्रियाम् । ४।२।८ वर्गाणां प्रथमद्वितीयाः शषसाश्चा वा खरे। ३।६।९९ घोषाः। १।१।११ वाहेाशब्दस्यौ । २।२।४८ वर्गे तद्वर्गपञ्चमं वा। १।४।१६ विंशत्यादेस्तमट् । २।६।२१ वर्गे वर्गान्तः।। २।४।४५ विक्रिय इन् कुत्सायाम् । ४।३।८७ वर्तमाना। ३।१।२४ विजेरिटि। ३।५।२८ वर्तमाने शन्तृडानशावप्रथमैकाधिक- .. विट् कमिगमिखनिसनिजनाम् । ४।३।६४ . रणामन्त्रितयोः। ४।४।२ विड्वनोरा । ४|११७० वर्षप्रमाण ऊलोपश्च वा। ४।६।१४ विदिक् तथा । २।५।१० वशेश्चक्रीयिते । ३१४।१८ विध्यादिषु सप्तमी च । ३।१।२० वसतिघसेः सात् । ३।७२९ विध्वरुस्तिलेषु तुदः । ४।३।३३ वहलिहाभ्रंलिहपरंतपेरंमदाश्च । ४।३।३८ विन्द्विच्छू च । ४।४।५२ वहश्च । ४।३।६१ विभक्तयो द्वितीयाद्या नाम्ना परपदेन तु । वहे पञ्चम्यां भ्रंशेः । ४।३।६९ समस्यन्ते समासो हि ज्ञेयस्तत्पुरुषःसच॥२।५।८ वह्यं करणे। ४।२।१६ विभक्तिसंज्ञा विज्ञेया वक्ष्यन्तेऽतः परं तु ये । वा कृति रात्रेः। ४।१।२८ अध्यादेः सर्वनाम्नस्ते बहाश्चैव पराः वा छाशोः। ४३११७७ स्मृताः॥ २।६।२४ वा ज्वलादिदुनीभुवो णः। ४।२।५५ विभाषाने प्रथमपूर्वेषु । ४।६।६ वाणपसे। २।६।१ विभाष्येते पूर्वादेः । २।१२८ Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४।४ कातन्त्रसूत्रपाठस्याकाराद्यनुक्रमेण सूचिः। विरामव्यञ्जनादावुक्तं व्यथेश्च । ३।४। नपुंसकात्स्यमोर्लोपेऽपि। २।३।६४ व्यधजपोश्चानुपसर्गे । ४।५।४ विरामव्यञ्जनादिष्वडुन्नहिवन्सीनां च । २।३।४४ व्यश्च ।। ४।१५ विशिपतिपदिस्कन्दा व्युपयोः शेतेः पर्याये । ४।५।३ _ व्यापमानासेव्यमानयोः । ४।६।३९ ब्रजयजोः क्यप् । ४१५७ विशेषणे। २।४।३२ व्रताभीक्ष्ण्ययोश्च । ४।३७ विष्वग्देवयोश्चान्त्यखरादेरयश्चतौ कौ। ४।६७० वश्चिमस्जोधुटि । ३।६।३ विसर्जनीयश्चे छे वा शम् । १।५।१ व्रश्चेः क च । ४।६।१० विहंगतुरंगभुजंगाश्च । ४।३।४८ शंपूर्वेभ्यः संज्ञायाम् । ४॥३॥१ वुणतुमौ क्रियायां क्रियार्थायाम् । ४।४।६९ शंसिप्रत्ययादः । ४/५/८ वुण्तृचौ । ४।२।४७ शकि च कृत्याः । ४/५/१० वुषधिनिणोश्च । ४।१।६७ शकिसहिपवर्गान्ताच्च । ४।२।१ वृहेः खरेऽनिटि वा। ४।१।६८ शके: कात् । ३।७१ वृशिक्षिलुण्टिजल्पिकुट्टां षाकः। ४।४।३५ शक्तिवयस्ताच्छील्ये । वृञ्जुषीणशासुस्तुगुहां क्यप् । ४।२।२३ शदिसदिधेड्दासिभ्यो रुः। ४।४।३ वृणोतेराच्छादने । ४।५।३१ शदेः शीयः। ३।६७ वृद्धिरादौ सणे। २।६।४९ शदेरगतौ तः। ३६२ वेञश्च वयिः। ३।४।८१ शन्त्रानौ स्यसंहितौ शेषे च । ४।४। वेत्तेः शन्तुर्वन्सुः । ४।४।४ शमादीनां दी? यनि । ३१६६ वेर्लोपोऽपृक्तस्य । ४।१।३४ शमामष्टानां घिनिण् । ४।४।२ वेषुसहलुभरुषरिषां ति। ४।६।८१ शरीरनिवासयोः कश्चादेः।। ४।५।३ वौ नीपूभ्यां कल्कमुञ्जयोः। ४।२।२८ शसि सस्य च नः। २।११ वौ विचकत्थश्रन्भुकषलषाम् ।। ४।४।२४ शसोऽकारः सश्च नोऽस्त्रियाम् ।। २।११५ व्यञ्जनमस्वरं परं वर्ण नयेत् । ११११२१ शाछासाह्वाव्यापामिनि । ३॥६२ व्यञ्जनाच्च । २।१४९ शा शास्तेश्च । ३१५/३ व्यञ्जनाच्च । ४।५।९९ शासिवसिघसीनां च ।। ३।८।२ व्यञ्जनादेर्युपधस्यावो वा। ४।१।११ शासुयुधिशिधृषिमृषां वा। ४।५।१० व्यञ्जनादिस्योः। ३।६।४७ शासेरिदुपधाया अणव्यानयोः। ३॥४॥ व्यञ्जनान्तस्य यत्सुभोः। २।५।४ शिट्परोऽघोषः । ३॥३॥१ व्यञ्जनान्तानामनिटाम् । ३६७ शिडिति शादयः । ર૮ર व्यञ्जनान्नोऽनुषङ्गः। २।१।१२ शिन्चौ वा। १।४।१ व्यञ्जने चेषां निः। २।२।३८ शिल्पिनि वुष् । ४६ Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१ कातन्त्रसूत्रपाठस्याकाराद्यनुक्रमेण सूचिः। शीङः सार्वधातुके। ३।६।१८ ष्ठिवुक्लम्वाचमामनि । ३।६।६७ शीडोऽधिकरणे च । ४।३।१८ संख्यापूर्वो द्विगुरिति ज्ञेयः । २१५/६ शीपघृषिक्ष्विदिखिदिमिदां संख्यायाः पूरणे डमौ । २।६।१६ निष्ठा सेट् । ४।१।१५ संख्याः नान्तायाः । २।१।७५ शीलिकामिभक्ष्याचरिभ्यो णः। ४।३।३ संघे चानौत्तराधर्ये । ४/५/३६ शृवन्द्योरारुः। ४।४।५५ संचिकुण्डपः ऋतौ । ४।२।४० शेतेरिरन्तेरादिः। ३।५।४० संज्ञापूरणीकोपधास्तु न । २।५।१९ शेषाः कर्मकरणसंप्रदानापादान संज्ञायां च । ४।५।८८ ___ स्वाम्याद्यधिकरणेषु । २।४।१९ संज्ञायां च। . ४।६।२६ शेषात् कर्तरि परस्मैपदम् । ३।२।४७ संनिविभ्योऽर्देः । ४।६।९६ शेषे से वा वा पररूपम् । १।५।६ संपरिभ्यां वा । ४।११५१ श्योऽस्पर्शे । ४।६।१०७ संप्रति वर्तमाना । ३।१।११ श्रद्धयाः सिर्लोपम् । २१११३७ संप्रसारणं य्वृतोऽन्तःस्थानिमित्ताः । ३।८।३३ श्रिद्रुश्रुकमिकारितान्तेभ्यश्चण कर्तरि । ३।२।२६ संबुद्धावुभयोहवः। २।२।४४ श्रिनीभूभ्योऽनुपसर्गे। ४।५।१० संबुद्धौ च । २।१।३९ श्रिव्यविमविज्वरित्वरामुपधया । ४११५७ संबुद्धौ च । २।१।५६ श्रुवः शृ च । ३।२।३५ संबुद्धौ हखः। २।१।४६ श्रुनीस्तनमुञ्जकूलास्यपुष्पेषु धेटः। ४।३।३१ संयोगादेवुटः । २।३१५५ श्रुष्कचूर्णरुक्षेषु पिषः । ४।६।१७ संयोगान्तस्य लोपः। २।३।५४ शृतं पाके। ४११।४४ सखिपत्योर्डिः। २।११६१ शूकमगमहनवृषभूस्थालषपतपदा सख्युश्च । २।२।२३ मुकञ् । ४।४।३४ सजुषाशिषो रः । श्वयतेर्वा । ३।४।१२ सण अनिटः शिडन्तानाम्युपधाददृशः।३।२।२५ श्वयुवमघोनां च । २।२।४७ सणोऽलोपः खरेऽबहुत्वे । ३।६।३३ श्वस्तनी। ३।१।३० सत्यागदास्तूनां कारे। ४।११२३ श्विजानोर्गुणः। ३।६।१० सत्सूद्विषद्रुहदुहयुजविदभिदषडाद्याः सार्वधातुकम् । ३।११३४ छिदजिनीराजामुपसर्गेऽपि । ४।३।७४ षडो णो ने। २।४।४३ सदेः सीदः। ३।६।८० षढोः कः से। ३८४ सद्य आद्या निपात्यन्ते। २।६।३७ षट्याद्यतत्परात् । २।६।२३ सनन्ताशंसिभिक्षामुः । ४।४।५१ षष्ठी हेतुप्रयोगे। २।४।३७ स नपुंसकलिङ्गं स्यात् । २।५।१५ षानुबन्धभिदादिभ्यस्त्वङ् । ४।५।८२ सनस्तिकि वा। ४।१।७३ २।३।५१ Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ __कातन्त्रसूत्रपाठस्याकाराद्यनुक्रमेण सूचिः। सनि चानिटि । ३।५।९ सर्तेर्यश्च । ४१५/७८ सनि दीङः । ३।४।२३ सर्वकूलाभ्रकरीषेषु कषः । ४।३।४० सनि मिमीमादारभलभशकपत सर्वत्रात्मने । ३।५।२१ . पदामिस वरस्य । ३।३।३९ सर्वनाम्नस्तु ससवो हवपूर्वाश्च ।। २।१।४३ सनीण्इडोर्गमिः । ३।४।८६ सर्वस्मात् परिमाणे । ४।५/५ सन्ध्यक्षरान्तानामाकारोऽविकरणे । ३।४।२० सर्वेषामात्मने सार्वधातुकेसन्ध्यक्षरे च । ३।६।३८ ऽनुत्तमे पञ्चम्याः । ३।५।१८ सन्यवर्णस्य । ३।३।२६ सस्य सेऽसार्वधातुके तः। ३।६।९३ सपरखरायाः संप्रसारणमन्तःस्थायाः। ३।४।१ सस्य ह्यस्तन्यां दौ तः । ३।८।१५ सप्तमी । ३।१।२५ सहराज्ञोयुधः । ४॥३८९ सप्तमीपञ्चम्यन्ते जनेर्डः। ४।३।९१ सहश्छन्दसि । ४।३।६० सप्तम्यां च । ३।५।२३ सहसंतिरसां सध्रिसमितिरयः। ४६७१ सप्तम्यां च प्रमाणासत्त्योः। ४।६।३३ सहिवहोरोदवर्णस्य । ३२८७ सप्तम्युक्तमुपपदम् । ४।२।२ सांनाय्यनिकाय्यो हविर्निवासयोः। ४।२।४२ समजासनिसदनिपतिशीसुविद्यटिचरि- सातिहेतियूतिजूतयश्च । ४१५/७३ मनिभृञिणां संज्ञायाम् । ४।५।७६ सान्तमहतो!पधायाः । २।२।१८ समर्थनाशिषोश्च । ३।१।१९ सामाकम् । २।३।१६ समाङोः सुवः। ४।२।५६ सामीप्येऽभेः । ४।६।९७ समानः सवर्णे दीर्धीभवति सार्वधातुकवच्छे । ४।१५ परश्च लोपम् । १।२।१ सार्वधातुके यण् । ३।२।३१ समासान्तगतानां वा सावौ सिलोपश्च । २।३।४० ___ राजादीनामदन्तता। २।६।४१ साहिसातिवेद्युदेजिचेतिधारिपारिसमासे भाविन्यनञः क्त्वो यः । ४।६।५५ लिम्पविन्दां त्वनुपसर्गे । ४।२।५४ समि ख्यः। ४।३।८ सिचः । ३।६।९० समि दुवः। ४।५।८ सिचि परस्मै खरान्तानाम् । ३१६६ समि मुष्टौ । ४।५।२६ सिचो धकारे । ३।६।५० समि सृजिपृचिज्वरित्वराम् । ४।४।२३ सिजाशिषोश्चात्मने । ३।५।१० समुदोरजः पशुषु । ४।५।५१ सिज् अद्यतन्याम् । ३।२।२४ समुदोर्गणप्रशंसयोः। ४।५।६४ सिद्धिरिज्वद् णानुबन्धे । ४।१।१ समूले हन्तेः। ४।६।२० सिद्धो वर्णसमाम्नायः । १।११ सर्तेः प्रजने। ४।५।५३ सुञो यज्ञसंयोगे। ४|४|१२ सर्तेर्धावः। ३।६।७८ सुड् भूषणे संपर्युपात् । ३७३८ Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुधीः । कातन्त्रसूत्रपाठस्याकाराद्यनुक्रमेण सूचिः। २।२।५७ स्नेहने पिषः। ४।६।२४ सुरामि सर्वतः । २।१।२९ स्पृशोऽनुदके। ४।३१७० सुरासीध्वोः पिबतेः । ४।३।१० स्फायः स्फीः । ४।१।४२ सूतेः पञ्चम्याम् । ३।५।१४ स्फायर्वादेशः । ३।६।२५ सूर्यरुच्याव्यथ्याः कर्तरि । ४।२।३० स्फुरिस्फुल्योधयोतः। ४।१।७४ सृजिदृशोरागमोऽकारः खरात्परो स्मिपन्ज्वशूकगृधप्रच्छां सनि। ३।७११ - धुटि गुणवृद्धिस्थाने । ३।४।२५ स्मिजिक्रीडामिनि । ३।४।२४ सृजीणनशां कर । ४१४१४८ स्मृत्यर्थकर्मणि । २।४।३८ सृवृभृस्तुद्रुसुश्रुव एव परोक्षायाम् । ३।७।३५ स्मेनातीते । ३।१।१२ सृ स्थिरव्याध्योः। ४।५।२ स्मै सर्वनाम्नः। २।१।२५ से गमः परस्मै । ३७६ स्यदो जवे । ४।१।६५ सोमे सुञः। ४।३३८५ स्यसंहितानि त्यादीनि भविष्यन्ती। ३।१।३२ सौ च मघवान् मघवा वा । २।३।२३ स्यातां यदि पदे द्वे तु यदि वा स्युर्बहून्यपि । । सौ नुः । २।२।४३ तान्यन्यस्य पदस्यार्थे बहुव्रीहिः ॥ २।५।९ सौ सः। २।३।३२ सदिघसां मरक । ४|४|४० स्कन्दस्यन्दोः क्त्वा । ४।१।१० स्रसिध्वसोश्च । २।३।४५ स्कोः संयोगाद्योरन्ते च । ३।६।५४ खनहसोर्वा । ४५/४६ स्तम्बकर्णयो रमिजपोः। ४।३।१६ खपिवचियजादीनां यणपरोक्षाशीषु। ३।४।३ स्तम्बेऽच्च । ४।५।६६ खपिस्यमिव्येां चेक्रीयिते। ३।४/७ स्तुसुधूभ्यः परस्मै । ३१७९ खरतिसूतिसूयत्यूदनुबन्धात् । ४।६।८३ स्तौतीनन्तयोरेव सनि । ३।८।२८ स्वरविधिः खरे द्विर्वचननिमित्ते स्त्रश्च प्रथनेऽशब्दे । ४।५।१२ कृते द्विर्वचने । ३।८।३० स्त्रियां किः । ४।५।७२ खरवृद्धगमिग्रहाम् अल् । ४।५।४१ स्त्रियामादा। २।४।४९ खरादाविवर्णोवर्णान्तस्य स्त्री च । २।२।६१ धातोरियुवौ । ३॥४॥५५ स्त्री नदीवत् । २।२।३ खरादीनां वृद्धिरादेः । ३।८।१७ ख्यत्र्यादेरेयण् । २।६।४ खरादुपसर्गात् तः। ४।१२८१ ख्याख्यावियुवौ वामि । २।२।४ खरादेर्द्वितीयस्य । ३।३।२ स्थस्तिष्ठः । ३।६।७३ स्वराद् यः। ४।२।१० स्थादोरिरद्यतन्यामात्मने । ३।५।२९ खराद्धादेः परो नशब्दः। ३।२।३६ स्थादोश्च । ३।५।१२ खरान्तानां सनि । ३।८।१२ स्नुक्रमिभ्यां परस्मै । ३।७२ खरेऽक्षरविपर्ययः। २।५।२३ Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३।४८ होमसु । ४।२।६४ हो ढः । कातन्त्रसूत्रपाठस्याकाराद्यनुक्रमेण सूचिः । खरे धातुरनात् । ४।६७५ हस्तार्थे ग्रहवर्तिवृताम् । खरोऽवर्णवों नामी। १।१७ हस्तिबाहुकपाटेषु शक्तौ । खरो इस्वो नपुंसके। २।४।५२ हस्य हन्तेर्धिरिनिचोः। खस्रादीनां च । २।१।६९ हिंसाच्चैककर्मकात् । खाङ्गेऽध्रुवे । ४।६।३७ हिंसार्थानामज्वरे । खाने तसि। ४।६।४४ हुधुड्भ्यां हेधिः । खादौ च । ४।६।८ होऽज् वयोऽनुद्यमनयोः । खापेश्चणि । खामीखराधिपतिदायादसाक्षि हेत्वर्थे । __ प्रतिभूप्रसूतैः षष्ठी च । २।४।३५ हेरकारादहन्तेः । खार्थे पुषः । ४।६।२३ हो जः। हा कालव्रीह्योः। हचतुर्थान्तस्य धातोस्तृतीयादेरादिचतुर्थत्वमकृतवत् । १।२।२२ हखः । हनसू त च । हखनदीश्रद्धाभ्यः सिर्लोपम् ।। ३।८।१३ हनिङ्गमोरुपधायाः। हनिमन्यते त्। हनृदन्तात् स्ये । हनेहेधिरुपधालोपे। हन्तेः कर्मण्याशीर्गयोः। हन्तेर्ज हो। हन्तेर्वधिराशिषि । हन्तेर्वधिश्च । ४।५।५७ ह्यस्तनी। हन्तेस्तः । ४।१।२ हस्तन्यां च। हन्तेस्तः। ३।६।२७ लादो हखः । हरतेईतिनाथयोः पशौ। ४।३।२६ हयतेर्नित्यम् । हलशूकरयोः पुवः । ४।४।६२ हावामश्च । हशषछान्तेजादीनां डः । २।३।४६ हो हुश्चाभ्युपनिविषु च । २।३।५० हौ च। ४।६।२२ ४।३।५५ ३।६।२८ ४।६।३२ २।४।४० ३।५।३५ ४।३।११ ४।६।९९ २।४।३० ३।४।३३ ३।३।१२ ३।६।५६ ३।५।२४ ३।३१५ २।१७१ २।२।५ २।५।२८ ३१६५२ ४।१।२२ २।१।४० ४।६।११० ३॥१॥२७ ३।६।८६ ४।१।१८ ३।४।१४ ४।३२ ४/५/५४ ३१७२३ हखश्च ङवति । ३७७ हखस्य दीर्घता । २।२।३२ हखाचानिटः । ४।३।५० हखारुषोर्मोऽन्तः । ३।४।४९ हस्खोऽम्बार्थानाम् । ३।४।८२ हीघ्रात्रोन्दनुदविन्दां वा । ernational www.jaineli Page #208 -------------------------------------------------------------------------- _