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________________ प्रधान-संपादकीय वक्तव्य प्रस्तुत ग्रन्थ का मुद्रण सन् १९५१ में प्रारंभ हो गया था और १९६२ में इसके प्रकाशन को भी पूरी तैयारी हो चुकी थी, परन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि किसो शोधपूर्ण भूमिका के अभाव में इसका प्रकाशन नहीं किया गया, यह उचित हो था क्योंकि प्रस्तुत ग्रन्थ कलिकाल-सर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य के उस महान् परंपरा की एक कड़ी कहा जा सकता है जिसका प्रारम्भ उन्होंने अपने शब्दानुशासननामक महाग्रंथ में प्राकृत-व्याकरण का समावेश करके किया था। फिर भी ग्रंथ के प्रकाशन को और अधिक विलंबित करना एक महान् अपराध होगा। प्रतः इसे इसी साधारण भूमिका के साथ प्रकाशित किया जा रहा है । यह ग्रन्थ भाषाविज्ञान की दृष्टि से विशेष महत्त्व का है, क्योंकि इस ग्रन्थ में संस्कृत व्याकरण-शिक्षा के सन्दर्भ में कई स्थानों पर तत्कालीन भाषा-शब्दों का भी प्रयोग हुअा है उदाहरण के लिये, संस्कारप्रक्रम-नामक सप्तम अध्याय में अनेक अव्यय तथा क्रियापदों को तत्कालीन भाषा से संगृहीत करके उनके संस्कृत-पर्याय दिये गये हैं। सर्वप्रथम पं० लालचंद भगवानदास गाँधी ने इस तथ्य की ओर पुरातत्त्व पुस्तक ३ अंक १ पृष्ठ ४० से ५३ पर निर्देश किया था। यहाँ पर तत्कालीन भाषा के निम्नलिखित क्रियापदों की ओर ध्यान आकृष्ट किया जाता है: "राखइ, बोलइ, नासइ, बूझइ, सीखइ, विचारइ, कहइ, सोहइ, ऊगइ, मथमइ, पूजइ, बरसइ, घसइ भेठइ, उलीचइ, लाजइ, फिरइ, संघइ, बुहारइ, बांधइ, निंदइ, पूरइ, सरइ, परिणइ, भावइ, भासइ, पोयइ, तूसइ, रूसइ, पूछइ, नाचइ, पीडइ, भीजइ, गांठइ, पढइ, हुयइ, जुडइ, पेलइ, प्रोढइ. रमई, रोवइ. ढोलइ, धापई, लाडई, लुनइ, सोझ, वरइ, मयइ, ढांकइ, पहिरइ, छेदइ, हकारइ, धूजइ, करई, मांजइ, धूपइ, मलइ मरदइ, छूटइ, ऊठइ. नीठइ, वारइ, सकइ, चोरइ वखाणइ, वधारइ, जांमइ, मरइ, कुपई, देखइ, जोवइ पोसड, सीवई पीसइ, मारइ, हिनहिनाइ, गूंथइ, सूजइ, दोहइ, दूसइ, थरकइ, वाजइ, छों कई, छकइ हाकइ, फूंकइ, छांटइ, लोपइ, घूमइ, पाच इ, फाटइ, निमटइ, उवटइ, आवइ, गाजइ' ये सभी क्रियापद वर्तमानकालिक अन्यपुरुष-एकवचन के रूप हैं और इनको अवधीं, व्रज, पूर्वी, राजस्थानी, पश्चिमी राजस्थानी तथा गुजराती की संपत्ति समान रूप से माना जा सकता है। इसमें कोई आश्चर्य की बात Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003395
Book TitleBalshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1968
Total Pages208
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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