Page #1
--------------------------------------------------------------------------
________________
अपभ्रंश रचना सौरभ
डॉ. कमलचन्द सोगाणी
माणुज्जीवो जोवो तीन विद्या संस्थान की मावीरी
प्रकाशक अपभ्रंश साहित्य अकादमी
जैनविद्या संस्थान दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी
राजस्थान
Page #2
--------------------------------------------------------------------------
________________
अपभ्रंश रचना सौरभ
डॉ. कमलचन्द सोगाणी
पूर्व प्रोफेसर, दर्शनशास्त्र सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर
माणुउजीवो जोवो Teनविद्या संस्थानवी
-32
प्रकाशक अपभ्रंश साहित्य अकादमी
जैनविद्या संस्थान दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी
राजस्थान
Page #3
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रकाशक
अपभ्रंश साहित्य अकादमी,
जैनविद्या संस्थान,
दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी, श्रीमहावीरजी - 322 220 ( राजस्थान )
प्राप्ति स्थान
1. जैनविद्या संस्थान, श्रीमहावीरजी
2. साहित्य विक्रय केन्द्र
दिगम्बर जैन नसियाँ भट्टारकजी,
सवाई रामसिंह रोड,
जयपुर - 302004
द्वितीय संस्करण, 2003 प्रतियाँ 2000
मूल्य 70.00
कम्प्यूटर टाईपसैटिंग आयुष ग्राफिक्स
डी - 1
- 173 - (ए), बापू नगर, जयपुर 302015 फोन :- (नि.) 2708265, (मो.) 94140-76708
मुद्रक जयपुर प्रिण्टर्स प्रा. लि.
एम. आई. रोड, जयपुर-302001
Page #4
--------------------------------------------------------------------------
________________
डॉ. हरिवल्लभ चुनीलाल भायाणी
एवं स्व. डॉ. हीरालाल जैन
को
सादर समर्पित
Page #5
--------------------------------------------------------------------------
________________
Page #6
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका
पाठ सं.
V
विषय आरम्भिक (द्वितीय संस्करण) प्रकाशकीय (प्रथम संस्करण) प्रस्तावना (प्रथम संस्करण) प्रारम्भिक सर्वनाम उत्तम पुरुष एकवचन सर्वनाम मध्यम पुरुष एकवचन
vii
पाठ 1
वर्तमानकाल
पाठ 2
वर्तमानकाल
पाठ3
सर्वनाम
वर्तमानकाल
पाठ 4
वर्तमानकाल
पाठ5
वर्तमानकाल
पाठ6
वर्तमानकाल
पाठ7
वर्तमानकाल
पाठ 8
अन्य पुरुष एकवचन सर्वनाम-एकवचन आकारान्त आदि क्रियाएँ सर्वनाम उत्तम पुरुष बहुवचन सर्वनाम मध्यम पुरुष बहुवचन सर्वनाम अन्य पुरुष बहुवचन सर्वनाम-बहुवचन आकारान्त आदि क्रियाएँ सर्वनाम उत्तम पुरुष एकवचन सर्वनाम मध्यम पुरुष एकवचन सर्वनाम अन्य पुरुष एकवचन सर्वनाम - एकवचन आकारान्त आदि क्रियाएँ
वर्तमानकाल
पाठ9
विधि एवं आज्ञा
पाठ 10
विधि एवं आज्ञा
पाठ 11
विधि एवं आज्ञा
पाठ 12
17
विधि एवं आज्ञा
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #7
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ सं.
पाठ 13
पाठ 14
पाठ 15
पाठ 16
पाठ 17
पाठ 18
पाठ 19
पाठ 20
पाठ 21
पाठ 22
पाठ 23
पाठ 24
पाठ 25
पाठ 26
पाठ 27
पाठ 28
अपभ्रंश रचना सौरभ
विषय
सर्वनाम
उत्तम पुरुष बहुवचन
सर्वनाम
मध्यम पुरुष बहुवचन
सर्वनाम
अन्य पुरुष बहुवचन
सर्वनाम - बहुवचन
आकारान्त आदि क्रियाएँ
अकर्मक क्रियाएँ
अभ्यास
सर्वनाम
उत्तम पुरुष एकवचन
सर्वनाम
मध्यम पुरुष एकवचन
सर्वनाम
अन्य पुरुष एकवचन
सर्वनाम - एकवचन
आकारान्त आदि क्रियाएँ
सर्वनाम
उत्तम पुरुष बहुवचन
सर्वनाम
मध्यम पुरुष बहुवचन
सर्वनाम
अन्य पुरुष बहुवचन सर्वनाम - बहुवचन
आकारान्त आदि क्रियाएँ
अभ्यास
सम्बन्धक भूत कृदन्त हेत्वर्थक कृदन्त
विधि एवं आज्ञा
विधि एवं आज्ञा
विधि एवं आज्ञा
विधि एवं आज्ञा
भविष्यत्काल
भविष्यत्काल
भविष्यत्काल
भविष्यत्काल
भविष्यत्काल
भविष्यत्काल
भविष्यत्काल
भविष्यत्काल
पृ.सं.
18
20
22
24
26
28
29
30
32
33
35
37
39
42
44
46
Page #8
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ सं.
विषय
पृ.सं.
पाठ 29
पुल्लिंग
48
पाठ 30
पुल्लिंग
50
पाठ 31
पुल्लिग
52
पाठ 32 पाठ 33
नपुंसकलिंग
पाठ 34
नपुंसकलिंग नपुंसकलिंग
पाठ 35
60
पाठ 36
संज्ञाएँ एवं क्रियाएँ अकारान्त संज्ञा शब्द अकर्मक क्रियाएँ अकारान्त संज्ञा प्रथमा एकवचन अकारान्त संज्ञा प्रथमा बहुवचन अभ्यास संज्ञाएँ एवं क्रियाएँ अकारान्त संज्ञा शब्द अकर्मक क्रियाएँ अकारान्त संज्ञा प्रथमा एकवचन अकारान्त संज्ञा प्रथमा बहुवचन अभ्यास संज्ञाएँ एवं क्रियाएँ आकारान्त संज्ञा शब्द अकर्मक क्रियाएँ आकारान्त संज्ञा प्रथमा एकवचन आकारान्त संज्ञा प्रथमा बहुवचन अभ्यास भूतकालिक कृदन्त वर्तमान कृदन्त अभ्यास भूतकालिक कृदन्त अभ्यास अकर्मक क्रियाएँ अभ्यास विधि कृदन्त
पाठ 37
स्त्रीलिंग
63
पाठ 38
स्त्रीलिंग
65
पाठ 39
स्त्रीलिंग
पाठ40
69
कर्तृवाच्य
70
14
पाठ41 पाठ 42 पाठ 43 पाठ44
19
भाववाच्य
80
पाठ45
83
भाववाच्य
84
पाठ 46 पाठ47 पाठ 48
87
भाववाच्य
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #9
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ सं.
विषय
पाठ49 पाठ 50
पाठ 51
पु.-नपुं.-स्त्रीलिंग
पाठ 52
99
पाठ53
-101
कर्मवाच्य पुल्लिंग
पाठ 54
109
111
पाठ 55 पाठ 56
कर्मवाच्य
112
115
पाठ 57 पाठ 58 पाठ 59
पु.-नपुं.-स्त्रीलिंग
116
अभ्यास संज्ञा-सर्वनाम द्वितीया एकवचन सकर्मक क्रियाएँ संज्ञा-सर्वनाम द्वितीया बहुवचन सकर्मक क्रियाएँ सकर्मक क्रियाएँ अभ्यास सकर्मक क्रियाएँ संज्ञा - शब्द इकारान्त, उकारान्त सकर्मक क्रियाएँ अभ्यास भूतकालिक कृदन्त अभ्यास इकारान्त, उकारान्त संज्ञा शब्द सकर्मक क्रियाएँ इकारान्त, उकारान्त संज्ञाएँ प्रथमा, तृतीया एकवचन, बहुवचन विधि कृदन्त अभ्यास विविध कृदन्त द्वितीयासहित अभ्यास संज्ञा-सर्वनाम चतुर्थी-षष्ठी एकवचन संज्ञा चतुर्थी-षष्ठी एकवचन संज्ञा-सर्वनाम चतुर्थी-षष्टी बहुवचन
118 119
पाठ 60
पाठ 61
कर्मवाच्य
122
पाठ 62
127
पाठ 63
128
पाठ 64
130
पाठ 65
पु.-नपुं.-स्त्रीलिंग 131
पाठ 66
इका., उका., पु.-नपु. 135
पाठ 67
पु.-नपुं.-स्त्रीलिंग 137
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #10
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ सं.
विषय
पृ.सं.
पाठ68
इका., उका., पु.-नपु.
141
पाठ 69
143
पाठ70
144
पाठ71
146
पाठ72
147
पाठ73
148
पाठ74
149
पाठ 75
150
संज्ञा चतुर्थी-षष्ठी बहुवचन अभ्यास संज्ञा-सर्वनाम पंचमी एकवचन संज्ञा पंचमी एकवचन संज्ञा पंचमी बहुवचन संज्ञा-सर्वनाम पंचमी बहुवचन संज्ञा सप्तमी एकवचन संज्ञा-सर्वनाम सप्तमी बहुवचन संज्ञा सम्बोधन, एक-बहुवचन प्रेरणार्थक प्रत्यय स्वार्थिक प्रत्यय विविध सर्वनाम अभ्यास अव्यय क्रिया-रूप व प्रत्यय क्रिया-रूप व प्रत्यय (क) संज्ञा-रूप (ख) सर्वनाम-रूप (ग) संख्यावाची रूप संज्ञाशब्दरूपों के प्रत्यय संज्ञा कोष क्रिया कोष
पाठ 76
151
पाठ77
152
156
पाठ 78 पाठ 79
157
पाठ 80
159
पाठ 81
160
163
पाठ 82 पाठ 83
164
170
185
193
पाठ84 परिशिष्ट 1 परिशिष्ट 2
208
217
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #11
--------------------------------------------------------------------------
________________
Page #12
--------------------------------------------------------------------------
________________
आरम्भिक
(द्वितीय संस्करण)
'अपभ्रंश रचना सौरभ' का द्वितीय संस्करण पाठकों के हाथों में समर्पित करते हुए हर्ष का अनुभव हो रहा है। इसके प्रथम संस्करण का पाठकों ने भरपूर उपयोग किया, इसके लिए हम उनके आभारी हैं।
- तीर्थंकर महावीर ने धर्म-प्रचार के निमित्त तत्कालीन लोक-भाषा ‘प्राकृत' का प्रयोग किया। प्राकृत भाषा की परम्परा अपभ्रंश को प्राप्त हुई, और अपभ्रंश की कोख से ही सिन्धी, पंजाबी, मराठी, गुजराती, राजस्थानी, बिहारी, उड़िया, बंगला, असमी, पश्चिमी हिन्दी, पूर्वी हिन्दी आदि भारतीय भाषाओं का जन्म हुआ है। इस तरह से राष्ट्रभाषा व लगभग सभी नव्य भारतीय आर्यभाषाओं का मूलस्रोत होने का गौरव अपभ्रंश भाषा को प्राप्त है।
'अपभ्रंश ईसा की लगभग सातवीं शताब्दी से तेरहवीं शताब्दी तक सम्पूर्ण उत्तर भारत की सामान्य लोक-जीवन के परस्पर व्यवहार की बोली रही है।' डॉ. देवेन्द्रकुमार जैन का कथन है कि अपभ्रंश के महाकवि स्वयंभू और पुष्पदन्त अपने समय की लोक-भाषा अपभ्रंश में नहीं लिखते तो सम्भवतः 'पृथ्वीराज रासो', 'सुरसागर', और 'रामचरितमास' का सृजन लोक-भाषाओं में सम्भव नहीं होता। डॉ. रंजनसूरिदेव लिखते हैं, 'रचना-प्रक्रिया की दृष्टि से गोस्वामी तुलसीदास भी महाकवि स्वयंभू के काव्य-वैभव एवं भाषिकी गरिमा से पूर्णत: प्रभावित हैं।' राजा भोज के युग में (1022-1063 ई.) अपभ्रंश कवियों का राजदरबारों में सम्मानपूर्ण स्थान था।
यह कहना अतिशयोक्ति नहीं है कि अपभ्रंश भाषा और साहित्य का विकसित रूप ही हिन्दी है। डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी के अनुसार- ‘साहित्यिक परम्परा की दृष्टि से विचार किया जाए तो अपभ्रंश के सभी काव्यरूपों की परम्परा हिन्दी में ही सुरक्षित है।' द्विवेदी जी ने तो अपभ्रंश को हिन्दी की 'प्राणधारा' ही कहा है। हिन्दी को ठीक से समझने के लिए अपभ्रंश की जानकारी आवश्यक ही नहीं अनिवार्य है। अत: राष्ट्रभाषा हिन्दी सहित आधुनिक भारतीय भाषाओं के सन्दर्भ में यह कहना कि अपभ्रंश का अध्ययन राष्ट्रीय चेतना और एकता का पोषक है, उचित प्रतीत होता है।
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #13
--------------------------------------------------------------------------
________________
दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी द्वारा संचालित 'जैनविद्या संस्थान' के अन्तर्गत 'अपभ्रंश साहित्य अकादमी' की स्थापना सन 1988 में की गई। वर्तमान में इसके माध्यम से प्राकृत-अप्रभंश का अध्यापन पत्राचार से किया जाता है। 'अपभ्रंश काव्य सौरभ', 'अपभ्रंश अभ्यास सौरभ', 'प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरभ भाग-1', 'प्रौढ प्राकृत अपभ्रंश रचना सौरभ भाग-2' अकादमी के महत्त्वपूर्ण प्रकाशन हैं। आशा है अपभ्रंश के अध्ययनार्थियों के लिए इस पुस्तक का द्वितीय संस्करण उपयोगी सिद्ध होगा।
पुस्तक प्रकाशन के लिए अपभ्रंश साहित्य अकादमी के कार्यकर्ता एवं जयपुर प्रिण्टर्स प्रा. लि. धन्यवादाह हैं।
नरेश कुमार सेठी नरेन्द्र कुमार पाटनी अध्यक्ष
मंत्री प्रबन्धकारिणी कमेटी दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी
डॉ. कमलचन्द सोगाणी
संयोजक जैनविद्या संस्थान समिति
जयपुर
तीर्थंकर मल्लिनाथ जन्म कल्याणक दिवस मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी, वीर निर्वाण सं. 25 30
4 दिसम्बर, 2003
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #14
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रकाशकीय
(प्रथम संस्करण)
हमारे देश में प्राचीनकाल से ही लोकभाषाओं में साहित्य-रचना होती रही है। 'अपभ्रंश' भी एक ऐसी ही लोकभाषा/जनभाषा थी जिसमें जीवन की सभी विधाओं में पुष्कलमात्रा में साहित्य रचा गया। 8वीं से 13वीं शताब्दी तक यह सारे उत्तरभारत की साहित्यिक भाषा रही। अपभ्रंश साहित्य की विशालता, लोकप्रियता और महत्ता के कारण ही आचार्य हेमचन्द्र ने अपने 'प्राकृत-व्याकरण' के चतुर्थ पाद में सूत्र संख्या 329 से 446 तक स्वतन्त्र रूप से अपभ्रंश भाषा की व्याकरण-रचना
की।
अपभ्रंश भारतीय आर्यभाषाओं (उत्तर-भारतीय भाषाओं) की जननी है, उनके विकास की एक अवस्था है। अत: हिन्दी एवं अन्य सभी उत्तर-भारतीय भाषाओं के विकास के इतिहास के अध्ययन के लिये अपभ्रंश भाषा का अध्ययन आवश्यक है।
अनेक कारणों से अपभ्रंश का साहित्य प्रकाशित न होने से इसकी रुचि पाठकों में न पनप सकी और इसके समुचित ज्ञान का अभाव बना रहा । धीरे-धीरे यह अपरिचय की ओट में छिप गई, इसके अध्ययन-अध्यापन की भी उचित व्यवस्था न हो सकी, परिणामत: अपभ्रंश का अध्ययन अत्यन्त दुष्कर हो गया।
अपभ्रंश साहित्य के अध्ययन-अध्यापन एवं प्रचार-प्रसार के उद्देश्य से दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी द्वारा संचालित जैनविद्या संस्थान के अन्तर्गत 'अपभ्रंश साहित्य अकादमी' की स्थापना 1988 में की गई। अकादमी का प्रयास है - अपभ्रंश के अध्ययन-अध्यापन को सशक्त करके उसके सही रूप को सामने रखना जिससे प्राचीन साहित्यिक-निधि के साथ-साथ आधुनिक आर्यभाषाओं के स्वभाव और उनकी सम्भावनाएँ भी स्पष्ट हो सकें।
किसी भी भाषा को सीखने, जानने, समझने के लिये उसके रचनात्मक स्वरूप/ संरचना को जानना आवश्यक है। अपभ्रंश के अध्ययन के लिये भी उसकी रचनाप्रक्रिया एवं व्याकरण का ज्ञान आवश्यक है। 'अपभ्रंश रचना सौरभ' इसी क्रम का
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #15
--------------------------------------------------------------------------
________________
एक प्रकाशन है। यद्यपि अपभ्रंश व्याकरण सम्बन्धी कुछ पुस्तकें प्रकाशित हैं किन्तु आचार्य हेमचन्द्र के सूत्रों के आधार पर अनुवाद एवं रचना कार्य की दृष्टि से हिन्दी में तथा आधुनिक शैली में प्रकाशित पुस्तक का अभाव ही है ।
'अपभ्रंश रचनां सौरभ' इस दिशा में प्रथम व अनूठा प्रयास है। इसकी शैली, प्रणाली एवं प्रस्तुतिकरण अत्यन्त सहज, सरल, सुबोध, एवं नवीन / आधुनिक है जो विद्यार्थियों के लिये अत्यन्त उपयोगी है । शिक्षक के अभाव में स्वयं पढ़कर भी पाठक/ विद्यार्थी इससे लाभान्वित हो सकते हैं। इस अर्थ में 'अपभ्रंश रचना सौरभ' 'अपभ्रंश शिक्षक' सिद्ध होगी ।
इसके रचनाकार हैं डॉ. कमलचन्द सोगाणी, सेवानिवृत्त प्रोफेसर, दर्शनविभाग, सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर । भाषा / भाषिक अर्थ / भाषिक संरचना का दर्शन से एक सूक्ष्म और अव्यक्त सम्बन्ध होता है, शायद यही कारण है कि डॉ. सोगाणी दर्शन के प्रोफेसर होते हुये भी अपभ्रंश - प्राकृत आदि प्राचीन भाषाओं से जुड़े हुए हैं। अपभ्रंश-प्राकृत जगत् में आपका नाम खूब जाना-माना है। 'अपभ्रंश रचना सौरभ' के लिए हम उनके अत्यन्त आभारी हैं । पुस्तक प्रकाशन में सहयोगी कार्यकर्ता एवं मुद्रण के लिये मदरलैण्ड प्रिंटिंग प्रेस, जयपुर धन्यवादार्ह है।
ऋषभ निर्वाण दिवस
माघ कृष्ण चतुर्दशी, वि. सं. 2047
जयपुर
iv
ज्ञानचन्द्र खिन्दूका संयोजक
जैनविद्या संस्थान समिति
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #16
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रस्तावना
(प्रथम संस्करण)
अपभ्रंश भारतीय आर्य-परिवार की एक सुसमृद्ध लोक भाषा रही है। इसका प्रकाशित-अप्रकाशित विपुल साहित्य इसके विकास की गौरवमयी गाथा कहने में समर्थ है। स्वयंभू, पुष्पदन्त, धनपाल, वीर, नयनन्दि, कनकामर, जोइन्दु, रामसिंह, हेमचन्द्र, रइधू आदि अपभ्रंश भाषा के अमर साहित्यकार हैं। कोई भी देश व संस्कृति इनके आधार से अपना मस्तक ऊँचा रख सकती है। विद्वानों का मत है "अपभ्रंश ही वह आर्य भाषा है जो ईसा की लगभग सातवीं शताब्दी से तेरहवीं शताब्दी तक सम्पूर्ण उत्तर-भारत की सामान्य लोक-जीवन के परस्पर भावविनिमय और व्यवहार की बोली रही है।'' यह निर्विवाद तथ्य है कि अपभ्रंश की कोख से ही सिन्धी, पंजाबी, मराठी, गुजराती, राजस्थानी, बिहारी, उड़िया, बंगला, असमी, पश्चिमी हिन्दी, पूर्वी हिन्दी आदि आधुनिक भारतीय भाषाओं का जन्म हुआ है। इस तरह से राष्ट्र भाषा का मूल स्रोत होने का गौरव अपभ्रंश भाषा को प्राप्त है। यह कहना युक्तिसंगत है - "अपभ्रंश और हिन्दी का सम्बन्ध अत्यन्त गहरा और सुदृढ़ है, वे एक-दूसरे की पूरक हैं। हिन्दी को ठीक से समझने के लिए अपभ्रंश की जानकारी आवश्यक ही नहीं अनिवार्य है।'' डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी के अनुसार - “हिन्दी साहित्य में (अपभ्रंश की) प्राय: पूरी परम्पराएँ ज्यों की त्यों सुरक्षित हैं।' अत: राष्ट्रभाषा हिन्दीसहित आधुनिक भारतीय भाषाओं के सन्दर्भ में यह कहना कि अपभ्रंश का अध्ययन राष्ट्रीय चेतना और एकता का पोषक है, उचित प्रतीत होता है।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि अपभ्रंश भाषा को सीखना-समझना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इसी बात को ध्यान में रखकर “अपभ्रंश रचना सौरभ" नामक पुस्तक की रचना की गई है। इस पुस्तक के पाठों को ऐसे क्रम में रखा गया है जिससे पाठक सहज-सुचारु रूप से अपभ्रंश भाषा के व्याकरण को सीख
1. हिन्दी के विकास में अपभ्रंश का योग, डॉ. नामवरसिंह, पृष्ठ 287। 2. अपभ्रंश और अवहट्ट : एक अन्तर्यात्रा, डॉ. शम्भूनाथ पाण्डेय, 1979, पृ. 9। अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #17
--------------------------------------------------------------------------
________________
सकें और अपभ्रंश में रचना करने का अभ्यास भी कर सकें। अपभ्रंश में वाक्यरचना के द्वारा ही अपभ्रंश का व्याकरण सिखाने का प्रयास किया गया है।
हेमचन्द्राचार्य के अपभ्रंश-व्याकरण के सूत्रों का आधार प्रस्तुत पुस्तक के पाठों में लिया गया है। व्याकरण के जो पक्ष इसमें छूट गए हैं उनको 'प्रौढ़ अपभ्रंश रचना सौरभ' में दिया जाएगा। पाठकों के सुझाव मेरे बहुत काम के होंगे।
आभार
व्याकरण-रचना से सम्बन्धित पुस्तकों का प्रूफ-संशोधन का कार्य अत्यन्त कठिन होता है। किन्तु मुझे हर्ष है कि अपभ्रंश के मेरे विद्यार्थियों-सुश्री प्रीति जैन और सुश्री सीमा बत्रा ने, जिन्होंने अकादमी की 'अपभ्रंश डिप्लोमा' परीक्षा उत्तीर्ण की है और जो अकादमी में कार्यरत हैं, इस कठिन कार्य को सहर्ष और रुचिपूर्वक सम्पन्न किया है। अत: मैं उनका आभारी हूँ। मैं सुश्री प्रीति जैन का विशेष रूप से आभारी हूँ जिन्होंने इस पुस्तक में महत्त्वपूर्ण सुधार सुझाए और विद्यार्थियों के दृष्टिकोण से प्रस्तुतिकरण को संशोधित किया।
मेरी धर्मपत्नी श्रीमती कमलादेवी सोगाणी ने इस पुस्तक को लिखने में जो सहयोग दिया है उसके लिए आभार व्यक्त करता हूँ।
इस पुस्तक को प्रकाशित करने के लिए जैनविद्या संस्थान समिति एवं उसके संयोजक श्री ज्ञानचन्द्र जी खिन्दूका ने जो व्यवस्था की है उसके लिए आभार प्रकट करता हूँ।
कमलचन्द सोगाणी
परामर्शदाता अपभ्रंश साहित्य अकादमी जयपुर।
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #18
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रारम्भिक
अपभ्रंश भाषा के सम्बन्ध में निम्नलिखित सामान्य जानकारी आवश्यक है -
अपभ्रंश की वर्णमाला
स्वर - अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ओ। व्यंजन - क, ख, ग, घ, ङ।
च, छ, ज, झ, ञ। ट, ठ, ड, ढ, ण। त, थ, द, ध, न। प, फ, ब, भ, म। य, र, ल, व।
स, ह।
यहाँ ध्यान देने योग्य है कि असंयुक्त अवस्था में ङ और ञ का प्रयोग अपभ्रंश में नहीं पाया जाता है। हेमचन्द्र कृत अपभ्रंश व्याकरण में ङ और ञ का संयुक्त प्रयोग उपलब्ध है। न का भी संयुक्त और असंयुक्त अवस्था में प्रयोग देखा जाता है। ङ, ञ, न के स्थान पर संयुक्त अवस्था में अनुस्वार भी विकल्प से होता है। वचन
अपभ्रंश भाषा में दो ही वचन होते हैं- एकवचन और बहुवचन । लिंग
अपभ्रंश भाषा में तीन लिंग होते हैं- पुल्लिंग, नपुंसकलिंग और स्त्रीलिंग। पुरुष
अपभ्रंश भाषा में तीन पुरुष होते हैं- उत्तम पुरुष, मध्यम पुरुष, अन्य पुरुष।
अपभ्रंश रचना सौरभ
vii
Page #19
--------------------------------------------------------------------------
________________
कारक
क्रिया
काल
अपभ्रंश भाषा में आठ कारक होते हैं -
विभक्ति
vil
1.
कारक
कर्त्ता
कर्म
अपभ्रंश भाषा में भूतकाल प्रयोग बहुलता से किया गया है।
शब्द
प्रथमा
2.
द्वितीया
3.
तृतीया
करण
4.
चतुर्थी
संप्रदान
5.
पंचमी
अपादान
6.
षष्ठी
सम्बन्ध
का, के, की
7.
सप्तमी
अधिकरण
में, पर
8.
सम्बोधन
सम्बोधन
हे, अरे, भो
अपभ्रंश में चतुर्थी और षष्ठी विभक्ति के लिये एक ही प्रत्यय है ।
कारक -1
ने
अपभ्रंश भाषा में दो प्रकार की क्रियाएँ होती हैं- सकर्मक और अकर्मक ।
अपभ्रंश भाषा में चार प्रकार के काल वर्णित हैं -
1.
वर्तमानकाल
3. भविष्यत्काल
5-चिह्न
को
से, द्वारा आदि
के लिए
से
अपभ्रंश में चार प्रकार के शब्द पाए जाते हैं
1. अकारान्त
2. आकारान्त
3. इकारान्त (इ, ई )
4. उकारान्त (उ, ऊ)
2. भूतकाल
4. विधि एवं आज्ञा
को व्यक्त करने के लिये भूतकालिक कृदन्त का
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #20
--------------------------------------------------------------------------
________________
हउं = मैं अकर्मक क्रियाएँ
1.
2.
3.
4.
हस = हँसना,
रूस = रूसना,
जीव जीना
=
a. a.
हउं
हउं
हउं
ह
ह
पाठ 1
सर्वनाम
सय = सोना,
लुक्क = छिपना,
अपभ्रंश रचना सौरभ
वर्तमानकाल
सउं / समि / हसामि / हसेमि सयउं/सयमि/सयामि/सयेमि णच्चउं/ णच्चमि /णच्चामि / णच्चेमि
रूसउं / रूसमि/रूसामि / रूसेमि लुक्कउं/लुक्कमि/लुक्कामि / लुक्केमि
जग्गउं / जग्गमि / जग्गामि / जग्गेमि
जीवउं / जीवम / जीवामि / जीवेमि
णच्च = नाचना
जग्ग = जागना
=
-
=
=
उत्तम पुरुष एकवचन
मैं हँसता हूँ / हँसती हूँ।
--
मैं सोता हूँ / सोती हूँ।
मैं नाचता हूँ / नाचती हूँ।
मैं रूसता हूँ / रूसती हूँ।
=
मैं छिपता हूँ / छिपती हूँ।
=
मैं जागता हूँ / जागती हूँ।
हउं = मैं, उत्तम पुरुष एकवचन (पुरुषवाचक सर्वनाम ) ।
वर्तमानकाल के उत्तम पुरुष एकवचन में उं और मि प्रत्यय क्रिया में लगते हैं । 'मि' प्रत्यय लगने पर क्रिया के अन्त्य 'अ' का आ और ए भी हो जाता है।
उपर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं। अकर्मक क्रिया वह होती है जिसका कोई कर्म नहीं होता और जिसका प्रभाव कर्ता पर ही पड़ता है। 'मैं हँसता हूँ' इसमें हँसने का प्रभाव 'मैं' पर ही पड़ता है। इस वाक्य में हँसने की क्रिया का कोई कर्म नहीं है।
मैं जीता हूँ / जीती हूँ।
उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं। इनमें कर्ता 'हउं' के अनुसार क्रियाओं के पुरुष और वचन हैं। यहाँ 'हउं' उत्तम पुरुष एकवचन में है, तो क्रियाएँ भी उत्तम पुरुष एकवचन में हैं।
1
Page #21
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 2
सर्वनाम
मध्यम पुरुष एकवचन
तुहुं = तुम अकर्मक क्रियाएँ
हस = हँसना, रूस = रूसना, जीव = जीना
णच्च = नाचना
सय = सोना, लुक्क = छिपना,
जम्ग = जागना
वर्तमानकाल
.
..
..
हसहि/हससि/हससे/हसेसि = तुम हँसते हो/हँसती हो। -सयहि/सयसि/सयसे/सयेसि = तुम सोते हो/सोती हो।
णच्चहि/णच्चसि/णच्चसे/णच्चेसि = तुम नाचते हो/नाचती हो। रूसहि/रूससि/रूससे/रूसेसि = तुम रूसते हो/रूसती हो। लुक्कहि/लुक्कसि/लुक्कसे/लुक्केसि = तुम छिपते हो/छिपती हो। जग्गहि/जग्गसि/जग्गसे/जग्गेसि __= तुम जागते हो/जागती हो। जीवहि/जीवसि/जीवसे/जीवेसि = तुम जीते हो/जीती हो।
Co..
तुहुं = तुम, मध्यम पुरुष एकवचन (पुरुषवाचक सर्वनाम)। वर्तमानकाल के मध्यम पुरुष एकवचन में 'हि', 'सि' और 'से' प्रत्यय क्रिया में लगते हैं। 'सि' प्रत्यय लगने पर क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ए' भी हो जाता है। यदि क्रिया के अन्त में 'अ' न हो, तो 'से' प्रत्यय नहीं लगता है (देखें पाठ - 4) उपर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं। उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं। इनमें कर्ता 'तुहुं' के अनुसार क्रियाओं के पुरुष
और वचन हैं। यहाँ 'तुहुं' मध्यम पुरुष एकवचन में है, तो क्रियाएँ भी मध्यम पुरुष एकवचन में हैं।
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #22
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 3
अन्य पुरुष एकवचन
बन
सर्वनाम सो = वह (पुरुष), सा = वह (स्त्री) अकर्मक क्रियाएँ
हस = हँसना, सय = सोना, रूस = रूसना, लुक्क = छिपना, जीव = जीना
वर्तमानकाल
णच्च = नाचना जग्ग = जागना
+ = Photo
_E_ER FEEEEEEE
हसइ/हसेइ/हसए हसइ/हसेइ/हसए सयइ/सयेइ/सयए सयइ/सयेइ/सयए णच्चइ/णच्चेइ/णच्चए णच्चइ/णच्चेइ/णच्चए रूसइ/रूसेइ/रूसए रूसइ/रूसेइ/ल्सए लुक्कइ/लुक्केइ/लुक्कए लुक्कइ/लुक्केइ/लुक्कए जग्गइ/जग्गेइ/जग्गए जग्गइ/जग्गेइ/जग्गए जीवइ/जीवेइ/जीवए जीवइ/जीवेइ जीवए
= वह हँसता है। = वह हँसती है।
वह सोता है। = वह सोती है। = वह नाचता है।
वह नाचती है। = वह रूसता है। = वह रूसती है। = वह छिपता है। = वह छिपती है। = वह जागता है। = वह जागती है। = वह जीता है। = वह जीती है।
सो = वह (पुरुष), सा = वह (स्त्री), अन्य पुरुष एकवचन (पुरुषवाचक सर्वनाम) (क) वर्तमान काल के अन्य पुरुष एकवचन में 'इ' और 'ए' प्रत्यय क्रिया में लगते
हैं। 'इ' प्रत्यय लगने पर क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ए' भी हो जाता है। (ख) 'ए' प्रत्यय अकारान्त क्रियाओं में ही लगता है। आकारान्त, ओकारान्त, उकारान्त
क्रियाओं में 'ए' प्रत्यय नहीं लगेगा। ठा = ठहरना, हो = होना, हु = होना आदि
क्रियाओं में 'ए' प्रत्यय वर्तमान काल में नहीं लगेगा (देखें पाठ 4)। उपर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं। उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं।
3.
अपभ्रंश रचना सौरभ
सौरभ
Page #23
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 4
सर्वनाम-एकवचन
आकारान्त आदि क्रियाएँ तुहं = तुम, सो = वह (पुरुष),
सा = वह (स्त्री)
हडं = मैं, अकर्मक क्रियाएँ ठा = ठहरना,
हा = नहाना,
हो = होना
AAKAARAYAN
ठाउं/ठामि एहाउं/ण्हामि होउं/होमि ठाहि/ठासि ण्हाहि/हासि होहि/होसि ठाइ
वर्तमानकाल
= मैं ठहरता हूँ / ठहरती हूँ। = मैं नहाता हूँ / नहाती हूँ। = मैं होता हूँ / होती हूँ। = तुम ठहरते हो / ठहरती हो। = तुम नहाते हो / नहाती हो। = तुम होते हो / होती हो। = वह ठहरता है। = वह ठहरती है।
वह नहाता है। = वह नहाती है। = वह होता है। = वह होती है।
ठाइ
पहाइ
ण्हाइ
हो
- |
हउं = मैं, उत्तम पुरुष एकवचन तुहुं = तुम, मध्यम पुरुष एकवचन पुरुष वाचक सर्वनाम सो = वह (पुरुष)
एकवचन अन्य पुरुष एकवचन सा = वह (स्त्री) 5 अकारान्त क्रियाओं को छोड़कर आकारान्त, ओकारान्त आदि क्रियाओं के मध्यम पुरुष एकवचन में 'से' प्रत्यय नहीं लगता है तथा इसी प्रकार अन्य पुरुष एकवचन में 'ए' प्रत्यय नहीं लगता है। ये दोनों प्रत्यय (से और ए) केवल वर्तमानकाल की अकारान्त क्रियाओं में ही लगते हैं। उपर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं। उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं।
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #24
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 5 सर्वनाम
माह । - हम दोनों/हम सब
उत्तम पुरुष बहुवचन
णच्च = नाचना
जग्ग = जागना
अकर्मक क्रियाएँ
हस = हँसना, सय = सोना, रूस = रूसना, लुक्क = छिपना, जीव = जीना,
वर्तमानकाल एहसहुं/हसमो/हसमु/हसम
अम्हई
सयहुं/सयमो/सयमु/सयम
अम्हइं"
म्ह
णच्चहुं/णच्चमो/णच्चमु/णच्चम
अम्हइं
रूसहुं/रूसमो/रूसमु/रूसम अम्हइं। B.लुक्कहुं/लुक्कमो/लुक्कमु/लुक्कम
हम दोनों हँसते हैं/हँसती हैं। हम सब हँसते हैं/हँसती हैं। हम दोनों सोते हैं/सोती हैं। हम सब सोते हैं/सोती हैं। _ हम दोनों नाचते हैं/नाचती हैं।
हम सब नाचते हैं/नाचती हैं। हम दोनों रूसते हैं/रूसती हैं।
हम सब रूसते हैं/रूसती हैं। - हम दोनों छिपते हैं/छिपती हैं।
हम सब छिपते हैं/छिपती हैं। _ हम दोनों जागते हैं/जागती हैं।
हम सब जागते हैं/जागती हैं। - हम दोनों जीते हैं/जीती हैं। हम सब जीते हैं/जीती हैं।
अम्हई
अम्ह जग्गहुं/जग्गमो/जग्गमु/जग्गम अम्हई) अम्हे जीवहं / जीवमो/जीवमु/जीवम अम्हई।
अम्हे ।
.
हम दोनों/हम सब,
अम्हह। - हम दोनों/
उत्तम पुरुष बहुवचन (पुरुषवाचक
सर्वनाम)
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #25
--------------------------------------------------------------------------
________________
2.
वर्तमानकाल के उत्तम पुरुष बहुवचन में 'हु', मो, मु और म प्रत्यय क्रिया में लगते हैं। 'मो', 'मु' और 'म' प्रत्यय लगने पर अकारान्त क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'आ', 'इ' और 'ए' भी हो जाता है। अत: हसामो, हसामु, हसाम/हसिमो, हसिमु, हसिम/हसेमो, हसेमु, हसेम रूप और बनेंगे। इसी प्रकार अन्य अकारान्त क्रियाओं के साथ भी समझ लेना चाहिये। उपर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं। उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं। यहाँ कर्ता उत्तम पुरुष बहुवचन में है। अत: क्रिया भी उत्तम पुरुष बहुवचन की ही लगी है।
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #26
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 6 सर्वनाम
तुम्ह ।। = तुम दोनों/तुम सब
मध्यम पुरुष बहुवचन
णच्च = नाचना
अकर्मक क्रियाएँ
हस = हँसना, रूस = रूसना, जीव = जीना,
सय = सोना, लुक्क = छिपना,
जग्ग= जागना
वर्तमानकाल
तुम्ह
हसह हसह/हसित्था
हसहु/हसह/हसिया
तुम दोनों हँसते हो/हँसती हो। तुम सब हँसते हो/हँसती हो।
तुम्हडं
तुम्हे ।
तासयहु/सयह/सयित्था
तुम दोनों सोते हो/सोती हो। तुम सब सोते हो/सोती हो।
तुम्हे )
णच्चहु/णच्चह/णच्चित्था
तुम दोनों नाचतेहो/नाचती हो। तुम सब नाचते हो/नाचती हो।
रूसहु/रूसह/रूसित्था
तुम दोनों रूसते हो/रूसती हो। तुम सब रूसते हो/रुसती हो।
तुम दोनों छिपतेहो/छिपती हो। तुम सब छिपते हो छिपती हो।
तुम्हइंका /लुक्कह/लुक्कित्था
तुम्ह । जग्गह जग्गह/जग्मित्था
- तुम दोनों जागतेहो/जागती हो। तुम सब जागते हो/जागती हो।
तुम्हइं)
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #27
--------------------------------------------------------------------------
________________
जीवहु/जीवह/जीवित्था
तुम दोनों जीते हो/जीती हो तुम सब जीते हो/जीती हो
तुम्हइंजीवहु/जीवन
तुम्हे ।
- तुम दोनों/तुम सब, मध्यम पुरुष बहुवचन (पुरुषवाचक सर्वनाम) वर्तमानकाल के मध्यम पुरुष बहुवचन में 'हु', 'ह' और 'इत्था' प्रत्यय क्रिया में लगते हैं। उपर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं। उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं। यहाँ कर्ता मध्यम पुरुष बहुवचन में है अत: क्रिया भी मध्यम पुरुष बहुवचन की लगी है।
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #28
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ7 सर्वनाम
अन्य पुरुष बहुवचन
ते वे दोनों (पुरुष)/वे सब (पुरुष) ता = वे दोनों (स्त्रियाँ)/वे सब (स्त्रियाँ) अकर्मक क्रियाएँ
हस = हँसना, सय = सोना, रूस = रूसना, लुक्क = छिपना, जीव = जीना,
वर्तमानकाल
णच्च% नाचना जग्ग = जागना
ते
हसहिं/हसन्ति/हसन्ते/हसिरे
वे दोनों हँसते हैं। - वे सब हँसते हैं।
ता
हसहि/हसन्ति/हसन्ते/हसिरे
वे दोनों हँसती हैं। वे सब हँसती हैं।
ते
सयहिं/सयन्ति/सयन्ते/सयिरे
वे दोनों सोते हैं। वे सब सोते हैं।
ता
सयहिं/सयन्ति/सयन्ते/सयिरे
वे दोनों सोती हैं। वे सब सोती हैं।
ते
णच्चहिं/णच्चन्ति/णच्चन्ते/णच्चिरे
वे दोनों नाचते हैं। वे सब नाचते हैं।
ता
णच्चहिं/णच्चन्ति/णच्चन्ते/णच्चिरे
वेदोनों नाचती हैं। - वे सब नाचती हैं।
ते
रूसहि/रूसन्ति/रूसन्ते/रूसिरे
वे दोनों रूसते हैं। वे सब रूसते हैं।
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #29
--------------------------------------------------------------------------
________________
1.
2.
3.
4.
10
ता
ते
ता
ते
ता
ता
रूसहिं / रूसन्ति / रूसन्ते/रूसिरे
लुक्कहिं / लुक्कन्ति/लुक्कन्ते / लुक्किरे
लुक्कहिं/लुक्कन्ति/लुक्कन्ते / लुक्किरे
जग्गहिं / जग्गन्ति / जग्गन्ते / जगिरे
जग्गहिं/ जग्गन्ति / जग्गन्ते / जग्गरे
जीवहिं / जीवन्ति / जीवन्ते / जीविरे
जीवहिं / जीवन्ति / जीवन्ते / जीविरे
ते = वे दोनों (पुरुष) / वे सब (पुरुष)
ता = वे दोनों }
=
tl
=
=
=
=
=
=
वे दोनों रूसती हैं। वे सब रूसती हैं ।
वे दोनों छिपते हैं।
वे सब छिपते हैं।
वे दोनों छिपती हैं।
वे सब छिपती हैं।
वे दोनों जागते हैं।
सब जागते हैं।
वे दोनों जागती हैं।
सब जागती हैं।
वे
वे दोनों जीते हैं।
वे
सब जीते हैं।
= अन्य पुरुष बहुवचन ( पुरुषवाचक सर्वनाम )
वर्तमानकाल के अन्य पुरुष बहुवचन में 'हिं', 'न्ति', 'न्ते' और 'इरे' प्रत्यय क्रिया में लगते हैं ।
वे दोनों जीती हैं।
वे सब जीती हैं।
उपर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं।
उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं । यहाँ कर्ता अन्य पुरुष बहुवचन में है । अत: क्रिया भी अन्य पुरुष बहुवचन की लगी है।
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #30
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 8 सर्वनाम-बहुवचन
आकारान्त आदि क्रियाएँ अम्हे । हम दोनों अम्हइं) हम सब ते = वे दोनों (पुरुष)/वे सब (पुरुष) ता = वे दोनों (स्त्रियाँ)/वे सब (स्त्रियाँ) अकर्मक क्रियाएँ ठा = ठहरना,
ण्हा = नहाना,
तुम्हे । तुम दोनों तुम्हइं) तुम सब
हो = होना
वर्तमानकाल
अम्हें
ठाहुं/ठामो/ठामु/ठाम
=
हम दोनों ठहरते हैं/ठहरती हैं। हम सब ठहरते हैं/ठहरती हैं।
अम्हे ।
हाहुं/हामो/ग्रहामु/ण्हाम
_ हम दोनों नहाते हैं/नहाती हैं। -
हम सब नहाते हैं/नहाती हैं।
अम्हे ।
होहुं/होमो/होमु/होम
हम दोनों होते हैं होती हैं। हम सब होते हैं/होती हैं।
तुम्हे ) तुम्हई । ठाहु/ठाह/ठाइत्था
तुम दोनों ठरहते हो/ठहरती हो। तुम सब ठहरते हो/ठहरती हो।
तुम्हे ।
. हाहु/हाह/ग्रहाइत्था
__ तुम दोनों नहाते हो/नहाती हो।
तुम सब नहाते हो/नहाती हो।
तुम्हे ।
तुम्हई । होहु/होह/होइया
__तुम दोनों होते हो/होती हो।
तुम सब होते हो/होती हो।
ते ठाहिं/ठान्ति-ठन्ति/ठान्ते-ठन्ते/ठाइरे = अपभ्रंश रचना सौरभ
वे दोनों ठहरते हैं। वे सब ठहरते हैं।
Page #31
--------------------------------------------------------------------------
________________
F
ठाहिं/ठान्ति-ठन्ति/ठान्ते-ठन्ते/ठाइरे
to
ण्हाहिं/ हान्ति-हन्ति/व्हान्ते- हन्ते/हाइरे =
F
ण्हाहिं/हान्ति-हन्ति/व्हान्ते- हन्ते/पहाइरे =
वे दोनों ठहरती हैं। वे सब ठहरती हैं। वे दोनों नहाते हैं। वे सब नहाते हैं। वे दोनों नहाती हैं। वे सब नहाती हैं। वे दोनों होते हैं। वे सब होते हैं। वे दोनों होती हैं। वे सब होती हैं।
to
होहिं/होन्ति/होन्ते/होइरे
ता
होहिं/होन्ति/होन्ते/होइरे
1.
अम्हे ।
__ = हम दोनों/हम सब,
उत्तम पुरुष बहुवचन,
अम्हइं।
पुरुषवाचक सर्वनाम बहुवचन
तुम्हे ।
2 = तुम दोनों/तुम सब,
मध्यम पुरुष बहुवचन,
ते = वे दोनों (पुरुष)/वे सब (पुरुष) अन्य पुरुष ता = वे दोनों (स्त्रियाँ)/वे सब (स्त्रियाँ) बहुवचन वर्तमानकाल के प्रत्यय (पाठ 1 से 8 तक)
एकवचन बहुवचन उत्तम पुरुष उं, मि हुं, मो, मु, म मध्यम पुरुष हि, सि, से हु, ह, इत्था अन्य पुरुष इ, ए
हिं, न्ति, न्ते, इरे उपर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं। उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं। इनमें कर्ता के अनुसार क्रियाओं के पुरुष और वचन हैं। संयुक्ताक्षर के पहिले यदि दीर्घ स्वर हो तो वह ह्रस्व हो जाता है - ठान्ति-ठन्ति, हान्ति-हन्ति आदि। अपभ्रंश में 'आ', 'ई' और 'ऊ' दीर्घस्वर होते हैं तथा 'अ', 'इ', 'उ', 'ए' और 'ओ' ह्रस्व स्वर माने जाते हैं।
12
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #32
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ9
सर्वनाम
हउं = मैं
उत्तम पुरुष एकवचन
णच्च = नाचना
अकर्मक क्रियाएँ
हस = हँसना, रूस = रूसना, जीव = जीना
सय = सोना, लुक्क = छिपना,
जग्ग = जागना
विधि एवं आज्ञा
. . .
= मैं = मैं सोचूँ।
हसमु/हसेमु सयमु/सयेमु णच्चमु/णच्चे रूसमु/रूसेमु लुक्कमु/लुक्केमु जग्गमु/जग्गेमु जीवमु/जीवेमु
- मैं
al. al. a. a.
= मैं छिपूँ। = मैं जानूँ। = मैं जीयूँ।
2.
हउं = मैं, उत्तम पुरुष एकवचन (पुरुषवाचक सर्वनाम)। विधि एवं आज्ञा के उत्तम पुरुष एकवचन में 'मु' प्रत्यय क्रिया में लगता है। 'मु' प्रत्यय लगने पर क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ए' भी हो जाता है। जब किसी कार्य के लिए प्रार्थना की जाती है तथा आज्ञा एवं उपदेश दिया जाता है तो इन भावों को प्रकट करने के लिए विधि एवं आज्ञा के प्रत्यय क्रिया में लगा दिये जाते हैं। उपर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं। अकर्मक क्रिया वह होती है जिसका कोई कर्म नहीं होता है और जिसका प्रभाव कर्ता पर ही पड़ता है। 'मैं हँसूं' में 'हँसूं' का पूरा सम्बन्ध 'मैं' से ही है, इसमें 'हँसूं' का कोई कर्म नहीं है। उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं। इनमें कर्ता 'हउं' के अनुसार क्रियाओं के पुरुष और वचन हैं। यहाँ 'हउं' उत्तम पुरुष एकवचन में है, तो क्रियाएँ भी उत्तम पुरुष एकवचन में हैं।
अपभ्रंश रचना सौरभ
13
Page #33
--------------------------------------------------------------------------
________________
तुहुँ = तुम अकर्मक क्रियाएँ
1.
2.
14
हस = हँसना,
रूस =
रूसना,
जीव = जीना
तुहुं
तुहुं
तुहुं
तुहं
तुहुं
तुहुं
तुहुं
पाठ 10
सर्वनाम
सय = सोना,
लुक्क = छिपना,
विधि एवं आज्ञा
हसि / हसे / हसु / हस
हसहि / हसेहि / हससु / हसेसु
सयि/सये/सयु / सय सयहि/सयेहि/सयसु/सयेसु
च्चि / णच्चे /णच्चु / णच्च
णच्चहि/णच्चेहि/णच्चसु / णच्चेसु
रूसि/रूसे/रूसु/रूस रूसहि/रूसेहि/रूससु/रूसेसु
लुविक/लुक्के/लुक्कु/लुक्क लुक्कहि/लुक्केहि/लुक्कसु/लुक्केसु
जग्ग / जग्गे / जग्गु / जग्ग
जग्गहि / जग्गेहि / जग्गसु/जग्गेसु
जीवि / जीवे / जीवु / जीव
जीवहि / जीवेहि / जीवसु / जीवेसु
णच्च = नाचना
जग्ग = जागना
= तुम हँसो |
=
मध्यम पुरुष एकवचन
=
तुम सोवो ।
=
- तुम रूसो ।
=
तुम नाचो ।
तुम छिपो ।
- तुम जागो ।
तुम जीवो
तुहुं = तुम, मध्यम पुरुष एकवचन (पुरुषवाचक सर्वनाम) ।
विधि एवं आज्ञा के मध्यम पुरुष एकवचन में 'इ', 'ए', 'उ', '0', 'हि' और 'सु'
1
अपभ्रंश रचना सौरभ
|
Page #34
--------------------------------------------------------------------------
________________
uw
प्रत्यय क्रिया में लगते हैं। 'हि' और 'सु' प्रत्यय लगने पर क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ए' भी हो जाता है। शून्य प्रत्यय अकारान्त क्रियाओं में ही लगता है। आकारान्त, ओकारान्त, इकारान्त आदि क्रियाओं में शून्य प्रत्यय विधि एवं आज्ञा में नहीं लगेगा। ठा = ठहरना, हो = होना, हु = होना आदि क्रियाओं में शून्य प्रत्यय नहीं होता है। उपर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं। उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं। इनमें कर्ता 'तुहूं' के अनुसार क्रियाओं के पुरुष और वचन हैं। यहाँ 'तुहं' मध्यम पुरुष एकवचन में है तो क्रियाएँ भी मध्यम पुरुष एकवचन में हैं।
अपभ्रंश रचना सौरभ
15
Page #35
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 11
सर्वनाम
अन्य पुरुष एकवचन
सो = वह (पुरुष) सा = वह (स्त्री) अकर्मक क्रियाएँ
हस = हँसना, रूस = रूसना, जीव = जीना
णच्च-नाचना
सय = सोना, लुक्क = छिपना,
जग्ग = जागना
विधि एवं आज्ञा
'E EEEEEEEEEEEEE
हसउ/हसेउ
= वह हँसे। हसउ/हसेउ
= वह हँसे। सयउ/सयेउ
= वह सोए। सयउ/सयेउ
= वह सोए। णच्चउ/णच्चेउ
= वह नाचे। णच्चउ/णच्चेउ
= वह नाचे। रूसउ/रूसेउ
= वह रूसे। रूसउ/रूसेउ
रूसे। लुक्कउ/लुक्केउ
= वह छिपे। लुक्कउ/लुक्केउ
= वह छिपे। जग्गउ/जग्गेउ
= वह जागे। जग्गउ/जग्गेउ
वह जागे। जीवउ/जीवेउ
= वह जीवे। जीवउ/जीवेउ
= वह जीवे। सो = वह (पुरुष), सा = वह (स्त्री), अन्य पुरुष एकवचन (पुरुषवाचक सर्वनाम)। विधि एवं आज्ञा के अन्य पुरुष एकवचन में 'उ' प्रत्यय क्रिया में लगता है। 'उ' प्रत्यय लगने पर क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ए' भी हो जाता है। उपर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं। उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं।
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #36
--------------------------------------------------------------------------
________________
हउं = मैं
तुहुं = तुम अकर्मक क्रियाएँ
1.
2.
3.
ठा = ठहरना,
हउं
ह
हउं
तुहुं
तुहुं
तुहुं
सो
सा
सो
ठामु
भ्रंश रचना सौरभ
हामु
होम्
पाठ 12 सर्वनाम एकवचन
आकारान्त आदि क्रियाएँ
पहा = नहाना,
विधि एवं आज्ञा
सा
सो
सा
हउं = मैं, उत्तम पुरुष एकवचन तुहुं = तुम, मध्यम पुरुष एकवचन
सो
ठाइ /ठाए/ ठाउ / ठाहि/ ठासु ण्हाइ/ण्हाए/ण्हाउ/ण्हाहि / हासु
होइ / होए / होउ / होहि / होसु
ठाउ
ठाउ
ण्हाउ
ण्हाउ
होउ
होउ
सो = वह (पुरुष)
सा = वह (स्त्री)
हो = होना
=
=
=
=
=
=
मैं ठहरूँ ।
मैं नहाऊँ ।
मैं होऊँ ।
तुम ठहरो ।
तुम नहावो ।
तुम होवो |
= वह ठहरे।
= वह ठहरे।
= वह नहावे ।
= वह नहावे ।
= वह होवे |
= वह होवे ।
= वह (पुरुष) अन्य पुरुष एकवचन
सा = वह (स्त्री) अन्य पुरुष एकवचन
अकारान्त क्रियाओं को छोड़कर आकारान्त, ओकारान्त आदि क्रियाओं के मध्यम
पुरुष एकवचन में '0' प्रत्यय नहीं लगता है ।
उपर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं। उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं।
पुरुषवाचक सर्वनाम
एकवचन
17
Page #37
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 13
सर्वनाम
अम्हे । हम दोनों/हम सब
उत्तम पुरुष बहुवचन
अम्हई । अकर्मक क्रियाएँ
हस = हँसना, रूस = रूसना, जीव = जीना
सय = सोना, लुक्क = छिपना,
णच्च = नाचना जग्ग = जागना
विधि एवं आज्ञा
अम्हे
अम्हडं
हसमो/हसामो/हसेमो
अम्हे ।
। सयमो/सयामो/सयेमो
अम्हे
। णच्चमो/णच्चामो/णच्चेमो
अम्हे ।
हम दोनों हँसें।
हम सब हँसें। ___ हम दोनों सोवें। हम सब सोवें। हम दोनों नाचें। हम सब नाचें। हम दोनों रूसें। हम सब रूसें। हम दोनों छिपें। हम सब छिपें। हम दोनों जागें। हम सब जागें। हम दोनों जीवें। हम सब जीवें।
अम्हडं। रूसमो/रूसामो/रूसेमो अम्हे ।
लुक्कमो/लुक्कामो/लुक्केमो
अम्हे
अ
जग्गमो/जग्गामो/जग्गेमो
अम्हे ।
आदरं
जीवमो/जीवामो/जीवेमो
अम्हे ।।
= हम दोनों/हम सब, उत्तम पुरुष बहुवचन (पुरुषवाचक सर्वनाम)।
18
अपभ्रंश रचना सौ
Page #38
--------------------------------------------------------------------------
________________
विधि एवं आज्ञा के उत्तम पुरुष बहुवचन में 'मो' प्रत्यय क्रिया में लगता है। 'मो' प्रत्यय लगने पर क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'आ' और 'ए' भी हो जाता है। उपर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं। उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं। इनमें कर्ता अम्हे/अम्हइं के अनुसार क्रियाओं के पुरुष और वचन हैं। यहाँ अम्हे/अम्हई उत्तम पुरुष बहुवचन में है, तो क्रियाएँ भी उत्तम पुरुष बहुवचन में हैं।
19
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #39
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 14
सर्वनाम
तुम्हे ।
मध्यम पुरुष बहुवच
तुम दोनों/तम
सब
तुम्हई।
णच्च = नाचना
अकर्मक क्रियाएँ
हस = हँसना, रूस = रूसना, जीव = जीना
सय = सोना, लुक्क = छिपना,
जग्ग = जागना
विधि एवं आज्ञा
तुम्हे ।
तुम दोनों हँसो। तुम सब हँसो।
तुम्हई । हसह/हसेह
तुम दोनों सोवो। तुम सब सोवो।
तुम्हई । सयह/सयेह
तुम दोनों नाचो। तुम सब नाचो।
तुम्हई । णच्चह/णच्चेह
EEEEEEEEEEE
तुम दोनों रूसो। तुम सब रूसो।
तुम्हई । रूसह/रूसेह
तुम दोनों छिपो। तुम सब छिपो।
तुम्हई । लुक्कह/लुक्केह
तुम्हे । तुम्हई । जग्गह/जग्गेह
तुम दोनों जागो। तुम सब जागो।
20
अपभ्रंश रचना सौर
Page #40
--------------------------------------------------------------------------
________________
तुम्हे । जीवह/जीवेह
तुम दोनों जीवो। तुम सब जीवो।
तुम्हई ।
तुम्हे ।
= तुम दोनों/तुम सब, मध्यम पुरुष बहुवचन (पुरुषवाचक सर्वनाम)। विधि एवं आज्ञा के मध्यम पुरुष बहुवचन में 'ह' प्रत्यय क्रिया में लगता है। 'ह' प्रत्यय लगने पर क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ए' भी हो जाता है। उपर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं। उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं। इनमें कर्ता तुम्हे/तुम्हइं के अनुसार क्रियाओं के पुरुष और वचन हैं। यहाँ कर्ता तुम्हे/तुम्हई मध्यम पुरुष बहुवचन में है तो क्रियाएँ भी मध्यम पुरुष बहुवचन में लगी हैं।
अपभ्रंश रचना सौरभ
21
Page #41
--------------------------------------------------------------------------
________________
अन्य पुरुष बहुवचन.
पाठ 15
सर्वनाम ते = वे दोनों (पुरुष)/वे सब (पुरुष) ता = वे दोनों (स्त्रियाँ)/वे सब (स्त्रियाँ) अकर्मक क्रियाएँ
हस = हँसना, सय = सोना, रूस = रूसना, लुक्क = छिपना, जीव = जीना
णच्च%3D नाचना
जग्ग = जागना
विधि एवं आज्ञा
हसन्तु/हसेन्तु
नए
हसन्तु/हसेन्तु
सयन्तु/सयेन्तु
ता
सयन्तु/सयेन्तु
वे दोनों हँसें। वे सब हँसें। वे दोनों हँसें। वे सब हँसें। वे दोनों सोवें। वे सब सोवें। वे दोनों सोवें। वे सब सोवें। वे दोनों नाचें। वे सब नाचें। वे दोनों नाचें। वे सब नाचें। वे दोनों रूसें। वे सब रूसें।
णच्चन्तु/णच्चेन्तु
णच्चन्तु/णच्चेन्तु
रूसन्तु/रूसेन्तु
22
अपभ्रंश रचना सौरभ ।
Page #42
--------------------------------------------------------------------------
________________
ता
रूसन्तु/रूसेन्तु
लुक्कन्तु/लुक्केन्तु
C
F
लुक्कन्तु/लुक्केन्तु
ett
जग्गन्तु/जग्गेन्तु
वे दोनों रूसें। वे सब रूसें। वे दोनों छिपे। वे सब छिपें। वे दोनों छिपें। वे सब छिपें। वे दोनों जानें। वे सब जागें। वे दोनों जागें। वे सब जागें। वे दोनों जीवें। वे सब जीवें। वे दोनों जीवें। वे सब जीवें।
जग्गन्तु/जग्गेन्तु
E
itt
जीवन्तु/जीवेन्तु
ता
जीवन्तु/जीवेन्तु
1.
ते = वे दोनों (पुरुष)/वे सब (पुरुष) । अन्य पुरुष बहुवचन ता = वे दोनों (स्त्रियाँ)/वे सब (स्त्रियाँ) [ (पुरुषवाचक सर्वनाम) विधि एवं आज्ञा के अन्य पुरुष बहुवचन में 'न्तु' प्रत्यय क्रिया में लगता है। ‘न्तु' प्रत्यय लगने पर क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ए' भी हो जाता है। उपर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं। उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं।
4.
अपभ्रंश रचना सौरभ
23
Page #43
--------------------------------------------------------------------------
________________
अम्हे ।- हम दोनों हम सब
पाठ 16 सर्वनाम-बहुवचन आकारान्त आदि क्रियाएँ
तुम्हे । अम्हइं)
- तुम दोनों/तुम सब ते = वे दोनों (पुरुष)/वे सब (पुरुष) ता = वे दोनों (स्त्रियाँ)/वे सब (स्त्रियाँ) अकर्मक क्रियाएँ ठा = ठहरना, हा = नहाना,
हो = होना विधि एवं आज्ञा
अम्हे ।
अम्हई । ठामो
अम्हे । हामो
अम्हइं J
अम्हे । होमो
अम्हई ।
तुम्हे
हम दोनों ठहरें। हम सब ठहरें। हम दोनों नहावें। हम सब नहावें। हम दोनों होवें। हम सब होवें। तुम दोनों ठहरो। तुम सब ठहरो। तुम दोनों नहावो। तुम सब नहावो। तुम दोनों होवो। तुम सब होवो। वे दोनों ठहरें। वे सब ठहरें।
तुम्हई । ठाह
तुम्हे ।
तुम्हे । होह
तुम्हई । हाह
ते
ठान्तु-ठन्तु
24
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #44
--------------------------------------------------------------------------
________________
ता
ठान्त-ठन्तु
ण्हान्तु- हन्तु
ण्हान्तु- हन्तु
वे दानों ठहरें। वे सब ठहरें। वे दोनों नहावें। वे सब नहावें। वे दोनों नहावें। वे सब नहावें। वे दोनों होवें। वे सब होवें। वे दोनों होवें। वे सब होवें।
होन्तु
ता
होन्तु
1.
अम्हे
हों हम सब.
- हम दोनों/हम सब,
उत्तम पुरुष बहुवचन, | पुरुषवाचक
सर्वनाम मध्यम पुरुष बहुवचन, | बहुवचन
तुम्हे ।
= तुम दोनों/तुम सब,
ते = वे दोनों (पुरुष)/वे सब (पुरुष) । अन्य पुरुष ता = वे दोनों (स्त्रियाँ)/वे सब (स्त्रियाँ) J बहुवचन विधि एवं आज्ञा के प्रत्यय (पाठ 9 से 16 तक)
एकवचन बहुवचन उत्तम पुरुष मध्यम पुरुष इ, ए, उ,0
हि, सु अन्य पुरुष उपर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं। उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं। इनमें कर्ता के अनुसार क्रियाओं के पुरुष और वचन हैं। संयुक्ताक्षर से पहले यदि दीर्घ स्वर हो तो वह ह्रस्व हो जाता है। जैसे - ठान्ति-ठन्ति, हान्ति-हन्ति आदि। अपभ्रंश में 'आ', 'ई' और 'ऊ' दीर्घ
स्वर होते हैं तथा 'अ', 'इ', 'उ', 'ए' और 'ओ' ह्रस्व स्वर माने जाते हैं। अपभ्रंश रचना सौरभ
25
Page #45
--------------------------------------------------------------------------
________________
1.
2.
3.
26
अभ्यास
निम्नलिखित अकर्मक क्रियाओं को कर्तृवाच्य में प्रयोग कीजिये । यह प्रयोग वर्तमानकाल तथा विधि एवं आज्ञा में हो । कर्ता के रूप में पुरुषवाचक सर्वनामों को रखें -
लज्ज = शरमाना,
रोना,
रुव
डर
कलह
थक्क
- अच्छ
पड
उट्ठ
तडफड
=
= डरना,
= कलह करना,
= थकना,
. बैठना,
II
पाठ 17
अकर्मक क्रियाएँ
=
=3
गिरना,
= उठना,
= छटपटाना,
=
भिड
भिड़ना
उच्छल = उछलना
उज्जम = प्रयास करना
= खुश होना
काँपना
उल्लस
कंप
मर
खेल
कुल्ल
जुज्झ
मुच्छ
=
-
= मरना
= खेलना
कूदना
= लड़ना
घुम घूमना, निम्नलिखित वाक्यों की अपभ्रंश में रचना कीजिये -
(1) हम छिपते हैं। (2) हम छिपें। (3) वह डरता है। (4) वह डरे । (5) तुम उठते हो। (6) वे सब उठें। (7) मैं खेलता हूँ। (8) तुम सब खेलो। (9) वह खुश होती है । (10) वे खुश हों। (11) वह बैठता है । (12) वह बैठे । (13) तुम बैठो । (14) वे रोते हैं। (15) हम उछलते हैं। (16) मैं भिड़ता हूँ । (17) तुम छटपटाते हो। (18) तुम कूदो। (19) हम प्रयास करें। (20) तुम घूमो। (21) हम काँपते हैं। (22) तुम काँपो। (23) वह लड़े। (24) वे लड़ें। (25) तुम नहाते हो। (26) तुम नहावो। (27) वे ठहरें। (28) तुम थको । ( 29 ) तुम सब मूच्छित होते हो । (30) हम ठहरते हैं। (31) वे सब खेलती हैं। (32) मैं खेलती हूँ। (33) तुम उठती हो । ( 34 ) वह काँपती है । (35) हम बैठती हैं ।
निम्नलिखित वर्तमानकालिक वाक्यों को शुद्ध कीजिये (क्रिया का शुद्ध रूप लगाइये)
=
=
मूच्छित होना
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #46
--------------------------------------------------------------------------
________________
लज्जहु।
(1) हउं रूसहिं। (2) तुहुं हसउं। (3) सो ठामि। (4) अम्हे हसह। (5) तुम्हे हसहिं। (6) ते ठामो। (7) ता ठाइ।
(8) तुम्हई थक्कहि। (9) ते मरइ। (10) हउं लज्जमो। (11) तुहं पडित्था। (12) सो खेलन्ति। (13) अम्हइं उट्ठसे। (14) सा घुमन्ति। (15) तुहं ठाइ। निम्नलिखित वर्तमानकालिक वाक्यों को शुद्ध कीजिये (पुरुषवाचक सर्वनाम का शुद्ध रूप लिखें)(1) हउं लज्जहुं। (2) अम्हे रुवउं। (3) तुम्हे स्वमि। (4) सो डरहु। (5) ता पडमो। (6) तुम्हइं उट्ठइ। (7) अम्हई उच्छलहि। (8) हउं कंपित्था। (9) तुहुं मरन्ते। (10) तुम्हे मरइ। (11) तुम्हे ठासि। (12) हठं कुल्लहिं। (13) तुम्हे ण्हामु। (14) अम्हे होहु। (15) तुहुं मुच्छेइ । निम्नलिखित विधि एवं आज्ञावाचक वाक्यों को शुद्ध कीजिये (क्रिया का शुद्ध रूप लगाइये) - (1) हउं पडउ। (2) तुहुं रुवमो। (3) सो थक्कि । (4) अम्हे हसह। (5) तुम्हइं डरन्तु। (6) अम्हई कंपह। (7) सा घुमि। (8) ता खेलमो। (9) ते मुरहि। (10) हउं उल्लस। (11) तुहुं कुल्लेइ। (12) तुम्हे मुच्छसु। (13) ते भिडउ। (14) अम्हइं जुज्झेन्तु। (15) तुम्हई ठामो। निम्नलिखित विधि एवं आज्ञावाचक वाक्यों को शुद्ध कीजिये (पुरुषवाचक सर्वनाम का शुद्ध रूप लिखें) - (1) हउं लज्जमो। (2) तुहुं रूवउ। (3) अम्हे हसेह। (4) तुम्हे डरामो। (5) तुम्हई लुक्केमो। (6) ते अच्छउ। (7) सो उट्ठह। (8) ता होह। (9) अम्हई ठन्तु। (10) तुम्हे हस। (11) अम्हे पडसु। (12) सो होउ। (13) ते होमो। (14) हउँ लुक्कि । (15) हउं तडफड।
अपभ्रंश रचना सौरभ
27
Page #47
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 18
सर्वनाम
उत्तम पुरुष एकवचन
हउं = मैं अकर्मक क्रियाएँ
हस = हँसना, रूस = रूसना, जीव = जीना
णच्च = नाचना
सय = सोना, लुक्क = छिपना,
जग्ग = जागना
भविष्यत्काल
Fal. a.a.all...
हसेसउं/हसेसमि/हसिहिउं/हसिहिमि = मैं हँसूंगा/मैं हँसूंगी। सयेसउं/सयेसमि/सयिहिउं/सयिहिमि = मैं सोनूंगा/मैं सोचूँगी। णच्चेसउं/णच्चेसमि/णच्चिहिउं/णच्चिहिमि = मैं नाचूँगा/मैं नाचूँगी। रूसेसउं/रूसेसमि/रूसिहिउं/रूसिहिमि = मैं रूसूंगा/मैं रूसूंगी। लुक्केसउं/लुक्केसमि/लुक्किहिउं/लुक्किहिमि = मैं छिपूँगा/मैं छिपूँगी। जग्गेसउं/जग्गेसमि/जग्गिहिउं/जग्गिहिमि = मैं जागूंगा/मैं जानूंगी। जीवेसउं/जीवेसमि/जीविहिउं/जीविहिमि = मैं जीयूँगा/मैं जीयूँगी।
हउं = मैं, उत्तम पुरुष एकवचन (पुरुषवाचक सर्वनाम)। भविष्यत्काल के उत्तम पुरुष एकवचन में 'स' और 'हि' प्रत्यय क्रिया में जोड़ने के पश्चात् वर्तमानकाल के उत्तम पुरुष एकवचन के प्रत्यय 'उं' और 'मि' जोड़ दिये जाते हैं। 'स' प्रत्यय लगने पर क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ए' हो जाता है और 'हि' प्रत्यय जोड़ने पर क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'इ' हो जाता है। भविष्यत्काल बनाने के लिये वर्तमानकालिक प्रत्ययों का प्रयोग उपर्युक्त प्रकार से किया जाता है। उपर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं। उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं। इनमें कर्ता 'हउं' के अनुसार क्रियाओं के पुरुष
और वचन हैं। यहाँ 'हां' उत्तम पुरुष एकवचन में है, तो क्रियाएँ भी उत्तम पुरुष एकवचन में हैं।
28
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #48
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 19 सर्वनाम
मध्यम पुरुष एकवचन
तुहुं = तुम अकर्मक क्रियाएँ
हस = हँसना, रूस = रूसना, जीव = जीना
सय = सोना, लुक्क = छिपना,
णच्च = नाचना जग्ग = जागना
भविष्यत्काल
हसेसहि/हसेससि/हसिहिहि/हसिहिसि = तुम हँसोगे। सयेसहि/सयेससि/सयिहिहि/सयिहिसि = तुम सोवोगे। णच्चेसहि/णच्चेससि/गच्चिहिहि/णच्चिहिसि
___= तुम नाचोगे। रूसेसहि/रूसेससि/रूसिहिहि/रूसिहिसि = तुम रूसोगे। लुक्केसहि/लुक्केससि/लुक्किहिहि/लुक्किहिसि = तुम छिपोगे। जग्गेसहि/जग्गेससि/जग्गिहिहि/जग्गिहिसि = तुम जागोगे। जीवेसहि/जीवेससि/जीविहिहि/जीविहिसि तुम जीवोगे।
तुहुं = तुम, मध्यम पुरुष एकवचन (पुरुषवाचक सर्वनाम)। भविष्यत्काल के मध्यम पुरुष एकवचन में 'स' और 'हि' प्रत्यय क्रिया में जोड़ने के पश्चात् वर्तमानकाल के मध्यम पुरुष एकवचन के प्रत्यय 'हि' और 'सि' जोड़ दिये जाते हैं। 'से' प्रत्यय जोड़कर भी रूप बना लेने चाहिये (हसेससे, हसिहिसे)। 'स' प्रत्यय लगने पर क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ए' हो जाता है और 'हि' प्रत्यय जोड़ने पर क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'इ' हो जाता है। भविष्यत्काल बनाने के लिये वर्तमानकालिक प्रत्ययों का प्रयोग उपर्युक्त प्रकार से किया जाता है। उपर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं। उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं।
अपभ्रंश रचना सौरभ
29
Page #49
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 20 सर्वनाम
अन्य पुरुष एकवचन
सो = वह (पुरुष), सा = वह (स्त्री), अकर्मक क्रियाएँ
हस = हँसना, रूस = रूसना, जीव = जीना
णच्च = नाचना
सय = सोना, लुक्क = छिपना,
जग्ग = जागना
भविष्यत्काल
E_E E
F EEEEEEEE
हसेसइ/हसेसए/हसिहिइ/हसिहिए हसेसइ/हसेसए/हसिहिइ/हसिहिए सयेसइ/सयेसए/सयिहिइ/सयिहिए सयेसइ/सयेसए/सयिहिइ/सयिहिए णच्चेसइ/णच्चेसए/णच्चिहिइ/णच्चिहिए णच्चेसइ/णच्चेसए/णच्चिहिइ/णच्चिहिए रूसेसइ/रूसेसए/रूसिहिइ/रूसिहिए रूसेसइ/रूसेसए/रूसिहिइ/रूसिहिए लुक्केसइ/लुक्केसए/लुक्किहिइ/लुक्किहिए लुक्केसइ/लुक्केसए/लुक्किहिइ/लुक्किहिए जग्गेसइ/जग्गेसए/जग्गिहिइ/जग्गिहिए जग्गेसइ/जग्गेसए/जग्गिहिइ/जग्गिहिए जीवेसइ/जीवेसए/जीविहिइ/जीविहिए जीवेसइ/जीवेसए/जीविहिइ/जीविहिए
= वह हँसेगा।
हँसेगी। = वह सोवेगा। = वह सोवेगी। = वह नाचेगा। = वह नाचेगी। = वह रूसेगा। = वह रूसेगी। = वह छिपेगा। = वह छिपेगी। = वह जागेगा। = वह जागेगी। = वह जीवेगा। = वह जीवेगी।
30
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #50
--------------------------------------------------------------------------
________________
सो = वह (पुरुष), सा = वह (स्त्री), अन्य पुरुष एकवचन (पुरुषवाचक सर्वनाम)। भविष्यत्काल के अन्य पुरुष एकवचन में 'स' और 'हि' प्रत्यय क्रिया में जोड़ने के पश्चात् वर्तमानकाल के अन्य पुरुष एकवचन के 'इ' और 'ए' प्रत्यय क्रिया में लगते हैं। 'स' प्रत्यय लगने पर क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ए' हो जाता है और 'हि' प्रत्यय जोड़ने पर क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'इ' हो जाता है। भविष्यत्काल बनाने के लिये वर्तमानकालिक प्रत्ययों का प्रयोग उपर्युक्त प्रकार से किया जाता है। उपर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं। उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं।
अपभ्रंश रचना सौरभ
31
Page #51
--------------------------------------------------------------------------
________________
हउं = मैं,
तुहुं = तुम अकर्मक क्रियाएँ
1.
2.
3.
4.
32
ठा = ठहरना,
ह
a. a.
तुहुँ
सो
सा
सो
सा
सो
सा
पाठ 21 सर्वनाम - एकवचन
आकारान्त आदि क्रियाएँ
हउं = मैं,
तुहुं = तुम,
पहा = नहाना,
भविष्यत्काल
ठासउं / ठासमि/ठाहिउं / ठाहिमि हासउं / ण्हासमि/ ण्हाहिउं / हाहिमि होसउं / होम / होहि ं / होहिमि ठासहि/ ठाससि / ठाहिहि / ठाहिसि
हासहि / ण्हाससि / हाहिहि / ण्हाहिसि होसहि/ होससि / होहिहि / होहिसि
ठास / ठाहि
ठासइ / ठाहि
हास / हाि
हासइ/हाि
होस / होहि
होस / होहि
उत्तम पुरुष एकवचन मध्यमपुरुष एकवचन
उपर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं।
उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं।
=
सो
=
= वह (पुरुष),
सा = वह (स्त्री),
मैं ठहरूँगा / मैं ठहरूँगी ।
मैं नहाऊँगा / मैं नहाऊँगी ।
मैं होलूँगा / मैं होलूँगी।
= तुम ठहरोगे / तुम ठहरोगी ।
= तुम नहावोगे / तुम नहावोगी ।
= तुम होवोगे / तुम होवोगी।
= वह ठहरेगा |
हो = होना
सो
अन्य पुरुष एकवचन
सा = वह (स्त्री)
भविष्यत्काल के तीनों पुरुषों के एकवचन में 'स' और 'हि' प्रत्यय क्रिया में जोड़ने के पश्चात् वर्तमानकाल के प्रत्यय उपर्युक्त प्रकार से जोड़ दिये जाते हैं ।
= वह ठहरेगी।
= वह नहावेगा |
= वह नहावेगी |
= वह होगा ।
= वह होगी ।
पुरुष वाचक सर्वनाम
एकवचन
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #52
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 22
सर्वनाम
अम्हे ।
.
हम दोनों/हम सब
उत्तम पुरुष बहुवचन
अम्हई
णच्च = नाचना
अकर्मक क्रियाएँ
हस = हँसना, रूस = रूसना, जीव = जीना
सय = सोना, लुक्क = छिपना,
जग्ग = जागना
भविष्यत्काल
अम्हे । हसेसहुं/हसेसमो/हसेसमु/हसेसम/ हम दोनों हँसेंगे/हँसेंगी। अम्हई हसिहिहुं/हसिहिमो/हसिहिमु/हसिहिम हम सब हँसेंगे/हँसेंगी। अम्हे । सयेसहुं/सयेसमो/सयेसमु/सयेसम/ हम दोनों सोयेंगे/सोयेंगी। अम्हइं सयिहिहुं/सयिहिमो/सयिहिमु/सयिहिम हम सब सोयेंगे/सोयेंगी।
णच्चेसहुं/णच्चेसमो/णच्चेसमु/ अम्हे णच्चेसम |
= हम दोनों नाचेंगे/नाचेंगी। अम्हई । णच्चिहिहुं/णच्चिहिमो/णच्चिहिमु/ णच्चिहिम/
= हम सब नाचेंगे/नाचेंगी। अम्हे । रूसेसहुं/रूसेसमो/सेसमु/रूसेसम हम दोनों रूसेंगे/रूसेंगी। अम्हई रूसिहिहुं/रूसिहिमो/रूसिहिमु/रूसिहिम हम सब रूसेंगे/रूसेंगी।
लुक्केसहुं/लुक्केसमो/लुक्केसमु/ अम्हे लुक्केसम/
- हम दोनों छिपेंगे/छिपेंगी। अम्हई [ लुक्किहिहुं/लुक्किहिमो/लुक्किहिमु/ लुक्किहिम
= हम सब छिपेंगे/छिपेंगी। अम्हे । जग्गेसहुं/जग्गेसमो/जग्गेसमु/जग्गेसम हम दोनों जागेंगे/जागेंगी। अम्हई J जग्गिहिहुं/जग्गिहिमो/जग्गिहिमु/जग्गिहिम हम सब जागेंगे/जागेंगी।
अपभ्रंश रचना सौरभ
33
Page #53
--------------------------------------------------------------------------
________________
अम्हे । जीवेसहुं/जीवेसमो/जीवेसमु/जीवेसम अम्हई J जीविहिहुं/जीविहिमो/जीविहिमु/जीविहिम
हम दोनों जीवेंगे/जीवेंगी। हम सब जीवेंगे/जीवेंगी।
अम्हे । अम्हई
= हम दोनों/हम सब, उत्तम पुरुष बहुवचन (पुरुषवाचक सर्वनाम)। भविष्यत्काल के उत्तम पुरुष बहुवचन में 'स' और 'हि' प्रत्यय क्रिया में जोड़ने के पश्चात् वर्तमानकाल के उत्तम पुरुष बहुवचन के हुँ', 'मो', 'मु' और 'म' प्रत्यय क्रिया में लगते हैं। 'स' प्रत्यय लगने पर क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ए' हो जाता है और 'हि' प्रत्यय जोड़ने पर क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'इ' हो जाता है। भविष्यत्काल बनाने के लिये वर्तमानकालिक प्रत्ययों का प्रयोग उपर्युक्त प्रकार से किया जाता है। उपर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं। उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं। यहाँ कर्ता अम्हे/अम्हइं उत्तम पुरुष बहुवचन में है, तो क्रिया भी उत्तम पुरुष बहुवचन की लगी है।
34
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #54
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 23 सर्वनाम
तुम्हे | - तम दोनों/तुम सब
मध्यम पुरुष बहुवचन
तुम्हइं
णच्च - नाचना
जग्ग - जागना
अकर्मक क्रियाएँ
हस = हँसना, सय = सोना, रूस = रूसना, लुक्क = छिपना, जीव = जीना
भविष्यत्काल तुम्हे । हसेसहु/हसेसह/हसेसइत्था/ तुम्हई J हसिहिहु/हसिहिह/हसिहित्या तुम्हे । सयेसहु/सयेसह/सयेसइत्था/ तुम्हइं J सयिहिहु/सयिहिह/सयिहित्था तुम्हे । णच्चेसहु/णच्चेसह/णच्चेसइत्था/ तुम्हई J णच्चिहिहु/णच्चिहिह/णच्चिहित्था तुम्हे । रूसेसहु/रूसेसह/रूसेसइत्था/ तुम्हई J रूसिहिहु/रूसिहिह/रूसिहित्था तुम्हे । लुक्केसहु/लुक्केसह/लुक्केसइत्था/ तुम्हई । लुक्किहिहु/लुक्किहिह/लुक्किहित्था तुम्हे । जग्गेसहु/जग्गेसह/जग्गेसइत्था/ तुम्हई J जग्गिहिहु/जग्गिहिह/जग्गिहित्था तुम्हे । जीवेसहु/जीवेसह/जीवेसइत्था/ तुम्हई ) जीविहिहु/जीविहिह/जीविहित्था
तुम दोनों हँसोगे/हँसोगी। तुम सब हँसोगे/हँसोगी।
तुम दोनों सोवोगे/सोवोगी। - तुम सब सोवोगे/सोवोगी। तुम दोनों नाचोगे/नाचोगी। तुम सब नाचोगे/नाचोगी। तुम दोनों रूसोगे/रूसोगी। तुम सब रूसोगे/रूसोगी। तुम दोनों छिपोगे/छिपोगी। तुम सब छिपोगे/छिपोगी। तुम दोनों जागोगे/जागोगी। तुम सब जागोगे/जागोगी। तुम दोनों जीवोगे/जीवोगी। तुम सब जीवोगे/जीवोगी।
शा
तुम्हे ।
} = तुम दोनों/तुम सब, मध्यम पुरुष बहुवचन (पुरुषवाचक सर्वनाम)।
अपभ्रंश रचना सौरभ
35
Page #55
--------------------------------------------------------------------------
________________
2.
3.
4.
36
भविष्यत्काल के मध्यम पुरुष बहुवचन में 'स' और 'हि' प्रत्यय क्रिया में जोड़ने के पश्चात् वर्तमानकाल के मध्यम पुरुष बहुवचन के 'हु', 'ह' और 'इत्था' प्रत्यय क्रिया
लगते हैं । 'स' प्रत्यय लगने पर क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ए' हो जाता है और 'हि' प्रत्यय जोड़ने पर क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'इ' हो जाता है। इत्था प्रत्यय के योग में स+इत्था = सइत्था, हि + इत्था हित्था रूप बनते हैं। भविष्यत्काल बनाने के लिये वर्तमानकालिक प्रत्ययों का प्रयोग उपर्युक्त प्रकार से किया जाता है।
उपर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं।
में
उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं। यहाँ कर्त्ता तुम्हे /तुम्हइं मध्यम पुरुष बहुवचन हैं, तो क्रिया भी मध्यम पुरुष बहुवचन की लगी है।
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #56
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 24
जग्ग = जागना
सर्वनाम ते = वे दोनों (पुरुष)/वे सब (पुरुष)
अन्य पुरुष बहुवचन ता = वे दोनों (स्त्रियाँ)/वे सब (स्त्रियाँ) अकर्मक क्रियाएँ हस = हँसना, सय = सोना,
णच्च = नाचना रूस = रूसना, लुक्क = छिपना, जीव = जीना
__ भविष्यत्काल हसेसहिं/हसेसन्ति/हसेसन्ते/हसेसइरे वे दोनों हँसेंगे। हसिहिहिं/हसिहिन्ति/हसिहिन्ते/हसिहिइरे वे सब हँसेंगे। हसेसहि/हसेसन्ति/हसेसन्ते/हसेसइरे _वे दोनों हँसेंगी। हसिहिहिं/हसिहिन्ति/हसिहिन्ते/हसिहिइरे वे सब हँसेंगी। सयेसहिं/सयेसन्ति/सयेसन्ते/सयेसइरे वे दोनों सोयेंगे। सयिहिहिं/सयिहिन्ति/सयिहिन्ते/सयिहिइरे वे सब सोयेंगे। सयेसहिं/सयेसन्ति/सयेसन्ते/सयेसइरे वे दोनों सोयेंगी। सयिहिहिं/सयिहिन्ति/सयिहिन्ते/सयिहिइरे वे सब सोयेंगी। णच्चेसहिं/णच्चेसन्ति/णच्चेसन्ते/णच्चेसइरे वे दोनों नाचेंगे। णच्चिहिहिं/णच्चिहिन्ति/णच्चिहिन्ते/णच्चिहिइरे वे सब नाचेंगे। णच्चेसहिं/णच्चेसन्ति/णच्चेसन्ते/णच्चेसइरे वे दोनों नाचेंगी। णच्चिहिहिं/च्चिहिन्ति/णच्चिहिन्ते/णच्चिहिइरे वे सब नाचेंगी। रुसेसहिं/रूसेसन्ति/रूसेसन्ते/रूसेसइरे वे दोनों रूसेंगे। रूसिहिहिं/रूसिहिन्ति/रूसिहिन्ते/रूसिहिइरे वे सब रूसेंगे। रूसेसहि/रूसेसन्ति/रूसेसन्ते/रूसेसइरे ___ वे दोनों रूसेंगी। रूसिहिहिं/रूसिहिन्ति/रूसिहिन्ते/रूसिहिइरे वे सब रूसेंगी।
%3D
"
र
अपभ्रंश रचना सौरभ
37
Page #57
--------------------------------------------------------------------------
________________
लुक्केसहिं/लुक्केसन्ति/लुक्केसन्ते/लुक्केसइरे _वे दोनों छिपेंगे। लुक्किहिहिं/लुक्किहिन्ति/तुक्किहिन्ते/लुक्किहिइरे वे सब छिपेंगे। लुक्केसहिं/लुक्केसन्ति/लुक्केसन्ते/लुक्केसइरे _ वे दोनों छिपेंगी। लुक्किहिहिं/लुक्किहिन्ति/लुक्किहिन्ते/लुक्किहिइरे वे सब छिपेंगी। जग्गेसहिं/जग्गेसन्ति/जग्गेसन्ते/जग्गेसइरे _वे दोनों जागेंगे। जग्गिहिहिं/जग्गिहिन्ति/जग्गिहिन्ते/जग्गिहिइरे वे सब जागेंगे। जग्गेसहिं/जग्गेसन्ति/जग्गेसन्ते/जग्गेसइरे वे दोनों जागेंगी। जग्गिहिहिं/जग्गिहिन्ति/जग्गिहिन्ते/जग्गिहिइरे वे सब जागेंगी। जीवेसहिं/जीवेसन्ति/जीवेसन्ते/जीवेसइरे वे दोनों जीवेंगे। जीविहिहिं/जीविहिन्ति/जीविहिन्ते/जीविहिइरे वे सब जीवेंगे। जीवेसहिं/जीवेसन्ति/जीवेसन्ते/जीवेसइरे वे दोनों जीवेंगी। जीविहिहिं/जीविहिन्ति/जीविहिन्ते/जीविहिइरे वे सब जीवेंगी।
ते = वे दोनों (पुरुष)/वे सब (पुरुष) । अन्य पुरुष बहुवचन ता = वे दोनों (स्त्रियाँ)/वे सब (स्त्रियाँ) J(पुरुषवाचक सर्वनाम) भविष्यत्काल के अन्य पुरुष बहुवचन में 'स' और 'हि' प्रत्यय क्रिया में जोड़ने के पश्चात् वर्तमानकाल के अन्य पुरुष बहुवचन के 'हिं', 'न्ति' ('न्ते' और 'इरे') प्रत्यय क्रिया में लगते हैं। 'स' प्रत्यय लगने पर क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ए' हो जाता है और 'हि' प्रत्यय जोड़ने पर क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'इ' हो जाता है। भविष्यत्काल बनाने के लिये वर्तमानकालिक प्रत्ययों का प्रयोग उपर्युक्त प्रकार से किया जाता है। उपर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं। उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं। यहाँ कर्ता ते/ता अन्य पुरुष बहुवचन में है, अत: क्रिया भी अन्य पुरुष बहुवचन की लगी है।
38
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #58
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 25 सर्वनाम-बहुवचन आकारान्त आदि क्रियाएँ
अम्हे ।..
तुम्हे । तुम्हई। तुम दोनों/तुम सब
- हम दोनों/हम सब अम्हई। ते = वे दोनों (पुरुष)/वे सब (पुरुष) ता = वे दोनों (स्त्रियाँ)/वे सब (स्त्रियाँ) अकर्मक क्रियाएँ ठा = ठहरना, ण्हा = नहाना,
भविष्यत्काल अम्हे । ठासहुं/ठासमो/ठासमु/ठासम अम्हई J ठाहिहुं/ठाहिमो/ठाहिमु/ठाहिम
हो = होना
हम दोनों ठहरेंगे/ठहरेंगी। हम सब ठहरेंगे/ठहरेंगी।
अम्हे । हासहुं/हासमो/हासमु/ग्रहासम अम्हइं । हाहिहुं/पहाहिमो/ण्हाहिमु/हाहिम
हम दोनों नहायेंगे/नहावेंगी। हम सब नहावेंगे/नहावेंगी।
अम्हे । होसहुं/होसमो/होसमु/होसम अम्हई । होहिहुं/होहिमो/होहिमु/होहिम
हम दोनों होंगे/होंगी। हम सब होंगे/होंगी।
तुम्हे । ठासहु/ठासह/ठासइत्था तुम्हई । ठाहिहु/ठाहिह/ठाहित्था
तुम दोनों ठहरोगे/ठहरोगी। तुम सब ठहरोगे/ठहरोगी।
तुम्हे हासहु/हासह/ग्रहासइत्था तुम्हई । पहाहिहु/ग्रहाहिह/ग्रहाहित्था
तुम दोनों नहावोगे/नहावोगी। तुम सब नहावोगे/नहावोगी।
तुम्हे । होसहु/होसह/होसइत्था
तुम्हई । होहिहु/होहिह/होहित्था अपभ्रंश रचना सौरभ
_ तुम दोनों होंगे/होंगी। तुम सब होंगे/होंगी।
39
Page #59
--------------------------------------------------------------------------
________________
to
ठासहिं/ठासन्ति/ठासन्ते/ठासइरे ठाहिहिं/ठाहिन्ति/ठाहिन्ते/ठाहिइरे ठासहिं/ठासन्ति/ठासन्ते/ठासइरे ठाहिहिं/ठाहिन्ति/ठाहिन्ते/ठाहिइरे
वे दोनों ठहरेंगे। वे सब ठहरेंगे। वे दोनों ठहरेंगी। वे सब ठहरेंगी।
EE
to
पहासहिं/ग्रहासन्ति/हासन्ते/ग्रहासइरे पहाहिहिं/ हाहिन्ति/हाहिन्ते/ हाहिइरे एहासहि/ग्रहासन्ति/व्हासन्ते/ग्रहासइरे ण्हाहिहिं/ण्हाहिन्ति/हाहिन्ते/पहाहिइरे
वे दोनों नहावेंगे। वे सब नहावेंगे। वे दोनों नहावेंगी। वे सब नहावेंगी।
E
to
होसहिं/होसन्ति/होसन्ते/होसइरे होहिहिं/होहिन्ति/होहिन्ते/होहिइरे होसहिं/होसन्ति/होसन्ते/होसइरे होहिहिं/होहिन्ति/होहिन्ते/होहिइरे
वे दोनों होंगे। वे सब होंगे। वे दोनों होंगी। वे सब होंगी।
E
अम्हे ।
दोनों हम सब,
उत्तम पुरुष बहुवचन,
अम्हई
तुम्हे ।
= तुम दोनों/तुम सब,
मध्यम पुरुष बहुवचन,
पुरुषवाचक सर्वनाम बहुवचन
तुम्हई
ते = वे दोनों (पुरुष)/वे सब (पुरुष) । अन्य पुरुष ता = वे दोनों (स्त्रियाँ)/वे सब (स्त्रियाँ) J बहुवचन भविष्यत्काल के प्रत्यय (पाठ 17 से 25 तक) एकवचन
बहुवचन उत्तम पुरुष सउं, हिउँ सहुं, हिहुं समि, हिमि समो, हिमो
समु, हिमु सम, हिम
40
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #60
--------------------------------------------------------------------------
________________
मध्यम पुरुष सहि, हिहि सहु, हिहु
ससि, हिसि सह, हिह
ससे, हिसे सइत्था, हित्था (हि+इत्था) अन्य पुरुष सइ, हिइ सहिं, हिहिं . सए, हिए सन्ति, हिन्ति
सन्ते, हिन्ते
सइरे, हिइरे उपर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं। उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं। इनमें कर्ता के अनुसार क्रियाओं के पुरुष और वचन हैं।
अपभ्रंश रचना सौरभ
41
Page #61
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 26
अभ्यास
2.
निम्नलिखित वाक्यों की अपभ्रंश में रचना कीजिये - (1) हम शरमायेंगे। (2) तुम रोवोगे। (3) हम सब उछलेंगे। (4) मैं खेलूँगा। (5) वह कूदेगा। (6) वे लड़ेंगे। (7) तुम सब मूछित होवोगे। (8) हम दोनों घूमेंगे। (9) तुम दोनों बैठोगे। (10) हम उठेगे। (11) वे छटपटाएँगे। (12) तुम थकोगे। (13) वह खुश होगा। (14) हम सब प्रयास करेंगे। (15) तुम मरोगे। (16) तुम दोनों कलह करोगे। (17) वह रोवेगा। (18) मैं गिरूँगा। (19) वह उठेगी। (20) तुम खेलोगी। (21) हम सब भिड़ेंगे। (22) हम छटपटाएँगे। (23) तुम सब कूदोगे। (24) वे घूमेंगे। (25) तुम सब उछलोगे। (26) हम डरेंगे। (27) वे खुश होंगे। निम्नलिखित वाक्यों की भी अपभ्रंश में रचना कीजिये - (1) मैं काँपता हूँ। (2) तुम लड़ो। (3) वह थकेगा। (4) हम सब डरते हैं। (5) मैं कूदूं। (6) तुम दोनों उछलोगे। (7) तुम गिरते हो। (8) वह भिड़े। (9) मैं उठूगा । (10) तुम प्रयास करते हो। (11) वे बैठे। (12) हम खुश होंगे। (13) मैं रोता हूँ। (14) तुम उठो। (15) वे मरेंगी। (16) वह कूदता है। (17) हम उछलें। (18) मैं घूमूंगा। (19) वे थकते हैं। (20) हम खेलें। (21) वह काँपेगी। (22) वह डरती है। (23) वह लड़े। (24) वे शरमायेंगी। (25) वे उठती हैं। (26) तुम दोनों प्रयास करो। (27) तुम सब कूदोगे। निम्नलिखित वाक्यों में रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिये (सर्वनाम लिखिये) - (1) .......... थक्कमि । (2) ......... डरहुं। (3) ......... पडमो। (4) .........उट्ठि। (5) .......... कलहहि । (6) ...........घुमह । (7) .......... अच्छे। (8) .......... मुच्छ। (9) ........... भिडमु । (10) .......... कुल्लउ। (11) .......... जुज्झउं। (12) .......... उज्जमन्तु। (13) .......... कंपसि। (14) .......... उल्लसेइ। (15) .......... उच्छलहु। (16) .......... हसेसमि। (17) .......... उठेसहुँ । (18) .......... कुल्लेसहु। (19) .......... मरेसहिं। (20) .......... मरेसन्ति । (21) .......... खेलिहिसि। (22) .......... लज्जिहिउं। (23) .......... रुविहिह।
3.
42
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #62
--------------------------------------------------------------------------
________________
4.
(24)
(27)
(30)
. जुज्झेसमि । (25)
मरिहिमु । ( 28 ) उल्लसउं ।
(2) अम्हे
( 3 ) अम्हइं .
( 4 ) तुम्हे .
( 5 ) तुहुं
( 6 ) ते
( 7 ) सो
( 8 ) ता
( 9 ) तुहुं
(10) सा
अपभ्रंश रचना सौरभ
. लज्जेसइत्था । (26) .
. कंपिहिन्ति । (29)
.......
निम्नलिखित वाक्यों में निर्देशानुसार रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिये -
( 1 ) हउं
( कुल्ल - वर्तमानकाल में ) ।
मरिहिमो ।
. मुच्छिहिन्ति ।
(खेल - भविष्यत्काल में ) । (जुज्झ - वर्तमानकाल में ) ।
( उट्ठ - विधि एवं आज्ञा में ) ।
(अच्छ- भविष्यत्काल में ) । (मुच्छ(रुव - विधि एवं आज्ञा में ) ।
- वर्तमानकाल में ) ।
( डर - विधि एवं आज्ञा में ) ।
(उल्लस- विधि एवं आज्ञा में ) । (लज्ज - भविष्यत्काल में ) ।
43
Page #63
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 27 सम्बन्धक भूत कृदन्त (पूर्वकालिक क्रिया) अकर्मक क्रियाएँ हस = हँसना,
लुक्क = छिपना
णच्च-नाचना.
-
हस
णच्च
संबन्धक भूत कृदन्त के
लुक्क प्रत्यय
हसि = हँसकर णच्चि = नाचकर लुक्कि = छिपकर हसिउ = हँसकर णच्चिउ = नाचकर लुक्किउ = छिपकर हसिवि = हँसकर णच्चिवि = नाचकर लुक्किवि = छिपकर
हसवि = हँसकर णच्चवि = नाचकर लुक्कवि = छिपकर एप्पि हसेप्पि = हँसकर णच्चेप्पि = नाचकर लुक्केप्पि - छिपकर एप्पिणु हसेप्पिणु = हँसकर णच्चेप्पिणु = नाचकर लुक्केप्पिणु = छिपकर एवि हसेवि = हँसकर णच्चेवि = नाचकर लुक्केवि = छिपकर एविणु हसेविणु = हँसकर णच्चेविणु = नाचकर लुक्केविणु = छिपकर
वाक्यों में प्रयोग
हउं हसि/हसिउ/हसिवि/हसवि/हसेप्पि/
हसेप्पिणु/हसेवि/हसेविणु जीवउं = मैं हँसकर जीता हूँ। हउं हसि/हसिउ/हसिवि/हसवि/हसेप्पि/
हसेप्पिणु/हसेवि/हसेविणु जीवमु = मैं हँसकर जीतूं। हउं हसि/हसिउ/हसिवि/हसवि/हसेप्पि/
हसेप्पिणु/हसेवि/हसेविणु जीवेसउं = मैं हँसकर जीयूँगा। तुहुं णच्चि/णच्चिउ/णच्चिवि/णच्चवि/णच्चेप्पि/
णच्चेप्पिणु/णच्चेवि/णच्चेविणु थक्कहि = तुम नाचकर थकते हो। तुहुं णच्चि/णच्चिउ/णच्चिवि/णच्चवि/णच्चेप्पि/
णच्चेप्पिणु/णच्चेवि/णच्चेविणु थक्केहि = तुम नाचकर थको।
44
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #64
--------------------------------------------------------------------------
________________
तुई णच्चि/णच्चिउ/णच्चिवि/णच्चवि/णच्चेप्पि/
णच्चेप्पिणु/णच्चेवि/णच्चेविणु थक्केसहि = तुम नाचकर थकोगे।
इसी प्रकार अन्य पुरुषवाचक सर्वनामों के साथ वाक्य बना लेने चाहिये।
निम्नलिखित वाक्यों में संबन्धक भूत कृदन्तों के प्रत्ययों का प्रयोग कीजिये -
(1) वह रोकर सोता है। (2) वह शरमाकर उठती है। (3) वे गिरकर उठते हैं। (4) तुम सब थककर बैठो। (5) हम खेलकर खुश होते हैं। (6) हम उठकर बैठेंगे। (7) वे कूदकर खेलेंगे। (8) तुम खेलकर प्रसन्न होवो। (9) वे रूसकर छिपते हैं। (10) वह घूमकर खुश होगी।
क्रिया के अन्त में प्रत्यय लगने पर जो शब्द बनता है वह कृदन्त कहलाता है। हँसकर, सोकर, जागकर आदि भावों को प्रकट करने के लिये अपभ्रंश में उपर्युक्त प्रत्यय काम में लिये जाते हैं। उन प्रत्ययों के लगने के पश्चात् जो शब्द बनता है, वह संबन्धक भूत कृदन्त कहलाता है। इसमें कर्ता एक क्रिया समाप्त करके दूसरा कार्य करता है तो पहले किये गये कार्य के लिये सम्बन्धक भूत कृदन्त का प्रयोग किया जाता है। इसमें कृदन्तवाचक शब्द और सामान्य क्रिया दोनों का सम्बन्ध कर्ता से होता है। (वह हँसकर सोता है, इसमें 'हँसने' और 'सोने' का सम्बन्ध 'वह' कर्ता से है) ये शब्द अव्यय होते हैं, इसलिये इनका रूप परिवर्तन नहीं होता है। उपर्युक्त सभी प्रत्यय अकर्मक क्रियाओं में लगाये गये हैं। उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं।
अपभ्रंश रचना सौरभ
45
Page #65
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 28 हेत्वर्थक कृदन्त
क्रियाएँ
हस = हँसना,
णच्च = नाचना
णच्च
हेत्वर्थक कृदन्त के प्रत्यय
एवं
अण
अणहं अणहिं एप्पि एप्पिणु एवि एविणु
हसेवं = हँसने के लिए हसण = हँसने के लिए हसणहं = हँसने के लिए हसणहिं = हँसने के लिए हसेप्पि = हँसने के लिए हसेप्पिणु = हँसने के लिए हसेवि = हँसने के लिए हसेविणु = हँसने के लिए
णच्चेवं = नाचने के लिए णच्चण = नाचने के लिए णच्चणहं = नाचने के लिए णच्चणहिं = नाचने के लिए णच्चेप्पि = नाचने के लिए णच्चेप्पिणु = नाचने के लिए णच्चेवि = नाचने के लिए णच्चेविणु = नाचने के लिए
= मैं हँसने के लिए जीता हूँ।
= मैं हँसने के लिए जीयूँ।
वाक्यों में प्रयोग
हउं हसेवं/हसण/हसणह/हसणहिं/हसेप्पि/
. हसेप्पिणु/हसेवि/हसेविणु जीवउं हउं हसेवं/हसण/हसणहं/हसणहिं/हसेप्पि/
हसेप्पिणु/हसेवि/हसेविणु जीवमु हउं हसेवं/हसण/हसणहं/हसणहिं/हसेप्पि/
हसेप्पिणु/हसेवि/हसेविणु जीवेसउं णच्चेवं/णच्चण/णच्चणहं/णच्चणहिं/ णच्चेप्पि/णच्चेप्पिणु/णच्चेवि/ णच्चेविणु उद्यहि
= मैं हँसने के लिए जीयूँगा।
= तुम नाचने के लिए
उठते हो।
46
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #66
--------------------------------------------------------------------------
________________
तुम नाचने के लिए उठो।
तुहूं णच्चेवं/णच्चण/णच्चणहं/णच्चणहिं/
णच्चेप्पि/णच्चेप्पिणु/णच्चेवि/
णच्चेविणु उछ तुहुं णच्चेवं/णच्चण/णच्चणहं/णच्चणहिं/
णच्चेप्पि/णच्चेप्पिणु/णच्चेवि/ णच्चेविणु उठेसहि
= तुम नाचने के लिए
उठोगे।
इसी प्रकार अन्य पुरुषवाचक सर्वनामों के साथ वाक्य बना लेने चाहिये।
निम्नलिखित वाक्यों में हेत्वर्थक कृदन्तों के प्रत्ययों का प्रयोग कीजिये -
(1) वह थकने के लिए नाचता है। (2) वह बैठने के लिए गिरती है। (3) वे लड़ने के लिए छिपते हैं। (4) तुम सब उठने के लिए बैठो। (5) हम खेलने के लिए घूमेंगे। (6) तुम दोनों खुश होने के लिए जीवो। (7) वे सोने के लिए थकें।
(8) वह जागने के लिए प्रयास करे। (9) वे नाचने के लिए उठेगे। (10) वे कूदने के लिए उठेगी।
क्रिया के अन्त में प्रत्यय लगने पर जो शब्द बनता है, वह कृदन्त कहलाता है। हँसने के लिए, नाचने के लिए, जीने के लिए आदि भावों को प्रकट करने के लिये अपभ्रंश में उपर्युक्त प्रत्यय काम में लिए जाते हैं। इन प्रत्ययों के लगने के पश्चात् जो शब्द बनते है, वे हेत्वर्थक कृदन्त कहलाते हैं। ये शब्द अव्यय होते हैं, इसलिए इनका रूप परिवर्तन नहीं होता है। हेत्वर्थक कदन्त के अन्तिम चार प्रत्यय (एप्पि, एप्पिण, एवि, एविण) संबन्धक भूत कृदन्त के समान हैं, प्रसंग देखकर ही अर्थ लगाना होगा। उपर्युक्त सभी प्रत्यय अकर्मक क्रियाओं में लगाए गए हैं। उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं।
अपभ्रंश रचना सौरभ
47
Page #67
--------------------------------------------------------------------------
________________
(1) अकारान्त संज्ञा शब्द (पुल्लिंग)
48
करह
कुक्कुर
गंथ
जणेर
पुत
पोत्त
घर
माउल
पिआमह
ससुर
दिअर
णर
परमेसर
रहुणन्दण
वय
आगम
सप्प
भव
कूव
मेह
=
=
कुत्ता,
= पुस्तक,
= बाप,
= पुत्र,
11
=
3
= मकान,
= मामा,
= दादा,
=
=
ऊँट,
= मनुष्य,
=
=
||
पोता,
= राम,
= व्रत,
= शास्त्र,
- साँप,
=
=
ससुर,
देवर,
परमेश्वर,
संसार,
कुआ,
पाठ 29
संज्ञाएँ एवं क्रियाएँ
- मेघ,
रयण
सायर
राय
नरिंद
बालअ
दुज्जस
हणुवन्त
गव्व
हुअवह
मारुअ
दुक्ख
मित्त
= रत्न
= समुद्र
= नरेश
= राजा
दुह
बप्प
सलिल
गाम
= बालक
= अपयश
हनुमान
गर्व
अग्नि
=
=
=
पड
कयंत
= : मृत्यु
दिवायर = सूर्य
रक्खस = राक्षस
सीह
सिंह
= पवन
= वस्र
=
=
दु:ख
मित्र
= दुःख
= पिता
पानी
=
- गाँव
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #68
--------------------------------------------------------------------------
________________
(2) अकर्मक क्रियाएँ
1.
2.
गल
खय
जल
लुढ
हो
हु
उप्पज्ज
वल
जर
गज्ज
उग
उड्ड
नस्स
अपभ्रंश रचना सौरभ
= गलना,
= नष्ट होना,
जलना,
- लुढ़कना,
होना,
- होना,
=
=
=
=
1=3
पैदा होना,
उपर्युक्त सभी संज्ञा शब्द अकारान्त पुल्लिंग हैं। उपर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं ।
मुड़ना,
= बूढ़ा होना,
=
गर्जना,
= उगना,
= उड़ना,
= नष्ट होना
णिज्झर = झरना
सोह
शोभना
सुक्क
पसर
डुल
दुक्ख
पला
बइस
बुक्क
तुट्ट
कंद
हरिस
=
=
=
=
सूखना
फैलना
डोलना, हिलना
= दुखना
= भाग जाना
बैठना
= भोंकना
=
= टूटना
= रोना
= प्रसन्न होना
49
Page #69
--------------------------------------------------------------------------
________________
नरिंद
अकर्मक क्रियाएँ
50
हस
नरिंदु
नरिंदो
नरिंद
नरिंदा
बालउ
बालओ
प्रथमा ( एकवचन )
बालअ
बालआ
=
बालउ
बालओ
बालअ
बालआ
राजा,
पाठ 30
अकारान्त संज्ञा (पुल्लिंग)
प्रथमा एकवचन
= हँसना,
प्रथमा ( एकवचन)
नरिंदु
नरिंदो
नरिंद
नरिंदा
हसइ / हसेइ / हसए
जग्गइ / जग्गेइ / जग्गए
हसउ / हसेउ
जग्गउ / जग्गेउ
बालअ
= बालक
जग्ग = जागना
वर्तमानकाल (एकवचन)
= राजा हँसता है।
= बालक जागता है ।
विधि एवं आज्ञा (एकवचन)
= राजा हँसे ।
= बालक जागे ।
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #70
--------------------------------------------------------------------------
________________
भविष्यत्काल (एकवचन)
प्रथमा (एकवचन) नरिंदु नरिंदो ।
हसेसइ/हसेसए नरिंद हसिहिइ/हसिहिए
= राजा हँसेगा।
नरिंदा
बालउ बालओ बालअ
= बालक जागेगा।
जग्गेसइ/जग्गेसए जग्गिहिइ/जग्गिहिए
बालआ
नरिंदु/नरिंदो/नरिंद/नरिंदा = प्रथमा एकवचन (अकारान्त पुल्लिंग)। अकारान्त पुल्लिंग शब्द 'नरिंद' में 'उ', 'ओ', '0', '0' - आ प्रत्यय प्रथमा के एकवचन में लगे हैं। उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं। कर्तृवाच्य में कर्ता (व्यक्ति, वस्तु आदि) में प्रथमा होती है। उपर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं। उपर्युक्त संज्ञाओं के साथ जो क्रियारूप काम में आया है वह 'अन्य पुरुष एकवचन' का है। कर्तृवाच्य में प्रयुक्त संज्ञाओं के साथ अन्य पुरुष सर्वनाम' की क्रिया काम में आती है। यहाँ संज्ञा एकवचन में है अत: क्रिया भी एकवचन की ही लगी है।
अपभ्रंश रचना सौरभ
51
Page #71
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 31 अकारान्त संज्ञा (पुल्लिंग)
प्रथमा बहुवचन
नरिंद
= राजा,
बालअ = बालक
अकर्मक क्रियाएँ
हस
= हँसना,
जग्ग
3 जागना
वर्तमानकाल (बहुवचन)
प्रथमा (बहुवचन) नरिंद । हसहि/हसन्ति/हसन्ते/हसिरे
= राजा हँसते हैं।
बालअ
जग्गहिं/जग्गन्ति/जग्गन्ते/जग्गिरे
= बालक जागते हैं।
बालआ
प्रथमा (बहुवचन)
विधि एवं आज्ञा(बहुवचन)
नरिंदा } हसन्तु/हसेन्तु
= राजा हँसें।
बालअ । बालआ
। जगन्तु/जग्गेन्तु
= बालक जागें।
भविष्यत्काल (बहुवचन)
प्रथमा (बहुवचन) नरिंद । हसेसहिं/हसेसन्ति नरिंदा , हसिहिहिं/हसिहिन्ति
= राजा हँसेंगे।
बालअ । जग्गेसहिं/जग्गेसन्ति बालआJ जग्गिहिहिं/जग्गिहिन्ति
= बालक जागेंगे।
52
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #72
--------------------------------------------------------------------------
________________
1.
2.
3.
4.
5.
6.
नरिंद / नरिंदा = प्रथमा बहुवचन (अकारान्त पुल्लिंग) ।
अकारान्त पुल्लिंग शब्द 'नरिंद' के प्रथमा बहुवचन में '0', 0- आ प्रत्यय लगे हैं ।
उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं। कर्तृवाच्य में कर्ता (व्यक्ति, वस्तु आदि) में प्रथमा होती है।
उपर्युक्त संज्ञाओं के साथ जो क्रिया-रूप काम में आया है वह 'अन्य पुरुष बहुवचन' का है।
कर्तृवाच्य में प्रयुक्त संज्ञाओं के साथ 'अन्य पुरुष सर्वनाम' की क्रिया काम में आती है। यहाँ संज्ञा बहुवचन में है, अत: क्रिया भी बहुवचन की ही लगी है। उपर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं।
अपभ्रंश रचना सौरभ
53
Page #73
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 32
अभ्यास निम्नलिखित वाक्यों की अपभ्रंश में रचना कीजिए - (क) - (1) मेघ गरजते हैं। (2) वस्त्र सूखता है। (3) रत्न शोभता है। (4) अपयश फैलता है। (5) अग्नि जलती है। (6) पिता उठता है। (7) पुस्तक नष्ट होती है। (8) मित्र प्रयास करता है। (9) रघुनन्दन प्रसन्न होता है। (10) कुत्ता भौंकता है। (11) पुत्र काँपता है। (12) घर गिरता है। (13) मनुष्य बूढ़े होते हैं। (14) गर्व गलता है। (15) दादा थकता है। (16) व्रत शोभते हैं। (17) ऊँट नाचते हैं। (18) सूर्य उगता है। (19) राक्षस डरते हैं। (20) सिंह बैठते हैं। (ख) - (1) मामा उठे। (2) पोता घूमे। (3) गर्व नष्ट हो। (4) बालक खेलें। (5) राक्षस मरें। (6) दुक्ख गलें। (7) शास्त्र शोभे। (8) मित्र खुश हो। (9) समुद्र फैले। (10) पुत्र जीवे। (ग) - (1) अग्नि जलेगी। (2) शास्त्र नष्ट होंगे। (3) सर्प उड़ेंगे। (4) रघुनन्दन प्रसन्न होंगे। (5) संसार नष्ट होगा। (6) राक्षस मूच्छित होंगे। (7) बालक रूसेगा। (8) मनुष्य प्रयास करेंगे। (9) मकान गिरेंगे। (10) कुआ सूखेगा। निम्नलिखित वर्तमानकालिक वाक्यों को शुद्ध कीजिये (कर्ता के अनुसार क्रिया लगाइये) - (1)कुक्कुरु बुक्कन्ति। (2) गंथो नस्सन्ते। (3) णरु कंदन्ति। (4) दुक्खु तुट्टन्ति। (5) करहो थक्कन्ति । (6) माउलु थक्कहिं । निम्नलिखित विधि एवं आज्ञावाचक वाक्यों को शुद्ध कीजिए (कर्ता के अनुसार क्रिया लगाइए) - (1) ससुरो उठ्ठन्तु। (2) दिअरु णच्चन्तु। (3) परमेसरो हरिसेन्तु। (4) हणुवन्तो बइसन्तु। (5) सीहु पलान्तु। (6) कयंतो होन्तु। निम्नलिखित रिक्त स्थानों की निर्देशानुसार पूर्ति कीजिये (कर्ता के अनुसार क्रिया लगाइये) - (1) मेह .......... (पसर-भविष्यत्काल में)।
3.
4.
54
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #74
--------------------------------------------------------------------------
________________
(2) कूवा .............. (सुक्क-भविष्यत्काल में)। (3) सप्पु ............... (लुक्क-विधि एवं आज्ञा में)। (4) पुत्त ................ (जग्ग-वर्तमानकाल में)। (5) घरो ............... (पड-भविष्यत्काल में)। (6) हुअवह .......... (जल-भविष्यत्काल में)। (7) आगम ............ (सोह-वर्तमानकाल में)। (8) भव ................ (खय-भविष्यत्काल में)। (9) बप्प ............... (उज्जम-विधि एवं आज्ञा में)। (10) रक्खस .......... (जुज्झ-भविष्यत्काल में)। निम्नलिखित वाक्यों की अपभ्रंश में रचना कीजिए - (क) - (1) कुत्ता डरकर रोता है। (2) पिता हँसकर जीता है। (3) राजा प्रसन्न होकर उठते हैं। (4) सर्प डरकर भागते हैं। (5) ससुर रूसकर भिड़ता है। (6) रत्न पड़कर टूटता है। (7) पिता जागकर डोलता है।
(ख) - (1) पिता हँसने के लिए जीवे। (2) पोता नाचने के लिए उठे। (3) अग्नि नष्ट होने के लिए जले। (4) दादा घूमने के लिए उठे। (5) पानी सूखने के लिए झरे। (6) मित्र दु:खी होकर लड़ता है। (7) सूर्य शोभने के लिए उगे।
(ग) - (1) पुत्र कलह करके शरमायेगा। (2) मित्र प्रसन्न होने के लिए जीवेगा। (3) ऊँट थकने के लिए नाचेगा। (4) घर गिरकर नष्ट होगा। (5) व्रत टूटकर गलेगा। (6) राक्षस मरने के लिए कूदेंगे। (7) पानी फैलकर सूखेगा।
अपभ्रंश रचना सौरभ
55
Page #75
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 33 संज्ञाएँ एवं क्रियाएँ
(1) अकारान्त संज्ञा शब्द (नपुंसकलिंग)
= मद्य
वसण
= व्यसन
णह
विमाण = विमान, सासण = शासन, पत्त
= कागज, सोक्ख - सुख, रज्ज = राज्य, पोट्टल = गठरी,
= आकाश, सील - = सदाचार, णयरजण = नागरिक, खीर = दूध, छिक्क = छींक, लक्कुड = लकड़ी, उदग = जल, गाण = गीत, भय - भय, वेरग्ग = वैराग्य, सच्च = सत्य,
जूअ = जुआ असण = भोजन तिण - घास वण = जंगल वत्थ = वस्त्र कट्ट = काठ भोयण = भोजन घय = घी सिर = मस्तक सुत्त = धागा सुह - सुख रिण = कर्ज बीअ = बीज जीवण = जीवन रूप = रूप कम्म = कर्म जोव्वण = यौवन णाण = ज्ञान मण = चित्त, मन
रत्त
= रक्त,
मरण खेत्त धन्न धण
= मरण, = खेत, = धान, = धन,
56
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #76
--------------------------------------------------------------------------
________________
(2) अकर्मक क्रियाएँ
वड्ढ विअस लोट्ट चुअ कुद्द
जगड
= बढ़ना, = खिलना, - सोना, लोटना = टपकना, = कूदना, = जन्म लेना, = झगड़ा करना, = जागना, = उपस्थित होना, = अफसोस करना, = ठहरना, बैठना, = छूटना, = होना, - रमना,
चेट्ट = प्रयत्न करना गुंज = गूंजना सिज्झ = सिद्ध होना जल = जलना उच्छह = उत्साहित होना चुक्क = भूल करना लोभ = लालच करना कील = क्रीड़ा करना कील = कीलना (मंत्रादि से) घट = कम होना, घटना चिराव = देर करना तव = तपना वस = बसना फुर = प्रकट होना
जागर
विज्ज खिज्ज चिट्ठ
हव रम
उपुर्यक्त सभी संज्ञा शब्द अकारान्त नपुंसकलिंग हैं। उपर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं।
2.
अपभ्रंश रचना सौरभ
57
Page #77
--------------------------------------------------------------------------
________________
कमल
अकर्मक क्रियाएँ
विअस
प्रथमा ( एकवचन )
कमलु
कमल
कमला
58
पाठ 34
अकारान्त संज्ञा (नपुंसकलिंग)
प्रथमा एकवचन
= कमल का फूल,
=
खिलना,
विअसइ / विअसेइ / विअसए
धणु
धण
धणा
प्रथमा ( एकवचन)
कमलु
कमल
कमला
वड्ढइ / वड्ढेइ / वड्ढए
विअसउ / विअसेउ
ध
धण
धणा
प्रथमा (एकवचन)
कमलु
कमल
कमला
वड्ढउ / वड्ढेउ
विअसेसइ / विअसेसए विअसिहिइ / विअसिहिए
धण
= धन
वड्ढ वर्तमानकाल (एकवचन)
= बढ़ना
= कमल खिलता है।
= धन बढ़ता है।
विधि एवं आज्ञा (एकवचन)
= धन बढ़े।
= कमल खिले ।
भविष्यत्काल (एकवचन)
= कमल खिलेगा |
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #78
--------------------------------------------------------------------------
________________
= धन बढ़ेगा।
धण
वड्ढेसइ/वड्ढेसए वड्ढिहिइ/वड्ढिहिए
धणा
कमलु/कमल/कमला = प्रथमा एकवचन (अकारान्त नपुंसकलिंग)। अकारान्त नपुंसकलिंग शब्द 'कमल' के प्रथमा एकवचन में 'उ', '0', '0'-आ प्रत्यय लगे हैं। उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं। कर्तृवाच्य में कर्ता में प्रथमा होती है। उपर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं। उपर्युक्त क्रियाओं के साथ जो क्रिया-रूप काम में आया है, वह 'अन्य पुरुष एकवचन' का है। कर्तृवाच्य में प्रयुक्त संज्ञाओं के साथ 'अन्य पुरुष सर्वनाम' की क्रिया काम में आती है। यहाँ संज्ञा एकवचन में है, अत: क्रिया भी एकवचन की ही लगी है।
59
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #79
--------------------------------------------------------------------------
________________
कमल
अकर्मक क्रियाएँ
विअस
60
कमल
कमला
धण
धणाई
धण
धणा
पाठ 35
अकारान्त संज्ञा (नपुंसकलिंग)
प्रथमा (बहुवचन)
कमलई
कमलाई
= कमल का फूल,
= खिलना,
प्रथमा बहुवचन
विअसहिं / विअसन्ति / विअसन्ते / विअसिरे
प्रथमा (बहुवचन)
कमलई
कमलाई
कमल
कमला
धणई
धणा
धण
धणा
वड्ढहिं / वड्ढन्ति / वड्ढन्ते / वड्ढिरे
विअसन्तु/विअसेन्तु
वड्ढन्तु / वड्ढेन्तु
धण
वड्ढ
= धन
= बढ़ना
वर्तमानकाल (बहुवचन)
= कमल खिलते हैं।
= धन बढ़ते हैं।
विधि एवं आज्ञा (बहुवचन)
= धन बढें ।
= कमल खिलें ।
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #80
--------------------------------------------------------------------------
________________
1.
2.
3.
4.
5.
6.
प्रथमा (बहुवचन)
कमलई'
कमलाई
कमल
कमला
धण
धणाई
धण
धणा
विअसेसहिं / विअसेसन्ति विअसि हिहिं / विअसिहिन्ति
वड्ढेसहिं / वड्ढेसन्ति बड़हिहिं / बढिहिन्ति
अपभ्रंश रचना सौरभ
भविष्यत्काल (बहुवचन)
= कमल खिलेंगे।
कमलइं/कमलाइं/कमल/कमला = प्रथमा बहुवचन (अकारान्त नपुंसकलिंग ) । अकारान्त नपुंसकलिंग शब्द 'कमल' में प्रथमा के बहुवचन में 'ई', इं आई, '0', 0 - आ प्रत्यय लगे हैं।
->
= धन बढ़ेंगे।
उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं। कर्तृवाच्य में कर्ता में प्रथमा होती है।
उपर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं।
उपर्युक्त क्रियाओं के साथ जो क्रियारूप काम में आया है, वह 'अन्य पुरुष बहुवचन' का है।
कर्तृवाच्य में प्रयुक्त संज्ञाओं के साथ 'अन्य पुरुष सर्वनाम' की क्रिया काम में आती है | यहाँ संज्ञा बहुवचन में है, अत: क्रिया भी बहुवचन की ही लगी है ।
61
Page #81
--------------------------------------------------------------------------
________________
62
पाठ 36
अभ्यास
निम्नलिखित वाक्यों की अपभ्रंश में रचना कीजिये -
(क)
(1) सुख बढ़ता है। (2) दूध टपकता है । ( 3 ) नागरिक प्रसन्न होते हैं। ( 4 ) गठरी लुढ़कती है। (5) यौवन खिलता है । (6) राज्य भूल करता है । ( 7 ) आकाश गूँजता है । (8) सदाचार प्रकट होता है। (9) घास जलता है । (10) कर्ज बढ़ता है।
(ख) - (1) वैराग्य बढ़े। (2) दुःख घटे । (3) राज्य प्रयत्न करे । (4) ज्ञान सिद्ध हो। (5) शासन डरे । (6) सदाचार शोभे। (7) धन घटे । (8) पोटली लुढ़के । (9) सत्य खिले । (10) पानी टपके ।
(ग)
(1) नागरिक सोयेंगे । ( 2 ) रूप खिलेगा । ( 3 ) शासन प्रयत्न करेगा । (4) बीज उगेंगे। (5) लकड़ी जलेगी। (6) राज्य उत्साहित होगा। (7) कर्म नष्ट होंगे। (8) दुःख फैलेगा। (9) विमान उड़ेंगे। (10) सत्य शोभेगा ।
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #82
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 37 संज्ञाएँ एवं क्रियाएँ
(1) आकारान्त संज्ञा शब्द (स्त्रीलिंग)
सीया
माया
कन्ना = कन्या कलसिया = छोटा घड़ा गुहा = गुफा झुपडा = झोंपड़ी णिद्दा = नींद पइट्ठा = प्रतिष्ठा पसंसा = प्रशंसा सिक्खा = शिक्षा सोहा = शोभा मइरा = मदिरा .. सरिआ = नदी अहिलासा= अभिलाषा गड्डा = गड्डा, खड्डा धूआ = बेटी नणन्दा = नणद महिला = स्त्री
परिक्खा = परीक्षा,
= सीता, सुया
= पुत्री, ससा = बहिन,
= माता, वाया
= वाणी, आणा = आज्ञा, कमला = लक्ष्मी , करुणा = दया, गंगा जरा = बुढ़ापा, तणया = पुत्री, णम्मया = नर्मदा, कहा
- कथा, जउणा = यमुना, जाआ = पत्नी,
= श्रद्धा,
= बुद्धि, संझा = सायंकाल, भुक्खा = भूख,
= गंगा,
सद्धा
पण्णा
-प्रज्ञा
मेहा
तिसा = प्यास तण्हा = तृष्णा निसा = रात्रि
अपभ्रंश रचना सौरभ
63
Page #83
--------------------------------------------------------------------------
________________
(2) अकर्मक क्रियाएँ
1.
2.
64
छिज्ज
खुम्भ
खास
गडयड
बिह
उवसम
थंभ
=
=
=
छीजना,
भूख लगना,
खाँसना,
=
: गिड़गिड़ाना,
= डरना,
= शान्त होना,
= रुकना
लुंच
वम
उस्सस
लग्ग
उवविस
ऊतर
उपर्युक्त सभी संज्ञा शब्द आकारान्त स्त्रीलिंग हैं। उपर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं ।
= बाल उखाड़ना
= वमन करना
= साँस लेना
=लगना
बैठना
= उतरना,
=
नीचे आना
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #84
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 38 आकारान्त संज्ञा (स्त्रीलिंग)
प्रथमा एकवचन ससा = बहिन, अकर्मक क्रियाएँ हस = हँसना,
जग्ग = जागना प्रथमा (एकवचन)
वर्तमानकाल(एकवचन)
माया
= माता
ससा
। हसइ/हसेइ/हसए
= बहिन हँसती है।
सस ।
माया ।
जग्गइ/जग्गेइ/जग्गए
= माता जागती है।
माय
प्रथमा (एकवचन)
विधि एवं आज्ञा(एकवचन)
ससा ] हसउ/हसेउ
= बहिन हँसे।
माया
माय /
जग्गउ/जग्गेउ
=माता जागे।
प्रथमा (एकवचन) ससा । हसेसइ/हसेसए सस । हसिहिइ/हसिहिए
भविष्यत्काल (एकवचन) = बहिन हँसेगी।
माया
= माता जागेगी।
माय ।
जग्गेसइ/जग्गेसए जग्गिहिइ/जग्गिहिए
2.
ससा/सस = प्रथमा एकवचन (आकारान्त स्त्रीलिंग)। आकारान्त स्त्रीलिंग शब्द 'ससा' के '0' और 0-हस्व (आ-अ) प्रत्यय प्रथमा के एकवचन में लगे हैं।
अपभ्रंश रचना सौरभ
65
Page #85
--------------------------------------------------------------------------
________________
3.
4.
5.
6.
66
उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं। कर्तृवाच्य में कर्ता (व्यक्ति, प्रथमा होती है।
उपर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं।
उपर्युक्त संज्ञाओं के साथ जो क्रिया- एकवचन' का है।
वस्तु आदि) में
-रूप काम में आया है वह 'अन्य पुरुष
कर्तृवाच्य में प्रयुक्त संज्ञाओं के साथ 'अन्य पुरुष सर्वनाम' की क्रिया काम में आती है। यहाँ संज्ञा एकवचन में है, अत: क्रिया भी एकवचन की ही लगी है ।
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #86
--------------------------------------------------------------------------
________________
ससा
अकर्मक क्रियाएँ
=
=
हस
प्रथमा (बहुवचन)
ससा
सस
ससाउ
ससउ
ससाओ
ससओ
माया
माय
मायाउ
मायउ
मायाओ
मायओ
बहिन,
पाठ 39
आकारान्त संज्ञा (स्त्रीलिंग)
प्रथमा बहुवचन
हँसना,
हसहिं / हसन्ति / हसन्ते / हसिरे
प्रथमा (बहुवचन)
ससा
सस
ससाउ
ससउ
ससाओ
ससओ
माया
माय
मायाउ
मायउ
मायाओ
मायओ
अपभ्रंश रचना सौरभ
जग्गहिं/ जग्गन्ति / जग्गन्ते / जग्मिरे
हसन्तु / हसेन्तु
जग्गन्तु / जग्गेन्तु
माया
जग्ग
= जागना
वर्तमानकाल (बहुवचन)
=
=
=
= माता
=
विधि एवं आज्ञा (बहुवचन)
बहिनें हँसती हैं ।
माताएँ जागती हैं।
बहिनें हँसें ।
माताएँ जागें ।
67
Page #87
--------------------------------------------------------------------------
________________
भविष्यत्काल (बहुवचन)
प्रथमा (बहुवचन) ससा
सस
ससाउ
= बहिनें हँसेगी। .
हसेसहिं/हसेसन्ति/हसेसन्ते/हसेसइरे हसिहिहिं/हसिहिन्ति/हसिहिन्ते/हसिहिइरे
ससउ ससाओ ससओ माया
माय
मायाउ
जग्गेसहिं/जग्गेसन्ति/जग्गेसन्ते/जग्गेसइरे जग्गिहिहिं/जग्गिहिन्ति/जग्गिहिन्ते/जग्गिहिइरे
= माताएँ जागेंगी।
मायउ मायाओ मायओ
ससा/सस/ससाउ/ससउ/ससाओ/ससओ = प्रथमा बहुवचन (आकारान्त स्त्रीलिंग)। आकारान्त स्त्रीलिंग शब्द 'ससा' में 0, उ, ओ प्रत्यय प्रथमा के बहुवचन में लगेंगे। इन प्रत्ययों के प्रभाव से मूलशब्द ह्रस्व (आ-अ) हो जाता है। अर्थात् '0', 0•अ, 'उ', उ-अउ, 'ओ', ओ• अओ। उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं। कर्तृवाच्य में कर्ता (व्यक्ति, वस्तु आदि) में प्रथमा होती है। उपर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं। उपर्युक्त संज्ञाओं के साथ जो क्रियारूप काम में आया है वह 'अन्य पुरुष बहुवचन' का है। कर्तृवाच्य में प्रयुक्त संज्ञाओं के साथ 'अन्य पुरुष सर्वनाम' की क्रिया काम में आती है। यहाँ संज्ञा बहुवचन में है अत: क्रिया भी बहुवचन की ही लगी है।
68
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #88
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 40
अभ्यास
निम्नलिखित वाक्यों की अपभ्रंश में रचना कीजिए - (क) - (1) सीता शोभती है।
(2) बहिन छीजती है। (3) माता प्रसन्न होती है। (4) वाणी थकती है। (5) आज्ञा प्रकट होती है। (6) लक्ष्मी घटती है। (7) दया छूटती है।
(8) गंगा फैलती है। (9) बुढ़ापा बढ़ता है।
(10) सायंकाल होता है। (11) कन्याएँ रुकती हैं। (12) झोपड़ियाँ जलती हैं। (13) छोटे घड़े टूटते हैं। (14) पुत्रियाँ खाँसती हैं। (15) अभिलाषाएँ बढ़ती हैं। (16) परीक्षाएँ होती हैं। (17) सायंकाल शोभता है। (18) वाणियाँ सिद्ध होती हैं। (19) नदियाँ सूखती हैं। (20) महिलाएँ प्रयत्न करती हैं। (ख)(1) श्रद्धा बढ़े।
(2) भूख शान्त होवे। (3) मदिरा छूटे।
(4) बेटी प्रसन्न हो। (5) स्त्रियाँ तप करें।
(6) प्रज्ञा सिद्ध हो। (7) अभिलाषाएँ घटें।
(8) वाणियाँ प्रकट हों। (9) महिलाएँ उत्साहित हों। (10) झोपड़ियाँ घटें। (ग) - (1) शिक्षा फैलेगी।
(2) अभिलाषाएँ शान्त होंगी। (3) नदियाँ सूखेंगी।
(4) प्यास लगेगी। (5) लक्ष्मी कम होगी।
(6) परीक्षाएँ होंगी। (7) दया फैलेगी।
(8) गुफाएँ नष्ट होंगी। (9) कन्याएँ देर करेंगी।
(10) बहिनें ठहरेंगी।
अपभ्रंश रचना सौरभ
69
Page #89
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 41
भूतकालिक कृदन्त ( कर्तृवाच्य में प्रयोग )
अपभ्रंश में भूतकाल का भाव प्रकट करने के लिए भूतकालिक कृदन्त का प्रयोग किया जाता है । क्रिया में निम्नलिखित प्रत्यय लगाकर भूतकालिक कृदन्त बनाए जाते हैं। भूतकालिक कृदन्त शब्द विशेषण का कार्य करते हैं। जब अकर्मक क्रियाओं में इस कृदन्त के प्रत्ययों को लगाया जाता है तो इसका प्रयोग कर्तृवाच्य में किया जा सकता है। इन शब्दों के रूप कर्ता के अनुसार चलेंगे। कर्ता पुल्लिंग, नपुंसकलिंग, स्त्रीलिंग में से जो भी होगा इनके रूप भी उसी के अनुसार बनेंगे। इन कृदन्तों के पुल्लिंग में 'देव' के समान, नपुंसकलिंग में 'कमल' के समान तथा स्त्रीलिंग में 'कहा' के अनुसार रूप चलेंगे। भूतकालिक कृदन्त अकारान्त होता है । स्त्रीलिंग बनाने के लिए कृदन्त में 'आ' प्रत्यय जोड़ा जाता है, 1 वह शब्द आकारान्त स्त्रीलिंग बन जाता है।
(क) क्रियाएँ
भूतकालिक
कृदन्त के
प्रत्यय
हस =
(1)
70
हँसना,
हस
दु
नरिंदो
नरिंद
नरिंदा
नरिंदु
नरिंदो
नरिंद
नरिंदा
=
णच्च = नाचना, जग्ग = जागना, हो = होना
अ हसिअ = हँसा
णच्चिअ
= नाचा जग्गिअ = जागा
होअ = हुआ
णच्चिय = नाचा जग्गिय
हसिय हँसा
= जागा
होय = हुआ
य
नोट - क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'इ' हो जाता है। 'य' प्रत्यय 'अ' में बदला जा सकता है। वाक्यों में प्रयोग (कर्ता पुल्लिंग) (एकवचन) (कर्तृवाच्य)
णच्च
हसिआ / हसिअ / हसिओ / हसिउ
जग्ग
होआ / होउ / होओ / होअ
हो
= राजा हँसा ।
= राजा हुआ।
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #90
--------------------------------------------------------------------------
________________
(2)
वाक्यों में प्रयोग (कर्ता पुल्लिग) (बहुवचन) (कर्तृवाच्य)
नरिंदा / हसिअ/हसिआ
= राजा हँसे।
नरिंद ।
= राजा हुए।
नरिंदा । होअ/होआ
(ख) क्रियाएँ वड्ढ = बढ़ना,
विअस = खिलना, हो = होना भूतकालिक कृदन्त के वड्ढ
विअस प्रत्यय अ वढिअ = बढ़ा विअसिअ = खिला होअ% हुआ
वड्ढिय = बढ़ा विअसिय = खिला होय = हुआ
नोट - क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'इ' हो जाता है। 'य' प्रत्यय 'अ' में बदला जा सकता है। (1) वाक्यों में प्रयोग (कर्ता नपुंसकलिंग) (एकवचन) (कर्तृवाच्य)
य
कमलु
कमल विअसिउ/विअसिअ/विअसिआ
-- = कमल खिला।
कमला
कमलु । कमल । होउ/होआ/होअ
= कमल हुआ।
कमला
(2)
वाक्यों में प्रयोग (कर्ता नपुंसकलिंग) (बहुवचन) (कर्तृवाच्य) कमल
विअसिअ/विअसिआ/विअसिअई/विअसिआई = कमल खिले। कमलई कमलाई
कमला
अपभ्रंश रचना सौरभ
71
Page #91
--------------------------------------------------------------------------
________________
कमल
कमला
= कमल हुए।
होअ/होआ/होअइं/होआई कमलई कमलाई क्रियाएँ उ? = उठना,
सय = सोना, भूतकालिक
ठा = ठहरना
कृदन्त के
सय
ठा
प्रत्यय
अ
उहअ 50 उट्ठिअ = उठा सयिअ = सोया
ठाअ% ठहरा य उट्ठिय = उठा सयिय = सोया
ठाय = ठहरा नोट - क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'इ' हो जाता है। 'य' प्रत्यय 'अ' में बदला जा सकता है। (1) वाक्यों में प्रयोग (कर्ता स्त्रीलिंग) (एकवचन) (कर्तृवाच्य)
ससा
सस । उढिअ/उडिआ
= बहिन उठी।
सस
ससा।
= बहिन ठहरी।
सस
ठाअ/ठाआ
(2)
वाक्यों में प्रयोग (कर्ता स्त्रीलिंग) (बहुवचन) (कर्तृवाच्य)
ससा
सस ससाउ
उट्ठिआ/उट्ठिअ/उढिआउ/उटिअउ/ ससाओ
| उढिआओ/उट्ठिअओ
= बहिनें उठी।
ससउ
ससओ
72
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #92
--------------------------------------------------------------------------
________________
ससा
ठाआ/ठाअ/ठाआउ/ठाअउ/ठाआओ/ठाअओ = बहिनें ठहरीं।
सस ससाउ ससउ ससाओ ससओ
नोट
स्त्रीलिंग में प्रयोग करने से पहिले भूतकालिक कृदन्त का स्त्रीलिंग बनाना जरूरी है। 'आ' प्रत्यय जोड़ने से भूतकालिक कृदन्त शब्द स्त्रीलिंग बन जाते हैं। जैसे - उट्ठिअ+उट्ठिआ, सयिअ-सयिआ, ठाअ-ठाआ इनके रूप 'कहा' की तरह चलेंगे।
अपभ्रंश रचना सौरभ
73
Page #93
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 42
वर्तमान कृदन्त अपभ्रंश में 'हँसता हुआ', 'सोता हुआ', 'नाचता हुआ' आदि भावों को प्रकट करने के लिए वर्तमान कृदन्त का प्रयोग किया जाता है। क्रिया में निम्नलिखित प्रत्यय लगाकर वर्तमान कृदन्त बनाए जाते हैं। वर्तमान कृदन्त विशेषण का कार्य करते हैं। अत: इनके लिंग (पुल्लिग, नपुंसक, स्त्री), वचन (एक, बहु) और कारक (कर्ता, कर्म आदि) विशेष्य के अनुसार होंगे। इनके रूप पुल्लिंग में 'देव' के समान, नपुंसकलिंग में 'कमल' के समान तथा स्त्रीलिंग में 'कहा' के समान चलेंगे। वर्तमान कृदन्त अकारान्त होता है। स्त्रीलिंग बनाने के लिए कृदन्त में 'आ' प्रत्यय भी जोड़ा जाता है, तो वह शब्द आकारान्त स्त्रीलिंग बन जाता है। (क) अकर्मक क्रियाएँ हस = हँसना, णच्च = नाचना,
जग्ग = जागना वर्तमान कृदन्त के प्रत्यय हस
णच्च
जग्ग न्त हसन्त = हँसता हुआ णच्चन्त = नाचता हुआ जग्गन्त = जागता हुआ माण हसमाण = हँसता हुआ णच्चमाण = नाचता हुआ जग्गमाण = जागता हुआ
(1) वाक्यों में प्रयोग - विशेष्य :
नरिंदु | हसन्तु/हसन्तो/ नरिंदो हसन्त/हसन्ता नरिंद
हसमाणु/हसमाणो/ हसमाण/हसमाणा
पुल्लिग, एकवचन, प्रथमा विभक्ति (कर्ता कारक) (सभी कालों में)
(वर्तमानकाल) उट्ठइ = राजा हँसता हुआ उठता है।
(विधि एवं आज्ञा) उ?उ = राजा हँसता हुआ उठे।
(भूत कृदन्त-भूतकाल) | उहिअ = राजा हँसता हुआ उठा।
(भविष्यत्काल) उ8सइ = राजा हँसता हुआ उठेगा।
नरिंदा
74
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #94
--------------------------------------------------------------------------
________________
1. यहाँ वर्तमान कृदन्त के रूप विशेष्य 'नरिंद' की तरह चले हैं। यहाँ 'नरिंद' प्रथमा विभक्ति में है, तो कृदन्त भी प्रथमा विभक्ति में रहेगा। यदि 'नरिंद' द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी आदि विभक्तियों में हो, तो वर्तमान कृदन्त भी उन्हीं विभक्तियों में होगा- हँसते हुए राजा को, हँसते हुए राजा के द्वारा, हँसते हुए राजा के लिए आदि। इन विभक्तियों को आगे समझाया जायेगा।
2. स्त्रीलिंग बनाने के लिए 'ई' प्रत्यय भी लगाया जाता है। 'हसन्ती, हसमाणी' फिर इनके रूप 'लच्छी' की तरह चलेंगे। 'ई' कारान्त को आगे समझाया जायेगा। (2) वाक्यों में प्रयोग-विशेष्य : पुल्लिग, बहुवचन, प्रथमा विभक्ति (कर्ता कारक) (सभी कालों में)
(वर्तमानकाल) उट्ठहिं/उट्ठन्ति/आदि = राजा हँसते हुए उठते हैं। नरिंद
(विधि एवं आज्ञा) हसन्त/हसन्ता उट्ठन्तु
= राजा हँसते हुए उठे।
(भूतकाल-भूत-कृदन्त) नरिंदा | हसमाण/हसमाणा उठ्ठिअ/उट्टिआ
राजा हँसते हुए उठे।
(भविष्यत्काल) उढेसहिं/उढेसन्ति/आदि = राजा हँसते हुए उठेंगे।
वढ
(ख) अकर्मक क्रियाएँ वड्ढ = बढ़ना,
विअस = खिलना वर्तमान कृदन्त के प्रत्यय
विअस वड्ढन्त = बढ़ता हुआ विअसन्त = खिलता हुआ
वड्ढमाण = बढ़ता हुआ विअसमाण = खिलता हुआ (1) वाक्यों में प्रयोग- विशेष्य : नपुंसकलिंग, एकवचन, प्रथमा विभक्ति (कर्ताकारक)
(सभी कालों में)
माण
अपभ्रंश रचना सौरभ
75
Page #95
--------------------------------------------------------------------------
________________
कमलु
कमल
कमला
कमल
विअसन्तु / विअसन्त
विअसन्ता
(2) वाक्यों में प्रयोग- विशेष्य :
कमला
विअसमाणु / विअसमाण / सोहिअ / आदि
विअसमाणा
विअसन्त / विअसन्ता / विअसन्तइं / विअसन्ताई
विअसमाण/विअसमाणा / विअसमाणइं / विअसमाणाइं
विअसन्त / विअसन्ता / विअसन्तई / विअसन्ताई विअसमाण / विअसमाणा / विअसमाणइं / विअसमाणाइं
कमलई विअसन्त / विअसन्ता /
विअसन्तइं/ विअसन्ताई विअसमाण / विअसमाणा / विअसमाणइं/विअसमाणाइं
कमलाई विअसन्त / विअसन्ता /
विअसन्तई / विअसन्ताई विअसमाण / विअसमाणा / विअसमाणइं/विअसमाणाइं
(वर्तमानकाल)
सोहइ / आदि = कमल खिलता हुआ शोभता है। (विधि एवं आज्ञा )
= कमल खिलता हुआ शोभे ।
76
सोहउ
सोहेइसइ / आदि
= कमल खिलता हुआ शोभा । (भविष्यत्काल)
सोहन्तु
नपुंसकलिंग, बहुवचन प्रथमा विभक्ति (कर्ताकारक) (सभी कालो में)
सोहहिं / सोहन्ति / आदि
(भूतकाल - भूत कृदन्त)
= कमल खिलता हुआ शोभेगा ।
सोहेसन्ति / आदि
(वर्तमानकाल) = कमल खिलते हुए शोभते हैं।
(भूतकाल - भूत कृदन्त)
सोहिअ / सोहिआ /= कमल खिलते हुए शोभे । सोहिअइं/सोहि आई
(विधि एवं आज्ञा ) = कमल खिलते हुए शोभें ।
(भविष्यत्काल)
= कमल खिलते हुए शोभेंगे ।
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #96
--------------------------------------------------------------------------
________________
(ग) अकर्मक क्रियाएँ
णच्च = नाचना,
सय = सोना
वर्तमान कृदन्त के प्रत्यय
णच्च
सय
माण
ससा
णच्चन्त = नाचता हुआ सयन्त = सोता हुआ
णच्चमाण = नाचता हुआ सयमाण = सोता हुआ (1) वाक्यों में प्रयोग- विशेष्य : स्त्रीलिंग, एकवचन, प्रथमा विभक्ति (कर्ताकारक)
(सभी कालों में) (नोट - सर्वप्रथम कृदन्त का स्त्रीलिंग बनाना चाहिए। 'आ' प्रत्यय जोड़ें -
(णच्चन्ता, सयन्ता, णच्चमाणा, सयमाणा) अब इसके रूप 'कहा' की तरह चलेंगे।)
(वर्तमानकाल) थक्कइ/आदि = बहिन नाचती हुई थकती है।
(विधि एवं आज्ञा) णच्चन्ता/णच्चन्त
= बहिन नाचती हुई थके। णच्चमाणा/णच्चमाण
(भूतकाल-भूत कृदन्त)
थक्किआ/थक्किअ = बहिन नाचती हुई थकी। सस
(भविष्यत्काल)
थक्केसइ/आदि = बहिन नाचती हुई थकेगी। (2) वाक्यों में प्रयोग - विशेष्य : स्त्रीलिंग, बहुवचन, प्रथमा विभक्ति (कर्ताकारक)
(सभी कालों में) (नोट - सर्वप्रथम वर्तमान कृदन्त का स्त्रीलिंग बनाना चाहिए। 'आ' प्रत्यय जोडें
(णच्चन्ता, सयन्ता; णच्चमाणा, सयमाणा) अब इसके रूप 'कहा' की तरह चलेंगे।)
थक्कउ
पन्त
अपभ्रंश रचना सौरभ
77
Page #97
--------------------------------------------------------------------------
________________
ससा
(वर्तमानकाल) थक्कहिं/आदि = बहिनें नाचती हुई थकती हैं।
__ (विधि एवं आज्ञा) थक्कन्तु = बहिनें नाचती हुई थकें।
(भूतकाल-भूतकृदन्त)
सस
ससाउ
णच्चन्ता/णच्चन्त/ णच्चन्ताउ/णच्चन्तउ/ णच्चन्ताओ/णच्चन्तओ
ससउ ससाआ ससओ
थक्किआ/आदि = बहिनें नाचती हुई थकीं।
(भविष्यत्काल) थक्केसहिं/आदि = बहिनें नाचती हुई थकेगी।
3.
उपर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं। उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं।
78
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #98
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 43
अभ्यास निम्नलिखित वाक्यों की अपभ्रंश में रचना कीजिए - (क)(1) पुत्र शरमाता हुआ बैठता है। (2) कुत्ता भोंकता हुआ भागता है। (3) दादा दु:खी होता हुआ सोया। (4) मित्र प्रयत्न करता हुआ प्रसन्न हुआ। (5) बालक डरता हुआ रोता है। (6) अग्नि जलती हुई नष्ट होती है। (7) राक्षस काँपते हुए बैठते हैं। (8) समुद्र फैलते हुए सूखेंगे। (9) पोते लड़ते हुए काँपे । (10) ऊँट नाचते हुए थकते हैं। (11) पुत्र गिड़गिड़ाता हुआ बैठा। (12) मनुष्य हँसता हुआ जीवे । (13) पिता खुश होता हुआ प्रयास करे। (14) राक्षस छटपटाता हुआ मरा। (15) पानी टपकता हुआ सूखा।
(ख) - (1) लकड़ी जलती हुई नष्ट होती है। (2) नागरिक लोभ करता हुआ जिया। (3) वैराग्य बढ़ता हुआ शोभता है। (4) विमान उड़ता हुआ गिरा। (5) राज्य लड़ते हुए नष्ट होते हैं। (6) सदाचार बढ़ता हुआ खिलता है। (7) शासन भूल करता हुआ डरता है। (8) सत्य सिद्ध होता हुआ शोभेगा। (9) कर्म गलते हुए छूटते हैं। (10) गठरियाँ लुढ़कती हुई ठहरीं।
(ग) - (1) पुत्री प्रसन्न होती हुई उठी। (2) श्रद्धा बढ़ती हुई शोभती है। (3) पत्नी खुरटि भरती हुई सोती है। (4) माता उत्साहित होती हुई बैठती है। (5) नर्मदा फैलती हुई सूखी। (6) झोपड़ियाँ जलती हुई नष्ट हुईं। (7) प्रतिष्ठा बढ़ती हुई शोभती है। (8) महिलाएँ अफसोस करती हुई घूमती हैं। (9) वाणी प्रकट होती हुई सिद्ध हुई। (10) घास जलता हुआ नष्ट हुआ।
अपभ्रंश रचना सौरभ
79
Page #99
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 44 भूतकालिक कृदन्त (भाववाच्य में प्रयोग)
संज्ञाएँ
सर्वनाम अकारान्त पुल्लिंग नरिंद
हउं (पुरुषवाचक सर्वनाम
उत्तम पुरुष, प्रथमा एकवचन) अकारान्त नपुंसकलिंग कमल
तुहं (पुरुषवाचक सर्वनाम
मध्यम पुरुष, प्रथमा एकवचन) आकारान्त स्त्रीलिंग ससा
सो (पुरुष), सा (स्त्री) (पुरुषवाचक
सर्वनाम-अन्य पुरुष, प्रथमा एकवचन) अकर्मक क्रियाएँ
हस = हँसना, जग्ग = जागना, विअस = खिलना, वड्ढ = बढ़ना (1)
नपुंसकलिंग एकवचन नरिंदें/नरिंदेण/नरिंदेणं हसिअ/हसिआ/हसिउ = राजा के द्वारा हँसा गया। कमलें/कमलेण/कमलेणं विअसिअ/विअसिआ/ = कमल द्वारा खिला गया।
विअसिउ ससाए/ससए
जग्गिअ/जग्गिआ/जग्गिउ = बहिन के द्वारा जागा गया।
हसिअ/हसिआ/हसिउ = मेरे द्वारा हँसा गया। . पई/तई
हसिअ/हसिआ/हसिउ = तुम्हारे द्वारा हँसा गया। तें/तेण/तेणं
हसिअ/हसिआ/हसिउ = उसके द्वारा हँसा गया। ताए/तए
हसिअ/हसिआ/हसिउ = उस (स्त्री) के द्वारा हँसा
गया।
नपुंसकलिंग एकवचन हसिअ/हसिआ/हसिउ
= राजाओं के द्वारा हँसा गया।
(2) नरिंदहिं/नरिंदाहिं/ नरिंदेहिं कमलहिं/कमलाहिं/ कमलेंहि ससाहिं/ससहिं
= कमलों द्वारा खिला गया।
विअसिअ/विअसिआ विअसिउ हसिअ/हसिआ/हसिउ
= बहिनों द्वारा हँसा गया।
80
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #100
--------------------------------------------------------------------------
________________
हसिअ/हसिआ/हसिउ = हमारे द्वारा हँसा गया। हसिअ/हसिआ/हसिउ = तुम्हारे द्वारा हँसा गया। हसिअ/हसिआ/हसिउ __= उनके द्वारा हँसा गया। हसिअ/हसिआ/हसिउ . = उन (स्त्रियों) के द्वारा हँसा गया।
हिं/ताहिं/तेहिं बाहिं/तहिं
मई
(क) नरिंदें/नरिंदेण/नरिंदेणं (अकारान्त पुल्लिग-तृतीया एकवचन)
कमलें/कमलेण/कमलेणं (अकारान्त नपुंसकलिंग-तृतीया एकवचन) ससाए/ससए (आकारान्त स्त्रीलिंग-तृतीया एकवचन) (उत्तम पुरुष सर्वनाम-तृतीया एकवचन
(पुल्लिग-स्त्रीलिंग)। पइं/तई (मध्यम पुरुष सर्वनाम-तृतीया एकवचन
(पुल्लिग-स्त्रीलिंग)। तें/तेण/तेणं (अन्य पुरुष सर्वनाम-तृतीया एकवचन(पुल्लिग)। ताए/तए
(अन्य पुरुष सर्वनाम-तृतीया एकवचन (स्त्रीलिंग)। __ तृतीया एकवचन बनाने के लिए अकारान्त पुल्लिंग और नपुंसकलिंग संज्ञा शब्दों में एं, ण, और णं प्रत्यय जोड़े जाते हैं, ण और णं जोड़ने पर अन्त्य 'अ' का 'ए' हो जाता है (नरिंदें, नरिंदेण, नरिंदेणं), (कमलें, कमलेण, कमलेणं)। आकारान्त स्त्रीलिंग संज्ञा शब्दों के एकवचन में 'ए' प्रत्यय जोड़ा जाता है। 'ए' प्रत्यय जोड़ने पर अन्त्य 'आ' 'अ' भी हो जाता है (ससाए, ससए)। अन्य पुरुष सर्वनाम के लिए यही नियम समझ लेना चाहिए। बाकी उत्तम पुरुष, मध्यम पुरुष सर्वनाम को इसी प्रकार
याद कर लेना चाहिए। (ख) तृतीया बहुवचन बनाने के लिए अकारान्त पुल्लिंग और नपुंसकलिंग संज्ञा
शब्दों में तथा आकारान्त स्त्रीलिंग शब्दों में 'हिं' प्रत्यय जोड़ा जाता है, 'हिं' जोड़ने पर अकारान्त शब्दों का अन्त्य 'अ', 'ए' भी हो जाता है तथा 'आ' भी हो जाता है (नरिंदहिं, नरिंदेहि, नरिंदाहिं; कमलहिं, कमलेहिं, कमलाहिं)।
तृतीया बहुवचन बनाने के लिए उत्तम पुरुष, मध्यम पुरुष और अन्य पुरुष के सर्वनामों में भी 'हिं' प्रत्यय जोड़ा जाता है। तीनों पुरुषों में 'हिं'
अपभ्रंश रचना सौरभ
81
Page #101
--------------------------------------------------------------------------
________________
2.
3.
82
जोड़ने पर अन्त्य ‘अ' का 'ए' हो जाता है और केवल अन्य पुरुष में अ ‘अ' का ‘आ' तथा 'आ' का 'अ' भी हो जाता है। (अम्ह~ अम्हे तुम्ह - तुम्हेहिं, त- तेहिं / तहिं/ताहिं, ता - ताहिं / तहिं ) ।
यदि क्रिया अकर्मक होती है तो भूतकालिक कृदन्त भाववाच्य में भी प्र होता है । भूतकालिक कृदन्त से भाववाच्य बनाने के लिए कर्ता में तृती (एकवचन अथवा बहुवचन) तथा कृदन्त में सदैव नपुंसकलिंग प्रथ एकवचन ही रहेगा।
उपर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं तथा सभी वाक्य भाववाच्य के हैं।
अपभ्रंश रचना सौर
Page #102
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 45
अभ्यास निम्नलिखित वाक्यों की अपभ्रंश में रचना कीजिए - (1) पानी द्वारा झरा गया। (2) बादलों द्वारा गरजा गया। (3) मित्र द्वारा प्रसन्न हुआ गया। (4) अपयश द्वारा फैला गया। (5) समुद्रों द्वारा सूखा गया। (6) अग्नि द्वारा जला गया। (7) मृत्यु द्वारा भागा गया। (8) हमारे द्वारा काँपा गया। (9) तुम्हारे द्वारा घूमा गया। (10) उसके द्वारा खेला गया। (11) विमान द्वारा उड़ा गया। (12) गठरी द्वारा लुढ़का गया। (13) लकड़ियों द्वारा जला गया। (14) बीजों द्वारा उगा गया। (15) मनुष्य द्वारा जन्म लिया गया। (16) कुत्तों द्वारा भोंका गया। (17) कुओं द्वारा सूखा गया। (18) राक्षस द्वारा मरा गया। (19) रत्नों द्वारा शोभा गया। (20) सिंहों द्वारा गरजा गया। (21) परीक्षा द्वारा हुआ गया। (22) कन्याओं द्वारा छिपा गया। (23) महिलाओं द्वारा शान्त हुआ गया। (24) बेटी द्वारा खांसा गया। (25) प्रतिष्ठा द्वारा कम हुआ गया। (26) बुढ़ापे द्वारा बढ़ा गया। (27) सुख द्वारा गला गया। (28) धान द्वारा पैदा हुआ गया। (29) भूख द्वारा लगा गया। (30) राज्यों द्वारा लड़ा गया। (31) उनके द्वारा थका गया। (32) तुम्हारे द्वारा डरा गया। (33) उन (स्त्रियों) द्वारा खेला गया। (34) तुम दोनों के द्वारा नहाया गया। (35) उस (स्त्री) के द्वारा खुश हुआ गया।
अपभ्रंश रचना सौरभ
83
Page #103
--------------------------------------------------------------------------
________________
ससा
पाठ 46 अकर्मक क्रियाएँ (भाववाच्य में प्रयोग) संज्ञाएँ
सर्वनाम अकारान्त पुल्लिंग नरिंद हउं (पुरुषवाचक सर्वनामअकारान्त नपुंसकलिंग कमल
उत्तम पुरुष, प्रथमा एकवच आकारान्त स्त्रीलिंग
तुहं (पुरुषवाचक सर्वनाम___मध्यम पुरुष, प्रथमा एकवच सो (पुरुष) (पुरुषवाचक सर्वनाम
अन्य पुरुष, प्रथमा एकवच सा (स्त्री) (पुरुषवाचक सर्वनाम
अन्य पुरुष, प्रथमा एकवच अकर्मक क्रियाएँ
हस = हँसना, जग्ग = जागना, वड्ढ = बढ़ना, विअस = खिल
उपर्युक्त क्रियाएँ अकर्मक हैं। अकर्मक क्रियाएँ कर्तृवाच्य और भाववाच्य में प्रम होती हैं। अकर्मक क्रिया से भाववाच्य बनाने के लिए 'इज्ज', 'इय' प्रत्यय जोड़े जाते भाववाच्य में कर्ता में तृतीया (एकवचन अथवा बहुवचन) हो जाता है और क्रिया में भावया के प्रत्यय जोड़ने के पश्चात् 'अन्य पुरुष एकवचन' का प्रत्यय भी लगा दिया जाता भाववाच्य वर्तमानकाल तथा विधि एवं आज्ञा में बनाया जाता है। भविष्यत्काल में क्रि का भविष्यत्काल कर्तृवाच्य का रूप ही रहता है। भूतकाल के लिए भूतकालिक कृदन्त प्रयोग भाववाच्य में किया जाता है। भाववाच्य के प्रत्यय हस जग्ग वर्तमानकाल विधि एवं आ इज्ज हसिज्ज जग्गिज्ज हसिज्जइ । हसिज्जउ ।
हसियइ हसियउ इअ (इय) हसिअ(य) जग्गिय(अ) जग्गिज्जइ। जग्गिज्ज
जग्गियइ ।
जग्गियउ ।
84
अपभ्रंश रचना सौर
Page #104
--------------------------------------------------------------------------
________________
एकवचन नरिंदें/नरिंदेण/नरिंदेणं कमलें/कमलेण/कमलेणं ससाए/ससए
पइं/तई तें/तेण/तेणं ताए/तए
नरिंदें/नरिंदेण/नरिंदेणं कमलें/कमलेण/कमलेणं ससाए/ससए
वर्तमानकाल हसिज्जइ/हसियइ . = राजा के द्वारा हँसा जाता है। विअसिज्जइ/विअसियइ = कमल द्वारा खिला जाता है। जग्गिज्जइ/जग्गियइ ___= बहिन द्वारा जागा जाता है। हसिज्जइ/हसियइ = मेरे द्वारा हँसा जाता है। हसिज्जइ/हसियइ = तुम्हारे द्वारा हँसा जाता है। हसिज्जइ/हसियइ = उसके द्वारा हँसा जाता है। हसिज्जइ/हसियइ = उस (स्त्री) के द्वारा हँसा
जाता है। विधि एवं आज्ञा हसिज्जउ/हसियउ = राजा के द्वारा हँसा जाए। विअसिज्जउ/विअसियउ = कमल द्वारा खिला जाए। जग्गिज्जउ/जग्गियउ = बहिन के द्वारा जागा जाए। हसिज्जउ/हसियउ मेरे द्वारा हँसा जाए। हसिज्जउ/हसियउ ___= तुम्हारे द्वारा हँसा जाए। हसिज्जउ/हसियउ = उसके द्वारा हँसा जाए। हसिज्जउ/हसियउ उस (स्त्री) के द्वारा हँसा जाए। भविष्यत्काल हसेसइ/आदि = राजा के द्वारा हँसा जायेगा विअसेसइ/आदि = कमल द्वारा खिला जायेगा जग्गेसइ/आदि = बहिन द्वारा जागा जायेगा। हसेसइ/आदि = मेरे द्वारा हँसा जायेगा। हसेसइ/आदि = तुम्हारे द्वारा हँसा जायेगा। हसेसइ/आदि = उसके द्वारा हँसा जायेगा। हसेसइ/आदि = उस (स्त्री) के द्वारा हँसा
जायेगा।
पई/तई ते/तेण/तेणं ताए/तए
नरिंदें/नरिंदेण/नरिंदेणं कमलें/कमलेण/कमलेणं ससाए/ससए
मई
पइं/तई तें/तेण/तेणं ताए/तए
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #105
--------------------------------------------------------------------------
________________
बहुवचन
वर्तमानकाल नरिंदहिं/नरिंदाहिं/नरिंदेहिं । हसिज्जइ/हसियइ = राजाओं के द्वारा हँसा जाता है। कमलहिं/कमलाहिं/कमलेहिं विअसिज्जइ/विअसियइ = कमलों द्वारा खिला जाता है। ससाहिं/ससहिं
जग्गिज्जइ/जग्गियइ · = बहिनों द्वारा जागा जाता है। अम्हेहिं
हसिज्जइ/हसियइ = हमारे द्वारा हँसा जाता है। तुम्हेहिं
हसिज्जइ/हसियइ = तुम्हारे द्वारा हँसा जाता है। तहिं/ताहिं/तेहिं
हसिज्जइ/हसियइ ___ = उनके द्वारा हँसा जाता है। ताहिं/तहिं
हसिज्जइ/हसियइ = उन (त्रियों) के द्वारा हँसा जाता है।
विधि एवं आज्ञा नरिंदहिं/ नरिंदाहिं/नरिंदेहिं । हसिज्जउ/हसियउ = राजाओं द्वारा हँसा जाए। कमलहिं/कमलाहिं/कमलेहिं विअसिज्जउ/विअसियउ = कमलों द्वारा खिला जाए। ससाहिं/ससहिं
जग्गिज्जउ/जग्गियउ = बहिनों द्वारा जागा जाए। अम्हेहिं
हसिज्जउ/हसियउ = हमारे द्वारा हँसा जाए। तुम्हेहिं
हसिज्जउ/हसियउ = तुम्हारे द्वारा हँसा जाए। तहिं/ताहिं/तेहिं हसिज्जउ/हसियउ = उनके द्वारा हँसा जाए। ताहि तहिं
हसिज्जउ/हसियउ ___= उन (स्त्रियों) के द्वारा हँसा जाए।
भविष्यत्काल नरिंदहिं नरिंदाहिं/नरिंदेहिं हसेसइ/आदि = राजाओं के द्वारा हँसा जायेगा। कमलहिं/कमलाहिं/कमलेहिं विअसेसइ/आदि = कमलों द्वारा खिला जायेगा। ससाहिं/ससहिं
जग्गेसइ/आदि = बहिनों द्वारा जागा जायेगा। अम्हेहिं
हसेसइ/आदि = हमारे द्वारा हँसा जायेगा। तुम्हेहिं
हसेसइ/आदि = तुम्हारे द्वारा हँसा जायेगा। तहिं/ताहिं/तेहिं हसेसइ/आदि = उनके द्वारा हँसा जायेगा। ताहिं/तहिं
हसेसइ/आदि = उन (स्त्रियों) के द्वारा हँसा जायेगा।
(क) पाठ 43 का 1 (क) देखें। (ख) पाठ 4 3 का । (ख) देखें। उपर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं तथा सभी वाक्य भाववाच्य के हैं।
अपभ्रंश रचना सौरभ
2.
.
Page #106
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 47
अभ्यास निम्नलिखित वाक्यों की अपभ्रंश में रचना कीजिए - (1) विमानों द्वारा उड़ा जाता है। (2) पानी द्वारा झरा जाता है। (3) मित्र द्वारा प्रसन्न हुआ जाता है। (4) समुद्रों द्वारा सूखा जाता है। (5) अग्नि द्वारा जला जाता है। (6) हमारे द्वारा काँपा जाता है। (7) उसके द्वारा खेला जाता है। (8) गठरी द्वारा लुढ़का जाता है। (9) सिंहों द्वारा गर्जा जाता है। (10) कन्याओं द्वारा छिपा जाता है। (11) उनके द्वारा खेला जाए। (12) मनुष्यों द्वारा जन्म लिया जाए। (13) महिलाओं द्वारा शान्त हुआ जाए। (14) राज्यों द्वारा लड़ा जाए। (15) पुत्रियों द्वारा थका जाए। (16) माता द्वारा खुश हुआ जाए। (17) शिक्षा द्वारा फैला जाए। (18) श्रद्धा द्वारा बढ़ा जाए। (19) परीक्षा द्वारा हुआ जाए। (20) उन (स्त्रियों) के द्वारा शरमाया जाए। (21) विमान द्वारा उड़ा जायेगा। (22) राज्यों के द्वारा लड़ा जायेगा। (23) उनके द्वारा उछला जायेगा। (24) कुत्तों के द्वारा भोंका जायेगा। (25) बीजों के द्वारा उगा जायेगा।
अपभ्रंश रचना सौरभ
87
Page #107
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 48 विधि कृदन्त (भाववाच्य में प्रयोग) अपभ्रंश में 'हँसा जाना चाहिए', 'जागा जाना चाहिए' आदि भावों को प्रकट करने के लिए विधि कृदन्त का प्रयोग किया जाता है। क्रिया में निम्नलिखित प्रत्यय लगाकर विधि कृदन्त बनाए जाते हैं। अपभ्रंश में दो प्रकार के विधि कृदन्त के प्रत्यय पाए जाते हैं - (1) अव्व (परिवर्तनीय रूप) (2) इएव्वउं, एव्वउं, एवा (अपरिवर्तनीय रूप)। प्रथम प्रकार के विधि कृदन्त का भाववाच्य में प्रयोग करने के लिए कर्ता में तृतीया (एकवचन अथवा बहुवचन) तथा कृदन्त में सदैव नपुंसकलिंग प्रथमा एकवचन ही रहेगा। विधि कृदन्त का यह रूप 'कमल' (नपुंसकलिंग) शब्द की तरह चलेगा। दूसरे प्रकार के विधि कृदन्त का भाववाच्य में प्रयोग करने के लिए भी कर्ता में तो तृतीया (एकवचन अथवा बहुवचन) होगा, किन्तु कृदन्त में कोई परिवर्तन नहीं होगा। विधि कृदन्त कर्तृवाच्य में प्रयुक्त नहीं होता है। संज्ञाएँ
सर्वनाम अकाग्रन्त पुल्लिंग नरिंद हउं (पुरुषवाचक सर्वनामअकारान्त नपुंसकलिंग कमल
उत्तम पुरुष (प्रथमा एकवचन)। आकारान्त स्त्रीलिंग ससा तुहं (पुरुषवाचक सर्वनाम
मध्यम पुरुष (प्रथमा एकवचन)। सो (पुरुष), सा (स्त्री) (पुरुषवाचक
सर्वनाम-अन्य पुरुष (प्रथमा एकवचन) अकर्मक क्रियाएँ
हस = हँसना, जग्ग = जागना, विअस = खिलना विधि कृदन्त के प्रत्यय हस
जग्ग
विअस (1) अव्व हसिअव्य।
जग्गिअव्व। विअसिअव्व। हसेअव्व । जग्गेअव्व । विअसेअव्व । (2) इएव्वउं हसिएव्वउं जग्गिएव्वउं विअसिएव्वउं
एव्वउं हसेव्वळ जग्गेव्वउं विअसेव्वउं __ एवा हसेवा
जग्गेवा विअसेवा नोट - 'अव्व' प्रत्यय लगने के पश्चात् अन्त्य 'अ' का 'इ' और 'ए' हो जाता है।
88
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #108
--------------------------------------------------------------------------
________________
(1) विधि कृदन्त के परिवर्तनीय रूप
नपुंसकलिंग एकवचन
नरिंदें/नरिंदेण/नरिंदेणं
कमलें/कमलेण/कमलेणं
ससाए/ससए
राजा के द्वारा हँसा हसेअव्व/हसेअव्वा/हसेअव्वु जाना चाहिए। विअसिअव्व/विअसिअव्वा/विअसिअव्वु कमल के द्वारा खिला विअसेअव्व/विअसेअव्वा/विअसेअब्बु जाना चाहिए। जग्गिअव्व/जग्गिअव्वा/जग्गिअब्बु बहिन के द्वारा जागा जग्गेअव्व/जग्गेअव्वा/जग्गेअब्बु जाना चाहिए। हसिअव्व/हसिअव्वा/हसिअव्वु मेरे द्वारा हँसा जाना हसेअव्व/हसेअव्वा/हसेअव्वु *चाहिए। हसिअव्व/हसिअव्वा/हसिअव्वु तुम्हारे द्वारा हँसा हसेअव्व/हसेअव्वा/हसेअब्बु जाना चाहिए। हसिअव्व/हसिअव्वा/हसिअव्वु उसके द्वरा हँसा हसेअव्व/हसेअव्वा/हसेअव्वु जाना चाहिए। हसिअव्व/हसिअव्वा/हसिअव्बु उस (स्त्री) के द्वारा हसेअव्व/हसेअव्वा/हसेअव्वु हँसा जाना चाहिए।
पई/तई
तें/तेण/तेणं
ताए/तए
(2) विधि कृदन्त के अपरिवर्तनीय रूप
नरिंदें/नरिंदेण/नरिंदेणं हसिएव्वउं/हसेव्वउं/हसेवा = राजा के द्वारा हँसा
जाना चाहिए। कमलें/कमलेण/कमलेणं विअसिएव्वउं/विअसेव्वउं/विअसेवा = कमल के द्वारा खिला
जाना चाहिए। ससाए/सरसए जग्गिएव्वउं/जग्गेव्वउं/जग्गेवा = बहिन के द्वारा जागा
जाना चाहिए। हसिएव्वउं/हसेव्वउं/हसेवा = मेरे द्वारा हँसा जाना
चाहिए। पई/तई हसिएव्वउं/हसेल्वउं/हसेवा = तुम्हारे द्वारा हँसा जाना
चाहिए। अपभ्रंश रचना सौरभ
89
Page #109
--------------------------------------------------------------------------
________________
तें/तेण / तेणं
ताए / तए
अम्हेहिं
तुम्हेहिं
तहिं / ताहिं / तेहिं
ताहिं तहिं
नरिंदहिं/ नरिंदाहिं / नरिंदेहिं
हसि अव्व / हसिअव्वा / हसिअव्वु हसे अव्व / हसे अव्वा / हसे अव्वु
कमलहिं / कमलाहिं / कमलेहिं विअसिअव्व/विअसिअव्वा /विअसिअव्वु
ससाहिं/ससहिं
विअसे अव्व / विअसे अव्वा / विअसेअव्वु जग्गअव्व / जग्गिअव्वा / जग्गिअव्वु जग्गे अव्व/जग्गे अव्वा / जग्गेअव्वु हसि अब्ब/हसि अव्वा / हसिअब्बु हसे अव्व / हसे अव्वा / हसे अव्वु हसि अन्व / हसि अन्वा / हसिअव्वु
हसे अव्व / हसे अव्वा / हसेअब्बु हसि अब्ब / हसि अव्वा / हसिअव्वु
हसिएव्वउं/ हसेव्वउं / हसेवा
हसिएव्वउं / हसेव्वउं / हसेवा
90
उसके द्वारा हँसा जाना
चाहिए ।
= उस (स्त्री) के द्वारा हँसा जाना चाहिए।
=
(1) विधि कृदन्त के परिवर्तनीय रूप नपुंसकलिंग एकवचन
नरिंदहिं/ नरिंदाहिं/ नरिंदेहिं हसिएव्वउं / हसेव्वउं / हसेवा
कमलहिं / कमलाहिं / कमलेहिं विअसिएव्वउं/विअसेव्वउं/विअसेवा
• हसे अव्व / हसे अव्वा / हसेअब्बु हसि अव्व / हसि अव्वा / हसिअब्बु हसे अव्व / हसे अव्वा / हसे अव्वु
(2) विधि कृदन्त के अपरिवर्तनीय रूप
=
राजाओं के द्वारा हँसा
जाना चाहिए।
कमलों के द्वारा खिला
जाना चाहिए।
बहिनों के द्वारा जागा
जाना चाहिए।
हमारे द्वारा हँसा
जाना चाहिए।
तुम्हारे द्वारा हँसा
जाना चाहिए।
उनके द्वारा हँसा
=
=
=
राजाओं के द्वारा
हँसा जाना चाहिए।
=
जाना चाहिए।
उन (स्त्रियों) के द्वारा
हँसा जाना चाहिए।
=
कमलों द्वारा खिला जाना चाहिए ।
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #110
--------------------------------------------------------------------------
________________
ससाहि/ससहिं
अम्हेहिं
तुम्हेहिं
जग्गिएव्वउं/जग्गेव्वउं/जग्गेवा = बहिनों द्वारा जागा
जाना चाहिए। हसिएव्वउं/हसेव्वउं/हसेवा = हमारे द्वारा हँसा
जाना चाहिए। हसिएव्वउं/हसेव्वउं/हसेवा = तुम्हारे द्वारा हँसा
जाना चाहिए। हसिएव्वउं/हसेव्वउं/हसेवा ___ = उनके द्वारा हँसा
जाना चाहिए। हसिएव्वउं/हसेव्वउं/हसेवा = उन (स्त्रियों) के द्वारा
हँसा जाना चाहिए।
तहिं/ताहिं/तेहिं
ताहिं/तहिं
अपभ्रंश रचना सौरभ
91
Page #111
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 49
अभ्यास निम्नलिखित वाक्यों की अपभ्रंश में रचना कीजिए - (1) राज्य द्वारा लड़ा जाना चाहिए। (2) श्रद्धा द्वारा बढ़ा जाना चाहिए। (3) उनके द्वारा खेला जाना चाहिए। (4) माता द्वारा खुश हुआ जाना चाहिए। (5) मनुष्यों द्वारा जन्म लिया जाना चाहिए। (6) उन (स्त्रियों) द्वारा शरमाया जाना चाहिए। (7) कुत्ते द्वारा भोंका जाना चाहिए। (8) स्त्रियों द्वारा नाचा जाना चाहिए। (9) कन्याओं द्वारा छिपा जाना चाहिए। (10) मित्रों द्वारा प्रसन्न हुआ जाना चाहिए। (11) अग्नि द्वारा जला जाना चाहिए। (12) सूर्य द्वारा उगा जाना चाहिए। (13) सिंह द्वारा गरजा जाना चाहिए। (14) उसके द्वारा खेला जाना चाहिए। (15) मेरे द्वारा कूदा जाना चाहिए। (16) तुम दोनों के द्वारा उत्साहित हुआ जाना चाहिए। (17) हमारे द्वारा डरा जाना चाहिए। (18) राक्षस द्वारा मरा जाना चाहिए। (19) बीजों द्वारा उगा जाना चाहिए। (20) विमान द्वारा उड़ा जाना चाहिए।
92
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #112
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 50 संज्ञा - सर्वनाम द्वितीया-एकवचन
(सकर्मक क्रियाएँ) संज्ञाएँ
द्वितीया एकवचन अकारान्त पुल्लिंग नरिंद = राजा,
नरिंद/नरिंदा/नरिंदु करह = ऊँट,
करह/करहा/करहु परमेसर = परमेश्वर, परमेसर/परमेसरा/परसेसरु अकारान्त नपुंसकलिंग भोयण = भोजन, भोयण/भोयणा/भोयणु तिण = घास,
तिण/तिणा/तिणु रज्ज = राज्य,
रज्ज/रज्जा/रज्जु आकारान्त स्त्रीलिंग माया = माता,
माया/माय कहा = कथा,
कहा/कह सिक्खा = शिक्षा सिक्खा/सिक्ख
सकर्मक क्रियाएँ
रक्ख = रक्षा करना, पाल = पालना, सुण = सुनना, चर = चरना,
पणम = प्रणाम करना, जाण = जानना, समझना खा = खाना (1) अकारान्त पुल्लिंग वर्तमानकाल
(द्वितीया एकवचन) नरिंदु नरिंदो
, परमेसर/परमेसरा/परमेसरु पणमइ = राजा पमरेश्वर को प्रणाम करता है। नरिंद नरिंदा
नरिंद/नरिंदा/नरिंदु
रक्खइ = राज्य राजा की रक्षा करता है।
रज्जा रज्जु J
अपभ्रंश रचना सौरभ
93
.
Page #113
--------------------------------------------------------------------------
________________
माया
माय
(2)
करहु
करहो
करह
करहा
नरिंदु
नरिंदो
नरिंद
नरिंदा
माया
माय
(3)
} नरिंद/नरिंदा / नरिंदु
नरिंदु
नरिंदो
नरिंद
नरिंदा
रज्ज
रज्जा
रज्जु
माया
माय
94
अकारान्त नपुंसकलिंग
(द्वितीया एकवचन)
}
तिण/तिणा/तिणु
रज्ज / रज्जा / रज्जु
} भोयण/भोयणा/भोयणु
आकारान्त स्त्रीलिंग
(द्वितीया एकवचन)
माया / माय
सिक्खा / सिक्ख
कहा / कह
पणमइ = माता राजा को प्रणाम करती है।
वर्तमानकाल
चरइ = ऊँट घास चरता है।
रक्खइ = राजा राज्य की रक्षा करता है ।
खाइ = माता भोजन खाती है।
वर्तमानकाल
पणमइ = राजा माता को प्रणाम करता है।
जाणइ = राज्य शिक्षा को समझता है।
सुणइ = माता कथा सुनती है।
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #114
--------------------------------------------------------------------------
________________
सर्वनाम शब्द द्वितीया एकवचन
4)
3. IEEEE
पइं/तइं पणमउं/आदि = मैं तुमको प्रणाम करता हूँ। मई . पालहि/आदि ___ = तुम मुझको पालते हो। तं जाणइ/आदि. = वह उस(पुरुष) को जानता है।
जाणइ/आदि ___= वह उस (स्त्री) को जानती है। रक्खइ/आदि ___वह उस (राज्य) की रक्षा करता है।
शा.
2.
1.
(1) अकारान्त पुल्लिंग संज्ञा शब्दों से द्वितीया एकवचन बनाने के लिए '0',
0•आ, उ प्रत्यय जोड़े जाते हैं। जैसे - नरिंद, नरिंदा, नरिंदु। (2) अकारान्त नपुंसकलिंग संज्ञा शब्दों से द्वितीया एकवचन बनाने के लिए '0',
0•आ, उ प्रत्यय जोड़े जाते हैं। जैसे - रज्ज, रज्जा, रज्जु। (3) आकारान्त स्त्रीलिंग संज्ञा शब्दों से द्वितीया एकवचन बनाने के लिए '0',
0-अप्रत्यय जोड़े जाते हैं। जैसे - माया, माय। (4) उत्तम पुरुष सर्वनाम का द्वितीया एकवचन होगा - मई। देखें पृ. स. 184
मध्यम पुरुष सर्वनाम का द्वितीया एकवचन होगा - पइं/तई। पृ. सं. 184 अन्य पुरुष (पुल्लिंग, स्त्री, नपुं.) सर्वनाम का द्वितीया एकवचन होगा - तं।
पृष्ठ संख्या 172
2.
उपर्युक्त सभी क्रियाएँ सकर्मक हैं। सकर्मक क्रिया वह होती है, जिसमें कर्ता की क्रिया का प्रभाव कर्म पर पड़ता है। जैसे - 'माता कथा सुनती है', इसमें कर्ता 'माता' की क्रिया 'सुनना' है। इसका प्रभाव 'कथा' पर पड़ता है, क्योंकि 'कथा' सुनी जाती है। अत: 'सुनना' क्रिया का कर्म 'कथा' है।
3.
उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं। इनमें कर्ता के अनुसार क्रियाओं के पुरुष
और वचन होते हैं। संज्ञा-वाक्यों में कर्ता अन्य पुरुष एकवचन में है, अत: क्रियाएँ भी अन्य पुरुष एकवचन की ही लगी हैं।
अपभ्रंश रचना सौरभ
95
Page #115
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 51 संज्ञा - सर्वनाम द्वितीया बहुवचन
. सकर्मक क्रियाएँ (1) संज्ञा
संज्ञाएँ
द्वितीया बहुवचन अकारान्त पुल्लिंग नरिंद = राजा, नरिंद/नरिंदा
करह = ऊँट, करह/करहा
परमेसर = परमेश्वर, परमेसर/परमेसरा अकारान्त नपुंसकलिंग भोयण = भोजन, भोयण/भोयणा/भोयणइं/भोयणाई
तिण = घास, तिण/तिणा/तिणइं/तिणाई
रज्ज = राज्य, रज्ज/रज्जा/रज्जइं/रज्जाई आकारान्त स्त्रीलिंग माया = माता, माया/माय/मायाउ/
मायउ/मायाओ/मायओ ... कहा = कथा, कहा/कह/कहाउ/कहउ/
कहाओ/कहओ . सिक्खा = शिक्षा सिक्खा/सिक्ख/सिक्खाउ/
सिक्खउ/सिक्खाओ/सिक्खओ
सकर्मक क्रियाएँ रक्ख = रक्षा करना, पाल = पालना,
सुण = सुनना, चर = चरना, पणम = प्रणाम करना, जाण = जानना, समझना
खा = खाना (1) अकारान्त पुल्लिग वर्तमानकाल
(द्वितीया बहुवचन)
नरिंदु ।
= राजा पमरेश्वरों (सिद्धों) को प्रणाम करता है।
नरिंदो
7 परमेसर/परमेसरा पणमइ/आदि नरिंदा रज्ज रज्जा नरिंद/नरिंदा रक्खइ/आदि
= राज्य राजाओं की रक्षा करता है।
रज्जु
96
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #116
--------------------------------------------------------------------------
________________
माया
= माता राजाओं को प्रणाम करती है।
माय
वर्तमानकाल
। नरिंद/नरिंदा पणमइ/आदि (2) अकारान्त नपुंसकलिंग
(द्वितीया बहुवचन) करहु । करहो
तिण/तिणा/तिणइं/तिणाई
करह
चरइ = ऊँट (विभिन्न प्रकार के)
घास चरता है।
करहा
नरिंदु नरिंदो नरिंद नरिंदा
रज्ज/रज्जा/रज्जइं/रज्जाई
रक्खइ = राजा राज्यों की रक्षा करता है।
माया
माय
(3)
भोयण/भोयणा/भोयणइं/भोयणाई खाइ = माता (विभिन्न प्रकार के) भोजन
खाती है। आकारान्त स्त्रीलिंग
वर्तमानकाल (द्वितीया बहुवचन)
नरिंदु नरिंदो नरिंद
माया/माय/मायाउ/मायउ/ पणमइ = राजा माताओं को प्रणाम करता है।
नरिंदा | मायाओ/मायओ
रज्ज
सिक्खा/सिक्ख/सिक्खाउ/ जाणइ = राज्य शिक्षाओं को समझता है। रज्जु | सिक्खउ/सिक्खाओ/सिक्खओ
माया। कहा/कह/कहाउ/कहउ/ माय J कहाओ/कहओ
सुणइ = माता कथाओं को सुनती है।
अपभ्रंश रचना सौरभ
97
Page #117
--------------------------------------------------------------------------
________________
(2) सर्वनाम द्वितीया बहुवचन
(4)
हउं
तुम्हे/तुम्हई
पणमउं/आदि = मैं तुम (सब) को
प्रणाम करता हूँ। अम्हे/अम्हई
पालहि/आदि = तुम हम (सब) को
पालते हो। त/ता
जाणइ = वह उन(पुरुषों) को
जानता है। ता/त/ताउ/तउ/ताओ/तओ जाणइ = वह उन (स्त्रियों)
को जानती है। त/ता/तइं/ताई
रक्खइ = वह उन (राज्यों )
की रक्षा करता है।
सो
(1) अकारान्त पुल्लिंग संज्ञा शब्दों से द्वितीया बहुवचन बनाने के लिए '0',
0+आ प्रत्यय जोड़े जाते हैं। जैसे - परमेसर, परमेसरा । (2) अकारान्त नपुंसकलिंग संज्ञा शब्दों से द्वितीया बहुवचन बनाने के लिए ___'0', 0-आ, 'इ', 'ई'-आइं प्रत्यय जोड़े जाते हैं। जैसे - रज्ज, रज्जा ,
रज्जई, रज्जाई। (3) आकारान्त स्त्रीलिंग संज्ञा शब्दों से द्वितीया बहुवचन बनाने के लिए '0',
0-अ, 'उ', उ-अउ, 'ओ', ओ-अओ प्रत्यय जोड़े जाते हैं। जैसे -
माया, माय, मायाउ, मायउ, मायाओ, मायओ। (4) उत्तम पुरुष सर्वनाम का द्वितीया बहुवचन होगा - अम्हे/अम्हई।
मध्यम पुरुष सर्वनाम का द्वितीया बहुवचन होगा - तुम्हे/तुम्हई। अन्य पुरुष सर्वनाम का द्वितीया बहुवचन होगा - (पुल्लिंग) त/ता।
(नपुंसकलिंग) त/ता/तई/ताई।
(स्त्रीलिंग) ता/त/ताउ/तउ/ताओ/तओ। उपर्युक्त सभी क्रियाएँ सकर्मक हैं। उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं।
2.
98
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #118
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 52 सकर्मक क्रियाएँ
अभ्यास
निम्नलिखित सकर्मक क्रियाओं को कर्तृवाच्य में प्रयोग कीजिए। यह प्रयोग वर्तमानकाल, भविष्यत्काल तथा विधि एवं आज्ञा में हो। कर्ता के स्थान पर पुरुषवाचक सर्वनाम का प्रयोग कीजिए। अच्च = पूजा करना,
गरह = निन्दा करना रोक्क = रोकना,
गवेस = खोज करना उग्घाड = खोलना, प्रकट करना,
घाल = डालना उपकर = उपकार करना,
चक्ख = चखना उप्पाड = उपाड़ना, उन्मूलन करना,
चप्प = चबाना कट्ट = काटना,
चिण = चुनना कलंक = कलंकित करना,
चोप्पड = स्निग्ध करना कुट्ट = कूटना,
छंड = छोड़ना कोक = बुलाना,
छल = ठगना खण = खोदना,
छुअ = स्पर्श करना छोड = छोड़ना,
देख = देखना छोल्ल = छीलना,
धो = धोना जिम = जीमना,
पीस = पीसना ढक्क = ढकना,
पुक्कर = पुकारना तोड = तोड़ना,
फाड = फाड़ना निम्नलिखित वाक्यों की अपभ्रंश में रचना कीजिए - (क)(1) पिता पुत्र की निन्दा करता है। (2) दादा पोते को बुलाता है। (3) परमेश्वर संसार को देखता है। (4) देवर वस्त्र धोता है। (5) राजा गर्व को छोड़े। (6) मित्र उसको पुकारे। (7) राम परमेश्वर की पूजा करे। (8) कुत्ता राक्षस को रोकता है।
2.
अपभ्रंश रचना सौरभ
99
Page #119
--------------------------------------------------------------------------
________________
(9) राजा रत्नों की खोज करता है। (10) मनुष्य व्रतों को छोड़ते हैं। (11) वह बालक को ठगता है। (12) तुम सिंह को देखते हो। (13) मैं उसको स्पर्श करता हूँ। (14) वे उनको कलंकित करते हैं। (15) वह वस्त्रों को फाड़ता है। (16) दु:ख सुख को रोकता है। (17) मित्र सिंहों को देखता है। (18) मामा शास्त्रों को स्पर्श करता है। (19) हनुमान उसका उपकार करता है। (20) हम सूर्य को ढकते हैं।
(ख)(1) वह खेत खोदेगा। (3) वह लकड़ी छीले। (5) वह भोजन चबाए। (7) वे गठरी काटेंगे। (9) वे जंगल काटते हैं।
(2) तुम भोजन जीमोगे। (4) मैं घी डालूँगा। (6) तुम दूध चखो। (8) हम धान कूटेंगे। (10) वह बीजों को पीसता है।
(ग) -
(1) राम सीता को बुलाता है। (3) महिला गड्ढा खोदती है। (5) कन्या छोटे घड़े को उघाड़ती है। (7) हम गंगा की पूजा करते हैं। (9) तृष्णा निद्रा को काटती है।
(2) मैं कन्या को पुकारता हूँ। (4) बहिन पुत्रियों को देखती है। (6) पत्नी गड्ढे को ढकती है। (8) भूख प्यास को रोकती है। (10) वह मदिरा छोड़े।
100
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #120
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 53 सकर्मक क्रियाएँ (कर्मवाच्य में प्रयोग)
सकर्मक क्रियाएँ
कोक = बुलाना, पणम = प्रणाम करना,
सुण = सुनना, रक्ख = रक्षा करना,
देख = देखना पाल = पालना
उपर्युक्त क्रियाएँ सकर्मक हैं। सकर्मक क्रियाएँ कर्तृवाच्य और कर्मवाच्य में प्रयुक्त होती हैं। सकर्मक क्रिया से कर्मवाच्य बनाने के लिए वे ही प्रत्यय जोड़े जाते हैं जो भाववाच्य बनाने के लिए जोड़े गए थे (पाठ 45- इज्ज, इअ (इय))। कर्ता में तृतीया (एकवचन अथवा बहुवचन) हो जाता है, कर्म में द्वितीया (एकवचन अथवा बहुवचन) के स्थान पर प्रथमा (एकवचन अथवा बहुवचन) तथा क्रिया में कर्मवाच्य के प्रत्यय जोड़ने के पश्चात् (प्रथमा में परिवर्तित) कर्म के अनुसार क्रिया में पुरुष और वचन के प्रत्यय काल के अनुरूप जोड़ दिए जाते हैं। कर्मवाच्य सकर्मक क्रिया से वर्तमानकाल तथा विधि एवं आज्ञा में बनाया जाता है। भविष्यत्काल में क्रिया का भविष्यत्काल कर्तृवाच्य का रूप ही रहता है उसमें इज्ज और इय प्रत्यय नहीं लगाए जाते हैं। भूतकाल के लिए भूतकालिक कृदन्त का प्रयोग कर्मवाच्य में किया जाता है।
अपभ्रंश रचना सौरभ
101
Page #121
--------------------------------------------------------------------------
________________
कर्तृवाच्य
वर्तमानकाल एकवचन कर्म-द्वितीया क्रिया-कर्ता के अनुसार
कर्ता-प्रथमा
नरिंदु
नरिंदो नरिंद नरिंदा
कोकइ/आदि = राजा मुझको बुलाता है।
नरिंदु।
पइं/तई
नरिंदा नरिंद नरिंदो
कोकइ/आदि == राजा तुमको बुलाता है।
.
नरिंदु नरिंदो नरिंद नरिंदा
कोकइ/आदि = राजा उसको (पु.) बुलाता है।
६. ३३३ ३३ ३३ ३३ ३.३.३ ३.३ ३.४ ३.३.३३
नरिंदु
तं
नरिंदो नरिंद नरिंदा J.
कोकइ/आदि = राजा उसको (स्त्री.) बुलाता है
नरिंदु नरिंदो नरिंद नरिंदा
रक्खइ/आदि = राजा उस (राज्य) की रक्षा करता है
नरिंदु
कहा/कह
सुणइ/आदि = राजा कथा सुनता है।
नरिंदो नरिंद नरिंदा
102
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #122
--------------------------------------------------------------------------
________________
कर्मवाच्य
वर्तमानकाल एकवचन कर्म-प्रथमा क्रिया-परिवर्तित कर्म के अनुसार
कर्ता-तृतीया
नरिंदें
1
नरिंदेण
हउं
कोकिज्जउं/कोकियउं/ = राजा के द्वारा मैं बुलाया जाता हूँ। आदि
नरिंदेणं
।
नरिंदें नरिंदेण नरिंदेणं
तुहुँ
कोकिज्जहि/कोकियहि/ = राजा के द्वारा तुम बुलाये जाते हो। आदि
।
नरिंदें नरिंदेण
सो
कोकिज्जइ/कोकियइ/ = राजा के द्वारा वह बुलाया जाता है। आदि
नरिंदेणं ।
नरिंदें ।
सा
नरिंदेण प्र नरिंदेणं ।
कोकिज्जइ/कोकियइ/ = राजा के द्वारा वह बुलायी जाती है। आदि
।
नरिंदें नरिंदेण नरिंदेणं
रक्खिज्जइ/रक्खियइ/ = राजा के द्वारा वह (राज्य) रक्षा आदि
किया जाता है।
नरिंदें नरिंदेण नरिंदेणं
कहा/कह सुणिज्जइ/सुणियइ/ = राजा के द्वारा कथा सुनी जाती है।
आदि
अपभ्रंश रचना सौरभ
103
Page #123
--------------------------------------------------------------------------
________________
कर्तृवाच्य वर्तमानकाल एकवचन
कर्ता-प्रथमा
कर्म-द्वितीया
क्रिया-कर्ता के अनुसार
पइं/तई
देखउं/आदि
= मैं तुमको देखता हूँ।
देखहि आदि
___ = तुम उसको देखते हो।
।
देखइ/आदि
= वह मुझको देखता है।
देखइ/आदि
_ = वह मुझको देखती है।
माया/माय
पालइ/आदि ____ = माता मुझे पालती है।
माया/माय
पइं/तई
पालइ/आदि
= माता तुमको पालती है।
माया/माय
पालइ/आदि
= माता उसको पालती है।
हरि/हरी
पणमइ/आदि
= हरि मुझको प्रणाम करता
हरि/हरी
पइं/तई
पणमइ/आदि
= हरि तुमको प्रणाम करता
.
हरि/हरी
पणमइ/आदि
= हरि उसको प्रणाम करता
104
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #124
--------------------------------------------------------------------------
________________
कर्मवाच्य वर्तमानकाल एकवचन
कर्ता-तृतीया
मई
पई/तई
.
तें/तेण/तेणं
.
ताए/तए
कर्म-प्रथमा . क्रिया-परिवर्तित कर्म के अनुसार तुहुं देखिज्जहि/देखियहि/ = मेरे द्वारा तुम देखे जाते आदि
हो। सो/सा देखिज्जइ/देखियइ = तुम्हारे द्वारा वह देखा आदि
जाता है/देखी जाती है। देखिज्जउं/देखियउं/ = उसके (पुरुष) द्वारा आदि
मैं देखा जाता हूँ। देखिज्जउं/देखियउं/ = उसके (स्त्री) द्वारा आदि
मैं देखा जाता हूँ। हउं पालिज्जउं/पालियउं/ = माता के द्वारा मैं आदि
पाला जाता हूँ। तुहुं पालिज्जहि/पालियहि/ = माता के द्वारा तुम
पाले जाते हो। सो/सा पालिज्जइ/पालियइ/ = माता के द्वारा वह पाला आदि
____ जाता है/पाली जाती है।
मायाए/मायए
4.
मायाए/मायए
आदि
मायाए/मायए
पणमिज्जउं/पणमियउं/ = हरि के द्वारा मैं आदि
प्रणाम किया जाता हूँ। पणमिज्जहि/पणमियहि/= हरि के द्वारा तुम आदि
प्रणाम किये जाते हो।
हरीएं
हरिणं हरीणं हरिण हरीण
सो/सा पणमिज्जइ/ पणमियइ/ = हरि के द्वारा वह प्रणाम किया आदि
जाता है की जाती है।
अपभ्रंश रचना सौरभ
105
Page #125
--------------------------------------------------------------------------
________________
कर्तृवाच्य वर्तमानकाल एकवचन
कर्ता-प्रथमा
कर्म-द्वितीया
क्रिया-कर्ता के अनुसार .
मई
कोकइ/आदि
= साधु मुझको बुलाता है।
साहु
पइं/तई
कोकइ/आदि
= साधु तुमको बुलाता है।
कोकइ/आदि
= साधु उसको बुलाता है।
साह
कहा/कह
सुणइ/आदि
साधु कथा सुनता है।
अम्हे/अम्हई
कोकइ/आदि ___राजा हमको बुलाता है।
नरिंदु
तुम्हे/तुम्हई
कोकइ/आदि
।
नरिंदो
__= राजा तुम (सब) को
बुलाता है।
नरिंद
त/ता
कोकइ/आदि __= राजा उनको बुलाता है।
नरिंदा
त/ता/ताउ/तउ/ कोकइ/आदि ताओ/तओ
= राजा उन (स्त्रियों) को बुलाता है।
106
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #126
--------------------------------------------------------------------------
________________
कर्मवाच्य वर्तमानकाल एकवचन
कर्ता-तृतीया
कर्म-प्रथमा
क्रिया-परिवर्तित कर्म के अनुसार
साई
कोकिज्जउं/कोकियउं/ = साधु के द्वारा मैं आदि
बुलाया जाता हूँ।
साहूं
साहुएं
कोकिज्जहि/कोकियहि/ = साधु के द्वारा तुम आदि
बुलाए जाते हो।
साहूएं
साहुण
सो/सा
साहूण
कोकिज्जइ/कोकियइ/ = साधु के द्वारा वह आदि
बुलाया जाता है/ बुलाई जाती है।
साहुणं
कहा/कह
सुणिज्जइ/सुणियइ/ आदि
= साधु के द्वारा कथा
सुनी जाती है।
साहूणं
अपभ्रंश रचना सौरभ
107
Page #127
--------------------------------------------------------------------------
________________
वर्तमानकाल बहुवचन
अम्हे/अम्हइं
कोकिज्जहुं/आदि
= राजा के द्वारा हम
बुलाये जाते हैं।
नरिंदें
तुम्हे/तुम्हई
कोकिज्जहु/आदि
= राजा के द्वारा तुम (सब) बुलाए जाते हो।
नरिंदेण
त/ता
कोकिज्जन्ति कोकिज्जहिं/आदि
= राजा के द्वारा वे
बुलाये जाते हैं।
नरिंदेणं
ता/त/ताओ/ तओ/ताउ/तउ
कोकिज्जन्ति/ कोकिज्जहिं/आदि
= राजा के द्वारा वे
बुलाई जाती हैं।
नोट - (1) इसी प्रकार कर्तृवाच्य में कर्म में द्वितीया बहुवचन को दूसरे वाक्यों में प्रयोग
कर लेना चाहिए। (2) विधि एवं आज्ञा में विधि एवं आज्ञा के प्रत्यय लगा देने चाहिए (तीनों पुरुषों
एवं दोनों वचनों में)। उपर्युक्त वाक्यों में इकारान्त और उकारान्त पुल्लिंग शब्दों का प्रथमा एकवचन
और तृतीया एकवचन में प्रयोग किया गया है। (1) इकारान्त पुल्लिंग शब्दों से प्रथमा एकवचन बनाने के लिए '0', 0-दीर्घ
(इ-ई) प्रत्यय जोड़े जाते हैं। जैसे - हरि, हरी तथा तृतीया एकवचन बनाने के लिए अनुस्वार (-), (-)-ई, ‘एं', 'एं'-ईएं, 'ण', ण-ईण, ‘णं', णं-ईणं प्रत्यय जोड़े जाते हैं। जैसे - हरि, हरी, हरिएं, हरीएं, हरिण, हरीण,
हरिणं, हरीणं।
उपर्युक्त सभी क्रियाएँ सकर्मक हैं। 3. इकारान्त और उकारान्त पुल्लिंग शब्दों से तृतीया बहुवचन बनाने के लिए 'हिं',
हिं-ईहिं, 'हिं', हिं-ऊहिं प्रत्यय जोड़े जाते हैं। जैसे- हरिहिं, हरीहिं, साहुहिं, साहूहिं।
108
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #128
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 54
संज्ञा (सकर्मक क्रियाएँ)
(1)
इकारान्त संज्ञा शब्द (पुल्लिंग)
(2) उकारान्त संज्ञा शब्द (पुल्लिग)
सामि = मालिक, रहुवइ = रघुपति, कई = कवि, करि = हाथी, मुणि = मुनि, जोगि = योगी, पइ = पति, ससि = चन्द्रमा, हत्थि = हाथी, पाणि = प्राणी, भाइ = भाई, केसरि = सिंह, गिरि = पर्वत, रिसि = मुनि, जइ = यति, तवस्सि = तपस्वी, नरवइ = राजा, सेणावइ = सेनापति, अरि = शत्रु, मंति = मन्त्री, विहि = विधि,
जंतु = प्राणी बिन्दु = बूंद मच्चु = मृत्यु सत्तु = शत्रु रिउ = दुश्मन सूणु = पुत्र गुरु = गुरु धणु = धनुष तरु = पेड़ करेणु = हाथी तेउ = तेज पहु = प्रभु पिउ = पिता फरसु = कुल्हाड़ा मेरु = पर्वत विशेष विज्जु = बिजली साहु = साधु वाउ = वायु जामाउ = दामाद जंबु = जामुन रहु = रघु
अपभ्रंश रचना सौरभ
109
Page #129
--------------------------------------------------------------------------
________________
(3)
सकर्मक क्रियाएँ
बोल्ल = बोलना, पढ = पढ़ना, भण = कहना, कह = कहना, मुण = जानना, नम = नमस्कार करना, जेम = जीमना, खाद = खाना, पिब = पीना, इच्छ = इच्छा करना, धार = धारण करना, पेच्छ = देखना, पेस = भेजना, लिह = लिखना, हण = मारना, पीड = पीड़ा देना, कर = करना, चव = बोलना, णिसुण = सुनना, चुअ = त्याग करना, लड्ड = लाड़-प्यार करना, वण्ण = वर्णन करना, सेव = सेवा करना डंक = डसना,
बखाण = व्याख्यान करना भुल = भूलना सुमर = स्मरण करना रंग = रंगना ठेल्ल = ठेलना ढोय = ढोना चोर = चुराना ओढ = ओढ़ना ले = लेना वह = धारण करना विण्णव = कहना मइल = मैला करना दा = देना सिंच = सींचना बंध = बाँधना थुण = स्तुति करना चिंत = चिंता करना मग्ग = माँगना जण = उत्पन्न करना हिंस = हिंसा करना अस = खाना मार= मारना गा-3 गाना वद्धाव = बधाई देना
110
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #130
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 55
अभ्यास
निम्नलिखित वाक्यों की अपभ्रंश में रचना कीजिए
(क) -
(1) स्वामी के द्वारा भोजन खाया जाता है। (2) कवि के द्वारा व्रत पाला जाता है । (3) हाथी के द्वारा जल पिया जाता है । (4) दुश्मन के द्वारा तुम ठगे जाते हो | (5) प्रभु के द्वारा हम देखे जाते हैं । (6) मुनि के द्वारा तुम (सब) भेजे जाते हो। (7) माता के द्वारा वह स्तुति किया जाता है । (8) गुरु के द्वारा मैं स्मरण किया जाता हूँ। (9) मित्र के द्वारा हम बधाई दिए जाते हैं । ( 10 ) उसके द्वारा धन माँगा जाता है ।
(ख)
(1) भाई के द्वारा मैं पुकारा जाऊँ। (2) उसके द्वारा लकड़ी रंगी जाए । ( 3 ) कवि के द्वारा गीत गाया जाए। (4) मेरे द्वारा पत्र लिखा जाए। (5) पिता
द्वारा हम भेजे जाएँ। (6) बहिन के द्वारा तुम लाड़ किए जावो। (7) साधु तुम सब की सेवा करे । (8) मेरे द्वारा वे देखे जाएँ । ( 9 ) तुम्हारे द्वारा वह स्तुति की जाए। (10) तुम्हारे द्वारा मैं बाँधा जाऊँ ।
(ग)
(1) शत्रुओं के द्वारा मैं मारा जाता हूँ। (2) हमारे द्वारा दुःख भूला जाए । (3) महिलाओं द्वारा परमेश्वर की स्तुति की जाए। (4) दामाद द्वारा भोजन खाया जायेगा । (5) कवियों द्वारा गीत गाया जाए । (6) योगी द्वारा शास्त्र सुना जायेगा । (7) पिता द्वारा तुम बुलाए जाओगे । ( 8 ) तपस्वी द्वारा हम स्मरण किए जाऐंगे। (9) नदी के द्वारा वे धारे जाऐंगे। (10) मन्त्री उसको नमस्कार करेगा ।
अपभ्रंश रचना सौरभ
111
Page #131
--------------------------------------------------------------------------
________________
अपभ्रंश में भूतकाल का भाव प्रकट करने के लिए भूतकालिक कृदन्त का प्रयोग किया जाता है। क्रिया में भूतकालिक कृदन्त के प्रत्यय लगाकर भूतकालिक कृदन्त बना लिया जाता है (देखें पाठ 41 ) । भूतकालिक कृदन्तशब्द विशेषण का कार्य करते हैं । जब सकर्मक क्रियाओं में इस कृदन्त के प्रत्यय लगाए जाते हैं, तो इसका प्रयोग कर्मवाच्य
ही किया जाता है। कर्मवाच्य बनाने के लिए कर्ता तृतीया (एकवचन अथवा बहुवचन) में रखा जाता है। कर्म जो द्वितीया (एकवचन अथवा बहुवचन) में होता है, उसको प्रथमा ( एकवचन अथवा बहुवचन) में परिवर्तित किया जाता है तथा भूतकालिक कृदन्त के रूप (प्रथमा में परिवर्तित) कर्म के अनुसार चलते हैं। पुल्लिंग में 'देव' के समान, नपुंसकलिंग में ‘कमल' के समान, तथा स्त्रीलिंग में 'कहा' के अनुसार इसके रूप चलेंगे। भूतकालिक कृदन्त अकारान्त होता है। स्त्रीलिंग बनाने के लिए कृदन्त में 'आ' प्रत्यय जोड़ा जाता है, तो शब्द आकारान्त स्त्रीलिंग बन जाता है।
सकर्मक क्रियाएँ
कोक = बुलाना,
पणम = प्रणाम करना,
अच्च = पूजा करना,
(1)
नरिंदें / आदि
नरिंदें / आदि
नरिंदेहिं / आदि
{
पाठ 56
भूतकालिक कृदन्त (कर्मवाच्य में प्रयोग )
हरिं / हरीं /
हरिएं / हरीएं
112
पुल्लिंग
कइ / कई
कइ / कई
कइ / कई
सुण = सुनना,
रक्ख = रक्षा करना,
इच्छ = इच्छा करना
दिवायर / दिवायरु/ दिवायरा / दिवायरो
कोकिअ / कोकिआ /
कोकिओ / कोकिउ
कोकिअ / कोकिआ
कोकिअ / कोकिआ
देख = देखना
पाल = पालना
=
=
=
अच्चिअ / अच्चिआ /= अच्चिओ / अच्चिउ
राजा के द्वारा कवि
बुलाया गया ।
राजा के द्वारा aa
बुलाए गए ।
राजाओं के द्वारा कवि
बुलाए गए।
हरि के द्वारा सूर्य पूजा
गया ।
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #132
--------------------------------------------------------------------------
________________
मायाए/मायए
साहुहिं / साहूहिं
(2)
नरिंदें / आदि
जोगहिं / जोगीहिं
रज्जें / रज्जेण /
रज्जेणं
सूणुहिं / सूहिं
(3)
नरिंदें / आदि
पिउं / पिऊं /
पिउएं/पिऊएं/
पिउण / पिऊण /
पिउणं/पिऊणं
देखिअ / देखिआ/
देखिउ / देखिओ
वयो / बयु / वय / वया पालिअ / पालिआ / पालिउ / पालिओ
अपभ्रंश रचना सौरभ
साहु /साहू
नपुंसकलिंग
धण / धणु / धणा
इच्छिअ / इच्छिआ /
इच्छिउ
णाण / णाणु / णाणा पणमिअ / पणमिआ /
=
पणमिउ
सेणावइं/सेणावईं/
सेणावइएं / सेणावईएं / सेणावण / सेणावईण //
सेणावणं/ सेणावईणं
सासण / सासणु/
सासणा
सोक्ख / सोक्खा /
सोक्खु
स्त्रीलिंग
रक्खअ / रक्खि /
रक्खउ
इच्छिअ / इच्छिआ /
इच्छिउ
पसंसा / पसंस सुणिआ / सुणिअ
गंगा / गंग
सरिआ / सरिअ देखिआ / देखिअ
पणमिआ / पणमिअ
=
=
=
=
=
=
1=1
माता के द्वारा साधु देखा
गया।
साधुओं के द्वारा व्रत
पाला गया।
राजा के द्वारा धन चाहा
गया।
योगियों के द्वारा ज्ञान
प्रणाम किया गया ।
राज्य के द्वारा शासन
रक्षा किया गया।
पुत्रों द्वारा सुख चाहा
गया।
राजा के द्वारा प्रशंसा
सुनी गई।
सेनापति के द्वारा नदी देखी गई।
पिता के द्वारा गंगा
प्रणाम की गई।
113
Page #133
--------------------------------------------------------------------------
________________
मायाए/मायए
कहा/कह/ ] सुणिआ/सुणिअ 1 कहाउ/कहउ/ सुणिआउ/सुणिअउ/= माता के द्वारा कथाएँ कहाओ/कहओJ सुणिआओ/सुणिअओ सुनी गई।
उपर्युक्त सभी वाक्य कर्मवाच्य के हैं। इनमें कर्ता में तृतीया, कर्म में प्रथमा और क्रिया कर्म के लिंग और वचन के अनुसार होती है। भूतकालिक कृदन्त को स्त्रीलिंग में प्रयोग करने से पहिले उसका स्त्रीलिंग बनाना चाहिए। 'आ' प्रत्यय जोड़ने से भूतकालिक कृदन्त शब्द स्त्रीलिंग बन जाते हैं। जैसे - सुणिअ-सुणिआ, देखिअ-देखिआ, पणमिअ-पणमिआ आदि। उपर्युक्त सभी क्रियाएँ सकर्मक हैं।
114
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #134
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 57
अभ्यास निम्नलिखित वाक्यों की अपभ्रंश में रचना कीजिए - (क)(1) मेरे द्वारा ग्रन्थ पढ़ा गया। (2) उसके द्वारा मित्र बुलाया गया। (3) दादा के द्वारा पुत्र लाड़-प्यार किया गया। (4) राजा के द्वारा गर्व धारण किया गया। (5) हमारे द्वारा पानी पिया गया। (6) उनके द्वारा कुए खोदे गए। (7) राम के द्वारा राक्षस मारे गए। (8) बालक के द्वारा वस्त्र फाड़े गए। (9) शत्रु द्वारा सेनापति मारा गया। (10) गुरु द्वारा मुनि की स्तुति की गई। (ख) - (1) नागरिक द्वारा भोजन खाया गया। (2) भाईयों द्वारा दूध पिया गया। (3) प्राणियों द्वारा कर्म बांधे गए। (4) कवि द्वारा गाने गाए गए। (5) मेरे द्वारा विमान देखे गए। (6) उसके द्वारा वैराग्य चाहा गया। (7) मेरे द्वारा लकड़ियाँ ढोई गई। (8) तुम्हारे द्वारा व्यसनों का वर्णन किया गया। (9) व्यापारी द्वारा कागज लिखे गए। (10) स्वामी द्वारा धागा काटा गया। (ग) - (1) उसके द्वारा आज्ञा पाली गई। (2) राम के द्वारा कथा सुनी गई। (3) यति के द्वारा शिक्षा धारी गई। (4) पुत्री के द्वारा लक्ष्मी चाही गई। (5) उसके द्वारा दया उत्पन्न की गई। (6) स्वामी द्वारा प्रतिष्ठा सुनी गई। (7) योगी द्वारा श्रद्धा की गई। (8) दामाद द्वारा झोंपड़ी देखी गई। (9) ऋषियों द्वारा प्रज्ञा जानी गई। (10) व्यापारियों द्वारा दया की गई।
अपभ्रंश रचना सौरभ
115
Page #135
--------------------------------------------------------------------------
________________
1.
2.
3.
4.
116
इकारान्त संज्ञा शब्द (नपुंसकलिंग )
दहि = दही,
अट्ठि = हड्डी,
रवि = सूर्य
पाठ 58
इकारान्त, उकारान्त संज्ञा शब्द पुल्लिंग, नपुंसकलिंग, स्त्रीलिंग
उकारान्त संज्ञा शब्द (नपुंसकलिंग )
महु = मधु,
अंसु = आँसू, वत्थु = पदार्थ
इकारान्त संज्ञा शब्द (स्त्रीलिंग)
भक्ति = भक्ति,
मणि
= रत्न,
तत्ति = तृप्ति,
रन्ति = रात,
धिइ = धैर्य,
थुइ = स्तुति,
अवहि = समय की सीमा,
आंखि = आँख,
ईकारान्त संज्ञा शब्द (स्त्रीलिंग) परमेसरी = ऐश्वर्य सम्पन्न स्त्री, सामिणी = स्वामिनी,
नागरी = नगर में रहनेवाली स्त्री,
अच्छि
वारि
=
= जल
आँख
जाणु = घुटना
आउ =
आयु
उप्पत्ति
= जन्म
पिहिम = धरती
रिद्धि = वैभव
जुवइ = युवती
सत्ति = बल अप्पलद्धि
जणेरी
=
आगि = आग
मइ = मति
आत्मलाभ
= माता
• चुड़ैल
बहिणी = बहिन
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #136
--------------------------------------------------------------------------
________________
पुत्ती = पुत्री, माउसी = मौसी, णारी = नारी, इत्थी = स्त्री, लच्छी = लक्ष्मी
पिआमही = दादी महेली = महिला समणी = श्रमणी साडी = साड़ी
उकारान्त, ऊकारान्त संज्ञा शब्द (स्त्रीलिंग) घेणु = गाय,
कण्डू = खाज चंचु = चोंच,
खज्जू = खुजली सस्सु = सासू,
जंबू = जामुन का पेड़ हणु = ठोढ़ी,
सासू = सासू कडच्छु = की, चमची,
बहू = बहू तणु = शरीर,
चमू = सैन्य रज्जु = रस्सी
ईकारान्त एवं ऊकारान्त संज्ञा शब्द (पुल्लिंग) गामणी = गाँव का मुखिया, खलपू = खलियान को साफ करनेवाला सयंभू = स्वयंभू
अपभ्रंश रचना सौरभ
117
Page #137
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 59 सकर्मक क्रियाएँ
गच्छ = जाना, वज्ज = जाना, या = जाना, आगच्छ = आना, धाव = दौड़ना, चुस्स = चूसना, लिह = चाटना, झाअ = ध्यान करना, गाअ = गाना, खम = क्षमा करना, गण = गिनना, धिक्कार = धिक्कारना, खिव = फैंकना, रच = बनाना, खंड = टुकड़ा करना, गुंथ = गूंथना, आवड % अच्छा लगना
दह = जलाना लभ = प्राप्त करना सीख = सीखना वंद = प्रणाम करना वंछ = चाहना बुज्झ = समझना खिंस = निन्दा करना जिंघ = सूंघना जिण = जीतना जोअ = प्रकाशित करना माण = सम्मान करना पाव = पाना रक्ख = रखना णिरक्ख = देखना भुंज = खाना कीण = खरीदना, .
118
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #138
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 60
इकरान्त, उकारान्त संज्ञाएँ ईकारान्त स्त्रीलिंग
लच्छी = लक्ष्मी एकवचन
बहुवचन प्रथमा लच्छी/लच्छि
लच्छी/लच्छि/लच्छीउ/
लच्छिउ/लच्छीओ/लच्छिओ तृतीया लच्छीए/लच्छिए
लच्छीहिं / लच्छिहिं
उकारान्त स्त्रीलिंग
एकवचन प्रथमा तणु/तणू
तणु = शरीर बहुवचन तणु/तणू/तणुउ/तणूउ/ तणुओ/तणूओ तणुहिं / तणूहिं
तृतीया तणुए/तणूए
ऊकारान्त स्त्रीलिंग
एकवचन प्रथमा चमू/चमु
चमू = सेना बहुवचन चमू/चमु/चमूळ/चमुउ/ चमूओ/चमुओ चमूहिं/चमुहिं
तृतीया चमूए/चमुए
इकारान्त पुल्लिंग
एकवचन प्रथमा सामि/सामी तृतीया सामि/सामीं/सामिएं/सामीएं।
सामिण/सामीण/सामिणं /सामीणं
सामि = स्वामी बहुवचन सामि/सामी सामिहिं/सामीहिं
अपभ्रंश रचना सौरभ
119
Page #139
--------------------------------------------------------------------------
________________
उकारान्त पुल्लिंग
एकवचन
प्रथमा पहु/पहू
तृतीया पहुं/पहूं/पहुएं / पहूएं /
ईकारान्त पुल्लिंग
ऊकारान्त पुल्लिंग
120
एकवचन
प्रथमा
गामणी / गामणि
तृतीया गामणी / गामणिं/गामणीएं/गामणिएं / गाणी/ गामणिण / गामणीणं / गामणिणं
पहुण/पहूण / पहुणं/पहूणं
एकवचन
प्रथमा
सयंभू/सयंभु
तृतीया सयंभू / सयंभुं / सयंभूएं/सयंभुएं / सयंभूण/सयंभुण/सयंभूणं/सयंभुणं
इकारान्त नपुंसकलिंग
एकवचन
प्रथमा
वारि / वारी
तृतीया वारिं / वारीं / वारिएं / वारीएं / वारिण/वारीण/ वारिणं / वारीणं
पहु = प्रभू
बहुवचन
पहु/पहू
पहुहिं / पहूहिं
गामणी = गाँव का मुखिया
बहुवचन
गाणी/गामणि
गामणीहिं/गामणिहिं
यंभू = स्वयंभू
बहुवचन
सयंभू / सयंभु सयंभूहिं/सयंहिं
वारि = जल
बहुवचन
वारि / वारी/ वारिइं/ वारीइं
वारिहिं / वारीहिं
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #140
--------------------------------------------------------------------------
________________
ऊकारान्त नपुंसकलिंग
एकवचन प्रथमा वत्थु/वत्थू तृतीया वत्थु/वत्यूं/वत्थुएं/वत्थूएं/
वत्थुण/वत्थूण/वत्थुणं/वत्थूणं
वत्थु = पदार्थ बहुवचन वत्थु/वत्थू/वत्थुई/वत्थूई वत्थुहिं/वत्थूहिं
इकारान्त स्त्रीलिंग
एकवचन जुवइ/जुवई
प्रथमा
जुवइ = युवती बहुवचन जुवइ/जुवई/जुवइउ/ जुवईउ/जुवइओ/जुवईओ जुवइहिं/जुवईहिं
तृतीया जुवइए/जुवईए
121
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #141
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 61 विधि कृदन्त (कर्मवाच्य में प्रयोग)
अपभ्रंश में 'प्राप्त किया जाना चाहिए', 'रक्षा किया जाना चाहिए' आदि भावों को प्रकट करने के लिए विधि कृदन्त का प्रयोग किया जाता है। क्रिया में प्रत्यय लगाकर विधि कृदन्त बनाए जाते हैं। अपभ्रंश में दो प्रकार के विधि कृदन्त के प्रत्यय पाये जाते हैं (1) अव्व (2) इएव्वउं, एव्वउं, एवा। प्रथम प्रकार के विधि कृदन्त का कर्मवाच्य में प्रयोग करने के लिए कर्ता में तृतीया (एकवचन अथवा बहुवचन), कर्म में प्रथमा (एकवचन अथवा बहुवचन) तथा कृदन्त के रूप (प्रथमा में परिवर्तित) कर्म के लिंग और वचन के अनुसार चलेंगे। पुल्लिग में 'देव' के अनुसार, नपुंसकलिंग में 'कमल' के अनुसार तथा स्त्रीलिंग में 'कहा' के अनुसार रूप चलेंगे। दूसरे प्रकार के विधि कृदन्त का कर्मवाच्य में प्रयोग करने के लिए भी कर्ता में तृतीया, कर्म में प्रथमा, किन्तु कृदन्त के रूप में कोई परिवर्तन नहीं होता। सकर्मक क्रियाओं से निर्मित विधि कृदन्त ही कर्मवाच्य में प्रयुक्त किए जाते हैं।
(1)
पुल्लिग
सामि/सामीं/ सामिएं/सामीएं/ [ हत्थि/ सामिण/सामीण/) हत्थी सामिणं/सामीणं
कीणिअव्यु/कीणिअव्यो/ 1 कीणिअव्या/कीणिअव्व/ कीणेअव्वु/कीणेअव्वो/ कीणेअव्व/कीणेअव्वा/
अथवा कीणिएव्वउं/कीणेव्वउं/ कीणेवा
स्वामी द्वारा हाथी खरीदा जाना चाहिए।
मुणिहिं/मुणीहिं । पाणि/पाणी
रक्खिअव्व/रक्खिअव्वा/ रक्खेअव्व/रक्खेअव्वा/
___ अथवा रक्खिएव्वउं/ रक्खेव्वउं/ रक्खेवा
मुनियों द्वारा प्राणी रक्षा किए जाने चाहिए।
122
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #142
--------------------------------------------------------------------------
________________
रिसिं/रिसीं/ रिसिएं/रिसीएं/
पहु/पहू
झाइअव्व/झाइअव्वु/ झाइअव्वो/झाइअव्वा/ झाएअब्बु/झाएअव्य/ झाएअव्यो/झाएअव्वा
अथवा झाइएव्वउं/झाएव्वउं/ झाएवा
ऋषि द्वारा प्रभु = ध्याया जाना
चाहिए।
.. }]= }
___ मई
सत्तु/सत्तू
खमिअव्व/खमिअव्वा/ खमेअव्व/खमेअव्वा/
अथवा खमिएव्वउं/खमेव्वउं/ खमेवा
मेरे द्वारा शत्रु = क्षमा किए जाने
चाहिए।
(2)
नपुंसकलिंग
सामि/सामीं/
सामिएं/सामीए/
वारि/वारी
1 पिबिअव्व/पिबिअव्वा/ 1
पिबिअव्वु/पिबेअव्व/ पिबेअव्वा/पिबेअब्बु
अथवा पिबिएव्वउं/पिबेव्वउं/पिबेवा
स्वामी द्वारा = जल पिया जाना चाहिए।
सामिण/सामीण/ सामिणं/सामीणं
Jal अपभ्रंश रचना सौरभ
123
Page #143
--------------------------------------------------------------------------
________________
अच्छि / अच्छी/ अच्छिई/ अच्छीई
गणिअव्व/गणिअव्वा/ गणिअव्वइं/गणिअव्वाइं/ गणेअव्व/गणेअव्वा/ गणेअव्वइं/गणेअव्वाइं/
अथवा गणिएव्वउं/गणेव्वउं/ गणेवा
मेरे द्वारा = आँखें गिनी जानी चाहिए।
साहुहिं/साहूहिं । वत्थु/वत्थू
पेच्छिअव्व/पेच्छिअव्वा/ पेच्छिअव्वु/ पेच्छेअव्व/पेच्छेअव्वा/ पेच्छेअव्यु
अथवा पेच्छिएव्वउं/पेच्छेव्वउं/ पेच्छेवा
साधुओं द्वारा वस्तु देखी जानी चाहिए।
वत्थु/वत्थू/
साहुं/साहूं/ साहुएं/साहूएं/ साहुण/साहूण/ साहुणं/साहूणं
पेच्छिअव्व/पेच्छिअव्वा/ 1 पेच्छिअव्वइं/पेच्छिअव्वाइं/ पेच्छेअव्व/पेच्छेअव्वा/ पेच्छेअव्वइं/पेच्छेअव्वाइं
अथवा पेच्छिएव्वउं/पेच्छेव्वउं/ पेच्छेवा
साधु द्वारा = वस्तुएं देखी
जानी चाहिए।
। वत्थुई/वत्थूई
(3)
स्त्रीलिंग
जुवइए/जुवईए
धिइ/धिई
धारिअव्वा/धारिअव्व/ धारेअव्वा/धारेअव्व
अथवा धारिएव्वउं/धारेव्वउं/ धारेवा
युवती द्वारा धैर्य धारण किया जाना चाहिए।
124
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #144
--------------------------------------------------------------------------
________________
वहिं / जुव
चमूर/चमुए
चमूहिं / चमुहिं
1.
2.
3.
मणि/
मणी /
मणिउ /
मणीउ /
मणिओ /
मणीओ
तणु / तणू
तणु /
तणू /
अपभ्रंश रचना सौरभ
तणुउ /
तणूउ/
तणुओ / ओ
पेसिअव्वा / पेसिअव्व /
पेसिअव्वाउ / पेसिअव्वउ /
पेसिअव्वाओ / पेसिअव्वओ /
पेसे अव्व / आदि
अथवा
पेसिएव्वउं / पेसेव्वउं / पेसेवा
बंधिअव्वा / बंधिअव्व /
बंधे अव्वा / बंधे अव्व
अथवा
बंधिएव्वउं / बंधेव्वउं/
बंधेवा
बंधिअव्वा /बंधिअव्व /
बंधि अव्वाउ / बंधि अव्वउ / बंधिअव्वाओ / बंधिअव्वओ /
बंधे अव्वा / आदि
अथवा
बंधिएव्वउं / बंधेव्वउं / बंधेवा
युवतियों द्वारा = रत्न भेजे जाने चाहिए ।
=
=
उपर्युक्त सभी क्रियाएँ सकर्मक हैं।
विधि कृदन्त का प्रयोग भाववाच्य और कर्मवाच्य में होता है इसका कर्तृवाच्य में
प्रयोग नहीं होता है ।
अकर्मक क्रियाओं से भाववाच्य बनाये जाते हैं (पाठ 48 ) और सकर्मक क्रियाओं से कर्मवाच्य बनाये जाते हैं।
सेना द्वारा
शरीर बांधा
जाना चाहिए ।
सेनाओं द्वारा
शरीर बांधे
जाने चाहिए ।
125
Page #145
--------------------------------------------------------------------------
________________
अन्य प्रयुक्त संज्ञाएँ पुल्लिग मुणि = मुनि, हत्थि = हाथी, सत्तु = शत्रु ,
रिसि = ऋषि साहु = साधु पाणि = प्राणी
नपुंसकलिंग अच्छि = आँख,
वत्थु = पदार्थ
स्त्रीलिंग धिइ = धैर्य, संति = शान्ति
मणि = रत्न, पुत्ती = पुत्री
5.
सकर्मक क्रियाएँ कीण = खरीदना, झाअ = ध्यान करना, गण = गिनना, पेस = भेजना,
रक्ख = रक्षा करना, खम = क्षमा करना, पेच्छ = देखना, बंध = बांधना
लभ = प्राप्त करना, पिब = पीना, धार = धारण करना,
126
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #146
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 62
अभ्यास निम्नलिखित वाक्यों की अपभ्रंश में रचना कीजिए -
(क)(1) भाई के द्वारा पेड़ सींचा जाना चाहिए। (2) रघुपति के द्वारा साधु बुलाए जाने चाहिए। (3) कवियों के द्वारा गीत गाए जाने चाहिए। (4) हाथी द्वारा सिंह मारा जाना चाहिए। (5) ऋषि द्वारा सूर्य की वन्दना की जानी चाहिए।
(ख)(1) मेरे द्वारा दही खाया जाना चाहिए। (2) हमारे द्वारा जल पिया जाना चाहिए। (3) उनके द्वारा पदार्थ वर्णन किए जाने चाहिए। (4) तुम्हारे द्वारा पदार्थ विचार किए जाने चाहिए। (5) उसके द्वारा आयु देखी जानी चाहिए।
(ग)(1) तुम्हारे द्वारा वैभव प्राप्त किया जाना चाहिए। (2) उसके द्वारा तृप्ति माँगी जानी चाहिए। (3) पृथ्वी द्वारा रत्न धारण किए जाने चाहिए। (4) युवती द्वारा भक्ति की जानी चाहिए। (5) मौसी द्वारा साड़ियाँ खरीदी जानी चाहिए। (6) तुम्हारे द्वारा रस्सी गूंथी जानी चाहिए। (7) उसके द्वारा गाएँ पाली जानी चाहिए। (8) हमारे द्वारा जामुन का पेड़ सींचा जाना चाहिए। (9) सासुओं द्वारा बहुएँ लाड़-प्यार की जानी चाहिए। (10) तुम्हारे द्वारा घास जलाई जानी चाहिये।
127
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #147
--------------------------------------------------------------------------
________________
वर्तमान कृदन्त
हेत्वर्थक कृदन्त
संबंधक भूत कृदन्त
( पूर्वकालिक क्रिया)
अपभ्रंश में (1) 'भोजन खाता हुआ', 'गाँव जाता हुआ' आदि भावों को प्रकट करने के लिए द्वितीया सहित वर्तमान कृदन्त का प्रयोग किया जाता है। (2) 'भोजन खाने के लिए', 'गाँव जाने के लिए' आदि भावों को प्रकट करने के लिए द्वितीया सहित हेत्वर्थक कृदन्त का प्रयोग किया जाता है । (3) 'भोजन करके', 'गाँव जाकर' आदि भावों को प्रकट करने के लिए द्वितीया सहित संबंधक भूत कृदन्त का प्रयोग किया जाता है। ये तीनों कृदन्त क्रियाओं से बनाए जाते हैं। वर्तमान कृदन्त शब्द विशेषण का कार्य करते हैं तथा अन्तिम दोनों (हे. कृ.) और (सं.कृ.) अव्यय का कार्य करते हैं। इतना होने पर भी अपने मूल स्वरूप 'क्रिया' को नहीं छोड़ते हैं । अतः सकर्मक क्रियाओं से बनने पर कर्म का साथ लिये रहते हैं । कर्म में द्वितीया विभक्ति होती है, अत: इनके साथ कर्म में द्वितीया विभक्ति का प्रयोग किया जाता है। इनके प्रत्ययों के लिए देखें पाठ 27, 28 और 421
सो
हउं
ra.
128
पाठ 63 विविध कृदन्त
(द्वितीया सहित )
भोयण / जेमन्तु / जेमन्तो / जेमन्त / भोयणा/जेमन्ता/जेममाणु/जेममाणो / भोयणु जेममाण / जेममाणा
गामु/
गाम /
गामा
गच्छन्तु / गच्छन्तो/गच्छन्त /
गच्छन्ता / गच्छमाणु/गच्छमाणो / गच्छमाण / गच्छमाणा
उट्ठइ / आदि
= वह भोजन जीमता हुआ उठता है।
हसउं / आदि = मैं गाँव जाता हुआ हँसता हूँ।
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #148
--------------------------------------------------------------------------
________________
सो
हउं
सो
ह
सो
ह
1.
तरु / तरू सिंचन्तु / सिंचन्तो / सिंचन्त / सिंचन्ता
जइ / जई कोकन्त / कोकन्ता / हरिसउं / आदि कोकन्तु / कोको
तरु / तरू सिंचेवं/ आदि
जइ / जई कोकेवं/ आदि
तरु / तरू सिंचि / आदि
जइ / जई कोकि / आदि
थक्कइ / आदि
अपभ्रंश रचना सौरभ
उट्ठ/ आदि
जग्गउं / आदि
हरिसइ / आदि
हरिसउं / आदि
= वह पेड़ को / पेड़ों को सींचता हुआ थकता है।
=
=
=
=
=
मैं यति/यतियों को बुलाता
हुआ प्रसन्न होता हूँ।
वह पेड़ को / पेड़ों को सींचने के लिए उठता है ।
मैं यति/यतियों को बुलाने के लिए जागता हूँ।
अपभ्रंश में इकारान्त, ईकारान्त पुल्लिंग, उकारान्त, ऊकारान्त पुल्लिंग, इकारान्त व उकारान्त नपुंसकलिंग, इकारान्त, ईकारान्त स्त्रीलिंग, उकारान्त, ऊकारान्त स्त्रीलिंग संज्ञा शब्दों के द्वितीया विभक्ति के प्रत्यय प्रथमा विभक्ति के समान होते हैं (देखें पाठ - 61 ) ।
वह पेड़ / पेड़ों को सींचकर प्रसन्न होता है ।
मैं यति/यतियों को बुलाकर प्रसन्न होता हूँ ।
129
Page #149
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 64
अभ्यास निम्नलिखित वाक्यों की अपभ्रंश में रचना कीजिए -
(क)(1) स्वामी रघुपति को नमन करते हुए उठता है। (2) कवि गुरु का सम्मान करते हुए बैठता है। (3) भाई उसको पुकारते हुए शरमाता है। (4) सिंह हाथी को मारतें हुए डरता है। (5) व्यापारी मुनियों को सुनते हुए शोभता है। (6) वह दही खाते हुए सोता है। (7) तुम जल पीते हुए नाचते हो। (8) हम आग देखते हुए मुड़ते हैं। (9) वह गाँव के मुखिया की सेवा करता हुआ थकता है। (10) वह मधु को चखता हुआ लालच करता है।
(ख) - (1) वह भक्ति करने के लिए उठता है। (2) तुम तृप्ति प्राप्त करने के लिए प्रयास करते हो। (3) वह पुत्री को कहने के लिए उत्साहित होता है। (4) हम रस्सी बाँधने के लिए प्रयत्न करते हैं। (5) वे गायों को देखने के लिए उठते हैं।
(ग)
(1) स्वामी रघुपति को नमन करके प्रसन्न होता है। (2) कवि गुरु को प्रणाम करके बैठता है। (3) वह भक्ति करके जीता है। (4) तुम तृप्ति प्राप्त करके खुश होते हो। (5) वे गायों को देखकर उठते हैं।
130
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #150
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 65
संज्ञा-सर्वनाम संज्ञा शब्द चतुर्थी व षष्ठी एकवचन
संज्ञाएँ
चतुर्थी व षष्ठी एकवचन
अकारान्त पुल्लिंग
नरिंद = राजा,
नरिंद/नरिंदा नरिंदसु/नरिंदासु नरिंदहो/नरिंदाहो/नरिंदस्सु
अकारान्त नपुंसकलिंग
रज्ज = राज्य,
रज्ज/रज्जा रज्जसु/रज्जासु रज्जहो/रज्जाहो/रज्जस्सु
आकारान्त स्त्रीलिंग
माया = माता,
माया/माय मायाहे/मायहे
इकारान्त स्त्रीलिंग
जुवइ = युवती,
जुवइ/जुवई जुवइहे/जुवईहे
ईकारान्त स्त्रीलिंग
पुत्ती = पुत्री
पुत्ती/पुत्ति पुत्तीहे/पुत्तिहे
उकारान्त स्त्रीलिंग
घेणु = गाय,
धेणु/धेणू धेणुहे/घेणूहे
ऊकारान्त स्त्रीलिंग
जंबू = जामुन का पेड़,
जंबू/जंबु जंबूहे/जंबुहे
सर्वनाम चतुर्थी व षष्ठी एकवचन
महु/मज्झु तउ/तुज्झ/तुध्र
= मेरा/मेरे लिए = तेरा/तेरे लिए
अपभ्रंश रचना सौरभ
131
Page #151
--------------------------------------------------------------------------
________________
त/ता/तसु/तासु
__ = उसका/उसके लिए (पु. व. नपुं.) । तहो/ताहो/तस्सु
ता/त/ताहे/तहे = उसका/उसके लिए (स्त्री)
अकर्मक क्रियाएँ हस = हँसना, जग्ग = जागना, वड्ढ = बढ़ना, णिज्झर = झरना,
सकर्मक क्रियाएँ रक्ख = रक्षा करना, इच्छ = चाहना, गच्छ = जाना, कोक = बुलाना
षष्ठी एकवचन
नरिंद
नरिंदा
नरिंदसु
हसइ/आदि
= राजा का पुत्र हँसता है।
नरिंदासु ) पुत/पुत्ता/पुत्तु/पुत्तो नरिंदहो नरिंदाहो
नरिंदस्सु
रज्ज
रज्जा रज्जसु रज्जासु रज्जहो
तं
रक्खइ/आदि
सासण/सासणु/ सासणा
= राज्य का शासन उसकी रक्षा करता है।
रज्जाहो
रज्जस्सु
माया
माय मायाहे देससा/सस
जग्गइ/आदि
= माता की बहिन
जागती है।
मायहे
132
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #152
--------------------------------------------------------------------------
________________
जुवइ जवई जुवइहे
माया/माय
जग्गइ/आदि = युवती की माता
जागती है।
जुवईहे )
पुत्ती
1
।
धणु/धण/धणा
वड्ढइ/आदि = पुत्री का धन बढ़ता
पुत्ति पुत्तीहे पुत्तिहे
घेणु
खीर/खीरु/खीरा
धेणुहे धेहे
णिज्झरइ/ आदि
= गाय का दूध झरता है।
जंबु
आउ/आऊ
जबूहे ।जाड/आऊ
वड्ढइ/आदि = जामुन के पेड़ की
आयु बढ़ती है।
जंबुहे )
महु । पुत्तु/पुत्तो/पुत्त/ मज्झु J पुत्ता
सोक्ख/सोक्खु/ इच्छइ सोक्खा
आदि
= मेरा पुत्र सुख चाता
है।
1
तउ तुज्झ तुध्र
पोत्त/पोत्ता/पोत्तु/पोत्तो घरु/घर/घरा
गच्छइ/ आदि
= तुम्हारा पोता घर जाता है।
।
अपभ्रंश रचना सौरभ
133
Page #153
--------------------------------------------------------------------------
________________
मई
कोकइ/
पुत्त/पुत्तु/ पुत्ता/पुत्तो
= उस (पुरुष) का पुन
हो मुझको बुलाता है।
आदि
तासु तहो ताहो तस्सु
पइं/तई
पुत्त/पुत्तो/ पुत्तु/पुत्ता
कोकइ/आदि = उस (स्त्री) का पुत्र
तुमको बुलाता है।
चतुर्थी एकवचन
नरिंद/नरिंदा/नरिंदसु/ नरिंदासु/नरिंदहो/ नरिंदाहो/नरिंदस्सु
गंथ/गंथा/गंथु कीणइ/आदि = वह राजा के लिए :
ग्रन्थ खरीदता है।
परिक्खा/परिक्ख/ 1 परिक्खाहे/परिक्खहे
गंथ/गंथा/गंथु पढहि/आदि = तुम परीक्षा के लिए थ/गया/गयु पढाह/आदि = तुम परीक्ष
पुस्तक पढ़ते हो।
नोट - इसी प्रकार चतुर्थी के अन्य वाक्य बना लेने चाहिए।
134
.
- अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #154
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 66
संज्ञा संज्ञा शब्द चतुर्थी व षष्ठी एकवचन संज्ञाएँ
चतुर्थी व षष्ठी एकवचन इकारान्त पुल्लिंग सामि = स्वामी
सामि/सामी ईकारान्त पुल्लिंग गामणी = गाँव का मुखिया । गामणी/गामणि उकारान्त पुल्लिंग साहु = साधु
साहु/साहू ऊकारान्त पुल्लिंग सयंभू = स्वयंभू
सयंभू/सयंभु इकारान्त नपुंसकलिंग वारि = जल
वारि/वारी उकारान्त नपुंसकलिंग वत्थु = पदार्थ
वत्थु/वत्थू
अकर्मक क्रियाएँ गल = गलना, चुअ = टपकना,
फुर = प्रकट होना जग्ग = जागना
सकर्मक क्रियाएँ कर = करना पढ = पढ़ना
षष्ठी एकवचन सामि/सामी गव्व/गव्यु/
गलइ/आदि = स्वामी का गर्व गव्वो/गव्वा
गलता है। गामणी/गामणि पुत्त/पुत्तु/ गंथ/गंथा पढइ/आदि = गाँव के मुखिया का पुत्तो/पुत्ता गंथु
पुत्र ग्रन्थ पढ़ता है। साहु/साहू तेउ/तेऊ
फुरइ/आदि = साधु का तेज प्रकट
होता है। वारि/वारी बिन्दु/बिन्दू
चुअइ/आदि = जल की बूंद टपकती है। सयंभू/सयंभु पुत्त/पुत्तु/पुत्तो/ जग्गइ/आदि = स्वयंभू का पुत्र जागता है।
पुत्ता वत्थु/वत्थू णाण/णाणा/ करइ = वह पदार्थ का ज्ञान णाणु
करता है। अपभ्रंश रचना सौरभ
135
Page #155
--------------------------------------------------------------------------
________________
चतुर्थी एकवचन
हउं
सामि/सामी
जागरउं/आदि = मैं स्वामी के लिए
जागता हूँ।
तुहुं
साहु/साहू
भोयण/भोयणा
इच्छहि/आदि = तुम साधु के लिए
भोजन चाहते हो।
सो
गामणी/गामणि
गाम/गामु/गामा
गच्छइ/आदि = वह गाँव के मुखिया
के लिए गाँव जाता
र प्रकार दूसरे व
नोट - इसी प्रकार दूसरे वाक्य बना लेने चाहिए।
136
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #156
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 67
संज्ञा-सर्वनाम संज्ञा शब्द चतुर्थी व षष्ठी बहुवचन
संज्ञाएँ
अकारान्त पुल्लिग
नरिंद = राजा,
अकारान्त नपुंसकलिंग
रज्ज = राज्य,
चतुर्थी व षष्ठी बहुवचन नरिंद/नरिंदा नरिंदह/नरिंदाहं रज्ज/रज्जा रज्जहं/ रज्जाहं माया/माय मायाहु/मायहु जुवइ/जुवई जुवइहु/जुवईहु
आकारान्त स्त्रीलिंग
माया = माता,
इकारान्त स्त्रीलिंग
जुवइ = युवती,
ईकारान्त स्त्रीलिंग
पुत्ती = पुत्री,
पुत्ती/पुत्ति
उकारान्त स्त्रीलिंग
घेणु = गाय,
पुत्तीहु/पुत्तिहु घेणु/धेणू घेणुहु/घेणुहु जंबू/जंबु जंबूहु/जंबुहु
ऊकारान्त स्त्रीलिंग
जंबू = जामुन का पेड़,
सर्वनाम चतुर्थी व षष्ठी बहुवचन
अम्हहं
तुम्हहं त/ता/तहं/ताहं ता/त/ताहु/तहु
= हमारे लिए हमारा = तुम सब के लिए/तुम सब का = उनके लिए (पुल्लिग)/उनका = उन (स्त्रियों) के लिए/उन (स्त्रियों) का
अपभ्रंश रचना सौरभ
137
Page #157
--------------------------------------------------------------------------
________________
षष्ठी बहुवचन
नरिंद
नरिंदा
नरिंद
नरिदाहं
रज्ज
रज्जा
रज्जहं
रज्जाहं
माया
माय
मायाहु
मायहु
जुवइ
जुवई
जुवइहु
जुवईहु
पुत्ती
पुत्ति
पुत्तीहु
पुत्तिहु
अकर्मक क्रियाएँ
हस = हँसना,
जग्ग = जागना,
वड्ढ = बढ़ना,
णिज्झर
138
= झरना,
पुत्त / पुत्ता
सासण / सासणु/ सासणा तं
ससा / सस
माया / माय
धणु / धण / धणा
हसहिं / आदि = राजाओं के पुत्र हँसते हैं ।
रक्खइ / आदि
जग्गइ / आदि
=
=>
सकर्मक क्रियाएँ. रक्ख = रक्षा करना,
इच्छ 1= चाहना,
गच्छ = जाना, कोक = बुलाना
राज्यों का शासन उसकी रक्षा करता है ।
माताओं की बहिन जागती है।
जग्गइ / आदि = युवतियों की माता जागती है।
वड्ढइ / आदि = पुत्रियों का धन बढ़ता है।
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #158
--------------------------------------------------------------------------
________________
धे
घेणू धेणुहु
धेणूहु
जंबू
जंबु
जंबहु
जंबहु
अहं
तुम्हहं
त
ता
तहं
ता
ता
त
ताहु
हु
खीर/खीराखी
आउ / आऊ
पुत्तु / पुत्तो /
पुत्त / पुता
पोत्त/पोत्ता / पोत्तु /
पोत्तो
पुत्त / पुत्ता
पुत्त / पुत्ता
अपभ्रंश रचना सौरभ
सोक्ख / सोक्खु/ सोक्खा
घरु / घर / घरा
मई
पई / तई
णिज्झरइ / आदि
वड्ढइ / आदि
इच्छइ / आदि
गच्छइ / आदि
कोकहिं / आदि
कोकहिं / आदि
=
=
=
गायों का दूध
झरता है ।
11
जामुन के पेड़ बढ़ती है।
हमारा पुत्र सुख चाहता है।
तुम दोनों का पोता घर जाता है।
= उन (पुरुषों) के पुत्र मुझे बुलाते हैं।
उन (स्त्रियों) के
पुत्र तुमको बुलाते हैं।
139
Page #159
--------------------------------------------------------------------------
________________
सो
तुहुं
तुहुं
नोट -
140
चतुर्थी बहुवचन नरिंद/ नरिंदा हं/दाहं
परिक्खा / परिक्ख /
}
परिक्खाहु / परिक्खहु
अम्हहं
गंथ / गंथा / गंधु कीणइ / आदि
>गंथ / गंथा/गंधु पढहि / आदि
इसी प्रकार चतुर्थी के अन्य वाक्य बना लेने चाहिए।
= वह राजाओं के लिए ग्रन्थ खरीदता है।
णच्चहि / आदि = तुम हमारे लिए नाचते हो ।
= तुम परीक्षाओं के लिए पुस्तक पढ़ते हो ।
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #160
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 68
संज्ञा संज्ञा शब्द चतुर्थी व षष्ठी बहुवचन
संज्ञाएँ इकारान्त पुल्लिंग सामि = स्वामी
चतुर्थी व षष्ठी बहुवचन सामि/सामी सामिहं/सामीहं सामिहुं/सामीहुं
ईकारान्त पुल्लिंग
गामणी = गाँव का मुखिया गामणी/गामणि
गामणीहं/गामणिहं गामणीहुं/गामणिहुं
उकारान्त पुल्लिंग
साहु - साधु
साहु/साहू साहुहं/साहूहं साहुहुं/साहूहूं
ऊकारान्त पुल्लिंग
सयंभू = स्वयंभू
सयंभू/संयंभु सयंभूह/सयंभुहं सयंभूहुं/सयंभुई
इकारान्त नपुंसकलिंग
वारि = जल
वारि/वारी वारिहं/वारीह वारिहुं/वारीहुं
उकारान्त नपुंसकलिंग
वत्थु = पदार्थ
वत्थु/वत्थू वत्थुहं/वत्थूहं वत्थुहुं/वत्थूहुं
अपभ्रंश रचना सौरभ
141
Page #161
--------------------------------------------------------------------------
________________
अकर्मक क्रियाएँ
गल = गलना,
चुअ
इच्छ = इच्छ करना
सो
हउं
तुहुं
142
= टपकना
= प्रकट होना
फुर
जग्ग - जागना
षष्ठी बहुवचन
सामि / सामी /
सामहं / सामीहं / सामिहुं / सामी हुँ
साहु/ साहू /
साहुहं / साहूहं /
साहुहु/ साहूहूं
वत्थु /वत्थू /
वत्थुहं / वत्थूहं /
वत्थहुं / वत्थूहुं
सामि / सामी / आदि
साहु/ साहू/आदि
}
• गव्व/गव्वु / गलइ /आदि गव्वो/गव्वा
तेउ / तेऊ
सकर्मक क्रियाएँ
कर = करना
पढ = पढ़ना
भोयणा/ भोयणा
इ/आदि
फुरइ /
जागरउं / आदि
=
=
णाण / णाणा / करइ / आदि = वह पदार्थों का
णाणु
ज्ञान करता है।
स्वामियों का गर्व
गलता है।
=
साधुओं का तेज
प्रकट होता है।
मैं स्वामियों के
लिए जागता हूँ ।
इच्छहि / आदि = तुम साधुओं के
लिए भोजन चाहते हो ।
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #162
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 69
अभ्यास
निम्नलिखित वाक्यों की अपभ्रंश में रचना कीजिए -
(क)
(1) राजा का पुत्र राम को प्रणाम करता है / करे/करेगा । (2) मामा की बहिन गर्व करती है / करे / करेगी ।
(3) राज्य का शासन उसकी रक्षा करता है / करे / करेगा।
( 4 ) राम का सुख मेरा सुख है / हो / होगा । (5) सीता की माता कथा सुनती है / सुने/सुनेगी। (6) मैं गंगा की कथा सुनता हूँ / सुनूँ / सुनूँगा । (7) मेरा पुत्र सुख चाहता है / चाहे / चाहेगा । (8) उसका पुत्र घर जाता है / जावे / जायेगा । (9) वह नर्मदा का पानी पीता है / पीए / पीयेगा । (10) उसकी माता तुमको पालती है / पाले / पालेगी ।
-
(ख)
(1) राजा का पुत्र राम के लिए गठरी माँगता है / माँगे / माँगेगा। (2) वह उसकी पुस्तक परीक्षा के लिए पढ़ता है / पढ़े / पढ़ेगा । (3) मेरा पुत्र सुख के लिए हँसता है / हँसे / हँसेगा ।
( 4 ) वह शरीर के लिए नर्मदा का पानी पीता है / पीए / पीयेगा। (5) राम का सुख सबके लिए सुख है / हो / होगा।
-
(ग)
(1) स्वामियों के भाई उसको नमस्कार करते हैं !
(2) कवियों के गुरु हमको देखते हैं।
(3) राजाओं के दुश्मन लड़ने के लिए विचार करते हैं।
(4) हमारे गुरु भोजन जीमते हैं।
(5) मेरी मौसियाँ साड़ी खरीदती हैं।
अपभ्रंश रचना सौरभ
143
Page #163
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 70 संज्ञा-सर्वनाम
संज्ञा शब्द पंचमी एकवचन
संज्ञाएँ नरिंद = राजा
अकारान्त पुल्लिंग
अकारान्त नपुंसकलिंग
अकारा
रज्ज = राज्य
पंचमी एकवचन नरिंदहे/नरिंदाहे नरिंदहु/नरिंदाहु रज्जहे/रज्जाहे रज्जहु/रज्जाहु मायाहे/मायहे जुवइहे/जुवईहे पुत्तीहे/पुत्तिहे धेणुहे/घेणूहे जंबूहे जंबुहे
आकारान्त स्त्रीलिंग इकारान्त स्त्रीलिंग ईकारान्त स्त्रीलिंग उकारान्त स्त्रीलिंग ऊकारान्त स्त्रीलिंग
माया = माता जुवइ = युवती पुत्ती = पुत्री धेणु = गाय जंबू = जामुन का पेड़
सर्वनाम पंचमी एकवचन
महु/मज्झु तउ/तुज्झ/तुध्र तहां/ताहां ताहे/तहे
= मेरे से = तेरे से = उससे (पुरुष) = उससे (स्त्री)
सकर्मक क्रियाएँ धाव = दौड़ना आगच्छ = आना
अकर्मक क्रियाएँ डर = डरना, उप्पज्ज = उत्पन्न होना,
पड = गिरना णीसर = निकलना
144
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #164
--------------------------------------------------------------------------
________________
डरइ/आदि = वह राजा से डरता है।
पंचमी एकवचन नरिंदहे/नरिंदाहे/ नरिंदहु/नरिंदाहु मायाहे/मायहे
पुत्त/पुत्ता/पुत्तो/
डरइ/आदि = पुत्र माता से डरता है।
माया/माय
पुत्तीहे/पुत्तिहे गंथ/गंथु/गंथा पढइ/आदि = माता पुत्री से ग्रन्थ
पढ़ती है।
अभ्यास (1) बालक सर्प से डरता है। (2) खेत से अन्न उत्पन्न होता है। (3) वह गाय से डरता है। (4) जामुन के पेड़ से जामुन गिरता है। (5) खेत से कुत्ता दौड़ता है। (6) मनुष्य हिंसा से डरे। (7) मकान की छत से बालक गिरता है। (8) पर्वत से गंगा निकलती है। (9) वह मुझसे डरता है। (10) वह तुझसे पुस्तक पढ़ता है। (11) बीज से वृक्ष उत्पन्न होता है। (12) पुत्र पिता से छिपता है।
निम्नलिखित में पंचमी विभक्ति होती है - (1) जिस वस्तु से किसी को हटाया जाय उसमें, जैसे - पेड़ से जामुन गिरता है। (2) जिससे छिपना चाहता है उसमें, जैसे - पिता से छिपता है। (3) भय के कारण में पंचमी होती है, जैसे - सर्प से डरता है। (4) जिससे नियमपूर्वक विद्या पढ़ी जाए उसमें, जैसे - मैं तुझसे पुस्तक पढ़ता हूँ। (5) उत्पन्न होना अर्थ में पंचमी होती है, जैसे - बीज से वृक्ष उत्पन्न होता है।
अपभ्रंश रचना सौरभ Education International
. 145
Page #165
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 71 संज्ञा
संज्ञा शब्द पंचमी एकवचन
संज्ञाएँ सामि = स्वामी
पंचमी एकवचन सामिहे/सामीहे
इकारान्त पुल्लिंग
उकारान्त पुल्लिंग
साहु = साधु
साहुहे/साहूहे
इकारान्त नपुंसकलिंग
वारि = जल
वारिहे/वारीहे
उकारान्त नपुंसकलिंग
वत्थु = पदार्थ
वत्युहे/वत्थूहे
सो
सो
पंचमी एकवचन सामिहे/सामीहे डरइ/आदि
= वह स्वामी से
डरता है। साहुहे/साहूहे पढइ/आदि
= वह साधु से
पढ़ता है। वारिहे/वारीहे कमल/कमला/कमलु उप्पज्जइ/आदि = जल से कमल
उत्पन्न होता है।
146
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #166
--------------------------------------------------------------------------
________________
संज्ञा शब्द पंचमी बहुवचन
अकारान्त पुल्लिंग
इकारान्त पुल्लिंग
उकारान्त पुल्लिंग
अकारान्त नपुंसकलिंग
इकारान्त नपुंसकलिंग
उकारान्त नपुंसकलिंग
सो
तुहुं
हउं
पंचमी बहुवचन
नरिंदहु / नरिंदाहुं
सामिहुं / सामी
साहुहु/ साहूहु
अपभ्रंश रचना सौरभ
पाठ 72
संज्ञा
संज्ञाएँ
नरिंद = राजा
सामि = स्वामी
साहु = साधु
रज्ज = राज्य
वारि = जल
वत्थु = पदार्थ
/ आद
नोट - इसी प्रकार अन्य वाक्य बना लेने चाहिए ।
पंचमी बहुवचन
नदिहु / नरिंदाहुं
सामिहुँ / सामी
साहुहु/ साहूहु
रज्जहुँ / रज्जाहुं
वारिहुं / वारीहुँ
= वह राजाओं से डरता है ।
वत्थहुं / वत्थूहुं
डर / आदि = तुम स्वामियों से डरो।
पढ़उं / आदि = मैं साधुओं से पढ़ता हूँ ।
147
Page #167
--------------------------------------------------------------------------
________________
संज्ञा शब्द पंचमी बहुवचन
आकारान्त स्त्रीलिंग
इकारान्त स्त्रीलिंग
ईकारान्त स्त्रीलिंग
उकारान्त स्त्रीलिंग
ऊकारान्त स्त्रीलिंग
सर्वनाम पंचमी बहुवचन
अम्हे / अम्हई
ते
148
पाठ 73
संज्ञा - सर्वनाम
संज्ञाएँ
माया = माता
जुवइ = युवती
पुत्ती = पुत्री
धेणु
= गाय
जंबू = जामुन का पेड़
अम्हहं
= हम (सब) से
पंचमी बहुवचन
मायाहु / मायुह जुवइहु / जुवईहु
पंचमी बहुवचन
मायाहु / मायहु
जुवहु /जुबईहु
पुतीहु/पुत्तिहु
तुम्हहं = तुम (सब) से
तहुं / ताहुं = उनसे (पुल्लिंग, नपुंसकलिंग ) ताहु / तहु = उनसे (स्त्रीलिंग)
घेणुहु/ घेणूहू
जंबूहु / जंबहु
डरहुँ / आदि = हम सब माताओं से डरते हैं । लुक्कन्ति / आदि = वे सब युवतियों से छिपते हैं।
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #168
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 74 संज्ञा-सर्वनाम
संज्ञा शब्द सप्तमी एकवचन
संज्ञाएँ
अकारान्त पुल्लिंग अकारान्त नपुंसकलिंग इकारान्त पुल्लिंग ईकारान्त पुल्लिंग उकारान्त पुल्लिंग ऊकारान्त पुल्लिंग इकारान्त नपुंसकलिंग उकारान्त नपुंसकलिंग आकारान्त स्त्रीलिंग इकारान्त स्त्रीलिंग ईकारान्त स्त्रीलिंग उकारान्त स्त्रीलिंग ऊकारान्त स्त्रीलिंग
नरिंद = राजा रज्ज = राज्य सामि = स्वामी गामणी = गाँव का मुखिया साहु = साधु सयंभू = स्वयंभू वारि = जल वत्थु = पदार्थ माया = माता जुवइ = युवती पुत्ती = पुत्री घेणु = गाय जंबू = जामुन का पेड़
सप्तमी एकवचन नरिंदि/नरिंदे रज्जि/रज्जे सामिहि/सामीहि गामणीहि/गामणिहि साहुहि/साहूहि सयंभूहि/सयंभुहि वारिहि/वारीहि वत्थुहि/वत्थूहि मायाहिं/मायहिं जुवइहिं/जुवईहिं पुत्तीहिं/पुत्तिहिं धेणुहिं/धेणूहिं जंबूहि/जंबुहिं
सर्वनाम सप्तमी एकवचन
मई
= मुझ में, मुझ पर पई, तई = तुम में, तुम पर तहिं, ताहिं = उन पर (पुल्लिग, नपुंसकलिंग)
ताहिं/तहिं = उन पर (स्त्रीलिंग) अभ्यास (1) वह घर में नाचता है।
(2) आकाश में बादल गरजते हैं। (3) वह परीक्षा में मूर्च्छित होती है। (4) नर्मदा में पानी सूखता है। (5) सीता घर में कथा सुनती है। (6) वह पोटली पर बैठता है। (7) बुढ़ापे में वाणी थकती है। (8) राम के राज्य में लक्ष्मी बढ़ती है। (9) उसकी माता घर में पुत्र को पालती है। (10) तुम हँसकर घर में नाचते हो।
अपभ्रंश रचना सौरभ
149
Page #169
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 75
संज्ञा-सर्वनाम संज्ञा शब्द सप्तमी बहुवचन
संज्ञाएँ अकारान्त पुल्लिंग नरिंद = राजा अकारान्त नपुंसकलिंग
रज्ज = राज्य इकारान्त पुल्लिंग .. सामि = स्वामी
ईकारान्त पुल्लिंग
गामणी = गाँव का मुखिया
उकारान्त पुल्लिंग
साहु = साधु
सप्तमी बहुवचन नरिंदहिं/नरिंदाहिं रज्जहिं/रज्जाहिं सामिहिं/सामीहिं सामिहुं/सामीहुँ गामणीहिं/गामणिहिं गामणीहुं/गामणिहुं साहुहिं/साहूहिं साहुहुं/साहूहूं सयंभूहि/सयंभुहिं सयंभूहुं/सयंभुहुं वारिहिं/वारीहिं वत्थुहिं/वत्थूहिं मायाहिं/मायहिं जुवइहिं/जुवईहिं पुत्तीहिं/पुत्तिहिं धेणुहिं/घेणूहि जंबूहिं/जंबुहिं
ऊकारान्त पुल्लिंग
सयंभू = स्वयंभू
इकारान्त नपुंसकलिंग उकारान्त नपुंसकलिंग आकारान्त स्त्रीलिंग इकारान्त स्त्रीलिंग ईकारान्त स्त्रीलिंग उकारान्त स्त्रीलिंग ऊकारान्त स्त्रीलिंग
वारि = जल वत्थु = पदार्थ माया = माता जुवइ = युवती पुत्ती = पुत्री घेणु = गाय जंबू = जामुन का पेड़
सर्वनाम सप्तमी बहुवचन
- हमारे में
अम्हासु तुम्हासु तहिं/ताहिं ताहिं/तहिं
= तुम्हारे में . = उनमें (पुल्लिंग, नपुंसकलिंग) __ = उनमें (स्त्रीलिंग)
150
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #170
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 76
संज्ञा
संज्ञा शब्द सम्बोधन एकवचन व बहुवचन
1.
2.
3.
अभ्यास
1.
संबोधन के एकवचन में प्रथमा एकवचन के ही प्रत्यय लगाये जाते हैं।
संबोधन के बहुवचन में प्रथमा बहुवचन के प्रत्ययों के अतिरिक्त 'हो' प्रत्यय भी लगाया जाता है।
हे राजा
नरिंदु / नरिंदो
नरिंद / नरिंदा
पुत्ती / पुत्ति
साहो / साहूहो
सर्वनाम शब्दों का संबोधन नहीं होता है।
हे पुत्री
(1) हे स्वामी ! आप हमारी रक्षा करें। (2) हे राजा ! आपके राज्य में सुख नहीं है।
(3) हे मित्र ! तुम मेरे घर पर आओ ।
(4) हे माता ! तुम बालकों को पालो । (5) हे सीता ! जंगल में बहुत दुःख है । (6) हे पुत्र ! सत्य बोलो
(7) हे युवती ! तुम हँसो। (8) बालको ! तुम सब पुस्तकें पढ़ो ।
(9) मित्रो ! आप सब राज्य से डरो। (10) साधुओ ! संयम पालो ।
साधुओ
अपभ्रंश रचना सौरभ
संबोधन में किसी को पुकारना या बुलाना प्रकट होता है। इसके चिह्न हैं - हे !, अरे !, ओ ! आदि ।
151
Page #171
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 77
प्रेरणार्थक प्रत्यय (क) सामान्य क्रियाओं के प्रेरणार्थक प्रत्यय क्रियाएँ
प्रत्यय
अआव
अ
आव
हस = हँसना
भिड = भिड़ना
लुक्क = छिपना
रूस = रूसना
हस+अ = हास (हँसाना) हस+आव = हसाव (हँसाना) (उपान्त्य 'अ' का 'आ' हो जाता है) भिड+अ = भेड (भिड़ाना) भिड+आव = भिडाव (भिड़ाना) (उपान्त्य, 'इ' का 'ए' हो जाता है) लुक्क+अ = लोक्क लुक्क+आव = लुक्काव (छिपाना) (उपान्त्य 'उ' का 'ओ' हो जाता है) रूस+अ = रूस
रूस+आव = रूसाव (रुसाना) (दीर्घ 'ऊ' में कोई परिवर्तन नहीं होता है) जीव+अ = जीव
जीव+आव = जीवाव (जिलाना) (दीर्घ 'ई' में कोई परिवर्तन नहीं होता है) ठा+अ = ठाअ (ठहराना) ठा+आव = ठाव (ठहराना) णच्च+अ = णाच्च-णच्च णच्च+आव = णच्चाव (नचाना) (उपान्त्य 'अ' का 'आ' होता है, पर संयुक्ताक्षर आगे होने पर 'अ' ही रहता है)
जीव = जीना
ठा = ठहरना
णच्च = नाचना
152
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #172
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रत्यय
नोट - क्रियाओं में प्रेरणार्थक के प्रत्यय जोड़ने के पश्चात् कालों के प्रत्यय जोड़ने से विभिन्न
कालों के प्रेरणार्थक रूप बन जाते हैं। जैसे - हासइ = हँसाता है, हसावइ = हँसाता
है (वर्तमानकाल अन्य पुरुष एकवचन) (ख) कर्मवाच्य और भाववाच्य के प्रेरणार्थक प्रत्यय आवि, 0 क्रियाएँ
आवि हस = हँसना हस+आवि = हसावि हस+0 % हास
(उपान्त्य 'अ' का 'आ' हो जाता है) कर = करना कर+आवि = करावि कर+0 = कार
(उपान्त्य 'अ' का 'आ' हो जाता है)
लुक्क = छिपना लुक्क+आवि = लुक्कावि
लुक्क+0 = लुक्क
भिड = भिडना
भिड+आवि = भिडावि
भिड+0 = भिड
रूस रूसना
रूस+आवि = रूसावि
रूस+0 = रूस
ठा = ठहरना
ठा+आवि = ठाआवि
ठा+0 = ठा
नोट - क्रियाओं में प्रेरणार्थक के प्रत्यय जोड़ने के पश्चात् कर्मवाच्य-भाववाच्य के प्रत्यय
जोड़े जाते हैं। करावि +इज्ज/इय = कराविज्ज/कराविय = करवाया जाना रूसावि +इज्ज/इय = रूसाविज्ज/रूसाविय = रुसाया जाना कार + इज्ज/इय = कारिज्ज/कारिय
= करवाया जाना रूस + इज्ज/इय - रूसिज्ज/रूसिय
= रुसाया जाना ठा + इज्ज/इय = ठाइज्ज/ठाइय
= ठहराया जाना
इसके पश्चात् काल-बोधक प्रत्यय लगाये जाते हैं। जैसे - कराविज्जइ, करावियइ, कराविज्जइ, करावियहि, कराविज्जउं, करावियउं आदि। अपभ्रंश रचना सौरभ
153
Page #173
--------------------------------------------------------------------------
________________
आवि,0
प्रत्यय
(ग) कृदन्तों के प्रेरणार्थक प्रत्यय क्रियाएँ
आवि हस = हँसना हस+आवि = हसावि कर = करना कर+आवि = करावि
हस+0 = हास कर+0 = कार
प्रेरणार्थक भूतकालिक कृदन्त
हसावि+अ/य कार+अ/य
= हसाविअ/हसाविय = कारिअ/कारिय
प्रेरणार्थक वर्तमान कृदन्त
हसावि+न्त/माण हास +न्त/माण करावि+न्त/माण कार + न्त/माण
= हसाविन्त/हसाविमाण = हासन्त/हासमाण = कराविन्त/कराविमाण = कारन्त/कारमाण
प्रेरणार्थक विधि कृदन्त
हसावि+अव्व हसावि+इएव्वउं हसावि+एव्वउं हसावि+एवा
= हसाविअव्व = हसाविएव्वउं = हसावेव्वळ = हसावेवा
हास +अव्व हास +इएव्वउं हास +एव्वउं हास +एवा
= हासेअव्व, हासिअव्व = हासिएव्वउं = हासेव्वउं = हासेवा
प्रेरणार्थक सम्बन्धक भूतकृदन्त
हसावि+इ हसावि+इउ
= हसाविइ = हसाविउ
154
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #174
--------------------------------------------------------------------------
________________
सावि+इि
हसावि + अवि
सावि + एवि
- एविणु
हसावि +
हसावि +
- एप्पि
हसावि + एप्पि
हास +इ
हास + इउ
हास + इवि
हास + अवि
हास + एवि
हास + एविणु हास + एप्पि हास + एप्पिणु
प्रेरणार्थक हेत्वर्थक कृदन्त
हसावि + एवं
हसावि + अण
हसावि + अहं
सावि+अहिं
हास + एवं
हास + अण
हास
हास
+ अहं
+ अणहिं
अपभ्रंश रचना सौरभ
=
=
=
=
=
"
=
=
=
#1 || 11
=
=
=
हसावेवि
हसावेविणु
हसावेप्पि
साप
=
11
=
हसाविवि
सावि
• हसावेवं
हासि
हासिउ
हासिवि
सवि
हासेवि
सेवि
=
= हसावण
=
प
हासेप्पणु
: हसावणहं
हसाव हिं
हासेवं
= हासण
=
=
=
हासणहं
हास हिं
155
Page #175
--------------------------------------------------------------------------
________________
स्वार्थिक प्रत्यय - अ, अड, उल्ल
इनमें से कोई भी दो अथवा कभी-कभी तीनों एक साथ संज्ञाओं में जोड़ दिए जाते हैं। इस प्रकार कुल स्वार्थिक प्रत्यय सात हो जाते हैं - (1) अ (2) अड (3) उल्ल (4) अडअ (5) उल्लअ (6) उल्लअड ( 7 ) उल्लअडअ । स्वार्थिक प्रत्यय लगाने के पश्चात् विभक्तियाँ जोड़ी जाती हैं।
नोट -
पाठ 78
स्वार्थिक प्रत्यय
संज्ञाओं में स्वार्थिक प्रत्यय जोड़ने पर मूल अर्थ में कोई परिवर्तन नहीं होता है।
156
जीव + अड
भाव + अडअ
अप्प + अ
बाहुबल + उल्ल+अड+अ =
स्त्री
वेल्ल+अड = वेल्लड- वेल्लडी = बेलडी (स्त्रीलिंग में 'ई' प्रत्यय जोड़ा जाता है)
स्त्री
कुडी + उल्ल = कुडुल्ल - कुडुल्ली = झोपड़ी (स्त्रीलिंग में 'ई' प्रत्यय जोड़ा जाता है)
जीवड
= भावडअ
= अप्पअ
=
= जीव
= भाव
= आत्मा
बाहुबलुल्लडअ = भुजा का बल
उपर्युक्त स्वार्थिक प्रत्ययों के अतिरिक्त 'इय', 'क्क', 'एं', 'उ' 'इल्ल' आदि प्रत्यय भी स्वार्थिक कहे जाते हैं। पुण-पुणु, विण विणु, पढम + इल्ल = पढमिल्ल, गुरु+क्क गुरुक्क, आदि ।
=P
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #176
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ79 विविध सर्वनाम
||
||
呢呢呢呢
||
ज (पु. नपुं.) = जो, एत (पु. नपुं.) जा (स्त्री) = जो, एता (स्त्री) क (पु. नपुं.) = कौन, इम (पु. नपुं.) का (स्त्री) = कौन, ___ इमा (स्त्री) = यह आय (पु. नपुं.)= यह, कवण (पु. नपुं.) = कौन, क्या, कौनसा आया (स्त्री) = यह, कवणा (स्त्री) = कौन, क्या, कौनसा
काँइ (पु. नपुं. स्त्री) = कौन, क्या, कौनसा उपर्युक्त सर्वनामों के रूप शब्द-रूपों में देखकर निम्नलिखित वाक्यों की अपभ्रंश में रचना कीजिए -
अभ्यास
(क)(1) जो मनुष्य थकता है, वह सोता है। (2) जो गुस्सा करता है, वह छिपता है। (3) जिसके द्वारा सोया जाता है, उसके द्वारा हँसा जाता है। (4) जिसका शरीर थका हुआ है, उसका बुढ़ापा बढ़ा हुआ है। (5) मैं जिसको बुलाता हूँ, वह तुम हो। (6) जिस लकड़ी पर तुम बैठे हो, वह मेरी है। (7) तुम जिससे डरते हो, उससे मैं डरता हूँ।
(ख) -
(1) यह मनुष्य हँसता है। (2) ये मनुष्य हँसते हैं। (3) वह यह ग्रन्थ पढ़ता है। (4) वे ये ग्रन्थ पढ़ते हैं। (5) इस मनुष्य के द्वारा हँसा जाता है। (6) इन मनुष्यों के द्वारा ग्रन्थ पढ़े जाते हैं। (7) मैं इसके लिए जीता हूँ। (8) वह इसके लिए जीती है। (9) मैं यह व्रत पालता हूँ। (10) इस मनुष्य में ज्ञान है।
(ग)(1) तुम क्या करते हो ? (2) तुम किन कार्यों को करते हो ? (3) वह किससे
अपभ्रंश रचना सौरभ
157
Page #177
--------------------------------------------------------------------------
________________
पानी पीता है ? (4) वह किसका पुत्र है ? (5) वह किससे डरता है ? (6) तुम किसके लिए जीते हो ? (7) किसमें तुम्हारी भक्ति है ?
(घ)
(1) कौन नाचता है ? (2) वह कौनसा व्रत पालता है ? (3) किसके द्वारा पानी पिया गया ? (4) किसके लिए तुम उठते हो ? (5) वह किसका पुत्र है ? (6) यह किसकी पुस्तक है ? (7) किस राज्य की तुम रक्षा करते हो ? (8) किस घर में वह रहता है ?
158
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #178
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ80
अव्यय
ताम
जहा
तहा
जह
11
तह
||
||
॥
. = जब तक,
जइ = यदि = तब तक,
= तो जेत्थु = जहाँ,
= जिस प्रकार तेत्थु = वहाँ,
= उस प्रकार जेम = जिस प्रकार,
= जैसे तेम = उस प्रकार,
= वैसे केत्थु = कहाँ,
इय = इस प्रकार एत्थु = यहाँ,
मा . = नहीं अज्जु = आज,
तम्हा = इसलिए म = मत,
जम्हा = चूंकि ण = नहीं,
विणा = बिना णवि = नहीं,
वि = भी
अभ्यास (1) जब तक तुम जागते हो, तब तक मैं चित्र देखता हूँ। (2) जहाँ तुम्हारा गाँव है, वहाँ मेरा घर है। (3) जिस प्रकार वह सुख चाहता है, उसी प्रकार मैं सुख चाहता हूँ। (4) तुम कहाँ रहतें हो ? (5) मैं यहाँ रहता हूँ। (6) तुम मत हँसो। (7) राम नहीं उठता है। (8) यदि तुम कहते हो, तो मैं यह काम करता हूँ।
"ऐसे शब्द जिनके रूप में कोई विकार-परिवर्तन उत्पन्न न हो और जो सदा एक से- सभी विभक्ति, सभी वचन और सभी लिंगों में एक समान रहें, अव्यय कहलाते हैं।" (लिंग, विभक्ति और वचन के अनुसार जिनके रूपों में घटती-बढ़ती न हो, वह अव्यय है।)
(अभिनव प्राकृत व्याकरण, 213)
अपभ्रंश रचना सौरभ
159
Page #179
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ81
क्रिया-रूप व प्रत्यय
(1) वर्तमानकाल के प्रत्यय एकवचन
बहुवचन हुं, मो, मु, म
उत्तम पुरुष
उं. मि
मध्यम पुरुष
हि, सि, से
हु, ह, इत्था
अन्य पुरुष
हिं, न्ति, न्ते, इरे हस = हँसना
बहुवचन हसहुं , हसमो, हसमु हसम (अन्य रूप देखें पाठ 5)
एकवचन हसउं, हसमि, हसामि, हसेमि
उत्तम पुरुष
मध्यम पुरुष
हसहु, हसह, हसित्था
हसहि, हससि, हससे
अन्य पुरुष हसइ, हसए
हसहिं, हसन्ति, हसन्ते,
हसिरे नोट - वर्तमानकाल के लिए पाठ 1 से 8 तक देखें। आकारान्त क्रियाओं के रूप पाठ 4 व 8 में देखें।
(2) आज्ञा एवं विधि के प्रत्यय एकवचन
बहुवचन उत्तम पुरुष मध्यम पुरुष इ, ए, उ, 0, हि, सु अन्य पुरुष
मु
In m
160
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #180
--------------------------------------------------------------------------
________________
उत्तम पुरुष मध्यम पुरुष
हस = हँसना एकवचन
बहुवचन हसमु, हसेमु
हसमो, हसामो, हसेमो हसि, हसु, हसे, हस हसहि, हससु हसउ
हसन्तु
हसह
अन्य पुरुष
नोट - आज्ञा एवं विधि के लिए पाठ 9 से 17 तक देखें। आकारान्त क्रियाओं के रूप __ पाठ 1 2 एवं 17 में देखें।
(3) भविष्यत्काल के प्रत्यय एकवचन
बहुवचन उत्तम पुरुष सउं, हिउँ
सहुं, हिहुं समि, हिमि
समो, हिमो समु, हिमु
सम, हिम मध्यम पुरुष सहि, हिहि
सहु, हिहु ससि, हिसि
सह, हिह
सइत्था, हित्था (हि+इत्था) अन्य पुरुष सइ, हिइ
सहिं, हिहिं सए, हिए
सन्ति, हिन्ति सन्ते, हिन्ते
सइरे, हिइरे हस = हँसना एकवचन
बहुवचन उत्तम पुरुष हसेसउं, हसिहिउं हसेसहुं, हसेसमो, हसेसमु, हसेसम
हसेसमि, हसिहिमि हसिहिहुं, हसिहिमो, हसिहिमु, हसिहिम
ससे, हिसे
अपभ्रंश रचना सौरभ
161
Page #181
--------------------------------------------------------------------------
________________
मध्यम पुरुष
====
हसेसहि, हसेससि, हसेससे हसेसहु, हसेसह, हसेसइत्था हसिहिहि, हसिहिसि, हिसिहिसे हसिहिहु, हसिहिह, हसिहित्या हसेसइ, हसेसए हसेसहि, हसेसन्ति हसिहिइ, हसिहिए हसिहिहिं, हसिहिन्ति
अन्य पुरुष
नोट- भविष्यत्काल के लिए पाठ 18 से 25 तक देखें। आकारान्त क्रियाओं के रूप पाठ
21 और 25 में देखें।
162
अपभ्रंश रचना सौरभ
.
Page #182
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 82
क्रिया-रूप व प्रत्यय
अस = होना
. वर्तमानकाल
एकवचन अत्थि, म्हि
बहुवचन अत्थि, म्हो, म्ह
उत्तम पुरुष
मध्यम पुरुष
अत्थि, सि
अत्थि
अन्य पुरुष
अत्थि
अत्थि
भूतकाल
एकवचन आसि
बहुवचन आसि
उत्तम पुरुष
मध्यम पुरुष
आसि
आसि
अन्य पुरुष
आसि
आसि
163
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #183
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 83 (क) संज्ञा रूप
प्रथमा द्वितीया तृतीया (चतुर्थी एव
(षष्ठी
पंचमी सप्तमी सम्बोधन
अकारान्त पुल्लिंग (देव) एकवचन
बहुवचन देव, देवा, देवु, देवो देव, देवा देव, देवा, देवु
देव, देवा देवेण, देवेणं, देवें
देवहिं, देवाहिं, देवेहिं देव, देवा
देव, देवा देवसु, देवासु
देवह, देवाहं देवहो, देवाहो, देवस्सु
देवहे, देवाहे, देवहु, देवाहु देवहुं, देवाहुं - देवि, देवे
देवहिं, देवाहिं देव, देवा, देवु, देवो देव, देवा, देवहो, देवाहो
इकारान्त पुल्लिग (हरि) एकवचन
बहुवचन हरि, हरी
हरि, हरी हरि, हरी
हरि, हरी हरिएं, हरीएं, हरिं, हरी हरिहिं, हरीहिं हरिण, हरीण, हरिणं, हरीणं हरि, हरी
हरि, हरी हरिहुं, हरीहुं
हरिहं, हरीहं हरिहे, हरीहे
हरिहुं, हरीहुं हरिहि, हरीहि
हरिहिं, हरीहिं, हरिहुं, हरीहुँ । हरि, हरी
हरि, हरी, हरिहो, हरीहो
प्रथमा
द्वितीया तृतीया
चतुर्थी व
(षष्ठी
पंचमी सप्तमी सम्बोधन
164
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #184
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रथमा द्वितीया
तृतीया
चितुर्थी Ka षष्ठी
Homentione
पंचमी सप्तमी
Limminen/
सम्बोधन
ईकारान्त पुल्लिंग (गामणी) एकवचन
बहुवचन गामणी, गामणि
गामणी, गामणि गामणी, गामणि
गामणी, गामणि गामणीएं, गामणिएं गामणीहिं, गामणिहिं गामणी, गामणिं गामणीण, गामणिण गामणीणं, गामणिणं गामणी, गामणि
गामणी, गामणि गामणीहुं, गामणिहुँ
गामणीहं, गामणिहं गामणीहे, गामणिहे गामणीहुं, गामणिहुं गामणीहि, गामणिहि गामणीहिं, गामणिहिं
गामणीहुं, गामणिहुं गामणी, गामणि
गामणी, गामणि
गामणीहो, गामणिहो उकारान्त पुल्लिंग (साहु) एकवचन
बहुवचन साहु, साहू
साहु, साहू साहु, साहू
साहु, साहू साहुएं, साहूएं, साहुं, साहूं साहुहिं, साहूहिं साहुण, साहूण, साहुणं, साहूणं साहु, साहू
साहु, साहू साहुहूं, साहूहूं
साहुहं, साहूहं साहुहे, साहूहे
साहुहुं, साहूहूं साहुहि, साहूहि साहुहिं, साहूहिं, साहुहूं, साहूहूं साहु, साहू
साहु, साहू , साहुहो, साहूहो
प्रथमा द्वितीया तृतीया
चितुर्थी
(षष्ठी
पंचमी सप्तमी सम्बोधन
अपभ्रंश रचना सौरभ
165
Page #185
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रथमा
द्वितीया
तृतीया
चितुर्थी
(षष्ठी
पंचमी सप्तमी सम्बोधन
-
ऊकारान्त पुल्लिंग (सयंभू) एकवचन
बहुवचन सयंभू, सयंभु
सयंभू, सयंभु सयंभू, सयंभु
सयंभू, सयंभु सयंभूएं, सयंभुएं
सयंभूहिं, सयंभुहिं सयंभू, सयंभु सयंभूण, सयंभुण सयंभूणं, सयंभुणं सयंभू, सयंभु
सयंभू, सयंभु सयंभूर्भु, सयंभुहुं
सयंभूहं, सयंभुहं सयंभूहे, सयंभुहे
सयंभूहूं, सयंभुई सयंभूहि, सयंभुहि सयंभूहि, सयंभुहिं, सयंभूर्भु, सयंभुहं सयंभू, सयंभु
सयंभू, सयंभु, सयंभूहो, सयंभुहो अकारान्त नपुंसकलिंग (कमल) एकवचन
बहुवचन कमल, कमला, कमलु' कमल, कमला, कमलई, कमलाई कमल, कमला, कमलु कमल, कमला, कमलई, कमलाई कमलें, कमलेण, कमलेणं कमलहि, कमलाहिं. कमलेहिं कमल, कमला
कमल, कमला कमलहो, कमलाहो कमलहं, कमलाहं कमलसु, कमलासु, कमलस्सु कमलहे, कमलाहे कमलहुं, कमलाई कमलहु, कमलाहु कमलि, कमले
कमलहिं, कमलाहिं कमल, कमला
कमल, कमला कमलु
कमलहो, कमलाहो
प्रथमा द्वितीया तृतीया चितुर्थी व
(षष्ठी
पंचमी
सप्तमी
सम्बोधन
अकारान्त नपुंसकलिंग शब्द में जब अन्त्य-अक्षर 'अ' होता है तब उसके प्रथमा व द्वितीया एकवचन में 'उ' प्रत्यय में अनुस्वार भी लगता है। जैसे - अच्छिअ = अच्छिउं (नपं. प्रथमा व द्वितीया एकवचन)।
166
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #186
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रथमा द्वितीया
तृतीया
चितुर्थी
[षष्ठी पंचमी सप्तमी सम्बोधन
इकारान्त नपुंसकलिंग-वारि एकवचन
बहुवचन वारि, वारी
वारि, वारी, वारिई, वारीइं वारि, वारी
वारि, वारी
वारिइं, वारी वारिं, वारी, वारिएं, वारीएं वारिहिं, वारीहिं वारिण, वारीण, वारिणं, वारीणं वारि, वारी
वारि, वारी वारिहुं, वारीहुं
वारिहं, वारीहं वारिहे, वारीहे
वारिहुं, वारीहुं वारिहि, वारीहि वारिहिं, वारीहिं, वारिहुं, वारीहुं वारि, वारी
वारि, वारी, वारिई, वारी
वारिहो, वारीहो उकारान्त नपुंसकलिंग-महु एकवचन
बहुवचन महु, महू
महु, महू , महुई, महूई महु, महू
महु, महू , महुई, महूई महुं, महूं, महुएं, महूएं महुहिं, महूहिं महुण, महूण, महुणं, महणं महु, महू
महु, महू महुहुं, महूहुं
महुहं, महूहं महुहे, महूहे
महुहूं, महूहूं महुहि, महूहि
महुहिं, महूहि, महुहूं, महूहूं महु, महू
महु, महू , महुहो, महूहो
प्रथमा द्वितीया तृतीया
[चतुर्थी
(षष्ठी पंचमी सप्तमी सम्बोधन
अपभ्रंश रचना सौरभ
167
Page #187
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रथमा
द्वितीया
तृतीया
चतुर्थी
व
षष्ठी
पंचमी
सप्तमी
सम्बोधन
प्रथमा
द्वितीया
तृतीया
चतुर्थी
व
षष्ठी
पंचमी
सप्तमी
सम्बोधन
168
एकवचन
कहा, कह
कहा, कह
कहाए, कहए
कहा, कह
कहा, कह
कहा, कह
कहाहिं, कहहिं
कहा, कह
एकवचन
मइ, मई
मई
मइ,
मइए, म
मई
महे, म
आकारान्त स्त्रीलिंग - कहा
मई,
मई
महे, म
महिं, महिं
मइ,
बहुवचन
कहा, कह, कहाउ, कहउ
कहाओ, कहओ.
कहा, कह, कहाउ, कहउ
कहाओ, कहओ
कहाहिं, कहहिं
कहा, कह
कहाहु, क
कहाहु, कहहु
कहाहिं, कहहिं
कहा, कह, कहाउ, कहउ
कहाओ, कहओ, कहाहो, कहहो
इकारान्त स्त्रीलिंग - मइ
बहुवचन
मइ, मई, मइउ,
मइओ, मईओ
मइ, ई, उ,
मइओ, मईओ
महिं, महिं
मइ, मई
महु, महु
महु, महु
महिं, महिं
मईउ
मई
मइ, ई, उ, मईउ
मइओ, मईओ, मइहो, मईहो
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #188
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रथमा
द्वितीया
ईकारान्त स्त्रीलिंग-लच्छी एकवचन
बहुवचन लच्छी, लच्छि
लच्छी, लच्छि, लच्छीउ, लच्छिउ
लच्छीओ, लच्छिओ . लच्छी, लच्छि
लच्छी, लच्छि, लच्छीउ, लच्छिउ
लच्छीओ, लच्छिओ लच्छीए, लच्छिए लच्छीहिं, लच्छिहिं लच्छी, लच्छि
लच्छी, लच्छि लच्छीहे, लच्छिहे लच्छीहु, लच्छिहु
तृतीया
[चतुर्थी
(षष्ठी
पंचमी सप्तमी सम्बोधन
लच्छीहे, लच्छिहे लच्छीहु, लच्छिहु लच्छीहिं, लच्छिहिं लच्छीहिं, लच्छिहिं लच्छी, लच्छि
लच्छी, लच्छि, लच्छीउ, लच्छिउ लच्छीओ, लच्छिओ
लच्छीहो, लच्छिहो उकारान्त स्त्रीलिंग-धेणु एकवचन
बहुवचन धेणु, धेणू
धेणु, घेणू , घेणुउ, घेणूउ
धेणुओ, घेणूओ धेणु, धेणू
घेणु, घेणू , घेणुउ, घेणूउ
घेणुओ, घेणूओ धेणुए, धेणूए
धेणुहिं, घेणूहिं धेणु, धेणू
धेणु, धेणू धेणुहे, धेणूहे
धेणुहु, धेणूहु
प्रथमा
द्वितीया
तृतीया (चतुर्थी
[षष्ठी पंचमी सप्तमी सम्बोधन
घेणुहे, धेणूहे घेणुहिं, धेणूहिं धेणु, धेणू
घेणुहु, घेणुहु घेणुहिं, घेणूहिं धेणु, घेणू , धेणुउ, घेणूउ घेणुओ, घेणूओ, घेणुहो, धेणूहो
अपभ्रंश रचना सौरभ
169
Page #189
--------------------------------------------------------------------------
________________
ऊकारान्त स्त्रीलिंग-बहू
एकवचन बहू, बहु
प्रथमा
द्वितीया
बहू, बहु
बहुवचन बहू, बहु, बहूउ, बहुउ बहूओ, बहुओ बहू, बहु, बहूउ, बहुउ बहूओ, बहुओ बहूहिं, बहुहिं बहू, बहु बहूहु, बहुहु
तृतीया [चतुर्थी
बहूए, बहुए बहू, बहु बहूहे, बहुहे
(षष्ठी
पंचमी सप्तमी सम्बोधन
बहूहे, बहुहे बहूहिं, बहुहिं बहू, बहु
बहूहु, बहुहु बहूहिं, बहुहिं बहू, बहु, बहूउ, बहुउ बहूओ, बहुओ, बहूहो, बहुहो
प्रथमा
द्वितीया तृतीया (चतुर्थी
(ख) सर्वनाम रूप
पुल्लिंग - सव्व एकवचन
बहुवचन सव्व, सव्वा, सव्वु, सव्वो सव्व, सव्वा । सव्व, सव्वा, सव्वु
सव्व, सव्वा सव्वें, सव्वेण, सव्वेणं सव्वहिं, सव्वाहिं, सव्वेहिं सव्व, सव्वा
सव्व, सव्वा सव्वसु, सव्वासु
सव्वहं, सव्वाह सव्वहो, सव्वाहो, सव्वस्सु सव्वहां, सव्वाहां
सव्वहुं, सव्वाडं सव्वहिं, सव्वाहिं
सव्वहिं, सव्वाहिं
(षष्ठी
पंचमी
सप्तमी
170
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #190
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रथमा
द्वितीया
तृतीया
चतुर्थी
व
षष्ठी
पंचमी
सप्तमी
प्रथमा
द्वितीया
तृतीया चतुर्थी
व
षष्ठी
पंचमी
सप्तमी
1.
अपभ्रंश रचना सौरभ
एकवचन
सव्व, सव्वा, सव्वु
सव्व, सव्वा, सव्वु
सव्वें, सव्वेण, सव्वेणं
सव्व, सव्वा
सव्वसु, सव्वासु
सव्वहो, सव्वाहो,
सव्वहां, सव्वाहां
सव्वहिं, सव्वाहिं
एकवचन
सव्वा, सव्व
सव्वा,
नपुंसकलिंग - सव्व
सव्व
सव्वाए, सव्वए
सव्वा,
सव्व
सव्वाहे, सव्व
सव्वरसु
सव्वाहे, सव्व
सव्वाहिं, सव्वहिं
बहुवचन
सव्व, सव्वा, सव्वई, सव्वाइं
सव्व, सव्वा, सव्वई, सव्वाई सव्वहिं, सव्वाहिं, सव्वेहिं
सव्व, सव्वा
सव्वहं, सव्वाहं
सव्वहुँ, सव्वाहुं सव्वहिं, सव्वाहिं
स्त्रीलिंग - सव्वा
बहुवचन
सव्वा, सव्व, सव्वाउ, सव्वउ सव्वाओ, सव्वओ
सव्वा, सव्व, सव्वाउ, सव्वउ
सव्वाओ, सव्वओ
सव्वाहिं, सव्वहिं
सव्वा, सव्व
सव्वाहु, सव्वहु
सव्व (पुल्लिंग व नपुंसकलिंग) के रूप पंचमी एकवचन (4/355) और सप्तमी एकवचन (4/357) के अतिरिक्त पुल्लिंग 'देव' तथा नपुंसकलिंग 'कमल' के समान चलेंगे। सव्वा (स्त्रीलिंग) के रूप स्त्रीलिंग 'कहा' के समान चलेंगे।
सव्वाहु, सव्वहु सव्वाहिं, सव्वहिं
171
Page #191
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रथमा
द्वितीया
तृतीया
चतुर्थी
व
षष्ठी
पंचमी
सप्तमी
1.
प्रथमा
द्वितीया
तृतीया
चतुर्थी
व
षष्ठी
पंचमी
सप्तमी
172
एकवचन
स, सा, सु, सो, त्रं, तं
त्रं तं
तें, तेण, ते
त, ता
तसु, तासु
तहो, ताहो,
तहां, ताहां
तहिं ताहिं
पुल्लिंग - त ( वह )
एकवचन
त्रं, तं
त्रं, तं
तें, ते, ते
त, ता
तसु तासु
तहो, ताहो,
तहां, ताहां
तहिं ताहिं
तस्सु
बहुवचन
त, ता
त (पु.) के रूप प्रथमा एकवचन, द्वितीया एकवचन, (4/360) षष्ठी एकवचन (4/358) के अतिरिक्त सब्व (पु.) के अनुसार चलेंगे।
नपुंसकलिंग - त ( वह)
तस्सु
त, ता
तहिं ताहि, हिं
त, ता
तहं, ताहं
तहुँ, ताहुँ
तहिं ताहिं
बहुवचन
त, ता, तई, ताई
त, ता, तई, ताई
तहिं ताहिं हिं
त, ता
तहं, ताहं
तहुं हुं तहिं ताहिं
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #192
--------------------------------------------------------------------------
________________
स्त्रीलिंग - ता (वह)
FREE F
प्रथमा द्वितीया तृतीया (चतुर्थी
एकवचन त्रं, तं, सा, स त्रं, तं ताए, तए ता, त ताहे, तहे
बहुवचन ता, त, ताउ, तउ, ताओ, तओ ता, त, ताउ, तउ, ताओ, तओ ताहिं, तहिं ता, त ताहु, तहु
(षष्ठी पंचमी सप्तमी
ताहे, तहे ताहिं, तहिं
ताहु, तहु ताहिं, तहिं
पुल्लिंग - ज (जो)
प्रथमा द्वितीया तृतीया चतुर्थी व
एकवचन ध्रु, जु, ज, जा, जो ध्रु, जु, ज, जा जे, जेण, जेणं ज, जा जसु, जासु, जहो, जाहो
बहुवचन ज, जा ज, जा जहिं, जाहिं, जेहिं ज, जा जहं, जाहं
(षष्ठी
जस्सु
पंचमी
जहां, जाहां जहिं, जाहिं
जहुं, जाई जहिं, जाहिं
सप्तमी
अपभ्रंश रचना सौरभ
173
Page #193
--------------------------------------------------------------------------
________________
नपुंसकलिंग - ज (जो)
प्रथमा द्वितीया तृतीया चतुर्थी व षष्ठी पंचमी सप्तमी
एकवचन ध्रु, जु ध्रु, जु जे, जेण, जेणं ज, जा जसु, जासु, जहो, जाहो जस्सु जहां, जाहां जहिं, जाहिं
बहुवचन ज, जा, जई, जाई. ज, जा, जई, जाई जहिं, जाहिं, जेहिं ज, जा जहं, जाहं
जहुं, जाडं जहिं, जाहिं
स्त्रीलिंग - जा (जो)
प्रथमा द्वितीया
एकवचन ध्रु, जु ध्रु, जु जाए, जए जा, ज जाहे, जहे
बहुवचन जा, ज, जाउ, जउ, जाओ, जओ जा, ज, जाउ, जउ, जाओ, जओ जाहिं जहिं जा, ज जाहु, जहु
तृतीया
चतुर्थी
(षष्ठी
पंचमी सप्तमी
जाहे, जहे जाहिं, जहिं
जाहु, जहु जाहिं, जहिं
174
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #194
--------------------------------------------------------------------------
________________
पुल्लिंग - क (कौन)
प्रथमा द्वितीया तृतीया [चतुर्थी व
एकवचन क, का, कु, को क, का, कु कें, केण, केणं क, का कसु, कासु, कहो, काहो कस्सु कहां, काहां, किहे कहिं, काहिं
बहुवचन क, का क, का कहिं, काहिं, केहि क, का कहं, काहं
षष्ठी पंचमी
कहुं, काहुं कहिं, काहिं
सप्तमी
नपुंसकलिंग - क (कौन)
प्रथमा
द्वितीया तृतीया चतुर्थी
एकवचन क, का, कु क, का, कु कें, केण, केणं क, का कसु, कासु कहो, काहो, कस्सु कहां, काहां, किहे कहिं, काहिं
बहुवचन क, का, कई, काई क, का, कई, काई कहिं, काहिं, केहिं क, का कहं, काहं
व
[षष्ठी
पंचमी
कहुं, काहुं कहिं, काहिं
सप्तमी
अपभ्रंश रचना सौरभ
175
Page #195
--------------------------------------------------------------------------
________________
स्त्रीलिंग - का (कौन)
एकवचन का, क
प्रथमा
द्वितीया
का, क
बहुवचन का, क, काउ, कउ काओ, कओ का, क, काउ, कउ काओ, कओ काहिं, कहिं का, क
तृतीया चतुर्थी
काए, कए का, क
षष्ठी
पंचमी सप्तमी
काहे, कहे
काहे, कहे ... काहिं, कहिं
काहु, कहु काहु, कहु काहिं, कहिं
पुल्लिंग - एत (यह)
बहुवचन
एकवचन एहो
एहो
प्रथमा द्वितीया तृतीया चतुर्थी
एतहिं, एताहिं, एतेहिं एत, एता एतह, एताह
एतें, एतेण, एतेणं एत, एता एतसु, एतासु एतहो, एताहो, एतस्सु एतहां, एताहां एतहिं, एताहिं
(षष्ठी पंचमी
एतहुं, एताहुं एतहिं, एताहिं
सप्तमी
176
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #196
--------------------------------------------------------------------------
________________
नपुंसकलिंग - एत (यह)
एकवचन
बहुवचन
एइ
प्रथमा द्वितीया तृतीया [चतुर्थी
व [षष्ठी
एतहिं, एताहिं, एतेहिं एत, एता एतह, एताहं
एतें, एतेण, एतेणं एत, एता एतसु, एतासु एतहो, एताहो, एतस्सु एतहां, एताहां एतहिं, एताहिं
पंचमी सप्तमी
एतहु, एताई एतहिं, एताहिं
स्त्रीलिंग - एता (यह)
एकवचन
बहुवचन
प्रथमा
द्वितीया तृतीया चतुथीं व
एताए, एतए एता, एत एताहे, एतहे
एताहिं, एतहिं एता, एत एताहु, एतहु
(षष्ठी
पंचमी सप्तमी
एताहे, एतहे एताहिं, एतहिं
एताहु, एतहु एताहिं, एतहिं
अपभ्रंश रचना सौरभ
177
Page #197
--------------------------------------------------------------------------
________________
पुल्लिंग - इम (यह)
प्रथमा द्वितीया तृतीया [चतुर्थी
एकवचन इम, इमा, इमु, इमो इम, इमा, इमु इमें, इमेण, इमेणं इम, इमा इमसु, इमासु इमहो, इमाहो, इमस्सु इमहां, इमाहां इमहिं, इमाहिं
बहुवचन इम, इमा इम, इमा इमहिं, इमाहिं, इमेहिं इम, इमा इमहं, इमाहं
(षष्ठी
पंचमी
इमहुं, इमाहुं इमहिं, इमाहिं
सप्तमी
नपुसंकलिंग - इम (यह)
एकवचन
प्रथमा द्वितीया तृतीया [चतुर्थी
इमु इमें, इमेण, इमेणं इम, इमा इमसु, इमासु इमहो, इमाहो, इमस्सु इमहां, इमाहां इमहिं, इमाहिं
बहुवचन इम, इमा, इमई, इमाई इम, इमा, इमई, इमाई इमहिं, इमाहिं, इमेहिं इम, इमा इमहं, इमाहं
(षष्ठी
पंचमी सप्तमी
इमहुं, इमाई इमहिं, इमाहिं
178
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #198
--------------------------------------------------------------------------
________________
स्त्रीलिंग - इमा (यह)
एकवचन इमा, इम.
प्रथमा
द्वितीया
इमा, इम
बहुवचन इमा, इम, इमाउ, इमउ इमाओ, इमओ इमा, इम, इमाउ, इमउ इमाओ, इमओ इमाहिं, इमहिं इमा, इम इमाहु, इमहु
तृतीया
इमाए, इमए इमा, इम इमाहे, इमहे
चितुर्थी
व [षष्ठी पंचमी सप्तमी
इमाहे, इमहे इमाहिं, इमहिं
इमाहु, इमहु इमाहिं, इमहिं
पुल्लिंग - आय (यह)
प्रथमा
द्वितीया तृतीया
एकवचन आय, आया, आयु, आयो । आय, आया, आयु आयें, आयेण आयेणं आय, आया आयसु, आयासु आयहो, आयाहो आयस्सु आयहां, आयाहां आयहिं, आयाहिं
बहुवचन आय, आया आय, आया आयहिं, आयाहिं आयेहिं आय, आया आयहं, आयाहं
[चतुर्थी
[षष्ठी
पंचमी सप्तमी
आयहुं, आयाहू आयहिं, आयाहिं
अपभ्रंश रचना सौरभ
179
Page #199
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रथमा
द्वितीया
तृतीया
नपुंसकलिंग - आय (यह) एकवचन
बहुवचन आय, आया
आय, आया आयु
आयई, आयाई आय, आया
आय, आया आयु
आयई, आयाई आयें
आयहिं, आयाहिं आयेण, आयेणं
आयेहिं आय, आया
आय, आया आयसु, आयासु
आयहं, आयाहं आयहो, आयाहो आयस्सु आयहां, आयाहां आयहुं, आयाई आयहिं, आयाहिं
आयहिं, आयाहिं
चतुर्थी
(षष्ठी
पंचमी सप्तमी
प्रथमा
द्वितीया
स्त्रीलिंग - आया (यह) एकवचन
बहुवचन आया, आय
आया, आय आयाउ, आयउ
आयाओ, आयओ आया, आय
आया, आय आयाउ, आयउ
आयाओ, आयओ आयाए, आयए
आयाहिं, आयहिं आया, आय
आया, आय आयाहे, आयहे
आयाहु, आयहु
तृतीया [चतुर्थी व षष्ठी पंचमी सप्तमी
आयाहे, आयहे आयाहिं, आयहिं
आयाहु, आयहु आयाहिं, आयहिं
180
अपभ्रंश रचना सौरभ
.
Page #200
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रथमा
द्वितीया
तृतीया
चतुर्थी
व
षष्ठी
पंचमी
सप्तमी
प्रथमा
द्वितीया
तृतीया
चतुर्थी
व
षष्ठी
पंचमी
सप्तमी
अपभ्रंश रचना सौरभ
पुल्लिंग - अदस्- अमु (वह)
एकवचन
अमु, अमू
अमु, अमू
अमुएं, अमूएं, अमुं, अमूं
अमुण, अमूण, अमुणं, अमूणं
अमु, अमू
अमुहे, अमूहे
अहिं, अमूहिं
एकवचन
अमु, अमू
अमु, अमू
अएं, अमू, अ, अमूं अमुण, अमूण, अमुणं, अमूणं
अमु, अमू
बहुवचन
ओइ
ओइ
अमुहिं, अमूहिं
नपुंसकलिंग - अमु ( वह)
अमुहे अमूहे
अहं, मूि
अमु, अमू
अमुहु, अमूहु
अमुहं, अमूहं
अमुहुं, अमूहुं
अहिं, अमूहिं
अमुहु, अमूहुं
बहुवचन
ओइ
ओइ
अमुहिं, अमूहिं
अमु, अमू
अमुहुं, अमूहुं
अमुहं, अमूहं
अमुहुं, अमूहुं
अहिं, अमूहिं
अमुहं, अमूहं
181
Page #201
--------------------------------------------------------------------------
________________
स्त्रीलिंग - अमु (वह)
बहुवचन ओइ
ओइ
प्रथमा द्वितीया तृतीया [चतुर्थी
एकवचन अमु, अमू अमु, अमू अमुए, अमूए अमु, अमू अमुहे, अमूहे
अमुहिं, अमूहिं अमु, अमू अमुहु, अमूहु
(षष्ठी
पंचमी सप्तमी
अमुहे, अमूहे अमुहिं, अमूहिं
अमुहु, अमूहु अमुहिं, अमूहि
पुल्लिंग - कवण (कौन, क्या, कौनसा)
प्रथमा द्वितीया
तृतीया
चतुर्थी
एकवचन
बहुवचन कवण, कवणा, कवणु, कवणो कवण, कवणा कवण, कवणा, कवणु कवण, कवणा कवणे, कवणेण, कवणेणं कवणहिं, कवणाहिं, कवणेहिं कवण, कवणा
कवण, कवणा कवणसु, कवणासु कवणहं, कवणाहं कवणहो, कवणाहो, कवणस्सु कवणहां, कवणाहां कवणहुं, कवणाहुं कवणहिं, कवणाहिं कवणहिं, कवणाहिं
(षष्ठी
पंचमी सप्तमी
182
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #202
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रथमा
द्वितीया
तृतीया
[चतुर्थी
व
षष्ठी
पंचमी
सप्तमी
प्रथमा
द्वितीया
तृतीया
चतुर्थी
व
षष्ठी
पंचमी
सप्तमी
अपभ्रंश रचना सौरभ
नपुंसकलिंग - कवण ( कौन, क्या, कौनसा )
एकवचन
कवण, कवणा, कवणु
कवण, कवणा, कवणु
कवणें, कवणेण, कवणेणं
कवण,
कवणा
कवणसु, कवणासु
कवणहो, कवणाहो,
कवणहां, कवणाहां
कवणहिं, कवणाहिं
स्त्रीलिंग - कवणा ( कौन, क्या, कौनसा )
एकवचन
कवणा, कवण
कवणा, कवण
कवणार, कवण
कवणा,
कवण
कवणा, कवण
कवणा, कवण
कवणाहिं, कवहिं
कवणस्सु
बहुवचन
कवण, कवणा, कवणई, कवणाई
कवण, कवणा, कवणई, कवणाई कवणहिं, कवणाहिं, कवणेहिं
कवण, कवणा
कवणहं, कवणाहं
कहुं, कवणा
कवणहिं, कवणाहिं
बहुवचन
कवणा, कवण, कवणाउ, कवणउ
कवणाओ, कवणओ
कवणा, कवण, कर्वणाउ, कवणउ कवणाओ, कवणओ
कवणाहिं, कवहिं
कवणा, कवण
कवणा, वहु
कवणाहु, क कवणाहिं, कवहिं
1
183
Page #203
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रथमा
द्वितीया
तृतीया
चतुर्थी
व
षष्ठी
पंचमी
सप्तमी
प्रथमा
द्वितीया
तृतीया
चतुर्थी
व
षष्ठी
पंचमी
सप्तमी
1.
2.
184
एकवचन
हउं
मई
मई
महु, मज्झु
तीनों लिंगों में - अम्ह ( मैं )
महु, मज्झु
मई
एकवचन
तु
पई, तई
पई, त
तउ, तुज्झ, तुध्र
बहुवचन
अम्हे, म्ह
अम्हे, अम्ह
अम्
तीनों लिंगों में तुम्ह (तुम)
-
तउ, तुज्झ, तु
पई, त
अम्हहं
अम्हहं
अम्हासु
बहुवचन
तुम्हे तुम्ह
तुम्हे, तुम्ह
तुम्हे हिं
तुम्ह
तुम्ह
तुम्हासु
तीनों लिंगों में काई (कौन, क्या, कौनसा )
-
सभी वचनों, विभक्तियों एवं लिंगों में 'काई' सदैव काई ही रहता है। 2
हेमचन्द्र की अपभ्रंश व्याकरण के अनुसार ऊपर संज्ञा व सर्वनामों के रूप (जो सूत्रों से फलित हैं) दिए गए हैं ।
अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, द्वारा वीरेन्द्र श्रीवास्तव, पृष्ठ 180 ।
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #204
--------------------------------------------------------------------------
________________
(ग) संख्यावाची रूप
पुल्लिंग - एग, एअ, एक्क
एकवचन
प्रथमा
द्वितीया
तृतीया
M
बहुवचन एग, एअ, एक्क
एग, एअ, एक्क एगा, एआ, एक्का
एगा, एआ, एक्का एगु, एउ, एक्कु एगो, एओ, एक्को एग, एअ, एक्क
एग, एअ, एक्क एगा, एआ, एक्का
एगा, एआ, एक्का एगु, एउ, एक्कु एगें, एएं, एक्कें
एगहिं, एअहिं, एक्कहिं एगेण, एएण, एक्केण एगाहिं, एआहिं, एक्काहिं एगेणं, एएणं, एक्केणं एगेहिं, एएहिं, एक्केहिं एग, एअ, एक्क
एग, एअ, एक्क एगा, एआ, एक्का
एगा, एआ, एक्का एगसु, एअसु, एक्कसु एगह, एअहं, एक्कहं एगासु, एआसु, एक्कासु एगाहं, एआहे, एक्काहं एगहो, एअहो, एक्कहो एगाहो, एआहो, एक्काहो एगस्सु, एअस्सु, एक्कस्सु एगहां, एअहां, एक्कहां एगहुं, एअहुं, एक्कहुं एगाहां, एआहां, एक्काहां ___एगाहुं, एआहुं, एक्काई एगहिं, एअहिं, एक्कहिं एगहिं, एअहिं, एक्कहिं एगाहिं, एआहिं, एक्काहिं एगाहिं, एआहिं, एक्काहिं
[चतुर्थी
षष्ठी
पंचमी
11
सप्तमी
अपभ्रंश रचना सौरभ
185
Page #205
--------------------------------------------------------------------------
________________
नपुंसकलिंग - एग, एअ, एक्क
प्रथमा
एकवचन एग, एअ, एक्क एगा, एआ, एक्का एगु, एउ, एक्कु
द्वितीया
एग, एअ, एक्क एगा, एआ, एक्का एगु, एउ, एक्कु
बहुवचन एग, एअ, एक्क एगा, एआ, एक्का एगई, एअई, एक्कई एगाई, एआई, एक्काई एग, एअ, एक्क एगा, एआ, एक्का एगई, एअइं, एक्कई एगाई, एआई, एक्काई एगहिं, एअहिं, एक्कहिं एगाहिं, एआहिं, एक्काहिं एगेहि, एएहिं, एक्केहिं एग, एअ, एक्क एगा, एआ, एक्का एगह, एअहं, एक्कहं एगाहं, एआहे,एक्काहं
तृतीया
[चतुर्थी
षष्ठी
एगें, एएं, एक्के - एगेण, एएण, एक्केण एगेणं, एएणं, एक्केणं एग, एअ, एक्क एगा, एआ, एक्का एगसु, एअसु, एक्कसु एगासु, एआसु, एक्कासु एगहो, एअहो, एक्कहो एगाहो, एआहो, एक्काहो एगस्सु, एअरसु, एक्कस्सु एगहां, एअहां, एक्कहां एगाहां, एआहां, एक्काहां एगहिं, एअहिं, एक्कहिं एगाहिं, एआहिं, एक्काहिं
पंचमी
एगहुं, एअहुं, एक्कडं एगाई, एआहुं, एक्काहुं एगहिं, एअहिं, एक्कहिं एगाहिं, एआहिं, एक्काहिं
सप्तमी
186
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #206
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रथमा
द्वितीया
तृतीया
चतुर्थी
व
षष्ठी
पंचमी
सप्तमी
स्त्रीलिंग - एगा, एआ, एक्का
एकवचन
एगा, एआ, एक्का
एग, एअ, एक्क
एगा, एआ, एक्का
एग, एअ, एक्क
अपभ्रंश रचना सौरभ
एगाए, एआए, एक्काए
एगए, एअए, एक्कए
एगा, एआ, एक्का
एग, एअ, एक्क
गाहे, एआहे, एक्काहे
एग, एअहे, एक्क
गाहे, एआहे, एक्काहे
हे, अहे, एक्क
गाहिं, आहिं, एक्काहिं
गहिं, अहिं, एक्कहिं
बहुवचन
एगा, एआ, एक्का
एग, एअ, एक्क
एगाउ, एआउ, एक्काउ
एगउ, एअउ एक्कउ
एगाओ, आओ, एक्काओ
एगओ, एअओ, एक्कओ
एगा, एआ, एक्का
एग, एअ, एक्क
एगाउ, एआउ, एक्काउ
एगउ, एअउ एक्कउ एगाओ, एआओ, एक्काओ
एगओ, एअओ, एक्कओ
गाहिं, एआहिं, एक्काहिं
गहिं, एअहिं, एक्कहिं
एगा, एआ, एक्का
एग, एअ, एक्क
एगहु, एआहु, एक्काहु
एगहु, एअहु, एक्कहु
एगहु, एआहु, एक्काहु
एगहु, एअहु, एक्कहु
गाहिं, आहिं, एक्काहिं
एहि, एअहिं, एक्कहिं
18
Page #207
--------------------------------------------------------------------------
________________
दु, दो, बे (तीनों लिंगों में)
प्रथमा द्वितीया तृतीया चतुर्थी
बहुवचन दुवे, दोण्णि, दुण्णि, वेण्णि, विण्णि, दो, बे दुवे, दोण्णि, दुण्णि, वेण्णि, विण्णि, दो, बे दोहि, दोहिं, दोहिँ, वेहि, वेहिं, वेहिं
दोण्ह, दोण्हं, दुण्ह, दुण्हं, वेण्ह, वेण्हं, विण्ह, विण्हं
षष्ठी पंचमी
दुत्तो, दुओ, दोउ, दोहिन्तो, दोसुन्तो, वित्तो वेओ, वेउ, वेहिन्तो दोसु, दोसुं, वेसु, वेसुं
सप्तमी
तिण्ण (तीनों लिंगों में)
बहुवचन तिण्णि
प्रथमा
तिण्णि
द्वितीया तृतीया चतुर्थी
तीहि, तीहि, तीहि
तीण्ह, तीण्हं
षष्ठी पंचमी सप्तमी
तित्तो, तीआ, तीउ, तीहिन्तो, तीसुन्तो तीसु, तीसुं
188
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #208
--------------------------------------------------------------------------
________________
चउ (तीनों लिंगों में)
प्रथमा द्वितीया
बहुवचन चत्तारो, चउरो, चत्तारि चत्तारो, चउरो, चत्तारि चऊहि, चऊहिं, चऊहिँ
तृतीया चतुर्थी
चउण्ह, चउण्हं
(षष्ठी
पंचमी
चउत्तो, चऊओ, चऊउ, चऊहिन्तो, चऊसुन्तो, चउओ, चउउ चउहिन्तो, चउसुन्तो चऊसु, चऊसुं , चउसु, चउसुं
सप्तमी
पंच (तीनों लिंगों में)
प्रथमा द्वितीया तृतीया (चतुर्थी
बहुवचन पंच पंच पंचहि, पंचहिं, पंचहिँ
पंचण्ह, पंचण्हं
(षष्ठी पंचमी
पंचत्तो, पंचाओ, पंचाउ, पंचाहि, पंचाहिन्तो पंचासुन्तो, पंचेहि पंचसु, पंचसुं
सप्तमी
अपभ्रंश रचना सौरभ
189
Page #209
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रथमा
द्वितीया
तृतीया
'चतुर्थी
व
षष्ठी
पंचमी
सप्तमी
प्रथमा
द्वितीया
तृतीया
चतुर्थी
व
षष्ठी
पंचमी
सप्तमी
190
बहुवचन
छ
छ
छहि, छहिं, छहिं
छह,
छहं
छओ, छ,
छसु, सुं
छ (तीनों लिंगों में)
सत्तण्ह,
सत्त
छहिन्तो,
छसुन्तो
बहुवचन
सत्त
सत्त
सत्तहि, सत्तहिं, सत्तहिं
सात (तीनों लिंगों में)
सत्ताओ, सत्तउ, सत्तहिन्तो, सत्तसुन्तो
सत्तसु, सत्तसुं
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #210
--------------------------------------------------------------------------
________________
अट्ठ (तीनों लिंगों में)
बहुवचन अट्ठ
अट्ठ
प्रथमा द्वितीया तृतीया 'चतुर्थी व
अट्ठहि, अट्ठहिं, अट्ठहिँ
अट्ठण्ह, अट्ठण्हं
.षष्ठी
पंचमी
अट्ठाओ, अट्ठाउ, अट्ठाहिन्तो, अट्ठासुन्तो अट्ठसु, अट्ठसुं
सप्तमी
णव, नव (तीनों लिंगों में)
बहुवचन
प्रथमा
णव
द्वितीया तृतीया चितुर्थी
णव णवहि, णवहिं, णवहिं
णवण्ह, णवण्हं
षष्ठी पंचमी सप्तमी
णवाओ, णवाउ, णवाहिन्तो, णवासुन्तो णवसु, णवसुं
अपभ्रंश रचना सौरभ
191
Page #211
--------------------------------------------------------------------------
________________
दह, दस (तीनों लिंगों में)
प्रथमा द्वितीया तृतीया चतुर्थी
बहुवचन दह, दस. दह, दस दहहि, दहहिं, दहहिँ, दसहि, दसहिं, दसहिँ
दहण्ह, दहण्हं, दसण्ह, दसण्हं
(षष्ठी पंचमी
दहाओ, दहाउ, दहाहिन्तो, दहासुन्तो दसाओ, दसाउ, दसाहिन्तो, दसासुन्तो दहसु, दहसुं , दससु, दससुं
सप्तमी
192
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #212
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 84
हेमचन्द्र के अनुसार __ अपभ्रंश ने संज्ञा-शब्द-रूपों के प्रत्यय (विभक्ति चिह्न)
अपभ्रंश रचना सौरभ
193
Page #213
--------------------------------------------------------------------------
________________
194
प्रथमा एकवचन
पुल्लिंग
देव - अ 0 0+आ अ-उ अ-ओ
हरि - इ 0 0-ई
गामणी - ई 0 0-
साहु - उ 0 -ऊ
सयंभू - ऊ 0 -उ
0→आ
0-3
0
नपुंसकलिंग
कमल-अ
उ
0 0-आ
-ई
0-ऊ
अ-उ
अन्त्य
'अ'-उं
स्त्रीलिंग
कहा- अ
बहू - ऊ
अपभ्रंश रचना सौरभ
0 0-अ
मइ-इ
लच्छी - ई घेणु - उ 0000
0-ई -इ -ऊ 0+उ
tr
0+उ
Page #214
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रथमा बहुवचन
अपभ्रंश रचना सौरभ
पुल्लिंग
देव - अ
हरि - इ
गामणी - ई
साहु - उ
सयंभू - ऊ
0-
आ
tur
0-ऊ
0-उ
0- आई0-
10-ऊ-उ
नपुंसकलिंग
-
कमल - अ 0, 0-
आ
वारि - इ , 0-ई
महु - उ 0, 0-ऊ
0
ई-आई
ई-ईई।
स्त्रीलिंग
कहा- आ
.
0, 0+अ उ, उ-अउ ओ, ओ-अओ
मइ - इ 0, 0-
ई 0 उ, उ-ईउ ओ, ओ-ईओ
लच्छी - ई
, 0-इ उ, उ-इउ ओ, ओ-इओ
धेणु - उ 0, 0-
3 0 उ, उ-ऊउ ओ, ओ-ऊओ
बहू - ऊ
, 0-उ उ, उ--उउ । ओ, ओ-उओ
195
Page #215
--------------------------------------------------------------------------
________________
द्वितीया एकवचन
196
पुल्लिंग
हरि - इ
गामणी - ई
साहु - उ
सयंभू - ऊ
देव - अ 0
0-आ
0-इ
0-ऊ
0-उ
अ-उ
नपुंसकलिंग
वारि - इ
-
उ
कमल - अ 0
0-आ
अ-उ
अन्त्य
'अ'-उं
स्त्रीलिंग
कहा- आ
मइ - इ
लच्छी - ई
धेणु - उ
बहू - ऊ
0
अपभ्रंश रचना सौरभ
0-अ
Page #216
--------------------------------------------------------------------------
________________
द्वितीया बहुवचन
अपभ्रंश रचना सौरभ
पुल्लिंग
देव - अ
हरि - इ
गामणी - ई साहु - उ सयंभू - ऊ 00 0-ऊ
0-उ
0+
आ
नपुंसकलिंग
कमल-अ
महु - उ 0, 0-ऊ
0, 0-
आ
0
, 0-ई
इं-आई
स्त्रीलिंग
कहा -
आ मइ - इ लच्छी - ई धेणु - उ बहू - ऊ 0, 0- अ0, 0- ई0, 0- 50, 0-
30, 0-उ उ, उ-अउ उ, उ-ईउ उ, उ-इउ उ उ ऊउ उ, उ-उउ ओ, ओ-अओ ओ, ओ-ईओ ओ, ओ-इओ ओ, ओ-ऊओ ओ, ओ-उओ
197
Page #217
--------------------------------------------------------------------------
________________
198
तृतीया एकवचन
पुल्लिंग
देव - अ अ-ए-एं ण-एण णं-एणं
हरि - इ एं, एं-ईएं ('), (').ई. ण, ण-ईण णं, णं-ईणं
गामणी - ई एं, एं-इएं ('), (')-इं ण, ण-इण णं, णं-इणं
साहु - उ एं, एं--ऊएं ('), (')-ऊं ण, ण-ऊण णं, णं-ऊणं
सयंभू - ऊ एं, एं-उएं (), (')-उं ण, ण-उण णं, णं-उं
नपुंसकलिंग
कमल-अ
अ-ए-एं ण-एण णं- एणं
महु - उ एं, एं-ऊएं ('), (')-ऊं
('), (')-ई ण, ण-ईण णं, णं-ईणं
ण.ण-ऊण
णं, णं-ऊणं
स्त्रीलिंग
अपभ्रंश रचना सौरभ
कहा -
आ
मइ-इ
लच्छी - ई
धेणु - उ
बहू - ऊ
ए-अए
ए-ईए
ए-इए
ए-ऊए
ए-उए
Page #218
--------------------------------------------------------------------------
________________
तृतीया बहुवचन
अपभ्रंश रचना सौरभ
- अ
पल्लिग
गामणी -- ई
साहु - उ
सयंभू - ऊ
वि
हरि - इ हिं हिं-ईहिं
हिं-इहिं
हिं-ऊहिं
हिं-उहिं
हिं-आहिं हिं-एहिं
कमल - अ
नपुंसकलिंग
वारि - इ
-
महु-उ
-
हि
हिं-ऊहिं
हिं-आहिं हिं-एहिं
स्त्रीलिंग
कहा - आ
कहा- आ
मइ - इ
लच्छी -
ई
घेणु - उ
बहू - ऊ
हिं-अहिं
हिं-ईहिं
हिं-इहिं
हिं-ऊहिं
हिं-उहिं
199
Page #219
--------------------------------------------------------------------------
________________
200
चतुर्थी व षष्ठी एकवचन
पुल्लिंग
देव - अ 0, 0-आ सु, सु-आसु हो, हो-आहो
हरि - इ 0 0- ई
गामणी - ई 0 -
साहु - उ 0 -ऊ
सयंभू - ऊ 0 -उ
0
0
स्सु
नपुंसकलिंग
महु - उ
.
कमल - अ 0, 0-आ सु, सु-आसु हो, हो-आहो
वारि - इ .0
0-ई
0-ऊ
स्सु
स्त्रीलिंग
अपभ्रंश रचना सौरभ
कहा - आ 0, 0-अ हे, हे-अहे
मइ - इ 0, 0-ई
लच्छी - ई 0, 0-इ
धेणु - उ 0, 0-ऊ हे, हे ऊहे
बहू - ऊ 0, 0-उ हे, हे-उहे
Page #220
--------------------------------------------------------------------------
________________
अपभ्रंश रचना सौरभ
201
पुल्लिंग
नपुंसकलिंग
स्त्रीलिंग
देव - अ 0, 0- आ
हं, हं- आहं
कमल - आ
0, 0 आ
हं, हं- आहं
कहा - आ
0,0-31
हे, हे - अहे
हरि - इ
0, 0 - ई
हं, हं-ईह
हुं, हुं-ईहुँ
चतुर्थी व षष्ठी बहुवचन
वारि - इ 0, 0 - ई
हं, हं-ईह
हुं हुं हुं
मइ - इ 0, 0
हे, हे -
गामणी - ई
0, 0 इ
हं, हं-हं
हु, हु-इहु
लच्छी - ई
0, 0 - इ
हे, हे इहे
- उ
साहु -
4+0'0
हं, हं-हं
हुं, हुं-ऊहुं
महु - उ
0, 0 ऊ
हं, हं-- ऊहं
हुँ, हु-ऊहु
-
धेणु उ
0, 0-ऊ
हे, हे ऊहे
सयंभू - ऊ
0,0-3
हं, हं-उह
हु, हु-उहुं
बह - ऊ
0,0-3
हे हे ~ उहे
Page #221
--------------------------------------------------------------------------
________________
202
अपभ्रंश रचना सौरभ
पुल्लिंग
नपुंसकलिंग
स्त्रीलिंग
देव - अ हे, हे आहे
हुहु-आ
कमल - अ
हे, हे आहे
हु, हु-आहु
कहा - आ
Me
हे - अहे
हरि
խո
हे
हे - ईहे
वारि - इ
हे
हे हि
मइ - इ
हे
हे - ई
पंचमी एकवचन
गामणी - ई
हे - इहे
लच्छी
हे - इहे
साहु-उ
Ac
हे - ऊहे
मह - उ
me
हे-ऊहे
धेणु - उ
हे - ऊहे
सयंभू - ऊ
हे
हे - उहे
बहू - ऊ
हे - उहे
Page #222
--------------------------------------------------------------------------
________________
पंचमी बहुवचन
अपभ्रंश रचना सौरभ
देव - अ
हरि - इ
गामणी - ई
साहु - उ
सयंभू - ऊ
.
.60/
hoy
हुं-आहुं
हुं-ईहुं
हुं-इहुं
हुं-ऊहुं
हुं-उहुं
6
नपुंसकलिंग
कमल - अ
इ
. वारि - इ
महु - उ
हुं-आहुं
हु-ईहुं
हुं-ऊहुं
स्त्रीलिंग
कहा - आ
मइ - इ
4r
लच्छी - ई
धेणु - उ
बहू - ऊ
हु-अहु
हु-ईहु
हु-इहु
हु हु
हु-उहु
203
Page #223
--------------------------------------------------------------------------
________________
204
सप्तमी एकवचन
पुल्लिंग
देव - अ अ-इ अ-ए
हरि - इ हि हि-ईहि
गामणी - ई हि हि-इहि
साहु - उ हि हि-ऊहि
सयंभू - ऊ हि हि-उहि
नपुंसकलिंग
कमल - अ
वारि
महु - उ
अ-इ अ-ए
हि हि-ईहि
अ-ए
हि-ऊहि
स्त्रालिग
अपभ्रंश रचना सौरभ
कहा - आ हिं, हिं- अहिं हि, हि अहि
मइ - इ हिं, हिं-ईहिं हि, हि-ईहि
लच्छी - ई हिं, हिं-इहिं हि, हि-इहि
धेणु - उ हिं, हिं-ऊहिं हि, हि-ऊहि
बह - ऊ । हिं, हिं-उहिं हि, हि-उहि
Page #224
--------------------------------------------------------------------------
________________
अपभ्रंश रचना सौरभ
205
पुल्लिंग
नपुंसकलिंग
स्त्रीलिंग
देव -
.
हि-आहि
कमल - अ
हिं
sp. srp
- अ
हिं- आहिं
कहा - आ
हिं
the he
हिं-अहिं
हर इ
हिं, हिं-ईहिं
हुँ, हु-ईहु
वारि - इ
हिं, हिं-ईहि
हुं हुं हुं
मई - इ
हिं
..
हिं- ईहिं
सप्तमी बहुवचन
गामणी - ई
हिं, हिं-हिं
हु, हु-इहु
लच्छी - ई
हिं
हिं- इहिं
M.
साहु -
हिं, हिं-ऊहिं
हु, हु-ऊहु
- उ
महु -
हिं, हिं-ऊहिं
हु, हु--ऊहु
- उ
धेणु - उ
हिं
हिं-ऊहिं
सयंभू - ऊ
हिं, हिं-- उहिं
हुं, हुं-उहुं
- ऊ
बहू
हिं-उहिं
Page #225
--------------------------------------------------------------------------
________________
206
संबोधन एकवचन
पुल्लिंग
देव - अ 0
0- आ
हरि - इ
0 ई
गामणी - ई 0 0
साहु - उ 0 0-ऊ
सयंभू - ऊ 0 0-उ
अ-उ
अ-ओ
नपुंसकलिंग
कमल-अ
-
महु - उ
वारि - इ 00
0- आ 0 -ई
0
0-ऊ
अ-उ
अन्त्य 'अ'-उं
कहा- अ
अपभ्रंश रचना सौरभ
मइ - इ
लच्छी - ई
धेणु - उ
बहू - ऊ
0-अ
0-5
0-ऊ
0+उ
Page #226
--------------------------------------------------------------------------
________________
संबोधन बहुवचन
अपभ्रंश रचना सौरभ
पुल्लिग
देव - अ 0, 0-आ हो, हो-आहो
हरि - इ 0,0-ई हो, हो हो
गामणी - ई 0,0-
5 हो, हो-इहो
0
साहु - उ
, 0-ऊ हो, हो हो
सयंभू - ऊ 0, 0-उ हो, हो-उहो
नपुंसकलिंग
इ
महु - उ
0
कमल - अ 0, 0-
आ इं, इ-आइं हो, हो-आहो
वारि - इ
, 0-ई इं, इ-ईई हो, हो-हो
0, 0-ऊ इं, ई-ऊई हो, हो-ऊहो
स्त्रीलिंग
कहा - आ मइ - इ लच्छी - ई धेणु - उ बहू - ऊ 0.0अ0,0- ई0, 0- 50,0-
30, 0-उ उ, उ• अउ उ, उ-ईउ उ, उ-इउ उ, उ-ऊउ उ, उ-उउ ओ, ओअओ ओ, ओ ईओ ओ, ओ-इओ ओ, ओ-ऊओ ओ, ओ-उओ हो, हो- अहो हो, हो-ईहो हो, हो-इहो हो, हो-ऊहो हो, हो-उहो
207
Page #227
--------------------------------------------------------------------------
________________
परिशिष्ट - 1
संज्ञा-कोष
अपभ्रंश रचना सौरभ में प्रयुक्त संज्ञा शब्द क्र.सं. | संज्ञा शब्द
अंसु अच्छि
आँख
पृ.सं.
|
अर्थ आँस
116
116
अहि
हड्डी
116
आत्मलाभ
116
शत्रु
109
116
अप्पलद्धि अरि अवहि असण अहिलासा आंखि
56
समय की सीमा भोजन अभिलाषा आँख आयु
63
116
आउ
116
आगम
शास्त्र
48
आगि
आग
116
आणा
आज्ञा
63
116
इत्थी उदग उप्पत्ति
जल
56
जन्म
116
कई
109
कट्ठ
कवि काठ कर्दी, चमची
6
117
कडच्छु कण्डू
खाज
117
कन्ना
कन्या
63
कमल
कमल का फूल
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #228
--------------------------------------------------------------------------
________________
क्र.सं.
संज्ञा शब्द
अर्थ लक्ष्मी
कमला
63
24
कम्म
-25
कयंत
करह
4 44
109
28
63
29
करुणा करेणु कलसिया
109
30
63
कहा
छोटा घड़ा कथा कुत्ता कुआ
कुक्कुर
कूव
34
109
35
केसरि खज्जू खलपू
117
36
खुजली खलियान साफ करने वाला
117
37
38
खेत
3
4
पुस्तक
खड्डा
गाण
गीत
.
गाम गामणी गिरि
4
4
117
गाँव का मुखिया पर्वत
Ah
4
109
44
109
| गुरु
अपभ्रंश रचना सौरभ
. 209
Page #229
--------------------------------------------------------------------------
________________
क्र.सं. | संज्ञा शब्द
अथ
बEF
गुहा
गुफा
63
घी
मकान
117
चंचु चमू
चोंच सैन्य
117
छिक्क
56
जइ
109
जउणा
यमुना
63
जंतु
109
प्राणी जामुन जामुन का पेड़
109
बाप
जणेरी
माता
116
5 4
जरा
62
बुढापा पत्नि
4
जाआ
जाणु
घुटना
116
दामाद
100
जामाउ जीवण
66
4
116
जीवन युवती जुआ योगी यौवन झोपड़ी
जुवइ जूअ जोगि जोव्वण झुपडा डाइणी
109
56 .
4
4
चुडैल
116
णणन्दा
63
नणद नर्मदा
4 4ई
णम्मया
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #230
--------------------------------------------------------------------------
________________
क्र.सं.
संज्ञा शब्द
अर्थ
लिंग
पृ.सं.
णयरजण
नागरिक
णर
मनुष्य
48
राजा
109
णरवइ णरिंद
E EFFE
राजा
48
णह
56
आकाश नगर में रहनेवाली स्त्री ज्ञान
116
80
56
णागरी णाण णारी णिद्दा णिसा
116
4
62
तणया
,
P
63
86
तण्हा तणु तत्ति
117
87
116
88
तरु
109
89
तवस्सि
तपस्वी
109
तिण
घास
.
प्यास
63
तेज
५
.
109
93
116
116
दिअर
दिवायर
दु:ख
दुक्ख दुज्जस
अपयश
48
दुःख
)
अपभ्रंश रचना सौरभ
211
Page #231
--------------------------------------------------------------------------
________________
क्र.सं. । संज्ञा शब्द
अर्थ
100
धण
धन
56
101
धणु
109
102
56
103
116
104
63
105
117
106
4
109
पति प्रतिष्ठा
4
107 |
पइट्ठा
63
108 ।
पड
वस्त्र
109 ।
पण्णा
प्रज्ञा
पत्त
-
111
48
112
4
कागज परमेश्वर ऐश्वर्य-सम्पन्न स्त्री परीक्षा प्रशंसा
परमेसर परमेसरी परिक्खा पसंसा
116
113
63
114
63
115
प्रभु
109
116
प्राणी
4
109
117
दादा
48
118
पाणि पिआमह पिआमही पिउ पिहिमि
दादी
116
119
4
109
120
4
116
121
पुत्त
48
122
116
123
गठरी
4
124
पोत्त
4
48
पोता कुल्हाड़ा
-
125 | फरसु
109
212
अपभ्रंश रचना सौरभ
___
Page #232
--------------------------------------------------------------------------
________________
क्र.सं. | संज्ञा शब्द
126
बप्प
& hts
48
127
बहिणी
बहिन
116
128
बहू
117
129
बालअ
बालक
48
130
बिन्दु
109
E F
131
बीअ
56
132
116
133 ।
E
56
134
भव
48
135
भाइ
भाई
109
136
भूख
63
भुक्खा भोयण
137
भोजन
F
56
138
मइ
मति
116
139
मइरा
63
मदिरा मन्त्री
140
मंति
109
141
मच्चू
109
142
मज्ज
FEEPE 5
56
143
मण
56
144
मणि
116
145
56
146
मरण महिला महेली
5
63
147
महिला
116
148
महु
116
149 ।
48
माउल माउसी
150
मामा मौसी माता
116
5
151
माया
अपभ्रंश रचना सौरभ
213
Page #233
--------------------------------------------------------------------------
________________
क्र.सं.
152 मारुअ
मित्त
मुणि
मेरु
मेह
मेहा
रक्खस
रज्ज
153
154
155
156
157
158
159
160
161
162
163
164
165
166
167
168
169
170
171
172
173
174
175
176
177
संज्ञा शब्द
214
रज्जु
रत्त
रत्ति
रयण
रवि
रहु
रहुणन्दण
रहुवइ
राय
रिउ
च
रिण
रिद्धि
रिसि
रूप
लक्कुड
लच्छी
वण
वत्थ
अर्थ
पवन
मित्र
मुनि
पर्वत विशेष
मेघ
बुद्धि
राक्षस
राज्य
रस्सी
रक्त
रात
रत्न
सूर्य
रघु
राम
रघुपति
नरेश
दुश्मन
कर्ज
वैभव
मुनि
रूप
लकड़ी
लक्ष्मी
जंगल
वस्त्र
लिंग
(b) 5) 5)
पु.
पु.
पु.
b)
पु.
स्त्री.
क
حب الحب الحب من الحب حب هي هي من حب الحب
पु.
पु.
स्त्री.
नपु.
स्त्री.
पु.
नपु.
पु.
पु.
पु.
पु.
पु.
नपु.
स्त्री.
عب الحب الحب و الحب الحب
पु.
नपु.
नपु.
स्त्री.
नपु.
पु.
पृ.सं.
48
48
109
109
48
63
48
56
117
56
116
48
116
109
48
109
48
109
56
116
109
56
56
116
56
56
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #234
--------------------------------------------------------------------------
________________
क्र.सं. |
अर्थ पदार्थ
178
116
संज्ञा शब्द वत्थु वय वसण
179
व्रत
180
व्यसन
56
181
वाउ
109
वायु वाणी
182
वाया वारि
& EEEEEEEE 4
183
116
184
विज्जु
जल बिजली विमान
109
185
56
186
विमाण विहि वेरग्ग
विधि
109
187
56
188
वैराग्य सायंकाल शान्ति सत्य
189
126
190
सच्च
S6
191
बल
116
192
शत्रु
109
193
ts
63
194
सप्प
साँप
195
समणी
श्रमणी स्वयंभू
196
117
197
नदी
62
198
पानी
E
199
बहिन
सयंभू सरिआ सलिल ससा ससि ससुर सस्सु साडी
चन्द्रमा
F
109
201
ससुर
48
F
202
सासू
117
203
साड़ी
5
116
अपभ्रंश रचना सौरभ
215
Page #235
--------------------------------------------------------------------------
________________
लिंग ।
पृ.सं.
क्र.सं. | संज्ञा शब्द 204 सामि 205 सामिणी
| अर्थ मालिक स्वामिनी
109
116
206
सायर
समुद्र
E
48
207
सासण
शासन
56
208
सासू
117
209
शिक्षा
63
210
मस्तक
"
सासू सिक्खा सिर सीया सील सीह
211
सीता
212
सदाचार
56
"
213
4
.
सिंह धागा
214
215
सुया - सुह
216
56
217
सूणु
109
218
109
सेणावइ सोक्ख
सेनापति सुख
219
56
220
सोहा .
शोभा
221
117
222
हणु हणुवन्त हत्थि
ठोडी हनुमान हाथी
48
223
109
224
हरि
109
225
हुअवह
अग्नि
48
216
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #236
--------------------------------------------------------------------------
________________
क्र.सं.
1
2
3
4
5
6
7
8
9
10
11
12
13
14
15
16
17
18
19
20
21
22
क्रिया
अच्च
अच्छ
अस
आगच्छ
आवड
इच्छ
उग
उग्घाड
उच्छल
उच्छह
उज्जम
उट्ठ
उड्ड
उपकर
उप्पज्ज
उप्पाड
उल्लस
उवविस
उवसम
उस्सस
ऊतर
ओढ
अपभ्रंश रचना सौरभ
अर्थ
पूजा करना
बैठना
खाना
परिशिष्ट - 2
क्रिया - कोश
अक / सक
सक
अक
सक
सक
अच्छा लगना
सक
इच्छा करना
सक
उगना
अक
खोलना, प्रकट करना सक
अक
आना
उछलना
उत्साहित होना
प्रयास करना
उठना
उड़ना
उपकार करना
पैदा होना
उपाड़ना,
उन्मूलन करना
खुश होना
बैठना
शान्त होना
साँस लेना
ऊतरना,
ओढना
नीचे आना
अक
अक
अक
अक
सक
अक
सक
अक
अक
अक
अक
अक
सक
पृ.सं.
99
26
110
118
118
110
49
99
26
57
26
26
49
99
49
99
26
64
64
64
64
110
217
Page #237
--------------------------------------------------------------------------
________________
क्रिया
अक/सक
23
अर्थ रोना काँपना
अक
49
24
अक
26
काटना
सक
99
26
सक
110
कर कलंक
करना कलंकित करना
99
28
कलह
कलह करना
अक
26
कह
कहना
सक
109
30
सक
118
57
32
57
खरीदना कीलना (मन्त्रादि से) | अक क्रीड़ा करना अक कूटना कूदना
अक कूदना
अक
सक
34
35
h
36
सक
99
37
ड
बुलाना टुकड़ा करना खोदना
सक
118
38
खण
सक
99
39
खम
सक
118
क्षमा करना नष्ट होना
40
खय
अक
खा
खाना
सक
93
खाद
खाना
110
अक
64
सक
118
खास खिंस खिज्ज खिव खुम्म
57
खासना निन्दा करना अफसोस करना फैंकना भूख लगना खेलना
Ab
सक
118
अक
खेल
अक
218
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #238
--------------------------------------------------------------------------
________________
क्र.सं. | क्रिया
अक/सक
49
गच्छ
सक
118
अर्थ जाना गर्जना गिड़गिड़ाना
गज्ज
अक
49
गडयड
अक
64
गण
सिक
118
गिनना निन्दा करना
53
गरह
सक
54
गलना
अक
55
खोज करना
सक
09
56
गाना
सक
110
57
सक
118
58
अक
56
गाना गूंजना गूंथना कम होना, घटना
सक
60
अक
57
61
डालना
सक
99
-
62
घम
घूमना
अक
63
चक्ख
चखना
सक
64
चप्प
चबाना
सक
65
चरना .
सक
93
सक
110
67
बोलना चिंता करना ठहरना, बैठना
110
68
अक
57
69
सक
09
चिण चिराव
चुनना देर करना
अक
57
चुअ
टपकना
अक
56
त्याग करना
सक
110
चुअ चुक्क
अक
57
भूल करना चूसना
सक
118
| चुस्स
अपभ्रंश रचना सौरभ
219
Page #239
--------------------------------------------------------------------------
________________
क्र.सं. | क्रिया
अर्थ
75
प्रयत्न करना
अक/सक अक सक सक
चोप्पड
99
110
स्निग्ध करना चुराना छोड़ना ठगना छीजना स्पर्श करना
छल
सक
छिज्ज
अक
8.
छुअ
सक
82
छूटना
अक
83
छोड
छोड़ना
सक
84
छीलना
सक
छोल्ल जग्ग
85
जागना
अक
86
जगड
झगड़ा करना
अक
87
जण
सक
110
88
जम्म
अक
57
उत्पन्न करना जन्म लेना बूढा होना जलना
जर
अक
40
जल
अक
जागर
जागना
अक
३
/
92
जाण
जानना, समझना
सक
93
जिंघ
सूंघना
सक
118
94
जिण
सक
118
जीतना जीमना
95
जिम
सक
99
96
जीना
97
जूज्झ
98
जम
लड़ना जीमना प्रकाशित करना
सक
110
99
जो
सक
118
100
झा
ध्यान करना
सक
118
220
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #240
--------------------------------------------------------------------------
________________
क्र.सं. | क्रिया
अर्थ
अक/सक
पृ.सं.
-
101
अक
ठहरना ठेलना
102
सक
110
103
डसना
सक
110
104
अक
26
डरना डोलना, हिलना
105
अक
49
106
ढकना
99
107
ढोय
ढोना
सक
110
108
णच्च
नाचना
अक
109
णम
सक
110
नमस्कार करना नष्ट होना
110
णस्स
अक
49
111
णिज्झर
अक
झरना देखना
112
णिरक्ख
सक
118
113
णिसुण
सुनना
सक
110
ण्हा
नहाना
अक
115
तडफड
छटपटाना
अक
116
तव
तपना
अक
।।7
अक
49
टूटना तोड़ना
118
सक
99
119
रुकना
अक
164
120
थक्क
अक
126
121
थकना स्तुति करना जलाना
सक
110
122
सक
118
123
देना
सक
110
124
अक
149
दुक्ख देख धार
दुखना देखना
125
सक
99
126
धारण करना
सक
अपभ्रंश रचना सौरभ
221
Page #241
--------------------------------------------------------------------------
________________
क्र.सं.
127
128
129
130
131
132
133
134
135
136
137
138
139
140
141
142
143
144
145
146
147
148
149
150
151
152
क्रिया
धाव
धक्का
धो
पड
पढ
पणम
पला
पसर
पाल
पाव
पिब
पीड
पीस
पुक्कर
पेच्छ
पेस
फाड
फुर
बंध
बइस
बखाण
बुक्क
बुज्झ
बोल्ल
भण
भिड
222
अर्थ
दौड़ना
धिक्कारना
धोना
गिरना
पढ़ना
प्रणाम करना
भाग जाना
फैलना
पालना
पाना
पीना
पीड़ा देना
पीसना
पुकारना
देखना
भेजना
फाड़ना
प्रकट होना
बांधना
बैठना
व्याख्यान करना
भोंकना
समझना
बोलना
कहना
भिड़ना
अक / सक
सक
सक
सक
अक
सक
सक
अक
अक
सक
सक
सक
सक
सक
सक
सक
सक
सक
अक
सक
अक
सक
अक
सक
सक
सक
अक
पृ.सं.
118
118
99
26
109
93
49
48
93
118
110
110
99
99
110
110
99
57
110
49
109
49
118
109
109
26
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #242
--------------------------------------------------------------------------
________________
क्र.सं. | क्रिया
अक/सक
अर्थ खाना
पृ.सं.
153
118
154
भूलना
सक
109
155
मइल
सक
110
मैला करना माँगना
156
मग
सक
110
157
|
| मरना
अक
126
158
सम्मान करना
सक
118
159
सक
1110
160
अक
26
161
मारना मूच्छित होना जानना जाना रंगना
सक
110
162
सक
118
163
सक
164
रक्षा करना
सक
93
165
रखना
सक
118
166
रमना
अक
57
167
सक
118
बनाना रोना
168
अक
26
169
रूसना
अक
170
रोकना
सक
रोक्क लग्ग
171
लगना
अक
64
172
लज्ज
शरमाना
अक
26
173
लड्ड
लाड़-प्यार करना
सक
110
174
प्राप्त करना
सक
118
175
लिखना
सक
110
176
चाटना
सक
118
177
बाल उखाड़ना
अक
163
178
लुक्क
छिपना
अक
अपभ्रंश रचना सौरभ
223
Page #243
--------------------------------------------------------------------------
________________
क्र.सं.
क्रिया
अक/सक
179
अक
48
& BE
180
अर्थ लुढ़कना लेना सोना, लोटना लालच करना
सक
110
181
अक
56
182
अक
.
183
चाहना
सक
118
.
184
प्रणाम करना
सक
118
वज्ज
जाना
सक
118
186
वड्ढ
बढना
अक
187
वण्ण
सक
110
वर्णन करना बधाई देना
188
वद्धाव
सक
110
189
वम
वमन करना
अक
190
मुड़ना
अक
191
वस
बसना
अक
192
वह
सक
110
193
विअस
अक
56
194
विज्ज
अक
57
195
सय
धारण करना खिलना उपस्थित होना सोना सींचना सिद्ध होना सीखना
अक
196
सिंच
सक
110
197
सिज्झ
अक
56
198
सक
118
सीख सुक्क
199
अक
48
200
सक
201
सूखना सुनना स्मरण करना सेवा करना शोभना
विक
109
202
सक
110
203
अक
48
204
मारना
सक
| 110
224
अपभ्रंश रचना सौरभ
Page #244
--------------------------------------------------------------------------
________________
क्र.सं. | क्रिया
अर्थ प्रसन्न होना होना
अक/सक अक
205
206
अक
207
हँसना ।
अक
208
अक
ol, tour
हिंसा करना होना
अक
210
अपभ्रंश रचना सौरभ
225
Page #245
--------------------------------------------------------------------------
________________
सहायक पुस्तकें एवं कोश
हेमचन्द्र प्राकृत व्याकरण, भाग 1-2 :
व्याख्याता श्री प्यारचन्द जी महाराज (श्री जैन दिवाकर-दिव्य ज्योति कार्यालय, मेवाड़ी बाज़ार, ब्यावर)
2.
प्राकृत भाषाओं का व्याकरण
:
डॉ. आर. पिशल (बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् , पटना)
3.
अभिनव प्राकृत व्याकरण
डॉ. नेमिचन्द शास्त्री (तारा पब्लिकेशन, वाराणसी)
4.
प्राकृत मार्गोपदेशिका
पं. बेचरदास जीवराज दोशी (मोतीलाल बनारसीदास, दिल्ली)
5.
प्रौढ़ रचनानुवाद कौमुदी
:
डॉ. कपिलदेव द्विवेदी (विश्वविद्यालय प्रकाशन, वाराणसी)
पाइअ-सद्द-महण्णवो
पं. हरगोविन्ददास त्रिकमचन्द सेठ (प्राकृत ग्रन्थ परिषद् , वाराणसी)
7.
अपभ्रंश-हिन्दी कोश, भाग 1-2 :
डॉ. नरेशकुमार (इण्डो-विजन प्रा. लि.) खख ए, 220, नेहरु नगर, गाजियाबाद)
8.
हेमचन्द्र अपभ्रंश व्याकरण सूत्र विवेचन : (जैनविद्या के मुनि नयनन्दी एवं कनकामर विशेषांक, संख्या 7, 8)
डॉ. कमलचन्द सोगाणी (जनविद्या संस्थान, दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी, राजस्थान)
9.
Apabhramsa of Hemchandra :
Dr. Kantilal Baldevram Vyas (Parkrit Text Society, Ahm.)
अपभ्रंश रचना सौरभ
'For Private &Personal Use Only
Page #246
--------------------------------------------------------------------------
________________ For Private & Persona Use Only www