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पाठ 41
भूतकालिक कृदन्त ( कर्तृवाच्य में प्रयोग )
अपभ्रंश में भूतकाल का भाव प्रकट करने के लिए भूतकालिक कृदन्त का प्रयोग किया जाता है । क्रिया में निम्नलिखित प्रत्यय लगाकर भूतकालिक कृदन्त बनाए जाते हैं। भूतकालिक कृदन्त शब्द विशेषण का कार्य करते हैं। जब अकर्मक क्रियाओं में इस कृदन्त के प्रत्ययों को लगाया जाता है तो इसका प्रयोग कर्तृवाच्य में किया जा सकता है। इन शब्दों के रूप कर्ता के अनुसार चलेंगे। कर्ता पुल्लिंग, नपुंसकलिंग, स्त्रीलिंग में से जो भी होगा इनके रूप भी उसी के अनुसार बनेंगे। इन कृदन्तों के पुल्लिंग में 'देव' के समान, नपुंसकलिंग में 'कमल' के समान तथा स्त्रीलिंग में 'कहा' के अनुसार रूप चलेंगे। भूतकालिक कृदन्त अकारान्त होता है । स्त्रीलिंग बनाने के लिए कृदन्त में 'आ' प्रत्यय जोड़ा जाता है, 1 वह शब्द आकारान्त स्त्रीलिंग बन जाता है।
(क) क्रियाएँ
भूतकालिक
कृदन्त के
प्रत्यय
हस =
(1)
70
हँसना,
हस
दु
नरिंदो
नरिंद
नरिंदा
नरिंदु
नरिंदो
नरिंद
नरिंदा
=
णच्च = नाचना, जग्ग = जागना, हो = होना
अ हसिअ = हँसा
णच्चिअ
= नाचा जग्गिअ = जागा
होअ = हुआ
णच्चिय = नाचा जग्गिय
हसिय हँसा
= जागा
होय = हुआ
य
नोट - क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'इ' हो जाता है। 'य' प्रत्यय 'अ' में बदला जा सकता है। वाक्यों में प्रयोग (कर्ता पुल्लिंग) (एकवचन) (कर्तृवाच्य)
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णच्च
हसिआ / हसिअ / हसिओ / हसिउ
जग्ग
होआ / होउ / होओ / होअ
हो
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= राजा हँसा ।
= राजा हुआ।
अपभ्रंश रचना सौरभ
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