SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 107
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पाठ 48 विधि कृदन्त (भाववाच्य में प्रयोग) अपभ्रंश में 'हँसा जाना चाहिए', 'जागा जाना चाहिए' आदि भावों को प्रकट करने के लिए विधि कृदन्त का प्रयोग किया जाता है। क्रिया में निम्नलिखित प्रत्यय लगाकर विधि कृदन्त बनाए जाते हैं। अपभ्रंश में दो प्रकार के विधि कृदन्त के प्रत्यय पाए जाते हैं - (1) अव्व (परिवर्तनीय रूप) (2) इएव्वउं, एव्वउं, एवा (अपरिवर्तनीय रूप)। प्रथम प्रकार के विधि कृदन्त का भाववाच्य में प्रयोग करने के लिए कर्ता में तृतीया (एकवचन अथवा बहुवचन) तथा कृदन्त में सदैव नपुंसकलिंग प्रथमा एकवचन ही रहेगा। विधि कृदन्त का यह रूप 'कमल' (नपुंसकलिंग) शब्द की तरह चलेगा। दूसरे प्रकार के विधि कृदन्त का भाववाच्य में प्रयोग करने के लिए भी कर्ता में तो तृतीया (एकवचन अथवा बहुवचन) होगा, किन्तु कृदन्त में कोई परिवर्तन नहीं होगा। विधि कृदन्त कर्तृवाच्य में प्रयुक्त नहीं होता है। संज्ञाएँ सर्वनाम अकाग्रन्त पुल्लिंग नरिंद हउं (पुरुषवाचक सर्वनामअकारान्त नपुंसकलिंग कमल उत्तम पुरुष (प्रथमा एकवचन)। आकारान्त स्त्रीलिंग ससा तुहं (पुरुषवाचक सर्वनाम मध्यम पुरुष (प्रथमा एकवचन)। सो (पुरुष), सा (स्त्री) (पुरुषवाचक सर्वनाम-अन्य पुरुष (प्रथमा एकवचन) अकर्मक क्रियाएँ हस = हँसना, जग्ग = जागना, विअस = खिलना विधि कृदन्त के प्रत्यय हस जग्ग विअस (1) अव्व हसिअव्य। जग्गिअव्व। विअसिअव्व। हसेअव्व । जग्गेअव्व । विअसेअव्व । (2) इएव्वउं हसिएव्वउं जग्गिएव्वउं विअसिएव्वउं एव्वउं हसेव्वळ जग्गेव्वउं विअसेव्वउं __ एवा हसेवा जग्गेवा विअसेवा नोट - 'अव्व' प्रत्यय लगने के पश्चात् अन्त्य 'अ' का 'इ' और 'ए' हो जाता है। 88 अपभ्रंश रचना सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002687
Book TitleApbhramsa Rachna Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2003
Total Pages246
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy