________________
वहिं / जुव
चमूर/चमुए
चमूहिं / चमुहिं
1.
2.
3.
मणि/
मणी /
मणिउ /
मणीउ /
मणिओ /
मणीओ
तणु / तणू
तणु /
तणू /
अपभ्रंश रचना सौरभ
तणुउ /
तणूउ/
तणुओ / ओ
पेसिअव्वा / पेसिअव्व /
पेसिअव्वाउ / पेसिअव्वउ /
पेसिअव्वाओ / पेसिअव्वओ /
पेसे अव्व / आदि
Jain Education International
अथवा
पेसिएव्वउं / पेसेव्वउं / पेसेवा
बंधिअव्वा / बंधिअव्व /
बंधे अव्वा / बंधे अव्व
अथवा
बंधिएव्वउं / बंधेव्वउं/
बंधेवा
बंधिअव्वा /बंधिअव्व /
बंधि अव्वाउ / बंधि अव्वउ / बंधिअव्वाओ / बंधिअव्वओ /
बंधे अव्वा / आदि
अथवा
बंधिएव्वउं / बंधेव्वउं / बंधेवा
युवतियों द्वारा = रत्न भेजे जाने चाहिए ।
For Private & Personal Use Only
=
=
उपर्युक्त सभी क्रियाएँ सकर्मक हैं।
विधि कृदन्त का प्रयोग भाववाच्य और कर्मवाच्य में होता है इसका कर्तृवाच्य में
प्रयोग नहीं होता है ।
अकर्मक क्रियाओं से भाववाच्य बनाये जाते हैं (पाठ 48 ) और सकर्मक क्रियाओं से कर्मवाच्य बनाये जाते हैं।
सेना द्वारा
शरीर बांधा
जाना चाहिए ।
सेनाओं द्वारा
शरीर बांधे
जाने चाहिए ।
125
www.jainelibrary.org