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प्रथमा
द्वितीया
तृतीया
चतुर्थी
व
षष्ठी
पंचमी
सप्तमी
प्रथमा
द्वितीया
तृतीया
चतुर्थी
व
षष्ठी
पंचमी
सप्तमी
1.
2.
184
एकवचन
हउं
मई
मई
महु, मज्झु
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तीनों लिंगों में - अम्ह ( मैं )
महु, मज्झु
मई
एकवचन
तु
पई, तई
पई, त
तउ, तुज्झ, तुध्र
बहुवचन
अम्हे, म्ह
अम्हे, अम्ह
अम्
तीनों लिंगों में तुम्ह (तुम)
-
तउ, तुज्झ, तु
पई, त
अम्हहं
अम्हहं
अम्हासु
बहुवचन
तुम्हे तुम्ह
तुम्हे, तुम्ह
तुम्हे हिं
तुम्ह
तुम्ह
तुम्हासु
तीनों लिंगों में काई (कौन, क्या, कौनसा )
-
सभी वचनों, विभक्तियों एवं लिंगों में 'काई' सदैव काई ही रहता है। 2
हेमचन्द्र की अपभ्रंश व्याकरण के अनुसार ऊपर संज्ञा व सर्वनामों के रूप (जो सूत्रों से फलित हैं) दिए गए हैं ।
अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, द्वारा वीरेन्द्र श्रीवास्तव, पृष्ठ 180 ।
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अपभ्रंश रचना सौरभ
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