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नपुंसकलिंग - एग, एअ, एक्क
प्रथमा
एकवचन एग, एअ, एक्क एगा, एआ, एक्का एगु, एउ, एक्कु
द्वितीया
एग, एअ, एक्क एगा, एआ, एक्का एगु, एउ, एक्कु
बहुवचन एग, एअ, एक्क एगा, एआ, एक्का एगई, एअई, एक्कई एगाई, एआई, एक्काई एग, एअ, एक्क एगा, एआ, एक्का एगई, एअइं, एक्कई एगाई, एआई, एक्काई एगहिं, एअहिं, एक्कहिं एगाहिं, एआहिं, एक्काहिं एगेहि, एएहिं, एक्केहिं एग, एअ, एक्क एगा, एआ, एक्का एगह, एअहं, एक्कहं एगाहं, एआहे,एक्काहं
तृतीया
[चतुर्थी
षष्ठी
एगें, एएं, एक्के - एगेण, एएण, एक्केण एगेणं, एएणं, एक्केणं एग, एअ, एक्क एगा, एआ, एक्का एगसु, एअसु, एक्कसु एगासु, एआसु, एक्कासु एगहो, एअहो, एक्कहो एगाहो, एआहो, एक्काहो एगस्सु, एअरसु, एक्कस्सु एगहां, एअहां, एक्कहां एगाहां, एआहां, एक्काहां एगहिं, एअहिं, एक्कहिं एगाहिं, एआहिं, एक्काहिं
पंचमी
एगहुं, एअहुं, एक्कडं एगाई, एआहुं, एक्काहुं एगहिं, एअहिं, एक्कहिं एगाहिं, एआहिं, एक्काहिं
सप्तमी
186
अपभ्रंश रचना सौरभ
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