________________
सकें और अपभ्रंश में रचना करने का अभ्यास भी कर सकें। अपभ्रंश में वाक्यरचना के द्वारा ही अपभ्रंश का व्याकरण सिखाने का प्रयास किया गया है।
हेमचन्द्राचार्य के अपभ्रंश-व्याकरण के सूत्रों का आधार प्रस्तुत पुस्तक के पाठों में लिया गया है। व्याकरण के जो पक्ष इसमें छूट गए हैं उनको 'प्रौढ़ अपभ्रंश रचना सौरभ' में दिया जाएगा। पाठकों के सुझाव मेरे बहुत काम के होंगे।
आभार
व्याकरण-रचना से सम्बन्धित पुस्तकों का प्रूफ-संशोधन का कार्य अत्यन्त कठिन होता है। किन्तु मुझे हर्ष है कि अपभ्रंश के मेरे विद्यार्थियों-सुश्री प्रीति जैन और सुश्री सीमा बत्रा ने, जिन्होंने अकादमी की 'अपभ्रंश डिप्लोमा' परीक्षा उत्तीर्ण की है और जो अकादमी में कार्यरत हैं, इस कठिन कार्य को सहर्ष और रुचिपूर्वक सम्पन्न किया है। अत: मैं उनका आभारी हूँ। मैं सुश्री प्रीति जैन का विशेष रूप से आभारी हूँ जिन्होंने इस पुस्तक में महत्त्वपूर्ण सुधार सुझाए और विद्यार्थियों के दृष्टिकोण से प्रस्तुतिकरण को संशोधित किया।
मेरी धर्मपत्नी श्रीमती कमलादेवी सोगाणी ने इस पुस्तक को लिखने में जो सहयोग दिया है उसके लिए आभार व्यक्त करता हूँ।
इस पुस्तक को प्रकाशित करने के लिए जैनविद्या संस्थान समिति एवं उसके संयोजक श्री ज्ञानचन्द्र जी खिन्दूका ने जो व्यवस्था की है उसके लिए आभार प्रकट करता हूँ।
कमलचन्द सोगाणी
परामर्शदाता अपभ्रंश साहित्य अकादमी जयपुर।
अपभ्रंश रचना सौरभ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org