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पाठ 83 (क) संज्ञा रूप
प्रथमा द्वितीया तृतीया (चतुर्थी एव
(षष्ठी
पंचमी सप्तमी सम्बोधन
अकारान्त पुल्लिंग (देव) एकवचन
बहुवचन देव, देवा, देवु, देवो देव, देवा देव, देवा, देवु
देव, देवा देवेण, देवेणं, देवें
देवहिं, देवाहिं, देवेहिं देव, देवा
देव, देवा देवसु, देवासु
देवह, देवाहं देवहो, देवाहो, देवस्सु
देवहे, देवाहे, देवहु, देवाहु देवहुं, देवाहुं - देवि, देवे
देवहिं, देवाहिं देव, देवा, देवु, देवो देव, देवा, देवहो, देवाहो
इकारान्त पुल्लिग (हरि) एकवचन
बहुवचन हरि, हरी
हरि, हरी हरि, हरी
हरि, हरी हरिएं, हरीएं, हरिं, हरी हरिहिं, हरीहिं हरिण, हरीण, हरिणं, हरीणं हरि, हरी
हरि, हरी हरिहुं, हरीहुं
हरिहं, हरीहं हरिहे, हरीहे
हरिहुं, हरीहुं हरिहि, हरीहि
हरिहिं, हरीहिं, हरिहुं, हरीहुँ । हरि, हरी
हरि, हरी, हरिहो, हरीहो
प्रथमा
द्वितीया तृतीया
चतुर्थी व
(षष्ठी
पंचमी सप्तमी सम्बोधन
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अपभ्रंश रचना सौरभ
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