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________________ सो हउं सो ह सो ह 1. तरु / तरू सिंचन्तु / सिंचन्तो / सिंचन्त / सिंचन्ता जइ / जई कोकन्त / कोकन्ता / हरिसउं / आदि कोकन्तु / कोको तरु / तरू सिंचेवं/ आदि जइ / जई कोकेवं/ आदि तरु / तरू सिंचि / आदि जइ / जई कोकि / आदि थक्कइ / आदि अपभ्रंश रचना सौरभ Jain Education International उट्ठ/ आदि जग्गउं / आदि हरिसइ / आदि हरिसउं / आदि = वह पेड़ को / पेड़ों को सींचता हुआ थकता है। = = = = = मैं यति/यतियों को बुलाता हुआ प्रसन्न होता हूँ। For Private & Personal Use Only वह पेड़ को / पेड़ों को सींचने के लिए उठता है । मैं यति/यतियों को बुलाने के लिए जागता हूँ। अपभ्रंश में इकारान्त, ईकारान्त पुल्लिंग, उकारान्त, ऊकारान्त पुल्लिंग, इकारान्त व उकारान्त नपुंसकलिंग, इकारान्त, ईकारान्त स्त्रीलिंग, उकारान्त, ऊकारान्त स्त्रीलिंग संज्ञा शब्दों के द्वितीया विभक्ति के प्रत्यय प्रथमा विभक्ति के समान होते हैं (देखें पाठ - 61 ) । वह पेड़ / पेड़ों को सींचकर प्रसन्न होता है । मैं यति/यतियों को बुलाकर प्रसन्न होता हूँ । 129 www.jainelibrary.org
SR No.002687
Book TitleApbhramsa Rachna Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2003
Total Pages246
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size7 MB
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