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जोड़ने पर अन्त्य ‘अ' का 'ए' हो जाता है और केवल अन्य पुरुष में अ ‘अ' का ‘आ' तथा 'आ' का 'अ' भी हो जाता है। (अम्ह~ अम्हे तुम्ह - तुम्हेहिं, त- तेहिं / तहिं/ताहिं, ता - ताहिं / तहिं ) ।
यदि क्रिया अकर्मक होती है तो भूतकालिक कृदन्त भाववाच्य में भी प्र होता है । भूतकालिक कृदन्त से भाववाच्य बनाने के लिए कर्ता में तृती (एकवचन अथवा बहुवचन) तथा कृदन्त में सदैव नपुंसकलिंग प्रथ एकवचन ही रहेगा।
उपर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं तथा सभी वाक्य भाववाच्य के हैं।
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अपभ्रंश रचना सौर www.jainelibrary.org