SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 98
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पाठ 43 अभ्यास निम्नलिखित वाक्यों की अपभ्रंश में रचना कीजिए - (क)(1) पुत्र शरमाता हुआ बैठता है। (2) कुत्ता भोंकता हुआ भागता है। (3) दादा दु:खी होता हुआ सोया। (4) मित्र प्रयत्न करता हुआ प्रसन्न हुआ। (5) बालक डरता हुआ रोता है। (6) अग्नि जलती हुई नष्ट होती है। (7) राक्षस काँपते हुए बैठते हैं। (8) समुद्र फैलते हुए सूखेंगे। (9) पोते लड़ते हुए काँपे । (10) ऊँट नाचते हुए थकते हैं। (11) पुत्र गिड़गिड़ाता हुआ बैठा। (12) मनुष्य हँसता हुआ जीवे । (13) पिता खुश होता हुआ प्रयास करे। (14) राक्षस छटपटाता हुआ मरा। (15) पानी टपकता हुआ सूखा। (ख) - (1) लकड़ी जलती हुई नष्ट होती है। (2) नागरिक लोभ करता हुआ जिया। (3) वैराग्य बढ़ता हुआ शोभता है। (4) विमान उड़ता हुआ गिरा। (5) राज्य लड़ते हुए नष्ट होते हैं। (6) सदाचार बढ़ता हुआ खिलता है। (7) शासन भूल करता हुआ डरता है। (8) सत्य सिद्ध होता हुआ शोभेगा। (9) कर्म गलते हुए छूटते हैं। (10) गठरियाँ लुढ़कती हुई ठहरीं। (ग) - (1) पुत्री प्रसन्न होती हुई उठी। (2) श्रद्धा बढ़ती हुई शोभती है। (3) पत्नी खुरटि भरती हुई सोती है। (4) माता उत्साहित होती हुई बैठती है। (5) नर्मदा फैलती हुई सूखी। (6) झोपड़ियाँ जलती हुई नष्ट हुईं। (7) प्रतिष्ठा बढ़ती हुई शोभती है। (8) महिलाएँ अफसोस करती हुई घूमती हैं। (9) वाणी प्रकट होती हुई सिद्ध हुई। (10) घास जलता हुआ नष्ट हुआ। अपभ्रंश रचना सौरभ 79 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002687
Book TitleApbhramsa Rachna Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2003
Total Pages246
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy