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________________ अपभ्रंश में भूतकाल का भाव प्रकट करने के लिए भूतकालिक कृदन्त का प्रयोग किया जाता है। क्रिया में भूतकालिक कृदन्त के प्रत्यय लगाकर भूतकालिक कृदन्त बना लिया जाता है (देखें पाठ 41 ) । भूतकालिक कृदन्तशब्द विशेषण का कार्य करते हैं । जब सकर्मक क्रियाओं में इस कृदन्त के प्रत्यय लगाए जाते हैं, तो इसका प्रयोग कर्मवाच्य ही किया जाता है। कर्मवाच्य बनाने के लिए कर्ता तृतीया (एकवचन अथवा बहुवचन) में रखा जाता है। कर्म जो द्वितीया (एकवचन अथवा बहुवचन) में होता है, उसको प्रथमा ( एकवचन अथवा बहुवचन) में परिवर्तित किया जाता है तथा भूतकालिक कृदन्त के रूप (प्रथमा में परिवर्तित) कर्म के अनुसार चलते हैं। पुल्लिंग में 'देव' के समान, नपुंसकलिंग में ‘कमल' के समान, तथा स्त्रीलिंग में 'कहा' के अनुसार इसके रूप चलेंगे। भूतकालिक कृदन्त अकारान्त होता है। स्त्रीलिंग बनाने के लिए कृदन्त में 'आ' प्रत्यय जोड़ा जाता है, तो शब्द आकारान्त स्त्रीलिंग बन जाता है। सकर्मक क्रियाएँ कोक = बुलाना, पणम = प्रणाम करना, अच्च = पूजा करना, (1) नरिंदें / आदि नरिंदें / आदि नरिंदेहिं / आदि { पाठ 56 भूतकालिक कृदन्त (कर्मवाच्य में प्रयोग ) हरिं / हरीं / हरिएं / हरीएं 112 Jain Education International पुल्लिंग कइ / कई कइ / कई कइ / कई सुण = सुनना, रक्ख = रक्षा करना, इच्छ = इच्छा करना दिवायर / दिवायरु/ दिवायरा / दिवायरो कोकिअ / कोकिआ / कोकिओ / कोकिउ कोकिअ / कोकिआ कोकिअ / कोकिआ देख = देखना पाल = पालना For Private & Personal Use Only = = = अच्चिअ / अच्चिआ /= अच्चिओ / अच्चिउ राजा के द्वारा कवि बुलाया गया । राजा के द्वारा aa बुलाए गए । राजाओं के द्वारा कवि बुलाए गए। हरि के द्वारा सूर्य पूजा गया । अपभ्रंश रचना सौरभ www.jainelibrary.org
SR No.002687
Book TitleApbhramsa Rachna Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2003
Total Pages246
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size7 MB
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