________________
(9) राजा रत्नों की खोज करता है। (10) मनुष्य व्रतों को छोड़ते हैं। (11) वह बालक को ठगता है। (12) तुम सिंह को देखते हो। (13) मैं उसको स्पर्श करता हूँ। (14) वे उनको कलंकित करते हैं। (15) वह वस्त्रों को फाड़ता है। (16) दु:ख सुख को रोकता है। (17) मित्र सिंहों को देखता है। (18) मामा शास्त्रों को स्पर्श करता है। (19) हनुमान उसका उपकार करता है। (20) हम सूर्य को ढकते हैं।
(ख)(1) वह खेत खोदेगा। (3) वह लकड़ी छीले। (5) वह भोजन चबाए। (7) वे गठरी काटेंगे। (9) वे जंगल काटते हैं।
(2) तुम भोजन जीमोगे। (4) मैं घी डालूँगा। (6) तुम दूध चखो। (8) हम धान कूटेंगे। (10) वह बीजों को पीसता है।
(ग) -
(1) राम सीता को बुलाता है। (3) महिला गड्ढा खोदती है। (5) कन्या छोटे घड़े को उघाड़ती है। (7) हम गंगा की पूजा करते हैं। (9) तृष्णा निद्रा को काटती है।
(2) मैं कन्या को पुकारता हूँ। (4) बहिन पुत्रियों को देखती है। (6) पत्नी गड्ढे को ढकती है। (8) भूख प्यास को रोकती है। (10) वह मदिरा छोड़े।
100
अपभ्रंश रचना सौरभ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org