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पाठ 53 सकर्मक क्रियाएँ (कर्मवाच्य में प्रयोग)
सकर्मक क्रियाएँ
कोक = बुलाना, पणम = प्रणाम करना,
सुण = सुनना, रक्ख = रक्षा करना,
देख = देखना पाल = पालना
उपर्युक्त क्रियाएँ सकर्मक हैं। सकर्मक क्रियाएँ कर्तृवाच्य और कर्मवाच्य में प्रयुक्त होती हैं। सकर्मक क्रिया से कर्मवाच्य बनाने के लिए वे ही प्रत्यय जोड़े जाते हैं जो भाववाच्य बनाने के लिए जोड़े गए थे (पाठ 45- इज्ज, इअ (इय))। कर्ता में तृतीया (एकवचन अथवा बहुवचन) हो जाता है, कर्म में द्वितीया (एकवचन अथवा बहुवचन) के स्थान पर प्रथमा (एकवचन अथवा बहुवचन) तथा क्रिया में कर्मवाच्य के प्रत्यय जोड़ने के पश्चात् (प्रथमा में परिवर्तित) कर्म के अनुसार क्रिया में पुरुष और वचन के प्रत्यय काल के अनुरूप जोड़ दिए जाते हैं। कर्मवाच्य सकर्मक क्रिया से वर्तमानकाल तथा विधि एवं आज्ञा में बनाया जाता है। भविष्यत्काल में क्रिया का भविष्यत्काल कर्तृवाच्य का रूप ही रहता है उसमें इज्ज और इय प्रत्यय नहीं लगाए जाते हैं। भूतकाल के लिए भूतकालिक कृदन्त का प्रयोग कर्मवाच्य में किया जाता है।
अपभ्रंश रचना सौरभ
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