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________________ पाठ 61 विधि कृदन्त (कर्मवाच्य में प्रयोग) अपभ्रंश में 'प्राप्त किया जाना चाहिए', 'रक्षा किया जाना चाहिए' आदि भावों को प्रकट करने के लिए विधि कृदन्त का प्रयोग किया जाता है। क्रिया में प्रत्यय लगाकर विधि कृदन्त बनाए जाते हैं। अपभ्रंश में दो प्रकार के विधि कृदन्त के प्रत्यय पाये जाते हैं (1) अव्व (2) इएव्वउं, एव्वउं, एवा। प्रथम प्रकार के विधि कृदन्त का कर्मवाच्य में प्रयोग करने के लिए कर्ता में तृतीया (एकवचन अथवा बहुवचन), कर्म में प्रथमा (एकवचन अथवा बहुवचन) तथा कृदन्त के रूप (प्रथमा में परिवर्तित) कर्म के लिंग और वचन के अनुसार चलेंगे। पुल्लिग में 'देव' के अनुसार, नपुंसकलिंग में 'कमल' के अनुसार तथा स्त्रीलिंग में 'कहा' के अनुसार रूप चलेंगे। दूसरे प्रकार के विधि कृदन्त का कर्मवाच्य में प्रयोग करने के लिए भी कर्ता में तृतीया, कर्म में प्रथमा, किन्तु कृदन्त के रूप में कोई परिवर्तन नहीं होता। सकर्मक क्रियाओं से निर्मित विधि कृदन्त ही कर्मवाच्य में प्रयुक्त किए जाते हैं। (1) पुल्लिग सामि/सामीं/ सामिएं/सामीएं/ [ हत्थि/ सामिण/सामीण/) हत्थी सामिणं/सामीणं कीणिअव्यु/कीणिअव्यो/ 1 कीणिअव्या/कीणिअव्व/ कीणेअव्वु/कीणेअव्वो/ कीणेअव्व/कीणेअव्वा/ अथवा कीणिएव्वउं/कीणेव्वउं/ कीणेवा स्वामी द्वारा हाथी खरीदा जाना चाहिए। मुणिहिं/मुणीहिं । पाणि/पाणी रक्खिअव्व/रक्खिअव्वा/ रक्खेअव्व/रक्खेअव्वा/ ___ अथवा रक्खिएव्वउं/ रक्खेव्वउं/ रक्खेवा मुनियों द्वारा प्राणी रक्षा किए जाने चाहिए। 122 अपभ्रंश रचना सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002687
Book TitleApbhramsa Rachna Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2003
Total Pages246
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size7 MB
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