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एक प्रकाशन है। यद्यपि अपभ्रंश व्याकरण सम्बन्धी कुछ पुस्तकें प्रकाशित हैं किन्तु आचार्य हेमचन्द्र के सूत्रों के आधार पर अनुवाद एवं रचना कार्य की दृष्टि से हिन्दी में तथा आधुनिक शैली में प्रकाशित पुस्तक का अभाव ही है ।
'अपभ्रंश रचनां सौरभ' इस दिशा में प्रथम व अनूठा प्रयास है। इसकी शैली, प्रणाली एवं प्रस्तुतिकरण अत्यन्त सहज, सरल, सुबोध, एवं नवीन / आधुनिक है जो विद्यार्थियों के लिये अत्यन्त उपयोगी है । शिक्षक के अभाव में स्वयं पढ़कर भी पाठक/ विद्यार्थी इससे लाभान्वित हो सकते हैं। इस अर्थ में 'अपभ्रंश रचना सौरभ' 'अपभ्रंश शिक्षक' सिद्ध होगी ।
इसके रचनाकार हैं डॉ. कमलचन्द सोगाणी, सेवानिवृत्त प्रोफेसर, दर्शनविभाग, सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर । भाषा / भाषिक अर्थ / भाषिक संरचना का दर्शन से एक सूक्ष्म और अव्यक्त सम्बन्ध होता है, शायद यही कारण है कि डॉ. सोगाणी दर्शन के प्रोफेसर होते हुये भी अपभ्रंश - प्राकृत आदि प्राचीन भाषाओं से जुड़े हुए हैं। अपभ्रंश-प्राकृत जगत् में आपका नाम खूब जाना-माना है। 'अपभ्रंश रचना सौरभ' के लिए हम उनके अत्यन्त आभारी हैं । पुस्तक प्रकाशन में सहयोगी कार्यकर्ता एवं मुद्रण के लिये मदरलैण्ड प्रिंटिंग प्रेस, जयपुर धन्यवादार्ह है।
ऋषभ निर्वाण दिवस
माघ कृष्ण चतुर्दशी, वि. सं. 2047
जयपुर
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ज्ञानचन्द्र खिन्दूका संयोजक
जैनविद्या संस्थान समिति
अपभ्रंश रचना सौरभ
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