Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
बालि के साथ रावण का युद्ध
___ “परम पराक्रमी महाराजाधिराज दशाननजी ने आपके लिए सन्देश भेजा है कि किष्किन्धा का राज्य मेरे पूर्वज महाराज कीर्तिधवलजी ने, आपके पूर्वज श्रीकंठजी की शत्रुओं से रक्षा करके, निर्वाह के लिए दिया था। वे महाराजाधिराज कीर्तिधवलजी की आज्ञा में, उनके सामन्त रह कर राज्य करते रहे। यह स्वामी-सेवक सम्बन्ध चलता रहा। इन्द्र के पराक्रम के सामने किष्किन्धराज को पराजित हो कर पलायन करना पड़ा । तुम्हारे पिता आदित्यरजा को यम ने बन्दी बना कर, नरक के समान यातना देता था, तब मैंने उन्हें कारागृह से छुड़ाया और पुनः किष्किन्धा का राज्य दिया। वे लंका राज्य की अधिनता में राज करते रहे । अब तुम्हें भी अपने पिता के समान हमारा अनुशासन स्वीकार कर तदनुसार व्यवहार करना चाहिए।"
दूत की बात, बालि नरेश को रुचिकर नहीं लगी। उन्होंने कहा;--" लंकेश और न्धेश के परस्पर स्नेह सम्बन्ध रहा है, स्वामी-सेवक सम्बन्ध नहीं। हम स्नेह सम्बन्ध का निर्वाह करने के लिए तत्पर हैं। स्वामी-सेवक संबंध हमें मान्य नहीं है । यदि दशाननजी, पारस्परिक स्नेह सम्बंध रखने और बढ़ाने को तत्पर हों, तो हम भी तत्पर हैं । अन्यथा वे जैसा ठीक समझें वैसा करें।"
बालि का उत्तर सुन कर, रावण युद्ध के लिए किष्किधा पर चढ़ आया । युद्ध प्रारम्भ हो गया। सैनिक, घोड़े और हाथी कटने लगे। बालि नरेश के मन में अनुकम्पा जाग्रत हुई । उन्होंने युद्ध बन्द करके रावण के पास सन्देश भेजा;--
__ "आप भी सम्यग्दृष्टि श्रावक हैं। व्यर्थ की हिंसा से आपको भी बचना चाहिये । यदि युद्ध आवश्यक ही है, तो आपके व मेरे बीच ही युद्ध हो जाय । निर्दोष सैनिकों और हाथी-घोड़ों को मरवाने और पृथ्वी को रक्त में रंगने से क्या लाभ है ?"
रावण भी सम्यग्दृष्टि श्रावक था। उसने बालि की बात मान ली। सेना में युद्ध स्थगन की आज्ञा प्रचारित हो गई। दोनों ओर की सेना आमने-सामने स्तब्ध खड़ी हो गई। दोनों वीर, युद्ध-भूमि में आमने-सामने आ कर खड़े हो गए और एक-दूसरे पर प्रहार, प्रतिकार एवं स्वरक्षण करने लगे। रावण ने जितने भी शस्त्र चलाये, बालि ने उन सभी को व्यर्थ कर दिये । अपने अस्त्रों को व्यर्थ जाते देख कर, रावण ने सास्त्र और वरुणास्त्र आदि चलाये, किंतु समर्थ बालि ने अपने गरुड़ास्त्र आदि से उन्हें भी नष्ट कर दिये । जब सभी शस्त्र-अस्त्र व्यर्थ गए, तब रावण ने चन्द्रहास नाम का भयंकर खड्ग पकड़ा और बालि पर झपटा। रावण जब प्रहार करने के लिए निकट आया, तो चतुर बालि ने अपने बायें हाथ से उसे पकड़ कर ऊँचा उठा लिया और खड्ग छिन कर रावण को
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org