Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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बालि और सुग्रीव ४ शूर्पणखा का हरण और विवाह
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"स्वामिन् ! रावण ने वैश्रमण को जीत कर लंका का राज्य और पुष्पक विमान पर भी अधिकार कर लिया है और सुरसुन्दर जैसे बलवान् विद्याधर को भी जीत लिया है । उसने विजयोन्मत्त हो कर किष्किन्धा पर अधिकार कर लिया होगा । अब क्या उपाय करना, यह आप ही सोचें । मैं तो शक्तिहीन बन चुका हूँ।"
यम की दशा और रावण का पराक्रम जान कर विद्याधरपति इन्द्र कुपित हुआ। उसने सैन्य संगठित कर युद्धभूमि में जाने के लिए आज्ञा दी । किन्तु मन्त्रियों के समझाने से युद्ध स्थगित रखा और यमराज को सुरसंगीत नगर दे कर संतुष्ठ किया।
रावण ने किष्किन्धा का राज, सूर्य रजा को और ऋक्षपुर का राज्य ऋक्षरजा को दिया और स्वयं विजयोल्लासपूर्वक लंकानगरी में आया और अपने पितामह के राज्य का संचालन करने लगा।
बालि और सुग्रीव
वानराधिपति सूर्यरजा की इन्दुमालिनी रानी से 'बालि' नाम का एक महा बलवान् पुत्र हुअ । वह अत्यंत पराक्रमी और उच्च शक्ति का स्वामी था। इसके बाद दूसरा पुत्र हुआ उसका नाम 'सुग्रीव' रखा गया और इसके बाद एक पुत्री हुई, जिसका नाम 'श्रीप्रभा' हुआ।
ऋक्षरजा के हरिकान्ता रानी से 'नल' और 'नील' नामके विश्व-विख्यात दो पुत्र हुए। आदित्यरजा (सूर्य रजा) अपने महाबली पुत्र बालि को राज्य दे कर प्रवृजित हो गया और संयम-तप का विशुद्ध रीति से पालन करके मोक्ष प्राप्त हुए । बालि ने अपने ही समान सम्यग्दृष्टि, न्यायी, दयालु और पराक्रमी ऐसे अपने छोटे भाई सुग्रीव को 'युवराज' पद पर स्थापित किया।
शूर्पणखा का हरण और विवाह
एक बार मेघप्रभ विद्याधर के पुत्र ‘खर' की दृष्टि में शूर्पणखा आई। वह उसे देखते हो आसक्त हो गया । शूर्पणखा भी खर पर मोहित होगई। दोनों की परम आसक्ति होने से, खर शूर्पणखा का हरण कर के पाताल-लंका में चला गया और चन्द्रोदर को हटा कर स्वयं
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