Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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रावण का दिग्विजय
हो कर पड़ा हैं और कर दे कर राज कर रहा है । उसे लज्जा आनी चाहिए । जा दूत ! तु उस धीठ को कह दे कि अब तेरा शासन लंका पर नहीं रह सकेगा।"
दूत को चलता करने के बाद रावण आदि तीनों भाई सेना ले कर लंका पर चढ़ आये वैश्रमण भी सेना ले कर लंका के बाहर आ कर रावण से जूझने लगा। थोड़ी देर के युद्ध से ही वैश्रमण की सेना का साहस टूट गया! वह भागने लगी। वैश्रमण ने देखा-- "अब विजय रावण को वरण कर रही है । ऐसी दशा में अपमानित हो कर संसार में रहने की अपेक्षा राज्य-मोह त्याग कर मोक्ष-मार्ग की ओर प्रयाण करना ही उत्तम मार्ग है। यह श्रेष्ठ मार्ग ही पराजय की लज्जा एवं अपमान से रक्षा कर के उच्च स्थान प्रदान करने वाला है । राज्य-लिप्सा, बिना विराग के शान्त नहीं होती और जव तक शांत नहीं होती, तब तक वैर-विरोध विग्रह एवं दुर्गति की सामग्री जुटती ही रहती है । उस समय मेरा पलड़ा भारी था, आज इनका पलड़ा भारी है । यह कर्म की उठा-पटक चलती ही रहती है । इसका छेदन करने के लिए निर्ग्रन्य मार्ग का अनुसरण करना आवश्यक है,"इस प्रकार विचार कर के वश्रमण ने शस्त्र डाल दिये और युद्धभूमि से पृथक् हो कर स्वयमेव प्रव्रज्या ग्रहण कर ली। वैश्रमण के प्रवजित होने की बात जान कर रावण ने भी शस्त्र रख दिये और तत्काल वैश्रमण मुनि के समीप आ कर नमस्कार किया और बोला;
"हे महानुभाव ! आप मेरे ज्येष्ठ बन्धु हैं, इसलिए अपने लघु-बन्धु का अपराध क्षमा करें । आप निश्चित हो कर लंकापुरी में राज्य करें। हम यहां से अन्यत्र चले जावेंगे।"
___ महात्मा वैश्रमणजी तो प्रबजित होते ही ध्यानस्थ हो गए थे। उन्होंने रावण की विनती की ओर लक्ष्य ही नहीं किया। महात्मा को निष्पृह जान कर रावण आदि उनकी क्षमा चाहते और वन्दना-नमस्कार करते हुए चल दिये और लंकापुरी पर अपना अधिकार कर के विजयोत्सव मनाने लगे। इतने में बन पालक ने उपस्थित हो कर निवेदन किया कि--"वन में एक प्रचण्ड उन्मत्त हाथी घूम रहा है। वह आपके वाहन के योग्य है। उसके विशाल दंतशूल हैं मधुपिंगल वर्ण के नेत्र हैं, शिखर के समान उन्नत कुंभस्थल है। वह अन्य हाथियों से उत्तम है।'
रावण, वनपालक की बात सुन कर तत्काल चल निकला और वन में आ कर हाथी को वश में कर लिया तथा उस पर सवार हो कर लंका में प्रवेश किया। गजराज के
# मासी का पुत्र ।
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