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कवलाहार सिद्ध नहीं होता है। यदि फिर भी श्वेताम्बरी भाई वेदनीय कर्मके उदय से ही भूख लगती बतला कर केवली भावान्के कबलाहार सिद्ध करेंगे क्यों कि केवली भर वानके साती या असाता वेदनीय कर्मका उदय रहता है । तो भी नहीं है। क्योंकि वेदनीय कर्मका उदय प्रत्येक जीवको प्रत्येक समय रहता है । सोते नागते कोई भी ऐसा समय नहीं कि वेदनीय कर्मका उदय न होवे; इस कारण आपके कहे अनुसार हर समय क्षुधा लगी ही रहनी चाहिये और उसको मिटानेके लिये प्रत्येक जीवको प्रत्येक समय भोजन करते ही रहना चाहिये। इस तरह सातवें गुणस्थानसे लेकर बारहवें गुणस्थान तक जो मुनियों के धर्मध्यान, शुक्लध्यानकी दशा है उस समय भी वेदनीय कर्मके उदय होनेसे आपके कहे अनुसार भूख लगेगी । उसको दूर करनेके लिये उन्हें आहार करना आवश्यक होगा। इसीलिये उनके ध्यान भी नहीं बन सकेगा। ___तथा-केवली भगवान्के भी हर समय वेदनीय कर्म का उदय रहता है इस लिये उनको भी हरसमय भूख लगेगी जिसके लिये कि उन्हें हर समय भोजन करना आवश्यक होगा । बिना भोनज किये वेदनीय कर्मके उदयसे उत्पन्न हुई क्षुधा उन्हें हर समय व्याकुल करती रहेगी। ऐसा होनेपर श्वेताम्बरी भाइयोंका यह कहना ठीक नहीं रहेगा कि केवली भगवान् दिनके तीसरे पहरमें एक बार भोजन करते हैं।
इस लिये मानना पडेगा कि मुख असाता वेदनीय कर्मकी उदीरणा होनेपर लगती है। यदि फिर भी इस विषय में कोई महाशय यह कहें कि वेदनीय कर्मके तीव्र उदय होनेपर ही भूख लगती है । वेदनीय कर्मक। जबतक मंद उदय रहता है तबतक भूरब नहीं लगती।
तो इसका उत्तर यह है कि भूख लगानेवाले वेदनीय कर्मका उदय केवली भगवान् के तीव्र हो नहीं सकता क्योंकि वे यथाख्यात चारित्रके धारक हैं तदनुसार उनके परिणाम परम विशुद्ध हैं । विशुद्धपरिणामों से दुख देनेवाले अशुभ कर्मों का उदय मंद रहता है यह कर्मसिद्धांत अटल है । इसलिये केवली भावान्के मोहनीय कर्म न रहनेसे
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