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इस विषय में दिगम्बर सम्प्रदायका यह सिद्धान्त हैं कि केवली भवान् वीतरागी और अनन्त सुखधारी होनेके कारण कवलाहार नहीं करते हैं। क्योंकि उनके ' मूख' नामक दोष नहीं रहा है | श्वेताम्बर तथा स्थानकवासी संप्रदायका यह कहना हैं कि केवली भगवान् के वेदनीय कर्मका उदय विद्यमान हैं इस कारण उनको भूख लगती है जिससे कि उनको भोजन करना पडता है । विना भोजन किये केवली भगवान् जीवित नहीं रह सकते ।
ऐसा परस्पर मतभेद रखते हुए भी तीनों सम्प्रदाय केवली - भगवान्को वीतरागी और अनंतसुखी निर्विवादरूपसे मानते हैं ।
इस समय सामने आये हुए प्रश्नका समाधान करने के पहले यह जान लेना आवश्यक है कि भूख लगती क्यों है ? किन किन कारणों से rtain उदर में भूख आकुलताको उत्पन्न कर देती है? इस विषय में सिद्धान्तग्रंथ गोम्मटसार जीवकाण्ड में यों लिखा है,
आहारदंसणेण य तस्सुवजोगेण ओम्मकोठाए । सादिदरुदीरणाए हवदि हु आहारसण्णाओ ॥ १३४ ॥
अर्थात- अच्छे अच्छे भोजन देखने से, भोजन का स्मरण कथा आदि करने से, पेट खाली हो जानेसे और असातावेदनीयकी उदीरणा होनेपर आहारसंज्ञा यानी भूख पैदा होती है ।
इन चार कारणों में से अंतरंग मुख्य कारण असातावेदनीय कर्मकी उदीरणा ( अपक्कणचनं उदीरणा-यानी —आगामी समयमें उदय आनेवाले कर्मनिषेकको बलपूर्व वर्तमान समय में उदय ले आना । जैसे वृक्षपर आम बहुत दिन में पकता; उसे तोडकर भूसे के भीतर रखकर जल्दी पहलेही पका देना ) है । विना असाता वेदनीय कर्मकी उदीरणा हुए भूख लगती नहीं है ।
इस कारण अर्हन्त भगवान्को यदि भूख लगे तो उनके असाता वेदनीय कर्मकी उदीरणा अवश्य होनी चाहिये । किन्तु वेदनीय कर्मकी उदीरणा तेरहवें गुणस्थान में विराजमान अर्हन्त भगवान के नहीं । क्योंकि वेदनीय कर्मकी उदीरणा छहे गुणस्थान तक ही है, आगे नहीं है ।
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