________________
तीर्थंकर परमात्मा की पहचान की है ? आंतर-बाह्य रूप से आपने तीर्थंकर भगवंत का परिचय प्राप्त किया है क्या ? तीर्थंकरों की दिव्य करुणा : __ तीर्थंकर परमात्मा वीतराग होते हैं । राग-द्वेष से रहित होते हैं । न किसी के प्रति राग होता है, न किसी के प्रति द्वेष होता है ! फिर भी वे संसार के सभी जीवों के प्रति, भव-वन में भटकते हुए सभी जीवों के प्रति करुणावंत होते हैं । आप करुणा को राग नहीं समझे ! राग करुणा नहीं होता है । करुणा का स्वरूप राग नहीं होता है । राग स्वकेन्द्रित होता है, करुणा स्वकेन्द्रित नहीं होती है । 'परदुःख विनाशिनी करुणा । दूसरों के दुःखों को मिटानेवाली होती है करुणा ! इसीलिए तो बड़े-बड़े ज्ञानी... योगी और आध्यात्मिक महापुरुषों ने तीर्थंकरों को करुणासागर' कहे हैं, करुणानिधान' कहे हैं, करुणा के घर' कहे हैं ! उनसे अपने उद्धार की, दुःखनिवारण की प्रार्थना की है। ___ आप जानते हो क्या, कि तीर्थंकर बनानेवाला तीर्थंकर नामकर्म कौन बाँधता है और कैसे बाँधता है ? भगवान महावीर स्वामी तीर्थंकर कैसे बने थे ? पूर्वजन्मों की उनकी कथाओं का अध्ययन करने से मालुम पड़ेगा ! नंदन मुनि' के २५वें भव में उन्होंने तीर्थंकर नामकर्म बाँधा था ! समग्र जीवसृष्टि के प्रति उनकी दिव्य करुणा-भावना थी – 'मुझे ऐसी शक्ति प्राप्त हो कि मैं भव-वन में भटकते सभी जीवों को परम सुख प्रदान करूँ... सभी को सिद्ध...मुक्त...बुद्ध बना = !' और वैसी शक्ति प्राप्त करने के लिए उन्होंने वीस स्थानक-तप की उग्र साधना की । लाखों उपवास किये । सस्ते में शक्ति नहीं मिलती है जीवों के उद्धार की । मात्र विचार करने से कार्यसिद्धि नहीं होती है । प्रबल पुरुषार्थ करना पड़ता है ।
करुणा-भावना से और तप की आराधना से तीर्थंकर नामकर्म बाँध लिया । २६वाँ भव मिला देवलोक का और २७वे भव में वे तीर्थंकर महावीर बने । तीर्थंकर बन कर, धर्मतीर्थ की स्थापना कर उन्होंने वही काम किया, जो नंदन मुनि के जन्म में सोचा था, तीव्रता से चाहा था। सभी जीवों को, जो कि भव-वन में भटक रहे हैं उनको परम सुखमय मोक्ष में ले जाऊँ, परम सुख...शाश्वत् सुख दिला हूँ ।
धर्मतीर्थ की स्थापना की; साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका रूप चतुर्विध संघ की स्थापना की और जगत को; धर्मोपदेश देना शुरु किया । परम सुखमय
प्रस्तावना
।
९
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org