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( ४३ ) उल्लेख किया है कि बुक्कराय ने माधवाचार्य को वेद-भाष्य करने का आदेश दिया तो उन्होंने यह काम अपने छोटे भाई सायण को सौंप दिया।'
परम्परा से चले आते हुए माधवाचार्यकृत सर्वदर्शनसंग्रह को सायण के बड़े भाई की रचना मानने में कुछ लोगों ने विवाद खड़ा कर दिया है। उनका कहना है कि माधवाचार्य के किसी गुरु का उल्लेख सर्वदर्शन में नहीं मिलता, मंगलाचरण में लेखक ने शाङ्गपाणि के पुत्र किसी सर्वज्ञविष्णु नामक गुरु का उल्लेख किया है । दूसरे, लेखक अपने को 'सायणदुग्धाब्धिकौस्तुभ' कहता है जिससे वह सायण का पुत्र प्रतीत होता है । सायण के तीन पुत्रों में कम्पण, मायण और शिङ्गण थे । कुछ लोगों का कहना है कि द्वितीय पुत्र मायण ही माधव के नाम से प्रसिद्ध थे । अतः यह ग्रन्थ सायण के पुत्र की कृति है।
ध्यान से विचार करने पर यह मत समीचीन प्रतीत नहीं होता क्योंकि सायण उक्त वंश का भी नाम था जिसमें माधव हुए थे। वंश के नाम पर उन्होंने अपने को सायणमाधव कहा है तथा सायण-वंश रूपी क्षीरसागर में उत्पन्न कौस्तुभ से अपनी तुलना की है । ऐसा साहस माधवाचार्य के अलावा और किसी में संभव नहीं था। किसी एक व्यक्ति से उत्पन्न होने के लिए 'दुग्धाब्धिकौस्तुभ' का विशेषण लगाना भी ठीक नहीं हैं । अब रही बात गुरु की। किसी व्यक्ति के कई नाम होने में कोई आश्चर्य की बात नहीं है । कहते हैं कि पुण्यश्लोकमंजरी में विद्यातीर्थ के इस दूसरे नाम सर्वज्ञविष्णु का उल्लेख भी है । अतः किसी भी दशा में यह सिद्ध है कि वैयासिकन्यायमाला, विवरणप्रमेय, जैमिनीयन्यायमाला तथा पंचदशी-जैसे सफल ग्रन्थों के लेखक माधवाचार्य ही इनके रचयिता हैं।
माधवाचार्य के पाण्डित्य के विषय में तो कुछ कहना ही नहीं। परिशिष्ट-३ में दी गई सूची ही इसका निर्णय करती है कि परोक्ष या अपरोक्ष में कितने ग्रन्थों और ग्रन्थकारों से उनका परिचय था। केवल यही कह देना उनकी जिज्ञासु प्रवृत्ति का बोधक हो सकेगा कि अपने काल में ही उत्पन्न वेदान्तदेशिक
और जयतीर्थ आदि ग्रन्थकारों का भी उन्होंने उल्लेख किया है। भारतीय दर्शन शास्त्र के इतिहास में सर्वदर्शनसंग्रह अद्वितीय ग्रन्थ है क्योंकि इसमें दर्शनों के रहस्यों का उद्घाटन किया गया है। १. यस्य निःश्वसितं वेदा यो वेदेभ्योऽखिलं जगत् । निर्ममे तमहं वन्दे विद्यातीर्थमहेश्वरम् ।। यत्कटाक्षेण तद्रूपं दधबुक्कमहीपतिः । आदिशन्माधवाचार्य वेदार्थस्य प्रकाशने ॥ स प्राह नृपति राजन् सायणार्यो ममानुजः । सर्व वेत्त्येष वेदानां व्याख्यातृत्वे नियुज्यताम् ।।