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वैशेषिक दर्शन]
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[वैशेषिक दर्शन
के रहने से इसकी अनेकता सिद्ध हो जाती है। परमात्मा या ईश्वर जगत का कर्ता है बोर उसका अनुमान इसी रूप में किया जाता है । वह एक है । जीमात्मा के आन्तरिक गुणों को प्रकट करने वाला जो साधन है, वह मन कहलाता है। यह परमाणु रूप होने के कारण दिखाई नहीं पड़ता, पर इसके अस्तित्व का दो कारणों से ज्ञान होता है। क-जिस प्रकार संसार के बाह्य पदार्थों का ज्ञान बाह्येन्द्रियों से होता है, उसी प्रकार आभ्यन्तरिक पदार्थो (सुखदुःखादि) का शान आन्तरिक साधन के द्वारा ही होगा और वह साधन मन ही है। ख-आत्मा, इन्द्रिय तथा विषय इन तीनों के रहने से ही किसी चीज का ज्ञान होता है, किन्तु कभी ऐसा भी होता है कि तीनों के रहने पर भी विषय का ज्ञान नहीं होता। उस समय आत्मा, इन्द्रिय और विषय तीनों ही विद्यमान रहते हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि किसी विषय के प्रत्यक्ष ज्ञान के लिए उपयुक्त तीनों साधन ही पर्याप्त नहीं हैं, बल्कि उसके लिए मन की भी आवश्यकता होती है। __ गुण-वैशेषिकसूत्र में गुण की परिभाषा इस प्रकार है-'जो द्रव्य के आश्रित हो, जो आप गुणरहित हो, जो संयोग और वियोग का उत्पादक कारण न हो, और जो किसी अन्य गुण की उपेक्षा न करे, वह गुण है ।' गुण द्रव्य पर आश्रित रहता है, पर उसमें कोई अन्य गुण नहीं होता । गुण की चार विशेषतायें प्रदर्शित की गयी हैं-कद्रव्य और गुण सापेक्ष तथा एक दूसरे से मिले रहते हैं । गुण परतन्त्र होते हैं और द्रव्य के (रूप, रस, गन्ध आदि) बिना रह नहीं सकते । ख-गुण संयोग और वियोग का कारण नहीं होता। ग-वह अन्य गुण पर आश्रित नहीं होता। घ-इसमें कोई गुण या कम नहीं होता। गुणों की संख्या २४ है-रूप, रस, गन्ध, स्पर्श, शब्द, संख्या, परिणाम, पृथक्त्व, संयोग, वियोग, परत्व, अपरत्व, बुद्धि, सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, गुरुत्व, द्रव्यत्व, स्नेह, संस्कार, धर्म, अधर्म ।
कम-'वैशेषिकसूत्र' में कर्म का लक्षण इस प्रकार है-'जो द्रव्य पर आश्रित हो, गुण से रहित हो, और किसी अन्य पदार्थ की अपेक्षा न करता हुआ, संयोग-विभाग का कारण हो, वह कम है' (१।१।१७)। इससे यह स्पष्ट होता है कि कम स्वतन्त्र न होकर किसी कर्ता पर ही आश्रित रहता है। इसमें गुण नहीं होता, क्योंकि गुण कम नहीं कर सकता। गुण और कर्म दोनों ही द्रव्य पर आश्रित होते हैं। कम में गुण नहीं रहता। द्रव्य, गुण और कम में, द्रव्य प्रधान होता है और शेष दोनों गौण होते है। कम पांच प्रकार का होता है-उत्क्षेपण (ऊपर फेंकना), अवक्षेपण ( नीचे फेंकना), बाकुचन ( सिकुड़ना ), प्रसारण (फैलाना ) और गमन ( जाना )। ___सामान्य-न्याय और वैशेषिक में सामान्य सबन्धी मत 'वस्तुवाद' कहा जाता है। सामान्य 'जाति' को कहते हैं। वैशेषिक दर्शन के अनुसार सामान्य नित्य होता है तथा वस्तुओं से भिन्न होकर भी उनमें समवेत रहता है। जैसे, मनुष्य रहें या मर जाएं, किन्तु मनुष्यत्व बराबर बना रहेगा। यह एक होते हुए भी अनेकानुगत होता है, जैसे,एक गोत्व अनेक गोषों में विद्यमान रहता है। इसके तीन भेद होते हैं-पर, अपर तथा परापर । जो सामान्य सबसे अधिक व्यक्तियों में विद्यमान हो वह पर, जो सबसे