________________
शिवपुराण]
( ५७०)
[शिवपुराण
आधारग्रन्थ-वैदिक साहित्य और संस्कृति-पं० बलदेव उपाध्याय ।
शिवपुराण-अष्टादश पुराणों के अन्तर्गत एक पुराण जिसमें भगवान् शिव का चरित्र विस्तारपूर्वक वर्णित है। शिवपुराण एवं वायुपुराण के सम्बन्ध में विद्वानों के विभिन्न मत हैं। दे. वायुपुराण । कतिपय विद्वान दोनों को अभिन्न मानते हैं तथा कुछ के अनुसार विभिन्न पुराणों में निर्दिष्ट पुराणों की सूची में शिवपुराण ही चतुर्थ स्थान का अधिकारी है । पुराणों में भी इस विषय में मतैक्य नहीं है। बहुसंख्यक पुराण शिवपुराण का अस्तित्व मानते हुए इसे चतुर्थ स्थान देते हैं, जैसे-'कूर्म, 'पद्म', 'ब्रह्मवैवत', 'भागवत', 'मार्कण्डेय', 'लिंग', 'वाराह' तथा 'विष्णुपुराण' । पर, 'देवीभागवत', नारद' तथा 'मत्स्य' 'वायुपुराण' को ही महत्त्व प्रदान करते हैं। 'श्रीमद्भागवत' के बारहवें स्कन्ध के सातवें अध्याय में जो पुराणों की सूची दी गयी है उसमें 'वायुपुराण' का नाम नहीं है।
ब्राह्म पापं वैष्णवं च शैवं लैंगं सगारुडम् । नारदीयं भागवतमाग्नेयं स्कन्दसंज्ञितम् ।। भविष्यं ब्रह्मवैवर्त मार्कण्डेयं सवामनम् । वाराहं मात्स्यं कोमं च ब्रह्माण्डाव्यमिति त्रिषट् ॥ पर 'नारदीयपुराण' की सूची ( अध्याय ९२ ) में 'वायुपुराण' का नाम है । ब्राह्म पाचं वैष्णवं च वायवीयं तथैव च । भागवतं नारदीयं मार्कण्डेयं च कीर्तितम् । आग्नेयन्च भविष्यन्च ब्रह्मवैवर्तलिंगके । वाराहं च तथा स्कान्दं वामनं कूर्मसंज्ञकम् । मात्स्य च गारुडं तब ब्रह्माण्डाख्यमिति विषट् ॥ सम्प्रति 'शिव' एवं 'वायुपुराण' संज्ञक दो अन्य प्रचलित हैं जो वयंविषय तथा आकार-प्रकार में परस्पर भिन्न हैं। शिवपुराण का प्रकाशन वेंकटेश्वर प्रेस, बम्बई से हुआ था (सं० १९८२)। इसके अन्य दो हिन्दी अनुवाद सहित संस्करण पंडित पुस्तकालय, काशी तथा संस्कृति संस्थान खुर्जा से भी निकले हुए हैं। वायुपुराण के भी तीन संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं-बिब्लिओथेका इण्डिका कलकत्ता ( १८८०-८९ ई०), आनन्द संस्कृत ग्रन्थावली, पूना (१९०५ ई०) तथा गुरुमंडल प्रन्थमाला कलकत्ता ( १९५९ ई.)। __वेंकटेश्वर प्रेस से मुद्रित शिवपुराण में सात संहिताएं हैं-विद्येश्वर संहिता, रुद्रसंहिता शतरुद्रसंहिता, कोटिरुद्रसंहिता, उमासंहिता, कैलास संहिता तथा वायवीय संहिता । इसके विधेश्वर संहिता में २५ अध्याय हैं तथा रुद्र संहिता में १८७ अध्याय । इस संहिता के पांच खण्ड हैं-सृष्टिखंड, सतीखंड, पार्वतीखंड, कुमारखंड, युद्धखण्ड । शतरुद्र संहिता में ४२, कोटिरुद्र में ४३, उमासंहिता में ५१, कैलास संहिता में २३ तथा वायवीय संहिता में ७६ हैं। इसके श्लोकों की संख्या २४ हजार है। शिवपुराण के उत्तरखण्ड में इसका वर्णन इस प्रकार है-यत्र पूर्वोत्तरे खण्डे शिवस्य चरितं बहु । शैवमेतत्पुराणं हि पुराणज्ञा वदन्ति च ह ॥ शिवपुराण का एक अन्य संस्करण भी है जो लक्षश्लोकात्मक है तथा इसमें १२ संहिताएं हैं, किन्तु सम्प्रति यह ग्रन्थ अनुपलब्ध है। शिवपुराण की वायुसंहिता में ही इसका निर्देश है। इसकी संहिताओं के नाम और श्लोक दिए जाते हैं
१ विद्यश्वर संहिता-१००००। २. रौद्रसंहिता-८०००। ३. विनायक संहिता-८०००। ४. औमसंहिता-८०००। ५. मातृसंहिता-८०००। ६.