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स्मृति धर्मशास्त्र]
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[स्मृति धर्मशास्त्र
अत्रि, उतथ्य के पुत्र, भृगु, वशिष्ठ, वैखानस एवं शौनक । सर्वप्रथम याज्ञवल्क्य ने २० धर्मशास्त्रकारों का नामोल्लेख किया है तथा कुमारिल ने १८ धर्मसंहिताओं के नाम दिये हैं। 'चतुर्विशतिमत' नामक ग्रन्थ में २४ धर्मशास्त्रकारों के नाम हैं। बैष्ठीनसि ने ३६ स्मृतियों का उल्लेख किया है तथा 'बौद्धगोतमस्मृति' में ५७ धर्मशास्त्रों का नाम आया है। मित्रोदय' में १८ स्मृति, १८ उपस्मृति तथा २१ अन्य स्मृतिकारों के नाम आये हैं। स्मृतिकार-मनु, बृहस्पति, दक्ष, गौतम, यम, अंगिरा, योगीश्वर, प्रचेता, शातातप, पराशर, संवतं, उशना शंख, लिखित, अत्रि, विष्णु, आपस्तम्ब एवं हारीत । उपस्मृतिकार-नारदः पुलहो गाग्यः पौलस्त्यः शौनकः क्रतुः। बोधायनो जातुकर्णो विश्वामित्रः पितामहः ।। जाबालिर्नाचिकेतश्च स्कन्दो लौगाक्षिकश्यपी। व्यासः सनत्कुमारश्च शन्तनुजनकस्तथा ॥ व्याघ्रः कात्यायनश्चैव जातूकम्यः कपिम्जलः । बौधायनश्च कणादो विश्वामित्रस्तथैव च ॥ पैठीनसिर्गोभिलश्चेत्युपस्मृतिविधायकाः । अन्य २१ स्मृतिकार-वसिष्ठो नारदश्चव सुमन्तुश्च पितामहः । विष्णुः कार्णाजिनिः सत्यव्रतो गाग्यश्च देवलः ।। जमदग्निर्भारद्वाजः पुलस्त्यः पुलहः ऋतुः। आत्रेयश्च गवेश्च मरीचिवंत्स एव च । पारस्करश्चष्यशृङ्गो वैजवापस्तथैव च ॥ इत्येते स्मृतिकार एकविंशतिरीरिताः ॥ वीरमित्रोदय, परिभाषा प्र०, पृ० १८ ।
वैसे प्रमुख स्मृतियां १८ हैं जिनके निर्माताओं के नाम इस प्रकार हैं-मनु, याज्ञवल्क्य, अत्रि, विष्णु, हारीत, उशनस्, अंगिरा, यम, कात्यायन, बृहस्पति, पराशर, व्यास, दक्ष, गौतम, वसिष्ठ, नारद, भृगु तथा अंगिरा । उपर्युक्त सभी स्मृतियां उपलब्ध नहीं होती। 'मानवधर्मशास्त्र' नामक स्मृतिग्रन्थ सर्वाधिक प्राचीन है जिसके प्रणेता मनु हैं। इसके कतिपय अंश प्राचीन ग्रन्थों में उपलब्ध होते हैं, किन्तु इस समय 'मनुस्मृति' के नाम से जो ग्रन्थ प्राप्त है उसका मेल 'मानवधर्मशास्त्र' के प्राप्तांश से नहीं है । ऐसा प्रतीत होता है कि 'मानवधर्मशास्त्र' के सूत्रों के आधार पर 'मनुस्मृति' का निर्माण हुआ है [ दे. मनुस्मृति ] । ___स्मृतियों की परम्परा--'महाभारत' के शान्तिपर्व में 'मनुस्मृति' से मिलते-जुलते विषय का वर्णन है। उसमें ब्रह्मा द्वारा रचित एक 'नीतिशास्त्र' नामक ग्रन्थ का उल्लेख है, जिसमें एक लाख अध्याय थे तथा धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चार पुरुषार्थों का विस्तृत विवेचन था। आगे चल कर भगवान् शंकर ने उसे दस हजार अध्यायों में संक्षिप्त किया तथा पुनः इन्द्र ने उसे पांच हजार अध्यायों में संक्षिप्त कर 'बाहुदन्तकथाशास्त्र' की संज्ञा दी। तदनन्तर यही ग्रन्थ 'बार्हस्पत्यशास्त्र' के नाम से प्रसिद्ध हुआ जिसे शुक्राचार्य ने एक हजार अध्यायों में निर्मित किया। कालान्तर में यही प्रन्थ ऋषिमुनियों द्वारा मनुष्य की आयु के हिसाब से संक्षिप्त होता रहा [दे. महाभारत, शान्तिपर्व अध्याय ५९]। 'महाभारत' के इस विवरण से ज्ञात होता है कि धर्मशास्त्र के अन्तर्गत अर्थशास्त्र, राजनीति, समाजशास्त्र, शिल्प एवं रसायनशास्त्र का समावेश था। बृहस्पति ने धर्मशास्त्र के ऊपर बृहग्रन्थ की रचना की थी। धर्मशास्त्र सम्बन्धी विविध अन्थों से संग्रह कर लगभग २३०० श्लोकों का संग्रह बड़ोदा से प्रकाशित हुआ है, जो 'बार्हस्पत्यशास्त्र' का ही अंश है। इसके संपादक श्रीरंगाचार्य का कथन है कि 'वृहस्प