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यागेश्वर शास्त्री]
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[ रामचन्द्र झा
में दयानन्दलहरी की रचना हुई है। दिव्यानन्दलहरी-इसमें भी ५२ श्लोक हैं तथा अध्यात्मतत्त्व एवं ईश्वर-महिमा प्रभृति विषयों का निरूपण हैं। प्रकृति-सौन्दयं-यह छह अंकों का नाटक है । कुमुदिनीचन्द्र-इस उपन्यास का प्रणयन किसी गुजराती कथा के आधार पर हुआ है । इसका प्रकाशन १९७६ वि० सं० में हुआ था। इसका कथानक हिन्दी के लोकप्रिय उपन्यास 'चन्द्रकान्ता' से मिलता-जुलता है। इसमें अजितगढ़ दुर्ग के स्वामी केसरी सिंह के पुत्र चन्द्रसिंह एवं विजयनगर के राजा विजयसिंह की कन्या कुमुदिनी की प्रणयगाथा वर्णित है । उपन्यास में नायक-नायिका की कथा के अतिरिक्त विजय सिंह ( नायक ) के अनुज रणवीर सिंह तथा अमरकण्टक की राजकुमारी रत्नप्रभा की भी कथा समानान्तर चलती है। इसका खलनायक सूर्यपुर के पदच्युत राजा का पुत्र करसिंह है। इस उपन्यास का विभाजन सोलह कलाओं में हुआ है। लेखक ने ऋतुवर्णन के मनोरम प्रसंग प्रस्तुत किये हैं । लेखक ने 'शुद्धिगङ्गावतार' नामक एक अन्य उपन्यास भी लिखना प्रारम्भ किया था पर वह पूर्ण न हो सका। दयानन्द दिग्विजय-इस महाकाव्य में स्वामी दयानन्द सरस्वती की जीवनगाथा २७ सर्गों में वर्णित है जिसमें २७०० श्लोक हैं। महाकाव्य पूर्वाद्धं एवं उत्तराद्ध के रूप में दो भागों में विभक्त है जिनका प्रकाशन क्रमशः १९९४ वि० सं० एवं २००२ में हुआ। इसमें शान्त रस की प्रधानता है। कतिपय स्थलों पर कवि ने प्रकृति का रमणीय चित्र अंकित किया है। इसमें सर्वत्र आलंकारिक सौन्दर्य के दर्शन होते हैं तथा काव्य विभिन्न प्रकार की प्रेरणादायक सूक्तियों से सुगुंफित है। वसन्तवर्णन द्रष्टव्य है-नमः प्रसन्नं सलिलं प्रसन्नं निशाः प्रसन्ना द्विजचन्द्ररम्याः । इयं वसन्ते रुरुचे वसन्ती प्रसः लक्ष्मीः प्रतिवस्तु दिव्यगा ॥ ८।१६ । दे० ऋषि दयानन्द और आर्यसमाज की संस्कृत साहित्य की देन, पृ० १५२-१७० ।
यागेश्वर शास्त्री-(१८४० ई०-१९०० ई० ) । इमका जन्म बलिया जिले में रुद्रपुर नामक ग्राम में हुआ था। व्याकरण के विद्वान्; विशेषतः प्रक्रिया-शैली के । इन्होंने 'हैमवती' (व्याकरण) नामक ग्रन्थ की रचना की है जो नागेशभट्ट के 'परि. भाषेन्दुशेखर' की प्रमेयबहुल तथा पाण्डित्यपूर्ण टीका है । इसमें इनके मोलिक विचार भी निविष्ट हैं । यह प्रक्रिया पद्धति के अनुसार महत्त्वशाली व्याख्यान तथा वैयाकरण तथ्यों का प्रतिपादक ग्रन्थ है । वाराणसेय संस्कृत विश्वविद्यालय, से १९७२ ई० में प्रकाशत ।
रामचन्द्र झा (व्याकरणाचायः)-जन्म १९१२ ई० । जन्मस्थान 'तरौनी' (दरभंगा : बिहार) वर्तमान निवासस्थान डी २/९ जयमंगलाभवन, धर्मकूप, वाराणसी । अध्ययनोपरान्त १९३९ ई० से अर्थविमुख होकर आपने सारा जीवन संस्कृत साहित्य के प्रचार-प्रसार में लगा दिया है । आपके मौलिक ग्रन्थों के नाम हैं-सस्कृत-व्याकरणम्, सन्धिचन्द्रिका, रूपलता, सम्पूर्ण सिद्धान्तकौमुदी, मध्यकोमुदी तथा लघुकौमुदी के बालकोपयोगी सविवरण नोट्स । शिक्षाजगत में आपकी 'इन्दुमती' नाम की टीका प्रसिद्ध है। आपने लघुकौमुदी, मध्यकीमुदी, तकसंग्रह, रामवनगमन, पञ्चतन्त्र, अनङ्गरंग ( कामशास्त्र) आदि प्रन्थों की अत्यन्त सरल सुबोध सविमर्श टीका लिखी है। चौखम्बा-संस्थान के अन्तर्गत संस्थापित 'काशी मिथिला ग्रन्थमाला' के आप