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वस्तुपाल ]
( ७०४ )
[ शान्तिनाथ चरित्र
एवं ज्योतिषी थे । अभी तक उनकी चार पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। (१) गंगाभारत संस्कृति:, (२) उग्रवंशप्रशस्तिः, (३) श्रीवैद्यनाथप्रशस्तिः, (४) राष्ट्रपतिराजेन्द्रवंशप्रशस्तिः । श्रीदुर्गापूजा पद्धति: ( नानातन्त्र वेद पुराणधर्मशास्त्र के आधार पर रचित ) तथा ज्योतिषविषयक ग्रन्थ प्रकाश्यमान हैं । अन्तिम ग्रन्थ में ३२ वर्षों के ज्योतिषसम्बन्धी अनुभव का उल्लेख है । 'राजेन्द्रवंशप्रशस्तिः' में राष्ट्रपति राजेन्द्रप्रसाद के जीवन चरित्र के अतिरिक्त उन सभी व्यक्तियों और उनके कार्य-कलापों का भी वर्णन है। जिन्होंने आधुनिक भारत के निर्माण में महत्त्वपूर्ण योग दिया ग्रन्थ की शैली प्रसाद गुण समन्वित एवं प्रौढ है । गणतन्त्रदिवसोत्सव का वर्णन देखें। शैली में निर्मित है । इसमें कुल ५५५ श्लोक हैं। तस्मिन् रथे महविधी वरराष्ट्रपोऽसो स्थित्वा सुखं स्वभवनात् सह सैनिकैस्तैः । संवन्द्यमान इह याति मुदा प्रपश्यन् नानाविधान् नृपपथस्थित दर्शकांस्तान् ॥ ४५४ ग्रन्थकार को राष्ट्रपति द्वारा पद्मश्री की उपाधि प्राप्त है ।
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सारी रचना प्रवाहपूर्ण
वस्तुपाल - संस्कृत के जैनधर्मावलम्बी महाकाव्यकार | इनका रचनाकाल सं० १२७७ से १२:७ के मध्य है । कवि ने 'नरनारायणानन्द' नामक प्रसिद्ध शास्त्रीय महाकाव्य की रचना की है जिसमें श्रीकृष्ण एवं अर्जुन की मैत्री एवं महाभारतीय प्रसंग के आधार पर 'सुभद्राहरण' की प्रसिद्ध घटना वर्णित है । [ दे० नरनारायणानन्द ] कवि के पिता का नाम आशाराज या अश्वराज था और माता का नाम कुमारदेवी ( नरनारायणानन्द प्रशस्ति संगं श्लोक १६ ) इनके गुरु का नाम विजयसेन सूरि था । महाकवि वस्तुपाल धोलका (गुजरात) के राजा वीरधवल एवं उनके पुत्र बीसलदेव का महामात्य था । वह कवि, विद्वान, वीर, योद्धा एवं निपुण राजनीतिज्ञ के रूप में विख्यात था। उनके द्वारा रचित अन्य ग्रन्थ हैं - 'शत्रुजय मंडन', 'आदिनाथस्तोत्र', 'गिरिनारमण्डन', 'नेमिनाथस्तोत्र', तथा 'अम्बिकास्तोत्र' आदि । संस्कृत के सुभाषित ग्रन्थों एवं गिरनार के उत्कीर्ण लेख में वस्तुपाल 'कविकुंजर' 'कविचक्रवर्ती' 'वाग्देवतासुत', 'सरस्वतीकण्ठाभरण' आदि उपाधियों से विभूषित हैं। सोमेश्वर ने अपने 'उल्लाघलाघव' नामक नाटक में वस्तुपाल की सूक्तियों की प्रशंसा की है ( ८ व अंक ) । अम्भोजसम्भवसुता वक्त्राम्भोजेऽस्ति वस्तुपालस्य । यद्वीणारणितानि श्रूयन्ते सूक्तिदम्मेन ॥ कवि
का अन्यनाम वसन्तपाल भी था ।
शान्तिनाथ चरित्र - यह जैनभद्रसूरि (संस्कृत के जैन कवि ) रचित पौराणिक महाकाव्य है । इसमें महाकाव्य एवं धर्मकथा का समावेश है। जैनभद्रसूरि का रचनाकाल स० १४१० विक्रम है । इस महाकाव्य की रचना १९ संग में हुई है तथा सोलहवें तीर्थकर शान्तिनाथ जी की जीवनगाथा वर्णित है। इसके नायक अलौकिक व्यक्ति हैं, फलतः महाकाव्य में अलौकिक एवं अतिप्राकृतिक घटनाओं का बाहुल्य है । इस महाकाव्य का कथानक लोकविश्रुत है जिसका आधार परम्परागत चरित्रग्रन्थ है । इसके नायक धीरप्रशान्तगुणोपेत है और शान्तरस अंगी रस है । कवि ने धर्मं बोर मोक्ष की प्राप्ति को ही इस महाकाव्य का प्रधान फल सिद्ध किया है । प्रारम्भ में मंगला