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दामोदर शास्त्री]
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[दिलीप शमा
की है जिनमें इनका कवि रूप अभिव्यक्त हुआ है। स्वामी जी के पद्य अधिकांशतः नीतिप्रधान हैं-विद्याविलासमनसो धृतिशीलशिक्षाः सत्यव्रता रहितमानमलापहाराः । संसारदुःखदलनेन सुभूषिता ये धन्या नरा विहितकर्मपरोपकाराः ॥ दयानन्द जी का संस्कृत गद्य परिनिष्ठित, उदात्त एवं श्रेष्ठशैली का उदाहरण उपस्थित करता है । उनकी ग्रन्थराशि के द्वारा संस्कृत साहित्य के शास्त्रीय, धार्मिक एवं व्यावहारिक साहित्य की समृद्धि हुई है । वे संस्कृत के महान् एवं युगप्रवर्तक लेखक एवं शैलीकार थे । स्वामी जी का निर्वाण ३० अक्टूबर १८८३ ई० (दीपावली) को हुआ। __ आधारग्रन्थ-ऋषि दयानन्द और आर्यसमाज की संस्कृत साहित्य को देन#. भवानीलाल भारतीय ।
दामोदर शास्त्री-(सं० १९५७-१९९८) ये गया जिले (बिहार) के अन्तर्गत करहरी नामक ग्राम के निवासी (औरंगाबाद ) थे। इनका जन्म शाकद्वीपीय ब्राह्मण परिवार में हुआ था। छात्र-जीवन से ही कवि में चित्रकाव्य-रचना की प्रतिभा विद्यमान थी। इन्होंने 'चित्रबन्ध-काव्यम्' नामक चित्रकाव्य का प्रणयन किया है जो सं २००० में प्रकाशित हुआ है। शास्त्री जी कवि के अतिरिक्त प्रख्यात तांत्रिक भी थे । ये अनेक राजाओं के आश्रय में रहे। रायगढ़ नरेश की छत्रछाया इन्हें लम्बी अवधि तक प्राप्त हुई थी। 'चित्रबन्ध काव्यम्' की 'प्रमोदिनी' नामक टीका स्वयं कवि ने लिखी है । कवि की अधिकांश रचनाएँ अभी तक अप्रकाशित हैं और वे उनके पुत्र पं० बलदेव मिश्र के पास हैं, (औरंगाबाद गया)। उदारण पनवन्ध कामध्यतः परितो गच्छेन्नेमावपि ततः परम् । इति शैली विजानन्तु बन्धेऽत्र चन्द्रसंज्ञके ॥ रक्ष त्वं धरणीधीर ! रघुराज ! रमेश्वर ! जन्मकर्मधर्मधार ! रमयस्व रतान् व्रज ।।
दिलीप शर्मा-इनका जन्म कृष्णपुर जिला बुलन्दशहर में हुआ था। इनका निधन २८ नवम्बर १९५२ ई० को हुआ है। इसके पिता का नाम श्री भेदसिंह है । इनकी शिक्षा गुरुकुल महाविद्यालय ज्वालापुर में हुई थी। इनकी प्रसिद्ध रचना 'मुनिचरितामृत' महाकाव्य है। इनके द्वारा रचित अन्य ग्रन्थ हैं-'प्रतापचम्पू', 'संस्कृताश्लोक', 'ऋतुवर्णन', 'योगरत्न' आदि । 'मुनिचरितामृत' में महर्षि दयानन्द का चरित है । इस महाकाव्य के पूर्वार्द का प्रकाशन सं० १९७१ वि० में दर्शन प्रेस ज्वालापुर से हुआ पा। उत्तराखं अद्यावधि अप्रकाशित है । ग्रन्थ का पूर्वाद्ध ११ बिन्दुओं में विभाजित है। प्रथम बिन्दु में मंगलाचरण, अपनी विनम्रता, सज्जनशंसा, दुर्जननिन्दा तथा महर्षि दयानन्द के जन्मकाल एवं बालचरित का वर्णन है। द्वितीय बिन्दु में शिवरात्रिव्रतकथा तथा बालक मूलशंकर की प्रारम्भिक शिक्षा-दीक्षा का उल्लेख है तथा तृतीय में मूलशंकर को वैराग्य उत्पन्न होने एवं उनके गृहत्याग का वर्णन किया गया है । इसी सर्ग में मूलशंकर की बहिन एवं चाचा की मृत्यु का हृदयस्पर्शी वर्णन है जिसमें करुण रस का परिपाक हुआ है। चतुर्थ बिन्दु में मूलशंकर के गृहत्याग एवं उनकी माता के विलाप का तथा पंचम में ब्रह्मचारी के पिता की अन्तिम भेंट वर्णित है। षष्ठ एवं सप्तम बिन्दुओं में शुद्ध चैतन्य का क्रमशः सिद्धपुर से पलायन एवं वेदान्त अध्ययन